Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Tuesday, March 20, 2012

क्‍या भारत भी वैश्विक आतंकवाद का एक सफेदपोश गैंग है?

क्‍या भारत भी वैश्विक आतंकवाद का एक सफेदपोश गैंग है?


Home » संघर्ष

क्‍या भारत भी वैश्विक आतंकवाद का एक सफेदपोश गैंग है?

15 MARCH 2012 2 COMMENTS

♦ दिलीप खान


बीते एक दशक से आतंकवाद को लेकर खुफिया एजेंसियों के बीच दुनिया भर में तमाम प्रयोग हो रहे हैं। भारत में इस आधार पर 9/11 के बाद के समय को तीन भागों में बांटकर देखा जा सकता है। पहले भाग में वह दौर है, जब किसी भी बम विस्फोट के बाद पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसमें सब कुछ पाकिस्तानी इशारों पर देश में घटित होता है। पाकिस्तान से आतंकवादी आते हैं, बम फोड़कर चले जाते हैं या फिर पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं। जिन मामलों में कोई सबूत नहीं मिलते, उसमें मीडिया पाकिस्तान की ओर उंगली उठाना शुरू कर देता है और पुलिस और खुफिया महकमों में मीडिया खबरों के आधार पर पाकिस्तान पर दोष मढ़ा जाता है। फिर पुलिस के हवाले से आयी खबर को मीडिया प्रमाणिकता के साथ लोगों के बीच पेश करता है।


मालेगांव मामले में फर्जी गिरफ़्तारी के पांच साल बाद निर्दोष करार दिये गये अभियुक्त

26/11 के बाद यह दौर सुस्त पड़ गया, लेकिन अब भी पाकिस्तान निशाने में नंबर वन है। दूसरा दौर 2008 के आस-पास शुरू होता है और इसमें विदेश से आये आतंकवादी की जगह 'होम ग्रोन टेररिस्ट' ले लेते हैं। इंडियन मुजाहिद्दीन नाम का एक खौफनाक आतंकी संगठन ज्यादातर बम विस्फोट को अंजाम देता है। जयपुर धमाके में पहली बार इस संगठन का नाम आता है। इस संगठन के साथ-साथ ही एक और संगठन अस्तित्व में आता है – हूजी। जयपुर और बेंगलुरू धमाके में इन दोनों के नाम लिये जाते हैं। कभी आईएम तो कभी हूजी। लेकिन बीते 9 (और उससे पहले के 3 यानी सभी) मामलों में हूजी को लेकर एक भी सबूत खुफिया एजेंसियां इकट्ठा नहीं कर पायी है। हूजी के अड्डे को लेकर खुफिया एजेंसी भी अभी तक साफ नहीं है कि इसका मुख्यालय कराची में है या ढाका में, लेकिन ये जरूर स्थापित किया जा रहा है कि आईएम और हूजी देश में आतंकवाद का जखीरा तैयार कर रहा है। बड़े पैमाने पर इन संगठनों के नाम पर देश में गिरफ्तारियां हुईं। मालेगांव से लेकर मक्का मस्जिद तक, हर मामले में मुसलमानों को पकड़ा जाता है। (बाद में 2006 के मालेगांव मामले में 5 साल से ज्यादा जेल काटने के बाद 7 लोगों को रिहा किया जाता है। उधर आंध्र प्रदेश सरकार अपनी गलती सुधारने के लिए चरित्र प्रमाणपत्र जारी कर लोगों को रिहा करती है और हर्जाना भी भरती है।)

इसी दौर में एक नया खुलासा होता है। समझौता एक्सप्रेस में पाकिस्तानी हाथ होने का हल्ला मचाने वाला मीडिया और खुफिया बाद में उससे मुकरते हैं और असीमानंद एंड कंपनी अपना जुर्म कबूल कर जेल जाती है। आंतरिक आतंकवाद का मामला बड़े स्तर पर हमारे बीच उपस्थित होता है। असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा जैसे उदाहरणों के बावजूद आतंकवादी के रूप में मोटे तौर पर मुस्लिमों को ही हमारे बीच पेश किया जाता है। खुफिया एजेंसी आंतरिक आतंकवाद को इस समय विदेशी आतंकवाद से ज्यादा बड़ा खतरा करार दे रहे हैं। ये दोनों दौर एक-दूसरे को ओवरलैप करते हुए चलते हैं लेकिन ट्रेंड में आ रहे अंतर को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है।

