Monday, October 6, 2025
कोजागरी लक्ष्मी पूजा और मेरी मां
शरद पूर्णिमा को बांग्ला में कोजागिरी पूर्णिमा कहते हैं।
मेरी मां हमारे परिवार में एकमात्र धार्मिक व्यक्ति थीं।
उनकी परिवारिक पृष्ठभूमि शायद यही रही।उनके पिता वसंत कीर्तनिया थे। पूर्वी बंगाल के बरिशाल जिले में कीर्तनिया उपाधि कीर्तन गाने वालों को मिलती थी।
हमारे घर में पिताजी पुलिनबाबू कम्युनिस्ट और नास्तिक थे। चाचाजी डॉ सुधीर विश्वास कम्युनिस्ट तो नहीं थे।घनघोर नास्तिक थे। ताऊजी अनिल विश्वास और चाचाजी दोनों संगीत से जुड़े थे। ताऊजी भी धार्मिक नहीं थे।उनकी आस्था जरूर थी।
ताई जी हरिचांद गुरुचांद परिवार की बेटी थी तो चाचीजी ऊषा जी को साहित्य पढ़ने का शौक था।
इन सबके विपरीत मां बहुत धार्मिक थीं।
चूंकि पूरा परिवार मतुआ आंदोलन से जुड़ा था।इसलिए हमारी दादी शांति देवी भी पूजा पाठ से दूर थीं।
मां साहित्य नहीं पढ़ती थीं। सिर्फ धार्मिक पुस्तकें पढ़ती थीं। पूजा पाठ भी खूब करती थीं।
हमारे घर में वही शरद पूर्णिमा को कोजागिरी लक्ष्मी पूजा हर वर्ष करती थीं।
दादी 1970 में ताई जी 1991 में, चाचा जी 1993 में, चाचीजी 1994 में, 2001 में पिताजी और 2004 में मां, 2006 में ताऊजी का निधन हो गया।
अब घर में मेरी मां की तरह पूजा पाठ में शिवन्या लगी रहती है। कक्षा दो में पढ़ती है।बहुत खूबसूरत मूर्तियां खुद बनाकर पूजा करती हैं।
हम उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं। उसकी आस्था का सम्मान भी करते हैं।जैसे बाकी लोगों की आस्था का हम सम्मान करते हैं।
मां सबके सुख दुख में शामिल रहती थी। उनकी यह सामाजिकता सविता जी में भी है।
घर की एकमात्र बहू गायत्री अब हर वर्ष कोजागिरी लक्ष्मी पूजा करती है।
वह हमारी मां है तो बेटी भी।
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