Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Sunday, July 7, 2013

भूख का शर्तिया सरकारी इलाज

भूख का शर्तिया सरकारी इलाज

कहा ऐसे जा रहा है कि खाद्य संरक्षण विधेयक को मजबूरी में अध्यादेश के जरिए इसलिए राष्ट्रपति की मंजूरी दिलाई गई है क्योंकि इससे देश में भूख से जुड़े सारे संतापों का अंत हो जाएगा। अध्यादेश पर संसद की अनुमति दिलाने के लिए सरकार के पास छह महीने का समय होता है और अच्छी बात यह है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तब भी इसी समय सीमा के आसपास देश में लोकसभा का चुनाव हो रहा होगा।  मतलब यह कि अगर देश को भूख से निजात दिलाना है तो कम से कम इस चुनाव में कांग्रेस की सरकार जैसे भी हो, बननी चाहिए। तभी, तीन साल तक देश में कोई भूख से नहीं मरेगा, इसकी पक्की गारंटी है।

तीन साल के बाद इस दौरान के नुकसान का अर्थशास्त्रीय हिसाब किताब लगाया जाएगा और इस बात की पड़ताल की जाएगी कि जाएगी कि किन तथ्यों पर ज्यादा ग़ौर करने की जरूरत है। क्योंकि इसी बीच फैसला हो जाना है कि देश के लोगों को अर्थशास्त्रीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जरूरत है या फिर किसी और की। अगर, दुर्घटनावश फिर से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनते हैं तो स्वाभाविक तौर पर देश की वित्तीय स्थिति को सुधारने की जिम्मेदारी पी चिदंबरम के पास होगी और चूंकि इस दौरान गरीबों का पेट भरने में जो सरकारी खजाना खाली होगा, उसकी भरपाई करने की चुनौती उनके सामने होगी। नतीजा, यह होगा कि व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए गरीबों के पेट को बाजार के नीति निर्धारकों के हवाले कर दिया जाएगा और चिदंबरम मुस्कुराते हुए बाइट देंगे कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कभी कभार ठोस निर्णय लेने पड़ते हैं।

ऐसा साफ साफ कह भी दिया गया है। सरकार इस बार किसी तरह से किसी को भी किसी भी मुगालते में नहीं रखना चाहती। सो, भोजन के इंतजाम का यह फंडा मौजूदा दर पर तीन साल के लिए ही है। तीन साल के बाद मूल्यों का पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा और इस बात की पड़ताल की जाएगी कि भूखों का पेट भरना देश हित में है या फिर सरकारी खजाने की माली स्थिति को सुधारना ज्यादा जरूरी है। मगर, फिलहाल तो जो लोग बरसों से भूखे हैं, यह उनके लिए जश्न मनाने का वक़्त है।

आप गरीब भी हैं और आपको भूख भी लगी है तो आपके पास पेट भरने के लिए तीन विकल्प यहां पर दिए जा रहे हैं। चावल खाना चाहते हैं तो आपको महीने के 15 रुपए का इंतजाम करना है, गेहूं के लिए मात्र 10 रुपए और अगर इतना भी नहीं है तो पांच रुपये तो आपके पास होंगे ही। मोटा अनाज, मतलब ज्वार, बाजरा जैसे अनाज प्रति किलो एक रुपये कीमत पर उपलब्ध कराया जाएगा। पकाने और पचाने के झंझट से पूरी राहत। और अगर इतने की व्यवस्था भी आप नहीं कर सकते तो आपकी भूख से मौत की गारंटी सरकार की नहीं बनती है। महीने का पांच किलो अनाज पेट भरने के लिए कम थोड़े ही है। एक व्यक्ति दिन भर में कितना खाएगा? भूखे हैं इसका मतलब यह थोड़े ही है कि आप दूसरों के हिस्से को भी गटक जाएं? देश में अनाजों की कमी की जानकारी भी तो आपको होने चाहिए?

एक आदमी को स्वस्थ रहने के लिए कम से कम चार से पांच चपाती और 200 से ढ़ाई सौ ग्राम तक की सब्जियां मिलनी चाहिए। यानी कुल मिला कर आप जो भी खाना खाएं उससे आपको कम से कम 2200 कैलोरी के करीब ऊर्जा मिलने का व्यवस्था होनी चाहिए। अन्यथा, गरीबी का जो संताप आप पहले से झेल रहे हैं वह तो झेल ही रहे हैं, एक बार बीमारी की चपेट में आए नहीं कि अस्पताल पहुंचने से पहले आपकी मौत पक्की है। अब प्रति व्यक्ति 5 किलो महीने के अनाज का मतलब है कि आप या तो स्वस्थ रहने के लिए पूरा पेट भर खाना खा कर उसे दस-पंद्रह दिन में खत्म कर लें या फिर नाममात्र का खाना खा कर उसे महीने भर चलाएं। पेट आपका है और तय भी आपको करना है क्योंकि पेट भरना ज्यादा जरूरी है ना कि डकार लेना।

अच्छा, इस व्यवस्था को लागू होने में कम से कम छह महीने तक का वक़्त लगेगा, तब तक आप खाने को देख कर मुंह में आ रहे पानी पर नियंत्रण रखिए और चुनाव के दौरान जब वोट डालने के लिए जाएं तो इस बात का खयाल रखिए। वरना, अगर सरकार बदल जाती है तो पता नहीं। क्योंकि, बाद की जो सरकार आएगी, वह अगर इसे कानून बनाने का काम करती है तो कांग्रेस उसका विरोध करेगी और इसलिए भी करेगी क्योंकि आपकी मौजूदगी उनके लिए मायने नहीं रखती। आपका पेट आपकी जिम्मेदारी है।

आप अगर, अपने पेट को भरने का इंतजाम नहीं कर सकते तो आपका भूखे मर जाना ही बेहतर है। इतनी बड़ी आबादी का पेट फोकट में नहीं भरा जा सकता। आप जो अनाजों के सड़ने की खबरें पढ़ते हैं या फिर देखते हैं, वह सड़ता नहीं सड़ाया जाता है और उसे सड़े अनाज से अच्छी किस्म की शराब बनती है। अच्छी शराब की कीमत भी अच्छी मिलती है। देश की प्रगति के ग्राफ को ठीक करना सरकार की प्राथमिकता है। भूखे नंगों का पेट भर कर देश की स्थिति को और नहीं बिगाड़ा जा सकता। जो आदमी सिर्फ अधिकतम 15 रुपये खर्च कर महीने भर भरपेट खाना खाने की चाहत रखता है उसका भूखा मर जाना ही बेहतर है। ऐसे लोग गिनती बढ़ा बढ़ा कर देश का नाम बदनाम कर रहे हैं।

http://bhadas4media.com/vividh/12844-2013-07-07-08-58-05.html

गिरिजा नंद झा का विश्लेषण.

No comments:

Post a Comment