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Friday, January 30, 2015

हे राम! वैष्णव जन तेने कहिये… पलाश विश्वास

हे राम!

वैष्णव जन तेने कहिये…

पलाश विश्वास

Feroze Mithiborwala's photo.

Feroze Mithiborwala's photo.

Feroze Mithiborwala's photo.

Feroze Mithiborwala's photo.


वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।

सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।

वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।


वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।

जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।

मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।

राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।

वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।

भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।


वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

पागल दौड़ में देश गांधी को याद कर रहा है और वैष्णव जन तो वे हैं जिनके दिलोदिमाग में पीर पैदा करने की हरेक मशीनें बनती है।


हस्तक्षेप में लगातार इस विषय पर आलेख छपे हैं।मीडिया में खूब लिखा गया है।

जनसत्ता के संपादकीय पेज पर के विक्रम राव ने प्रपंच के सहारे महिमामंडन लिखा है तो अन्ना रालेगांव से फिर दहाड़े हैंःअच्छे दिन कहां गये।उनकी फिर सत्याग्रह की तैयारी है।


केसरिया कारपोरेट वैष्णवजन के भजन कीर्तन कर्मकांड धर्म अधर्म और पागल दौड़ में देश काल पात्र गड्डमड्ड है।

इसी के मध्य वकील की दलीलें तेज हैं वसंत बहार।


केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली ने पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन द्वारा परियोजनाओं के लिए हरित मंजूरी में राहुल गांधी पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगाए जाने के बाद संप्रग शासन के दौरान मंजूर और खारिज की गयी पर्यावरणीय परियोजनाओं की समीक्षा की आज मांग की।


वित्त मंत्री ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी को नटराजन का पत्र 'पुख्ता तौर पर साबित करता है' कि कांग्रेस के लिए वैधानिक या आवश्यक मंजूरी की नहीं बल्कि नेताओं की 'मर्जी' ही अहम थी।

जेटली ने कहा, ''मुझे उम्मीद है कि अब पर्यावरण मंत्रालय (उस समय) मंजूरी और नामंजूर की गयी उन सभी अनुमतियों की समीक्षा करेगा और सुनिश्चित करेगा कि केवल कानून के मुताबिक ही इनका निपटारा हो और किसी अन्य बात पर नहीं।''


कोलकाता हिलेला।हिलेला देहलिवा।


दीदी कठघरे में दाखिल हैं।

मुकुल ने खूब बोला है सीबीआई जिरह में।

सत्तादल की ओर से मदन मित्र की पेशी के वक्त जो नजारा पेश किया गया था,उसके मुकाबले सन्नाटा है।

जैसे सांप सूंघ गया है।

अब अगर मुकुल गिरफ्तार हुए तो संकट में तृणमूल सरकरा और नहीं हुए तो संकट

उससे भारी है।


सुबह लिखी थीं ये पंक्तियां और मन में सन्नाटा ऐसा छाया कि फिर लिखा नहीं गया घंटों।तब मुकुल से जिरह चल रही थी।


साढ़े चार घंटे की रगड़ाई के बाद बाहर निकलकर मुकुल राय ने कहा कि वे चाहते हैं कि शारदा  फर्जीवाड़े का जो सच है,वह उजागर हो।


दिशा दिशा में उनके अनुयायी बागी बोल बोल रहे हैं  तो सीबीआई के कब्जे से बेदाग,सीना तानकर निकले मुकुल के दर्शन से धर्मांतरण मुहिम में निष्णात बंगाल और तेज केशरिया होने लगा है।


जिन सव्यसाची दत्ता के खिलाफ कालीघाट में अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए दीदी बैठक लगा रही हैं,उन्हीं सव्यसाची दत्ता ने शारदा फर्जीवाड़ा कांड के दागियों के खिलाफ  डंका पीटना शुरु किया हुआ है और आज हुए सीबीआई शो में तृणमूली जनता को हंगामा से रोक भी वही रहे थे।


बहरहाल सीबीआई ने पच्चीस प्रश्न मुकुल से पूछे जो पहले से आज के अखबारों में छपे हैं।जिनमें ममता और उनके भतीजे को कटघरे में खड़े करने वाले सवाल है तो कोलिंपोग से शुरु परिवर्तन की हवा ओं का खुलासा भी इन्हीं सवालों से होना है।


कोलिपोंग में ही मुकुल राय और सुदीप्तो के साथ ,बेशकीमती गाड़ियों के काफिला, फुटबाल, अखबार, सिनेमा और दुर्गोत्सव स्पांसर करने वाले महासितारा  रोजवैली के मालिक गौतम कुंडु की बैठक हुई थी वाम को बेदखल बनाने के लिए।


किस्सा उन सूटकेशों का भी है जो नोटों से भरे थे और विधानसभा चुनावों से पहले बांटे गये थे।देवयानी संग लापता सुदीप्तों ने भागने से पहले मुकुल के साथ बैछक की थी और गुमशुदगी के दौर में उनसे लगातार कनेक्टेड थे मुकुल बाबू तो वापसी भी उन्हींके इशारे पर हुई उनकी।


जाहिर है मुकुल ने सारे राज खोल दिये हैं जैसा कि उनका कहना भी है और सीबीआई का भी कहना है कि वे तफतीश में पूरा सहयोग कर रहे हैं और घोटाले के असली चेहरे को बेनकाब करने वाले हैं।


