शिवराम गुपचुप चला गया बिना कोई खबर दिये!नुक्कड़ नाटक का ककहरा शिवराम ने सिखाया!
पलाश विश्वास
शिवराम गुपचुप चला गया बिना कोई खबर दिये!
शिवराम सचमुच क्रांतिधर्मी नाटककार थे। उनके नाटक लोकप्रियता की कसौटी पर भी खरे उतरे और श्रेष्ठता के सभी मापदण्ड भी पूरे करते हैं।
सफदर हाशमी की हत्या के बाद नुकक्ड़ नाटक आंदोलन का श्रैय उन्हीं को गिया गया। पर पूरे सत्तर दशक तक नुक्कड़ नाटक में शिवराम के अलावा कोई नहीं था हिंदी में। उत्तरार्द्ध में हर अंक में उनका नाटक छपना और उस नाटक की प्रस्तुतियां चालू हो जाना नियमित था। आज उत्तरार्ध संपादक सव्यसाची को कोई कामरेड याद नहीं करता। पर हम हिंदीभाषी युवाजन तो सव्यसाची के जरिए ही सत्तर के दशक में वामपंथी विचारधारा को जानते समझते थे। लगातार सक्रिय प्रतिबद्ध शिवराम से हमारी मुलाकात कोटा में उनके द्वारा आयोजित भूमिगत लेखक सम्मेलन में १९७६ में आपातकाल के दौरान हुई थी। हमारे पास पैसे न थे। कपिलेश भोज और मैं नैनीताल के राजकीय इंटर कालेज में पहले वर्ष के छात्र थे। गरमियों के अवकाश के दरम्यान हम सव्यसाची से मिलने मथुरा पहंच गये एक सुबह। जहां हमें डा. कुंवर पाल सिंह, नमिता सिंह, धीरेंद्र अस्थाना, सुनीत चोपड़ पहले से जमा मिले। सब कोटा जा रहे थे। सव्यसाची के कहने पर हम भी चल दिये। वहां शिवराम और महेंद्र नेह से मुलाकात हुई। तबसे दोस्ती है। कोलकाता भी घूम गया वह। विकल्प को लेकर लंबी बात हुई। मैं दॐिण भारत की यात्रा पर था। इसलिए मुझे मालूम ही नहीं पड़ा कि करीब चार दशक की दोस्ती का बंधन तोड़कर शिवराम यूं ही चला गया।
दरअसल गिरदा से मुलाकात से पहले ही हम शिवराम से मिल चुके थे। जनता पागल हो गई है , का मंचन देख चुके थे। इसी वजह से गिरदा के रंगकॆम से अपने को जोड़ने हमें कोई देरी नहीं लगी। गिरदा से रोज मुलाकाते होती थीं, पर शिवराम से मुलाकाते नहीं हो पाती थी। पर आत्मीयता में वह गिरदा जैसा ही अंतरंग था। दोनों के सामाजिक सरोकार भी समान थे। गिरदा के निधन के बाद शिवराम का ऐसे चला जाना सचमुच हमें अकेला बना गया।
अभिव्यक्ति के पहले अंक में मेरी कविताएं छपी थीं। फिर एक लंबा सफर तय हुआ अभिव्यक्ति के साथ, जो अचानक बिना नोटिस खत्म हो गया। गिरदा और शिवराम के बिना अपना वजूद खाली खाली लगने लगा है।शिवराम ने नाटकों के नये स्वरूप को विकसित किया। उनका सदैव यह प्रयास रहा कि नाटक दर्शकों के साथ-साथ आम प्रेक्षक वर्ग तक भी पहुँचे। इस दृष्टि से उनके नाटक पूर्ण सफल रहे हैं। शिवराम ने लुप्त होती जननाट्य शैली को पुनः विकसित किया था। उनका मुख्य उद्देश्य नाटकों को जनप्रिय बनाये रखने का था। इसीलिए उनके नाटक विभिन्न आस्वादों से युक्त रहते थे। नन्द चतुर्वेदी ने उनके नाटक 'जनता पागल हो गई है', 'पुनर्नव', 'गटक चूरमा' आदि नाटक बहुत लोकप्रिय रहे।
भिवाड़ी & जाने माने साहित्यकार व रंगकर्मी डा.शिवराम स्वर्णकार के निधन पर साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति की ओर से श्रद्धांजलि दी गई।
शोकसभा मे वक्ताओं ने शिवराम के निधन को हिन्दी साहित्य की अपूर्णीय क्षति बताया। शोकसभा में आर भारती, मुकेश शुक्ला, डा.जगन्नाथ, राजेश गौड़ आदि उपस्थित थे। ज्ञातव्य है कि डा.शिवराम गत 23 मार्च को भिवाड़ी में अभिव्यक्ति द्वारा आयोजित शहीद दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप मे भाग लेने आये थे।
नुक्कड़ नाटक का ककहरा शिवराम ने सिखाया
खबरइंडियान्यूज नेटवर्क
पटना।शिवराम को हिन्दी नुक्कड़ नाटक के जन्मदाता होने का श्रेय जाता है। शिवराम के नुक्कड़ नाटक "जनता पागल हो गयी है"के वगैर पटना रंगमंच की कल्पना नहीं की जा सकती। हमलोगों ने नुक्कड़ नाटक का ककहरा उसी नाटक से सीखा ये बातें सुप्रसिद्ध रंगकर्मी जावेद अख्तर ने हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी द्वारा आयोजित शिवराम स्मृति सभा में बोलते हुये कही। जावेद अख्तर ने कहा कि शिवराम के नाटक ने पहली बार नुक्कड़ नाटक के वर्तमान स्वरुप को निर्धारित किया। ये बड़े अफसोस की बात है कि"जनता पागल हो गयी है"के अलावा उनकी किसी और कृति के बारे में हम नहीं जानते। ज्ञात हो 61 वर्षीय शिवराम की पिछले दिनों मृत्यु हो गयी थी। शिवराम स्मृति सभा को रामकुमार मोनार्क, अनीश अंकुर और जयप्रकाश ने संबोधित किया। कार्यक्रर्म का संचालन राजीव रंजन श्रीवास्तव ने किया।
http://www.khabarindiaa.com/DetailNews.aspx?id=2202
पलभर में अलविदा हो गए शिवराम
Source: Bhaskar Newsकोटा. जाने-माने साहित्यकार, रंगकर्मी एवं साम्यवादी विचारक शिवराम स्वर्णकार का शुक्रवार दोपहर को हृदय गति रूक जाने से अचानक निधन हो गया। इससे शहर में शोक की लहर दौड़ गई।
वे 61 वर्ष के थे और बीएसएनएल के सब डिवीजनल इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
उनका अंतिम संस्कार शनिवार सुबह साढ़े 10 बजे किशोरपुरा मुक्तिधाम पर किया जाएगा। तलवंडी स्थित उनके निवास से शनिवार सुबह 8.30 बजे शवयात्रा रवाना होकर छावनी में राजस्थान सीटू कार्यालय पहुंचेगी। वहां उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
उसके बाद शवयात्रा रवाना होकर किशोरपुरा मुक्तिधाम पहुंचेगी। शिवराम के निधन से समूचे सहित्यिक एवं ट्रेड यूनियन जगत में शोक की लहर दौड़ गई। वे मजदूर-कर्मचारियों के आंदोलनों में सतत सक्रिय रहे और एमसीपीआईयू के पोलित ब्यूरो सदस्य होने के साथ ही राजस्थान सीटू के संभागीय अध्यक्ष थे।
उनकी कविताओं, समीक्षा एवं नाटकों की करीब 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बिहार यूनिवर्सिटी के छात्रों ने उनके कृतित्व पर शोधकार्य किया। वे त्रैमासिक 'अभिव्यक्ति' पत्रिका के संपादक और विकल्प जनवादी सामाजिक सांस्कृतिक मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री थे। नुक्कड़ नाटक आंदोलन के वे प्रणोता माने जाते थे और नाटक लेखन, निर्देशन एवं अभिनय में उनकी कोई सानी नहीं थी।
उनका नाटक 'जनता पागल हो गई' देश में सर्वाधिक खेले जाने वाले नाटकों में से एक है तथा देश की सभी प्रमुख भाषाओं में उनके नाटकों का अनुवाद हो चुका है। काव्य मधुबन संभागीय अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी, डा. उषा झा, भगवतीप्रसाद गौतम, विजय जोशी, स्नेहलता चड्ढा, अभिव्यक्ति नाट्य मंच के सचिव कपिल सिद्धार्थ, आशीष मोदी, अजहर अली, हरप्रीत बेदी, पुरूषोत्तम, संजीव शर्मा एवं जितेंद्र सोनी आदि ने शिवराम के निधन पर गहरा शोक जताया है।
श्रद्धांजलि
स्व. शिवराम- हिंदी और राजस्थानी साहित्य का एक ऐसा चमकता सितारा जिसने अपनी रोशनाई से समूचे साहित्य जगत को जगमगाया..! अब ये सितारा हमारे बीच नहीं रहा..पर समूचे साहित्य जगत में उनके योगदान तक युगों-युगों तक नहीं भूल पायेगा..! आइये आज उन्ही की एक अमर कृति से उनको श्रद्धांजली अर्पित करें..!
