कॉरपोरेट जगत के हित में देश की आम जनता के संहार की योजना रोकें
प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत
कॉरपोरेट जगत के हित में देश की आम जनता के संहार की योजना रोकें
अरुंधति रॉय, नोम चोम्स्की, आनंद पटवर्धन, मीरा नायर, सुमित सरकार,
डीएन झा, सुभाष गाताडे, प्रशांत भूषण, गौतम नवलखा, हावर्ड जिन व अन्य
प्रति
डॉ मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल
नयी दिल्ली, भारत-110011
हम आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्यों के आदिवासी आबादीवाले इलाकों में भारत सरकार द्वारा सेना और अर्धसैनिक बलों के साथ एक अभूतपूर्व सैनिक हमला शुरू करने की योजनाओं को लेकर बेहद चिंतित हैं. इस हमले का घोषित लक्ष्य इन इलाकों को माओवादी विद्रोहियों के प्रभाव से 'मुक्त' कराना है, लेकिन ऐसा सैन्य अभियान इन इलाकों में रह रहे लाखों निर्धनतम लोगों के जीवन और घर-बार को तबाह कर देगा तथा इसका नतीजा आम नागरिकों का भारी विस्थापन, बरबादी और मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा. विद्रोह को नियंत्रित करने की कोशिश के नाम पर भारतीय नागरिकों में से निर्धनतम लोगों का संहार प्रति-उत्पादक और नृशंस दोनों है. विद्रोहियों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों द्वारा निर्मित और पोषित हथियारबंद गिरोहों की मदद से अर्ध सैनिक बलों द्वारा जारी अभियान ने पहले से ही छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में सैकड़ों हत्याओं और हजारों के विस्थापन के साथ गृह युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है. प्रस्तावित हथियारबंद हमला आदिवासी जनता में न सिर्फ गरीबी, भुखमरी, अपमान और असुरक्षा की स्थिति को और बदतर करेगा, बल्कि इसका एक बड़े इलाके में प्रसार भी कर देगा।
1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय राज्य के नीतिगत ढांचे में आये नवउदारवादी मोड़ के बाद से भारत की आदिवासी जनता को बढ़ती राजकीय हिंसा के जरिये अंतहीन गरीबी और निकृष्टतम जीवन स्थितियां ही हासिल हुई हैं. जंगल, जमीन, नदियों, साझे चरागाहों, गांव के तालाबों और अन्य साझे संसाधनों का गरीब जो भी थोड़ा-बहुत इस्तेमाल कर पा रहे थे, उस पर भी, स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) और उत्खनन, औद्योगिक विकास, आइटी पार्क आदि संबंधी दूसरी 'विकास' परियोजनाओं के कारण भारत सरकार द्वारा हमला बढ़ता जा रहा है. वे भौगोलिक भूभाग, जहां सरकार की सैन्य हमले की योजना है, खनिज, वन संपदा और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं और अनेक कॉरपोरेशनों के बड़े पैमाने पर लूट के निशाने पर रहे हैं. निराशा की स्थिति में स्थानीय आदिवासी जनता द्वारा विस्थापन और अभिवंचनाओं के विरुद्ध किये जा रहे प्रतिरोध ने अनेक मामलों में सरकार समर्थित कारपोरेशनों को उन इलाकों पर कब्जा करने से रोक रखा है. हमें डर है कि सरकार की यह कार्रवाई इन कारपोरेशनों को इन इलाकों में प्रवेश दिलाने और काम शुरू कराने के लिए तथा इन इलाकों के प्राकृतिक संसाधनों और लोगों के निर्बाध शोषण के लिए रास्ता खोलने के लिए ऐसे लोकप्रिय प्रतिरोधों को कुचलने की एक कोशिश भी है. यह हताशा का बढ़ता स्तर है और सामाजिक वंचना और संरचनागत हिंसा है और अपने अभावों के खिलाफ गरीबों और हाशिये पर जी रहे लोगों के अहिंसक प्रतिरोधों पर राजकीय दमन है, जो सामाजिक आक्रोश और अशांति को बढ़ा रहा है और इसे गरीबों की राजनीतिक हिंसा का रूप दे रहा है. समस्या के स्रोत पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, भारत सरकार ने समस्या से निबटने के लिए सैन्य हमला शुरू करने का निर्णय लिया है, लगता है कि भारत सरकार का यह एक अंतर्निहित नारा है- गरीबों को मारो, गरीबी को नहीं।
हम महसूस करते हैं कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक विध्वंसक कदम होगा, यदि सरकार ने अपने लोगों को, बजाय उनके शिकायतों को निबटाने के उनका सैन्य रूप से दमन करने की कोशिश की. ऐसे किसी अभियान की अल्पकालिक सफलता तक पर संदेह है, लेकिन आम जनता की भयानक दुर्गति में कोई संदेह नहीं है, जैसा कि दुनिया में अनगिनत विद्रोह आंदोलनों के मामलों में देखा गया है. हमारा भारत सरकार से कहना है कि वह तत्काल सशस्त्र बलों को वापस बुलाये और ऐसे किसी भी सैन्य हमले की योजनाओं को रोके, जो गृहयुद्ध में बदल जा सकते हैं और जो भारतीय आबादी के निर्धनतम और सर्वाधिक कमजोर हिस्से को व्यापक तौर पर क्रूर विपदा में धकेल देगा तथा उनके संसाधनों की कॉरपोरेशनों द्वारा लूट का रास्ता साफ कर देगा. इसलिए सभी जनवादी लोगों से हम आह्वान करते हैं कि वे हमारे साथ जुड़ें और इस अपील में शामिल हों.