गौर करें कि  तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के महासचिव और पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय आज शारदा घोटाला मामले में पूछताछ के लिए सीबीआई के सामने पेश हुए। मुकुल रॉय ने सीजीओ परिसर स्थित सीबीआई के कार्यालय में दाखिल होने के दौरान कहा, 'मैं यहां सीबीआई के साथ सहयोग करने के लिए हूं।' 12 जनवरी को सीबीआई ने मुकुल रॉय को समन जारी किया था और वह दो बार सीबीआई के सामने आने से बच गए थे। रॉय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफी करीबी सहयोगी माने जाते हैं। उन्हें समन जारी करने के बाद रॉय बार-बार दिल्ली का दौरा कर रहे थे।


मुकुलबाबू गिरफ्तार होते तो भी राहत मिलती दीदी को कि उन्होंने शायद कुछ बका न हो।अब मामला तो हाट में हड़िया तोड़ने का है।


गौरतलब है कि मुकुल रॉय से शुक्रवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शारदा घोटाला मामले में साढ़े चार घंटे तक पूछताछ की। रॉय ने साल्ट लेक इलाके में सीजीओ परिसर स्थित सीबीआई दफ्तर से दोपहर के समय बाहर आते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि सच सबके सामने आए और मामले की जांच सही दिशा में आगे बढ़े। रॉय ने संवाददाताओं से कहा, "मैं आज जांचकर्ताओं से मिला। उन्होंने मेरे साथ लंबी पूछताछ की। मैंने उनसे कहा कि अगर जांच के लिए उन्हें मेरी जरूरत पड़ी तो मैं एक बार नहीं, बल्कि बार-बार उनसे ...



मदन मित्र और दूसरे दागी जिस तरह सीबीआई में पेश होते ही गिरफ्तार कर लिये गये,उसके बाद मुकुल का सीना तानकर सीबीआई को सहयोग का खुल्ला ऐलान के साथ बरी हो जाना नये बन रहे राजनीतिक केसरिया समीकरण का खुलासा है।


अब कोलकाता और बाकी बंगाल में इस भूकंप का कंपन किस अंक का है,वह हम अभी माप नहीं सके हैं।सूत्रों के अनुसार, पूछताछ के बाद मुकुल ने मीडिया के सामने न तो तृणमूल का जिक्र किया और न ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का।


सीबीआई अधिकारियों के सामने रॉय ने कई प्रभावशाली लोगों के बारे में खुलासा किया। जांच एजेंसी ने मुख्य रूप से कलिम्पोंग के डेलो में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के साथ शारदा समूह के मालिक सुदीप्त सेन की बैठक के बारे में सवाल किए। बताया जाता है कि रॉय ने बैठक में होने की बात स्वीकार की है। करीब 3.30 बजे सीबीआई दफ्तर से बाहर आने पर उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं मामले के सभी तथ्य सामने आएं और गाढ़ी कमाई का पैसा गंवाने वाले गरीबों को उचित न्याय ...


संतन के घर झगड़ा भारी

रगड़ा प्रलयंकारी

राजधाऩी दिल्ली में मारामारी।

किरण बेदी की ताजपोशी के लिए अमित शाह कैंप किये हैं और खबर है कि फोनवा  ठोंकते ही केजरी भूत दिल्लीवासियों पर जो हावी है,उसे उतारने किस्म किस्म के ओझा मसलन प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्री उपमंत्री सांसद वगैरह वगैरह गली तस्यगली में आपके चौखट पर हाजिर है।


पालिसी पैरालिसिस कौन सी बीमारी है,उसका खुलासा भी होने लगा है।मनमोहन ने इस बीमारी के चलते कुर्सी गंवाई तो मोदी महारजज्यी फिटमफिट है और इस बीमारी का वायरल किसी भी स्तर पर उन्हें छू ही नहीं सकता उनकी गुजरात गौरव गाथा उसका पुख्ता सबूत है।


अब अमेरिका जो जलवायु और मौसम की चिंतामें मुआ जा रहा है और अपने बंद कारखाने चालू करके न्यूक्लियर चूल्हा पैदा करके बारत में हर कहीं झोंक रहा है,उसके पीछे पिघलते ग्लशियरा की सेहत का मामला है।


परमाणु ईंधन पर्यावऱण के लिए सबसे अनिवार्य चीज है और इसके लिए कतनी ही भोपाल त्रासदियां हो,न अमेरिका को फिक्र है और न आज के केसरिया वैष्णवजनों को।


डाउ कैमिकल्स के मंत्री महाशय को अमेरिकी कंपनियों के हितों की चिंता थी तो भविष्य में किसी अमेरिकी कंपनी को कोई मुआवजा न दिया जाये,इसका पुख्ता इंतजाम भी कर दिया गया है।


अमेरिकी राष्ट्रपति ने चलते चलते धर्म की स्वतंत्रता की उदात्त घोषणा के साथ गांदी को राजघाट पर प्रणाम का ब्याज चुकाते हुए विकास के लाए धार्मिक विभाजन के किलाफ हिंदुत्व ब्रिगेड को चेतावनी भी दे डाली है।


लोग बेहद खुश हैं कि अमेरिका को आरएसएस का एजंडा मालूम है।


हम कब कह रहे हैं कि मालूम नइखै।

आरएसएस का एजंडा अमेरिकी हितों के मुताबिक न होइबे करता तो वे मोदी को पलकपांवड़े पर काहे बिठाते,समझने वाली बात है।


तो इंफ्रास्ट्रक्चर यानी के सीमेंट के जंगल दसों दिशाओं में खेत बनाने के खातिर चार खरब डालर झोकेंगी अमेरिकी कंपनियां और शेयर सूचकांक पार होगा पचास हजार पार।


तो जैसे योजना आयोग का खात्मा हो गया वित्तीय घाटा के इलाज बतौर वैसे ही पालिसी पैरालिसिसवा का इलाज सख्त चाहिए।


पहला काम अंजाम संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी का जुमला हटाने का है।


