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Friday, May 24, 2013

हिंदीसमय में इस हफ्ते

मित्रवर,

दो स्त्रियों की आत्मकथाओं का अध्ययन करते हुए गरिमा श्रीवास्तव कहती हैं कि  'आमार जीबन' और 'आत्मचरितमु' ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दो पड़ावों, समाज और स्त्री मन पर पड़े प्रभावों की पड़ताल करने के लिए विशिष्ट पाठ की भूमिका निभा सकते हैं। राससुंदरी ने 1868 में और सत्यवती ने 1934 में अपनी आत्मकथा लिखी। दोनों में लगभग सत्तर वर्ष का अंतराल है। सात दशकों के इस अंतर को भारतीय स्त्री की मनुष्य के रूप में पहचान और अंतर्विरोधों के बावजूद हाशिए की आवाज को केंद्र में ले जाने की पुरजोर कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। गरिमा श्रीवास्तव द्वारा अथ सवर्ण स्त्री प्रति-आख्यान शीर्षक से किया गया यह रोचक तुलनात्मक अध्ययन, हमारी दृष्टि में, हिंदी समय (www.hindisamay.com) की एक खास उपलब्धि है।

 

सियारामशरण गुप्त सिर्फ सुकवि ही नहीं, बल्कि श्रेष्ठ गद्यकार भी थे। उनकी बहुचर्चित कहानी काकी हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। इस बार की दूसरी कथाकार  इला प्रसाद भी हिंदी कहानी का एक जाना-पहचाना नाम हैं। वे प्रवासियों द्वारा लिखी जा रही कहानियों की सामर्थ्य को भी नए सिरे से रेखांकित करती हैं। यहाँ पेश हैं उनकी  दस कहानियाँ - उस स्त्री का नाम, मेज, बैसाखियाँ, समुद्र : एक प्रेमकथा, हीरो, गुड़िया का ब्याह, तूफान की डायरी, खिड़की, सेल और एक अधूरी प्रेमकथा

 

व्यंग्य है बेढब बनारसी का चिकित्सा का चक्कर और कविताएँ हैं प्रखर युवा कवि रविकांत की।   

 

हमने बताया था कि हम अलिफ लैला की कहानियों को नियमित रूप से आपके सामने पेश करते रहेंगे। इस बार की कहानियाँ हैं - किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का, मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत, किस्सा पहले फकीर का, किस्सा दूसरे फकीर का, किस्सा भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष का

 

हम उम्मीद करते हैं कि हमारा यह प्रयास आपको हमेशा की तरह पसंद आएगा।

 

अगले हफ्ते फिर मिलते हैं।

सादर,

राजकिशोर

संपादक

हिंदी समय    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 














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राजकिशोर
53, इंडियन एक्सप्रेस अपार्टमेंट्स
मयूर कुंज
दिल्ली - 110096
फोन : 09650101266

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