Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Wednesday, November 13, 2013

एक ममता सबपर भारी,फिर भी नमो की सवारी বৈভব কম, বৈষম্য বেশি পশ্চিমবঙ্গে बंगाल के सिवाय पूरे भारत में कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति,फिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना।भाजपा और संघ परिवार की हिंदुत्व राजनीति को लेकर बंगाल में चुनावी समीकरण बन रहे हैं,लेकिन यह भी सच है कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले इस बार एक ओबीसी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्रित्व का दावेदार बतौर पेश कर रहे हैं। जबकि आर्थिक,सामाजिक सांस्कृतिक हर मामले में विषमता के मामले में धर्म निरपेक्ष,प्रगतिशील बंगाल नंबर वन है।यहां वैभव और ऐश्वर्य कम हैं, लेकिन सामाजिक न्याय भी सिरे से अनुपस्थित है।क्रय शक्ति के मामले में सामाजिक विभाजन में सिर्फ दो वर्ग हैं,जिनके पास है और जिनके पास नहीं है।

एक ममता सबपर भारी,फिर भी नमो की सवारी

বৈভব কম, বৈষম্য বেশি পশ্চিমবঙ্গে



बंगाल के सिवाय पूरे भारत में कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति,फिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना।भाजपा और संघ परिवार की हिंदुत्व राजनीति को लेकर बंगाल में चुनावी समीकरण बन रहे हैं,लेकिन यह भी सच है कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले इस बार एक ओबीसी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्रित्व का दावेदार बतौर पेश कर रहे हैं। जबकि आर्थिक,सामाजिक सांस्कृतिक हर मामले में विषमता के मामले में धर्म निरपेक्ष,प्रगतिशील बंगाल नंबर वन है।यहां वैभव और ऐश्वर्य कम हैं, लेकिन सामाजिक न्याय भी सिरे से अनुपस्थित है।क्रय शक्ति के मामले में सामाजिक विभाजन में सिर्फ दो वर्ग हैं,जिनके पास है और जिनके पास नहीं है।



एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बंगाल में एक अकेली ममता बनर्जी सब पर भारी पड़ रही हैं।सत्ता में आने के बाद हालांकि बतौर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस दिन दूनी रात चौगुणी प्रगति पथ पर है और 35 साल के वाम शासन के अवसान के बाद वाम दल दिशाहीन। कांग्रेस की हालत और खराब है। केंद्र में सत्ता का कोई लाभ कांग्रेस उठाने में नाकाम है,केंद्र के खिलाफ लगातार आक्रामक रुख अख्तियार करके दीदी ने कांग्रेस को सही मायने में साइन बोर्ड में तब्दील कर दिया है। कांग्रेस की साख देशभर में लगातार गिर रही है और सारे आकलन, सारे सर्वेक्षण पूरे देश को नमोमय बना रहे हैं।लेकिन बंगाल को नमोमय कहा नहीं जा सकता। संघ परिवार की उपस्थिति बंगाल में नजर ही नहीं आती।जेस के संबावित राजनीतिक विकल्प भाजपा बंगाल में दीदी की ओर टकटकी बांधे देख रही है,जबकि प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी बार बार दीदी की ताऱीफ करते हुए अघा नहीं रहे हैं। लेकिन बंगाल में वोट बैंक समीकरण में अल्पसंख्यक वोटों की निर्णायक भूमिका के मद्देनजर केंद्र में उपप्रधानमंत्रित्व का दांव लगाकर बंगाल में राजनीतिक बढ़त खोने के मूड में कतई नहीं हैं ममता बनर्जी। दूसरी ओर, अल्पसंख्यक वोट बैंक से बेदखल वाम दलों की सारी सांगठनिक कवायद फेल हो जाने के बाद देश भर में दिवालिया होने के कगार पर खड़ी कांग्रेस का बेड पार्टनर बनने के सिवाय कोई चारा नहीं है।बंगाल की राजनीति इसीलिए साफ तौर पर नमोमय न होकर भी नमो की सवारी में तब्दील है। नमोविरोध ही अल्पसंख्यक वोट बैंक की चाबी है और इस चाबी के कब्जे की लड़ाई है वापसी की तैयारी में वामदलों के साथ साथ सत्ता में सर्वेसर्वा ममता बनर्जी के बीच।


नमो घृणा अभियान पर बंगाल की राजनीति किस कदर निर्भर है, उसका एक नमूना यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ किए जाने की खिल्ली उड़ाते हुए माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा कि सिर्फ एक रत्न ही दूसरे रत्न की पहचान कर सकता है।जवाब में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय ने कहा, ''बुद्धदेव भट्टाचार्य को ममता बनर्जी सरकार द्वारा शुरु की गयी विकास प्रक्रिया से जलन हो रही है। लोगों द्वारा खारिज कर दिए जाने के बाद वह ये बातें कर रहे हैं। इसलिए जो वह कह रहे हैं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।''  रॉय ने कहा, ''हम नहीं जानते कि किसी ने क्या कहा है। हमारी नेता ममता बनर्जी बंगाल के लोगों और राज्य के विकास के लिए लड़ रही हैं। हमें किसी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।''


चुनावी माहौल तपने लगा है और बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही बड़ी पार्टियां चुनाव से पहले करार करने में जुट गई हैं। इसीलिए यूपी और तमिलनाडु में जोड़तोड़ शुरु हो गई है। चुनावी राजनीति के इस खेल में छोटी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने के लिए चुनाव से पहले गठजोड़ करने से बच रही हैं।बीजेपी और कांग्रेस एक-एक साथ पक्का करने के करीब हैं। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी चुनाव से पहले डीएमके के साथ गठजोड़ कर सकती है। गठजोड़ के लिए बीजेपी की डीएमके से बातचीत चल रही है।


दरअसल नरेंद्र मोदी और जयललिता के रिश्ते बेहतर हैं लेकिन एआईएडीएमके चुनाव से पहले करार को राजी नहीं है। वहीं बीजेपी पक्का करार चाहती है इसीलिए डीएमके से दोस्ती की कोशिश में है।

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को भी साथ जोड़ने की कोशिश में है। ममता बनर्जी को भी साथ लाने के लिए बीजेपी कोशिश में जुटी है। गौरतलब है कि बहराइच रैली में नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी की तारीफ की थी।


सूत्रों की मानें तो कांग्रेस भी गठजोड़ की कोशिश में जुटी हुई है। कांग्रेस और बीएसपी में नजदीकियां बढ़ी हैं। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी में करार हो सकता है। दरअसल मायावती को अपने पाले में करने के लिए केंद्र सरकार काफी मेहरबान नजर आ रही है।


दिल्ली में मायावती के शाही बंगले के लिए 3 बंगले आवंटित किए गए हैं। साथ ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में मायावती को सीबीआई पहले ही क्लीन चिट दे चुकी है।


हालांकि बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने चुनाव से पहले किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन की खबरों को खारिज कर दिया है। मायावती ने कहा है कि 2014 का लोकसभा चुनाव बीएसपी अकेले और अपने दम पर लड़ेगी।



बंगाल की मु्ख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अन्य मुख्य मंत्रियों को बताया कि डंडे के जोर पर कीमतें कैसे घटाई जा सकती हैं। सब्जियों खासकर प्याज और आलू की कीमतें कंट्रोल करने के उनके फैसले के बाद वहां इनकी कीमतें लगातार गिरती जा रही हैं।जंगल महल और पहाड़ के मोर्चे फतह करने के बाद दीदी ने आलू जंग बी जीत ली है।नए सचिवालय में पहुंचने में बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी पहली सबसे बड़ी चुनौती यानी आलू की कीमतों पर काबू पाने में सफलता हासिल कर ली है। सोमवार को जब कुछ शीत भंडारगृह मालिकों ने मुख्यमंत्री से पड़ोसी राज्यों में आलू के निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने की गुजारिश की थी। लेकिन उन्होंने सख्त लहजे में उन्हें 15 दिसंबर तक शीत भंडारगृह खाली करने का आदेश जारी कर दिया है।इससे पहले राज्य ने कभी भी शीत भंडारगृह बंद करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की थी। आमतौर पर दिसंबर के आखिरी सप्ताह तक बाजार में नए आलू की आवक हो जाती है और इसके बाद पश्चिम बंगाल के शीत भंडारगृह बंद कर दिए जाते हैं। पश्चिम बंगाल में सालाना 100 लाख टन आलू की पैदावार होती है। इसमें से राज्य में महज 55 लाख टन आलू की ही खपत होती है। बाकी बचे आलू का निर्यात किया जाता है।


दीदी ने बीरभूम से राज्यभर में ग्रामीणों के लिए रोजगार योजना का कार्यान्वयन एक मुस्तकरने का ऐलान करते हुए लोकसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया है। जबकि कांग्रेस और वामदल अभी नमो पहेली सुलधाने में लगे हुए हैं। दीदी के भरोसे भाजपा भी बंगाल को नमोमय करने के लिए अपनी तरफ से कुछ करती नजर नहीं आ रही हैं।


विडंबना यह है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व की दावेदारी पर बंगाल में वोटबैंक ध्रूवीकरण की हर संभव रणनीति बना रहे तमाम राजनीतिक दल नमो कारक पर ही अतिनिर्भर है। नकारात्मक वोट पर ही सबका दांव है। सामाजिक यथार्थ के हिसाब से जैसे कि जयपुर के विवादित साहित्य उत्सव में समाजशास्त्री आशीष नंदी ने कहा है कि बंगाल में अनुसूचित जातियों,जनजातियों का कोई विकास नहीं हुआ,वैसा ही बंगाल का वास्तव है।बंगाल के सिवाय पूरे भारत में कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति,फिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना।भाजपा और संघ परिवार की हिंदुत्व राजनीति को लेकर बंगाल में चुनावी समीकरण बन रहे हैं,लेकिन यह भी सच है कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले इस बार एक ओबीसी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्रित्व का दावेदार बतौर पेश कर रहे हैं। जबकि आर्थिक,सामाजिक सांस्कृतिक हर मामले में विषमता के मामले में धर्म निरपेक्ष,प्रगतिशील बंगाल नंबर वन है।यहां वैभव और ऐश्वर्य कम हैं, लेकिन सामाजिक न्याय भी सिरे से अनुपस्थित है।क्रय शक्ति के मामले में सामाजिक विभाजन में सिर्फ दो वर्ग हैं,जिनके पास है और जिनके पास नहीं है।


इसी बीच खबर है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन 14 नवंबर को इन अटकलों के बीच कोलकाता का दौरा करेंगे कि वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे कि नहीं ।कहा तो यह जा रहा है कि डेविड कैमरन हिलेरी क्लिंटन की तरह बंगाल में वाम शासन के अवसान के बाद दीदी से मुलाकात अश्य करेंगे।हालांकि राज्य सचिवालय के सूत्रों ने बताया कि कैमरन कोलकाता के जोका इलाके में भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) के प्रबंधन छात्रों और पूर्व छात्रों के साथ एक सवाल-जवाब सत्र में शिरकत करेंगे।


अपने छह घंटे के कोलकाता दौरे के दौरान कैमरन यहां आकाशवाणी और एक ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट चैनल को विशेष साक्षात्कार देंगे। कोलंबो रवाना होने से पहले कैमरन भारतीय संग्रहालय का भी दौरा करेंगे और उसके जीर्णोद्धार का काम देखेंगे । वह यहां एक गैर-सरकारी संगठन से भी रूबरू होंगे।


आलू संकट को दीदी ने अपने तरीके से निपटा दिया है।अस्थाई तौर पर बंगाल से बाहर आलू भेजने पर रोक लगाकर हिमघरों को खाली करके उन्होंने आम जनता को भरोसा दिलाया है कि छोटे कारोबारियों, किसानों और बाकी राज्यों को नाराज करके भी वे मंहगाई रोकने के लिए कदम उठा सकतीहैं।बाकी देश में लोकसभा चुनाव में जैसे मंहगाई और मुद्रास्फीति के खास मुद्दा बनने के आसार हैं,वैसा बंगाल में नहीं होने जा रहा है।इस पर तुर्रा यह कि दवाइयों के बाद सब्जियों के लिए भी दीदी ने उचित मूल्यों की दुकान शुरु करने जा रही हैं। जिससे कृषि सहकारी समितियों की हालत मजबूत होनी है। अब गांवों से किसान सीधे कोलकाता आकर सब्जियां बेचेंगे। आलू को लेकर झारखंड-बंगाल,ओड़ीशा -बंगालव में जारी जंग अब समाप्त है। पड़ोसी सरकारों के अनुरोध पर अंतत: बंगाल सरकार ने आलू को दूसरे राज्यों में भेजने पर प्रतिबंध हटा लिया है। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव संजय मित्रा ने प्रतिबंध हटाने के संबंध में मंजूरी दे दी है। हालांकि अभी भी यह शर्त लागू है कि व्यवसायी सरकार से अनुमति लेकर ही आलू प्रदेश से बाहर भेज सकेंगें।दूसरी ोर,शीत भंडारगृहों से आलू का भंडार बाहर आना शुरु होने के साथ पश्चिमबंगाल के खुदरा बाजार में आलू की आपूर्ति सुधरने लगी है।


आलू की बढ़ती कीमत पर काबू पाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ने अभी तक कई कदम उठाएं हैं, जिनमें आलू की प्रत्यक्ष खरीदारी कर उसे 13 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचना, निर्यात पर पाबंदी और जमाखोरी रोकने के लिए शीत भंडारगृह खाली करने की समयसीमा तय करना शामिल है। नतीजतन राज्य सरकार बाजार में आलू की कीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम से घटाकर 15 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक लाने में सफल हो गई है। पश्चिम बंगाल के पड़ोसी राज्यों में आलू की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है।


इसे विडंबना ही कहेंगे कि पश्चिम बंगाल के किसानों ने सितंबर में 1 रुपये प्रति घाटे के साथ 4 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर आलू बेचा था। विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रणव चटर्जी बताते हैं कि अक्टूबर में बाढ़ और भारी बारिश  के कारण आलू के भाव बढऩे लगे। दरअसल भारी बारिश की वजह से अन्य सब्जियों की फसल को काफी नुकसान हुआ था, जिस कारण आलू की खपत में अचानक जबरदस्त तेजी आई।

आलू की खेती किसानों के लिए जोखिम भरी होती है। आलू की पैदावार वाले इलाकों में किसानों की आत्महत्या या तनाव कोई नई बात नहीं है।

इस समस्या की वजह खराब बुनियादी ढांचा और विपणन प्रक्रिया है। 100 लाख टन आलू की उत्पादन क्षमता वाले पश्चिम बंगाल के शीत भंडारगृहों की क्षमता करीब 50 लाख टन ही है।


हालांकि पश्चिमी मेदिनीपुर, वर्धमान और हुगली के कुछ रईस किसान आलू की आवाजाही और शीत भंडारगृह का किराया चुकाने में सक्षम हैं लेकिन बड़ी तादाद में किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर रहना पड़ता है।


कानून व व्यवस्था और खास तौर पर महिला उत्पीड़न के मुद्दे पर वामदलों और कांग्रेस दोनों तरफ से दीदी को घेरने की खूब कोशिश हुई। लेकिन कामदुनि मामले को रफा दफा करके फिर वहां दुबारा गड़बड़ी न हो इस इंतजाम के लिए कामदुनि को विधाननगर पुलिस कमिश्नरेट से नत्थी करके दीदी ने विपक्षी दांव पेंच नाकाम करने का चाक चौबंद इंतजाम कर लिया है।


शारदा फर्जीवाड़े मामले में सत्तादल के मंत्री,सांसद,विधायक,नेता फंसे हुए हैं और मुख्यमंत्री खुलेआम दागियों का बचाव कर रही हैं,लेकिन किसी भी स्तर पर वामदलों या कांग्रेस या भाजपा की तरफ से इसे मुद्दा बनाने का गंभीर प्रयास नहीं हुआ क्योंकि हम्माम में सब के सब नंगे हैं। कुमाल घोष के बाद सृंजय बोस से केंद्रीय एजंसियां पूछताछ कर रही हैं।सुदीप्त और देवयानी सरकारी मेहमान है। पीड़ितों को मुआवजा बांटने का सिलसिला शुरु हो गया है लेकिन रिकवरी के आसार नहीं है और न चिटपंड कारोबार बंद होने के।फिर भी सत्तादल को लिए यह कोई चुनौती है ही नहीं।


उद्योग और कारोबार के मामले में बंगाल की आर्थिक बदहाली और दिनोंदिन बिगड़ते निवेश के माहौल के मद्देनजर दीदी के लिए थोड़ी कठिनाई जरुर है। लेकिन सिंगुर मामले में तुरुप का पत्ता अब भी उनके हाथों में हैं। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी ने राइटर्स में आकर दीदी से मुलाकात की थी। अब ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरुन भी दीदी से नवान्न में मुलाकात करेंगे। दीदी ने निवेशकों को अगर मैनेज कर लिया तो उनका मुकाबला करना बंगाल में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायेगा।


मसलन रतन टाटा के साथ दीदी अगर अदालत से बाहर समझौता कर लेती हैं तो ऐन लोकसभा चुवनाव से पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री के कोलकाता सफर के परिदृश्य में बंगाल में निवेश का माहौल सिरे से बदल जायेगा।


दीदी इस तुरुप के ताश का इस्तेमाल कभी भी कर सकती हैं। इसलिए सिंगुर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के ममले में विपक्ष बेहद नापतौलकर बोल रहा है।


गौर तलब है कि टाटा मोटर्स के वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहजगी ने सिंगुर जमीन विवाद के सिलसिले में हाईकोर्ट के  अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस करने के लिए सिंगुर  में प्रस्तावित नैनो कारकाना की जमीन के अधिग्रहण को निरसत् करने के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई के दौरान साफ साफ शब्दों में कह दिया कि टाटा मोटर्स ने सिंगुर में नैनो कारखाना लगाने का इरादा नहीं छोड़ा है।खास परिस्थितियों में कारखाने का कामकाज बाधित हो जाने के कारण गुजरात के सानंद से नैनोका उत्रपादन जरुर शुरु हुआ,लेकिन कंपनी उत्पादन का दूसरा चरण सिंगुर में ही पूरा करना चाहती है।इसलिए समूह नैनो कारखाने के लिए अधिग्रहित जमीन पर अपना दावा कतई नहीं छोड़ेगी।टाटा मोटर्स के वकीलों ने माना कि फिलहाल विवादित जमीन उनके कब्जे में नहीं है,लेकिन उन्हें न्यायिक प्रक्रिया में पूरा भरोसा है। उन्होंने कहा कि सिंगुर में कारखाना चलाने लायक माहौल बनते ही समूह नये सिरे से पुनर्जीवन का काम शुरु कर देगा और इसके लिए वह नये सिरे से राज्य सरकार को आवेदन करने को भी तैयार है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को वीरभूम जिले के इलामबाजार में आयोजित जनसभा में कहा कि राज्य में भले ही आलू संकट बना हो, लेकिन राज्य सरकार इसकी कीमत को 13 रुपये प्रति किलो पर नियंत्रित करने में सफल रही है। इसके लिए राज्य सरकार ने मुख्य सचिव के नेतृत्व में नयी सब कमेटी का गठन किया है, जो इस ओर ध्यान रख रही है।


ममता बनर्जी  ने कहा कि हमारे राज्य में आलू संकट है। हमारे राज्य ही नहीं, इसने दूसरे राज्यों को भी प्रभावित किया है। बारिश अपेक्षा से अधिक हुई है। झारखंड और ओड़िशा में भी आलू को लेकर कुछ संकट है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में आलू की कीमत 50-60 रुपये तथा प्याज की कीमत 130 रुपये प्रति किलो है। सारे प्रतिकूल हालात के बावजूद हम इस पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकार ने आलू की कीमत 13 रुपये प्रति किलो तय की है। एक रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी ने अनेक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की।      


भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी विशेष सुरक्षा मांगने का कारण बताएं। यह कहना है केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री दीपा दास मुंशी का।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा खाद्य सामग्रियों और सब्जियों को बंगाल से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करते हुए दीपा ने कहा कि इससे क्षेत्रवाद पनपेगा। अभी ममता ने पश्चिम बंगाल में रोक लगाई है कल आंध्र प्रदेश मछली निर्यात पर या फिर दूसरे प्रदेश से वहां पैदा होने वाली वस्तुओं पर रोक लगा सकते हैं। खाद्य सुरक्षा बिल को 87 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचाने वाला बताते हुए दीपा ने कहा कि यह सभी राज्य सरकारों को सोचना होगा कि वह इसे अपने राज्यों में लागू करती हैं या नहीं।


