Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Wednesday, September 10, 2025

गोविंद बल्लभ पंत न होते तो हम मर खप जाते

जन्म दिवस पर भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत को प्रणाम। राष्ट्र निर्माण और स्वतंत्रता सम्मेलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में पूरा देश जनता है।लेकिन भारत विभाजन के बाद करोड़ों विस्थापन पीड़ितों के पुनर्वास के लिए उनकी ऐतिहासिक पहल के बारे में बहुत कम चर्चा हुई है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान के छिन्नमूल परिवारों का सबसे पहले, सबसे बड़े पैमाने पर सुनियोजित पुनर्वास योजना उनकी पहल से बनी और उन्होंने इस योजना को युद्धस्तर पर लागू किया। हमने अपनी पुस्तक पुलिनबाबू: विस्थापन का यथार्थ, पुनर्वास की लड़ाई में विस्थापितों के पुनर्वास के लिए उनकी ऐतिहासिक भूमिका की सिलसिलेवार चर्चा की है। खासकर बंगाल के राजनेताओं की विस्थापित विरोधी नीतियों को देखते हुए उनकी इस भूमिका को उनके जन्मदिन पर विशेष तौर पर याद करना चाहिए। बंगाली विस्थापित समाज की आपबीती पर लिखी Rupesh Kumar Singh की बहुचर्चित किताब छिन्नमूल में हमारे पूर्वजों की आपबीती में गोविंद बल्लभ पंत की ऐतिहासिक भूमिका की चर्चा है। https://www.amazon.in/gp/product/B0FBNLGVZ6/ref=cx_skuctr_share_ls_srb?smid=A2VGZSQZ1XN2DP&tag=ShopReferral_35fa1b5c-08eb-430b-ba58-fd79ba0bc05f&fbclid=IwdGRzaAMuGERjbGNrAy4YPmV4dG4DYWVtAjExAAEe8pFcN6hDUfLEjUowaAF4DGlRuC2FIR8WuPKaA74NK0VUnHIpb7kAi6Xk9Q8_aem_Oy8TzzmRct9xoozPQcfUYw अफसोस कि गोविंद बल्लभ पंत जी की इस भूमिका पर आज कहीं कोई चर्चा नहीं होती। विभाजन के बाद विस्थापन और बेदखली का सिलसिला तेज हुआ है और पुनर्वास की पतंजी की तरह पहल करने वाला कोई नेता नहीं है। पूरी राजनीति विस्थापन और बेदखली को तेज करने लगी है।पुनर्वास की पहल करने वाला कोई नहीं है। देशभर के विस्थापितों के लिए मसीहा थे गोविंद बल्लभ पंत। उन्हें प्रणाम। 1949 में पूर्वी बंगाल के बंगाली विस्थापितों के पुनर्वास के लिए भारत सरकार ने तीन बड़ी परियोजनाएं मंजूर की। एक: नैनीताल, दो: दंडकारण्य और तीन अंडमान। 1949 में ही पतंजी ने हिमालय की तलहटी में नेटल जिले की तराई, जो अब जिला ऊधम सिंह नगर है, में पूर्वी बंगाल और पश्चिम पंजाब के विस्थापितों के पुनर्वास की योजना को लागू कर दिया। बंगाल के सारे राजनेता इसके खिलाफ थे।उनके विरोध के चलते तब मात्र ढाई हजार बंगाली विस्थापित परिवार दिनेशपुर आ बसे।बंगाली नेताओं के असहयोग के कारण ही दंडकारण्य प्रोजेक्ट 1960 और अंडमान प्रोजेक्ट 1962 में शुरू हो सका। यही नहीं, पश्चिम बंगाल सरकार,खासकर 1950 में बने बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ विधानचंद्र राय बंगाली विस्थापितों के पुनर्वास के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने बंगाली विस्थापितों को दार्जिलिंग और असम के चाय बागानों में कूली बनाने का कार्यक्रम लागू करने की कोशिश की।इसके खिलाफ पुलिनबाबू ने सियालदह, राणाघाट और सिलीगुड़ी में जबरदस्त आंदोलन किया।तब जाकर कूली बनाने का कार्यक्रम रद्द हुआ। इसके बाद ही बंगाली विस्थापितों के पुनर्वास का काम शुरू हो सका। बंगाल सरकार और बंगाली राजनेताओं ने विस्थापितों के पुनर्वास के लिए उन्हें बाहर भेजने का विरोध किया, जबकि इतनी बड़ी तादाद में आए विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बंगाल में जमीन न थी।