आस्था पर भारी कारोबार, बता रहे आस्था के केंद्र चार!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में आस्था के चार बड़े केंद्र हैं हिंदुओं के लिए। जहां दर्शनार्थी हर दिन जनसैलाब बनकर उमड़ते रहते हैं। कालीघाट, दक्षिणेश्वर, तारापीठ और तlरकेश्वर। तारापीठ बीरभूम जिले के रामपुर हाट में हैं, जिसके आसपाल वर्दवान और वीरभूम जिले में कई सती पीठ भी हैं।इसलिए टह आस्थावानों के आकर्षण का बड़ा केंद्र है। तारकेश्वर हुगली जिले में हैं। बाबा भोलेनाथ की शरण में संकट में फंसे मनुष्यों का जमघट लगा रहता है। कालीघाट तो देश विदेश के आस्थावान और यहां तक कि नास्तिकों के लिए भी अवश्य दर्शनीय है। कालीघाट दक्षिण कोलकाता में मुख्मंत्री ममता बनर्जी के घर के पास है। तो दक्षिणेश्वर महानगर के उत्तर में विवेकानंद सेतु और निवेदिता सेतु के पास है। इसपार दक्षिणेश्वर मंदिर है तो दूसरी तर फ बेलुड़मठ। एकमात्र कालीघाट में पंडों का कोई काम नहीं है। बाकी जगह पंडे दर्शनार्थियों को लूटने के लिए कोई हथकंडा आजमाने से बाज नहीं आते। आस्था के चारों केंद्रों में वर्चस्व की लड़ाई भी जारी है। कालीघाट में जहां पूजा के डाला को लेकर विवाद है वहीं, दक्षिणेश्वर में भी रामकृष्ण परमहंस के वंसजों को प्रबंधन की ओर से हाशिये पर डालने को लेकर विवाद है। तारकेश्वर में प्रदूषित पानी देवादिदेव महादेऴ के सिर पर चढ़ाने का मामला बहुत पुराना है। इसी थीम पर विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे ने एक पिल्म गणशत्रु भी बनायी, जहां आस्था के कारोबार को बेनकाब देखा गया है। हालांकि फिल्म तारकेश्वर पर नहीं है। रामपुरहाट में पंडों के अलावा तांत्रिकों और औघड़ बाबाओं का साम्राज्य है, जिनके चंगुल से निकल पाना बहुत मुश्किल है।
कोलकाता हाईकोर्टके प्रधान न्यायाधीश अरुण मिश्र और न्याय़ाधीश जयमाल्य बागची की खंडपीठ ने आस्था पर भारी कारोबार रोकने के लिए कई दिशा निर्देश जारी किये हैं। इनमे से खस यह है किकालीघाट मंदिर में प्रवेश के लिए मंदिर कमिटी की मदद लेना दर्शनार्थियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है है। अब तक पूजा करवाने के अधिकारी पंडों के मार्फत उनकी मांग मुताबिक रकम उनके हवाले करने से गर्भगृह में दर्शन हो जाया करता था। अब पंडों का यह एकाधिकार खंडित हो गया।
इसी गर्भगृह में दर्शन को लेकर कालीगाट में पंडों की भारी मारामारी है। गर्भगृह में दर्शन कराने का झांसा देकर दर्शनार्थी से कितनी ही बड़ी रकम हड़प ली जाती है और कहीं उसकी सुनवाई तक नहीं होती।
गौरतलब है कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कोलकाता के कालीघाट मंदिर में श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के 20 अप्रैल, 2012 के फैसले पर रोक लगाते हुए श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दे दी।कलकत्ता उच्च न्यायलय ने मंदिर को साफ रखने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मंदिर के गर्भगृह में वीवीआईपी सहित सभी श्रद्धालुओं के जाने पर पाबंदी लगा दी थी। मंदिर समिति ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति देने के साथ-साथ मंदिर समिति से भी कहा कि वह मंदिर को साफ-सुथरा रखने के लिए उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करे।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि दक्षिण भारत में श्रद्धालुओं को मंदिरों के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि वहां 'दर्शन' की अवधारणा है। लेकिन देश के उत्तर और पूर्वी हिस्से में 'पूजा' तथा ईश्वर की मूर्ति के चरण छूने की अवधारणा है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में उच्च न्यायालय के इस आदेश को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें मंदिर में दो 'पुजारियों' को ही गर्भगृह में जाने की अनुमति दी गई थी। कालीघाट मंदिर समिति के वकील राणा मुखर्जी ने न्यायालय में कहा कि मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगाए जाने के बाद वहां कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो रही है। यदि उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक नहीं लगाई जाती है तो इससे अपूरणीय क्षति हो सकती है।
