Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, January 13, 2014

दिल्ली में संसदीय वामपंथियों का ‘आप’ राग ! Posted by Reyaz-ul-haque on 1/09/2014 02:03:00 PM

दिल्ली में संसदीय वामपंथियों का 'आप' राग !

Posted by Reyaz-ul-haque on 1/09/2014 02:03:00 PM
रूपेश कुमार सिंह

अब जबकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है और दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने गद्दी संभल ली है, तो इस पूरे चुनावी परिदृश्य में संसदीय वामपंथी पार्टियों की भूमिका का विश्लेषण एक बार फिर से जरूरी कार्यभार बन जाता है! हम थोड़ा सा पीछे लौटकर अन्ना आंदोलन की याद को अगर ताजा करें तो उस समय भी उस भ्रष्टाचार विरोधी उभार को हथियाने के लिए भाजपा से लेकर तमाम संसदीय वामपंथी पार्टियों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अन्ना के मंच से भाषण देने के लिए लालायित कॉमरेडों ने उस समय अपना पूरा जोर लगाया। जब राजघाट के मंच पर ये भाषण देने आए, इन्हें तब वहां जुटे अन्ना के अनुयायियों ने उन्हें हूट किया और उन्हें भाषण तक नहीं देने दिया गया! जब केजरीवाल ने पार्टी बनाई तो अन्य पार्टियों के तरह संसदीय वाम दलों ने भी कहा कि 'ये पार्टी नहीं चलनेवाली!' जब दिल्ली में केजरीवाल ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए और अपना लम्बा-चौड़ा घोषणापत्र जनता के बीच रखा तो इसे भी उन्होंने बकवास ही करार दिया और 5 वामपंथी पार्टियों (भाकपा, माकपा, भाकपा-माले लिबरेशन, फॉरवर्ड ब्लॉक, एसयूसीआई (सी)) ने अलग-अलग 20 सीटों से अपने उम्मीदवार भी खड़े किये! स्वाभाविक है, जिस क्षेत्र से इन्होंने अपने उम्मीदवार खड़े किये थे, वहां इन्होंने आप का विरोध भी किया होगा, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही इनके सुर-ताल बदल गये !

वैसे अगर कहा जाये तो इस तरह का बदलाव कोई पहली घटना नहीं थी, इनका इतिहास ही अवसरवादिता का रहा है! ये बिहार में कभी लालू का विरोध करते हैं तो कभी समर्थन और नीतीश कुमार के साथ भी यही सलूक है इनका। यूपी में कभी मुलायम सिंह से गलबहियाँ करते हैं तो कभी इनके खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन! खैर यहाँ हम दिल्ली के बारे में बात कर रहे हैं, दिल्ली में इनका गिरगिट क़ी तरह रंग बदलने का कारण, इन पार्टियों को मिले वोट से भी पता चलता है। माकपा को द्वारका, करावल नगर और शाहदरा में क्रमशः 684, 1199 और 121 वोट मिले, भाकपा को बाबरपुर, छतरपुर, मंगोलपुरी, नरेला, ओखला, पालम, पटपड़गंज, सीमापुरी, तीमारपुर और त्रिलोकपुरी में क्रमशः 794, 745, 789, 643, 660, 498, 362, 699, 637 और 476 वोट मिले, भाकपा-माले लिबरेशन को कॉन्डली, नरेला, पटपड़गंज और वजीरपुर में क्रमशः 203, 338, 146 और 172 वोट मिले, फॉरवर्ड ब्लॉक को किरारी और मुंडका में क्रमशः 173 और 175 वोट मिले और एसयूसीआई(सी) को बुराड़ी में 325 वोट मिले ! अब अगर हम इन सभी वोटों को एक साथ भी मिला दें तो वह संख्या आप को किसी एक सीट पर मिले वोटों की बराबरी भी नहीं कर सकेगी! इसलिए जैसे ही चुनाव का रुझान आप के पक्ष में आना शुरू हुआ, संसदीय वामपंथी पार्टियों के नेता और विचारकों का मूल्यांकन भी बदलने लगा! चुनाव परिणाम आने के बद तो हद ही हो गई, जब इनके महासचिवों ने प्रेस बेयान जारी कर केजरीवाल को भ्रष्टाचार विरोधी नायक के रूप में स्थापित करने की बेशर्मी भरी कोशिश शुरू कर दी, फिर क्या था, इनके विचारकों ने भी इनको आप से सीख लेते हुए अपनी नीतियों में तब्दीली लाने की सिफारिश की और सोशल साइटों पर आप के कशीदे काढ़ने शुरू कर दिए!

जबकि असलियत सभी जानते हैं कि केजरीवाल प्रसिद्ध एनजीओ कर्मी रहे हैं और आरक्षण विरोधियों के समर्थक भी! एनजीओ किस तरह से जनता को बरगलाता है, ये किसी से छुपा नहीं है और आप का पूरा घोषणापत्र या एजेंडा एक एनजीओ के तरह ही सुधारवादी घोषणाओं से भरा पड़ा है! आप आर्थिक नीतियो या फिर राज्य दमन के सवाल पर कुछ नहीं बोलती!

अंत में कुछ सवाल

भाकपा-माले लिबरेशन के दिल्ली राज्य सचिव संजय शर्मा ने 28 दिसम्बर को प्रेस बयान जारी कर कहा है 'दिल्ली में शक्तिशाली तीसरी ताकत के रूप में 'आप' का उभार और आम लोगों के बुनियादी सवालों का राजनीति में केन्द्रीय एजेण्डा बन जाना स्वागत योग्य परिघटना है। 'आप' के उदय ने आन्दोलन आधारित राजनीति के महत्व को पुर्नस्थापित किया है, साथ ही यथास्थितिवादी राजनीति के पैरोकारों, खासकर कांग्रेस और भाजपा, के विकल्प के लिए आम जनता की तलाश को महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित किया है। 'आप' के घोषणापत्र में दिल्ली के मेहनतकशों के बहुत से सवाल शामिल हैं, जिस कारण उन्हें इस तबके से महत्वपूर्ण समर्थन भी मिला."

ये बयान कई सवाल खड़े करता है:

1)    अगर 'आप' ने आम लोगों के बुनियादी सवालों को राजनीति के केन्द्रीय एजेंडे में ला दिया, तो अब तक आप क्या कर रहे थे कॉमरेड?

2) अगर "आप" ने आन्दोलन आधारित राजनीति के महत्व को पुनर्स्थापित किया है तो आपलोग आन्दोलन कर रहे हैं या नौटंकी?

3) "आप" की चुनावी सफलता की ओट में सुधारवादी कार्यनीति आपका प्रमुख एजेंडा तो नहीं बन जाएगा?

No comments:

Post a Comment