Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Sunday, November 3, 2013

मन्ना डे के लंबित मेडिकल बिल का भुगतान करेगी कर्नाटक सरकार मरने के बाद कोलकाता न आ सके मन्ना डे,तो उनकी सुधि नहीं ली बंगाल ने

मन्ना डे के लंबित मेडिकल बिल का भुगतान करेगी कर्नाटक सरकार


मरने के बाद कोलकाता न आ सके मन्ना डे,तो उनकी सुधि नहीं ली बंगाल ने

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

मन्ना डे का विख्यात गाना मां के मंदिर में थोड़ी सी बैठने की जगह की प्रार्थना है। मृत्योपरांत परलोक में उनको क्या वह जगह मिली या नहीं ,जानने का कोई उपाय नहीं है।इहलोक में तो कालीपूजा और दीवाली के मौके पर हर कहीं मन्ना डे के गीत बज रहे हैं।बंगाल में मन्ना डे के भक्तों की कमी नहीं है ,जाहिर है।लेकिन हकीकत यह है कि मन्नाडे की बेटी और भतीजों के पारिवारिक विवादों के चलते मन्नाडे बंगाल नहीं आ सके मरने के बाद। बेटी ने तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का अनुरोध भी ठुकरा दिया।हालांकि बेटी ने उनका चिताभस्म बंगाल भेजने की पेशकश की थी,तो नाराज दीदी ने साफ कहा दिया कि जब उनका पार्थिव शरीर का ही दर्शन वंचित है बंगाल तो हम उनकी राख लेकर क्या करेंगे। इसके बाद बंगाल सरकार ने इसकी सुधि नहीं ली कि मन्ना डे के लंबित अस्पताल बिल का क्या हुआ। अब दीदी की सारी पहल को बेमतलब बनाते हुए कर्नाटक सरकार ने दिग्गज पार्श्वगायक मन्ना डे के लंबित मेडिकल बिल का भुगतान करने का निर्णय किया है जिनकी 24 अक्टूबर को यहां एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी। यह बिल 25 लाख रुपये का है।


उनका अंतिम संस्कार बेंगलुरु में ही हुआ।


आधिकारिक विज्ञप्ति में सिद्धरमैया ने कहा कि यह राज्य सरकार की केवल भावना नहीं है बल्कि महान गायक के प्रति सम्मान है जिन्होंने कन्नड़ फिल्मों में भी गाने गाए। मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि राज्य सरकार मन्ना डे के सम्मान में संगीतमय शाम नाद नमन का आयोजन करेगी।

समझा जाता है कि मन्ना डे के परिवार ने मुख्यमंत्री से उस समय बिलों का भुगतान करने में मदद की अपील की थी जब वे 25 अक्टूबर को श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे। परिवार ने इससे पहले आरोप लगाया था कि डे के कुछ रिश्तेदारों ने 30 लाख रुपये की हेराफेरी कर दी।


मृतक के पार्थिव शरीर पर सत्ता पक्ष का पताका फहराना बंगाल में परंपरा सिद्ध है।इसपर किसी की उंगली उठाने की इजाजत नहीं है।शोक संतप्त परिजनों को हाशिये पर रखकर अंत्येष्टि बेदखल हो जाना आम है। दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित मन्ना डे के नाम से लोकप्रिय प्रबोधचंद डे का जन्म एक मई 1919 को कोलकाता में हुआ था। मन्ना डे ने अपनी गायिकी के सफर में कई भारतीय भाषाओं में लगभग 3500 से अधिक गाने गाए।लेकिन मरने के बाद मन्ना डे कोलकाता नहीं आ सके।उनके परिवार ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उनका शव कोलकाता लाकर अंतिम संस्कार करने की अपील ठुकरा दी है। मन्ना का पैतृक घर भी कोलकाता में हैं और उनका जन्म भी इसी शहर में हुआ था।पिछले महीने ही मन्ना डे का 94वां जन्मदिन मनाया गया। इस मौके पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनसे मुलाकात की थी।


गौरतलब है कि मशहूर गायक मन्ना डे की मौत पर जहां संगीत की दुनिया गमगीन हो गई, वहीं पश्चिम बंगाल सरकार पर इस महान कलाकार की मौत पर भी राजनीति करने का आरोप लगा दिया मन्ना डे के परिवार ने। मन्ना डे के परिवार ने ममता सरकार के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि 'मन्ना डे जीते जी जब कभी राजनीति का हिस्सा नहीं थे, तो अब मरने के बाद भी हम उन्हें इसका शिकार नहीं होने देंगे।'


