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Sunday, March 24, 2013

मियां मोहन दास मोदी

मियां मोहन दास मोदी

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नरेंद्र दामोदर मोदी अब सेकुलर होने चले हैं। हाल में ही प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने सेकुलरिज्म की परिभाषा देते हुए कहा कि उनकी धर्मनिर्पेक्षता का मतलब है नेशन फर्स्ट। निश्चित रूप से मोदी द्वारा दी गई धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में देश तथा देश का विकास सर्वोपरि दिखाई देता है। सुनने में यह बातें बहुत अच्छी, राष्ट्रहित वाली प्रतीत होती हैं, परंतु नरेंद्र मोदी से एक सवाल है कि वह नेशन क्या जिसे वे सबसे पहले रखना चाहते हैं? उस नेशन का नागरिक कौन है जिसे वे सेकुलर मानते हैं?

भारतवर्ष में सक्रिय दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा एक दूरगामी राजनैतिक सोच के मद्देनज़र देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप तथा यहां की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था व विचारधारा पर समय-समय पर कठोर प्रहार होता रहता है। दिन-प्रतिदिन यह सिलसिला और भी तेज़ होता जा रहा है। स्वयं सांप्रदायिकता के रंग में डूबी इन कट्टरपंथी शक्तियों द्वारा भारत के प्राचीन धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर विश्वास रखने वाले लोगों को छद्म धर्मनिरपेक्ष कहकर संबोधित किया जाता है। यह ताकतें शायद हमारे देश की उस प्राचीन संस्कृति को भूल जाती है जिसमें कि रहीम, रसखान, जायसी जैसे तमाम मुस्लिम कवियों ने हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की शान में कसीदे पढ़े, उनकी स्मृति में तमाम भजन लिखे जो आज तक देश के बड़े से बड़े हिंदू मंदिरों व धर्मस्थलों में पूजा-पाठ व आरती के समय पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ पढ़े व गाए जाते हैं। यह दक्षिणपंथी ताकतें शायद यह भी भूल जाती हैं कि देश की अधिकांश मुस्लिम पीर-फकीरों की दरगाहों पर दर्शन व जि़यारत के लिए आने वाले भक्तों में मुसलमानों से अधिक तादाद गैर मुस्लिमों विशेषकर हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं की होती है। इन्हें शायद यह भी नहीं मालूम कि गणेश पूजा से लेकर दशहरा व रामलीला मंचन के त्यौहारों में मुस्लिम समुदाय के लोग मूर्ति निर्माण से लेकर इन त्यौहारों को मनाए जाने तक में अपनी कैसी सक्रिय भागीदारी अदा करते हैं। और इसी प्रकार यह सांप्रयिकतावादी ताकतें शायद यह भी नहीं जानतीं कि किस प्रकार पूरे देश में मोहर्रम के अवसर पर हिंदू समुदाय के लोग ताजि़यादारी करते हैं, स्वयं मोहर्रम के अवसर पर हजऱत इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं और उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

क्या सदियों से धर्मनिरपेक्षता की वास्तविक परिभाषा को आत्मसात करने वाला यह देश नानक, रहीम, कबीर, रसखान, जायसी, अकबर, गांधी व नेहरू द्वारा परिभाषित व आत्मसात की गई धर्मनिरपेक्षता के दौर से गुज़रता हुआ, अब गुजरात के नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं को पुन: परिभाषित कराए जाने का मोहताज हो गया है? नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अमेरिका व कनाडा के प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए धर्मनिरपेक्षता की एक नई परिभाषा गढ़ी जिसमें उन्होंने फरमाया कि 'देश के नागरिकों के हर फैसले में भारत ही सर्वोपरि होना चाहिए। और धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद यही होगी कि जो भी काम किया जाए वह भारत के लिए हो। उन्होंने कहा कि देश सभी धर्मों व विचारधाराओं से ऊपर है तथा हमारा लक्ष्य भारत की तरक़्की होना चाहिए। और इस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता अपने-आप ही हमसे जुड़ जाएगी'। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी समय-समय पर प्रवासी भारतीयों विशेषकर पश्चिमी देशों में रहने वाले भारतीयों के मध्य गुजरात में पूंजी निवेश करने हेतु कोशिश करते रहते हैं। परंतु 2002 में हुए गुजरात दंगों में मानवाधिकारों के हनन में उनकी भूमिका पर अभी भी पश्चिमी देशों में उनके विरुद्ध सवाल उठते रहते हैं तथा उन्हें विश्वास की नज़रों से नहीं देखा जाता। पिछले दिनों व्हार्टन इक्नोमिक फोरम में उनका भाषण इसी कारण अयोजकों द्वारा रद्द करना पड़ा क्योंकि उनके वहां निमंत्रण के विरुद्ध एक ज़बरदस्त मुहिम ऑन लाईन पैटीशन के माध्यम से छिड़ गई थी। अत: मजबूरन आयोजकों को उन्हें आमंत्रित करने के बावजूद बाद में मना भी करना पड़ा।

