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Friday, March 9, 2012

भारत को कई यादगार जीत दिलाई द्रविड़ ने

भारत को कई यादगार जीत दिलाई द्रविड़ ने

Friday, 09 March 2012 15:23

बेंगलूर, नौ मार्च (एजेंसी) अपनी पीढ़ी के संपूर्ण और महानतम क्रिकेटरों में शामिल राहुल द्रविड़ ने आज टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया जिससे उनके लगभग 16 बरस के कैरियर का अंत हो गया। यह दिग्गज बल्लेबाज सर्वाधिक टेस्ट रन बनाने वालों की सूची में दूसरे स्थान पर है और भारत के लिए कई यागदार जीत इस बल्लेबाज के बल्ले से निकली।
भारत के निराशजनक आस्ट्रेलिया दौरे के बाद द्रविड़ उम्रदराज तिकड़ी में से संन्यास लेने वाले पहले खिलाड़ी बने। सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण इस अनुभवी तिकड़ी के दो अन्य सदस्य हैं।
इंदौर में 11 जनवरी 1973 को जन्में कर्नाटक के लिए इस बल्लेबाज के लिए पिछले साल इंग्लैंड दौर निजी दौर पर यादगार रहा जिसमें उसने चार मैचों में तीन शतक बनाए। द्रविड़ ने यह बेमिसाल उपलब्धि उस समय हासिल की जबकि टीम के अन्य सभी शीर्ष खिलाड़ी सैकड़े के आसपास भी नहीं पहुंच पाए। लेकिन हाल में आस्ट्रेलिया दौरे पर लचर प्रदर्शन के बाद उन्हें टीम से बाहर करने की मांग उठने लगी थी।
पूर्व भारतीय कप्तान द्रविड़ ने आस्ट्रेलिया दौरे पर 24 . 25 के औसत से केवल 194 रन बनाए। इससे भी अधिक निराशाजनक यह रहा है अपने मजबूत डिफेंस के लिए पहचाने जाने वाले द्रविड़ आठ पारियों में छह बार बोल्ड हुए।
अपने मजबूत डिफेंस के लिए 'द वाल' के नाम से मशहूर द्रविड़ ने जून 1996 में पदार्पण के बाद संन्यास ले लिया है। वह हालांकि इंडियन प्रीमियर लीग के पांचवें सत्र  में जयपुर की टीम राजस्थान रायल्स की कमान संभालेंगे।
द्रविड़ ने 164 टेस्ट में 36 शतक और 63 अर्धशतक की मदद से 52 . 31 की औसत से 13288 रन बनाए जिसमें पकिस्तान के खिलाफ खेली उनकी 270 रन की सर्वश्रेष्ठ पारी भी शामिल है। वह तेंदुलकर के बाद टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वालों की सूची में दूसरे स्थान पर हैं।
शुरू में वनडे क्रिकेट के कमजोर बल्लेबाज माने जाने वाले द्रविड़ ने कैरियर में आगे बढ़ने के साथ अपने खेल में बदलाव किया और इसे वनडे क्रिकेट के अनुरूप ढाला। उन्होेंने अप्रैल 1996 से सितंबर 2011 तक एकदिवसीय क्रिकेट खेला और इस दौरान 344 मैचों में 12 शतक और 83 अर्धशतक की मदद से 39 . 16 की औसत के साथ 10889 रन बनाए।
अक्तूबर 2005 से सितंबर 2007 तक द्रविड़ की कप्तानी ने भारत ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड को उसकी सरजमीं पर हराया लेकिन विश्व कप 2007 में टीम पहले दौर में ही बाहर हो गई। द्रविड़ ने 25 टेस्ट और 79 एकदिवसीय मैचों में भारत की कप्तानी की।
द्रविड़ ने ग्रेग चैपल के विवादास्पद कोच कार्यकाल के दौरान टीम की कप्तानी की लेकिन इस उनकी बल्लेबाजी पर असर नहीं पड़ा और इस दिग्गज बल्लेबाज ने इस दौरान 44 . 51 की औसत से 1736 रन बनाए।
द्रविड़ ने पिछले साल इंग्लैंड में एकदिवसीय क्रिकेट के संन्यास की घोषणा की थी। उन्हें इस श्रृंखला के खिलाने का फैसला काफी हैरानी भरा था क्यों इससे पहले काफी समय तक उन्हें वनडे क्रिकेट नहीं खेला था लेकिन 