जाहिर है दीदी का मिजाज उखड़ने के लिए यह काफी है। ममता सरकार ने मन्ना डे के पार्थिव शरीर को कोलकाता लाने की गुहार लगाई थी, लेकिन डे के परिवार ने इस बात पर गहरी आपत्ति व्यक्त कर दी। डे के दामाद ज्ञानरंजन देव ने मन्ना डे के पार्थिव देह को कोलकाता भेजने से इन्कार कर दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि डे की अस्थियों को कोलकाता ले जाया जा सकता है। इस पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़े ही तीखे स्वर में कहा कि उन्हें इन अस्थियों की कोई जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री के इस बयान ने डे के परिवार को आहत किया है।यही नहीं देव ने ममता सरकार पर कई आरोप लगाए हैं। देव ने कहा कि पिछले छह महीने से जब मन्ना डे बेंगलूर के एक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती थे और जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे थे, उस वक्त ममता सरकार को छोड़कर दूसरे राज्य सरकार के कई आला अधिकारी उनसे मिलने वहां गए थे, लेकिन ममता बनर्जी ने हाल-चाल जानने की भी जरूरत नहीं समझी थी।


देव ने बताया कि बंगाल पुलिस ने डे के अकाउंट संबधित किसी शिकायत की जानकारी लेने के लिए उन्हें कई बार अस्पताल में फोन भी किए थे, लेकिन जब तक डे के परिवार ने कोर्ट में इस मामले को लेकर अपील नहीं की तब तक पुलिस के फोन आते रहे। लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।

आरोप लग रहा है कि ममता सरकार उनका अंतिम संस्कार कोलकाता में कराके उसे राजनीतिक रंग देना चाहती थी। देव ने कर्नाटक सरकार का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि उन लोगों ने यहां पूरी तैयारियां की थीं। उन्होंने बताया कि जैसे ही मन्ना डे की मौत की खबर बंगाल पहुंची, ममता सरकार के दो आला मंत्री वहां डे के बेटे और बेटी को समझाने पहुंच गए।लेकिन डे की बेटी ने उनका अंतिम संस्कार कोलकाता में करने से साफ इन्कार कर दिया।



"হৃদয়ে লেখো নাম, সে নাম রয়ে যাবে..."

410Like ·  · Share




कोलकाता में सत्यजीत राय से लेकर हाल में ऋतुपर्णो गोष के निधन तक यह सिलसिला अविराम जारी रहा है।लेकिन दिंवंगत किंवदंती  संगीत शिल्पी मन्ना डे की बेटी और दूसरे परिजनों ने आनन फानन अंतिम संस्कार संपन्न करके सत्ता की घुसपैठ असंभव कर दी।बंगलुरू के हब्बल में उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में लीन हो गया।हालांकि मन्ना डे का पार्थिव शरीर बैंगलोर के रवींद्र कला क्षेत्र में सुबह 10 बजे से दोपहर 12 तक दर्शनों के लिए रखा गया था।


94 साल की उम्र में  भारतीय सिनेमा जगत के महान पार्श्व गायक ने बंगलुरू में गुरुवार सुबह 3 बजकर 50 मिनट पर आखिरी सांस ली। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे।नारायण हृदयालय अस्पताल के एक प्रवक्ता के. एस. वासुकी ने बताया कि मन्ना दा को आईसीयू में रखा गया था, गुरुवार तड़के उनकी हालत अचानक बिगड़ गई और चार बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।


संगीत किंवदंती मन्ना डे कोलकाता से बहुत दूर बंगलूर में एककी उपेक्षित जीवन जीते रहे और बंगाल ने उनकी कोज खबर तक नहीं ली।आखिरी साक्षात्कारों में रागाश्रयी गीतों के मसीहा ने ऐसा बार बार कहा।  सरल स्वभाव वाले मन्ना डे किसी कैम्प का हिस्सा नहीं थे। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उस समय रफी, किशोर, मुकेश, हेमंत कुमार जैसे गायक छाए हुए थे और हर गायक की किसी न किसी संगीतकार से अच्छी ट्यूनिंग थी। साथ ही राज कपूर, देव आनंद, दिलीप कुमार जैसे स्टार कलाकार मुकेश, किशोर कुमार और रफी जैसे गायकों से गंवाना चाहते थे, इसलिए भी मन्ना डे को मौके नहीं मिल पाते थे। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे। लेकिन साइड हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। कहा तो ये भी जाता था कि मन्ना डे से दूसरे गायक डरे रहते थे इसलिए वे नहीं चाहते थे कि मन्ना डे को ज्यादा अवसर मिले।