भारत सरकार की तीनों परियोजनाओं के बंगाल में हुए विरोध के कारण सिर्फ दस प्रतिशत बंगाली विस्थापितों का पुनर्वास हो सका। बाकी नब्बे प्रतिशत देश भर में रोजगार और आजीविका के लिए बिखर गए,जिन्हें अब घुसपैठियों बताया जा रहा है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में पचास के दशक में ही नैनीताल के साथ साथ रामपुर, पीलीभीत, बरेली, बिजनौर, मेरठ, लखीमपुर, बहराइच में बड़े पैमाने पर बंगाली विस्थापितों का पुनर्वास का प्रबंध पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने किया। मैंने अपनी किताब पुलिनबाबू: विस्थापन का यथार्थ, पुनर्वास की लड़ाई में पंडित गोविंद बल्लभ पंत और बंगाली राजनेताओं की भूमिका पर सिलसिलेवार लिखा है। आखिर किताब आ ही गई। 💐💐💐💐 Palash Biswas अमेजन से ऑर्डर करिए। क्षेत्र की आपबीती को समझिए। 🙏🙏🙏 Pulinbabu : Visthapan Ka... https://www.amazon.in/dp/9364073428?ref=ppx_pop_mob_ap_share भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ के कृतित्व के बारे में प्रकाशित एक जरूरी आलेख इस पोस्ट के साथ साभार जोड़ रहा हूं: भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी को हृदय से स्मरण। आजाद भारत में उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री होना हमेशा ही खुफियापंथी की ओर इशारा करेगा. क्योंकि यहां की राजनीति हमेशा से ही घाघ रही है. आजादी के वक्त भी यूपी में कई धड़े थे. बनारस के नेता यूपी की राजनीति में छाए हुए थे. ऐसे में पहाड़ों में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत गोविंद बल्लभ पंत (10 सितंबर 1887- 7 मार्च 1961) का पहला मुख्यमंत्री बनना अपने आप में सरप्राइजिंग है. अल्मोड़ा में जन्मे थे. पर महाराष्ट्रियन मूल के थे. मां का नाम गोविंदी था (कुछ लेख माता का नाम श्रीमती लक्ष्मी पुष्पा एवँ कुछ श्रीमती गंगा देवी बताते हैं ) उनके नाम से ही नाम मिला था. पापा सरकारी नौकरी में थे. उनके ट्रांसफर होते रहते थे. तो नाना के पास पले. बचपन में बहुत मोटे थे. कोई खेल नहीं खेलते थे. एक ही जगह बैठे रहते. घर वाले इसी वजह से इनको थपुवा कहते थे. पर पढ़ाई में होशियार थे. एक बार की बात है. छोटे थे उस वक्त. मास्टर ने क्लास में पूछा कि 30 गज के कपड़े को रोज एक मीटर कर के काटा जाए तो यह कितने दिन में कट जाएगा. सबने कहा 30 दिन. पंत ने कहा 29. स्मार्टनेस की बात है. बता दिये. इसमें कौन सा दौड़ना था। बाद में पढ़ाई कर के वकील बने. इनके बारे में फेमस था कि सिर्फ सच्चे केस लेते थे. झूठ बोलने पर केस छोड़ देते. वो दौर ही था मोरलिस्ट लोगों का. बाद में कुली बेगार के खिलाफ लड़े. कुली बेगार कानून में था कि लोकल लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान फ्री में ढोना होता था. पंत इसके विरोधी थे. बढ़िया वकील माने जाते थे. काकोरी कांड में बिस्मिल और खान का केस लड़ा था. वकालत शुरू करने से पहले ही पंत के पहले बेटे और पत्नी गंगादेवी की मौत हो गई थी. वो उदास रहने लगे थे. पूरा वक्त कानून और राजनीति में देने लगे. 