अब नीति निर्दारकों और संघ सिपाहसालारों के मुताबिक असल खलनायक पर्यावरण कानून है और यूपीए के जमाने में सारी बदमाशियां इसी पर्यावरण हरी झंडी के लिए हुई।


ससुरे इस पर्यावरण मंत्रालय को खत्म करना अनिवार्य है।


न रहेगा बंस,न बजबै करै बांसुरी।


इस एजंडा का हल दीखने लगा है कि जागऱण की रपट से खुलासा हुआ कि

पीए सरकार की कार्यशैली का खुलासा करते हुए पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने कांग्रेस छोड़ दी है। यूपीए सरकार में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मर्जी चलने के आरोपों के बीच कांग्रेस पर बड़ी मुसीबत आ गई है। राहुल पर सरकारी नीतियां बदलने का आरोप लगाते हुए जयंती ने कहा कि राहुल के कार्यालय से विशेष 'इनपुट' आते थे। इनमें कुछ बड़ी परियोजनाओं को रोकने के लिए उस पर चिंता जताई जाती थी।

जयंती ने आरोप लगाया कि उन्होंने परियोजनाओं को मंजूरी देने में कांग्रेस उपाध्यक्ष के निर्देश का पालन किया। उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो गया है। पर्यावरण मंत्री रहते हुए उन्होंने राहुल के निर्देश माने। फिर भी उन्हें पार्टी में हाशिये पर कर दिया।

जयंती ने राजनीति के कटु अनुभवों को देखते हुए फिलहाल किसी पार्टी में शामिल होने का फैसला नहीं किया है। हालांकि नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी बरतते हुए उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया तो वह विपक्षी होकर 'जयंती टैक्स' कह रहे थे।

अडानी की फाइल वाशरूम में थी

नटराजन ने आरोप लगाया, 'इस्तीफे के कुछ दिन पहले उन्हें कुछ कानूनी मुद्दों पर अडानी की फाइल की समीक्षा करनी थी। जब मैंने फाइल मांगी तो बताया गया कि वह खो गई है। काफी खोजबीन के बाद अधिकारियों को फाइल मिली।

बताया गया कि कंप्यूटर सेक्शन के वॉशरूम में थी, लेकिन यह मिली उसी दिन, जिस दिन मुझे हटाया गया।' उन्होंने बताया कि राहुल की वजह से ही ओडिशा के नियामगिरि पर्वतीय क्षेत्र में वेदांता की परियोजना को मंजूरी नहीं दी गई थी।

जयंती ने राहुल पर लगाए आरोप, सरकार करेगी जांच

रिव्यू और कार्रवाई होगी!

राजग सरकार ने जयंती के खुलासे की गंभीरता दिखते हुए उनके सभी फैसलों के पुनरावलोकन की बात कही। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 'यह गंभीर जानकारी है। जिन फाइलों की बात कही गई है, मैं उनका रिव्यू करूंगा।' भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जयंती के पत्र पर कहा, 'मैं इस पत्र का अध्ययन करूंगा कि इस आधार पर राहुल गांधी के खिलाफ केस बन सकता है या नहीं।'

जयंती जांच कराने को तैयार

जयंती नटराजन पर लगभग 35 ऐसे अहम परियोजनाओं को हरी झंडी नहीं देने के आरोप हैं। इनमें हजार से पांच हजार करोड़ तक परियोजनाएं शामिल हैं। नटराजन ने कहा है कि यूपीए में मंत्री रहते हुए अपने निर्णयों को लेकर वे जांच का सामना करने को तैयार हैं।

कांग्रेस ने की प्रतिष्ठा धूमिल

जयंती ने राहुल गांधी कार्यालय पर उनकी प्रतिष्ठा धूमिल करने का कैम्पेन चलाने का आरोप भी लगाया। तीन दशकों से जयंती गांधी परिवार की करीबी रहीं। वह खुद पार्टी में परिवार की चौथी पीढ़ी हैं। जयंती नरसिम्हा राव सरकार के समय जीके मूपनार नेतृत्व वाली तमिल मनिला कांग्रेस में चली गई थीं। वे फिर कांग्रेस में लौट आई थीं।

http://www.jagran.com/news/national-jayanthi-natarajan-attacks-rahul-gandhi-12028724.html


गौरतलब है कि सात साल के लिए सभी परियोजनाओं को,लंबित परियोजनाओं को भी एकमुश्त हरी झंडी दे दी गयी है और संपूर्ण निजीकरणके लिए सबकुछ बेचा जा रहा है।


और संघ के सिपाहसालर य पालिसी पैरालिसिस खत्म कराने का गुहार लगा रहे हैं कि आदिवासी इलाकों में फंसी लाखों लाखों डालर का निवेश रुका है और विकास दर आईएमएफ,विश्वबैक और अमेरिकी रेटिंग एजंसियों के मनमाफिक नहीं है।


जाहिर है जो आदिवासी बागी है,उसकी खास वजह उनका गैरहिंदुत्व है।


एकर खातिर मिशनरी जा जाके वे पढ़े लिखे बनकर जल जंगल जमीन के हकोहकूक के बारे में जानकर अंग्रेजी जमाने से बगावत करते रहे।वो बगावत की बीमारी जारी रहल वानी।


एकर इलाज सलवा जुडु़म काफी नहीं है।


मध्यभारत से लेकर पूर्वोत्तर में सलवाजुड़ुम करके देख लियो कि आदिवासी तेवर बाकी हिंदुस्तान की तरह बदलता नहीं है।