जन्म- 23 दिसंबर 1949 को राजस्थान के करौली नगर में ।
शिक्षा - गांव गढ़ी बांदुवा, करौली और अजमेर में।
परिचय
33 वर्षों से हिन्दी की महत्वपूर्ण साहित्यिक लघु पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का संपादन ।
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे। जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से वे एक । अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा 'विकल्प' के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका । वर्तमान में 'विकल्प' के महासचिव थे।
भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) सदस्यता ग्रहण की। पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य ।
प्रकाशित पुस्तकें
• जनता पागल हो गई है (नाटक संग्रह)
• घुसपैठिए (नाटक संग्रह)
• दुलारी की माँ (नाटक)
• एक गाँव की कहानी (नाटक)
• राधेया की कहानी (नाटक)
• सूली ऊपर सेज (सेज पर विवेचनात्मक पुस्तक)
• पुनर्नव (नाट्य रूपांतर संग्रह)
• गटक चूरमा (नाटक संग्रह)
• माटी मुळकेगी एक दिन (कविता संग्रह)
• कुछ तो हाथ गहो (कविता संग्रह)
• खुद साधो पतवार (कविता संग्रह)
देहावसान - १ अक्टूबर २०१०, शुक्रवार
नारी
बरसात की रात के
खुले आकाश मेँ
दमकता चाँद हो तुम
सर्दियोँ की सुबह का
उगता हुआ सुरज
फलोँ से लक-दक
पेड हो आम का
कल-कल बहती
नदी हो, सदानीरा
चुल्हे की आँच हो
टँगस्टन तार हो
बल्ब के भीतर का
कौन कहता है
कि अबला हो तुम
तुम सम्बल हो,प्रेरणा हो
ह्रदयहीन दुनिया का
ह्रदय हो
तुम्हारे ही बल पर
कायम है यह कायनात
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ
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http://aakharkalash.blogspot.com/2010/10/blog-post_12.htmlशिवराम : संक्षिप्त जीवन-वृत्त
नवम्बर 20, 2010 at 8:44 अपराह्न (शिवराम : स्मृति-शेष)
Tags: शिवराम, shivram
शिवराम का संक्षिप्त जीवन-वृत्त
( a short biography of shivram )
कुछ साथियों की मांग और शिवराम का जीवन-वृत्त नेट पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इस बार शिवराम का संक्षिप्त जीवन-वृत्त यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. उनके निधन पश्चात, विभिन्न ब्लॉग्स और साइट्स पर प्रस्तुत की गईं पोस्टों के लिंक भी यहां नीचे दिये जा रहे हैं. सभी का आभार. जहां के लिंक्स छूट गये हैं, उनका भी आभार और यहां नहीं होने के लिए क्षमा. शिवराम के कुछ छाया चित्र भी हैं.
शिवराम : जीवन-वृत्त
पिता : शंकर लाल स्वर्णकारमाता : कलावती देवी
जन्म स्थान :
करौली ( राजस्थान )
जन्म तिथि :
23 दिसंबर, 1949
09 सितंबर,1946 ( स्कूल और विभागीय प्रमाणपत्र में अंकित )
निधन :
01 अक्टूबर, 2010 कोटा ( राजस्थान )
शिक्षा :
मैकेनिकल इंजीनियरिंग में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, अजमेर से 1968.
कला स्नातक, बारां से 1978.
विधी स्नातक अंतिम वर्ष में दो पर्चों से अधूरा 1986.
कला स्नातकोत्तर, कोटा से 2008.
'रचनाकार विजेन्द्र : एक आलोचनात्मक अध्ययन' पर पी.एच.डी के लिए नामांकित, रूप-रेखा प्रारूप समर्पित, 2010. अधूरी रह गई.
हिंदी साहित्य, दर्शनशास्त्र, इतिहास और राजनैतिक अर्थशास्त्र का निरंतर अध्ययन. मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर गंभीर अध्ययन और गहरी पकड़.
आजीविका :
दिसंबर 1969 से जून 1970 तक प्रशिक्षण के बाद 4 जुलाई 1970 से दूरसंचार विभाग में संचार सहायक ( आर.एस.ए. ) के पद पर पदस्थापित.
प्रथम नियुक्ति भवानीमंड़ी, तत्पश्चात रामगंजमंड़ी, बारां और फिर कोटा.
1995 में मुंबई में प्रशिक्षण के बाद 1996 में कोटा में ही कनिष्ठ दूरसंचार अधिकारी के पद पर नियुक्ति.
मई 2006 में उपमंड़ल अभियंता के पद पर कार्यालयीन नियुक्ति.
30 सितंबर 2006 को दूरसंचार सेवाओं से सेवानिवृत्त.