खंडपीठ का दूसरा महत्वपूर्ण फैसला यह है कि कालीघाट मंदिर का जीर्णोद्धार व आधुनिकीकरण इंटरनेशनल फाउंडेशन आफ सास्टेनएबिल डेवलपमेंट संस्था के मुताबिक ही होगा यानी इसे मंदिर प्रबंधन अपने मनमर्जी से अंजाम नही दे सकता।
खंडपीठ के निर्देशानुसार केंद्रीय अनुदान में से नगरनिगम के पास अब भी जो ७६ लाख की रकम बची हुई है, उसका अविलंब सदुपयोग करना होगा। मंदिर परिसर में सारे क्लोज सर्किट टीवी को चालू रखने का भी आदेश दिया है खंडपीठ ने।
खंडपीठ के निर्देशानुसार कालीघाट मंदिर परिसर में दर्शनार्थियों के जूते रखने की कोई व्यवस्था नहीं है, यह बंदोबस्त करना होगा। भक्तों को काली प्रतिमा पर फूल या पूजा सामग्री फेंकने से मनाही कर दी गयी है।
खंडपीठ ने मंदिर परिसर में जो भाड़े पर दुकानें चल रही हैं,मंदिर कमिटी को उनके स्थानांतरण के लिए पहल करने का भी निर्देश दिया है। पाला जिनके पास हैं, ऐसे पंडों की ओर से डाला बेचने के धंधे पर हाईकोर्ट ने सख्त ऐतराज जताया है और इसे अविलंब बंद करने का आदेश जारी किया है।
कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ सती के दाएँ पाँव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था यहाँ की शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है।कालीघाट काली मंदिर में देवी काली के प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुण्डों की माला है। उनके हाथ में कुल्हाड़ी तथा कुछ नरमुण्ड है। उनके कमर में भी कुछ नरमुण्ड बंधा हुआ है। उनकी जीभ निकली हुई है। उनके जीभ से रक्त की कुछ बूंदें भी टपक रही है।18 वीं सदी में ही स्थापित हुआ शक्ति उपासना का केंद्र काली घाट। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक दस महाविद्याओं में प्रमुख और शक्ति-प्रभाव की अधिष्ठात्री देवी काली का प्रभाव लाखों कोलकाता वासियों के मन पर है।
दक्षिणेश्वर मंदिर का निर्माण सन 1847 में प्रारम्भ हुआ था। जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार माँ काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। इस भव्य मंदिर में माँ की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई। सन 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है।दक्षिणेश्वर मंदिर देवी माँ काली के लिए ही बनाया गया है। दक्षिणेश्वर माँ काली का मुख्य मंदिर है। भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है।विशेषण आकर्षण यह है कि इस मंदिर के पास पवित्र गंगा नदी जो कि बंगाल में हुगली नदी के नाम से जानी जाती है, बहती है। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं। यह मंदिर हरे-भरे, मैदान पर स्थित है। इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं। प्रसिद्ध विचारक रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के मंदिर में देवी की आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त की थी तथा उन्होंने इसी स्थल पर बैठ कर धर्म-एकता के लिए प्रवचन दिए थे। रामकृष्ण इस मंदिर के पुजारी थे तथा मंदिर में ही रहते थे। उनके कक्ष के द्वार हमेशा दर्शनार्थियों के लिए खुला रहते थे।
कोलकाता की कालीघाट, वीरभूम की तारापीठ, कामरूप की कामख्या, रजरप्पा की छिन्नमस्ता जैसे तमाम सिद्धपीठों को तांत्रिकों की सिद्धभूमि माना जाता है। ये पीठ आम श्रद्धालुओं के आकर्षण केंद्र भी हैं। तंत्र साधना के लिए जानी-मानी जगह है तारापीठ, जहाँ की आराधना पीठ के निकट स्थित श्मशान में हवन किए बगैर पूरी नहीं मानी जाती। कहा जाता है कि यहाँ सती की दाहिनी आंख की पुतली गिरी थी इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा।
कालीघाट में कुछ अघोरपंथियों के प्रति स्थानीय श्रद्धालुओं में श्रद्धा-भक्ति दिखती है। हालांकि, उनकी गतिविधियां ज्योतिष को लेकर ज्यादा दिखती है। साथ ही, 'हीलिंग टच' चिकित्सा की भी ख्याति है। कालीघाट के पास स्थित केवड़तला श्मशान घाट को किसी जमाने में शव साधना का केंद्र माना जाता था। यहाँ 1862 में श्मशान का निर्माण किया गया। उस दौरान कालीघाट में महिला तांत्रिकों की संख्या भी अच्छी-खासी थी। 1960 में माँ योगिनी नामक एक महिला तांत्रिक ने अपनी आध्यात्मिक क्षमताओं से असाध्य रोगों का इलाज करने का दावा किया था। उस महिला तांत्रिक के शिष्यों की संख्या आज भी कालीघाट इलाके में काफी है।

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