जली हुई रस्सी भी सांप बनकर फुंफकराती है।


पालिसी पैरालिसिस को खत्म करने वास्ते पर्यावरण हरी झंडी ही काफी नहीं है।


आदिवासियों के दिलो दमाग में घुसलल विधर्मी भाव का खात्मा चाहि और आदिवासियों के सफाया वास्ते उनके दिलो दिमाग में कमल की खेती चाहि कि वे विशुद्ध हिंदू हो तो कहीं जाकर जल जंगल जमीन लबालब हो विदेशी निवेश से और कोई परियोजना पालिस पैरालिसि खातिर रुकै नाही।


सो यह पुण्यकर्म जोर शोर से घर वापसी खातिरै चालू आहे अब शारदा में फंसे कटघरे में खड़े दीदी के बंगाल में यह सहज विधि आजमायी जा रही है।


दिल्ली दांव पर है तो बंगाल भी दांव पर है।


दिल्ली में बजट उजट का झमेला कारपोरेट लाबिंग और अमेरिकी हितों और दिशानिर्दशों के हवाले करके कारपोरेट वकील अरुण जेटली संघ परिवार के लिए दिल्ली जीतने वास्ते सिपाहसालार बनकर बैठे हैं।


बंगाल विजय अब वक्त का इंतजार लग रहा है।

हालांकि बंगाल की शेरनी गरजी भी है।

धर्मांतरण के खिलाफ बोली भी दीदी आज और संघ परिवार को चेतावनी भी दी है कि पहले संविधान बदलने की जुर्रत करे क्योंकि भारत अब भी धर्मनिरपेक्ष देश है।


आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ आसनसोल कोयलांचल से आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन भी शुरु हो चुका है।


और सबसे खास बात है कि विश्वहिंदू परिषद के तुर्रम खां प्रवीण तोगड़िया के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी हो गया है।


ममता दीदी ने कहा कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहेगी और संघ परिवार के धर्मांतऱण अभियान चलने नहीं देंगी।


धर्मांतरण को लेकर भाजपा पर तीखा हमला करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि अगर हिम्मत है तो वह भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को बदल कर दिखाए।

उन्होंने कहा कि कोई किसी पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव कैसे बना सकता है? उन्हें किसने यह जिम्मेदारी दी? तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने सवालिया लहजे में कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि यह धर्म अच्छा है, यह धर्म बुरा है तो फिर उस धर्म का व्यक्ति रिक्शा खींच रहा है, तो उसमें मत बैठिए।

उन्होंने कहा कि वे लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं। उन्हें पता नहीं है कि जब आप सत्ता में होते हैं तो आपको सुशासन देना होता है। लेकिन सुशासन का अर्थ लोगों को नियंत्रित करना नहीं है। आप किसी के अधिकारों पर नियंत्रण नहीं रख सकते।

उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान की आत्मा है। अगर आप इसे नियंत्रित करना चाहते हैं और आपमें हिम्मत है तो संविधान को बदलिए।



मुश्किल यह है कि सारे राजनीतिक दलों के लोग केसरिया हुए जा रहे हैं और कटघरे में खड़ी दीदी की आवाज अब उतनी बुलंद नहीं है कि ठीक से कहा जा सकें कि हर कहीं पहुंच रही होगी उनकी आवाज।


इससे भी बड़ी फिक्र का मुद्दा यह है कि बहुजन समाज मतुआ नेतृत्व में केसरिया है और शरणार्थी भी केसरिया।


अपनी सुरक्षा के लिए जमीन को रहे मुसलामान संघ परिवार में शरण ले रहे हैं और इन हालात के खिलाफ पुरजोर कोई वाम पहल नहीं है और न कोई प्रतिनिधित्वमूलक वाम नेतृत्व है बंगाल में जो केसरिया सुनामी का मुकाबला कर सकें।


दीदी और वाम की लड़ाई में बंटा हुआ है धर्मनरपेक्ष खेमा और अस्तित्व की लड़ाई में साइन बोर्ट तक सिमट गयी है कांग्रेस।


कपिल सिब्बल ने शारदा फर्जीवाड़े मामले में बंगाल सरकार का वकील बनकर कांग्रेस की हालत और पतली कर दी है।


गांधी की शहादत दिवस पर बंगाल में दुर्गोत्सव से पहले दुर्गोत्सव है और कमल की खेती है हर कहीं।


पुस्तक मेले तक में संघ परिवार की बहार है जहां भाजपा का सदस्यता अभियान जोरों पर है।


दांव पर है देश और अर्थव्यवस्था।

डाउ कैमिकल्स के वकील और वित्तमंत्री सच कहलवानी कि कोई जरुरी नहीं कि सारे फैसल बजट में हो।


कोई जरुरी नहीं कि सारे फैसले संसद में हों या सारे फैसले जनप्रतिनिधि करें,आशय इसका यह है।


आखेर बगुला जो वैष्णव जन है,जो तरह तरह की समितियों और आयोग में हैं,जो इतिहास बदलने से लेकर संपूर्ण महाभारत और संपूर्ण रामायण की तर्ज पर संपूर्ण निजीकरण की निजी टीमें है,वे कौन मर्ज की दवा हैं।


सो डाउ कैमिकल्स के वकीलवा जो हैं जो वैसे ही दिल्ला मा बइठ गइलन जइसन मैदान मा अंगद पांव सरीखे भयो कपिल सिब्बल शारदा फर्जीवाड़ा के बचाव खातिर।


भ्रष्टाचार उन्मूलन और कालाधन सफेदधन का यह गड़बड़झाला गांधीवादी अन्ना ना समझे हैं कि किनके हितों में उनके सबसे बड़े दो चेले महाभारत मचाये हैं इंद्रप्रस्थवा में।


बारीक किस्सा तोता मैना यह के दांव पर  है काश्मीर, जहां एक बेटी और बाप के सत्ता लोलुप चेहरे लाइव चमक रहे हैं दमक रहे हैं कि संघ परिवार कश्मीर घाटी पर भारी पड़ने वाला ही ठैरा है।