दूरसंचार विभागीय सक्रियता :
1971 में ही रामगंजमंड़ी में ही कर्मचारी यूनियन से जुड़ाव बना। बारां तक कर्मचारी यूनियन की गतिविधियां दूसरी प्राथमिकता पर थीं। पहली प्राथमिकता पर साहित्य, नाटक और अध्ययन रहा। परिस्थितियां कुछ ऐसे मोड़ लेती गईं कि कोटा तक आते-आते विभागीय कर्मचारी आंदोलन पहली प्राथमिकता हो गया। विभिन्न आंदोलनों और कार्यवाहियों का कुशल नेतृत्व करते रहे। डाकतार कर्मचारी समन्वय समिति के संयोजक रहे। इन्हीं आंदोलनों के दौरान विभिन्न विभागों की श्रमिक-कर्मचारी यूनियनों, ट्रेड़ यूनियनों से संपर्क बने, संयुक्त कार्यवाहियों की श्रृंखलाएं शुरू हुईं। इन्हीं की संयुक्त अभियान समिति के जिला संयोजक का दायित्व निभाया। कोटा को B-2 श्रेणी में सम्मिलित किए जाने की मांग पर एक व्यापक श्रमिक-कर्मचारी आंदोलन को संगठित एवं संचालित करने में केन्द्रीय नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। इस हेतु गठित श्रमिक कर्मचारी समिति के वे महासचिव चुने गये और केन्द्र व राज्य सरकार के अन्य विभागों के कर्मचारी आंदोलनों को भी नेतृत्व प्रदान किया।
बाद में जे.टी.ओ. बनने के बाद वे दूरसंचार आफिसर्स एसोसिएशन में भी सक्रिय रहे। संचार निगम एक्जीक्यूटिव एसोसिएशन ( इंडिया ) कोटा के संरक्षक रहे। वे संचार क्षेत्र के विभिन्न संगठनों के बीच एकता की कड़ी तो बने रहे ही, कोटा शहर में भी श्रमिक-कर्मचारी संगठनों की एकता के सूत्रधार बने रहे। 30 सितंबर 2006 को वे 36 वर्ष दो माह एवं 26 दिन की सेवाएं देने के पश्चात सेवानिवृत्त हुए।
सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक सक्रियता :
रामगंजमंड़ी, जो कि कोटा-स्टोन की खानों के कारण श्रमिक-बहुल इलाका है, ( 1970 ) में उन्होंने अपना पहला नाटक 'आगे बढो' लिखा और श्रमिक-समुदाय के ही पात्रों और अभिनेताओं को लेकर इसके प्रदर्शन किए। वहीं एक निःशुल्क संध्या विद्यालय भी खोला। वैचारिक मित्रों की संख्या बढ़ी और 'जागृति मंड़ल' नाम की एक संस्था बनाकर आसपास के ग्रामीण इलाकों में भी इसी नाटक 'आगे बढ़ो' की प्रस्तुतियां की। यह नाटक जिसकी की आगे भी आपातकाल के बाद तक प्रस्तुतियां होती रहीं, अभी भी अप्रकाशित है। यहीं उन्होंने एक छोटी पुस्तिका 'शाश्वत धर्मयुद्ध और एक कार्यक्रम' लिखी, जो मित्रों द्वारा मिलकर छापी और इलाके में वितरित की गई। नाटकों से शुरू हुई छोटी-छोटी गतिविधियां, जन आंदोलनों का रूप लेने लगीं। श्रमिक समुदाय में थोड़ी चेतना जागृत हुई, तो उनके यूनियन बनाए जाने का अनुरोध और दवाब बढ़ा तो कोटा के ट्रेड़ यूनियन आंदोलन के लोकप्रिय श्रमिक नेता परमेन्द्र नाथ ढंढा से संपर्क हुए, मजदूर संगठन बने और पूरे क्षेत्र में जबरदस्त आंदोलन फैल गया। नाटकों और सहित्य की जनआंदोलनों में इस तरह की प्रभावी भूमिका से गुजरने के बाद यही उनका मूल रास्ता बन गया।
आपातकाल लगा, तब वे बारां में ही सक्रिय थे। 'दिनकर साहित्य समिति' का गठन किया गया, और एक साहित्यिक पत्रिका निकालने का निश्चय हुआ। आपातकाल के दौरान ही 'उठाने ही होंगे अभिव्यक्ति के तमाम खतरे' के संकल्प के साथ उन्होंने इस साहित्यिक पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का प्रवेशांक प्रकाशित किया, और बाद में भी कई अंक आये। नाटक जारी थे ही, 'जनता पागल हो गई है' आपातकाल की परिस्थितियों में ज़्यादा माकूल हो कर उभरा और इसका प्रदर्शन उनकी मुख्य कार्यवाही बन गया। इसकी अंतर्वस्तु ने इसे आपातकाल के दौरान पूरे देश में ही काफ़ी लोकप्रिय बना दिया, इसके कई अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हुए और हिंदी का यह पहला नुक्कड़ नाटक धीरे-धीरे सर्वाधिक खेले जाने वाला नाटक बन गया। शिवराम ने एक आपातकाल विरोधी नाटक 'कुकडूं कूं' लिखा और इसके प्रदर्शन किये, यह भी उस समय 'उत्तरार्ध' में छपा। 'दुःस्वप्न' तथा 'ऑपरेशन जारी है' नाटक भी इसी दौरान लिखे गये, 'दुस्वप्न' रतलाम से प्रकाशित 'इबारत' में प्रकाशित हुआ। कविताएं तथा जनगीत लिखने की शुरुआत हुई। उन्होंने आपातकाल के विरुद्ध तथा 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के लिए, एक व्यापक सांस्कृतिक मुहिम चलाई, जिसमें हिंदी क्षेत्र के अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यकार एकत्रित और सक्रिय हुए। इसी दौरान 'जनवादी लेखक संघ' के गठन की पूर्वपीठिका बनी तथा इलाहाबाद में जलेस के संविधान निर्माण में उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। आपातकाल के दौरान और उसके बाद की परिस्थितियों में, बारां संभाग में एक व्यापक साहित्यिक-सांस्कृतिक हस्तक्षेप और किसान-छात्र-श्रमिक आंदोलनों का संघर्षमयी वातावरण तैयार हो गया।
रामगंजमंड़ी और बारां प्रवास के दौरान हासिल उपलब्धिया और अनुभव ही वे बुनियाद बनें, जिन्होंने शिवराम के भावी-जीवन की उस भूमिका का ताना-बाना बुना, जिसने उन्हें आम बुद्धिजीवी-साहित्यकारों एवं साम्यवादी नेताओं से भिन्न एक प्रखर विचारक, वक्ता एवं सक्रिय राजनैतिक-सामाजिक-संस्कृतिकर्मी के रूप में स्थापित किया।
1979 में उनका स्थानांतरण कोटा हो गया। नये सिरे से शुरुआत की चुनौतियां। यहां परिस्थितिवश विभागीय कर्मचारी आंदोलन प्राथमिकता पर आगया। नाटक उनका प्रिय औजार था ही, अवसर मिलते ही नये विभागीय साथियों को लेकर नाटकों का मंचन होता, नाटको के जरिए एक स्वस्थ राजनैतिक चेतना और संगठन की आपसदारी का निर्माण। शहर के अन्य कर्मचारी और श्रमिक संगठनों से संपर्क बने, गतिविधियां बढ़ी। स्थानीय और आसपास के अद्योगिक इलाकों के श्रम आंदोलनों में सक्रियता बढ़ती गई। 'जन नाट्य मंच' का गठन किया गया। नाटक, कहानी-पाठ, कवि-सम्मेलनों की श्रृंखलाएं शुरू हुईं। साहित्यिक गतिविधियां बढ़ी।
कोटा के साहित्यकारों के साथ मिलकर 'विकल्प' जन सांस्कृतिक मंच का गठन हुआ। इसके जरिए नियमित साहित्यिक गतिविधियां, कवि-गोष्ठिय़ां, विचार-गोष्ठियां शुरू हुईं। 'अभिव्यक्ति' का पुनः प्रकाशन शुरू किया गया। विभिन्न साहित्यकारों और लेखकों के बीच गतिविधियां बढ़ी और कई संयुक्त कार्यवाहियां की गईं। कोटा में कई बड़े कैनवास के साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम किये गये। राहुल सांकृत्यायन, भारतेंदु, फ़ैज, प्रेमचंद, सफ़दर आदि की जंयंतियों पर कार्यक्रमों और चर्चाओं की एक गतिशील परंपरा शुरू की गई। कर्मचारियों और श्रमिकों के बीच राजनैतिक शिक्षण और विचार के उद्देश्य से एक संस्था 'श्रमजीवी विचार मंच' की स्थापना की गई, जिसकी नियमित रविवारीय विचार गोष्ठियां साथियों के बीच वैचारिक आदान-प्रदान का एक प्रमुख जरिया थीं।