इंग्लैंड में चार टेस्ट में तीन शतक के बाद चयनकर्ताओं ने उन्हें टीम में शामिल किया।
द्रविड़ हमेशा टीम के लिए खेले और उन्हें टीम की जरूरत के मुताबिक अपने बल्लेबाजी क्रम में फेरबदल करना पड़ा। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर उन्होंने विकेटकीपर की भूमिका भी निभाई। टीम के उनकी इस दोहरी भूमिका की बदौलत बेहतर संतुलन बनाते हुए 2003 विश्व कप के फाइनल में भी जगह बनाई थी।
इस दिग्गज बल्लेबाज को कई बार पारी को आगाज करना पड़ा जब सलामी बल्लेबाज चोटिल था या खराब फार्म से जूझ रहा था। द्रविड़ ने अपने कैरियर के दौरान बेजोड़ फिटनेस बनाकर रखी जिसके कारण उन्होंने जून 1996 से दिसंबर 2005 के बीच लगातार 93 टेस्ट खेले।
टेस्ट क्रिकेट के कलात्मक बल्लेबाजों में शामिल द्रविड़ के पास तेंदुलकर जैसा नैसर्गिक खेल या वीरेंद्र सहवाग और सौरव गांगुली जैसी आक्रामकता नहीं थी लेकिन इसकी भरपाई उन्होंने अपने कौशल, एकाग्रता और पारंपरिक बल्लेबाजी से की।
पारंपरिक तकनीक के धनी द्रविड़ ने भारतीय बल्लेबाजी क्रम में तीसरे स्थान पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और उन्होंने अधिक आक्रामक बल्लेबाजों तेंदुलकर, लक्ष्मण और गांगुली के साथ मिलकर बल्लेबाजी को संतुलन प्रदान किया।
द्रविड़ ने बल्लेबाज के अलावा अपने क्षेत्ररक्षण में भी छाप छोड़ी और वह 210 कैचों के साथ टेस्ट क्रिकेट के सबसे सफल क्षेत्ररक्षक हैं। उन्होंने अपने अधिकतर कैच स्लिप में लपके। उन्होंने इसके अलावा वनडे क्रिकेट में भी 196 कैच पकड़े।
इस दिग्गज बल्लेबाज ने अपने कैरियर के दौरान भारत को कई यागदार जीत दिलाई। उन्होंने 2003 में एडिलेड में दो पारियों में 835 मिनट बल्लेबाजी की और लंबे समय बाद भारत को आस्ट्रेलिया में टेस्ट जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने इसके कुछ महीनों बाद पाकिस्तान के खिलाफ क्रीज पर 12 घंटे से अधिक बिताते हुए 270 रन की अपने कैरियर की सर्वश्रेष्ठ पारी खेली और भारत को पहली बार पाकिस्तान में टेस्ट श्रृंखला में जीत दिलाई।
द्रविड़ ने अपने पदार्पण के कुछ समय बाद वांडरर्स में अपने दक्षिण अफ्रीका के मजबूत गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ अपने कैरियर की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक खेली।
द्रविड़ की फार्म में इसके बाद कुछ गिरावट आई लेकिन उन्होंने जोरदार वापसी की और ईडन गार्डन्स में लक्ष्मण के साथ इतिहास की सर्वश्रेष्ठ साझेदारियों में से एक करते हुए भारतीय क्रिकेट में नयी जान फूंकी। अगला आधा दशक द्रविड़ बल्ले से काफी सफल रहे और इस दौरान उन्होेंने इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का दौरा करते हुए ढेरो रन बटोरे।
कप्तान   के रूप में द्रविड़ का दो साल का कैरियर काफी सफल नहीं रहा । टीम ने इंग्लैंड और वेस्टइंडीज में लंबे समय बाद टेस्ट श्रृंखलाएं जीती लेकिन 2007 विश्व कप में पहले दौर से बाहर हो गई। द्रविड़ ने इसके बाद अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव पर 2011 में इंग्लैंड दौरे पर एक बार फिर अपने बल्ले का जलवा दिखाया।
इंग्लैंड दौरे पर जब अन्य बल्लेबाजों को क्रीज पर टिकने में भी संघर्ष करना पड़ रहा था तब द्रविड़ ने तीन शतक की मदद से 461 रन बनाए। आस्ट्रेलिया में लचर प्रदर्शन के कारण हालांकि उन्हें संन्यास लेने का फैसला करना पड़ा।

 
 

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