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Saturday, March 10, 2012

तौबा तेरा जलवा, तौबा तेरा प्‍यार! तेरा इमोशनल अत्‍याचार!!

तौबा तेरा जलवा, तौबा तेरा प्‍यार! तेरा इमोशनल अत्‍याचार!!



नज़रियासिनेमा

तौबा तेरा जलवा, तौबा तेरा प्‍यार! तेरा इमोशनल अत्‍याचार!!

9 MARCH 2012 2 COMMENTS

देवदास वाया पारो और चंद्रमुखी: एक आधुनिक पाठ

♦ कपिल शर्मा

थोड़े दिनों पहले ही मैंने 'एक दीवाना था' फिल्म देखी। फिल्म में एआर रहमान का गाया हुआ एक गीत है, 'कोई ये बता दे कि क्या है मोहब्बत'। इन लाइनों को सुनते ही मैंने मौजूदा दुनियादारी में मोहब्बत को समझने की कोशिश की तो मुझे अपने रूममेट देवदास चौरसिया की प्रेम कहानी याद आ गयी।

वैसे तो मित्रता की सबसे बड़ी शर्त यही है कि मित्र के राज छुपा कर रखे जाएं, लेकिन कई बार जनहित में इन्हें खोलने का रिस्क लेना ही पड़ता है। अरे मजबूरी होती है भाई। वैसे देवदास पेशे से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कामचलाऊ पद पर कार्यरत है। छोटे शहर के मध्यम वर्ग से तालुल्क रखते हैं, इसलिए ख्वाबों का बार्डर लग्जरी कार, बड़े बंगले और बेहतरीन नौकरी पर ही खत्म हो जाता है। ऊपर वाले की दयादृष्टि से एक गर्लफ्रैंड की भी सेटिंग हो गयी है।

कुछ दिनों पहले वीकेंड में दोनों साथ में देवदास फिल्म देखने गये थे। फिल्म के समाप्त होने पर दोनों भावुक होकर खूब उछले, भयंकर रोये। साथ में जीने मरने की कसमें भी खायीं। फिर कुछ दिनों बाद ही हमारे कमरे पर देवदास के नाम से एक खत आया, जो उनकी प्रेमिका का था। चूंकि देवदास उस समय बिस्तर पर बैठकर पराठा खा रहे थे, इसलिए उसने यह खत मुझसे ही पढ़ने को कह दिया। खत का मजमून कुछ इस तरह था।

डियर देवदास,

तुम ये जानकर बहुत खुश होगे कि मेरे अमेरिका वाले दोस्त ने मुझे सिलीकॉन वैली की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मेरे मौजूदा पैकेज से दस गुना ज्यादा में नौकरी दिलवा दी है। इसलिए मैं अपने अमेरिका वाले मित्र के पास जा रही हूं। लेकिन जाने से पहले अपने मन की कुछ बातें तुमसे साझा करना चाहती हूं, जो तुम्हारे साथ बिताये गये पलों के अनुभवों से पैदा हुई है।

आशा है तुम ध्यान दोगे। मैंने देखा है कि देवदास तुम हमारे प्यार की शुरुआत से ही मुझ पर एकाधिकार रखना चाहते थे, लेकिन मेरे भोले देवदास तुम यह नहीं जानते हो कि मौजूदा पूंजीवादी बाजारवादी व्यवस्था एकाधिकार के लिए नहीं है। ये खुले बाजार की प्रतिस्पर्धा चाहती है। यहां प्रेमी और प्रेमिका दोनों क्रेता-विक्रेता होते हैं और हर कोई प्रेम संबधों में अपनी सुविधाओं और मुनाफे के हिसाब से ही जुड़ना चाहता है। इस व्यवस्था में प्रेमी-प्रेमिकाओं को निरंतर अपनी सुविधाओं के अनुसार विकल्पों को चुनने और छोड़ने की छूट होती है और जो ऐसा नहीं करता है, वह व्यक्ति इस व्यवस्था में मटियामेट हो जाता है।

देवदास मैं भारत जैसे विकासशील देश के उस मध्य वर्ग से हूं, जहां बच्चे पैदा होने के साथ ही उच्च वर्ग में शामिल होने के सपने देखने लगते हैं। मेरा सपना भी सदा से इस उच्च वर्ग का हिस्सा बनना रहा है। ऐसे में अमेरिका जाने का विकल्प छोड़ देना तो हद दर्जे की बेवकूफी होगी।