परिस्थितियों के मद्देनज़र देश में व्यापक सांस्कृतिक-साहित्यिक-सामाजिक अभियानों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक देशव्यापी संगठन की आवश्यकता उन्होंने महसूस की, और लगातार संपर्कों और कोशिशों के बाद अंततः कई प्रदेशों के साथियों के साथ मिलकर 'विकल्प' अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी बिहार के मूर्धन्य साहित्य-सांस्कृतिक कर्मी यादवचन्द्र ने संभाली और शिवराम इसके महासचिव बनाए गये। इसके बाद वे निरंतर इसकी गतिविधियों और विस्तार की जुंबिशों मे लगे रहे। उन्होंने प्रदेश के स्तर पर भी लेखकों और साहित्यकारों की संयुक्त कार्यवाहियों के आधार तैयार किये, इन्हीं उद्देश्यों के आधार पर एक प्रदेश स्तरीय संयुक्त मोर्चे का गठन किया गया, जिसके वे संयोजक रहे।
दूरसंचार विभाग से सेवानिवृति के पश्चात वे सीधी राजनैतिक कार्यवाहियों में कूद पड़े। माकपा से अलग होकर पूरे देश में विभिन्न रेडिकल साथियों, समूहों ने अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग ढ़ंग व नामों से कम्यूनिस्ट पार्टियां और ट्रेड़ यूनियन संगठन बना लिये थे। शिवराम की राजस्थान के अग्रणी साथियों के साथ पार्टी के गठन और निर्माण में भूमिका थी। उन्होंने अन्य प्रदेशों के संगठनों और साथियों से संपर्क साधने और साझा समझ विकसित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई और अंततः अपने विकास-क्रम में एक देशव्यापी पार्टी एम.सी.पी.आई. ( यू ) का गठन किया गया। वे इसके पोलित ब्यूरो सदस्य थे। हिंदी भाषी प्रदेशों के लिए निकाले जाने वाले पार्टी मुख-पत्र 'लोकसंघर्ष' का प्रकाशन-संपादन भी वे ही किया करते थे।
प्रकाशित पुस्तकें :
- जनता पागल हो गई है ( नाटक संग्रह ) 2001
- घुसपैठिये ( नाटक संग्रह ) 2001
- रधिया की कहानी ( नाटक ) 2004
- दुलारी की मां ( नाटक ) 2005
- एक गांव की एक कहानी ( नाटक ) 2008
- सूली ऊपर सेज़ ( SEZ पर विवेचनात्मक पुस्तक )
- पुनर्नव ( नाट्य रूपांतर संग्रह ) अगस्त'2009
- गटक चूरमा ( नाटक संग्रह ) अगस्त'2009
- कुछ तो हाथ गहो ( कविता संग्रह ) अक्टूबर'2009
- खु़द साधो पतवार ( दोहा संग्रह ) अक्टूबर'2009
- माटी मु्ळकेगी एक दिन ( कविता संग्रह ) अक्टूबर'2009
शिवराम के निधन पश्चात की पोस्टें :
- अनवरत पर दिनेशराय द्विवेदी : एक, दो, तीन, चार
- नया जमाना पर जगदीश्वर चतुर्वेदी
- भड़ास4मीडिया पर डॉ. मलय पानेरी
- प्रेम का दरिया पर प्रेमचंद गांधी
- जनवादी लेखक संघ, इंदौर पर परेश टोकेकर 'कबीरा'
- जनपक्ष पर शरद कोकास
- जनोक्ति पर जनोक्ति डेस्क
- सृजनगाथा पर सृजनगाथा परिवार
- जंतर-मंतर पर जेयूसीएस
- मोहल्ला लाइव पर अनीश अंकुर
- आखर कलश पर नरेन्द्र व्यास
- हिंद युग्म पर संपादक
- पुरुषोत्तम यक़ीन पर पुरु मालव
- ज्ञानसिंधु पर भागीरथ परिहार
- अपनी माटी पर माणिक
- दैनिक भास्कर
- जागरण समाचा
०००००
रवि कुमार
http://ravikumarswarnkar.wordpress.com/2010/11/20/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%B5%E0%A5%83/
शिवराम ने लुप्त होती जननाट्य शैली पुनरार्वेष्टित किया
Posted by जनोक्ति डेस्क on October 15, 2010 in कला-साहित्य | 1 Comment
प्रसिद्ध जननाट्यकार शिवराम के निधन पर एक स्मरणांजलि सभा में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि शिवराम सचमुच क्रांतिधर्मी नाटककार थे। उनके नाटक लोकप्रियता की कसौटी पर भी खरे उतरे और श्रेष्ठता के सभी मापदण्ड भी पूरे करते हैं।
वरिष्ठ कवि, चिन्तक नन्द चतुर्वेदी ने शिवराम के साथ विभिन्न अवसरों पर अपनी मुलाकातों को याद करते हुए कहा कि शिवराम ने नाटकों के नये स्वरूप को विकसित किया। उनका सदैव यह प्रयास रहा कि नाटक दर्शकों के साथ-साथ आम प्रेक्षक वर्ग तक भी पहुँचे। इस दृष्टि से उनके नाटक पूर्ण सफल रहे हैं। शिवराम ने लुप्त होती जननाट्य शैली को पुनः विकसित किया था। उनका मुख्य उद्देश्य नाटकों को जनप्रिय बनाये रखने का था। इसीलिए उनके नाटक विभिन्न आस्वादों से युक्त रहते थे। नन्द चतुर्वेदी ने उनके नाटक 'जनता पागल हो गई है', 'पुनर्नव', 'गटक चूरमा' आदि नाटकों का जिक्र करते हुए कहा कि ये नाटक बहुत लोकप्रिय रहे। उन्होंने शिवराम के कवि कर्म को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी कवितायेँ एक विनम्र और शालीन कवि का आभास देने के साथ व्ययस्था में बदलाव की बेचौनी भी दर्शाती है.
प्रसिद्ध आलोचक प्रो. नवलकिशोर ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिवराम सच्चे मायने में एक सफल नाटककार होने के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी थे। रंगकर्म के साथ-साथ उनका नाट्य सृजन अनवरत चलता रहा। इनके नाटक उत्तरोत्तर नवप्रयोग को सार्थक करते रहे। प्रो. नवलकिशोर ने आगे कहा कि शिवराम ने इस प्रदर्शनकारी विधा का जनता के पक्ष में सदुपयोग किया। उन्होंने नाट्य साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाने का श्रेयस्कर कार्य किया। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मलय पानेरी ने शिवराम के विभिन्न नाटकों की चर्चा करते हुए कहा कि शिवराम के नाटक नाट्य रूढ़ियों को तोड़ने वाले थे। उनके नाटकों का मूल उद्देश्य जन-पहुँच था। इस दृष्टि से उन्होंने नाटकों के साथ कोई समझौता नहीं किया चाहे तात्विक दृष्टि से कोई कमजोरी ही क्यों न रह गई हो। शिवराम के नाटक आम प्रेक्षक के नाटक सिर्फ इसलिए बन सके कि उनमें सार्थक रंगकर्म हमेशा उपस्थित रहा है।हिन्दू कालेज,नई दिल्ली के हिंदी सहायक आचार्य डॉ. पल्लव ने शिवराम के कृतित्व को वर्तमान सन्दर्भों में जोखिम भरा बताया. उन्होंने कहा कि शिवराम ने लेखकीय ग्लेमर की परवाह किये बिना साहित्य और विचारधारा के संबंधों को फिर बहस के केंद्र में ला दिया.
