लावारिश लाशों का भी पैसा डकारते अधिकारी
- SUNDAY, 06 MAY 2012 21:42
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संसाधनों के अभाव में लावारिस लाशों को ठिकाने लगाने में पुलिसकर्मियों की एक तरह से मजबूरी है. लावारिश शवों के निस्तारण हेतु शासन से मिलने वाली धनराशी उन तक पहुंच ही नहीं पाती है. बड़े अफसर अपने स्तर पर करोड़ों की धनराशी की बंदरबांट कर मलाई काट रहे हैं...
आशीष वशिष्ठ
प्रदेश भर में प्रतिवर्ष सैंकड़ों लावारिस शवों का निस्तारण पुलिस विभाग कितनी क्रूरता और अमानवीय तरीके से करता है ये सच्चाई किसी से छिपी नहीं है. प्रदेश की नदियों में तैरने और किनारों पर सडऩे वाले शवों के अंतिम संस्कार के लिए प्रदेश सरकार हर वर्ष करोड़ों का बजट पास करती जरूर है लेकिन उस धनराशी की बंदरबांट थानों तक पहुंचने से पहले ही चंद आला अफसर कर लेते हैं और थानों में तैनात सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी अपनी जेब से या किसी की मदद से लावारिस शवों का निस्तारण करते हैं.
प्रतिवर्ष लावारिस शवों की बढ़ती संख्या के सामने मजबूर पुलिसकर्मी डयूटी निभाने के नाम पर जैसे-तैसे शवों को नदी, नाले या किसी अज्ञात स्थान पर फेंककर अपनी जान से पिंड छुड़ाते हैं. लेकिन अहम् सवाल यह है कि जब प्रदेश में लावारिस शवों के निस्तारण के लिए शासनादेश है तब थानों तक पैसा क्यों नहीं पहुंच पाता है और लावारिस लाशों के कफन का पैसा किसके पेट में जा रहा है.
उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसिएशन के संस्थापक सुबोध यादव ने बताया कि अज्ञात शवों के अन्तिम संस्कार हेतु अनुमन्य धनराशि रूपये 1500 पुलिसकर्मियों को उपलब्ध न कराने एवं घोटाले में लिप्त आई.पी.एस. अधिकारियों की निष्पक्ष जांच कराने हेतु पत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखा है. यादव ने शासनादेश का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री से दोषी पुलिस अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग भी की है.
सुबोध ने बताया कि साधनों और संसाधनों के अभाव में लावारिस लाशों को ठिकाने लगाने में पुलिसकर्मियों की एक तरह से मजबूरी है क्योंकि लावारिश शवों के निस्तारण हेतु शासन से मिलने वाली धनराशी उन तक पहुंच ही नहीं पाती है. बड़े अफसर अपने स्तर पर करोड़ों की धनराशी की बंदरबांट कर मलाई काट रहे हैं. जब मैं पुलिस की नौकरी में था तो मेरे सामने भी ऐसे कई मामले आए जब मुझे अपनी जेब से पैसे लगाकर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ा.
सुबोध यादव ने अपने पत्र में लिखा है कि प्रार्थी अपने सेवाकाल के अनुभवों तथा पूरे उ0प्र0 में कार्यरत पुलिस कर्मियों के दैनिक अनुभवों के आधार पर पूरी तौर पर संतुष्ट है. शासन द्वारा सूबे में लावारिस शवों के निस्तारण हेतु 1500 रुपये पुलिस महकमे को देने का प्रावधान शासनादेश संख्या डब्ल्यू- 1733/6-पु.-2-08-1500(11)/98 टी.सी. -11 दिनांक 17.11.2008 के माध्यम से किया गया है, लेकिन वास्तविकता में इस आदेश का पालन प्राय: नहीं किया जा रहा है.
ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों को आंशिक या समस्त व्यय अपनी जेब से करके ही अन्तिम संस्कार कराना पड़ता है. उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों की यह समस्या आपकी सेवा में संज्ञान लेने हेतु प्रेषित है आपसे विनम्र प्रार्थना है कि पुलिस कर्मियों की समस्या का समाधान हेतु कृपया कठोर कार्यवाही करने की कृपा करें. इस प्रकरण की जांच माननीय उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में किसी आयोग से करा ली जाये, तो स्वत: स्पष्ट हो जायेगा कि कफन और और अंतिम संस्कार की राशि का बन्दरबांट कौन-कौन कर रहा है तथा यह धनराशि वास्तविक रूप में पुलिस कर्मियों को प्राप्त कराना सुनिश्चित किया जाय तो सभी पुलिस कर्मी आपके आभारी रहेंगे.
बातचीत में सुबोध यादव ने बताया कि नौकरी में रहते हुए मैंने इस मामले को उठाया था और सूचना के अधिकार के तहत जानकारी सरकार से मांगी थी लेकिन पूर्ववर्ती सरकार ने मामले को दबाने का प्रयास किया. नयी सरकार से उम्मीद है कि वो मानवीय सोच के तहत लावारिस लाशों के साथ होने वाली क्रूरता और अमानवीय व्यवहार को रोकने के लिए थानों तक धनराशी पहुंचाने की व्यवस्था करेगी और पिछले कई सालों से करोड़ों की बंदरबांट में शामिल अफसरों की जांच कराकर कड़ी सजा देगी.
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