कोलकाता और आसपास पेयजल अब खगरीदकर पीना पड़ता है और जलापूर्ति के पानी का कोई भरोसा है नहीं।


हमरा जहां दफ्तर है मुंबई रोड पर,वहां अस्पताल तो दूर आड़ोस पड़ोस की दवा की दुकानें भी शाम ढलने तक बंद हो जाती है।


वहां तक पहुंचने के लिए दिल्ली रोड होकर सलप तक पहुंचते न पहुंचते परसो पेट में मरोड़ ऐसा हुआ कि दवा दुकान से नारफ्लाक्स टीजेड मंगवाकर काम करना पड़ा।


लौटा घर तो दो दिन से बाथरूम आते जाते हाल बेहाल।


आज अपने डाक्टर से मिला तो उनने कहा कि पूरे शहर में पेयजल के कारण डायरिया,जीसेंट्री,जान्डिस की महामारी है।


सविता बाबू ने कहा कि पेयजल खरीदकर मिनरल पी रहे है।

उन्हें भी पेट की तकलीफ हो गयी है और उनको भी दिखाना पड़ा।


डाक्टर ने सलाह दी कि खाना भी अब मिनरल से ही पकाना होगा।

बर्तन भी मिनरल से धोना है।

दवा और डाक्टर के खर्च से बचने का यह अचूक रामवाण है।


पेयजल का हाल यह है।

सांसों की तकलीफ के बारे में जो कहें कम है।


जरा बाराक ओबामा की बदली सेहत के बारे में मालूम चले तो राजधानी में विशुद्ध केसरिया हवाओं की सेहत का पता चले जिनके बारे में मशहूर है कि फिसड्डी एशियाई शहरों से भी हाल वहां ज्यादा जहरीला है।


कोलकाता में हावा पानी जलमल एकाकार है और आपराधिक वारदातें दिनचर्या है और बाकी राजनीति है।


यहां कोलकाता को दीदी वाईफाई महानगर बना रही हैं तो ओबामा देश भर में अमेरिकी कंपनियों के पैसे से स्मार्टसिटी बनवा देंगे।


विकास कितना अपच है,यह तो भुक्तभोगी ही जानै हैं।


हमारे मित्र मराठी दैनिक महानायक  के संपादक ने सुबहोसुबह बाकायदा हिंदी में लिखा है असल फंडा है क्या आखेर।


Sunil KhobragadePalash Biswas

सुनील खोपड़ागड़े मराठी दैनिक महानायक के संपादक हैं तो रिपब्लिकन पार्टी के एक बड़े धड़े के नेता भी हैं।वे देवयानी खोपड़गड़े के बाई भी है।

अभी अकस्मात जो दलित व महिला विदेश सचिव सुजाता सिंह को विदेश सचिव पद से अपमानजनक तरीके से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अंधेरे में रखकर बर्खास्त किया गया है,देवयानी उसकी पहली कड़ी है।

सुनीलजी मराठी में ही लिखते हैं और उन्होंने यह टिप्पणी हिंदी में की है।जाहिर है कि वे हिंदी भाषी जनता से संवाद करना चाहते हैं और चूंकि वे रिपब्लिकेन पार्टी के नेता भी हैं एक लोकप्रिय मराठी दैनिक के संपादक होने के अलावा,जो महाराष्ट्र में बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करता है और नियमित निकलता है दूसरे अखबारों का पेशेवर तरीके से मुकाबला करते हुए,उनके इस वक्तव्य पर 30 जनवरी के खास दिन संघ परिवार के एजंडे की सही समझ के लिे नाथूराम गोडसे के महिमामंडन समय में गौर करना जरुरी है।

हमने उनकी वर्तनी सुधारी नहीं है और उनका लिखा जस का तस पेश कर रहे हैं।हूबहू।
पलाश विश्वास

सुनील खोपड़ागड़े ने लिखा हैः

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारतीय जनता पार्टी ने धार्मिक विद्वेष की राजनीती को और प्रखर करणे की कोशिश शुरू की.इसे रोकने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1989 मे भारतीय लोकप्रतिनिधित्व कानून 1951 ( Representation Of People Act )मे संशोधन किया.इस संशोधित धारा का मुलभूत आधार संविधान की प्रास्ताविका है.इस संशोधित धारा के अनुसार देश के हर राजनीतिक दलोंको , भारतीय संविधान की प्रास्ताविका मे निहित, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, देश की संप्रभुता,एकता और अखंडता इन सिद्धान्तो के प्रती प्रतिबद्ध रहने का हलफनामा चुनाव आयोग को देने के लिये बाध्य किया है.चुनाव लडनेवाले हर उम्मिद्वार को चुनाव पर्चा दाखील करते वक़्त ऐसा हलफनामा देना जरुरी है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी की मूलभूत आपत्ती Representation Of People Act मे किये गये इस संशोधन को है. क्योंकी भविष्य मे कोई व्यक्ती या संस्था अदालत मे ये साबित कर दे की, भारतीय जनता पार्टी के सांसद चुनाव आयोग को दिये हुए हलफनामे के अनुसार व्यवहार नही कर रहा है और धार्मिक विद्वेष को बढावा दे रहा है,धर्मनिरपेक्षता,समाजवाद और देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता इन संवैधानिक मुल्यो से प्रतिबद्ध नही है, तो उस सांसद की संसद सदस्यता खतरे मे आ सकती है.इसलिये संविधान की प्रास्तविका मे निहित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने के प्रयास RSS और BJP ने पिछले कुछ सालो से शुरू किया है.इसके तहत संघ परिवार से नाता रखनेवाली एक गैर सरकारी संघटन Good Governance India Foundation द्वारा 2007 में सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर किया गया था और संविधान की प्रास्तविका मे निहित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने और Representation Of People Act मे किये गये उपरोल्लिखित संशोधन को निरस्त करने की मांग की थी. तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश के नामचीन विधीद्न्य फली नरिमन को अनुबंधित कर इस मांग का दृढ़ता से विरोध किया था.फलस्वरूप इस संस्था ने यह मामला छोड दिया और सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2010 में खारीज किया. अब, देश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की स्थापना होने के बाद RSS और BJP अपना यह अजेंडा अंमल मे लाने के लिये जमीन तलाश रही है.गणतंत्र दिन की विज्ञापन से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने की वजह इस पर जनता की प्रतिक्रियाओं का जायजा लेना है.