1912 में परिवार के दबाव डालने पर उन्होंने दूसरा विवाह किया. लेकिन उनकी यह खुशी भी ज्यादा वक्त तक न रह सकी. दूसरी पत्नी से एक बेटा हुआ. लेकिन कुछ समय बाद ही बीमारी के चलते बेटे की मौत हो गई. 1914 में उनकी दूसरी पत्नी भी स्वर्ग सिधार गईं. फिर 1916 में 30 की उम्र में उनका तीसरा विवाह कलादेवी से हुआ. अल्मोड़ा में एक बार मुकदमे में बहस के दौरान उनकी मजिस्ट्रेट से बहस हो गई. अंग्रेज मजिस्ट्रेट को इंडियन वकील का कानून की व्याख्या करना बर्दाश्त नहीं हुआ. मजिस्ट्रेट ने गुस्से में कहा,” मैं तुम्हें अदालत के अन्दर नहीं घुसने दूंगा”. गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा,” मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा”. 1921 में पंत चुनाव में आये. लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये. तब यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध होता था. फिर बाद में नमक आंदोलन में गिरफ्तार हुए. 1933 में चौकोट के गांधी कहे जाने वाले हर्ष देव बहुगुणा के साथ गिरफ्तार हुए. बाद में कांग्रेस और सुभाष बोस के बीच डिफरेंस आने पर मध्यस्थता भी की. 1942 के भारत छोड़ो में गिरफ्तार हुए. तीन साल अहमदनगर फोर्ट में नेहरू के साथ जेल में रहे. नेहरू ने उनके हेल्थ का हवाला देकर उन्हें जेल से छुड़वाया. इससे पहले 1932 में पंत एक्सिडेंटली नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेलों में रहे. जेलों में रहने के दौरान ही नेहरू से इनकी यारी हो गई. नेहरू इनसे बहुत प्रभावित थे. जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो बहुत सारे लोगों के बीच से पंत का ही नाम नेहरू के दिमाग में आया था. नेहरू का पंत पर भरोसा आखिर तक बना रहा इस बीच 1914 में काशीपुर में ‘प्रेमसभा’ की स्थापना पंत ने करवाई और इन्हीं की कोशिशों से ही ‘उदयराज हिन्दू हाईस्कूल’ की स्थापना हुई. 1916 में पंत जी काशीपुर की ‘नोटीफाइड ऐरिया कमेटी में लिए गए. 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में पंत जी लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे. साइमन कमीशन के आगमन के खिलाफ 29 नवंबर 1927 में लखनऊ में जुलूस व प्रदर्शन करने के दौरान अंग्रेजों के लाठीचार्ज में पंत को चोटें आई, जिससे उनकी गर्दन झुक गई थी. 1937 में पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. मदन मोहन मालवीय के पक्के चेले थे. और यहां नेहरू के प्रयोग को सफल किया. उस वक्त कांग्रेस पर अंग्रेजों के कानून में बनी सरकार में शामिल होने का आरोप लगा था. पर पंत की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में दंगे नहीं हुए. प्रशासन बहुत अच्छा रहा. भविष्य के लिए बेस तैयार हुआ. फिर पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1951 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में वो बरेली म्युनिसिपैलिटी से जीते थे. 1955 में केंद्र सरकार में होम मिनिस्टर बने. 1955 से 1961 तक होम मिनिस्टर रहे. इस दौरान इनकी उपलब्धि रही भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन. उस वक्त कहा जा रहा था कि ये चीज देश को तोड़ देगी. पर इतिहास देखें तो पाएंगे कि इस चीज ने भारत को सबसे ज्यादा जोड़ा. अगर पंत को सबसे अधिक किसी चीज़ के लिए जाना जाता है, तो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही. 1957 में इनको भारत रत्न मिला. गोविंद बल्लभ पंत से जुड़े कुछ किस्से- 1. 1909 में गोविंद बल्लभ पंत को लॉ एक्जाम में यूनिवर्सिटी में टॉप करने पर ‘लम्सडैन’ गोल्ड मेडल मिला था. 