वामपंथियों ने उन्हें कोलकाता में घर के लिए जमीन देने का वादा करके ठेंगा दिखा दिया।


परिवर्तन राज में उनकी लंबी अस्वस्थता में किसी ने कुशल क्षेम तक नहीं पूछा।हालांकि इसी साल एक मई को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में उनके अपूर्व योगदान के लिए बंगाल के विशेष महा संगीत सम्मान पुरस्कार से नवाजा था।


भारतीय सिनेजगत के बहुभाषी गायक मन्ना दा चार महीनों से बीमार चल रहे थे. उनके परिवार में दो बेटियां रमा और सुमिता हैं। डे की बड़ी बेटी रमा को उनकी स्थिति के बारे अवगत करा दिया गया था, वह अपने पिता के निधन के समय उनके साथ अस्पताल में ही थीं।


पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डे की दूसरी बेटी सुमिता अमेरिका में रहती हैं। उनकी पत्नी सुलोचना कुमारन की मौत जनवरी 2012 में कैंसर से हुई थी। मन्ना डे को इसी साल जुलाई महीने में फेफड़ें में संक्रमण की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी सांस की बीमारी का इलाज चल रहा था।



किंवदंती गायिका कोकिलकंठी लता मंगेशकर ने कटु सत्य का खुलासा किया है कि जीवन काल में मन्ना डे को उनका प्राप्य सम्मान नहीं मिला।इसका मरते दम तक उन्हें गहरा मलाल है।


और तो और,आयु के साथ आने वाली बीमारियों से अधिक कष्ट उन्हें इस बात का हुआ हो सकता है कि उनकी बेटी और दामाद ने उनके रिश्तेदार पर आरोप लगाया है कि इलाज के नाम पर उसने बैंक से पैसा निकालकर अपनी पत्नी के नाम कर दिया है। मन्ना डे कोलकाता में कुछ जमीन भर छोड़ गए हैं और कुछ महीने पहले तक मात्र बारह लाख रुपए उनके बैंक में जमा थे।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दार्जिलिंग में मन्ना डे के निधन की खबर मिली।श्रद्धांजलि देने के बाद दीदी ने मान्ना डे की बेटी से दिवंगत शिल्पी का पार्थिव शरीर कोलकाता लाने के लिए आवेदन किया। जिसपर शोक संतप्त बेटी ने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया कि पार्थिव शरीर कोलकाता ले जाना संभव नहीं है।



मन्ना डे ने 1942 में फिल्म तमन्ना से अपने करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में उन्होंने सुरैया के साथ गाना गाया था जो काफी चर्चित रहा। हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम और असमिया भाषा में गीत गाए हैं। उन्होंने शास्त्रीय, रूमानी, कभी हल्के फुल्के, कभी भजन तो कभी पाश्चात्य धुनों वाले गाने भी गाए। इसलिए उन्हें हरफनमौला गायक भी कहा जाता है।


संगीत में उल्लेखनीय योगदान के लिए मन्ना डे को कई अहम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था। साल 2007 में उन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के अवार्ड प्रदान किया गया था। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वो बड़े होकर वकील बने। लेकिन मन्ना डे ने संगीत को ही चुना। कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ मन्ना डे ने केसी डे से शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखीं। कॉलेज में संगीत प्रतियोगिता के दौरान मन्ना डे ने लगातार तीन साल तक ये प्रतियोगिती जीती। आखिर में आयोजकों को ने उन्हें चांदी का तानपुरा देकर कहा कि वो आगे से इसमें हिस्सा नहीं लें।


23 साल की उम्र में मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आए और उनके सहायक बन गए। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। इसके बाद वो सचिन देव बर्मन के सहायक बन गए। इसके बाद वो कई संगीतकारों के सहायक रहे और उन्हें प्रतिभाशाली होने के बावजूद जमकर संघर्ष करना पड़ा।



No comments:

Post a Comment