संविधानाचे संरक्षण ही सर्वांचीच जबाबदारी- संपादकीय 29-1-2015

January 29, 2015 at 8:28pm

महानायक में प्रकाशित संपादकीय

भारत सरकारच्या माहिती व प्रसारण मंत्रालयाकडून देशाच्या 65 व्या प्रजासत्ताक दिनानिमित्ताने विविध प्रसार माध्यमातून एक जाहिरात प्रकाशित करण्यात आली. या जाहिरातीमध्ये भारतीय संविधानातील प्रास्ताविकेला प्रसिद्धी देण्यात आली. मात्र यातून `समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष' हे दोन महत्वपूर्ण शब्द वगळले गेले. जाहिरातील ही चूक अजाणतेपणाने झाल्याचा खुलासा केंद्रीय माहिती व प्रसारण राज्यमंत्री राजवर्धन राठोड यांनी सरकारतर्फे केला आहे. यासंदर्भात यांनी केलेल्या खुलाशात असे म्हटले आहे की, भारतीय संविधानाच्या मूळ प्रास्ताविकेत समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष हे दोन्ही शब्द नाहीत. त्याचा समावेश 1976 साली करण्यात आलेल्या 42 व्या घटना दुरुस्तीद्वारे करण्यात आला. जाहिरातीत वापरण्यात आलेला मजकूर संविधानाच्या 1976 पूर्वीच्या प्रतीमधील आहे. या प्रतीमधील प्रास्ताविका अनवधानाने जाहिरातीसाठी वापरण्यात आल्यामुळे संबंधित जाहिरातीत समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष हे दोन शब्द येऊ शकले नाही. हे शब्द वगळण्याचा सरकारचा हेतू नव्हता. केंद्र सरकारतर्फे केलेला हा खुलासा वरकरणी तरी पटणारा नाही. या संदर्भात वाद निर्माण झाल्यानंतर शिवसेनेचे खासदार संजय राऊत यांनी या प्रकरणी प्रसारमाध्यमांना दिलेल्या निवेदनात हे दोन शब्द वगळण्याचा जोरदार पुरस्कार केला आहे. सरकारने केलेली चूक व संजय राऊत यांचे वक्तव्य यामुळे एका नव्या वादाला सुरुवात झाली आहे.

सरकार चालविणे म्हणजे काही भातुकलीचा खेळ नाही. सरकारची कोणतीही कृती देशाचे संविधान, नियम, कायदे, परंपरा यांचे पालन करुन देशातील सौहार्द्र बिघडणार नाही, याची हमी देणारी असावी लागते. त्यासाठी विशिष्ट असा आराखडा आणि नियोजन असते. त्या आधारावर सरकार चालवावे लागते. आपल्या देशाचा कारभार चालविण्याची रुपरेखा ही संविधानात आहे. म्हणूनच संविधानाला `राष्ट्राचा प्राणग्रंथ' म्हणून स्थान मिळाले आहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदींनी संविधानाला राष्ट्राचा धर्मग्रंथ म्हणून संबोधले आहे. देशाचे प्रधानमंत्री म्हणून त्यांचा हा पहिलाच प्रजासत्ताक दिन होता. प्रजासत्ताक दिनाच्या सोहळ्यासाठी प्रमुख पाहुणे म्हणून लोकशाहीची दिर्घ परंपरा असलेल्या अमेरिकेच्या राष्ट्राध्यक्षांना निमंत्रित करण्यात आले होते. अमेरिकन राष्ट्राध्यक्षांनी भारतातील लोकशाहीची प्रशंसा केली. त्याचवेळी सरकारने धार्मिक विविधतेचा आदर केला पाहिजे, असाही सल्ला भारताला दिला. याचवेळी भारत सरकारने पकाशित केलेल्या जाहिरातीतून लोकशाहीचा अनमोल दस्तावेज असलेल्या भारतीय संविधानाच्या प्रास्ताविकेतील समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष असे हे दोन महत्वाचे शब्द गाळणे म्हणजे संविधानाच्या उत्सवदिनी संविधानावर  प्राणघातक हल्ला चढविण्यासारखा अघोरी प्रकार म्हणता येईल. केंद्रात  स्थापन झालेल्या सरकारची राजकीय विचारसरणी जी काही असेल ती बाजूला ठेऊन सरकारने आता संविधानाचे संरक्षक म्हणून संपूर्ण देशाच्या वतीने राज्यकारभार केला पाहिजे. असे होत नसेल तर या देशाच्या लोकशाहीला खऱया अर्थाने सरकारपासूनच धोका निर्माण झाला आहे, असे म्हणावे लागेल.