রাজ্যের সব গ্রামে একই দিনে শুরু হবে রাস্তার কাজ

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

গোটা রাজ্যে আগামী এক মাসের মধ্যে গ্রামীণ সড়ক যোজনার কাজ চালু হয়ে যাবে। মঙ্গলবার ইলামবাজারে বীরভূম জেলা প্রশাসনের সঙ্গে বৈঠকে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় এ কথা জানান।

অভিনব উপায়ে এই কাজের সূচনা করার পরিকল্পনা আছে মুখ্যমন্ত্রীর। তিনি জানান, এক মাসের মধ্যে একটি দিন ঠিক করা হবে। সে-দিন রাজ্যের সব জেলার সব গ্রামে একই সময়ে একটি করে রাস্তা তৈরির কাজ শুরু হবে। তিনি নিজেও কোনও একটি রাস্তা তৈরির কাজে হাত লাগিয়ে এই প্রকল্পের উদ্বোধন করবেন। সেটা নিছক ফিতে কাটা নয়। তিনি নিজের হাতে রাস্তার ইট পাততে চান। কোন দিন ওই কাজের সূচনা হবে, তা পরে ঠিক করা হবে বলে জানান মুখ্যমন্ত্রী। পঞ্চায়েতমন্ত্রী সুব্রত মুখোপাধ্যায় এ দিনের বৈঠকে জানান, ওই সব রাস্তাকে গ্রামের কৃষিজমির সঙ্গে যুক্ত করা হবে। গ্রামীণ সড়ক যোজনার এই কাজ ধারাবাহিক ভাবে চালু থাকবে বলে জানান মুখ্যমন্ত্রী।

বৈঠকে হাজির বীরভূম জেলা পরিষদের সভাধিপতি বিকাশ রায়চৌধুরীর সঙ্গে কথা বলছিলেন মমতা। তারই মধ্যে সকলের উদ্দেশে তিনি বলেন, "ঠিকাদারদের স্বার্থ দেখা আমাদের কাজ নয়। আমার সরকার ঠিকাদারের সরকার নয়। জেলা থেকে ব্লক স্তর পর্যন্ত সরকারি যে-কোনও প্রকল্পের কাজ করতে হবে সমন্বয়ের ভিত্তিতে। আমরা সাধারণ মানুষের কাছে দায়বদ্ধ। কোন ঠিকাদার কাজ পেলেন আর কে পেলেন না, তার জন্য কাজ যেন না-আটকায়।"

বিপিএল কার্ড দেওয়ার প্রসঙ্গটিও ওঠে এ দিনের বৈঠকে। দারিদ্রসীমার নীচে থাকা মানুষদের বিপিএল কার্ড দেওয়ার ক্ষেত্রে জন্ম-তারিখের শংসাপত্র বাধ্যতামূলক করা যাবে না বলে সাফ জানিয়ে দেন মুখ্যমন্ত্রী। তাঁর যুক্তি, গ্রামাঞ্চলে এখনও বহু মহিলার বাড়িতেই প্রসব হয়। সব মহিলাকে হাসপাতালে নিয়ে গিয়ে প্রসব করানোর মতো বাস্তব পরিস্থিতি নেই। এই অবস্থায় যত দিন না সেটা নিশ্চিত করা যাচ্ছে, তত দিন বিপিএল কার্ডের ক্ষেত্রে জন্ম-তারিখের শংসাপত্র বাধ্যতামূলক করাটা ঠিক হবে না।

তা হলে বিকল্প কী হবে, তারও সূত্র দিয়েছেন মমতা। তিনি বলেন, "এলাকায় গিয়ে সংশ্লিষ্ট পরিবার সম্পর্কে খোঁজখবর নিন। ওই পরিবার সম্পর্কে পাড়ার লোকেদের সঙ্গে কথা বলুন। পরিবারের লোকেদের ভোটার পরিচয়পত্র আছে কি না, জানতে চান। এবং এ-সবের ভিত্তিতে প্রয়োজনীয় তথ্য সম্পর্কে নিশ্চিত হলে বিপিএল কার্ড দিয়ে দিন।"

বৈঠকে এ প্রসঙ্গেই বিদ্যুৎ-সংযোগ দেওয়ার বিষয়ে কথা হয়। মুখ্যমন্ত্রী জানিয়ে দেন, বিদ্যুৎ-সংযোগের জন্য বিশেষত যে-সব এপিএল (দারিদ্রসীমার উপরে থাকা) পরিবার আবেদন করেছে, তাদের দ্রুত সংযোগ দিতে হবে। এই কাজে অগ্রগতি কেমন হচ্ছে, দু'মাস অন্তর তা 'মনিটর' অর্থাৎ খতিয়ান নেওয়ার নির্দেশও দেন মুখ্যমন্ত্রী।

বীরভূমের সিউড়ি, নলহাটির মতো এলাকায় ১০০ দিনের কাজের অগ্রগতি সন্তোষজনক নয় বলে মন্তব্য করেন মমতা। ওই সব এলাকায় 'বিশেষ শিবির' করে লক্ষ্যমাত্রায় পৌঁছনোর নির্দেশ দেন তিনি।

http://www.anandabazar.com/13raj2.html


বৈভব কম, বৈষম্য বেশি পশ্চিমবঙ্গে


এই সময়: শহরের যে কোনও বড় রাস্তার ধারেই চোখে পড়বে বড় বড় হোর্ডিং৷ তাতে খতিয়ান দেওয়া হয়েছে এ রাজ্যে কৃষি, শিল্প সব ক্ষেত্রেই উত্‍পাদন জাতীয় গড়ের চেয়ে অনেক বেশি৷ শহরের আনাচে কানাচে বিএমডব্লু, মার্সেডিজ, টয়োটা গাড়ির ভিড় দেখলে ভুল হওয়ার নয় রাজ্যবাসীর বৈভবও বেড়েছে৷


ভুল৷ জীবনযাত্রার মানের বিচারে রাজ্যগুলির তালিকায় পশ্চিমবঙ্গের স্থান শেষ থেকে তৃতীয়! শুধু বৈভবের বিচারেই নয়, রাজধানী এবং রাজ্যের অবশিষ্ট অঞ্চলের মানুষের জীবনধারণের ফারাকটাও অন্যদের তুলনায় এ রাজ্যে অনেক অনেক বেশি৷ এই তথ্য উঠে এসেছে ক্রিসিল রিসার্চের সাম্প্রতিক 'থট্ লিডারসিপ' সমীক্ষায়৷


গাড়ি, কম্পিউটার, টেলিভিশন এবং টেলিফোন - এই চারটি ভোগ্যপণ্যকে জীবনধারণের বৈভব্যের সূচক ধরে ক্রিসিল রিসার্চের সমীক্ষায় ১৭টি রাজ্যের মধ্যে শীর্ষে রয়েছে পাঞ্জাব৷ পশ্চিমবঙ্গের স্থান তেরোয়৷


রাজধানী এবং রাজ্যের অবশিষ্ট অঞ্চলের মানুষের জীবনযাত্রার মানের বৈষম্যের বিচারেও পশ্চিমবঙ্গের নীচে রয়েছে মাত্র তিনটি রাজ্য - মধ্যপ্রদেশ, অন্ধ্রপ্রদেশ এবং কর্নাটক৷

অন্ধ্রপ্রদেশ, রাজস্থান, পশ্চিমবঙ্গ, ওডিশা এবং মধ্যপ্রদেশ (এই ক্রমে) - এই পাঁচটি রাজ্যের প্রত্যেকটির অধিবাসীদের সমৃদ্ধি ও বৈষম্য ১৭টি রাজ্যের মধ্যে সবচেয়ে খারাপ৷


বিহার, ঝাড়খণ্ড, ছত্তিশগড় এবং ওডিশায় জীবনযাত্রার বৈভব পশ্চিমবঙ্গের চেয়ে কম হলেও, ওই রাজ্যগুলিতে জীবনযাত্রার মানে বৈষম্যও এ রাজ্যের চেয়ে কম৷


মাথাপিছু আয়ের হিসাবেও পশ্চিমবঙ্গের স্থান নীচের দিকে - নবম৷ মূল্যবৃদ্ধির প্রভাব বাদ দিলে, এ রাজ্যে মাথাপিছু আয়ের পরিমাণ বছরে ৩৪,১৬৬ টাকা৷ সবচেয়ে বেশি মহারাষ্ট্রে, ৬৪,৯৫১ টাকা৷ গুজরাটে মাথাপিছু আয় ৫৭,৫০৮ টাকা৷


পশ্চিমবঙ্গের সবকিছুই কলকাতা কেন্দ্রিক৷ কলকাতার ১০ শতাংশ পরিবারের কাছেই বৈভব্যের চারটি ভোগ্যপণ্যই রয়েছে৷ কিন্ত্ত, বাকি রাজ্যের কেবল ১.৬ শতাংশ পরিবারের কাছে এর সবগুলি রয়েছে৷ এই চারটি ভোগ্যপণ্যের কোনটিই নেই এমন পরিবারের সংখ্যা এ রাজ্যে ২৫ শতাংশ!


'কলকাতায় জীবনযাত্রার মান উন্নত হওয়ার প্রধান কারণ এখানে তথ্যপ্রযুক্তি এবং ক্ষুদ্র শিল্প গড়ে ওঠা৷ এই শহরকেন্দ্রিক উন্নয়নের ফলে রাজ্যের অবশিষ্ট অংশের মানুষ বঞ্চিত রয়ে গিয়েছেন,' সমীক্ষায় মন্তব্য করা হয়েছে৷

http://eisamay.indiatimes.com/business/there-is-much-more-discremination-in-west-bengal/articleshow/25630860.cms


কলকাতার বাজারে সরাসরি সবজি বিক্রি করবেন চাষিরা

এই সময়: আলুর দাম বেঁধে দেওয়া হয়েছে ঠিকই, কিন্ত্ত সব্জি নিয়ে সমস্যা পুরোপুরি মেটেনি৷ এই অবস্থায় সব্জির দাম নিয়ন্ত্রণে আনতে কোমর বেঁধে নামল রাজ্য সরকার৷ চাষিরা যাতে সরাসরি কলকাতায় এসে উত্‍পাদিত সব্জি বিক্রি করতে পারেন, সে জন্য তাঁদের শহরের বাজারে বসার সুযোগ করে দিচ্ছে পুরসভা৷ সব্জি বয়ে আনার জন্য গাড়িও সরবরাহ করবে রাজ্য সরকার৷

পরিকল্পনা অনুযায়ী, বিভিন্ন জেলা থেকে শহরে শাক-সব্জি আনার জন্য মোট ১০০টি মিনিডর গাড়ির ব্যবস্থা করবে রাজ্য হর্টিকালচার বিভাগ৷ তেলের জোগানও দেবে তারা৷ তেল কেনার অর্ধেক খরচ রাজ্য সরকার দেবে৷ বাকিটা চাষিদের দিতে হবে৷ প্রাথমিক ভাবে ঠিক হয়েছে, সব্জি বিক্রির জন্য কলকাতা পুরসভার অধীন মোট ১৮টি বাজারে আলাদা স্টল করে দেবে পুরসভা৷ যার নাম দেওয়া হয়েছে 'রিজনাল প্রাইস শপ'৷ যে সব বাজারে এই শপ খোলা হবে তার মধ্যে রয়েছে উল্টোডাঙা মিউনিসিপ্যাল মার্কেট, গুরুদাস মার্কেট, মানিকতলা-কাঁকুড়গাছি মার্কেট, কলেজ স্ট্রিট মার্কেট, চার্লস অ্যালেন মার্কেট, গোবরা, পার্ক সার্কাস মার্কেট, গড়িয়াহাট মার্কেট, লেক রোড মার্কেট, ল্যান্সডাউন মার্কেট, বাঁশদ্রোনি মার্কেট, কালীতলা-বাঁশদ্রোনি মার্কেট, রামলাল বাজার, যাদবগড় মার্কেট, নিউ আলিপুর মার্কেট, সন্তোষপুর ভিআইপি মার্কেট, সখেরবাজার সুপার মার্কেট এবং এস এন রায় রোড মার্কেট৷ উত্তর ও দক্ষিণ ২৪ পরগনা জেলা থেকে চাষিদের তুলে এনে কলকাতা শহরে বাজারে সব্জি বিক্রির পরিকল্পনা নেওয়া হয়েছে৷ রাজ্য হর্টিকালচার বিভাগ এবং কলকাতা পুরসভা যৌথ উদ্যোগে এই কাজ করবে৷ এর রূপরেখা তৈরি করতে মঙ্গলবার দুই জেলার হর্টিকালচার বিভাগের অফিসারদের সঙ্গে বৈঠকে বসেন পুরসভার মেয়র পারিষদ (বাজার) তারক সিং৷ বৈঠক শেষে তারকবাবু জানান, দু'-তিনদিনের মধ্যেই চাষিরা সরাসরি পুর বাজারে এসে সবজি বিক্রি করতে পারবেন৷ এর ফলে সব্জির দাম অনেকটাই নিয়ন্ত্রণে আসবে৷ যদিও চাষিদের শহরে এনে সব্জি বিক্রি করানোর পরিকল্পনা কতটা বাস্তব সম্মত, তা নিয়ে প্রশ্ন উঠতে শুরু করেছে৷ যারা সবজি চাষ করেন তাদের মাঠে অথবা সবজি ক্ষেতে অনেকটা সময় দিতে হয়৷ ক্ষেতের কাজ সামলে কয়েক ঘণ্টার পথ পেরিয়ে শহরে এসে সব্জি বিক্রি করা যে কোনও চাষির পক্ষে কঠিন হয়ে দাঁড়াবে বলে মনে করছেন অনেকে৷ সব্জির দাম নির্ধারণ নিয়েও ধোঁয়াশা রয়েছে৷ সব্জির দাম ঠিক করার জন্য 'প্রাইসিং কমিটি' গঠনের কথা বলা হলেও ব্যবসায়ীরা তাদের সিদ্ধান্ত অক্ষরে অক্ষরে মানবে, তার কোনও নিশ্চয়তা নেই৷ প্রাইসিং কমিটি কবে গঠিত হবে, তার সদস্যই বা কারা হবেন, সে ব্যাপারে এখনও পর্যন্ত কোনও সিদ্ধান্তই হয়নি৷ ফলে সব্জির দাম বেঁধে দেওয়া আকাশকুসুম কল্পনা ছাড়া আর কিছুই নয়৷ এ ব্যাপারে তারকবাবু জানান, চাষিরা কী দামে সবজি বিক্রি করছেন, তার উপর প্রথম কয়েক দিন নজর রাখা হবে৷ তাদের সঙ্গে ব্যবসায়ীদের সব্জির দাম মিলিয়ে দেখা হবে৷ সেই মতো সব্জির দাম নাগালে আনতে পরবর্তী পদক্ষেপ ঠিক করা হবে৷

তবে তারকবাবুর দৃঢ় বিশ্বাস, চাষিরা শহরে এসে সরাসরি সব্জি বিক্রি করলে দাম কমতে বাধ্য৷ আলুর, পেঁয়াজের মতো শাক-সব্জিও হাতবদলের ফলে দাম অনেকটা চড়ে যায়৷ ফলে চাষিদের লাভের গুড় পিঁপড়েই খেয়ে চলে যায়৷ এক্ষেত্রে লাভের পুরো টাকাটাই চাষিদের হাতে যাবে৷ তার ফলে শাক-সব্জির দাম আপনা থেকেই কমে যাবে৷

http://eisamay.indiatimes.com/city/kolkata/market-price-rate-of-kolkata/articleshow/25654498.cms

নায্য মূল্যের সবজি দোকানওষুধের পর এবার ন্যায্য মূল্যের সবজি দোকান৷ সরকারি হাসপাতালে ইতিমধ্যেই চালু হয়েছে ন্যায্য মূল্যের ওষুধের দোকান৷ মাদার ডেয়ারিকে চাঙ্গা করতে নেওয়া হয়েছে দুধের বুথ থেকে কাঁচা সবজি বিক্রির উদ্যোগ৷ এবার ফেয়ার প্রাইস শপ খোলার সিদ্ধান্ত কলকাতা পুরসভার বাজারগুলিতে৷

আগামী বৃহস্পতিবার থেকেই কলকাতা পুরসভার ১৮টি বাজারে শুরু হচ্ছে ফেয়ার প্রাইস শপ৷ লক্ষ্য, ফড়ে ছাড়াই সরাসরি চাষির কাছ থেকে সব্জি ক্রেতার হাতে পৌঁছে দেওয়া। তাতে দরেও সস্তা হবে এবং চাষিরাও কিছুটা লাভের মুখ দেখবেন বলে মনে করছেন সরকারি কর্তারা। মঙ্গলবার রাজ্য সরকারের উদ্যান পালন দফতর ও কলকাতা পুরসভার বৈঠকে এই সিদ্ধান্ত হয়েছে। সব্জির অগ্নিমূল্যের কথা ভেবেই সরকার-অনুমোদিত চাষি সমবায়কে শহরে সরাসরি সব্জি বিক্রি করার কাজে যুক্ত করার এই উদ্যোগ।

উদ্যানপালন বিভাগের আধিকারিকরা জানিয়েছেন, সরকারের কাছ থেকে পাওয়া গাড়িতে করে খেত থেকে সবজি আনা হবে বাজারে৷ পুরসভার মেয়র পারিষদ (বাজার) তারক সিংহ বলেন, "উত্তর কলকাতায় ৬টি এবং দক্ষিণ কলকাতার ১২টি বাজারে পুরসভা জায়গা দেবে। সেখানেই চাষিরা সব্জি বিক্রি করবেন।" উদ্যান পালন দফতরের দাবি, বাজারের অন্য ব্যবসায়ীদের চেয়ে ওই দোকানগুলিতে কেজি প্রতি অন্তত তিন থেকে পাঁচ টাকা কমে সব্জি পাবেন ক্রেতারা।

পুরসভার ১৮টি বাজারে দোকানগুলি চালাবে এফপিও বা ফার্মার প্রডিউসার অর্গানাইজেশন৷ সরকারি নিয়ন্ত্রণে থেকে দোকানের দেখভাল করবে কলকাতা পুরসভা৷

পুর আধিকারিকরা জানিয়েছে, এই প্রকল্প সফল হলে সবজির ফেয়ার প্রাইস শপ চালু হবে অন্যান্য বাজারেও৷

উদ্যান পালন দফতর সূত্রের খবর, সরকারের উদ্যোগে রাজ্যের সাতটি জেলায় আগ্রহী চাষিদের নিয়ে সব্জি উৎপাদক সংগঠন (ভেজিটেবল প্রোডিউসার অর্গানাইজেশন) গড়া হয়েছে। প্রতিটি জেলায় ১০-১৫ জন চাষিকে নিয়ে এমন এক একটি সংগঠন হয়েছে। দক্ষিণ ২৪ পরগনার ভাঙড়-২ নম্বর ব্লকে ১৭৫০ জন চাষি যুক্ত হয়েছেন। উত্তরে বারাসত-২, হাবড়া-২ ও আমডাঙায় ওই কাজে নেমেছেন ১২৫০ জন চাষি। এই সংগঠনের সঙ্গে যুক্ত চাষিদের উদ্যান পালন দফতর প্রশিক্ষণ দিয়েছে। এমনকী চাষের কাজে ভতুর্কিও দেওয়া হয়েছে। তাঁরাই নিজেদের জমিতে সব্জির চাষ করেন। সেই সব্জি বিভিন্ন স্থানে বিক্রি করতে গাড়ি কেনার জন্যও ভর্তুকি দিয়েছে সরকার। সেই গাড়িতেই সব্জি নিয়ে বাজারে সরবরাহ করেন চাষিরা। এমনকী, সব্জি সতেজ রাখতে শীতাতপনিয়ন্ত্রিত গাড়িও দেওয়া হয়েছে চাষিদের।

কী কী সব্জি মিলবে পুর-বাজারে?

উদ্যান পালন দফতর সূত্রের খবর, ফুলকপি, বাঁধাকপি, পালং, উচ্ছে, বেগুন, শিম, ঢ্যাঁড়স-সহ আলু ও পেঁয়াজও বিক্রি করবেন চাষিরা। দফতরের আধিকারিকদের দাবি, চাষিদের থেকে সরাসরি সব্জি বাজারে এলেই অন্য ব্যবসায়ীরাও কিছুটা দাম কমাতে বাধ্য হবেন। কিন্তু কম দরে বিক্রি করলে বাজারের অন্য ব্যবসায়ীরা তাঁদের বাধা দেবেন না তো?