गांधी के गुजरात की गलियों को खून से लाल कर देनेवाले मोदी अब मोहनदास मोदी बनना चाहते हैं। इसलिए वे सर्वसमावेशी राष्ट्र की अवधारणा सामने रख रहे हैं। लेकिन उनकी और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा ने हमेशा एक भूल किया है। गांधी के राष्ट्र के मूल में जन था, जबकि मोदी का राष्ट्र जनविहीन है।

नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में देश तथा देश का विकास सर्वोपरि दिखाई देता है। सुनने में यह बातें बहुत अच्छी, राष्ट्रहितवाली भी प्रतीत होती दिखाई देती हैं, परंतु नरेंद्र मोदी से एक प्रश्र यह है कि आखिर देश कहते किसे हैं? देश का विकास क्या देशवासियों के विकास या तरक्की का दूसरा नाम नहीं है? और यदि ऐसा है तो क्या देश के पिछड़े, दबे-कुचले, दलित व कम आय में अपना गुज़र-बसर करने वाले लोगों को देश के विकास की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए स्वयं को आगे बढ़ाने या आत्मनिर्भर बनाने का अधिकार नहीं है? क्या नरेंद्र मोदी जी से कम बुद्धिमान थे भारत के संविधान सभा के वे स मानित सदस्य जिन्होंने पूरे देश के हर तबके की वास्तविक स्थिति पर नज़र रखते हुए भारतीय संविधान में उन्हें तरह-तरह की सुविधाएं दी थीं। यहां तक कि कई तबकों के लिए आरक्षण की भी व्यवस्था की? क्या धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा उस घटना में प्रदर्शित होती है जबकि मोदी साहब द्वारा एक मुस्लिम धर्मगुरु के हाथों दी गई टोपी को अपने सिर पर रखने से सार्वजनिक तौर पर इंकार कर दिया जाता है और हिंदू धर्म के धर्मगुरुओं द्वारा दी जाने वाली पगड़ी को अपने सिर पर सुशोभित कर लिया जाता है। दलित समाज की ही तरह देश का मुस्लिम समाज भी शिक्षा के क्षेत्र में खासतौर पर काफी पिछड़ा हुआ है। केंद्र सरकार अपनी योजनाओं के अनुसार अल्पसं यक विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए विशेष धनराशि राज्य सरकारों को आबंटित करती है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी अल्पसं यकों में शिक्षा के गिरते स्तर तथा इसे ठीक किए जाने की ज़रूरत का जि़क्र किया गया है। 2009 में केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा गुजरात को दस करोड़ रुपये का बजट अल्पसं यक समुदाय के छात्रों की पढ़ाई हेतु आबंटित किया गया था। पंरतु नरेंद्र मोदी ने इस धनराशि को स्वीकार करने से यह कहकर मना कर दिया कि गुजरात में इस राशी की कोई आवश्यकता नहीं है। गोया गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार $खुद भी अल्पसं यकों के लिए कोई योजना नहीं रखती और केंद्र सरकार की योजना पर भी अमल नहीं करना चाहती। मोदी की इस हठधर्मीं के कारण आज गुजरात के हज़ारों अल्पसं यक छात्र पैसों की कमी के चलते अपनी प्रतिभाओं का गला घोंट कर पढ़ाईछोड़कर मेहनत-मज़दूरी के दूसरे कामों में लगने के लिए मजबूर हैं। क्या यही है मोदी के धर्मनिरपेक्ष भारत की परिभाषा? और इसी रास्ते पर चलकर होगा भारत का विकास?

