Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Sunday, May 12, 2013

बेचारे मोदी का अमरीका में प्रवेश-निषेध

बेचारे मोदी का अमरीका में प्रवेश-निषेध

राम पुनियानी

 अमरीका से आ रही ताज़ा ख़बरों से नरेन्द्र मोदी (जिनके प्रति कुछ यूरोपीय देशों के रुख में नरमी आ रही थी) को काफी निराशा हुयी होगी। अमरीका में एक विशिष्ट लॉबी द्वारा उन्हें वीसा प्रदान किये जाने का दवाब बनाने के बावजूद, 'यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन फॉर इन्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम" (यूएससीआईआरएफ) ने ओबामा प्रशासन से यह माँग की है की सन् 2002 के गुजरात कत्ल-ए-आम,  जिसमें 2000 से अधिक लोग मारे गये थे और 1,50,000 से अधिक अपने घर-बार से बेदखल कर दिये गये थे, में मोदी के भूमिका के चलते, उन्हें वीसा देने पर प्रतिबन्ध जारी रखा जाये।

कमीशन की अध्यक्षा केटरीना लान्तोस स्वेट ने कहा, "गुजरात में हिंसा और वहाँ के भयावह घटनाक्रम से मोदी के जुड़ाव के महत्वपूर्ण प्रमाण उपलब्ध हैं और इसलिये उन्हें वीसा प्रदान किया जाना उचित नहीं होगा"। हाल के वर्षों में, मोदी शायद एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें इस मानवाधिकार संस्था ने इतना अधिक लाँछित किया है। वर्तमान अमरीकी विदेश मन्त्री जॉन केरी ने भी, जब वे सीनेट के सदस्य थे, मोदी के बारे में ऐसे ही विचार प्रगट किये थे। उन्होंने विदेश विभाग को लिखा था कि सन् 2002 के मुसलमानों के कत्ल-ए-आम में मोदी की सम्भावित भूमिका के कारण, उन्हें वीसा नहीं दिया जाना चाहिये। अमरीका का 'अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतन्त्रता अधिनियम, 1998' ऐसे विदेशियों का अमरीका में प्रवेश प्रतिबन्धित करता है जो "धार्मिक स्वातन्त्र्य के सीधे और गम्भीर हनन के लिये जिम्मेदार हैं"।

अमरीकी संस्था का कहना है कि कत्ल-ए-आम से मोदी को जोड़ने वाले कई सुबूत उपलब्ध हैं। इसी आधार पर सन् 2005 से, मोदी उन व्यक्तियों की सूची में है, जिन्हें वीसा नहीं दिया जाना है। मोदी-समर्थकों के लाख सर पटकने के बाद भी गुजरे आठ सालों में इस स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्था की रपट, मुसलमानों के इस सन्देह का भी ज़िक्र करती है कि मोदी ने माया कोडनानी, जो कि अभी जेल में हैं, को बलि का बकरा बना दिया है। आयोग ने धार्मिक स्वतन्त्रता की दृष्टि से, भारत को दूसरी श्रेणी में रखा है। रपट यह भी कहती है कि भारत के विभिन्न राज्यों में "धार्मिक स्वातंत्र्य कानून' बनने के बाद से, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उन्हें डराने-धमकाने की घटनाओं में वृद्धि हुयी है। यद्यपि ये कानून मुख्यतः भाजपा-शासित प्रदेशों में बनाये गये हैं तथापि कुछ अन्य राज्यों ने भी इस प्रकार के असंवैधानिक कदम उठाये हैं।

भारत में पिछले तीन दशकों में साम्प्रदायिकता में वृद्धि हुयी है और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की घटनायें बढ़ी हैं। 1984 में दिल्ली में सिक्खों, डांग, कंधमाल व अन्य आदिवासी इलाकों में ईसाईयों व मेरठ, मलयाना, भागलपुर, मुम्बई, गुजरात व उत्तरप्रदेश के अन्य इलाकों में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा की घटनायें हुयी हैं। हिंसा के अलावा, सामाजिक स्तर पर भी अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की कोशिशें हो रहीं हैं। इसका एक उदाहरण हैं डांग व अन्य कई स्थानों पर आयोजित किये गये शबरी कुम्भजैसे धार्मिक कार्यक्रम, जिनका लक्ष्य, हिन्दुओं व विशेषकर आदिवासियों को अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भड़काना है। मुसलमानों के खिलाफ अनवरत हिंसा ने ऐसे हालात पैदा कर दिये हैं कि मुसलमान स्वयं को दोयम दर्जे का नागरिक महसूस करने लगे हैं। कई राज्यों में धार्मिक स्वातंत्र्य कानून बनाये गये हैं, जो कि अपने नाम के ठीक विपरीत, धार्मिक स्वतन्त्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन करते हैं। ये कानून भारतीय