এমন ঘটনা যে হয়নি তা নয়, জানালেন পুরসভারই এক কর্তা। তাঁর কথায়, "সম্প্রতি শ্যামবাজারে ওই চাষিরা একটা দোকান খুলেছিলেন। দু'দিন পরেই ওই বাজারের কয়েক জন ব্যবসায়ী তাঁদের ভয় দেখিয়ে তুলে দেন।" যদিও এ বার কেউ তা করলে পুর-প্রশাসন প্রয়োজনীয় ব্যবস্থা নেবে বলে তারকবাবু জানিয়েছেন।

http://www.abpananda.newsbullet.in/kolkata/59/43497


বৃহস্পতিবার কলকাতায় আসছেন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী ডেভিড ক্যামেরন,বৈঠক করতে পারেন মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে

বৃহস্পতিবার ঝটিকা সফরে কলকাতায় আসছেন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী ডেভিড ক্যামেরন। ওই দিন কলকাতায় একাধিক অনুষ্ঠানে যোগ দেবেন তিনি। রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সঙ্গেও বৈঠক করতে পারেন তিনি। বৃহস্পতিবার বেলা আড়াইটেয় দিল্লি হয়ে কলকাতা বিমানবন্দরে পৌঁছবেন ব্রিটেনের প্রধানমন্ত্রী। তাঁকে স্বাগত জানাবেন মুখ্যসচিব সঞ্জয় মিত্র।


কলকাতায় আসার আগেই রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে দেখা করার ইচ্ছে প্রকাশ করেছেন ক্যামেরন। মঙ্গলবার মুখ্যমন্ত্রীর সচিবালয় সূত্রে জানা গেছে,  ঠাসা কর্মসূচির মধ্যেও সময় বের করে ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে কথা বলতে চান। কখন,কোথায় এই সাক্ষাত্‍ হবে, তা নিয়ে কথা চলছে বিদেশমন্ত্রকের সঙ্গে। সম্ভবত বিকেল সাড়ে পাঁচটা নাগাদ দেখা হতে পারে দুজনের।


তবে প্রোটোকল অনুযায়ী কোনও দেশের প্রধানমন্ত্রীর পক্ষে রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রীর দফতরে গিয়ে দেখা করা সম্ভব নয়। বৃহস্পতিবার বেলা তিনটে কুড়ি মিনিটে আকাশবাণী ভবনে যাবেন ডেভিড ক্যামেরন। সেখান থেকে সোয়া চারটে নাগাদ যোগ দেবেন আইআইএম জোকার অনুষ্ঠানে। সন্ধে ৬টায় ভারতীয় জাদুঘরের অনুষ্ঠানে যোগ দেবেন তিনি। সাতটা দশ মিনিট নাগাদ স্বেচ্ছাসেবী সংস্থার অনুষ্ঠানে যোগ দেওয়ার পর  ওই দিনই রাত ৮.২৫ মিনিট নাগাদ বিমানে কলকাতা ছাড়বেন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী।

সারদাকাণ্ডে ফের জেরা করা হচ্ছে তৃণমূল সাংসদ সৃঞ্জয় বসু, ইস্টবেঙ্গল কর্তা দেবব্রতকেসারদা চিটফান্ড কাণ্ডে তদন্তের স্বার্থে সৃঞ্জয় বসু, ও দেবব্রত সরকারের সঙ্গে কথা বলছে এসএফআইও। আজই তৃণমূল সাংসদ সৃঞ্জয় বসু ও ইস্টবেঙ্গল কর্তা দেবব্রত সরকারকে ডেকে পাঠানো হয়। সেইমত সকাল দশটাতেই দিল্লিতে এসএফআইও দফতরে পৌঁছে যান সৃঞ্জয় বসু। সারদা চিটফান্ড কাণ্ডে তদন্তের স্বার্থে এই নিয়ে দ্বিতীয় বার ডাকা হল তৃণমূল সাংসদ সৃঞ্জয় বসুকে।


মূলত প্রতারণা, বেআইনি লেনদেন সংক্রান্ত বিষয়গুলির তদন্ত করে এসএফআইও। সৃঞ্জয় বসুর সঙ্গে সারদা কর্তা সুদীপ্ত সেনের একটি চুক্তি হয়। একটি সংস্থা তৈরি করে এই চুক্তি করা হয়। সেই বিষয়ে জেরা করতেই মূলত আজ ডাকা হয়েছে সৃঞ্জয় বসুকে। এছাড়াও সম্প্রতি সারদার হাতে থাকা একটি পত্রিকার মালিকানা বদল হয়েছে। সেই মালিকানা বদলে সৃঞ্জয় বসু ও দেবব্রত সরকারের ভূমিকাও খতিয়ে দেখছে এসএফআইও।


বিধানসভার ৭৫ বছর পূর্তি অনুষ্ঠানে প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রীকে বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যকে ডাকতে দ্বিধা অধ্যক্ষ বিমানেরবিধানসভার পঁচাত্তর বছর পূর্তি উত্‍সব। আসছেন রাষ্ট্রপতি, লোকসভার অধ্যক্ষ। আগামি চার থেকে ছয়ই ডিসেম্বর পর্যন্ত বিধানসভায় চলবে এই অনুষ্ঠান। তবে গোল বেঁধেছে অন্যত্র। সংসদীয় রীতি অনুযায়ী প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী ও প্রাক্তন অধ্যক্ষকে আমন্ত্রণ জানানোর প্রস্তাব দেন বামেরা। মঙ্গলবার বিধানসভার বৈঠকেও ওঠে এই প্রসঙ্গ। কিন্তু আমন্ত্রণ কি পাচ্ছেন বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য। মন্তব্যে নারাজ অধ্যক্ষ বিমান বন্দ্যোপাধ্যায়।


কিন্তু কী কারণে এই দ্বিধা? প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যর সঙ্গে একমঞ্চে বসতে কী আপত্তি মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের? সেকারণেই কী দ্বিধায় অধ্যক্ষ? অধ্যক্ষের যুক্তি অবশ্য ভিন্ন। ফলে এখন সকলেই তাকিয়ে রয়েছেন অধ্যক্ষের সিদ্ধান্তের দিকে।

http://zeenews.india.com/bengali/kolkatta/controversey-on-west-bengal-assembley-program_17799.html


আইনি টানাপোড়েনের মুখে জমি ফেরতের প্রক্রিয়া বিশ বাও জলে, এখনও প্রকল্প গড়ার বিষয়ে আগ্রহী বলে সুপ্রিম কোর্টে জানাল টাটা

ফের আইনি টানাপোড়েনের মুখে সিঙ্গুর। ফলে অনিচ্ছুক জমি দাতাদের জমি ফেরতের প্রক্রিয়াও বিশ বাও জলে। একাধিক মহল থেকে জমি ফেরতের বিষয়টি নিয়ে সংশয় প্রকাশ করা হলেও রাজ্য সরকার বারবারই জমি ফেরত দেওয়া সম্ভব বলে দাবি করেছে। কিন্তু সুপ্রিম কোর্টে টাটাদের আজকের বক্তব্য সেই প্রক্রিয়াকেই আরও আনিশ্চিত করে তুলল।  


রাজ্যে পালাবদলের পর ক্ষমতায় এসেই মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় প্রতিশ্রুতি দিয়েছিলেন সিঙ্গুরে অনিচ্ছুক কৃষকদের জমি ফিরিয়ে দেওয়া হবে। কিন্তু জমি ফেরত পাওয়া নিয়ে আজ পর্যন্ত এতটুকুও আশার আলো দেখেননি তারা। উপরন্তু মঙ্গলবার সুপ্রিম কোর্টে টাটাদের বক্তব্য এই প্রক্রিয়াকে আরও জটিলতার মধ্যে ঠেলে দিয়েছে বলেই মনে করছেন পর্যবেক্ষকরা।

তবে টাটাদের এই বক্তব্য সময় কেনার চেষ্টা বলেই কটাক্ষ করেছেন তৃণমূলের আইনজীবী সাংসদ কল্যাণ বন্দ্যোপাধ্যায়। কল্যাণ বন্দ্যোপাধ্যায়ের এই বক্তব্যকে খারিজ করেছেন টাটাদের আইনজীবী সিদ্ধার্থ মিত্র। টাটা কর্তৃপক্ষের সঙ্গে সরকারের এই আইনি লড়াইয়ে জমি ফেরত পাওয়া নিয়ে সংশয় আরও বাড়ল।  


সিঙ্গুরে জমি ছাড়তে নারাজ টাটারা। সিঙ্গুরে এখনও কারখানা গড়তে আগ্রহী টাটা গোষ্ঠী৷ আজ সুপ্রিম কোর্টে এমন কথাই জানালেন টাটার আইনজীবী হরিশ সালভে৷ ওই জমিতে প্রকল্প গড়ার পরিকল্পনা রয়েছে টাটাদের। শীর্ষ আদালতে জানানো হয়েছে, ন্যানো কারখানার প্রথম পর্বের কাজ হয়েছে গুজরাটে। পরের পর্যায়ে আরও পরিকল্পনা রয়েছে। সিঙ্গুরকে ঘিরে আরও পরিকল্পনা আছে বলে জানিয়েছে টাটারা। সিঙ্গুর মামলার পরবর্তী শুনানির দিন ধার্য হয়েছে ২০১৪ সালের এপ্রিলে।


এদিন সুপ্রিম কোর্টের বিচারপতি টাটার আইনজীবীর কাছে জানতে চান, তিনি কি সংস্থার আধিকারিকদের সঙ্গে ভবিষ্যতে সিঙ্গুরেও প্রকল্প গড়ার বিষয়ে কথা বলেছেন? হরিশ সালভে তখন জানান, টাটার শীর্ষ আধিকারিকদের সঙ্গে কথা বলেই, তিনি এই মতামত জানিয়েছেন৷

http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/tata-still-hopefull-to-make-plant-in-singur-says-on-supreme-court_17792.html


কুণালের পর সোমেন, জল্পনা চিদম্বরমের সঙ্গে বৈঠক নিয়ে

নয়াদিল্লি: কুণাল ঘোষের পর এবার তৃণমূলের আর এক প্রবীণ সাংসদ সোমেন মিত্র কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরমের সঙ্গে দীর্ঘ বৈঠক করলেন৷ মঙ্গলবার দিল্লিতে সংসদ ভবনে চিদম্বরম-সোমেন বৈঠক ঘিরে ফের জল্পনা শুরু হয়েছে৷ রাজনৈতিক মহলের খবর, তৃণমূলের সাসপেন্ড হওয়া সাংসদ কুণালবাবুর মতোই তৃণমূলের এই সাংসদও চিদম্বরমের হাতে সারদা-কেলেঙ্কারি সংক্রান্ত বহু গুরুত্বপূর্ণ তথ্য তুলে দিয়েছেন৷ কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রীকে তিনি বলেছেন, 'সারদা-সহ বিভিন্ন অর্থলগ্নি সংস্থার কেলেঙ্কারি নিয়ে সিবিআই তদন্ত হওয়া একান্ত প্রয়োজন৷' বৈঠক থেকে বেরিয়ে তিনি সাংবাদিকদের বলেন, 'এটা অনেক বড় ব্যাপার৷ অনেকগুলি রাজ্যের হাজার হাজার মানুষ এগুলির দ্বারা প্রতারিত হয়েছেন৷ তাই সিবিআইকে দিয়ে তদন্ত করা দরকার৷' চিদম্বরমের সঙ্গে বৈঠককে তিনি অবশ্য সৌজন্যমূলক সাক্ষাত্কার বলে দাবি করেছেন৷ প্রদেশ কংগ্রেস অবশ্য অনেক আগেই এই কেলেঙ্কারির সিবিআই তদন্ত দাবি করেছে৷ দলের রাজ্য নেতা আব্দুল মান্নানের তরফে দুই আইনজীবী এই দাবিতে সুপ্রিম কোর্টে মামলাও করেছেন৷ সেই মামলা এখনও বিচারাধীন৷



সোমেনবাবু এখন তৃণমূল ছাড়ার অপেক্ষায়৷ লোকসভা ভোটের দিনক্ষণ ঘোষণা হলেই তিনি দল ছাড়ার কথা আনুষ্ঠানিক ভাবে জানাবেন বলে তাঁর ঘনিষ্ঠ মহল সূত্রে জানা গিয়েছে৷ ইদানীং তাঁকে কংগ্রেসের অনেক নেতার সঙ্গেই দেখা যাচ্ছে৷ এদিন সংসদ ভবন থেকে বেরিয়ে আসার সময় সোমেনবাবুর সঙ্গে দেখা হয় প্রদেশ কংগ্রেস সভাপতি এবং রাজ্যসভার সদস্য প্রদীপ ভট্টাচার্যের সঙ্গে৷


অল্প কয়েক দিনের ব্যবধানে তৃণমূলের দুই বিদ্রোহী সাংসদের কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রীর সঙ্গে বৈঠক করা রাজনৈতিক দিক থেকে যথেষ্ট তাত্পর্যপূর্ণ বিষয়৷ বছর দেড়েক আগেই সোমেনবাবু বিভিন্ন অর্থলগ্নি সংস্থার কাজকর্ম নিয়ে বিস্তারিত তদন্ত চেয়ে চিঠি লিখেছিলেন প্রধানমন্ত্রী মনমোহন সিংকে৷ এ ছাড়া কেন্দ্রীয় কোম্পানি বিষয়ক মন্ত্রকেও তিনি চিঠি দেন৷ একটি সূত্র থেকে জানা গিয়েছে, সারদা-কাণ্ডে যে রাজ্যের শাসক দলের অনেক রথী-মহারথী জড়িত আছেন, সে কথাই সোমেনবাবু কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রীকে জানিয়েছেন৷ সোমেনবাবু নিজে সারদা গোষ্ঠীর একটি অনুষ্ঠানে হাজির ছিলেন৷ তা নিয়েও নানা প্রশ্ন উঠেছে৷ তিনি স্বীকার করেন, জনপ্রতিনিধি হিসেবে তাঁকে অনেক জায়গাতেই যেতে হয়৷ তাঁর লোকসভা কেন্দ্রের অধীনে বিষ্ণুপুরে সারদার একটি অনুষ্ঠানে উপস্থিত ছিলেন৷ এ ব্যাপারে তাঁর বক্তব্য, 'সিবিআই তদন্ত হোক, তাহলেই বোঝা যাবে, আমার সঙ্গে সারদার কী ধরনের যোগাযোগ ছিল৷'

http://eisamay.indiatimes.com/city/kolkata/somen-after-kunal-ghosh-meeting-with-chidambaram/articleshow/25681054.cms?


লক্ষ্য নজরদারি, কামদুনি বিধাননগর কমিশনারেটে

সুগত বন্দ্যোপাধ্যায়



কামদুনির উপর নজরদারি বাড়াতে এবার বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের পরিধি বাড়ানো হচ্ছে৷ এ জন্য রাজারহাট থানাকেও বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের আওতায় আনা হবে৷ মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশে রাজ্য পুলিশ এ ব্যাপারে প্রয়োজনীয় কাজকর্ম শুরু করে দিয়েছে৷


ভেড়ির সৌজন্যে শাসন, অর্থাত্‍ বারাসাত ২ নম্বর ব্লক দীর্ঘ দিন ধরে সমাজবিরোধীদের স্বর্গরাজ্য৷ বাম আমলে মজিদ মাস্টার এই এলাকা নিয়ন্ত্রণ করায় তত্‍কালীন রাজ্য সরকার পুলিশি নজরদারি বাড়ানোর প্রয়োজন মনে করেনি৷ রাজনৈতিক পরিবর্তনের পর মজিদ মাস্টাররা এলাকাছাড়া হলেও, আলোয় ফেরেনি শাসন৷ একসময়ে আমনুদ্দিন, শফিকুল ইসলামরা তৃণমূলের পতাকা নিয়ে মজিদের দেখানো পথে এলাকা শাসন করতেন৷ কামদুনি-কাণ্ডের পর মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় মজিদ মাস্টারের দেখানো সে পথ মুছে দিতে তত্‍পর৷ ইতিমধ্যেই একদা মজিদের প্রধান প্রতিপক্ষ আমনুদ্দিন, শফিকুলদের দল থেকে বিতাড়িত করা হয়েছে৷ শফিকুল এখন বোমাবাজি, তোলাবাজির অভিযোগে জেলে৷


শাসনে রাজনীতিকে অপরাধমুক্ত করতে ইতিমধ্যেই বারাসাত থানাকে চার টুকরো করা হয়েছে৷ তৈরি হয়েছে শাসন, দত্তপুকুর, মধ্যমগ্রাম ও বারাসাত থানা৷ উদ্দেশ্য, নজরদারিতে আরও বেশি সংখ্যক পুলিশের ব্যবহার৷ বিতর্কিত কামদুনির স্থান হয়েছে শাসন থানা এলাকায়৷ কয়ালপাড়া, মণ্ডলপাড়া, ঘোষপাড়া, নস্করপাড়া জুড়েই রয়েছে কামদুনির বসতি৷ পুলিশের মতে, ভৌগোলিক ভাবে ভেড়ির প্রধান দু'টি মৌজা নিয়ে কামদুনির অবস্থান৷


রাজ্য পুলিশ সূত্রে জানা গিয়েছে, কামদুনিকে বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের অধীনে এলাকায় পুলিশি নজরদারি বাড়ানো হবে৷ কিন্ত্ত কোন পথে? বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের অধীনে নিউটাউন থানা থাকলেও, রাজারহাট থানা নেই৷ এই থানাটির লাগোয়া কামদুনি৷ তাই আপাতত স্থির হয়েছে প্রথমে কামদুনি এলাকাটি শাসন থানা থেকে কেটে রাজারহাট থানার সঙ্গে যুক্ত করা হবে৷ পরে রাজারহাট থানাকে বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের অধীনে আনলেই কামদুনিও সহজে চলে আসবে আওতায়৷ গোটা শাসন থানাকেই বিধাননগর পুলিশ কমিশনারেটের অধীনে আনার প্রস্তাবও রয়েছে৷ মুখ্যমন্ত্রীই এ ব্যাপারে চূড়ান্ত সিদ্ধান্ত নেবেন৷

http://eisamay.indiatimes.com/city/kolkata/kamduni-is-coming-under-bidhan-nagae-commisionerate/articleshow/25682369.cms?


১১ জনের মৃত্যুর পর রেডব্যাঙ্ক চা-বাগান পরিদর্শনে তিন মন্ত্রী

সঞ্জয় চক্রবর্তী


রেডব্যাঙ্ক (ডুয়ার্স): অনাহারে মৃত্যুর কথা স্বীকার করলেন না বটে, ডুয়ার্সের রেডব্যাঙ্ক চা-বাগান থেকে কিন্ত্ত শ্রমিকদের মুখে অর্ধাহারের যন্ত্রণা শুনে ফিরলেন রাজ্যের তিন মন্ত্রী৷ দু' মাসে ওই চা-বাগানে ১১ জনের মৃত্যুতে ঢেকলাপাড়ার পরিণাম মনে করিয়ে দেওয়ায় পরিস্থিতি সামাল দিতেই যে তাঁরা অবশ্য স্বীকার করেননি তিনজনের কেউই৷ পুজোর আগে একই মালিকের তিনটি চা-বাগান রেডব্যাঙ্ক, সুরেন্দ্রনগর ও ধরণীপুর বন্ধ হয়ে যাওয়ায় শ্রমিকদের জীবন অনিশ্চিত হয়ে পড়েছে৷


কর্মহীন হয়ে পড়েছেন তিন চা-বাগানের প্রায় সাড়ে ৬ হাজার বাসিন্দা৷ পুজোর মরসুম বলে তেমন হইচই না-হলেও একের পর এক মৃত্যুর খবর মহাকরণে পৌঁছনোয় উদ্বিগ্ন হয়ে পড়ে রাজ্য প্রশাসন৷ উত্‍সবের আমেজ কাটতে সোমবার এই বাগানে এসে পৌঁছন খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক, শ্রমমন্ত্রী পুর্ণেন্দু বসু ও উত্তরবঙ্গ উন্নয়নমন্ত্রী গৌতম দেব৷ শ্রমিকদের বকেয়া, বিদ্যুত্‍ বিল না-মিটিয়েই মালিকপক্ষ চা-বাগান তিনটি ছেড়ে চলে গিয়েছে৷ ফলে উপার্জনের পাশাপাশি বিদ্যুত্‍ এবং পানীয় জলের সরবরাহ বন্ধ হয়ে গিয়েছে৷ নদীর জল খেতে হচ্ছে শ্রমিক পরিবারগুলিকে৷


রোজগার না-থাকায় অর্ধাহারে দিন কাটছে তাঁদের৷ শ্রমমন্ত্রী বলেন, 'খুব শিগগির বাগান খোলার ব্যবস্থা না-করলে মালিকের বিরুদ্ধে আইনি পদক্ষেপ করা হবে৷' পাঁচশো নতুন রেশন কার্ড দেওয়া ছাড়াও কেরোসিন তেলের বরাদ্দ বাড়ানোর কথা ঘোষণা করেন খাদ্যমন্ত্রী৷ মন্ত্রীরা আসার আগেই গত শনিবার থেকে ওই চা-বাগানে একশো দিনের কাজ দেওয়া হচ্ছে শ্রমিকদের৷ যদিও মুন্না ওরাঁও বলেন, 'আজই তো প্রথম কাজ পেলাম৷ তবে হাতে হাতে টাকা না-পেলে লাভ কী?'