जन संस्कृति मंच के राज्य संयोजक हिमांशु पंड्या ने शिवराम की संगठन क्षमता को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि "विकल्प" के मार्फत वे नयी सांस्कृतिक हलचल में सफल रहे. लोक कलाविद डॉ. महेंद्र भानावत ने कहा कि नाटकों को लोक से जोड़े रखना वाकई मुश्किल है और शिवराम ने अपने नाटकों के साथ हमेशा लोक-चिन्ता को सर्वोपरि रखा। उनकी यही खासियत उन्हें अन्य रचनाकारों से पृथक पहचान देती है। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक डॉ. ममता पानेरी ने कहा कि शिवराम नाटककार के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी भी थे। रंगकर्म की उनकी समझ आज के संदर्भ में ज्यादा संगत लगती है। कार्यक्रम के अन्त में राजेश शर्मा ने कहा कि शिवराम जननाटकों के भविष्य थे। सार्थक रंगकर्मी के साथ ही अच्छा नाटककार होना शिवराम ने ही प्रमाणित किया है।
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यह लेखनी कैसी कि जिसकी बिक गयी है आज स्याही ! यह कलम कैसी कि जो देती दलालों की गवाही ! पद-पैसों का लोभ छोड़ो , कर्तव्यों से गाँठ जोड़ो , पत्रकारों, तुम उठो , देश जगाता है तुम्हें ! तूफानों को आज कह दो , खून देकर सत्य लिख दो , पत्रकारों , तुम उठो , देश बुलाता है तुम्हें ! बाज़ार के चंगुल से मुक्त अभिव्यक्ति का मन्च ब्लागिंग के रूप में सामानांतर विकल्प बन कर उभरा है तो हमारी जिम्मेदारी है कि छोटी लकीरों के बरक्स कई बड़ी रेखाए खिची जाएं. बाज़ारमुक्त और वादमुक्त हो समाजहित से राष्ट्रहित की ओर प्रवाहमान लेखन समय की मांग है. और इस दिशा में " जनोक्ति .कॉम " जनोक्ति वेब मीडिया का प्रथम प्रयास हैView all posts by जनोक्ति डेस्क →
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शिवराम : रंग-अभियान के छायाचित्र
नवम्बर 6, 2010 at 6:02 अपराह्न (शिवराम : स्मृति-शेष)
Tags: शिवराम, shivram
रंग-अभियान के छायाचित्र
( शिवराम के एक सांस्कृतिक अभियान के कुछ छायाचित्र )
जैसा पिछली बार कहा गया था, २००४ में शिवराम के नेतृत्व में चलाए गए 'विकल्प' और 'अनाम' के बैनर तले 'स्वाधीनता एवं सद्भाव' नामक एक प्रदेशव्यापी ( राजस्थान ) अभियान से संबंधित कुछ छायाचित्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं. इस अभियान की विस्तृत रिपोर्ट पिछली बार थी ही.जनचेतना मशाल के साथ कोटा से रवानगी के वक़्त
शिवराम अपने अभियान-दल के साथ कोटा से रवानगी के वक़्त, जिनमें शामिल थे आशीष मोदी, कपिल सिद्धार्थ, रोहित पुरुषोत्तम, अज़हर अली, सुधीर सोनी, हरप्रीत सिंह बेदी, सचिन सिंह राठौड़, मनोज शर्मा और गोपाल
नाट्य स्थल पर मशाल लेकर प्रवेश करते शिवराम और सा्थी
प्रदर्शन पूर्व दर्शकों को संबोधित करते शिवराम
नाटक गटक चूरमा का एक तिराहे पर प्रदर्शन
नाटक गटक चूरमा का मंचीय प्रदर्शन
एक गांव में नाटक पूर्व संबोधित करते शिवराम
एक कस्बे के नुक्कड़ पर नाटक 'जनता पागल हो गई है' का प्रदर्शन
गांव के स्कूल के बाहर बने मंच पर नाटक प्रदर्शन
एक कस्बे के नुक्कड़ पर नाटक 'जनता पागल हो गई है' का प्रदर्शन
एक स्कूल के बच्चों के बीच नाटक 'गटक चूरमा' की प्रस्तुति
जयपुर में एक कच्ची बस्ती में नाटक 'जनता पागल हो गई है' का प्रदर्शन
जयपुर के एक बाग में नाटक पूर्व संबोधित करते शिवराम
जयपुर के एक बाग में नाटक 'जनता पागल हो गई है' का प्रदर्शन
नाटक 'जनता पागल हो गई है' का आखिरी दृश्य जिसमें जनता अपनी लाठी से सरकार और पूंजीपति को खदेड़ती है
अभियान में साथ चल रही पोस्टर प्रदर्शनी और बुक-स्टाल
अपने पोस्टर लटका कर बुक-स्टाल पर जमे रवि कुमार
उदयपुर में मेजबान साथी हिमांशु पण्ड़या के घर के बाहर शिवराम और अभियान दल
http://ravikumarswarnkar.wordpress.com/2010/11/06/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE/
संघर्षरत जनता के साथी थे शिवराम: जेयूसीएस
रंगकर्मी, साहित्यकार और वामपंथी नेता शिवराम को श्रद्धांजलीनई दिल्ली, 10 अक्टूबर। प्रसिद्ध रंगकर्मी, साहित्यकार और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) के पोलित ब्यूरो सदस्य शिवराम के आकस्मिक निधन पर जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) अपनी गहरी संवेदना प्रकट करता है। राजस्थान के कोटा के रहने वाले शिवराम ने अपना पूरा जीवन मजदूर आंदोलनों और नाट्यकर्म को समर्पित कर दिया था। उनका निधन संघर्षरत आमजन के लिए अपूर्ण क्षति है।
सरकारी दूरसंचार कम्पनी में रामगंज मंडी से बतौर इंजीनियर अपना व्यक्तिगत और राजनैतिक कैरियर शुरू करने वाले शिवराम ने उद्योगनगरी कोटा में कई मजदूर आंदोलनों का नेतृत्व किया। पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) से अलग होने का कारण भी उनका मजदूर आंदोलनों से दलाली करने वालों को अलग-थलग करना था। 1980 में जब सीपीएम से अलग एमसीपीआईयू के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई तो शिवराम उसके अग्रणी नेताओं में से थे। फिलहाल वह एमसीपीआईयू के पोलित ब्यूरो में शामिल थे।
एक आंदोलनकारी से अलग शिवराम को देश में नुक्कड़-नाटकों के जन्मदाता के बतौर भी जाना जाता है। उन्होंने सफदर हाशमी से पहले ही मजदूरों के लिए लिखे गए नाटक 'जनता पागल हो गई है' से नुक्कड़-नाटकों की परम्परा शुरू की। आपातकाल के दौरान यह नाटक देशभर में कई स्थानों पर खेला गया, जो अभी भी जारी है। साठ से अधिक उम्र हो जाने के बाद भी शिवराम अभी भी नाटकों में अभिनय व निर्देशन करते थे। उन्होंने कई नाटक लिखे भी जिसमें 'जनता पागल हो गई है', 'जमीन', घुसपैठिए (नाटक संग्रह), दुलारी की माँ (नाटक), एक गाँव की कहानी (नाटक), राधेया की कहानी (नाटक), सूली ऊपर सेज (सेज पर विवेचनात्मक पुस्तक), पुनर्नव (नाट्य रूपांतर संग्रह), गटक चूरमा (नाटक संग्रह), माटी मुळकेगी एक दिन (कविता संग्रह), कुछ तो हाथ गहो (कविता संग्रह), खुद साधो पतवार (कविता संग्रह) शामिल है.
शिवराम सदैव युवाओं को प्रोत्साहित करने वाले व्यक्तित्व थे। उनके निर्देशन में काम किए कई रंगकर्मी आज अपनी अलग पहचान रखते है। सीधे-सरल व्यक्तित्व शिवराम वैचारिक रूप से दृढ़ मार्क्सवादी थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन जनता के संघर्षों को समर्पित कर दिया। जेयूसीएस उन्हें अपनी श्रद्धांजली अर्पित करता है।
द्वारा -
शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, अवनीश राय, देवाशीष प्रसून, अरुन कुमार उरांव, प्रबुद्ध गौतम, विवके मिश्रा, दीपक राव, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, प्रवीण मालवीय, प्रकाश, अंशुमाला सिंह, मुकेश चौरासे, राजलक्ष्मी शर्मा, उपेन्द्र, दिलीप, शीत मिश्रा, श्वेता सिंह, राकेश, गुफरान, अली, शिप्रा, दीपिका, वेदप्रकाश मौर्य व अन्य साथी।
http://jantarmantarloktantantar.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
मानवाधिकारों के महासेनानी शिवराम नहीं रहे
आज अचानक इंटरनेट पर फेसबुक से पता चला कि साथी शिवराम का निधन हो गया। मैं व्यक्तिगत तौर पर उनसे कभी नहीं मिला, लेकिन विगत 40 सालों से उनके काम के संपर्क में था। मैं उनकी रचनाओं का पाठक रहा हूँ । उनकी रचनाएं वे चाहे कविता हो, नाटक हो, निबंध हों,इन सबसे मुझे प्रेरणा मिलती रही है। मजदूरवर्ग के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए शिवराम ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक संघर्ष किया और मजदूरवर्ग और किसानों के हितों के बारे में वे बार-बार सोचते रहते थे।
