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Wednesday, May 1, 2013

नोएडा में रियल इस्‍टेट माफिया के आतंक की ज़मीनी रिपोर्ट

नोएडा में रियल इस्‍टेट माफिया के आतंक की ज़मीनी रिपोर्ट

बिगुल मज़दूर दस्‍ता

नोएडा की गिनती उन स्‍थानों में होती है जिनको "उभरते हुये" और "चमकते-दमकते" भारतका गढ़ कहा जाता है। जगमगाते शॉपिंग मॉल, विश्‍व स्‍तरीय एक्‍सप्रेसवे, फ्लाई ओवर, एफ वन इन्टरनेशनल सर्किट, लक्‍ज़री अपार्टमेन्ट, विला ये सभी भारत की तरक्‍की की दास्‍तान के प्रतीक माने जाते हैं और नोएडा में ये सब देखे जा सकते हैं। पिछले दो दशकों से मुख्‍य धारा का कॉरपोरेट मीडिया उदीयमान शहरी उच्‍च मध्‍य वर्ग को इस तरक्‍की की दास्‍तान सुनाकर लम्बे-चौड़े सपने दिखा रहा है, मिसाल के लिये सुख सुविधासम्‍पन्‍न अपने घर का सपना। परन्‍तु, सोचने की बात है कि जिन मज़दूरों की हाड़-तोड़ मेहनत से इस तथा‍कथित विकास की अट्टालिका का निर्माण होता है उनकी दास्‍तान मीडिया में कहीं नहीं सुनायी देती। मज़दूर ख़बरों में तभी आते हैं जब कहीं कोई दुर्भाग्‍यपूर्ण घटना घटती है और निहायत ही बेशर्मी से बिना किसी तहकीकात के उनको जि़म्‍मेदार ठहरा दिया जाता है। ऐसी ही एक घटना 28 अप्रैल को नोएडा के एक निर्माणाधीन साइट पर हुयी जिसमें सिक्‍योरिटी गार्डों ने मज़दूरों पर गोली चला दी जिससे कुछ मज़दूर ज़ख्‍़मी हो गये।

मज़दूर बस्ती का एक दृश्य28 अप्रैल की सुबह नोएडा के सेक्‍टर 110 में स्थित थ्री सी लोटस पनाश कम्‍पनी की निर्माणाधीन साइट के मज़दूरों ने कम्‍पनी प्रबन्‍धन के बर्बर आतंक राज का मुज़ायरा देखा। उस दिन 8 बजे से चालू होने वाली सुबह की शिफ्ट में जब मज़दूर काम पर पहुँचे तो वहाँ उन्‍हें गेट में अन्‍दर जाने के लिये बहुत लम्‍बी लाइन में खड़ा होना पड़ा। इसका कारण यह था कि गेट पर मौजूद सिक्‍योरिटी गार्ड एक एक मज़दूर की सघन सुरक्षा जाँच और एन्‍ट्री करवाने में काफी समय लगा रहे थे। मज़दूरों ने गार्डों की ढिलाई का विरोध किया क्‍योंकि काम पर एक मिनट भी देर से पहुँचने पर उन्‍हें सुपरवाइजर की डाँट और गालियाँ सुननी पड़ती हैं। इसी बात पर गार्डों और मज़दूरों के बीच कहासुनी हो गयी और देखते ही देखते गार्डों ने मज़दूरों पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चला दीं। मीडिया की ख़बरों के अनुसार दो मज़दूर ज़ख्‍मी हुये। परन्‍तु जब बिगुल मज़दूर दस्‍ता की एक टीम निर्माणाधीन साइट से लगी मज़दूर बस्‍ती गयी तो वहाँ कुछ मज़दूरों ने बताया कि ज़ख्‍़मी मज़दूरों की संख्‍या चार तक हो सकती है जिनमें से एक की हालत गम्भीर है और उसकी जिन्‍दगी ख़तरे में है। जिला अस्‍पताल के रिकार्ड के अनुसार केवल एक ही मज़दूर वहाँ भर्ती हुआ। अन्‍य मज़दूर किसी निजी अस्‍पताल में भर्ती किये गये।