মন্ত্রীদের সামনেই চা-বাগানের হাসপাতালে ভর্তি করানো হল ইলেকট্রিক ফিটার গোপাল সরকারকে৷ তিনি তিন মাস ধরে শয্যাশায়ী৷ পায়ে ঘা হয়েছে৷ চিকিত্‍সক পরীক্ষা করে গোপালবাবুকে বানারহাট হাসপাতালে নিয়ে যাওয়ার নির্দেশ দেন৷ কিন্ত্ত অ্যাম্বুল্যান্সের ভাড়া জোগাড় করতে না-পেরে মন্ত্রীরা আছেন জেনে ছুটে গিয়েছিলেন তাঁর ছেলে সিদ্ধার্থ৷ যদিও শ্রমমন্ত্রীকে সমস্যার কথা জানাতে গিয়ে পাত্তা পেলেন না৷ 'আপনার কথা পরে শুনব' বলে পূর্ণেন্দুবাবু গাড়িতে চড়ে মালবাজারের দিকে রওনা হলেন৷


পরে চা বাগানের বড়বাবু দেবব্রত পাল বলেন, 'মন্ত্রীরা যে প্রতিশ্রুতি দিলেন, তা রক্ষা করতে পারলে ভালো৷ না-হলে আমাদের কী হবে, জানি না৷' মহিলা শ্রমিক শান্তি খেস বলেন, 'কেরোসিন তেলের বরাদ্দ বাড়ানো, নয়া রেশন কার্ড না-হয় হল৷ কিন্ত্ত বাগান কবে খুলবে, তা তো মন্ত্রীরা বললেন না৷' উত্তরবঙ্গ উন্নয়ন মন্ত্রী অবশ্য দাবি করেন, 'রাজ্য সরকার এই চা বাগানের সমস্যা মেটাতে আন্তরিক৷ না-হলে তিন জন মন্ত্রী এখানে ছুটে আসতেন না৷ ধাপে ধাপে সমস্ত ব্যবস্থাই নেওয়া হবে৷'

http://eisamay.indiatimes.com/state/3-ministers-in-red-bank-tea-garden-after-11-people-died-there/articleshow/25628428.cms

নরেন্দ্র দামোদর মোদীর হাত মমতা ধরবেন না কিছুতেই

সুমন চট্টোপাধ্যায়


দায়িত্ব নিয়ে একটি ভবিষ্যদ্বাণী করে ফেলা যাক৷ ২০১৪-র লোকসভা ভোটের আগে বা পরে নরেন্দ্র মোদীর নেতৃত্বাধীন এনডিএ জোটের সঙ্গে আর যে আঞ্চলিক দলেরই সমঝোতা হোক না কেন, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের হবে না৷ কিছুতেই নয়৷


স্রেফ একটাই কারণে৷ বুদ্ধিমান নেড়া দ্বিতীয় বার বেলতলায় যায় না৷ মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ও যাবেন না৷ মোদীর নেতৃত্বাধীন (যদি হয়) কেন্দ্রীয় সরকারের উপ-প্রধানমন্ত্রী হওয়ার চেয়েও তাঁর কাছে ২০১৬ সালের বিধানসভা ভোটে রাজ্য শাসন নিজের হাতে রেখে দেওয়া অনেক বেশি জরুরি৷ ক্ষমতার রাজনীতির এই অতি-সাধারণ জ্ঞানটুকু আমাদের মুখ্যমন্ত্রীর নেই এ কথা মনে করার কোনও কারণই নেই৷


হিন্দুপ্রধান দেশ হলেও এই ভারতবর্ষে বেশির ভাগ রাজনৈতিক দলের কাছেই সংখ্যাগুরুর সাম্প্রদায়িকতা এখনও প্রায় একটি অচ্ছুত বিষয়৷ '৯৮-'৯৯ সালে বিজেপি-কে কেন্দ্র করে বিবিধ কংগ্রেস-বিরোধী দলের যে কোয়ালিশন গড়ে উঠেছিল তার সর্বপ্রধান কারণ ছিল অটলবিহারি বাজপেয়ীর নরমপন্থী ভাবমূর্তি, অভিজ্ঞতা ও সার্বিক গ্রহণযোগ্যতা৷ তিনি নিজে লখনউয়ের মতো (যেখানে মুসলিম ভোটারদের সংখ্যা মোটেই অবজ্ঞা করার মতো নয়) লোকসভা কেন্দ্র থেকে প্রতিদ্বন্দ্বিতা করতেন, রাষ্ট্রীয় স্বয়ংসেবক সঙ্ঘের মাতব্বরির কাছে সর্বদা মাথা নত করতেন না, এমনকি রাম জন্মভূমি আন্দোলনেও তাঁর যোগদান ছিল অনেকটাই চাঁদ সদাগরের মনসা পুজোর মতো৷ বাজপেয়ী আরএসএস-এর সদস্য ছিলেন কিন্ত্ত উগ্র হিন্দুত্ববাদী ছিলেন না, একমাত্র হিন্দুয়ানাকে পাথেয় করেও কোনও দিন সেভাবে রাজনীতি করেননি৷


এহেন বাজপেয়ীর পরে নরেন্দ্র দামোদর মোদীর আর্বিভাবের মানে একটাই৷ একে মা মনসা, তায় ধুনোর গন্ধ৷ গোটা দেশ জুড়ে এমন কংগ্রেস-বিরোধী ঝোড়ো হাওয়ার মধ্যে মোদীকে নিঃসঙ্গ দেখাচ্ছে সেই কারণেই৷ মহারাষ্ট্রে শিবসেনা এবং পঞ্জাবে অকালিরা (দু'দলই ধর্ম-ভিত্তিক রাজনীতি করে) ছাড়া প্রকাশ্যে এখনও পর্যন্ত তৃতীয় কোনও দল তাঁর ডাকে প্রকাশ্যে সাড়াই দেয়নি৷ যে জয়ললিতার সঙ্গে মোদীর সুসম্পর্ক, তিনিও এখনও পর্যন্ত বিজেপির বিতর্কিত প্রার্থীকে সমর্থনের প্রশ্নে রা কাড়েননি৷ এনডিএ-র দুই প্রাক্তন বিশ্বস্ত সহযোগীর মধ্যে বিহারে নীতীশ কুমার মোদীর জন্যই দীর্ঘ দিনের জোট অবলীলায় ভেঙেছেন এবং ওডিশায় নবীন পট্টনায়কও পরিষ্কার জানিয়ে দিয়েছেন 'মোদি ইজ নট অ্যাকসেপ্টেবল'৷ ইন্ডিয়া ইনকরপোরেটেড যতই তাঁকে ত্রাতা বলে মনে করুক না কেন, নেতৃত্বের প্রশ্নে দেশে গণভোট করার আশায় বিজেপি যতই উদ্বাহু হয়ে তাঁকে তুলে ধরুক না কেন, ভারতের রাজনীতির মূলস্রোতে মোদীর অবস্থাটা কুসংস্কারগ্রস্ত মানুষের মাঝখানে এইডস-এর রুগির চেয়ে অবশ্যই ভাল কিছু নয়৷ নকল বুঁদিগড় বানানোর স্বপ্ন নিয়ে গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী আপাতত একাই কুম্ভ৷


নির্বাচনী জনসভার মঞ্চে দাঁড়িয়ে উত্তরপ্রদেশের দুই প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী মুলায়ম সিং ও মায়াবতীর সঙ্গে তুলনা টেনে মোদী যে পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রীর দিল্লি-বিরোধী মনোভাবের প্রশংসা করেছেন, বন্ধুহীনতার অসহায়তাই তার উত্‍সস্থল৷ ভোটের আগে দেশের সামান্য দুটি আঞ্চলিক দলের বাইরে অন্য কারও সমর্থন জোটাতে অপারগ মোদী তাই ভোট-পরবর্তী পরিস্থিতিতে সম্ভাব্য শরিক খোঁজার চেষ্টা করে চলেছেন৷ অতীতে দু'বার তৃণমূল কংগ্রেস দিল্লিতে এনডিএ-র শরিক হয়েছিল বলে গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রীর মনে করছেন তৃতীয় বারের জন্যও বোধ হয় সেই ইতিহাসের পুনরাবৃত্তি ঘটা অসম্ভব নয়৷ অন্তত চেষ্টা করে দেখতে ক্ষতি তো নেই! কলকাতায় এসে ব্যবসায়ীদের সম্মেলনেও মোদী প্রকারন্তরে পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রীকেই সমর্থন করে গিয়েছিলেন৷ বলেছিলেন, ৩৪ বছরের বামশাসনের নৈরাজ্য দূর করে সুশাসন কায়েম করতে একটু সময় তো লাগবেই!


আশায় বাঁচে চাষা, নরেন্দ্র দামোদরও বা আশা করবেন না কেন? কিন্ত্ত বাস্তব সত্যটা হল ভোট পরবর্তী পরিস্থিতিতে তেমন প্রয়োজন হলে এবং ভাল রকম দর-কষাকষির জায়গায় থাকলে ওই মায়াবতীই শেষ পর্যন্ত মোদীর হাত ধরতে পারেন, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ধরবেন না৷ উত্তর প্রদেশে মায়াবতী অতীতে একাধিক বার হয় বাইরে থেকে সমর্থন নিয়ে নয়তো সোজাসুজি নির্বাচনী সমঝোতা করে বিজেপি-র সঙ্গে সরকার গড়েছেন৷ ব্যক্তিগত স্তরে বাজপেয়ী, আদবানি কিংবা মুরলি মনোহর যোশীর সঙ্গেও মায়াবতীর মধুর সম্পর্ক ছিল৷ এতটাই যে রাজ্যে দলের নেতৃত্বের মতামতকে সম্পূর্ণ উপেক্ষা করেই বিজেপি-র কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব অতীতে অনেক সময় কাঁসিরাম-মায়াবতীকে সমর্থন করে গিয়েছেন৷ তৃণমূল কংগ্রেসের ক্ষেত্রে নয়, বহুজন সমাজ পার্টির সঙ্গেই অতএব বিজেপি-র পুনর্মিলনের সম্ভাবনা উজ্জ্বল৷


তার প্রথম কারণ মায়াবতীর রাজনীতিতে আদর্শগত ছুঁত্‍মার্গ নেই৷ ক্ষমতার কুস্তির আখড়ায় তাঁর মূলমন্ত্র একটিই, 'এন্ড শুড জাস্টিফাই দ্য মিনস'৷ সেই কারণেই উত্থানের প্রথম পর্বে বিজেপি-কে মনুবাদী দল বলে বিস্তর গালিগালাজ করলেও পরে পরিবর্তিত পরিস্থিতির বাধ্যবাধকতা স্বীকার করে মায়াবতী সেই জেহাদ কেবল যে বন্ধ করে দিয়েছিলেন তাই নয়, ব্রাহ্মণদের সঙ্গে নির্বাচনী সমঝোতাও করেছিলেন৷ ২০০৭ সালের বিধানসভা ভোটে উত্তরপ্রদেশ মায়াবতী আর বহুজন সমাজের স্লোগান তোলেননি, সর্বজন সমাজের কথা বলেছিলেন৷ ব্রাহ্মণ-দলিত-মুসলিমের রামধনু সামাজিক কোয়ালিশন গড়ে তিনি সকলকে চমকে দিয়েছিলেন৷ তাঁর সেই চমকপ্রদ 'সোশাল ইঞ্জিনিয়ারিং'-এর গপ্পো দীর্ঘদিন ধরে মিডিয়ার রাজনৈতিক পণ্ডিতদের উত্তপ্ত চর্চার বিষয় হয়ে উঠেছিল৷


দ্বিতীয় এবং সম্ভবত আরও বড় কারণ, মায়াবতী বিজেপি-র সঙ্গে জোট করলেন না কংগ্রেসের সঙ্গে, সেটা তাঁর যে 'কোর কনস্টিটুয়েন্সি' অর্থাত্‍ রাজ্যের বৃহত্‍ দলিত সমাজ তার ওপর কোনও প্রভাব ফেলেনা৷ তাঁদের কাছে তিনি শোষিত সমাজের সবচেয়ে বড় নায়িকা হয়েছিলেন, এখনও আছেন, ভবিষ্যতেও থাকবেন৷ এটাই মায়াবতীর ইউনিক সেলিং পয়েন্ট, জাতপাত দীর্ণ উত্তরপ্রদেশের রাজনীতিতে তাঁর গুরুত্ব ও প্রাসঙ্গিকতার একমাত্র রক্ষা কবচ৷ বহেনজির এই ভোট ব্যাঙ্কে সিঁধ কাটতে তাঁর সব প্রতিপক্ষই কোনও না কোনও সময় চেষ্টা করেছে-কংগ্রেস, বিজেপি, সমাজবাদী পার্টি সবাই৷ কেউ সে ভাবে সফল হয়নি৷ কংগ্রেসের 'শাহজাদা'ও (স্বত্ব: মোদী) কয়েক রাত্রি দলিতের খাটিয়ায় ঘুমোনোর পরে দৃশতই রণে ভঙ্গ দিয়েছেন৷ দলিতদের নিয়ে মায়াবতীর এই যে ফিক্সড ডিপোজিট তা হয়তো রাজ্য দখল করার পক্ষে যথেষ্ট নয়, কিন্ত্ত উত্তরপ্রদেশে দ্বিতীয় রাজনৈতিক শক্তি হিসেবে টিকে থাকার পক্ষে যথেষ্ট৷ শুধু এই ভোট ব্যাঙ্ককে সম্বল করেই লোকসভায় কুড়ি-পঁচিশটি আসনে জিতে যাওয়া মায়াবতীর কাছে মোটেই অসম্ভব ব্যাপার নয়৷ উপর্যুপরি ভোটের ফলাফলে বারবার এই সত্যটি প্রতিফলিত৷


আবার এখানেই মায়াবতীর সঙ্গে মমতার মৌলিক পার্থক্য৷ বিজেপির সঙ্গে থাকলে বহেনজির স্বর্গবাস হলেও হতে পারে, কিন্ত্ত দিদির সাক্ষাত্‍ সর্বনাশ৷ উত্তরপ্রদেশের মতো জাতপাতের অঙ্ক বাংলায় অচল, ফলে কোনও দলেরই সেই অর্থে এখানে জাত-ভিত্তিক রাজনীতি করেনা৷ কিন্ত্ত লোকসভা, বিধানসভা এবং পঞ্চায়েত, উপর্যুপরি তিনটি নির্বাচনে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সমর্থনে বামবিরোধী যে সামাজিক জোটটি তৈরি হয়েছে সংখ্যালঘু মুসলিম সমাজ তার অন্যতম প্রধান স্তম্ভ৷ অনেকটা তপসিলি জাতি ও উপজাতিদের মতোই৷ বাকি ভারতবর্ষের মতো পশ্চিমবঙ্গেও সংখ্যালঘু ভোট কোনও দিন কোনও নির্বাচনে একটি রাজনৈতিক দলের বাক্সে গিয়ে পড়েনি৷ তবুও সংখ্যালঘুদের মধ্যে সংখ্যাগরিষ্ঠরা যেদিকে থাকেন, ভোটের পাল্লা ভারি থাকে সেই দল বা জোটের দিকেই৷ আপাতত সেই অ্যাডভান্টেজ তৃণমূলের৷ পঞ্চায়েত ভোটের ফলাফলে দক্ষিণবঙ্গের সংখ্যালঘু প্রধান কয়েকটি অঞ্চলে তৃণমূল ধাক্কা খেলেও মোটের উপরে তাঁদের বেশির ভাগের এখনও ভরসা আছে দিদির ওপরেই৷


বালির বাঁধের মতো সেই ভরসা ভেঙে যেতে পারে যদি মমতা ভুল করে নরেন্দ্র মোদীর ছায়াও স্পর্শ করে ফেলেন৷ রাজনৈতিক বিভেদ যা-ই থাক, গুজরাতে ২০০২-এর রাষ্ট্র পরিচালিত নরমেধ যজ্ঞের পরে বাংলার সংখ্যালঘু সমাজে মোদী বিরোধিতার প্রশ্নে বোধহয় কোনও মতানৈক্য নেই৷ সারাটি জীবন মাটির গন্ধ মেখে রাজনীতি করা মুখ্যমন্ত্রী সে কথা বিলক্ষণ জানেন৷ তিনি আরও জানেন, লোকসভায় চর্তুমুখী লড়াই হলে ভোট ভাগাভাগির একটা বাড়তি ঝুঁকি এমনিতেই থাকবে৷ মোদীর কারণে বাংলার মরা গাঙে বিজেপি-র পক্ষে আদৌ বান ডাকবে কি না, ডাকলেও তার ব্যাপকতা কতটা হবে, তার জন্য প্রতিপক্ষের কে কতটা ভুক্তভোগী হবে, আগামী লোকসভা নির্বাচনে সেটাও একটা অজানা আশঙ্কা৷ পরের বছর লোকসভার ভোট যখন হবে রাজ্যে তৃণমূল কংগ্রেসের সরকারের বয়সও তখন তিন বছর উত্তীর্ণ হয়ে যাবে৷ ফলে অ্যান্টি ইনকাম্বেন্সির একটা চোরা স্রোতও কোথাও কোথাও হয়ত উড়িয়ে দেওয়া যাবে না৷ এর পরে মোদীর সঙ্গে জোট হলে সেটা খাল কেটে কুমির ডাকা হবে না, হবে সাগর কেটে হাঙর নিয়ে আসার মতোই৷ দু'দুবার তাঁর এনডিএ জোটে যাওয়াটাকে রাজ্যের সংখ্যালঘু সমাজ কীভাবে নিয়েছিল, সেই ক্ষতে পরে প্রলেপ দিতে তাঁকে কতটা বেগ পেতে হয়েছে, মুসলিমদের বিশ্বাস ফিরে পেতে কী কী করতে হয়েছে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের চেয়ে ভাল কেউ তা জানেননা৷ বাংলার মুখ্যমন্ত্রীর নাম তো কালিদাস বন্দ্যোপাধ্যায় নয়!


তৃণমূল কংগ্রেসের ১৫ বছরের নাতিদীর্ঘ ইতিহাসে এই প্রথম একলা চলেই লোকসভায় সর্বাধিক আসন জেতার স্বপ্ন দেখতে শুরু করেছেন মুখ্যমন্ত্রী৷ দক্ষিণবঙ্গে কংগ্রেসের যেটুকু অস্তিত্ব বজায় ছিল গত আড়াই বছরে সেটা আরও নড়বড়ে হয়ে গিয়ে মুখ্যমন্ত্রীর আত্মবিশ্বাসকে অনেকটাই বাড়িয়ে দিয়েছে৷ ১৯৯৮-এর পরে দক্ষিণবঙ্গের জেলায় জেলায় এত কংগ্রেসি আর কখনও তৃণমূলে যোগ দেননি৷ অতি কষ্টে তৈরি হওয়া এই দুগ্ধপাত্রে মোদীর গো-চোনা তিনি ঢালতে যাবেন কেন?