देवदास तुम्हें भी यह रूढ़ीवादी सोच छोड़नी चाहिए कि महिलाएं सिर्फ पुरुषों के एकाधिकार के लिए होती हैं। समाज में बाहर निकलोगे तो पता चलेगा कि महिला सशक्‍तीकरण पूरे जोर पर है। चिकित्सा विज्ञान का विकास इतना हो चुका है कि हम महिलाएं पुरुषों के पंजों से बाहर निकल चुकी हैं। अब हमारे साथ भी यह मजबूरी नहीं है कि जिससे एक बार प्रेम करें, उसके साथ सिर फोड़ते ही रहें। खैर, पुरुष तो कभी भी प्रेम में मजबूर नहीं रहा है।

देवदास तुम तो जानते ही हो कि इस उपभोक्तावादी व्यवस्था के चलते बढ़ती कीमतों में घर, कार और कपड़े खरीदने में कितना संघर्ष करना पड़ता है। महिलाओं की हालत तो और भी बुरी होती है। घर के काम के साथ नौकरी करनी पड़ती है, काम के घंटे बढ़ जाते है, वर्क प्रेशर का ओवर लोड हो जाता है। ऐसे में शादी निभाना और बच्चों को पालना सिर्फ मेरे बस की नहीं है और पति पंरपरागत पुरुषवादी सोच के चलते कभी मेरा हाथ नहीं बटाएंगे। फिर झगड़े और फसाद होंगे। यही कारण है कि शादी में अब मुझे रत्ती भर भी स्थायित्व नजर नहीं आता। खैर तुम भी क्या सोच रहें होगे कि तुम्हें छोड़कर जाने का कारण मैं कहीं न कहीं इस बाजारवादी व्यवस्था को ठहरा रही हूं।

वैसे देवदास ये बाजारवादी व्यवस्था इतनी बुरी भी नहीं है। इसने जाति-पाति, धर्म की दीवारें तोड़ दी है और एक नयी वर्ग व्यवस्था को जन्म दिया है। इसमें रुपये-पैसे में ऊंचा स्टेटस और हैसियत वाला अपने प्रेम संबध बिना रोक टोक के किसी से भी बना सकता है। इन पर तो जाति और धर्म की दुहाई देने वाले कठमुल्ले भी ज्यादा चीख-चिल्ला नहीं पाते हैं और न ही डेथ वांरट जारी कर पाते हैं।

देवदास मेरे अमेरिका जाने के साथ ही मैं भी हाई-फाई क्लास की सदस्य बन जाऊंगी। ऐसे में तुम्हारे जैसे मध्यम वर्ग के व्यक्ति के लिए मेरी जैसी प्रेमिका का स्टेटस मैंटेन रखना संभव नहीं होगा। मुझे लगता है कि हमारी शादी का बजट ही इतना हो सकता है, जिसकी भरपाई तुम पूरी जिंदगी ईएमआई भरकर भी नहीं कर सकते। इसके अलावा हर साल होने वाले वेलेटांइस डे, हग डे, किस डे का खर्चा, नाइट क्लब की रातें, कभी-कभी टकीला, वोदका के साथ धुएं के छल्ले मुझे तुम जैसे पंरपरावादी के बस के तो नहीं लगते। उल्टे मुझी को गलत समझने लगोगे। देवदास हाई क्लास में जाने पर मेरे शॉपिंग करने की मार्केट और चीजों की कीमतें भी हाई-फाई हो जाएंगी। हो सकता है मैं 250 रुपये की एक आइसक्रीम, 100 रुपये की चाय, 156 रुपये की काफी, 2200 रुपये के खाने की थाली खाऊं, तब तुम रेस्टोरेंट की टेबल पर आम आदमी की तरह अपने बजट का हिसाब लगाने लगोगे तो मुझे बहुत गुस्सा आएगा। मैं तुम्हारी शुभचिंतक हूं और ये कभी भी नहीं चाहती हूं कि मेरी वजह से तुम्हें अपनी जिदंगी में कभी भी कमतरी का एहसास हो। खैर अपनी बात यहीं समाप्त करती हूं। उम्मीद है इस बाजारवादी व्यवस्था में तुम एक हाई-फाई स्टेटस पाने के लिए संघर्ष करोगे और विजेता की तरह उभर कर मुझे फिर से पाने की कोशिश करोगे। मैं तुम्हारा हमेशा ही इंतजार करूंगी।