लेकिन आतंकवाद के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर दुनिया में बहुचर्चित ओसामा-बिन-लादेन की प्रचारित हत्या के बाद देश में नया प्रचलन देखने को मिल रहा है। अब आंतरिक आतंकवाद, पाकिस्तानी-बांग्लादेशी आतंकवाद के साथ-साथ भारतीय आतंकवाद के नेटवर्क को 'वैश्विक इस्लामी आतंकवाद' के साथ जोड़ने की कोशिश चल रही है। दिल्ली हाई कोर्ट बम विस्फोट में पहले हूजी और फिर आईएम का नाम आया और अब हिजबुल मुजाहिद्दीन का नाम बताया जा रहा है। लेकिन शुरुआती दौर में दो स्कैच जारी करने के बाद इसकी जांच प्रक्रिया में कोई ठोस प्रगति नहीं देखी गयी। स्कैच को लेकर भी एनआईए ने बाद में आपत्ति जाहिर की थी कि वो स्कैच ठीक नहीं हैं और नयी खेप में स्कैच बनाने के लिए मुंबई से टीम बुलायी गयी थी। हमेशा की तरह एनआईए सहित बाकी जांच एजेंसियों ने अब तक कोई ठोस सबूत हासिल नहीं किये हैं, लेकिन अपनी जांच-पड़ताल के समय ही खुफिया विभाग ने ये बारीक इशारा जरूर कर दिया था कि अब देश में आतंकवाद के नेटवर्क को कहां से जोड़ा जाएगा! हाई कोर्ट बम विस्फोट में सबसे ज्यादा एनआईए और मीडिया ने जिस बात पर जोर दिया, वो था विस्फोटक के तौर पर पीईटीएन का इस्तेमाल। पीईटीएन को अलकायदा के ट्रेड-मार्क के तौर पर सुरक्षा विशेषज्ञों और खुफिया सहित पुलिस विभाग ने लोगों के बीच पेश किया। इस घटना के बाद भारत में आतंकवाद को पहली बार अलकायदा से सीधे-सीधे जोड़ा गया और इस तरह दुनिया में जिस आतंक के खिलाफ 'वार ऑन टेरर' छेड़ा गया है, भारत के साथ उसका सिरा जुड़ जाता है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों में अलकायदा का जो भूत नाच रहा है, वो अब भारत पर भी नाचने लगा। इस तरह इन देशों के बीच कुछ साझापन-सा बन गया है। इसके बाद दिल्ली में इजरायली दूतावास के सामने कार में विस्फोट होता है। दिल्ली पुलिस की घोषणा से पहले ही इजरायल ये घोषणा करता है कि इसमें ईरान का हाथ है। रॉयटर्स से ईरान को लेकर खबरें चलने लगती हैं। इसके ठीक एक दिन बाद बैंकॉक में तीन विस्फोट होते हैं। फिर ईरान का हाथ बताया जाता है। इजरायल-ईरान के रिश्तों पर मैं यहां सिर्फ एक वाक्य में चर्चा करूंगा कि नाभिकीय बम के बहाने ईरान पर अमेरिका और इजरायल उसी तरह आक्रमण करने के फिराक में हैं, जिस तरह जैविक हथियार के बहाने इराक पर किया था। दिल्ली पुलिस ये बताती है कि कोई मोटरसाइकिल सवार कार से बम चिपका कर भाग गया। फिर लाडोसराय से एक लाल बाइक पकड़ी जाती है। बाद में पुलिस कहती है कि वो गलत बाइक पकड़ ली थी।

इसके बाद खबर आती है कि सीसीटीवी में किसी भी बाइक सवार को नहीं देखा गया। बाइक फॉर्मूले को पुलिस छोड़ देती है और फिर अचानक काजमी को गिरफ्तार करते समय पुलिस ये तर्क देती है कि काजमी के घर से लावारिस स्कूटी बरामद हुई है। बाइक फॉर्मूले को पुलिस फिर से जीवित करती है, जो सीसीटीवी वाली बात के मुताबिक झूठी है। जिन आरोपों के आधार पर काजमी को पकड़ा गया, उसकी चर्चा इससे पहले वाली रिपोर्ट में की जा चुकी है।

अब सवाल है कि काजमी को गिरफ्तार करने के पीछे क्या हित हो सकते हैं? असल में भारत इस समय सबसे ज्यादा तेल ईरान से खरीद रहा है। जाहिर है ईरान के साथ भारत के आर्थिक हित जुड़े हुए हैं इसलिए इस बम विस्फोट को लेकर इजरायली बयान के बाद गृह मंत्रालय ने ये सफाई दी थी कि उसे ईरान के हाथ होने के सबूत नहीं मिले हैं। राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भारत ईरान के खिलाफ नहीं जा सकता। लेकिन भारत इजरायल से सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है और अमेरिका के साथ अपने संबंध को हमेशा मधुर देखना चाहता है। जाहिर है दूसरे पक्ष को यह बिल्कुल इग्नोर नहीं कर सकता। तो खुफिया स्तर पर 'जांच-पड़ताल' के बाद काजमी को पकड़ा गया।

काजमी को गिरफ्तार कर देश में पहली बार 'ईरानी आतंकवाद' के साथ सीधे संबंध को स्थापित किया जा रहा है। आतंकवाद को लेकर देश में ये सबसे नया ट्रेंड है। एक नये दौर की शुरुआत। ऐसे में राजनीतिक तौर पर भारत ईरान को ये जवाब देने की स्थिति में अब है कि ये तो खुफिया विभाग की कार्रवाई है और पूरा मामला राजनीतिक दबाव से मुक्त है। दूसरा, आतंकवाद और नक्सलवाद के नाम पर अब शहरी और शिक्षित लोगों को गिरफ्तार करने की गति तेज हुई है और काजमी भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इस गिरफ्तारी के बाद अब देश में ये तस्वीर बन गयी कि भारत वैश्विक आतंकवाद के साथ सीधा जुड़ा हुआ है। इस स्थापना के लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी, जो अपनी वैश्विक पहुंच रखते हों और काजमी इसके लिए उपयुक्त थे!

(दिलीप खान। युवा पत्रकार। पटना विश्‍वविद्यालय और महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा से डिग्रियां। फिलहाल राज्‍यसभा टीवी में। उनसे dilipkmedia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)


No comments:

Post a Comment