তা হলে রাজ্য কংগ্রেস বা সিপিএমের নেতারা কেন মোদী-মমতার সম্পর্ক নিয়ে ঠেস দিচ্ছেন? ইদানীং রাজ্যে ধর্ষণ-টর্ষণ বেশি হচ্ছে না, কামদুনির আগুনও নিবু নিবু, আল-টপকা মন্তব্য করে মুখ্যমন্ত্রীও তাঁদের আর বিশেষ একটা সুবিধে করে দিচ্ছেন না৷ অতএব?


নেই কাজ তো খই ভাজ৷

http://eisamay.indiatimes.com/editorial/post-editorial/special-column-by-suman-chattopadhta/articleshow/25684757.cms


সিঙ্গুর-জমি ছাড়তে নারাজ টাটা

নিজস্ব সংবাদদাতা • নয়াদিল্লি

পযুক্ত ক্ষতিপূরণ পেলেও সিঙ্গুরের জমি ফেরাতে রাজি নয় টাটা মোটরস। আজ সুপ্রিম কোর্টে এ কথা জানিয়ে টাটাদের তরফে বলা হয়েছে, ভবিষ্যতে ওই জমিতে কারখানা গড়ার পরিকল্পনা রয়েছে তাদের। প্রয়োজনে ন্যানো গাড়ির কারখানার দ্বিতীয় ইউনিটও গড়া যেতে পারে।

২০১১-এর ১৪ জুন বিধানসভায় সিঙ্গুর আইন পাশ করার সাত দিনের মধ্যে রাজ্য সরকার সিঙ্গুরের জমি দখল নেওয়ার পর মামলা এখন সুপ্রিম কোর্টে গড়িয়েছে। রাজ্য সরকারের আইনকে অসাংবিধানিক আখ্যা দিয়ে প্রথমে হাইকোর্টে মামলা দায়ের করেছিল টাটা মোটরস। সিঙ্গল বেঞ্চ সরকারের পক্ষে রায় দিলেও ডিভিশন বেঞ্চ বলে সিঙ্গুর আইন অবৈধ। সেই রায়ের বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে আবেদন করে রাজ্য।

গত ১০ জুলাই সেই মামলার শুনানির সময় শীর্ষ আদালত টাটা মোটরসের কাছে জানতে চেয়েছিল, উপযুক্ত ক্ষতিপূরণ পেলে সিঙ্গুরের জমি তারা ছেড়ে দিতে রাজি আছে কি না। একই সঙ্গে বিচারপতিদের প্রশ্ন ছিল, যে কারণে এই জমি অধিগ্রহণ করা হয়েছিল, সেই শিল্পই যদি না-হয়, তা হলে জমি কেন আসল মালিকের কাছে ফেরত যাবে না।

*

শীর্ষ আদালতের এই প্রশ্নের পরে সিঙ্গুর-জট কাটার আশা দেখেছিলেন কেউ কেউ। রাজ্য সরকারের তরফে আদালতের বক্তব্যকে ইতিবাচক আখ্যা দিয়ে দাবি করা হয়েছিল, অনিচ্ছুক চাষিদের জমি ফেরানোর পথ এ বার উজ্জ্বল হল। কিন্তু অনেকেই তখন সেই সম্ভাবনা নিয়ে প্রশ্ন তুলেছিলেন। কারণ, সিঙ্গুর আইন অবৈধ না বৈধ, সেই মূল প্রশ্নেরই মীমাংসা হয়নি। আইন বৈধ বলে স্বীকৃতি পেলে তবেই ক্ষতিপূরণের প্রশ্ন উঠবে। আর আজ টাটারা জমি ছাড়তে রাজি নয় বলে জানানোর পরে জমি ফেরানোর বিষয়টা আরও গভীর জলে চলে গেল বলেই তাঁদের মত। টাটাদের বক্তব্য জানার পরে সিঙ্গুর আইনের বৈধতা সংক্রান্ত মূল মামলার শুনানি আগামী বছর এপ্রিল মাসে শুরু হবে বলে জানিয়ে দিয়েছে সুপ্রিম কোর্ট।

টাটাদের এ দিনের বক্তব্য শুনে সংশ্লিষ্ট মহলের অনেকেই মনে করছেন, সিঙ্গুর নিয়ে আপাতত আইনি পথেই হাঁটতে চায় তারা। ফলে মামলার চূড়ান্ত নিষ্পত্তির আগে জমি ফেরতের বিষয়টি অনিশ্চিত থেকে যাবে বলেই তাঁদের মত।

টাটাদের অবস্থান জানার পরে রাজ্য সরকারের তরফে প্রকাশ্যে কোনও প্রতিক্রিয়া জানানো হয়নি। তবে একান্ত আলাপচারিতায় প্রশাসনিক কর্তারা বলছেন, অনিচ্ছুক চাষিদের ৪০০ একর জমি ফিরিয়ে দেওয়া হবে, এটাই সরকারের নীতি। এটাই মুখ্যমন্ত্রীর অঙ্গীকার। সেখান থেকে সরে আসার কোনও কারণ ঘটেনি এবং সরকার সরে আসবেও না।

যদিও টাটাদের সিদ্ধান্ত মেনে নিয়ে তাদের সিঙ্গুরে প্রত্যাবর্তনের পথ প্রশস্ত করলে রাজ্যের বিবর্ণ শিল্পচিত্রে নতুন রং জুড়তে পারে বলেই মনে করছে বিরোধী ও শিল্পমহল। প্রাক্তন শিল্পমন্ত্রী নিরুপম সেনের বক্তব্য, রাজ্যের উচিত, টাটার এই অবস্থানকে স্বাগত জানানো। তাঁর মন্তব্য, "সিঙ্গুর থেকে টাটাকে তাড়ানো তো ওঁদের (তৃণমূল) লক্ষ্য ছিল না। লক্ষ্য ছিল বামফ্রন্ট সরকারকে উৎখাত করা। সেটা যখন হয়েই গিয়েছে, তখন টাটাকে ফিরিয়ে এনে নিজেরাই দরকারে কৃতিত্ব দাবি করতে পারেন! আমাদের আপত্তি নেই।"

কংগ্রেস বিধায়ক মানস ভুঁইয়ার প্রতিক্রিয়া, "রাজ্য সরকার টাটাদের নিয়ে পুরো ব্যাপারটা পর্যালোচনা করে যদি ভবিষ্যতের কোনও রূপোলি রেখা দেখাতে পারে, তা হলেই ভাল।" অন্য দিকে, বেঙ্গল চেম্বার অব কমার্সের প্রেসিডেন্ট কল্লোল দত্তের কথায়, "এটা ভাল খবর যে, টাটা মোটরস এ রাজ্য থেকে একেবারে মুখ ঘুরিয়ে নেয়নি। এ বার রাজ্যের উচিত বিষয়টি মিটমাটের জন্য ওদের সঙ্গে আলোচনা শুরু করা। ওরা ফিরে এলে রাজ্যের শিল্পায়নের ছবিটা দ্রুত বদলে যাবে।"

সিঙ্গুরের জমি শিল্পের জন্য ব্যবহার করার ব্যাপারে আগ্রহ প্রকাশ করে আজ বিচারপতি এইচ এল দাত্তু ও বিচারপতি রঞ্জনাপ্রসাদ দেশাইয়ের ডিভিশন বেঞ্চে টাটা মোটরসের আইনজীবী হরিশ সালভে জানান, ২০০৮ সালে এমন পরিস্থিতি তৈরি হয়েছিল যে তাঁর মক্কেলের পক্ষে কাজ বন্ধ করার সিদ্ধান্ত নেওয়া ছাড়া আর কিছু করার ছিল না। কিন্তু ওই জমি তারা ছেড়ে দিতে চায় না। কারণ, জমি অধিগ্রহণ ও পুনর্বাসন আইন পাশ হওয়ার পরে এক লপ্তে জমি পাওয়া অসুবিধা। সে ক্ষেত্রে সিঙ্গুরের ৯৯৭ একর জমি কারখানা তৈরির কাজে লাগাতে চায় টাটারা। ওই জমিতে অনুসারী শিল্প তথা পরিকাঠামোগত সব সুবিধা তৈরি করাই রয়েছে। গুজরাতের সানন্দে ন্যানোর একটি ইউনিট তৈরি হয়েছে। প্রয়োজনে দ্বিতীয় ইউনিট তৈরির কাজ শুরু করা যেতে পারে সিঙ্গুরে।

সিঙ্গুর নিয়ে টাটাদের বিস্তারিত পরিকল্পনা কী, তা অবশ্য আদালতকে জানাননি হরিশ সালভে। তিনি বলেন, বর্তমানে রাজ্য ওই জমি পুনর্দখল করেছে। ফলে কতটা জমি তাঁর মক্কেলের হাতে আসবে, তা জানার পরেই বিস্তারিত পরিকল্পনা জানানো সম্ভব।

টাটাদের এই বক্তব্য সম্পর্কে রাজ্য সরকারের একটি সূত্রের মন্তব্য, ন্যানো কারখানার দ্বিতীয় ইউনিট গড়ার জন্য হাজার একর জমির কোনও প্রয়োজন নেই। অনিচ্ছুক চাষিদের ৪০০ একর জমি ফেরত দিয়েও কারখানা গড়া সম্ভব। আদালতে রাজ্যের এই অবস্থানের কথা সময়মতো স্পষ্ট ভাবে জানিয়ে দেওয়া হবে বলেও সূত্রটি জানান।

রাজ্য সরকারের আইনজীবী কল্যাণ বন্দ্যোপাধ্যায় অবশ্য আজ দাবি করেন যে, আদালতে টাটারা মিথ্যে কথা বলেছেন। তাঁর কথায়, "সিঙ্গুরের জমি নেওয়া হয়েছিল ন্যানো গাড়ির মূল কারখানা গড়া হবে বলে। তা হলে এখন কারখানা সম্প্রসারণের প্রশ্ন আসছে কোথা থেকে?" কারখানা সরিয়ে নেওয়ার সিদ্ধান্ত জানিয়ে টাটা মোটরস তৎকালীন বামফ্রন্ট সরকারকে যে চিঠি দিয়েছিল, সেটিও আদালতে পেশ করেন কল্যাণবাবু।

আপস রফার মাধ্যমে সিঙ্গুরের জমি টাটারা ছেড়ে দিচ্ছে না, এটা স্পষ্ট হয়ে যাওয়ার পরে সিঙ্গুর আইনের বৈধতা সংক্রান্ত মূল মামলাটি দ্রুত নিষ্পত্তি করার আর্জি জানিয়েছিল রাজ্য সরকার। কিন্তু সেই আর্জি খারিজ করে দেয় ডিভিশন বেঞ্চ। আগামী এপ্রিলে মূল মামলার শুনানি হবে বলে আজ জানিয়ে দিয়েছে তারা।

http://www.anandabazar.com/13hgly1.html


স্মরণসভাতেও মোদী নিয়ে তৃণমূলকে তোপ রেজ্জাকের

নিজস্ব সংবাদদাতা • হাড়োয়া

বামেরা যখন নরেন্দ্র মোদীকে ঠেকাতে ধর্মনিরপেক্ষ দলগুলিকে নিয়ে জোট করার চেষ্টা করছে, সেই সময় মোদী প্রসঙ্গে তৃণমূলের ভূমিকা নিয়ে মুখ্যমন্ত্রীর কড়া সমালোচনা করলেন প্রাক্তন ভূমি ও ভূমি-রাজস্ব মন্ত্রী এবং সিপিএম বিধায়ক আব্দুর রেজ্জাক মোল্লা।

২০০৮ সালে হাড়োয়ায় আলাউদ্দিন মোল্লা নামে এক সিপিএম নেতা দুষ্কৃতীদের হাতে খুন হন। মঙ্গলবার তাঁরই স্মরণসভা গিয়েছিলেন রেজ্জাক মোল্লা। কিন্তু সভায় তাঁর বক্তৃতার বেশিরভাগ জুড়ে ছিল মুখ্যমন্ত্রীর সমালোচনা। নরেন্দ্র মোদীর নেতৃত্বে বিজেপি সরকার নিয়ে সতর্ক করতে গিয়ে তিনি বলেন, "আমরা যখন মোদীকে ঠেকাতে ১৮-১৯টা ধর্ম নিরপেক্ষ দলকে নিয়ে জোট করার চেষ্টা করছি। সেই সময় দিদিমণি (মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়) আঁচলের মধ্যে তাস লুকিয়ে রেখেছেন। লোকসভা ভোটের পরে মোদির যদি ২০-২২ টা আসন কম পড়ে তখন দিদি তাঁর আঁচলের তলা থেকে তাস বের করে মোদির বিজেপিতে যাবেন। আগেও দু'বার গিয়েছেন। সে জন্যই তো মোদি এখন থেকে দিদির প্রশংসা করছেন।"

*

মঙ্গলবার হাড়োয়ায় রেজ্জাক মোল্লা। ছবি: নির্মল বসু।

মোদির পাশাপাশি রাজ্যে সিভিক পুলিশ নিয়োগ নিয়েও মুখ্যমন্ত্রীকে এক হাত নেন রেজ্জাক। তাঁর কথায়, "আর কিছুদিন পরে সিভিক পুলিশের কাজ থাকবে না। মাদ্রাসার অনুমোদন দিলেও কোনও টাকা দেওয়া হবে না। চাকরির নামে মুসলমানদের বিভ্রান্ত করা হচ্ছে।" রাজ্য সরকার তথা দিদি এমন করেই সকলকে নাচাচ্ছেন দাবি করে রেজ্জাকের বক্তব্য, "ওরা যে ভাবে পিটিয়ে মেরে পঞ্চায়েত দখল করল, তাতে মানু, বুঝে গিয়েছে যে চোর তাড়িয়ে তারা ডাকাত এনেছে। এখনও একটা কারাখানা হল না। যে ভাবে তৃণমূলের দালালরা সব কিছুতেই টাকা নিতে শুরু করেছে তাতে শিল্পপতিরা বুঝেছে ভিক্ষা দিতে হবে না আগে কুকুর ঠেকাই। সে জন্যই তাঁরা রাজ্য ছেড়ে পালাচ্ছেন।"

তৃণমূলের সমালোচনার পাশপাশি এ দিন ফের তাঁর গলায় উঠে আসে আত্মসমালোচনা। তিনি বলেন, "সিপিএম গরিবের পার্টি, ইটখোলার মালিক কিংবা মাস্টারদের পার্টি নয়। আমাদের লোকজনদের বড়লোকদের পিছু ঘুর ঘুর করতে দেখে গরিব মানুষ আমাদের ছেড়ে গিয়েছিল। তাঁদের বুঝিয়ে এক করে আনতে গেলে পেটানোর ভয় পেয়ে কলকাতায় বসে থাকলে হবে না, নেতাদের গ্রামে যেতে হবে।"

http://www.anandabazar.com/13pgn2.html


সিঙ্গুর নির্লিপ্তই, সরকারি কোর্টে বল বিরোধীদের

নিজস্ব প্রতিবেদন

ম্মিলিত ভাবে বিরোধীদের দাবি, সর্বোচ্চ আদালতের শুনানিতে যে রুপোলি রেখা দেখা দিয়েছে, তারই সূত্র ধরে টাটার সঙ্গে আলোচনায় বসুক রাজ্য সরকার। চেষ্টা হোক শিল্প ফিরিয়ে আনার। কিন্তু যাকে ঘিরে এত আলোচনা, সেই সিঙ্গুর রয়েছে নির্লিপ্তই!

সুপ্রিম কোর্টের শুনানিতে টাটার আইনজীবী জানিয়েছেন, সিঙ্গুরে শিল্প গড়ার ভাবনা তাঁরা ছেড়ে দেননি। পরিস্থিতি অনুকূলে ছিল না বলে ন্যানোর প্রথম পর্যায়ের কারখানা ওখানে করা যায়নি। টাটার এই বক্তব্যে এখনই বিরাট আশার আলো দেখছেন না শিবুরাম ধাওয়া, বিফল বাঙাল, মহাদেব দাসের মতো সিঙ্গুরের জমির মূল মালিকেরা। আদৌ কারখানা হবে কি না, না হলে অন্য কী হবে দীর্ঘ টানাপোড়েনে এ সব প্রশ্নের উত্তর এখন স্পষ্ট নয় সিঙ্গুরবাসীর কাছে।

ঘটনাচক্রে, শিল্পমন্ত্রী পার্থ চট্টোপাধ্যায় মঙ্গলবারই সিঙ্গুরের রতনপুরে এসেছিলেন কৃষি প্রতিমন্ত্রী বেচারাম মান্নার উদ্যোগে একটি জগদ্ধাত্রী পুজো উপলক্ষে। মণ্ডপে বসে বহু ক্ষণ বাউল গান শুনলেও সিঙ্গুর নিয়ে কথা বলতে চাননি শিল্পমন্ত্রী। তৃণমূলের এক শীর্ষ নেতা তথা রাজ্যের এক প্রথম সারির মন্ত্রী অবশ্য বলেছেন, "টাটারা কী চান, সেটাই ঠিক করে বোঝা যাচ্ছে না! আমরা তো আগে চাই, অনিচ্ছুক কৃষকদের হাতে ৪০০ একর জমি ফিরে আসুক।"

*

সিঙ্গুরের রতনপুরে উদয় সঙ্ঘের মণ্ডপে বেচারাম মান্নার

সঙ্গে পার্থ চট্টোপাধ্যায়। মঙ্গলবার। ছবি: প্রকাশ পাল।

'অনিচ্ছুক'দের অনেকে অবশ্য জমি-আন্দোলনের স্মৃতি পিছনে ফেলে এখন তৃণমূল নেতাদের উদাসীনতায় ক্ষোভ গোপন করছেন না। প্রকল্প এলাকায় বিঘে চারেক জমি গেলেও প্রৌঢ় শিবুরাম যেমন ক্ষতিপূরণের চেক নেননি। 'অনিচ্ছুক' এই কৃষক এখন সরাসরিই বলছেন, "টাটারা যদি প্রস্তাব দেয় পুরনো দামের চার গুণ টাকা দেবে, তা হলে নিয়ে নেব। দিদির (মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়) কথা আর শুনব না!" যদিও টাটাদের এ দিনের বক্তব্যে বিশেষ ভরসা নেই শিবুরামে। তাঁর কথায়, "এত সময় নষ্ট হল! এখন কারখানা হলেও আমাদের আর কিছু উপকার হওয়ার আছে কি?" এক কালের কৃষিজমি রক্ষা কমিটির নেতা, খাসেরভেড়ির 'অনিচ্ছুক' মহাদেব দাস বলছেন, "আমরা টাটাকে সিঙ্গুরে আনিনি। তাড়িয়েও দিইনি! ওরাই এক এক রকম বলছে! আমরা শুরু থেকেই বলছি, ৪০০ একর জমি ফিরিয়ে দিয়ে বাকি জমিতে কারখানা করো। এখনও তা-ই বলছি।"

আবার টাটার প্রকল্পের জন্য জমি দিয়ে টাকা নিয়েও আফশোস করছেন গোপালনগর সাহানাপাড়ার বিফলবাবু। তাঁর দীর্ঘশ্বাস, "পুরোটাই যেন ছেলেখেলা! আমার ছেলে-ভাইপো প্রকল্পের জন্য প্রশিক্ষণ নিয়েছিল। কিছুই তো হল না!" টাটাদের এ দিনের বক্তব্যের কথা জেনে গোপালনগরের বিশ্বজিৎ হাম্বির মন্তব্য, "এ সব ঘোষণায় আর কিছু এসে যায় না!"

বিরোধীরা অবশ্য প্রস্তাব দিয়েছেন, আদালতে এ দিনের ঘোষণাকে কাজে লাগিয়েই এগিয়ে যাক রাজ্য সরকার। প্রাক্তন শিল্পমন্ত্রী এবং সিপিএমের পলিটব্যুরো সদস্য নিরুপম সেনের কথায়, "এই বক্তব্যকে স্বাগত জানিয়ে টাটার সঙ্গে কথা বলুক রাজ্য সরকার।" কংগ্রেস বিধায়ক মানস ভুঁইয়ার মতে, "জেদাজেদির স্তর থেকে সরে এসে কৃষকদের পাশাপাশি শিল্পের স্বার্থও দেখতে হবে। এই সুযোগ রাজ্য সরকারের ব্যবহার করা উচিত।"

http://www.anandabazar.com/13hgly2.html


সোনার জমির লোভে মরিয়া সব পক্ষই

নিজস্ব সংবাদদাতা

তেরো কাঠা জমি তো নয়, সোনার কুমিরছানা!