तुम्हारी अपनी
पारो आहूजा


यह पत्र पढ़ते ही देवदास का बुरा हाल हो गया। वह फफक-फफक कर रोने लगा। उसको चुप कराते-कराते मेरे पसीने छूट गये, लेकिन देवदास उदासी के सन्नाटे में ऐसे गया कि तभी निकला जब करीबन एक महीने बाद हमारे घर में डाकिया एक नया खत देवदास के नाम से दे गया। देवदास उस समय छत से लटके पंखे को देखकर शून्‍य में खोया हुआ था। उसने खोये-खोये ही मुझे खत को पढ़ने को कहा।

प्रिय देवदास,

पिछले कुछ दिनों से मैं तुम्हें लगातार उदास देख रही हूं। न कुछ बोलते हो, न ही उत्सुक दिखते हो। हमेशा ही खोये से रहते हो। तुम्हारे मित्रों के जरिये पता चला कि तुम्हारी गर्लफ्रेंड पारो तुम्हें छोड़कर अमेरिका चली गयी है। लेकिन देवदास तुम सदैव से ही मूर्ख प्रवृत्ति के रहे हो। तुम्हारे और पारो के चक्कर के शुरुआती दौर में तुम मुझे पहली नजर में पंसद आ गये थे।

लेकिन तुम ठहरे मौकापरस्त मध्य वर्ग के युवक जो प्रेम में भी चेहरे के साथ कपड़ों की पैकेजिंग, जाति की ब्रांडिग, नौकरी या दहेज के रूप में अतिरिक्त आय देने वाली प्रेमिका चाहते थे। मुझ गरीब, संसाधनहीन, साधारण कपड़ों और पिछड़ी जाति से संपर्क रखने वाली लड़की में ये खूबियां नहीं थीं, लेकिन पारो में थीं। इसलिए तुमने मुझे छोड़ दिया। एक पल को भी मेरे बारे में न सोचा, मैं भी अपनी हार का कारण तुंरत ही जान गयी कि यह बाजारवादी व्यवस्था ही मेरे प्यार की कातिल है। यह व्यवस्था युवाओं को बरगलाती है ऐसे प्रेमी और प्रेमिकाओं को ढूंढने के लिए, जो हर चीज का मोल तय करने वाली इस व्यवस्था में सबके आर्कषण का केंद्र बन सकें और जो ऐसा नहीं कर सकता वह धूल में मिल जाता है। यही कारण है कि आज हर युवक और युवती वास्तविकताओं से परे जाकर अपना एक बाजारवादी अस्तित्व बना रहे है, जिसमें वे ज्यादा से ज्यादा लोगों के आर्कषण का केंद्र बन सकें।

बात यहीं खत्म नहीं होती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्रांडवाद ने मेकअप, कपड़ों, रेस्टोरेंट में हम जैसे दबे-कुचले वर्ग से संबध रखने वाले युवाओं की पहुंच को सपना बना दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी ने भी ऐसा डिजीटल डिवाइड पैदा किया है कि फेसबुक, ऑरकुट तक मुझ जैसी लड़कियां पहुंच ही नहीं पा रही हैं।

वैसे पारो तो मध्य वर्ग से थी, ये मध्य वर्ग के लोग सदैव ही उच्च वर्ग की रहीसी से अपनी तुलना कर कुंठित होते रहते हैं। कभी उनकी कार, कभी मकान तो कभी उनके ऐशो-आराम के लिए। लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं तो भारत के बीपीएल वर्ग से हूं। हमारे लिए रोजाना खाना-नहाना ही बहुत बड़ी बात है। ऐसे में कार, बंगला तो दूर के ढोल हैं, बस तुम ही मिल जाते तो जिंदगी का सफर पूरा कट जाता।