मैंने पिछले साल जब इंटरनेट पर मुक्तिबोध सप्ताह का आयोजन करने का फैसला किया तो उसी सिलसिले में मेरी उनसे पहलीबार बहुत लंबी बातचीत हुई। मजेदार बात .यह थी कि हम दोनों एक-दूसरे के रचनाकर्म से ही परिचित थे। कुछ महिना पहले उन्होंने वर्धमान की यात्रा का निर्णय लिया था और वे चाहते भी थे कि उस समय हमारी उनकी मुलाकात हो जाए लेकिन ऐसा हो न सका, मैं किसी काम के चक्कर में कोलकाता के बाहर था।
साथी शिवराम के व्यक्तित्व की खूबी थी कि वे आम जीवन में सामान्य थे। लेकिन उनके पास असाधारण मेधा और संगठन क्षमता थी। मैं निजी तौर पर उनकी मौत से असहाय सा महसूस कर रहा हूँ। क्योंकि मैं जब भी फोन करता या कोई बात उन्हें कहनी होती तो उसमें उनकी बेचैनी और ममता दोनों की गरमी महसूस करता था। शिवराम ने अपने लेखन और आंदोलनकारी व्यक्तित्व के कारण राजस्थान में खासकर अपनी विशिष्ट पहचान बनायी थी और जनवादी सांस्कृतिक मूल्यों और समाजवादी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए अतुलनीय कुर्बानियां दी हैं। वे हमारे हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेंगे। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
अनवरत ब्लॉग में दिनेशजी ने उनके बारे में लिखा है-
अभी शिवराम जी के घर से लौटे हैं। हम शाम को जब उन के घर पहुँचा तो घर के बाहर भीड़ लगी थी, जिन में नगर के नामी साहित्यकार, नाट्यकर्मी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, दूरसंचार कर्मचारी और बहुत से नागरिक थे। शिवराम के बडे पुत्र रवि कुमार (जिन्हें आप सृजन और सरोकार ब्लाग के ब्लागर के रूप में जानते हैं) आ चुके थे, सब से छोटे पुत्र पवन दो माह पूर्व ही कोटा में नया नियोजन प्राप्त कर लेने के कारण कोटा में ही थे। मंझले पुत्र शशि का समाचार था कि वह परिवार सहित ट्रेन में चढ़ चुका है और सुबह चार-पाँच बजे तक कोटा पहुँच जाएंगे। बेटी के भी दिल्ली से रवाना हो चुकने का समाचार मिल चुका था। सभी शोकाकुल थे। छोटे भाई और शायर पुरुषोत्तम 'यक़ीन' शोकाकुल हो कर पूरी तरह पस्त थे और कह रहे थे आज मैं यतीम हो गया हूँ। हम करीब दो घंटे वहाँ रहे। शिवराम अब चुपचाप लेटे थे। मैं जानता था, वह आवाज जिसे मैं पिछले 35 वर्षों से सुनने का अभ्यस्त हूँ अब कभी सुनाई नहीं देगी। उन की आवाज हमेशा ऊर्जा का संचार करती थी। वैयक्तिक क्षुद्र स्वार्थों से परे हट कर मनुष्य समाज के लिए काम करने को सदैव प्रेरणा देता यह व्यक्तित्व सहज ही हमें छोड़ कर चला गया। डाक्टर झा से वहीं मुलाकात हुई। बता रहे थे कि जैसा उन का शरीर था और जिस तरह वे अनवरत काम में जुटे रहते थे हम सोच भी नहीं सकते थे कि उन्हें इस तरह हृदयाघात हो सकता है कि वह अस्पताल तक पहुँचने के पहले ही प्राण हर ले।
शिवराम दोपहर तक स्वस्थ थे। सुबह उन्हों ने अपने मित्रों को टेलीफोन किए थे। कल शाम कंसुआँ की मजदूर बस्ती में एक मीटिंग को संबोधित किया था। दोपहर भोजन के उपरांत उन्हों ने असहज महसूस किया और सामान्य उपचार को नाकाफी महसूस कर स्वयं ही पत्नी और मकान में रहने वाले एक विद्यार्थी को साथ ले कर अस्पताल पहुँचे थे। अस्पताल में जा कर मूर्छित हुए तो फिर चिकित्सकों का कोई बस नहीं चला।
उन की हृदयगति सदैव के लिए थम गई थी। मात्र 61 वर्ष की उम्र में इस तरह गए कि अनेक लोग स्वयं को अनाथ समझने लगे।
शिवराम का जन्म 23 दिसंबर 1949 को राजस्थान के करौली नगर में हुआ था। पिता के गांव गढ़ी बांदुवा, करौली और अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। फिर वे दूर संचार विभाग में तकनीशियन के पद पर नियुक्त हुए। दो वर्ष पूर्व ही वे सेवा निवृत्त हुए थे। वे जीवन के हर क्षेत्र में सक्रिय रहे। अपने विभाग में वे कर्मचारियों के निर्विवाद नेता रहे। वे एक अच्छे संगठनकर्ता थे। प्रारंभ में वे स्वामी विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे। लेकिन उस मार्ग पर उन्हें समाज में परिवर्तन की गुंजाइश दिखाई नहीं दी। बाद में वे मार्क्सवाद के संपर्क में आए, जिसे उन्हों ने एक ऐसे दर्शन के रूप में पाया जो कि दुनिया और प्रत्येक परिघटना की सही और सच्ची व्याख्या ही नहीं करता था। यह भी बताता था कि समाज कैसे बदलता है। वे समाज में परिवर्तन के काम में जुट गए। उन्हों ने अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने के लिए नाटक और विशेष रूप से नुक्कड़ नाटक को सब से उत्तम साधन माना। वे नुक्कड़ नाटक लिखने और आसपास के लोगों को जुटा कर उन का मंचन करने लगे। उन का नाटक 'जनता पागल हो गई है' हिन्दी के प्रारंभिक नुक्कड़ नाटकों में एक है। यह हिन्दी का सर्वाधिक मंचित नाटक है। इस नाटक और शिवराम के अन्य कुछ नाटक अन्य भाषाओं में अनुदित किए जा कर भी खेले गए। वे नाट्य लेखक ही नहीं थे, अपितु लगातार उन के मंचन करते हुए एक कुशल निर्देशक और अभिनेता भी हो चुके थे। वे पिछले 33 वर्षों से हिन्दी की महत्वपूर्ण साहित्यिक लघु पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का संपादन कर रहे थे।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सांगठनिक काम के महत्व को वे अच्छी तरह जानते थे। आरंभ में प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे। जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से वे एक थे। लेकिन जल्दी ही सैद्धान्तिक मतभेद के कारण वे अलग हुए और अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा 'विकल्प' के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वर्तमान में वे 'विकल्प' के महासचिव थे। मूलतः सृजनधर्मी होते हुए भी संघर्षशील जन संगठनों के निर्माण को वे समाज परिवर्तन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे और संगठनों के निर्माण का कोई अवसर हाथ से न जाने देते थे। वे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ प्रभावशाली वक्ता थे। लोग किसी भी सभा में उन्हें सुनने के लिए रुके रहते थे। एक अध्येता और चिंतक थे। श्रमिक-कर्मचारी आंदोलनों में स्थानीय स्तर से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न नेतृत्वकारी दायित्वों का उन्हों ने निर्वहन किया। अनेक महत्वपूर्ण आंदोलनों का उन्हों ने नेतृत्व किया।
दूर संचार विभाग से सेवानिवृत्त होने के उपरांत उन्हों ने भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) {एमसीपीआई (यू)}की सदस्यता ग्रहण की और शीघ्र ही वे पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य हो गए।
उन की प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं —
जनता पागल हो गई है (नाटक संग्रह)
घुसपैठिए (नाटक संग्रह)
दुलारी की माँ (नाटक)
एक गाँव की कहानी (नाटक)
राधेया की कहानी (नाटक)
सूली ऊपर सेज (सेज पर विवेचनात्मक पुस्तक)
पुनर्नव (नाट्य रूपांतर संग्रह)
गटक चूरमा (नाटक संग्रह)
माटी मुळकेगी एक दिन (कविता संग्रह)
कुछ तो हाथ गहो (कविता संग्रह)
खुद साधो पतवार (कविता संग्रह)
शिवराम जी का अंतिम संस्कार 2 अक्टूबर सुबह कोटा में किशोरपुरा मुक्ति धाम में संपन्न होगा। प्रातःकाल आठ बजे अंतिम यात्रा उन के निवास से आरंभ होगी और ट्रेड यूनियन कार्यालय छावनी जाएगी। जहाँ उन के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनों के लिए कुछ देर रखा जाएगा। उस के उपरांत सर्वहारा वर्ग के एक यौद्धा और सेनापति के सम्मान के साथ अंतिम यात्रा किशोरपुरा मुक्तिधाम पहुँचेगी जहाँ उन का अंतिम संस्कार संपन्न होगा।
कुछ संवाद 'गटक चूरमा' नाटक से …..
- अपने वो वकील साहब हैं न?
- कौन?
- अरे ! वो ही, जो 'तीसरा खंबा' पे कानूनी बात बतावत हैं, और 'अनवरत' पर भी न जाने क्या क्या लिक्खे हैं।
- हाँ, हाँ वही न, जो सिर से गंजे हो कर भी 'शब्दों का सफर' में सरदार बने बैठे हैं?