৯এ শর্ট স্ট্রিটের জমিটিকে কুমিরছানার মতো ব্যবহার করে একাধিক বার বিক্রি এবং একাধিক লোকের কাছ থেকে টাকা নেওয়া হয়েছিল বলে জানতে পেরেছে পুলিশ। পুলিশের দাবি, এই খেলার নায়ক যদি হন রতনলাল নাহাটা, তা হলে নায়িকা মমতা অগ্রবাল। পার্শ্বচরিত্রে কখনও পরাগ মজমুদার, কখনও জমির আদত মালকিনের ভাসুরপো আইনজীবী দ্বারকানাথ সেন, কখনও জমি-ব্যবসায়ী দিলীপ দাস!

কী রকম? ১৯৯৯ সালে জমিটি প্রথম বার হাতবদল হয়। জমির মালকিন শৈলবালা সেনের সঙ্গে মুম্বইয়ের ক্রেতা সংস্থা হার্টলাইন এস্টেটের যোগাযোগ করিয়ে দেন রতনলাল। বিনিময়ে দালালির ভাগ পেয়েছিলেন তিনি। হার্টলাইনের কর্তা দিলীপ দাস আসলে রতনলালের বন্ধু। সেই সুবাদেই জমি হাতবদলের পরে কার্যত নিখরচায় ওই জমিতে বসবাস করতে শুরু করেন রতনলাল। একটি রেস্তোরাঁর ব্যবসাও শুরু করেছিলেন কিছু দিন।

রেস্তোরাঁ উঠে যাওয়ার পরে জমি-চিত্রে মমতা অগ্রবালের আবির্ভাব। ওই জমিতে স্কুল খুলে বসেন তিনি। পুলিশের দাবি, রতনলালের ঘনিষ্ঠ ছিলেন মমতা। তবে সম্প্রতি সেই ঘনিষ্ঠতায় চিড় ধরেছিল। জমি নিয়ে দড়ি টানাটানির খেলায় উভয়েই উভয়ের গলার কাঁটা হয়ে উঠেছিলেন।

*

শর্ট স্ট্রিটের স্কুলবাড়িতে চলছে তদন্ত। মঙ্গলবার। —নিজস্ব চিত্র।

মমতা এখন পুলিশের হেফাজতে। রতনলালের সঙ্গে চেষ্টা করেও যোগাযোগ করা যায়নি।

প্রাথমিক তদন্তে পুলিশ জানতে পেরেছে, জমিটি দখলে রাখার জন্য ঢাল হিসেবেই স্কুল খুলেছিলেন মমতা। ইতিমধ্যে ২০১০ সালে হার্টলাইনের কাছ থেকে জমিটি কিনে নেন সঞ্জয় সুরেখা নামে এক ব্যবসায়ী। ঘোষিত মূল্য, আট কোটি টাকা। অভিযোগ, এই লেনদেনেও মধ্যস্থতাকারী পরাগ মজমুদারের সঙ্গে হাত মিলিয়ে দালালির ভাগ নেন রতন।

এর পরের পর্বটি ধোঁয়াশার। কারণ, সেই বছরই রতন নিজেই ওই জমি 'কিনে' নেন শৈলবালার ভাসুরপো দ্বারকানাথের পরিবারের কাছ থেকে। শৈলবালার বেচে দেওয়া জমি দ্বারকানাথের পরিবারের হাতে গেল কী করে? নথি বলছে, ১৯৯৯ সালে হার্টলাইনকে বেচে দেওয়া জমি ২০০৩ সালে মৃত্যুর আগে উইল করে দ্বারকানাথের দুই মেয়ে রুমি ও রাখীর নামে লিখে দিয়ে যান শৈলবালা। পুলিশের সন্দেহ, রতনলাল-দ্বারকানাথরা সকলে মিলে বৃদ্ধাকে ভুল বুঝিয়ে থাকতে পারে।

দ্বারকানাথ নিজে ১৯৯৯ সালে জমি বিক্রির সময়ে ১০ লক্ষ টাকা পেয়েছিলেন বলে খবর। ফলে জমি হাতবদল হওয়ার কথা তিনি জানতেন না, তা হতে পারে না। আবার রতনলাল নিজে উদ্যোগী হয়ে যে জমি বেচার ব্যবস্থা করলেন, তিনিই আবার সেই জমি কিনতে গেলেন কেন? তবে দ্বারকানাথদের কাছ থেকে জমি 'কেনার' সময় মমতার অ্যাকাউন্ট থেকে এক কোটির বেশি টাকা দেওয়া হয়েছিল বলে পুলিশ সূত্রে খবর।

সুতরাং রতনলালের তুখোড় দালালি বুদ্ধি কী ছকে এগোচ্ছিল, সেটা এখনও অজানা। তবে পুলিশের অনুমান, রতনলাল মমতাকে আশ্বাস দিয়েছিলেন যে, ওই জমি শেষমেশ তাঁকেই দেবেন। কিন্তু বাস্তবে তা না হওয়ায় মমতা খেপে গিয়েছিলেন। তার উপরে সম্প্রতি স্কুলের লাইসেন্স বাতিল হওয়ায় তিনি আরও সমস্যায় পড়েন। বৃদ্ধ, এখন কার্যত শয্যাশায়ী রতনলালের কাছ থেকে কোনও ভাবে জমিটি আদায় করা বা জমি খালি করার জন্য মমতা বড় অঙ্কের টাকা দাবি করার কথা ভাবছিলেন বলেও পুলিশ সূত্রের দাবি।

*

দ্বিতীয় পর্যায়ের হাতবদলের পরেই জমি-জট আদালতে পৌঁছয়। সঞ্জয় সুরেখার সংস্থার এক কর্তার দাবি, খাতায়কলমে আট কোটি টাকায় কেনা হলেও জমি খালি করার পরে হার্টলাইনকে আরও ২১ কোটি টাকা দেওয়ার কথা ছিল। অন্য দিকে দিলীপ দাসের সঙ্গে রতনের চুক্তি হয়েছিল, নির্দিষ্ট অঙ্কের টাকা পেলে তিনি জমি ছেড়ে উঠে যাবেন। কিন্তু বাস্তবে যখন জমি খালি করার সময় এল, রতন বেঁকে বসলেন। দাবি করলেন, জমির মালিক তিনিই। রুমি-রাখীর কাছ থেকে ওই জমি তিনি কিনে নিয়েছেন। দিলীপের সঙ্গে রতনের সুসম্পর্কের এখানেই ইতি। এ দিন দিলীপ দাবি করেন, "রতন এক জন প্রতারক। জমি থেকে উঠে যাওয়ার জন্য টাকা নিয়েও কথার খেলাপ করেছেন।"

রতনের নামে আলিপুর কোর্টে মামলা ঠোকে হার্টলাইন। অভিযোগ, রতন জমি জবরদখল করে রয়েছেন। এই মামলার স্থগিতাদেশ চেয়ে ২০১১ সালে হাইকোর্টের দ্বারস্থ হন রুমি-দ্বারকানাথ-রতনরা। শৈলবালার উইল পেশ করে ওঁরা দাবি করেন, রুমিরাই জমির বৈধ মালিক ছিলেন এবং বৈধ ভাবেই সে জমি তাঁরা রতনকে বেচেছেন। কিন্তু দেখা যায়, সেই উইলের প্রোবেট নেওয়া হয়নি। অন্তর্বর্তীকালীন নির্দেশে হাইকোর্ট ওই উইলের বৈধতা খারিজ করে দেয়। এ বার রতনকে ওই জমি থেকে উচ্ছেদ করার আর্জি নিয়ে গত বছর সঞ্জয় সুরেখা আরও একটি মামলা করেন হাইকোর্টে। তিনটি মামলাই এখনও চলছে। কিন্তু ইতিমধ্যে জমির মিউটেশনের জন্য কলকাতা পুরসভার দ্বারস্থ হয়েছিলেন দু'পক্ষই। পুরসভা সঞ্জয়কেই মিউটেশন দিয়েছে। তার ভিত্তিতেই বাতিল হয়ে গিয়েছে মমতার স্কুলের লাইলেন্স। কিন্তু তিনি মাটি কামড়ে পড়ে ছিলেন।

পুলিশের ধারণা, মমতাকে উচ্ছেদ করতেই দলবল পাঠানো হয়েছিল সোমবার ভোররাতে। মমতা সরে গেলে বিছানায় পড়ে থাকা রতনলালকে সরাতে বেগ পেতে হবে না বলে চক্রী ভেবে থাকতে পারে। খোদ রতনলাল নিজেও অন্যতম চক্রী হয়ে থাকতে পারেন। কোনও সম্ভাবনাই উড়িয়ে দেওয়া যাচ্ছে না।

পুলিশের মতে আর একটা সম্ভাবনা হল, হার্টলাইনের লোকজনই হয়তো অভিযানের ছক কষেছিল। পুলিশ জেনেছে, সঞ্জয়বাবু সম্প্রতি হার্টলাইনের কাছে আট কোটি টাকা ফেরত চাইতে শুরু করেছিলেন। কেন? পুলিশের একাংশের মতে, জমি খালি করার চাপ বজায় রাখাই সম্ভবত এর উদ্দেশ্য ছিল। সেই চাপের মুখে হার্টলাইন মরিয়া হয়ে দখল অভিযানে নেমে থাকতে পারে। গত মাসে একদল লোক গিয়ে ওই জমির বাইরের পাঁচিলে একটি নোটিস লটকে দিয়েছিল। লেখা ছিল, জমির মালিক হার্টলাইন এস্টেট। কিন্তু সঞ্জয়বাবুকে বিক্রি করা জমি নিজের বলে দাবি করে নোটিস দিল কেন হার্টলাইন? সদুত্তর দিতে পারেননি দিলীপবাবু।

দখল অভিযানের ছক কি সঞ্জয় সুরেখা কষে থাকতে পারেন? সন্দেহ রয়েছে পুলিশের মনে। পুলিশ জানাচ্ছে, সঞ্জয়বাবুই যে ওই জমির মালিক, আদালতে তা ঘোষণা শুধু সময়ের অপেক্ষা। এই অবস্থায় এত বড় ঝুঁকি সঞ্জয়বাবুর মতো পোড় খাওয়া ব্যবসায়ী নেওয়ার কথা নয়। বরং পুলিশের নজরে রয়েছেন পরাগ মজমুদার। হার্টলাইন সংস্থার কাছ থেকে যখন সঞ্জয়বাবু জমি কেনেন, তখন সেই কেনাবেচার মধ্যস্থতা করেছিলেন পরাগবাবু। পরাগবাবুর দাবি, তার পর থেকে আজ পর্যন্ত তিনি ওই জমির দিকে ফিরেই তাকাননি। অথচ মমতা পুলিশের কাছে অভিযোগে পরাগবাবুর নাম করেছেন। পুলিশের একটি সূত্র জানাচ্ছে সঞ্জয়বাবু আট কোটি টাকা ফেরত চাওয়ার পরে যাঁরা নড়েচড়ে বসেন, তাঁদের মধ্যে পরাগবাবুও এক জন। সঞ্জয় সুরেখা দাবি করেছেন, জমি খালি করার দায়িত্ব ছিল পরাগের উপরেই। তাই রবিবার রাতের ঘটনার সঙ্গে পরাগের যোগসাজশের সম্ভাবনা পুলিশ উড়িয়ে দিচ্ছে না।

পুলিশ জানিয়েছে, রতনলাল নাহাটা-র সঙ্গে দিলীপ দাসের মতোই পরাগবাবুরও দীর্ঘ দিনের পরিচয়। এই জমি ঘিরেই সেই সম্পর্ক নষ্ট হয়। পুলিশ জানাচ্ছে, ১৯৯৯ সালে শৈলবালা যখন জমিটি হার্টলাইনকে বিক্রি করেন, তখনও সেখানে মধ্যস্থতায় ছিলেন রতনলাল এবং পরাগ। তখনও দু'জনের মধ্যে টাকার ভাগ-বাঁটোয়ারা নিয়ে গণ্ডগোল হয়েছিল, সঞ্জয় সুরেখাকে জমি বেচার সময়েও তার ব্যত্যয় হয়নি।

পরাগবাবুর অভিযোগের আঙুল আবার দ্বারকানাথের দিকে। পরাগের দাবি, ১৯৯৯ সালে জমি বিক্রির সময়ে দ্বারকানাথ ১০ লক্ষ টাকা পেয়েছিলেন। "এর পরে ২০০৩ সালে ওই জমি শৈলবালা যখন দ্বারকানাথের মেয়েদের নামে লিখে দেন, তখন তিনি আপত্তি করলেন না কেন? দ্বারকানাথের দুই মেয়ে যখন সেই জমি রতনলালকে বিক্রি করল, তখনও দ্বারকানাথ ১০ লক্ষ টাকা নিয়েছেন।"

কী বলছেন দ্বারকানাথ? এ দিন মদন মিত্র লেনে তাঁর বাড়িতে গেলে জানানো হয়, স্ত্রী এবং দুই মেয়েকে নিয়ে চিকিৎসার জন্য তিনি চেন্নাই গিয়েছেন। তাঁর সঙ্গে যোগাযোগের কোনও নম্বরও পাওয়া যায়নি।

সতেরো কাঠা জমি নিয়ে কেন এত দড়ি টানাটানি? স্থানীয় প্রোমোটারদের মতে, শর্ট স্ট্রিটের এই জমির দাম এখন কাঠা প্রতি কয়েক কোটি টাকা। আটতলা আধুনিক ফ্ল্যাট-কমপ্লেক্স তুলতে পারলে ৬০ কোটি টাকার উপরে ব্যবসা হওয়ার সম্ভাবনা। যাঁর নামে জমি থাকবে, তাঁর লাভ হবে ২৫ থেকে ৩০ কোটি টাকা। ফলে পুলিশ একটা বিষয়ে নিশ্চিত বিনা যুদ্ধে সূচ্যগ্র মেদিনী না ছাড়ার পণ করে ছিলেন সংশ্লিষ্ট সব পক্ষই।

http://www.anandabazar.com/13cal1.html


রাজ্য হস্তক্ষেপ করায় আলুর দাম বাড়েনি: মুখ্যমন্ত্রী

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

রাজ্য জুড়ে আলু-সমস্যার মধ্যেই দাম ঠিক করে দেওয়ার সরকারি সিদ্ধান্ত নিয়ে বিতর্ক চলছিল। তবে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের দাবি, সরকার দাম বেঁধে দিয়েছে বলেই আলুর মূল্যবৃদ্ধি নিয়ন্ত্রণ করা গিয়েছে।

মঙ্গলবার ইলামবাজারে বীরভূম জেলা প্রশাসনের সঙ্গে বৈঠকে আলুর প্রসঙ্গে বলতে গিয়ে এই মন্তব্য করেন মুখ্যমন্ত্রী। তাঁর কথায়, "দিল্লি, পঞ্জাব-সহ কয়েকটি রাজ্যে ৪০ থেকে ৬০ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রি হচ্ছে। এখানে তা হয়নি। কারণ, দামের ক্ষেত্রে সরকার সময়মতো নিয়ন্ত্রণ জারি করায় তা বাড়তে পারেনি।" মুখ্যমন্ত্রী এমন দাবি করলেও সরকার নির্ধারিত ১৩ টাকা কিলোগ্রাম দরে এ দিনও খোলা বাজারে প্রায় কোথাও আলু মেলেনি বলে ক্রেতাদের একাংশের অভিযোগ। আলুর জোগান নিয়ে অবশ্য কোনও অভিযোগ নেই।

বাংলার আলু সীমানা পেরিয়ে ভিন্ রাজ্যে পাচার হয়ে যাচ্ছে বলে অভিযোগ করেছেন মুখ্যমন্ত্রী। তাঁর বক্তব্য, এক জেলা থেকে অন্য জেলায় পাঠানোর নামে আলু পাচার হচ্ছে। একটি অসাধু চক্র আলু পাচারের সঙ্গে যুক্ত বলে তাঁর অভিযোগ। মুখ্যমন্ত্রীর ঘনিষ্ঠ মহলের খবর, পুরুলিয়ার বান্দোয়ানের মতো কয়েকটি এলাকা থেকে অন্য রাজ্যে আলু পাচার হচ্ছে বলে সোমবার খবর পান মমতা। এই কাজে পুলিশের ভূমিকা নিয়ে সন্দেহ প্রকাশ করেও তাঁর কাছে অভিযোগ আসে। এই প্রেক্ষিতে সোমবার রাতেই সব জেলাশাসক ও পুলিশ সুপারের কাছে সতর্কবার্তা পাঠিয়ে মুখ্যমন্ত্রী নির্দেশ দেন, পাচার রুখতে প্রতিটি জেলার সীমানায় মাঝরাত থেকে কাকভোর পর্যন্ত পুলিশি টহল বাড়াতে হবে।

এ দিন জেলা প্রশাসনের সঙ্গে বৈঠকে ওই প্রসঙ্গে কিছু না-বললেও পাচার নিয়ে সরব ছিলেন মুখ্যমন্ত্রী। পুলিশকে সতর্ক করে দিয়ে তিনি বলেন, "সীমানায় কড়া নজর রাখুন। এক জেলা থেকে অন্য জেলায় আলু পাঠানো হচ্ছে বলে জানিয়ে যে-সব গাড়ি সীমানা পেরোচ্ছে, তাদের দিকে সতর্ক দৃষ্টি রাখুন।" তাঁর নির্দেশ, সীমানায় ঢোকার মিনিট পনেরো আগে থেকে অনুসরণ করতে হবে আলুর গাড়িকে। দরকারে সংশ্লিষ্ট জেলার সঙ্গে কথা বলে গাড়ি 'এসকর্ট' করে সীমানা পার করে দিতে হবে।"

মুখ্যমন্ত্রী জানান, এখন রাজ্যে যা আলু আছে, তার একটাও নষ্ট হবে না। কারণ, সাধারণ মানুষের প্রয়োজন ছাড়াও মিড-ডে মিল, সুসংহত শিশু বিকাশ প্রকল্পে প্রচুর আলু দরকার। এ বার নতুন আলু উঠতে জানুয়ারি হয়ে যাবে। তত দিন আলু মজুত রাখতেই হবে। তাই হিমঘরে আলু রাখার সময়সীমা ১৫ দিন বাড়ানো হয়েছে।

http://www.anandabazar.com/13raj1.html


জোগান স্বাভাবিক হলেও আলুর মান নিয়ে বিতর্ক

নিজস্ব প্রতিবেদন

বাজারে আলুর জোগান প্রায় স্বাভাবিক হয়ে এলেও তার মান নিয়ে ক্রেতাদের একাংশের ক্ষোভ বাড়ছে। রাজ্য সরকার অবশ্য খোলা বাজারে সরকারের পাঠানো আলুর মান খারাপ বলে মানতে রাজি নয়। সোমবার নবান্নে মুখ্যমন্ত্রীর উপস্থিতিতে টাস্কফোর্সের বৈঠকের পরে রাজ্যের মুখ্যসচিব সঞ্জয় মিত্র এ ব্যাপারে ওঠা অভিযোগ উড়িয়ে বলেন, "ওই আলু পরীক্ষা করে দেখা হয়েছে। মান খারাপ বলে যে অভিযোগ উঠেছে, তা ভিত্তিহীন।"

মুখ্যসচিব এমন দাবি করলেও কলকাতা-সহ বিভিন্ন জেলায় ক্রেতাদের একাংশ কিন্তু সরকারি উদ্যোগে বিক্রি হওয়া আলুর মান নিয়ে সরব। তাঁদের অভিযোগ, সরকারের নির্ধারিত ১৩ টাকা কেজি দরে বিক্রি হওয়া আলুর মধ্যে অনেক পচা-গলা আলুও থাকছে। কিন্তু বাজারে ১৫-১৬ টাকা কেজি দরে যে আলু বিক্রি হচ্ছে, তার মান ঠিকঠাক থাকছে। ক্রেতাদের একাংশের প্রশ্ন, হিমঘর থেকে সরকার যদি জ্যোতি আলু বার করিয়ে আনে, তা হলে এত খারাপ আলু আসছে কোথা থেকে? তাঁদের সন্দেহ, সরকারি আলুর বস্তার ক্ষেত্রে জনাকয়েক অসাধু ব্যবসায়ী কিছু ভাল আলুর মধ্যে পচা আলুও মিশিয়ে দিচ্ছেন। ফলে ১৩ টাকা দরে দেড় কেজি আলু কিনলে কাজে লাগার মতো আলু দাঁড়াচ্ছে কমবেশি এক কেজি। হরেদরে যার দাম কেজিপ্রতি ২০ টাকার কম হচ্ছে না।