पूछताछ करने पर मज़दूरों ने बताया कि सिक्‍योरिटी गार्ड और सुपरवाइजर आम तौर पर मज़दूरों से गाली गलौज की ही भाषा में बात करते हैं। कुछ मज़दूरों का कहना था कि ठेकेदार ने पिछले तीन महीने से मज़दूरों का वेतन रोक रखा है। मज़दूरों ने बताया कि उस साइट पर एक अकुशल मज़दूर की दिहाड़ी 140 से 150 रूपये है और कुशल मज़दूरों की 250 रूपये। जब बिगुल मज़दूर दस्‍ता की टीम ने उनसे कहा कि यह तो सरकार द्वारा तय की गयी न्‍यूनतम मज़दूरी से भी कम है (जो अपने आप में बेहद कम है), तो मज़दूरों का कहना था कि वे जब भी दिहाड़ी बढ़ाने की माँग करते हैं, ठेकेदार कहता है कि इसी दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूरों की कोई कमी नहीं है और यदि उन्‍हें इसी मज़दूरी पर काम करना है तो करें अन्‍यथा कहीं और काम ढूँढ लें।

जिस बस्‍ती में मज़दूर रहते हैं उसके हालात नरकीय हैं। इस बात की कल्‍पना करना मुश्किल है कि टिन के शेड से बनी इसअस्‍थायी बस्‍ती में मज़़दूर कैसे रहते हैं। मुर्गी के दरबों जैसे कमरों में एक साथ कई मज़दूर रहते हैं और उनमें से कई अपने परिवार के साथ भी रहते हैं। बस्‍ती में पीने के पानी की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। मज़दूरों को पानी खरीद कर पीना पड़ता है। बिजली भी लगातार नहीं रहती। शौचालय के प्रबन्‍ध भी निहायत ही नाकाफी हैं और समूची बस्‍ती में गन्‍दगी का बोलबाला है। नाली की कोई व्‍यवस्‍था न होने से बस्‍ती में पानी जमा हो जाता है और बरसात में तो हालत और बदतर हो जाती है। यही नहीं, जैसे ही यह प्रोजेक्‍ट पूरा हो जायेगा, इस बस्‍ती को उजाड़ दिया जायेगा और मज़दूरों को इतनी ही खराब या इससे भी बदतर किसी और निर्माणाधीन साइट के करीब की मज़दूर बस्‍ती में जाना होगा।

मज़दूरों के इस नग्‍न शोषण की दास्‍तान मुख्‍यधारा की कॉरपोरेट मीडिया में देखने को नहीं मिलती। जैसा कि अक्‍सर होता है, इस मामले में भी स्‍थानीय और राष्‍ट्रीय मीडिया ने मज़दूरों की व्‍यथा को नज़रअन्‍दाज़ कर सिर्फ़ मज़दूरों की तोड़ फोड़ की कार्रवाई पर ही ध्‍यान केन्द्रित किया जो उन्‍होंने पुलिस की निर्लज्ज अकर्मण्‍यता से आजिज़ होकर गुस्‍से में की थी। मज़दूरों के अनुसार जब सिक्‍योरिटी गार्ड गोली चला रहे थे तो पुलिस वाले पास में ही थे, परन्‍तु उन्‍होंने कुछ नहीं किया। कोई और रास्‍ता न देखकर जब मज़दूरों ने गुस्‍से में आकर तोड़ फोड़ करनी शुरू की तो एक भारी पुलिस बल और पीएसी की बटालियन वहाँ फौरन पहुँच गयी और गुस्‍साये मज़़दूरों मजदूर बस्ती का एक दृश्य,Mazdoor Basti.-1को काबू में किया और सिक्‍योरिटी गार्डों को बचाकर अपने साथ ले गयी। मज़़दूरों का कहना है कि पुलिस ने बाद में गार्डों को छोड़ दिया क्‍योंकि अगले ही दिन उनमें से कुछ गार्ड साइट के आसपास देखे गये। जबकि मज़दूर बस्‍ती को चारों ओर से घेरकर उसे पुलिस छावनी में तब्‍दील कर दिया गया मानों वहाँ मज़दूर नहीं गुण्‍डे और अपराधी रहते हों।

ज़ाहिर है कि इस पूरी घटना के लिये मज़दूरों को ही जिम्‍मेदार ठहराने के लिये पुलिस मशीनरी की कन्‍स्‍ट्रक्‍शन कम्‍पनी के प्रबन्‍धन के साथ मिलीभगत है। इस प्रकार रियल इस्‍टेट माफिया का आतंक राज पुलिस की मदद से बेरोकटोक जारी है और मज़दूर शोषण और उत्‍पीड़न की चक्‍की में पिसे जा रहे हैं पूँजीवादी विकास की देवी की भेंट चढ़ते जा रहे हैं।

http://hastakshep.com/hindi-news/khoj-khabar/2013/05/01/ground-report-real-estate-mafia-terror-noida#.UYDGKKITInU

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