गुजरात के गोधरा हादसे के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया नरेंद्र मोदी को संदेह की नज़रों से देख रही है। पंरतु नरेंद्र मोदी व उनके चाहने वाले तथा उनकी पार्टी के लोग  गुजरात दंगों को क्रिया की प्रतिक्रिया बताते रहते हैं। अदालती निर्देशों के बावजूद नरेंद्र मोदी की सरकार ने अभी तक दंगों के दौरान तोड़े गए धर्मस्थलों की मुर मत हेतु यह कहकर पैसे नहीं दिए कि उनकी सरकार के पास इस कार्य के लिए कोई फ़ंड नहीं है। तमाम गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार किस प्रकार गुजरात के दंगा पीडि़त अभी तक मुआवज़े के लिए दर-दर भटक रहे हैं, अभी तक तमाम दंगा पीडि़तों की घर वापसी संभव नहीं हो सकी है। किस प्रकार गुजरात के तमाम दंगा प्रभावित क्षेत्रों की अल्पसं यक बस्तियों के लोग बिजली, सड़क और पानी की सुविधा के बिना अपना जीवन-बसर कर रहे हैं और इन इलाकों में गंदगी व दुव्र्यवस्था का क्या आलम है? गोया मोदी ने अपनी सांप्रदायिक राजनीति के चलते राज्य में हिंदू व मुस्लिम मतों के बीच ज़बरदस्त ध्रुवीकरण करा दिया है। जिसका लाभ पिछले चुनावों की ही तरह संभवत: भविष्य में भी उनकी रणनीति के अनुसार उन्हें मिलता रहेगा। और अपनी इसी जीत को वह 6 करोड़ गुजरातवासियों की जीत का नाम देते हैं। देश के लोगों को गुजरात के बारे में गुमराह करने में भी नरेंद्र मोदी को पूरी महारत हासिल है। वे प्राय: यह कहते रहते हैं कि जब पूरी दुनिया में मंदी का दौर था उस समय भी गुजरात की र$ तार नहीं थमी। जबकि ह$की$कत यह है कि मंदी के उस दौर में पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था संभली हुई थी। पूरे भारत पर मंदी का कोई फर्क नहीं पड़ा। ज़ाहिर है गुजरात भी इसी भारत का एक राज्य है अत: इस बात का श्रेय अकेले मोदी जी को लेने का क्या औचित्य है?

दरअसल भारतवर्ष एक ऐसा धर्म निरपेक्षराष्ट्र है जहां प्रत्येक धर्म के प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक कार्यकलापों, रीति-रिवाजों को मनाने व अदा करने का पूरा अधिकार है। भारत एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहां प्रत्येक धर्म व विश्वास के लोगों को अपनी प्राचीन मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार एक-दूसरे के धर्म के मानने वालों की पूरी इज़्ज़त व स मान करना चाहिए। हमारी सांझी संस्कृति व तहज़ीब ही हमारी प्राचीन विरासत है। हमारा नैतिक व संवैधानिक कर्तव्य है कि हम समाज के सभी दबे-कुचले, दलित, अल्पसं यक तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर समाज की यथासंभव सहायता करें। आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक व राजनैतिक रूप से कमज़ोर समाज की तर$क्की में ही देश का विकास व प्रगति निहित है। नरेंद्र मोदी की परिभाषा के अनुसार केवल उद्योग स्थापित कर देने, सड़कें चौड़ी कर देने या किसी एक विचारधारा विशेष के लोगों को खुश करते रहने वाले भाषण देने तथा इसी बहाने सत्ता शिखर पर अपनी नज़रें जमाए रखने की युक्ति को धर्मनरिपेक्षता की परिभाषा नहीं का जा सकता। धर्मनिपेक्षता की परिभाषा क्या है यह कम से कम नरेंद्र मोदी को तो किसी भारतवासी को बताने की आवश्यकता नहीं है। यह देश के लोगों की रग-रग में रची-बसी है। धर्मनिरपेक्षता नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी परिभाषा गढ़े जाने की मोहताज हरगिज़ नहीं है।

http://visfot.com/index.php/current-affairs/8782-narendra-modi-story-1303.html

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