Thursday, September 25, 2025
दस्तावेज क्यों सबसे जरूरी?
#वंचितों,#विस्थापितों को अपने हक हासिल करने हैं तो #कानूनी_आधार मजबूत करना जरूरी है।
कानूनी आधार के लिए #दस्तावेज तैयार करने होंगे।#इतिहास जानना होगा और अपने दावों के पक्ष में #प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे।
समस्या यह है कि वंचित और विस्थापित लिखते पढ़ते नहीं हैं तो दस्तावेज तैयार नहीं कर सकते। उन्हें इतिहास,भूगोल, समाज, राष्ट्र व्यवस्था, राजनीति और राजकाज, अर्थव्यवस्था का जान होता नहीं है। उनका सही #राजनीतिकप्रतिनिधित्व भी नहीं होता। इसलिए वे #बंधुआ_वोटबैंक बनकर सरकारी अनुकम्पा और अनुदान पर निर्भर #परजीवी बन जाते हैं।
जो पढ़े लिखे लोग हैं, उनकी #जन_इतिहास में दिलचस्पी नहीं होती। दस्तावेज तैयार करने की जरूरत भी नहीं महसूस करते। पिछलग्गू बनकर पद, प्रतिष्ठा, नौकरी और सुविधाएं, धन दौलत, ऐशोआराम की आंधी दौड़ में उनकी जिंदगी बीत जाती है।ऐसे तमाम लोग #सत्ता_राजनीति में स्वाहा हो जाते हैं।
विस्थापित,वंचित तबके की मेधा उनके कम में नहीं आती।उनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं होता।
इन्हीं मुद्दों पर सुजय और सजल से चर्चा हुई आज।
आज सुबह दो युवा साथी प्रेरणा अंशु के दफ्तर में हमसे मिलने आए।इन दिनों अक्टूबर अंक की तैयारी में हम व्यस्त है,लेकिन कल शाम को ही किशोर मनी ने फोन कर दिया था कि खानपुर नंबर एक से सुजय और संजयनगर महतोष से सजल जरूरी चर्चा के लिए आने वाले हैं। हम उन्हें ज्यादा वक्त नहीं दे पाए। संवाद जारी रखने की बात जरूर की।
इसका नतीजा हुआ कि वे Rupesh Kumar Singh की बहुचर्चित विस्थापित बंगाली समाज की आपबीती पर लिखी पुस्तक छिन्नमूल का दूसरा संस्करण खरीदकर ले गए। पहला संस्करण वे पढ़ चुके।
उन्होंने गीताजी के हाथों से यह पुस्तक ली।
वे विस्थापन के यथार्थ और पुनर्वास की लड़ाई पर केंद्रित हमारी पुस्तक #पुलिनबाबू भी ऑनलाइन अमेजन से मांगा रहे हैं।दोनों किताबें #amazon पर उपलब्ध है।
फोटो:#आयुषी
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