भारतीय संविधानाच्या मूळ प्रास्ताविकेत समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे शब्द नव्हते ही वस्तुस्थिती आहे. हे शब्द समाविष्ट करण्यासाठी  तत्कालिन संविधान सभेचे सदस्य प्रोफेसर के.टी. शाह  यांनी संविधानाच्या प्रास्ताविकेत दुरुस्ती करण्याचा प्रस्ताव ठेवला होता. या संदर्भात 15 नोव्हेंबर 1948 रोजी झालेल्या चर्चेदरम्यान अनेक सदस्यांनी प्रोफेसर शाह यांच्या प्रस्तावाला समर्थनही दिले. मात्र ही दुरुस्ती भारतीय संविधानाचे  प्रमुख शिल्पकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी फेटाळून लावली होती. यावेळी केलेल्या भाषणात त्यांनी दोन प्रमुख मुद्यांवर युक्तीवाद केला. त्यापैकी  पहिल्या मुद्यात ते म्हणतात की, `` संविधान म्हणजे सरकारच्या  कारभाराचे आणि सरकारच्या विविध अंगाचे नियमन करणारी एक यंत्रणा आहे. कोणत्याही पक्षांच्या राजकीय धोरणानुसार सरकार चालविण्यास साहाय्य करणारा दस्तावेज नाही.  सरकारचे धोरण काय असावे समाजाचे सामाजिक  आणि आर्थिक संघटन कसे असावे हे काळानुसार बदलणारी परिस्थिती लक्षात घेऊन त्यावेळचे लोक ठरवितील. ही बाब जर संविधानानेच ठरवून दिली तर  लोकशाहीला गतीरोध निर्माण होईल. यामुळे लोकांच्या निर्णय स्वातंत्र्यावर बंधने येतील आजच्या घडीला भांडवलशाही शासन प्रणाली पेक्षा  समाजवादी शासन प्रणाली योग्य वाटत असेल परंतु भविष्यात यापेक्षा एखादी वेगळी प्रणाली लोकांना आकर्षक वाटू शकेल. यामुळे लोकांच्या स्वातंत्र्यावर बंधने आणून त्यांना अमुकच एका प्रकारची शासनप्रणाली स्विकारा असे बंधन संविधानाद्वारे घालणे गैर आहे.''  यासंदर्भातील दुसऱया मुद्यात ते म्हणतात की, `` संविधानात राज्याच्या धोरणाची निती निर्देशक तत्वे समाविष्ट करण्यात आली आहे. ही तत्वे मुलभूत हक्का इतकीच महत्वाची आहेत. या नुसार सरकारने राज्यकारभाराची धोरणे आखतानां 1) देशातील सर्व नागरिकांना, स्त्री- पुरुषांना उपजिवीकेची पुरेशी साधने उपलब्ध होतील अशी व्यवस्था सरकाने केली पाहिजे. 2)  देशाच्या मालकीच्या साधन संपत्तीचे आणि  उत्पादनांच्या भौतिक साधनाचे व संपत्तीचे  वाटप सर्वसामान्यांना उपकारक होईल अशा प्रकारे  केले जाईल  याची खबरदारी राज्याने घेतली पाहिजे. 3) देशाची अर्थव्यवस्था  अशा प्रकारे चालविली गेली पाहिजे की, ज्यामुळे संपत्तीचे आणि उत्पादनाच्या साधनांचे केंद्रीकरण कोणत्याही एका वर्गाकडे होणार नाही.4) पत्येक स्त्री- पुरुषाला समान कामासाठी समान वेतन मिळाले पाहिजे याची खबरदारी राज्याने घेतली पाहिजे. संविधानात नमुद केलेली ही तत्वे म्हणजे समाजवादच आहे. यामुळे प्रस्ताविकेत सोशलिस्ट हा शब्द वेगळेपणाने समाविष्ट करण्याची गरज नाही.'' डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांचे हे स्पष्टीकरण पाहाता देशातील नागरिकांनी बदलत्या काळानुरुप कोणती तत्वप्रणाली स्विकारावी याचे स्वातंत्र्य त्या-त्या पिढीला असले पाहिजे हा त्यांचा आग्रह होता. त्याचप्रमाणे   भारतीय संविधानात समाजवादी तत्वे असल्यामुळे प्रास्ताविकेत पुन्हा समाजवाद हा शब्द समाविष्ट करण्याची गरज नाही हे स्पष्ट होते. संविधानातील  नितीनिर्देशक तत्वे म्हणजे सरकारचा जॉब चॉर्ट आहे. यानुसारच सरकारने राज्यकारभार केला पाहिजे. त्यावेळचे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु यांनी याच जॉब चॉर्टला अनुसरुन आधुनिक भारताच्या विकासाची मुहुर्तमेढ रोवली होती हे नाकारता येणार नाही. प्रधानमंत्री इंदीरा गांधी यांनीही  समाजवादी तत्वांना अनुसरुनच भारतात 1970च्या दशकात जमिन सुधारणा कायदे, बँकांचे राष्ट्रीयीकरण, संस्थानिकांचे तनखे बंद करणे ही पाऊले उचलली. इंदिरा गांधींच्या या सुधारणांना आताच्या भाजपाचे मूळ असलेल्या जनसंघाने कडाडून विरोध केला होता.  मात्र या विरोधाला न जुमानता त्यांनी थोड्याफार प्रमाणात का होईना परंतु राज्याच्या नितीनिर्देशक धोरणाची अंमलबजावणी करणारे कायदे केले. या कायद्यांना विरोध करण्यासाठी जनसंघाने  जयप्रकाश नारायण यांच्या नेतृत्वाखाली इतर विरोधी पक्षांना हाताशी धरुन देशामध्ये गोंधळाचे व अराजकसदृश्य वातावरण तयार केले. जनसंघाला आपला हिंदूराष्ट्राचा अजेंडा उघडपणे राबविणे शक्य नसल्यामुळे जयप्रकाश नारायण यांच्या माध्यमातून `संपूर्ण क्रांती 'चा नारा देण्यात आला. या संपूर्ण क्रांतीचा  मुख्य आधार समाजवाद ही संकल्पना होती. मात्र या आंदोलनाच्या आडून जनसंघ आपले धर्माधिष्ठीत हिंदूत्ववादी राजकारण पुढे आणू इच्छित होता.संपूर्ण क्रांतीच्या नावाने संविधानातील समाजवादी तत्वांची अंमलबजावणी करणाऱ्या सुधारणांना विरोध करणे हे जनसंघाचे उद्दिष्ट होते. हे ओळखून यास  शह देण्यासाठी  इंदिरा गांधी यांनी भारतीय संविधानाच्या प्रास्ताविकेत समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे दोन शब्द 42व्या घटना दुरुस्तीद्वारे समाविष्ट केले.

समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे शब्द संविधानाच्या पास्ताविकेत  समाविष्ट केल्यामुळे जनसंघाला धार्मिक विद्वेषाचे राजकारण करण्यास अडथळा निर्माण झाला.यामुळे जनसंघाने  इतर विरोधी पक्षाच्या माध्यमातून देश अस्थिर करण्याचे प्रयत्न केल्यामुळे इंदिरा गांधीने आणिबाणी घोषित केली. इंदिरा गांधींच्या खुनानंतर रा.स्व.संघाचे राजकीय अपत्य असलेल्या भारतीय जनता पक्षाने धार्मिक विद्वेषाचे राजकारण आणखी टोकदार करण्याचा प्रयत्न चालविला.यास शह देण्यासाठी तत्कालिन प्रधानमंत्री  विश्वनाथ प्रताप सिंह यांनी 1989 मध्ये  भारतीय लोकप्रतिनिधत्व कायदा 1951मध्ये दुरुस्ती केली.  या नुसार  निवडणूक लढविणाऱया प्रत्येक राजकीय पक्षांनी देशाच्या संविधानाच्या प्रास्ताविकेत नमुद केलेल्या  लोकशाही, धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद आणि  देशाचे सार्वभौमत्व, एकता आणि अखंडता या तत्वांशी आपण बांधिल आहोत असे प्रतिज्ञापत्र देणे बंधनकारक आहे. रा.स्व. संघाचा व भारतीय जनता पक्षाचा मूळ आक्षेप या दुरुस्तीला आहे. या दुरुस्तीचा आधार संविधानातील उपरोक्त शब्द असल्यामुळे त्यांना आपले धर्माधारीत राजकारण करण्यास बाधा निर्माण होते.उद्या कोणी, भारतीय जनता पक्षाचे  खासदार  निवडणूक आयोगाला दिलेल्या प्रतिज्ञा पत्रानुसार धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद आणि  देशाचे सार्वभौमत्व, एकता आणि अखंडता या तत्वांशी बांधील न राहता या तत्वांशी विसंगत वर्तन करीत आहे हे न्यायालयात सिद्ध केले तर त्याची खासदारकी रद्द होऊ शकते.यामुळे हे शब्द वगळण्यासाठी संघाचे आणि भाजपाचे प्रयत्न सुरु आहेत.यादृष्टीने  संघ परिवाराशी संबंधीत असलेल्या ` गुड गव्हर्नन्स इंडिया फाऊंडेशन' या अशासकीय संस्थेमार्पत २००७ साली सर्वोच्च न्यायालयात याचिका दाखल करण्यात आली होती. सरकारने याचा जोरदार प्रतिवाद केल्यामुळे 2010 मध्ये ही याचीका फेटाळण्यात आली.  आता मात्र देशात भारतीय जनता पक्षाच्या नेतृत्वाखाली सरकार स्थापन झाल्यामुळे संघाने  आपला अजेंडा राबविण्यासाठी हालचाली सुरु केल्या आहेत. जाहीरातीतून हे शब्द वगळणे याच रणनितीचा एक भाग आहे.या निमित्ताने देशातील नागरिकांमध्ये   हे शब्द  वगळण्याविषयी  काय प्रतिक्रिया उमटते याची चाचपणी  करण्यात आली आहे.

संविधानात `सेक्युलर आणि सोशलिस्ट' हे शब्द  असावेत किंवा असू नयेत याबाबत वाद होऊ शकतो. मात्र हे शब्द जर बदलायचे असतील तर त्यासाठी संविधानाने विहीत केलेली प्रकिया अवलंबून रीतसर घटना दुरुस्तीचे विधेयक ठेऊन केली गेली पाहिजे. या वादासंदर्भात आंबेडकरवादी संघटनांनी जो पवित्रा घेतला आहे, तो केवळ भावनिकतेपोटी आहे. संविधान म्हणजे एखादी धार्मिक पोथी नव्हे. त्यात काळानुरुप बदल करण्याची आवश्यकता भासल्यास असे बदल करण्याची तरतुद खुद्द डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनीच केली आहे दुसरा महत्वाचा भाग म्हणजे संविधानाचे संरक्षण करण्याचा मक्ता केवळ आंबेडकरवाद्यांनीच घेतला आहे असे चित्र अलिकडे निर्माण झाले आहे. संविधानातील तरतुदींचे लाभार्थी या देशातील सर्वच समाजसमुह आहेत. त्यांनीही पुढे येऊन कल्याणकारी समाजव्यवस्थेला हानीकरक ठरतील अशा बदलांना विरोध करणे आवश्यक आहे. आंबेडकरवादी लोक उगाचच भावनीक झाल्यामुळे संविधान केवळ आंबेडकरवादी जनतेच्याच भल्याचे आहे अशी एक धारणा इतर समाजांमध्ये निर्माण झाली आहे. ती दुर करणे गरजेचे आहे. हे लक्षात घेऊन या संदर्भातील विरोध संघटीत करण्याची  रणनिती आखली पाहिजे.





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