আলু ব্যবসায়ীদের একাংশের ব্যাখ্যা অন্য। তাঁদের অভিযোগ, এ জন্য পরোক্ষে দায়ী সরকারই। হিমঘরে দীর্ঘদিন থাকা আলুর একাংশে সামান্য পচন ধরতেই পারে। কারণ, অনেকেই ভাল-খারাপ বাছাই না করে হিমঘরে আলু তোলেন। কিন্তু হিমঘর থেকে বার করার আগে তা ভাল ভাবে বাছাই করা হয়। যে আলু বাজারে পাঠানো হবে, তা আগের দিন রাতে বাতানুকূল ঘর থেকে থেকে বার করে ঢেলে দেওয়া হয় হিমঘরের বারান্দায়। তার পরে পাখা চালিয়ে চলে শুকোনোর পালা। পচা আলুকে এক জায়গায় রাখা হয়, ভাল আলু অন্যত্র সরিয়ে রাখা হয়। এর পরে ভাল আলু বস্তাবন্দি করা হয়। আলু ব্যবসায়ীদের বক্তব্য, সরকার আলুর দাম নির্দিষ্ট করে দেওয়ার পরে তাঁদের পক্ষে বাছাই করা কার্যত অসম্ভব হয়ে দাঁড়াচ্ছে। কৃষি বিপণন দফতরের এক কর্তা জানিয়েছেন, মান নিয়ে ক্রেতাদের একাংশের অভিযোগের যথার্থতা বুঝতে আরও দু'-এক দিন সময় লাগবে।

মানের মতো দাম নিয়েও বিতর্ক পিছু ছাড়ছে না। রাজ্যের আলু পরিস্থিতি অনেকটাই স্বাভাবিক হয়েছে বলে দাবি করেছেন মুখ্যসচিব। কিন্তু সর্বত্র যে সরকার নির্ধারিত দামে আলু বিক্রি হচ্ছে না, এ দিন উত্তর ২৪ পরগনার বারাসতের ঘটনা তারই প্রমাণ। জেলা প্রশাসন সূত্রের খবর, এ দিন পুলিশের কাছে লিখিত অভিযোগ দায়ের করে বারাসতের শিমুলতলার বাসিন্দা পম্পা বড়ুয়া জানান, স্টেশন সংলগ্ন বড় বাজারে আলুর দাম বেশি নেওয়া হচ্ছিল। প্রতিবাদ করায় তাঁকে ও ছেলে শুভকে হেনস্থা করা হয়। এই ঘটনায় কাউকে গ্রেফতার করা হয়নি বলেও তাঁর অভিযোগ।

শুভ বড়ুয়ার অভিযোগ, "বাজারে ১৬ টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু বিক্রি হচ্ছিল। আমরা বলি, মুখ্যমন্ত্রী ১৩ টাকা করে আলু বিক্রির কথা বলেছেন। আপনারা বেশি নিচ্ছেন কেন? এ নিয়েই তর্কাতর্কি বাধে। হঠাৎই দোকানিরা আমার মাকে অকথ্য ভাষায় গালাগাল দিতে শুরু করে। আমাদের সঙ্গে ধাক্কাধাক্কি হয়। এর পরেই কয়েক জন মিলে আমাকে মারধর করে।"

এই পরিস্থিতিতে আলুর সরবরাহ ও সরকার নির্ধারিত দরে আলু কেনাবেচার বিষয়টি সুনিশ্চিত করতে টাস্কফোর্সের একটি 'সাব কমিটি' গঠন করা হয়েছে। মুখ্যসচিবকে মাথায় রেখে ওই কমিটিতে থাকছেন কৃষিসচিব, ডিজি (এনফোর্সমেন্ট), কলকাতার পুলিশ কমিশনার এবং আলু ব্যবসায়ীরা। মুখ্যসচিব বলেন, "আলুর বাজার অনেকটাই স্বাভাবিক হয়েছে। তবে কিছু জায়গায় এখনও সমস্যা হচ্ছে। সদ্য গঠিত সাব-কমিটি এখন থেকে আলু সংক্রান্ত সমস্ত বিষয়ই দেখভাল করবে।''

এ দিনই মুখ্যসচিব জানান, আগে ৩০ নভেম্বর পর্যন্ত হিমঘরে আলু মজুত রাখার মেয়াদ নির্দিষ্ট করা হয়েছিল। এ দিন টাস্কফোর্সের বৈঠকে বাজারের সর্বশেষ পরিস্থিতি পর্যালোচনা করে হিমঘরে আলু মজুত রাখার মেয়াদ আরও পনেরো দিন বাড়ানোর সিদ্ধান্ত হয়েছে। সরকারের এই সিদ্ধান্ত নিয়েও প্রশ্ন উঠেছে। অনেকেই বলছেন, যেখানে নতুন আলু ওঠার সময় হয়ে গেল, সেখানে কেন হিমঘরে আলু মজুত রাখার সময়সীমা বাড়াল সরকার? কৃষি দফতরের ব্যাখ্যা, এ বার বন্যা পরিস্থিতির জন্য মূল তিন আলু উৎপাদক জেলা পশ্চিম মেদিনীপুর, বর্ধমান ও হুগলিতে আলু চাষ দেরিতে শুরু হয়েছে। ফলে, এ বার রাজ্যের সুপার সিক্স (এস-৬) প্রজাতির আলু বাজারে আসতে জানুয়ারি মাসের মাঝামাঝি হয়ে যাবে। তাই আলুর সরবরাহ স্বাভাবিক রাখতেই মেয়াদ বাড়ানো হয়েছে।

সরকারি ঘোষণায় চিন্তায় পড়েছেন হিমঘর মালিকদের একাংশ। তাঁদের বক্তব্য, চাষি বা আলু ব্যবসায়ীদের সঙ্গে তাঁদের আলু রাখার চুক্তি রয়েছে ৩০ নভেম্বর পর্যন্ত। সরকার হিমঘরে আলু রাখার মেয়াদ বাড়ানোয় বাড়তি ১৫ দিনের জন্য হিমঘরপিছু তাঁদের অন্তত আড়াই লক্ষ টাকা করে খরচ হবে। এক হিমঘর মালিকের কথায়, "দু'বছর আগে আমরা সরকারি নির্দেশ মেনে অতিরিক্ত এক মাস আলু রেখেছিলাম। সে বাবদ প্রাপ্য টাকা আজও পাইনি। এ বার কী হবে, তা নিয়ে সংশয়ে রয়েছি।" তিনি জানান, অতিরিক্ত দিনগুলির ভাড়া সরকার দেবে না আলু মজুতকারীরা, তা জানতে চেয়ে সংগঠনের তরফে মুখ্যমন্ত্রীকে স্মারকলিপি দেওয়া হবে।

টাস্কফোর্সের বৈঠকে ভিন্ রাজ্যে আলু পাঠানোর উপর সরকারের নিষেধাজ্ঞা আপাতত বলবৎ থাকবে বলেই ঠিক হয়েছে। তবে এ ব্যাপারে আগের তুলনায় কিছুটা হলেও নরম হওয়ার ইঙ্গিত দিয়েছেন প্রশাসনের কর্তারা। মুখ্যসচিবের কথায়, "ভিন্-রাজ্যে আলু পাঠানোর উপরে রাজ্যের নিষেধাজ্ঞা বহালই থাকছে। তবে সরকারের অনুমোদন নিয়ে অন্য রাজ্যে আলু পাঠানো যেতে পারবে।'' কিন্তু অন্য রাজ্যে আলু না-পাঠানোয় এ রাজ্যে ডিম ও মাছ আসাও তো বন্ধ হয়েছে? জবাবে মুখ্যসচিব বলেন, "আমাদের কাছে কোনও তথ্য নেই। আমরা প্রতিবেশী রাজ্যের সঙ্গে নিয়মিত যোগাযোগ রেখে চলছি।" তিনি জানান, রাজ্যের হিমঘরগুলিতে এই মুহূর্তে ১৩ লক্ষ ৭০ হাজার টন আলু রয়েছে। বাইরের রাজ্যে আলু না-গেলে আরও আড়াই মাস রাজ্যবাসীর চাহিদা মেটানো সম্ভব।

মুখ্যসচিব এ দিন বলেন, "রাজ্যে সাম্প্রতিক আলু সমস্যা তৈরির পিছনে রয়েছে কিছু অসাধু ব্যবসায়ীর চক্রান্ত। চার-পাঁচ জন অসাধু আলু ব্যবসায়ীর বিরুদ্ধে সুনির্দিষ্ট কিছু অভিযোগও পাওয়া গিয়েছে। তাঁদের বিরুদ্ধে কড়া ব্যবস্থা নেওয়া হবে।" টাস্ক ফোর্সের এ দিনের বৈঠকে আলু ব্যবসায়ীদের তরফে গুরুপদ সিংহ অভিযোগ করেন, পুলিশের একাংশের মদতে আলুভর্তি ট্রাক ভিন্-রাজ্যে চলে যাচ্ছে। মুখ্যমন্ত্রী বিষয়টি খতিয়ে দেখতে রাজ্য পুলিশের ডিজি জিএমপি রেড্ডিকে নির্দেশ দেন। পরে গুরুপদবাবু বলেন, "আমার কাছে যে খবর পৌঁছেছে, সেটাই আমি বৈঠকে মুখ্যমন্ত্রীকে জানিয়েছি। বলেছি, পুলিশের একাংশের মদতে বিহার, ঝাড়খণ্ড এবং ওড়িশা সীমান্ত দিয়ে আলু অন্য রাজ্য চলে যাচ্ছে।"

http://www.anandabazar.com/archive/1131112/12raj2.html


দামে লাগাম দিতে বাজারে এ বার সরকারি সব্জি

অনুপ চট্টোপাধ্যায়

লুর পরে শহরের পুর-বাজারে এ বার সব্জি বিক্রির ব্যবস্থা করছে রাজ্য সরকার। লক্ষ্য, ফড়ে ছাড়াই সরাসরি চাষির কাছ থেকে সব্জি ক্রেতার হাতে পৌঁছে দেওয়া। তাতে দরেও সস্তা হবে এবং চাষিরাও কিছুটা লাভের মুখ দেখবেন বলে মনে করছেন সরকারি কর্তারা। মঙ্গলবার রাজ্য সরকারের উদ্যান পালন দফতর ও কলকাতা পুরসভার বৈঠকে এই সিদ্ধান্ত হয়েছে। সব্জির অগ্নিমূল্যের কথা ভেবেই সরকার-অনুমোদিত চাষি সমবায়কে শহরে সরাসরি সব্জি বিক্রি করার কাজে যুক্ত করার এই উদ্যোগ।

এ দিন পুরসভার বাজার দফতরের সঙ্গে বৈঠক করেন উত্তর ও দক্ষিণ ২৪ পরগনা জেলার উদ্যান পালন অফিসার। সেখানে ঠিক হয়েছে, দিন চারেকের মধ্যেই শহরের ১৮টি বাজারে একটি করে সব্জির দোকান চালু হবে। সেখানে নানা ধরনের সব্জি বিক্রি করবেন চাষিরাই। পুরসভার মেয়র পারিষদ (বাজার) তারক সিংহ বলেন, "উত্তর কলকাতায় ৬টি এবং দক্ষিণ কলকাতার ১২টি বাজারে পুরসভা জায়গা দেবে। সেখানেই চাষিরা সব্জি বিক্রি করবেন।" উদ্যান পালন দফতরের দাবি, বাজারের অন্য ব্যবসায়ীদের চেয়ে ওই দোকানগুলিতে কেজি প্রতি অন্তত তিন থেকে পাঁচ টাকা কমে সব্জি পাবেন ক্রেতারা।

*

সম্প্রতি আলুর দর অস্বাভাবিক বাড়তে থাকায় রীতিমতো সমস্যায় পড়েন ক্রেতারা। তার পরেই মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় জ্যোতি আলুর দর কেজি প্রতি ১৩ টাকায় বেঁধে দেন। সেই নির্দেশ পালন করতে সরকার শহরের বাজারগুলিতে খুচরো ব্যবসায়ীদের হাতে ১১ টাকা কিলো দরে আলু তুলে দেয়। শর্ত, ১৩ টাকা কিলো দরে তা বিক্রি করতে হবে। সেই ব্যবস্থা এখনও চলছে। এ দিকে, আলুর পাশাপাশি অন্যান্য সব্জির দরও চরম বেড়েছে বলে ইতিমধ্যেই নানা অভিযোগ পৌঁছেছে সরকারের কাছে। টাস্ক ফোর্সের একাধিক সদস্য অবশ্য এ ব্যাপারে কোনও পদক্ষেপ করেননি। বরং বলেছেন, "একটু অপেক্ষা করুন। শীতের সব্জি বাজারে ঢুকলেই দাম কমবে।" উদ্যান পালন দফতরের এক কর্তা বলেন, "অন্য বছরের তুলনায় এ বার সব্জির দর অনেকটাই বেড়েছে। এবং সেই দাম ক্রমাগত বেড়েই চলেছে। তাতে লাগাম দিতে শহরের কয়েকটি বাজারে চাষিদের মাধ্যমে সব্জি বিক্রির সিদ্ধান্ত নেওয়া হল।"

কিন্তু এত দেরিতে কেন? ওই কর্তার কথায়, "সরকারি নির্দেশ মেনেই কাজ হচ্ছে। এ সব করতে হলে কিছুটা সময় লাগেই। এর বেশি আর কিছু বলা সম্ভব নয়।" যদিও পুরসভার এক অফিসার বলেন, "আলুর দর নিয়ন্ত্রণের সময়েই সব্জি বিক্রি শুরু হলে অনেকে উপকৃত হতেন।"

কারা বিক্রি করবেন ওই সব্জি?

উদ্যান পালন দফতর সূত্রের খবর, সরকারের উদ্যোগে রাজ্যের সাতটি জেলায় আগ্রহী চাষিদের নিয়ে সব্জি উৎপাদক সংগঠন (ভেজিটেবল প্রোডিউসার অর্গানাইজেশন) গড়া হয়েছে। প্রতিটি জেলায় ১০-১৫ জন চাষিকে নিয়ে এমন এক একটি সংগঠন হয়েছে। দক্ষিণ ২৪ পরগনার ভাঙড়-২ নম্বর ব্লকে ১৭৫০ জন চাষি যুক্ত হয়েছেন। উত্তরে বারাসত-২, হাবড়া-২ ও আমডাঙায় ওই কাজে নেমেছেন ১২৫০ জন চাষি। এই সংগঠনের সঙ্গে যুক্ত চাষিদের উদ্যান পালন দফতর প্রশিক্ষণ দিয়েছে। এমনকী চাষের কাজে ভতুর্কিও দেওয়া হয়েছে। তাঁরাই নিজেদের জমিতে সব্জির চাষ করেন। সেই সব্জি বিভিন্ন স্থানে বিক্রি করতে গাড়ি কেনার জন্যও ভর্তুকি দিয়েছে সরকার। সেই গাড়িতেই সব্জি নিয়ে বাজারে সরবরাহ করেন চাষিরা। এমনকী, সব্জি সতেজ রাখতে শীতাতপনিয়ন্ত্রিত গাড়িও দেওয়া হয়েছে চাষিদের।

কী কী সব্জি মিলবে পুর-বাজারে?

উদ্যান পালন দফতর সূত্রের খবর, ফুলকপি, বাঁধাকপি, পালং, উচ্ছে, বেগুন, শিম, ঢ্যাঁড়স-সহ আলু ও পেঁয়াজও বিক্রি করবেন চাষিরা। দফতরের আধিকারিকদের দাবি, চাষিদের থেকে সরাসরি সব্জি বাজারে এলেই অন্য ব্যবসায়ীরাও কিছুটা দাম কমাতে বাধ্য হবেন। কিন্তু কম দরে বিক্রি করলে বাজারের অন্য ব্যবসায়ীরা তাঁদের বাধা দেবেন না তো?

এমন ঘটনা যে হয়নি তা নয়, জানালেন পুরসভারই এক কর্তা। তাঁর কথায়, "সম্প্রতি শ্যামবাজারে ওই চাষিরা একটা দোকান খুলেছিলেন। দু'দিন পরেই ওই বাজারের কয়েক জন ব্যবসায়ী তাঁদের ভয় দেখিয়ে তুলে দেন।" যদিও এ বার কেউ তা করলে পুর-প্রশাসন প্রয়োজনীয় ব্যবস্থা নেবে বলে তারকবাবু জানিয়েছেন।

http://www.anandabazar.com/13bus1.html


চলছে সরকারি হানা, সব্জি বাজার আগুনই

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

নফোর্সমেন্ট শাখার কর্তারা বাজারে ঘুরলেও সব্জির দাম এখনও লাগামছাড়া। শনিবার শিয়ালদহের খুচরো বাজারে বেগুনের দর ছিল প্রতি কিলোগ্রাম ৬০ টাকা, পটল ৪০ টাকা, ঢেঁড়স ৬০ টাকা। পুজোর দিনগুলিতে ক্রেতার হাত পুড়েছে সব্জির দামে। অনেকেই ভেবেছিলেন পুজোর পর হয়তো দর কিছুটা কমবে। কিন্তু তার লক্ষণ নেই।

মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় নির্দেশ দিয়েছিলেন, পুজোর সময় সব্জির দাম নিয়ন্ত্রণে রাখতে হবে। কিন্তু তা কার্যকর করতে না পেরে গত সপ্তাহ থেকে শহরের বিভিন্ন বাজারে সব্জির দর নিয়ন্ত্রণে আনতে অভিযান শুরু করে এনফোর্সমেন্ট শাখা। ওই দফতরের এক পদস্থ কর্তার কথায়, "আমাদের উপস্থিতিতে সাময়িক ভাবে দাম কমাচ্ছে। বাজার থেকে চলে যাওয়ার পর ফের তা বাড়িয়ে দেওয়া হচ্ছে।" অর্থাৎ এনফোর্সমেন্ট শাখার কর্মীরা যতই অভিযান চালান, দাম নিয়ন্ত্রণ করা যে কঠিন কাজ, হাড়ে হাড়ে তা টের পাচ্ছেন তাঁরা। ওই কর্তাদের মতে, পাইকারি বাজারে দাম অনেকটাই নিয়ন্ত্রণে। কিন্তু সাধারণ মানুষ যেখান থেকে সব্জি কেনেন, সেই বাজারগুলিতে দর কমছে না। কেন কমছে না, তা জানতে এনফোর্সমেন্ট কর্তাদের সঙ্গে এ দিন বাজারে ঘোরেন খাদ্য প্রক্রিয়াকরণ দফতরের সচিব চন্দ্রমোহন বাচোয়াত।

*

কোলে মার্কেটে চলছে সরকারি পর্যবেক্ষণ। —নিজস্ব চিত্র।

সব্জির দর নিম্ন ও মধ্যবিত্তের নাগালের মধ্যে রাখতে মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় বছর খানেক আগেই একটি টাস্ক ফোর্স গঠন করেছেন। মাছ বা মাংসের দাম বাড়ার পরে একাধিক বার সক্রিয় হয়েছে ওই টাস্ক ফোর্স। মুখ্যমন্ত্রী নিজেও টাস্ক ফোর্সের কাছ থেকে নিয়মিত সব্জি, মাছ ও মাংসের বাজার দর নিয়ে খোঁজ নেন। কখনও বা টাস্ক ফোর্সের বৈঠকে হাজির থেকে দাম কমানো নিয়ে নানা নির্দেশ দেন।

কিন্তু পুজোর ঠিক আগে থেকে যে ভাবে সব্জির দাম বাড়ছে তাতে চরম অসুবিধায় পড়েছেন অনেকেই। এমনকী টাস্ক ফোর্সও কোনও মতেই তা নিয়ন্ত্রণ করতে পারছে না। টাস্ক ফোর্সের অন্যতম সদস্য রবীন্দ্রনাথ কোলের মতে, নভেম্বরে নতুন সব্জি না আসা পর্যন্ত দাম কমার সম্ভবনা কম। স্বভাবতই সাধারণ মানুষের দুর্ভোগ কমার সম্ভাবনাও দেখা যাচ্ছে না।