2. उत्तराखंड के हलद्वानी में गोविंद वल्लभ पंत नाम के ही एक नाटककार हुए. उनका ‘वरमाला’ नाटक, जो मार्कण्डेय पुराण की एक कथा पर आधारित है, फेमस हुआ करता था. मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के त्याग के आधार पर ‘राजमुकुट’ लिखा. ‘अंगूर की बेटी’ शराब को लेकर लिखी गई है. दोनों के उत्तराखंड के होने और एक ही नाम होने के चलते अक्सर लोग नाटककार गोविंद वल्लभ पंत की रचनाओं को नेता गोविंद वल्लभ पंत की रचनाएं मान लेते हैं. 3. हालांकि, नेता गोविंद वल्लभ पंत भी लिखते थे. जाने-माने इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि उनकी किताब ‘फॉरेस्ट प्रॉब्लम इन कुमाऊं’ से अंग्रेज इतने भयभीत हो गए थे कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बाद में इस किताब को 1980 में फिर प्रकाशित किया गया. गोविंद बल्लभ पंत के डर से ब्रिटिश हुकूमत काशीपुर को गोविंदगढ़ कहती थी. 4. पंत जब वकालत करते थे तो एक दिन वह चैंबर से गिरीताल घूमने चले गए. वहां पाया कि दो लड़के आपस में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहे थे. यह सुन पंत ने युवकों से पूछा कि क्या यहां पर भी देश-समाज को लेकर बहस होती है. इस पर लड़कों ने कहा कि यहां नेतृत्व की जरूरत है. पंत ने उसी समय से राजनीति में आने का मन बना लिया. 5. एक बार पंत ने सरकारी बैठक की. उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था. जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे. पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया. जब उनसे इस बिल पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, ’सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है. ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद पे करना चाहिए. हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है.’ अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है. ऐसे में इसे पास करने से कोई गुनाह नहीं होगा. उस दिन चाय के साथ नाश्ता पंत की बैठक में आया था. कुछ सोचकर पंत ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले, ’चाय का बिल पास हो सकता है लेकिन नाश्ते का नहीं. नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा. नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता. उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं.’ यह सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए. 6. पंत का जन्मदिन 10 सितंबर को मनाया जाता है. पर असली जन्मदिन 30 अगस्त को है. जिस दिन पंत पैदा हुए वो अनंत चतुर्दशी का दिन था. तो वह हर साल अनंत चतुर्दशी को ही जन्मदिन मनाते थे. पर संयोग की बात 1946 में वह अपने जन्मदिन अनंत चतुर्दशी के दिन ही मुख्यमंत्री बने. उस दिन तारीख थी 10 सितंबर. तो इसके बाद उन्होंने हर साल 10 सितंबर को ही अपना जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया. 7. जब साइमन कमीशन के विरोध के दौरान इनको पीटा गया था, तो एक पुलिस अफसर उसमें शामिल था. वो पुलिस अफसर पंत के चीफ मिनिस्टर बनने के बाद उनके अंडर ही काम कर रहा था. इन्होंने उसे मिलने बुलाया. वो डर रहा था, पर पंत ने बहुत ही अच्छे से बात की. 8. कहते हैं कि जब नेहरू ने इंदिरा को कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया तो पंत ने इसका विरोध किया था. पर ये भी कहा जाता है कि पंत ने ही इंदिरा को लाने के लिए नेहरू को उकसाया था. सच क्या है नेहरू जानें. 9. पंत को 14 साल की उम्र में ही हार्ट की बीमारी हो गई. पहला हार्ट अटैक उन्हें 14 साल की उम्र में ही आया था. (लेख द लल्लन टॉप फ़ोटो नवभारत टाइम्स ई खबर)

No comments:

Post a Comment