राम पुनियानी ,Dr. Ram Puniyani,

राम पुनियानी (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

संविधान के मूल्यों के विरुद्ध हैं और वे साम्प्रदायिक ताकतों को, राज्यतन्त्र के साम्प्रदायिकता के रंग में रंग चुके तबके की सहायता से, असहाय धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का अवसर प्रदान करते हैं। इन सब कार्यवाहियों का अन्तिम उद्देश्य है, धार्मिक ध्रुवीकरण के रास्ते देश में धार्मिक राष्ट्रवाद-साम्प्रदायिक फासीवाद का आगाज़ करना।

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के तौर-तरीकों में बदलाव आया है। कम अवधि में बड़े पैमाने पर हिंसा करने की बजाय लम्बे समय तक छिट-पुट हमले करने की प्रवृत्ति पूरे देश में सामने आ रही है। इस तरह की कार्यवाहियाँ मुख्यतः उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में हो रही हैं। इन राज्यों के शहरी इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा का बोलबाला तेजी से बड़ा है और इससे समाज का साम्प्रदायिकीकरण हो रहा है। इस सब से अन्ततः उस साम्प्रदायिक राजनैतिक दल की ताकत बढ़ेगी, जो धार्मिक राष्ट्रवाद के अपने एजेण्डे को लागू करने के लिये आतुर शक्तियों की राजनैतिक शाखा है। मोदी ने एक कुटिल रणनीति के तहत अपने भाषणों में साम्प्रदायिकता के बजाय विकास की बातें करनी शुरू कर दी हैं, हालाँकि मोदी के विकास को छद्म विकास ही कहा जा सकता है। मोदी ने साम्प्रदायिक सोच वाले तबके को पहले ही अपना घनघोर प्रशंसक बना लिया है और अब वे विकास की बात कर अन्य हिन्दुओं को अपने साथ लेना चाहते हैं ताकि चुनाव में उनकी विजय और आसान हो सके। यद्यपि कई कारणों से कानून उन्हें सजा नहीं दे सका है तथापि उनकी सारी कुटिलता के चलते भी उनके खून से रंगे हाथ अभी भी साफ नहीं हो सके हैं।

अमरीकी आयोग की रपट से साम्प्रदायिकता-विरोधी ताकतों को सम्बल मिलेगा। हमारे देश की न्याय प्रणाली और कानून ऐसे हैं कि जहाँ एक ओर साम्प्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा नहीं मिल पा रही है वहीँ दंगों में मासूम मारे जा रहे हैं।साम्प्रदायिक हिंसा में हिस्सा लेने वालों और उसे रोकने के अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करने वालों को सजा देने के लिये कानून बनाये जाने की माँग को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाना चाहिये। हमें आशा करनी चाहिये कि साम्प्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा दिलवाने के लिये हमें अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की मदद नहीं लेनी पड़ेगी।

किसी भी प्रजातन्त्र की सफलता-असफलता का एक महत्वपूर्ण मानक यह है कि उसमें अल्पसंख्यक स्वयं को कितना सुरक्षित अनुभव करते हैं और उनका जीवन कितना गरिमापूर्ण है। इस मानक पर भारत लगातार नीचे, और नीचे खिसकता जा रहा है। यहहमारे प्रजातन्त्र पर बदनुमा दाग है। अब समय आ गया है कि बिना धर्म, जाति और नस्ल के भेदभाव के, हम सभी निर्दोषों की रक्षा के लिये आगे आयें। हमें ऐसा कानून भी बनाना होगा जिसके चलते अमानवीय हिंसा को चुपचाप देखते रहने वालों या उसे बढ़ावा देने वालों को उनके किये का खामियाजा भुगतना पड़े।

इस सिलसिले में यह भी महत्वपूर्ण है कि पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक स्वतन्त्रता को बाधित किया जा रहा है। हाल में पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिक्खों, बांग्लादेश में बौद्धों और हिन्दुओं और श्रीलंका व बर्मा में मुसलमाओं पर अत्याचारों की दुखद खबरें सामने आयीं हैं। दक्षिण एशिया में प्रजातन्त्र की रुग्णता, खेद का विषय है। हम जानते हैं कि दुनिया में राष्ट्रों के समूह एक साथ प्रगति करते हैं। दक्षिण एशिया में जहाँ भारत प्रजातन्त्र का स्तम्भ है, वहीं अन्य राष्ट्र प्रजातन्त्र बनने की ओ़र अलग अलग गति से अग्रसर हैं। वर्तमान में, कहीं सेना के जनरलों की प्रभुता है तो कहीं कट्टरपन्थी ताकतों का राज चल रहा है। यह त्रासद है कि भारत, प्रजातान्त्रिक मूल्यों के सन्दर्भ में, फिसलन भरी राह पर चल पड़ा है। हमें स्वाधीनता आन्दोलन और भारतीय संविधान के मूल्यों को याद रखने की ज़रूरत है।

(हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

No comments:

Post a Comment