সব্জির দর নিয়ন্ত্রণে আনতে এ দিন প্রথম পথে নামলেন খাদ্যপ্রক্রিয়াকরণ দফতরের সচিব। তিনি বলেন, "দর নিয়ন্ত্রণের কাজ শুরু হয়েছে। আগামী কয়েক দিন ধরে তা চলবে। শহরের প্রতিটি বাজারে ঘুরবে এনফোর্সমেন্টের লোকজন।" টাস্ক ফোর্সের এক সদস্য জানান, কোনও সব্জি-বিক্রেতা বেশি দাম নিলে তাঁর বিরুদ্ধে আইনানুগ ব্যবস্থা নেওয়া হবে। শাস্তিমূলক ব্যবস্থা চালু হলেই সব্জির বাজারে দর নিয়ন্ত্রণে রাখা সম্ভব হবে বলে মনে করেন একাধিক সরকারি অফিসার।

এ দিন কোলে মার্কেটে ঘুরে সরকারি অফিসারেরা দেখেছেন, পাইকারি বাজার দরের চেয়ে খোলা বাজারের কোথাও কোথাও তিন-চার গুণ বেশি দরে সব্জি বিক্রি হচ্ছে। কেন এমন হচ্ছে, সেই প্রশ্নের উত্তর অবশ্য দেননি খাদ্য প্রক্রিয়াকরণ সচিব। তবে সচিব ও অন্য সরকারি অফিসারেরা কোলে মার্কেট ঘুরে দেখেছেন, আদার পাইকারি মূল্য ছিল পাল্লা (৫ কেজি) প্রতি ৩৫০ টাকা (অর্থাৎ দর পড়ছে প্রতি কিলোগ্রাম ৭০ টাকা)। আর ওই বাজার লাগোয়া খোলা বাজারে পাঁচ কিলোগ্রামের দাম ৫০০ টাকা। অর্থাৎ প্রতি কিলোগ্রাম ১০০ টাকা। আবার সেই আদা মানিকতলা, বিধাননগরে বিকোচ্ছে প্রতি কিলোগ্রাম ১৮০ টাকায়। লঙ্কার দর কোলে মার্কেটে পাল্লা প্রতি ১২০ টাকা, অর্থাৎ কেজি প্রতি ২৪ টাকা। বাইরেই তা বিক্রি হচ্ছে কেজি প্রতি ৪০ টাকা দরে। শহরের কোনও কোনও বাজারে তার দাম হয়ে যাচ্ছে কেজি প্রতি ১০০ টাকাও। পেঁয়াজ (বড়) কোলে মার্কেটে যেখানে ৪৫ টাকা কেজি সেখানে ওই বাজারেরই বাইরে তা বিক্রি হচ্ছে ৬০ টাকা দরে। শহরের অন্য বাজারগুলিতে পেঁয়াজ বিক্রি হচ্ছে ৭০ টাকা কিলোগ্রাম দরে। বেগুনের পাইকারি দর ছিল প্রতি কিলোগ্রাম ৫০ টাকা। খোলা বাজারে বিক্রি হয়েছে ৬০ টাকায়।

http://www.anandabazar.com/archive/1131020/20bus1.html



এ যাত্রায় কংগ্রেস ছাড়া গতি নেই

কংগ্রেসের সঙ্গে জোট বাঁধতে না পারলেও একটা বোঝাপড়ায় আসা বামপন্থীদের পক্ষে ভাল।

তাতে অস্তিত্বের সংকটে পড়তে হবে না অন্তত। তবে, তৃতীয় ফ্রন্ট বহু দূরের স্বপ্ন।

অমিতাভ গুপ্ত

দর্শের মিলই যদি নির্বাচনী জোটের প্রধান বিবেচ্য হয়, তবে ২০১৪ সালে জোটসঙ্গী হিসেবে বামপন্থীদের প্রথম পছন্দ কার হওয়ার কথা, তা নিয়ে তর্কের কোনও অবকাশই নেই। তাঁর নাম মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বাসভাড়া হোক বা খুচরো ব্যবসায় বিদেশি পুঁজি, ডিজেলে ভর্তুকি থেকে পেনশন খাতে সংস্কার, নিত্যপ্রয়োজনীয় পণ্যের মূল্য নিয়ন্ত্রণে সরকারের প্রত্যক্ষ ভূমিকায় বিশ্বাস সব প্রশ্নেই মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের বামপন্থা নিখাদ, আগমার্কা। কিন্তু, আদর্শের এহেন মোক্ষম মিলও যেহেতু কালীঘাট আর আলিমুদ্দিন স্ট্রিটের মধ্যে সেতু বাঁধতে পারবে না, ফলে প্রকাশ কারাটদের অন্য জোটসঙ্গীই খুঁজতে হবে।


দিল্লি দূর অস্ত

সর্বভারতীয় রাজনীতিতে প্রাসঙ্গিক থাকতে হলে জোট ছাড়া বামপন্থীদের উপায় নেই। তাঁরা ফের তৃতীয় ফ্রন্টের মঞ্চ সাজাতে উঠেপড়ে লেগেছেন বটে, কিন্তু সেই পশ্চিমবঙ্গও নেই, লোকসভায় সেই ষাট আসনের দাপটও থাকবে না। সীতারাম ইয়েচুরি নিজেই স্বীকার করেছেন, যে দলগুলোকে নিয়ে তাঁরা তৃতীয় ফ্রন্ট গড়ার স্বপ্ন দেখেন, সেই আঞ্চলিক দলগুলির অধিকাংশই সুবিধাবাদী। ফলে, নির্বাচনের পর যখন জোট ভাঙা-গড়ার খেলা আরম্ভ হবে, সেই খেলায় গুরুত্বপূর্ণ ভূমিকা পেতে গেলে দলের সাইনবোর্ডটুকু থাকলেই হবে না, সাংসদও প্রয়োজন হবে। ২০১৪ সালে কংগ্রেস এবং বিজেপি, উভয় পক্ষই 'ছোট' দলগুলির মুখাপেক্ষী হবে, ঠিকই, যে ছোট দলগুলির হাতে সংখ্যা থাকবে, কেবলমাত্র তাদের। সেই হিসেবে, ২০১৪ সালের বসন্ত-গ্রীষ্মে দিল্লিতে এক বামপন্থীর প্রবল প্রতাপ থাকার সম্ভাবনা। তিনি মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।

*

পথ কোথায়? প্রকাশ কারাট ও সীতারাম ইয়েচুরি।

ক্ষমতার সমীকরণ অদলবদলের সেই ঋতুতে প্রাসঙ্গিক থাকতে হলে, অতএব, হাতে যথেষ্ট আসন রাখতে পারা ছাড়া সিপিএম-এর বিকল্প নেই। সেখানেই পশ্চিমবঙ্গের গুরুত্ব। কেরল আর ত্রিপুরা আছে বটে, কিন্তু লোকসভায় সিপিএম-এর এযাবৎ কালের দাপট মূলত পশ্চিমবঙ্গ-নির্ভর ছিল। তার প্রথম কারণ, কেরল আর ত্রিপুরার সম্মিলিত লোকসভা আসনের সংখ্যা পশ্চিমবঙ্গের অর্ধেকের চেয়ে মাত্র একটি বেশি। দ্বিতীয় কারণ, কেরলে বিধানসভায় এল ডি এফ ক্ষমতায় থাকুক আর না-ই থাকুক, লোকসভা নির্বাচনে, কেবলমাত্র ২০০৪ সাল ছাড়া, বামপন্থীরা কখনও মারাত্মক ভাল ফল করেননি। অতএব, লোকসভায় নিজের শক্তিতে দাপট চাইলে পশ্চিমবঙ্গই ভরসা। সে গুড়ে আপাতত তৃণমূল কংগ্রেস। ২০১৪ সালে একা লড়লে ২০০৯-এর তুলনায় ফল খারাপ হওয়ার সম্ভাবনাই তুমুল।

পশ্চিমবঙ্গের বামপন্থীরা অবশ্য বলতে পারেন, হিসেব অত সহজ নয়। এ বার যদি তৃণমূলের সঙ্গে কংগ্রেসের জোট না হয়, এবং বিজেপি যদি অন্তত তার স্বাভাবিক ভোটটুকু পায়, তা হলে ভোট ভাগাভাগির অঙ্কে বামফ্রন্টের আসনসংখ্যা বাড়তে পারে। বেশ কয়েকটা লোকসভা আসনকে চিহ্নিতও করে ফেলা যায়, যেখানে একক শক্তিতে লড়তে হলে তৃণমূলকে মুশকিলে পড়তে হবে। সেই মুশকিলে বামপন্থীদের লাভ। কাগজ-কলমের হিসেবে এই অঙ্কটাকে একেবারে উড়িয়ে দেওয়া মুশকিল। কিন্তু, ভগ্নাংশ আর ত্রৈরাশিকের এই জটিল অঙ্কে একদা লাল দুর্গ এই পশ্চিমবঙ্গে বামপন্থীরা দাঁড়ানোর জমি খুঁজছেন, এটা এক অর্থে ঐতিহাসিকই বটে।

এই অনিশ্চিত সমীকরণের হাতে ভবিষ্যৎ গচ্ছিত না রাখতে চাইলে বামপন্থীদের সামনে নির্বাচনের আগেই জোট গড়া ছাড়া বিকল্প নেই। এবং, এমন সঙ্গীর সঙ্গে জোট, যার পশ্চিমবঙ্গে খানিক হলেও উপস্থিতি আছে। অক্টোবরের শেষে দিল্লিতে যে মঞ্চে তৃতীয় ফ্রন্টের একটা প্রাথমিক মহড়া হল, তার বিজু জনতা দল, এআইএডিএমকে, জনতা দল ইউনাইটেড, অথবা সমাজবাদী পার্টি বা এনসিপি কেউই বামপন্থীদের পশ্চিমবঙ্গের বৈতরণী পার করতে পারবে না। পশ্চিমবঙ্গে পায়ের তলায় মাটি পেতে গেলে বামফ্রন্টের বাইরের কোনও দলের ওপর নির্ভর না করে উপায় নেই রাজ্যের বামপন্থীদের এই কথাটি মানতে কষ্ট হবে। কিন্তু বাস্তব যখন, তাকে মেনে নেওয়াই ভাল। এই অবস্থায় বামপন্থীদের সামনে বিকল্প মাত্র একটি তার নাম কংগ্রেস। জোট না হোক, কংগ্রেসের সঙ্গে অন্তত একটা বোঝাপড়াও তাঁদের সুবিধাজনক জায়গায় নিয়ে যেতে পারে।


স্বাভাবিক মিত্র

এই কথাটি প্রকাশ কারাটের মনপসন্দ হবে না। তিনি দিনকয়েক আগেও বললেন, সামনে দুই শত্রু দুর্নীতিগ্রস্ত কংগ্রেস এবং সাম্প্রদায়িক বিজেপি। কারাটের মতে কংগ্রেসের আরও এক দফা পাপ আছে তাদের ভ্রান্ত নীতিতে দেশের ক্ষতি হয়েছে। কংগ্রেস ও বিজেপি, দু'দলকেই হারাতে হবে। তাঁর এই কংগ্রেস-বিরোধিতায় ২০০৯ সালে সিপিএম যথেষ্ট ভুগেছে। সে বার তবুও অস্তিত্বের সংকট ছিল না। এ বারও প্রকাশ কারাটই শিরোধার্য হলে বিপদ আছে।

কেন কংগ্রেসই সিপিএম এবং অন্যান্য বামপন্থী দলগুলির 'স্বাভাবিক মিত্র', তার অনেকগুলো কারণ রয়েছে। প্রথমত, কারাট যতই কংগ্রেসকে 'বাজার অর্থনীতির ধামাধরা' বলে গাল পাড়ুন, একুশ শতকের মাপকাঠিতে কংগ্রেস রীতিমত সমাজতান্ত্রিক অর্থনীতিতে বিশ্বাসী। কারাটও অস্বীকার করতে পারেননি যে প্রথম দফার ইউপিএ সরকার সাধারণ মানুষের জন্য অনেক করেছে। ২০০৯ সালের পর, যখন থেকে সংখ্যায় অনেক ক্ষীণ সিপিএম ফের বিরোধী আসনে বসতে আরম্ভ করল, দ্বিতীয় ইউপিএ সরকার উন্নয়নের অর্থনীতির ভাষ্যটি সম্পূর্ণ বদলে দিল। সাধারণ মানুষের জন্য উন্নয়নকে আর রাজনীতিকদের সদিচ্ছার মুখাপেক্ষী না রেখে তাকে অধিকারের মর্যাদা দেওয়া হল। তাতে কতটা কাজ হয়েছে, সর্বগ্রাসী দুর্নীতি তার সুফলগুলোকে গিলে খেয়েছে কি না, এই প্রশ্নগুলোর কোনওটাই অস্বীকার করার নয়। কিন্তু বিশ্বের দ্বিতীয় জনবহুলতম দেশের সরকার যদি সিদ্ধান্ত করে যে দেশের জনসংখ্যার দুই-তৃতীয়াংশের খাদ্য সংস্থানের দায়িত্ব অতঃপর আইনি ভাবেই ক্ষমতাসীন সরকারকে বহন করতে হবে, তার অভিঘাত মারাত্মক। ২০১৪ সালে এবং তার পরের লোকসভা নির্বাচনগুলিতে যে দলই ক্ষমতায় আসুক, উন্নয়নের অধিকারকে অস্বীকার করা কারও পক্ষেই সম্ভব হবে না।

শিক্ষা হোক বা খাদ্য এই প্রাথমিক বিষয়গুলিকে মানুষের অধিকার হিসেবে স্বীকৃতি দেওয়ার দাবি তো বামপন্থীদের তোলার কথা ছিল। কারাটদের চাপ ছাড়াই ইউপিএ সরকার এই কাজগুলি করেছে। লাতিন আমেরিকার সমাজতন্ত্রী দেশগুলিতে যে প্রত্যক্ষ নগদ হস্তান্তর প্রকল্প বেশ সফল হয়েছে, ভারতের গরিব মানুষদের জন্য এই প্রকল্প নিয়ে আসার কৃতিত্বও ইউপিএ সরকারের। এর পরও যদি কংগ্রেসকে আদর্শগত ভাবে কাছের বলে মনে না হয়, তা হলে সেটা প্রকাশ কারাটদের মনের সমস্যা।


কে প্রথম

দ্বিতীয়ত, কংগ্রেস কখনও সিপিএম-এর জন্য দরজা বন্ধ করেনি। প্রধানমন্ত্রী একাধিক বার বলেছেন, সঙ্গী হিসেবে বামপন্থীরা স্থিতিশীল। কোন দলের সঙ্গে তুলনা করে বলেছেন, অনুমান করার জন্য বাড়তি নম্বর নেই। আকবর রোডের হাইকম্যান্ড বিলক্ষণ জানে, পশ্চিমবঙ্গে একা লড়লে আসনসংখ্যা দুই পেরোবে না। ফলে, কংগ্রেস জোট চায়। সিপিএম বোঝাপড়া থেকে সরে থাকলে তৃণমূলের সঙ্গেও জোট হতে পারে। সেটা বঙ্গজ বামপন্থীদের পক্ষে আনন্দের হবে না।

শুধু মুখের কথাই নয়, কংগ্রেস অনেক ভাবে সিপিএম-এর জন্য দরজা খুলে রেখেছে। তার সাম্প্রতিকতম উদাহরণ হল চেন্নাই, কলকাতাসহ ছ'টি বিমানবন্দরের বেসরকারিকরণের কাজ স্থগিত রাখা। বেসরকারিকরণের সিদ্ধান্তটি সরকারি ছিল। সংসদীয় কমিটির প্রধান সীতারাম ইয়েচুরি তাতে নীতিগত আপত্তি জানিয়েছেন যে প্রক্রিয়ায় রাষ্ট্রায়ত্ত সম্পদ বেসরকারি হাতে চলে যাবে, তিনি তাঁর বিরোধী। কমিটির সুপারিশ না মানার অধিকার সরকারের বিলক্ষণ আছে। কংগ্রেস সে পথে হাঁটেনি। ইয়েচুরির আপত্তি মেনে নিয়ে সিদ্ধান্তটি জানুয়ারি পর্যন্ত স্থগিত রেখেছে। রাস্তা খোলা থাকল জানুয়ারিতেও খানিক তানানানা করে লোকসভা নির্বাচনের দিন ঘোষণা অবধি সিদ্ধান্তটি ঝুলিয়ে রাখা যাবে। আর তার পর নির্বাচনী বিধি মেনেই আর এই সিদ্ধান্ত করা চলবে না। বেসরকারিকরণ নিয়ে বামপন্থীদের নৈতিক আপত্তি সম্পূর্ণ বজায় থাকবে তাতে।

জমি বিলের ক্ষেত্রে বামপন্থীদের পরামর্শ মেনেছে সরকার। এলপিজি-র ভর্তুকিপ্রাপ্ত সিলিন্ডারের সংখ্যা ছয় থেকে বাড়িয়ে নয় করেছে। ডিজেলের দাম যতটা বাড়ানোর সিদ্ধান্ত হয়েছিল, তার চেয়ে খানিক হলেও পিছু হঠেছে। অর্থাৎ, 'কে প্রথম কাছে এসেছি' এই প্রশ্ন করার কোনও জায়গাই নেই। কংগ্রেস হাত বাড়িয়েই রেখেছে। এখন সেই হাতটি আঁকড়ে ধরাই সিপিএম-এর অস্তিত্ব টিকিয়ে রাখার একমাত্র পথ। কারাট আপত্তি করবেন। পশ্চিমবঙ্গের নেতাদের কর্তব্য, দলের সর্বভারতীয় সম্পাদকের আপ্রাণ বিরোধিতা করা।

তৃতীয় কারণ নরেন্দ্র মোদী। তিনি তাঁর যাবতীয় সাম্প্রদায়িক, এবং একনায়কোচিত অতীতসমেত, ভারতের প্রধানমন্ত্রী হতে চাইছেন। বামপন্থীদের আর হাজারটা খামতি থাকতে পারে, তবু, ১৯৮৯ সালের ব্রিগেডে হাতধরাধরি সত্ত্বেও, তাঁদের 'সাম্প্রদায়িক' বলার উপায় নেই। বস্তুত, ২০১১ সালের ধসের আগে রাজ্যের মুসলমান ভোটে কার্যত একচেটিয়া অধিকার ছিল তাঁদের। ২০১৪ সালের লোকসভা নির্বাচন তাঁদের সামনে সেই হারানো জমি পুনরুদ্ধারের একটা সুযোগ করে দিয়েছে। 'যে কোনও উপায়ে হোক, নরেন্দ্র মোদীকে ঠেকাতেই হবে' সিপিএম যদি যথেষ্ট আন্তরিক ভাবে এই বার্তাটি দিতে পারে, তা হলে মুসলিম ভোটব্যাঙ্কের একটা বড় অংশ ফের তাদের দিকে ঝুঁকবে, সে সম্ভাবনা প্রবল। কিছু না হোক, সাম্প্রদায়িক শক্তির বিরুদ্ধে দাঁড়ানোর সাহসটুকু প্রমাণ হবে। তা-ও কম নয়।

কংগ্রেসকে নিয়ে যে ঐতিহাসিক ছুৎমার্গ রয়েছে, এ বেলায় সে ঝেড়ে ফেললেই সিপিএম-এর মঙ্গল। প্রয়োজনে পার্টি লাইন নতুন করে লিখতে হবে। তৃণমূল কংগ্রেসের উত্থানের পর রাজ্যে কংগ্রেস আর তাদের প্রধান শত্রু নয়। বস্তুত, গত লোকসভা নির্বাচনে কংগ্রেস-তৃণমূল জোট যেমন বাম-বিরোধী ভোটকে একত্রিত করতে পেরেছিল, এই দফায় সিপিএম-কংগ্রেস জোট ঠিক সেই কাজটাই করতে পারে তৃণমূল কংগ্রেস-বিরোধী ভোটকে একত্র করা। পারলে, কংগ্রেসের লাভ। সিপিএম-এর তো বটেই।

যে রাজ্যে এখনও কংগ্রেসই সিপিএম-এর বৃহত্তম শত্রু, সেই কেরলে কী হবে? এই প্রশ্ন উঠবেই। উত্তর নেই, তেমনটা নয়। রাজ্যওয়াড়ি বোঝাপড়ার কথাও ভাবা যায়। কিন্তু ভুললে চলবে না, দলের ভিতরে কেরল লবি যতই শক্তিশালী হোক, দেশে দলের পরিচয় এখনও পশ্চিমবঙ্গের জোরেই। সে জোর ধরে না রাখতে পারা-না পারার ওপরেই তাদের রাজনৈতিক অস্তিত্ব নির্ভরশীল। অন্তত, ২০১৪ সালে।





http://www.anandabazar.com/13edit3.html


No comments:

Post a Comment