अरुंधति रॉय, लेखिका व कार्यकर्ता
नोम चोम्स्की, एमआइटी, अमेरिका
हावर्ड जिन, इतिहासकार, नाटककार व सामाजिक कार्यकर्ता, अमेरिका
जॉन बेलेमी फोस्टर, संपादक, मंथली रिव्यू, अमेरिका
अमित भादुड़ी, प्राध्यापक, जेएनयू
प्रशांत भूषण, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
नंदिनी सुंदर, प्राध्यापक, दिल्ली विवि
कोलिन गोंजालवेज, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
आनंद पटवर्धन, फिल्म निर्माता
मीरा नायर, फिल्मकार, अमेरिका
दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव, भाकपा (माले) लिबरेशन
बर्नार्ड डिमेलो, एसोसिएट एडीटर, इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली
सुमित सरकार, इतिहासकार
तनिका सरकार, इतिहासकार
गौतम नवलखा, सलाहकार संपादक, इपीडब्ल्यू
मधु भंडारी, पूर्व राजदूत
सुमंत बनर्जी, लेखक
डॉ वंदना शिवा, लेखक व पर्यावरण कार्यकर्ता
जीएन साईबाबा, प्राध्यापक, दिल्ली विवि
अमित भट्टाचार्य, प्राध्यापक, जादवपुर विवि
डीएन झा, इतिहासकार
डेविड हार्वे, नृतत्वशास्त्री, अमेरिका
माइकल लोबोवित्ज, अर्थशास्त्री, वेनेजुएला
जेम्स सी स्कॉट, प्राध्यापक, येल विवि, अमेरिका
माइकल वाटस, प्राध्यापक, कैलिफोर्निया विवि, अमेरिका
महमूद ममदानी, प्राध्यापक, कोलंबिया विवि, अमेरिका
संदीप पांडेय, कार्यकर्ता, एनएपीएम
अरविंद केजरीवाल, सामाजिक कार्यकर्ता
अरुंधति धुरु, कार्यकर्ता, एनएपीएम
स्वप्ना बनर्जी गुहा, प्राध्यापक, मुंबई विवि
गिलबर्ट आसर, प्राध्यपक, लंदन विवि
सुनील शानबाग, रंग निर्देशक
सुदेशना बनर्जी, प्राध्यापक, जादवपुर विवि
अचिन चक्रवर्ती, प्राध्यापक, विकास अध्ययन संस्थान, कलकत्ता विवि, अलीपुर
आनंद चक्रवर्ती, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, दिल्ली विवि
सुभा चक्रवर्ती दासगुप्त, प्राध्यापक, जादवपुर विवि
उमा चक्रवर्ती, इतिहासकार
कुणाल चट्टोपाध्याय, प्राध्यापक, जादवपुर विवि
अमिय दुबे, प्राध्यापक, जादवपुर विवि
सुभाष गाताडे, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता
अभिजित गुहा, विद्यासागर विवि
कविता कृष्णन, एपवा
गौरी लंकेश, संपादक, लंकेश पत्रिका
पुलिन बी नायक, प्राध्यापक, दिल्ली विवि
इमराना कदीर, सेनि प्राध्यापक, जेएनयू
निशात कैसर, प्राध्यापक, जामिया मिलिया इसलामिया
रामदास राव, अध्यक्ष, पीयूसीएल, बेंगलुरू ईकाई
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