लेकिन एक बात का ध्यान रखना, धोखा खाने के बाद अब तुम पारो को त्रियाचरित्र कह कर बदनाम न करना। गलती उसकी नहीं थी, इस बाजारवादी व्यवस्था ने ही कुछ शहरों को विकास के ऐसे केंद्र के रूप में विकसित कर दिया है, जिधर महत्वाकांक्षी युवाओं का जाना तो लाजिमी है। नहीं तो वे पिछड़े रह जाएंगे और अपनी पूरी जिदंगी ही संसाधनों की कमी और रुपये-पैसे की किल्लत झेलते बिताएंगे। कार, मोटर, बंगले और ऐशो आराम के सपने धरे के धरे रह जाएंगे। लेकिन तुमसे जुदा होने के बाद मिले दर्द से मैं एक बात जान गयी हूं कि प्रेम का अस्तित्व केवल क्रांति में ही है। क्योंकि क्रांति से ही इस समाज में समानता और सबको बराबर मौके दिये जा सकते हैं। इसलिए मैंने इस अन्याय से भरी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए एक लाल झंडे वाले क्रांतिकारी दल की सदस्यता ग्रहण कर ली है।

आओ हम दोनों मिलकर क्रांति करें और अपने जीवन की एक नयी शुरुआत करें। ऐसा करने से तुम्हें जहां सच्चा प्यार मिलेगा, वहीं मुझे इस हीनताभरी जिंदगी से मुक्ति। लेकिन इसके लिए तुम्हें घर से निकलना होगा, हथियार उठाना पड़ेगा, उस शोषण और अन्याय से भरी व्यवस्था के खिलाफ, जिसकी वजह से कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्राप्त नहीं कर पाता है। चलो हम दोनों मिलकर उस पूंजीवादी, बाजारवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंके, जो प्रेम की भी कीमत तय करती है।

तुम्हारा बेसब्री से इंतजार करती
चंद्रमुखी महतो


इस पत्र को सुनने के बाद देवदास ऊर्जा से भर गया। उसने आव देखा न ताव अपना इस्तीफा तैयार किया, बैग पैक किया और निकल पड़ा चंद्रमुखी के पास एक ऐसी क्रांति करने के लिए, जो ऐसी व्यवस्था बनाना चाहती है, जिसमें हर किसी को अपना प्यार पाने का समान हक हो, समान मौके हों और सबके सपने भी पूरे हों। प्रेम की ऐसी शक्‍ति को देख कर मैं भी आश्‍चर्य से भर गया और एक पल को तो लगने लगा कि प्रेम एक ऐसी क्रांति होती है, जो किसी प्रेमिका की जुल्फों से शुरू होती है और सरकारें बदल देती है।

देवदास के कमरा छोड़कर जाने से मुझे काफी अकेलापन महसूस हो रहा था, लेकिन करीबन एक महीने बाद फिर से एक पत्र मेरे कमरे की चौखट पर देवदास के लिए आ गिरा। मैंने पत्र खोलकर पढ़ना शुरू किया।

प्रिय देवदास

तुम आश्‍चर्य में होगे कि पूंजीवाद और बाजारवाद की अन्याय आधारित इस व्यवस्था के खिलाफ उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और झारखड़ के जंगलों में चल रहे संघर्ष में मैं तुम्हें कहां छोड़कर गायब हो गयी हूं। अपना दिल छोटा न करो, लगातार संघर्ष करते रहो, प्रेम व्यक्तिवाद से बहुत ऊपर होता है। मुझे ही देखो, तुमको छोड़ने के बाद मैं लंदन आ गयी हूं। मुझे हमारे क्रांतिकारी दल के उदारवादी राजनीतिक धड़े के सुप्रीमो के इकलौते पुत्र ने विवाह का प्रस्ताव दिया था, जिसे मैंने स्वीकार कर लिया है। वे यहां एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ हैं। पिछले साल जब राजधानी में हमारे दल के उदारवादी धड़े का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था, तो हमारी मुलाकात हुई थी। उस दौरान हम दोनों एक दूसरे से काफी प्रभावित हो गये थे। लेकिन उन्होंने शादी का निर्णय लेने में एक साल लगा दिया। मैंने भी यह सोचकर हामी भर दी है कि यहां लंदन में रह कर भारत के वंचितों की आवाज को एक वैश्विक मंच प्रदान कर सकूंगी और अपना संघर्ष जारी रखूंगी। तुम बिल्कुल भी हताश न होना। अब हमारा लक्ष्य व्यक्तिगत प्रेम से उठकर मानवता से प्रेम का हो गया है और इसकी पूर्ति दबे-कुचलों की लड़ाई लड़ के ही की जा सकती है। खैर अपना ख्याल रखना और संघर्ष जारी रखना।