- हाँ, वो ही।
- वो दो दिन से कुच्छ भी ना लिख रहे, अनवरत खाली पड्यो है।
- क्या? दो दिन में लिखने को कुच्छ ई ना मिल्यो उन को? आज तो बड़्डे-बड्डे मौके थे जी। एक तो पाबला जी को जनम दिन थो, दूजो करीना कपूर को, तीजो ईद को। कच्छु नाहीं तो मुबारक बाद ही लिक्ख मारते!
-एक दिन तो निकल गयो, शिबराम जी की नाटकाँ की किताबाँ का लोकार्पण में।
-आज दफ्तर में काम करने बैठ गए जी, फेर साम को कोई से मिलने-जुलने निकल गए जी। अब खा पी के लोकार्पण हुई किताब बाँच रहे हैं।
- कौन सी किताब बाँच रिये हैं जी?
- वो, ही जी, का कहत हैं उसे ….. "गटक चूरमा"।
- अब ये गटक चूरमा का होवे जी?
- य्हाँ तो किताब और नाटक को नाम है जी। पर जे एक चूरन होवे, जो मुहँ में फाँके तो खुद बे खुद पानी आवे और गले से निच्चे उतर जावे।
- वो तो ठीक, पर ई किताब में का लिक्खो होगो?
- चल्ल वा वकील साब से ही पूच्छ लेवें।
- चल!
———————————————-
- वकील साब! गटक चूरमा पढ़ो हो। कच्छु हमें ही सुना देब, दो-च्चार लाइन।
- तो सुनो…..
भोपा और भोपी, वे ही जो राजस्थान में फड़ बांच सुनावें। रामचंदर के गांव बड़ौद पहुंच गए हैं। जबरन रामचंदर के बेटी जमाई भी बन लिए। अब रामचंदर ले जा रहा है उन्हें अपने घर। रास्ते में कुत्ता भोंकता है।
रामचंदर- तो ….. तो……. (कहते हुए पत्थर मार कर कुत्ते को भगाता है और कहता है) मेहमान हैं, नालायक कोटा से आए हैं … (फिर भोपा-भोपी से मुखातिब हो कर) कुत्ते हैं, नया आदमी देखते हैं तो भोंकते हैं। कुत्ते तो कोटा में भी भोंकते होंगे।
भोपी- ना, हमारे यहाँ तो काटते हैं, फफेड़ देते हैं, पेट में चौदह इंजेक्शन लगें। नहीं तो कुत्ते के साथ ही जै श्री राम!
भोपा- नही, ये तो झूठ बोलती है। हमारे यहाँ तो कुत्ते दुम हिलाते हैं और पैर चाटते हैं।
भोपी- चाटते हैं, पर बड़े लोगों के। छोटे लोगों को देख कर तो ऐसे झपटते हैं जैसे पुलिस।
भोपा- ऐ भोपी, तू पालतू कुत्तों की बात कर रही है और यहाँ बात चल रही है गली मोहल्ले के कुत्तों की। समझती नहीं है क्या।
रामचंदर- सच कहते हो भाई। उन कुत्तों की तो किस्मत ही निराली है, जो कोठी-बंगलों में रहते हैं। किसन बता रहा था कि बड़े ठाट हैं भाई उन के। हम से तो वे कुत्ते ही बढ़िया।
भोपा- बढ़िया? पाँचों अंगुली घी में…।
भोपी- अरे! मेरे राजा, पाँचों नहीं दसों अंगुलियाँ घी में। साहब और मेम साहब अपने हाथों मालिस करें, नहलावें-धुलावें, बाथरूम, टॉयलट करावें…।
भोपी- (रामचंदर से) मतलब टट्टी पेशाब करावें।
(रामचंदर हँसता है)
भोपी- फस्सकिलास खाना खिलाएँ और गद्दों पर सुलाएँ।
भोपा- और झक्क सैर कराने ले जाएँ।
भोपी- आगे आगे कुत्ता और पीछे-पीछे साब।
भोपी- वाह! क्या दृश्य बनता है।
पता नहीं चल पाता कि इनमें कुत्ता कौन है और साहब कौन…।
(भोपा और रामचंदर ठठा कर हँस पड़ते हैं)
-बस भाई इत्ता ही। वकील साब बोले। आगे या तो किताब खुद बाँचो या फिर कहीं नाटक खेला जाए तो देखो। नहीं तो किताब मंगाओ और खुद खेलो।
नाटक हम लड़कियाँ के प्रारंभ और समापन गीत की कुछ पंक्तियाँ….
हम लड़कियाँ, हम लड़कियाँ, हम लड़कियाँ
हम मुस्काएँ जग मुस्काए
हम चहकें जग खिल-खिल जाए
तपता सूरज बीच गगन में
पुलकित और मुदित हो जाए….
हम लड़कियाँ, हम लड़कियाँ, हम लड़कियाँ
तूफानों से टक्कर लेती लड़कियाँ
हम रचें विश्व को, सृजन करें हम
दें खुशी जगत को, कष्ट सहें हम
पीड़ा के पर्वत से निकली
निर्मल सरिता सी सदा बहें
दें अखिल विश्व को जीवन सौरभ
प्रेम के सागर की उद्गम हम
फिर भी हिस्से आएँ हमारे सिसकियाँ
हम लड़कियाँ,हम लड़कियाँ, हम लड़कियाँ !
—————————————
अनुभवी सीख
शिवराम
एक चुप्पी हजार बलाओं को टालती है
चुप रहना भी सीख
सच बोलने का ठेका
तूने ही नहीं ले रखा
दुनिया के फटे में टांग अड़ाने की
क्या पड़ी है तुझे
मीन-मेख मत निकाल
जैसे सब निकाल रहे हैं
तू भी अपना काम निकाल
अब जैसा भी है, यहाँ का तो यही दस्तूर है
जो हुजूर को पसंद आए वही हूर है
नैतिकता-फैतिकता का चक्कर छोड़
सब चरित्रवान भूखों मरते हैं
कविता-कहानी सब व्यर्थ है
कोई धंधा पकड़
एक के दो, दो के चार बनाना सीख
सिद्धांत और आदर्श नहीं चलते यहाँ
यह व्यवहार की दुनिया है
व्यावहारिकता सीख
अपनी जेब में चार पैसे कैसे आएँ
इस पर नजर रख
किसी बड़े आदमी की दुम पकड़
तू भी किसी तरह बड़ा आदमी बन
फिर तेरे भी दुम होगी
दुमदार होगा तो दमदार भी होगा
दुम होगी तो दुम उठाने वाले भी होंगे
रुतबा होगा
धन-धरती, कार-कोठी सब होगा
ऐरों-गैरों को मुहँ मत लगा
जैसों में उठेगा बैठेगा
वैसा ही तो बनेगा
जाजम पर नहीं तो भले ही जूतियों में ही बैठ
पर बड़े लोगों में उठ-बैठ
ये मूँछों पर ताव देना
चेहरे पर ठसक और चाल में अकड़
अच्छी बात नहीं है
रीढ़ की हड्डी और गरदन की पेशियों को
ढीला रखने का अभ्यास कर
मतलब पड़ने पर गधे को भी
बाप बनाना पड़ता है
गधों को बाप बनाना सीख
यहाँ खड़ा-खड़ा
मेरा मुहँ क्या देख रहा है
समय खराब मत कर
शेयर मार्केट को समझ
घोटालों की टेकनीक पकड़
चंदे और कमीशन का गणित सीख
कुछ भी कर
कैसे भी कर
सौ बातों की बात यही है कि
अपना घर भर
हिम्मत और सूझ-बूझ से काम ले
और, भगवान पर भरोसा रख।
By
जगदीश्वर चतुर्वेदी
जगदीश्वर चतुर्वेदी कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं तथा मीडिया और साहित्यालोचना का विशेष अध्ययन किया है |
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शिवराम पर स्मरणांजलि
प्रकाशन :बुधवार, 20 अक्टूबर 2010उदयपुर से डॉ. मलय पानेरी की रपट
उदयपुर ।
