Friday, September 26, 2025
लाखों फुटपाथ और लावारिश गरीब बस्तियों के रहवासियों का क्या?
कोलकाता में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। इस देश में नदियों,झीलों,तालाबों को पाटकर जो अंधाधुंध शहरीकरण हुआ है,उसका नतीजा है देहरादून डूबा। अब कोलकाता डूब गया।
बादल फटने की खबर की पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन नतीजा और असर, व्यापकता बादल फटने जैसा रहा है।
,गरीब बस्तियां के
कोलकाता में 27 साल रहा। जनसत्ता का दफ्तर मुंबई रोड पर महानगर से बाहर एक्सप्रेस भवन बनने से पहले राइटर्स बिल्डिंग,लाल बाजार और राजभाव के बीच था इंडियन एक्सप्रेस समूह का दफ्तर।संपादकीय की नौकरी दैनिक अखबार में। हर साल लाल बाजार और धर्मतल्ला में सड़क नदी बन जाती हैं। गटर खुला रहता हैं। पानी में बिजली आ जाती है। ट्रेन,बस,मेट्रो से उतरकर 1991 से रिटायर होने से कुछ समय पहले तक कोलकाता का बरसात में नजारा कमोबेश यही है।
कमर तक गंदे पानी और गटर में से होकर जन हथेली में लेकर दफ्तर पहुंचना होता था।लौटते वक्त जरूर दफ्तर की गाड़ी कोलकाता परिक्रमा करके घर पहुंचा आती है।
घरों में लोग सुरक्षित हैं,उन लाखों लोगों के बारे में सोचिए जो फुटपाथ पर रहते हैं, नदी नाले झील तालाब और रेलवे ट्रैक पर बसी बस्तियों में रहते हैं।
हर साल रात रात भर इस त्रासदी को जिया है। दुर्घटसव के दौरान भी कितनी ही बार।
रिटायर हुआ 2016 में।कोलकाता छोड़ा 2018 में। वाम का शासन देखा।दीदी का राज देखा अब भी दीदी की प्रजा है बेबस जनता। कोलकाता नहीं बदला। जलमग्न तो हर साल होता है। जलसमाधि से पहले कुछ नहीं बदलेगा। बाकी महानगर और दूसरे शहर बदलेंगे?
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