लाल सलाम के साथ
चंद्रमुखी महतो


ये पत्र पढ़ते ही मेरा खून खौल गया। मुझे देवदास की हालत पर तरस आने लगा। मैंने तुरंत अपनी कलम उठायी और देवदास को खत लिखने बैठ गया।

प्रिय मित्र देवदास

बड़े दुख के साथ तुम्हें सूचित कर रहा हूं कि तुम्हारी नयी प्रेयसी चंद्रमुखी का एक खत तुम्हारे लिए यहां आया है। चंद्रमुखी ने लिखा है कि वह तुम्हें छोड़कर लंदन शादी कर बसने जा रही है। उसको उसकी राजनीतिक पार्टी के सुप्रीमो के लड़के ने शादी का प्रस्ताव दिया है, जिसे चंद्रमुखी ने स्वीकार कर लिया है। दोस्त अभी मौका है, संभल जाओ, सच्चे प्यार की तलाश में क्रांति की घुट्टी को उलट दो। वरना लेने के देने पड़ जाएंगे। लड़की तो हाथ से जाएगी, पुलिस लॉकअप की मेहमानवाजी अलग से मिलेगी। वैसे भी बाजारवाद इस दुनिया की मजबूरी बन गया है और इसने सभी लोगों को मौकापरस्त बना दिया है। अब तुम मौका तलाशने और काम निकालने की इंसानी फितरत को समझ जाओ। दोस्त दुनिया में हर कोई उस मौके की तलाश में है, जिसमें रुपया, पैसा, ऐशो- आराम और फेम मिल सकें। चाहे पूंजीवादी हो, वामपंथी या समाजवादी … सभी आम आदमी को बेवकूफ बना कर रौंद रहे हैं और यही आज का मौकावाद है, जो संसाधनों में कब्जे को लेकर शुरू हुई प्रतिस्पर्धा का नतीजा है। अब तो मुझे लगने लगा है कि सच्चे प्रेम की प्राप्ति के लिए साधुवाद का रास्ता ही उचित है, जिसमें आत्म सुधार और थोड़ी-बहुत नैतिकता के पाठ के जरिये अनियंत्रित महत्‍वाकांक्षाओं और ढेरों विकल्पों की प्रतिस्पर्धा को रोका जा सके। बाकी तो तुम खुद ही समझदार हो। आशा है तुम जल्द ही घर लौटोगे।

तुम्हारा शुभचिंतक
कपिल


मैंने यह पत्र लिखकर देवदास के पते पर भेज दिया, उसके कुछ दिनों बाद मुझे एक और पत्र प्राप्त हुआ, जो देवदास के किसी मित्र ने झारखंड के जंगल से मुझे लिखा था। उस खत के जरिये ही मुझे पता चला कि देवदास को एक महीने पहले ही पुलिस ने नक्सलियों के उस दल के साथ गिरफ्तार किया है, जिन्होंने झारखंड के किसी गांव के चार ग्रामीण आदिवासियों की पुलिस मुखबिर होने के शक पर गला रेत कर हत्या कर दी थी। लेकिन इसके बाद जब देवदास को पता चला था कि मारे गये ग्रामीण आदीवासी बेकसूर थे और मारे जाने के पहले पुलिस उन्हें नक्सली समझ उठा ले गयी थी। उनका खेत खलिहान जला दिया गया था, शायद उनके घर की औरतों की इज्जत भी लूटी गयी थी। तो यह सारी बातें सुनकर देवदास अपना मानसिक संतुलन खो बैठा है और आजकल पुलिस अभिरक्षा में ही झारखंड के किसी अस्पताल के मानसिक रोगी विभाग में इलाज करा रहा है।

(कपिल शर्मा। पेशे से पत्रकार। इंडियन इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ मास कम्‍युनिकेशन से डिप्‍लोमा। उनसे kapilsharmaiimcdelhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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