प्रसिद्ध आलोचक प्रो. नवलकिशोर ने अपने उदबोधन में कहा कि शिवराम सच्चे मायने में एक सफल नाटककार होने के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी थे। रंगकर्म के साथ-साथ उनका नाट्य सृजन अनवरत चलता रहा। इनके नाटक उत्तरोत्तर नवप्रयोग को सार्थक करते रहे। प्रो. नवलकिशोर ने आगे कहा कि शिवराम ने इस प्रदर्शनकारी विधा का जनता के पक्ष में सदुपयोग किया। उन्होंने नाट्य साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाने का श्रेयस्कर कार्य किया। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मलय पानेरी ने शिवराम के विभिन्न नाटकों की चर्चा करते हुए कहा कि शिवराम के नाटक नाट्य रूढ़ियों को तोड़ने वाले थे। उनके नाटकों का मूल उद्देश्य जन-पहुँच था। इस दृष्टि से उन्होंने नाटकों के साथ कोई समझौता नहीं किया चाहे तात्विक दृष्टि से कोई कमज़ोरी ही क्यों न रह गई हो। शिवराम के नाटक आम प्रेक्षक के नाटक सिर्फ इसलिए बन सके कि उनमें सार्थक रंगकर्म हमेशा उपस्थित रहा है। हिन्दू कालेज, नई दिल्ली के हिंदी सहायक आचार्य डॉ. पल्लव ने शिवराम के कृतित्व को वर्तमान सन्दर्भों में जोखिम भरा बताया। उन्होंने कहा कि शिवराम ने लेखकीय ग्लैमर की परवाह किये बिना साहित्य और विचारधारा के संबंधों को फिर बहस के केंद्र में ला दिया।
जन संस्कृति मंच के राज्य संयोजक हिमांशु पंड्या ने शिवराम की संगठन क्षमता को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि 'विकल्प' के मार्फत वे नयी सांस्कृतिक हलचल में सफल रहे। लोक कलाविद डॉ. महेंद्र भानावत ने कहा कि नाटकों को लोक से जोड़े रखना वाकई मुश्किल है और शिवराम ने अपने नाटकों के साथ हमेशा लोक-चिन्ता को सर्वोपरि रखा। उनकी यही खासियत उन्हें अन्य रचनाकारों से पृथक पहचान देती है। श्रमजीवी महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक डॉ. ममता पानेरी ने कहा कि शिवराम नाटककार के साथ-साथ अच्छे रंगकर्मी भी थे। रंगकर्म की उनकी समझ आज के संदर्भ में ज्यादा संगत लगती है। कार्यक्रम के अन्त में राजेश शर्मा ने कहा कि शिवराम जननाटकों के भविष्य थे। सार्थक रंगकर्मी के साथ ही अच्छा नाटककार होना शिवराम ने ही प्रमाणित किया है।
उदयपुर से डॉ. मलय पानेरी की रपट
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शिवराम : 'स्वाधीनता और सद्भाव' अभियान
अक्टूबर 30, 2010 at 9:34 अपराह्न (शिवराम : स्मृति-शेष)
Tags: शिवराम, shivram
स्वाधीनता और सद्भाव
( शिवराम के एक सांस्कृतिक अभियान की रपट )
यहां २००४ में शिवराम के नेतृत्व में चलाए गए 'विकल्प' और 'अनाम' के बैनर तले 'स्वाधीनता एवं सद्भाव' नामक एक प्रदेशव्यापी ( राजस्थान ) अभियान की 'प्रशांत ज्योति' में छपी रिपोर्ट प्रस्तुत की जा रही है. इससे हमें और इसमें दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तियों को शिवराम की कार्यप्रणाली और पद्धतियों की बानगी मिल सकती है. इसी अभियान से संबंधित कुछ छायाचित्र भी प्रस्तुत किये जाने थे, पर इस रिपोर्ट का प्रस्तुतिकरण यहां अभी कुछ लंबा सा हो रहा है अतः अगली बार. इसका विचार एक मित्र ने दिया था, इसी तरह और भी सुझाव दिये गये हैं, मसलन यहां उनसे जुड़ी ब्लॉग पोस्टों के लिंक्स, उनका आधिकारिक जीवनवृत्त और साथ ही जितना संभव होता जाए शिवराम के लेखन की उपलब्धता. इस कार्य को भी शनै-शनै करने की योजना है.
०००००
रवि कुमार
http://ravikumarswarnkar.wordpress.com/2010/10/30/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E2%80%98%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%8D/
शिवराम : अब यह मशाल है, और हम हैं.
अक्टूबर 23, 2010 at 9:31 अपराह्न (शिवराम : स्मृति-शेष)
Tags: शिवराम
पिता का यूं अचानक चला जाना.
वैसे वे हमेशा हमारे लिए, अचानक ही होते थे. वे हमारी दुनिया में, हमारी चेतना में, हमारे व्यवहारों में यूं ही अचानक चले आते, और हमें हतप्रभ सा छोड़ अचानक ही गायब भी हो जाया करते. हमें पता ही नहीं चलता कि हमारी हिस्सेदारी कब यूं ही ख़त्म हो जाया करती, और हम लंबे समय तक उनकी अनुपस्थित उपस्थिति में आंदोलित होते रहते. इस बार भी वे कुछ ऐसे ही पेश आए, यूं ही अचानक, कुछ भी समझने देने से पहले ही, जैसे उन्होंने सभी के हिस्सों की चादर समेटी जिसके एक कौने से हमारा हिस्सा भी झांक रहा था, उसे जैसे हवा मे लहराया एक जादूगर की तरह, और सब कुछ गायब. वह चादर भी, सबके हिस्से भी, और साथ में वे भी.
ऐसा लगता रहा जैसे कि जादूगरी चाल अभी पुनर्रचना करेगी और सभी कुछ पहले की तरह ही सामान्य हो जाएगा. बहुत से हिस्सों वाली चादर को लपेटे वे मुस्कुराते हुए से अभी यूं ही अचानक नमूदार हो जाएंगे.
यही टीस है, यही मलाल है कि हम नियमबद्धताओं की इन सीमाओं और प्रदत्त छूटों के बीच से संभावनाएं नहीं खोज पाए. उन्होंने हमें समय ही नहीं दिया. हमने उन्हें कुछ ज़्यादा ही जल्द खो दिया. उन्होंने अपने आपको भी कुछ ज़्यादा ही जल्द खो दिया. हमने उनकी बंदिशों वाली परवाज़ के भी असीम आयाम देखे थे, पर अब जब उनकी उन्मुक्त उड़ानों को कई क्षितिज़ नापने थे, कई मंज़िलों से सरग़ोशी करनी थी, उनका शरीर चुक गया. दिल जवाब दे गया, चुपचाप, बिना किसी आहट के, बिना किसी आहो-फ़ुगां के.
वे अपने हेतु किसी को भी परेशान करना पसंद नहीं करते थे, जहां तक संभव हो चीज़ों से व्यक्तिगत रूप से ख़ुद जूझना चुनते थे. हमेशा अपने चुने हुए सामाजिक कार्यभारों की भागमदौड़ में लगे रहते थे, और यह और कि आज के समय की चुनौतियों को देखते-समझते हुए अपने ऊपर निरंतर नई-नई जिम्मेदारियां लादते रहते थे. निरंतर अलग-अलग तरह का काम, कभी दिमाग़ी जुंबिशों का जख़ीरा, उनमें अलटी-पलटी, कभी शारीरिक दौड़भागों की श्रृंखलाएं. कभी शहर, कभी बाहर. देश के इस कोने से उस कोने तक को लाल पत्थर से पाटने का जज़्बा और रवायतों को उल्टे हाथ से पुनः लिखने की ज़िद. वे लगातार जूझते रहे, भागते रहे.
और इसी तरह भागते दौड़ते से वे इस दुनिया से भी कूच कर गए. शिवराम अब और नहीं रहे.
हमारे पास बचा रह गया है, उनकी सोच और समझ जो हमारे दिमागों में पुख़्तगी से पैबस्त है, जो उनके लिखे बोले हुए में सुरक्षित है, समय की चुनौतियों से जूझने का जज़्बा और कार्यभारों की श्रृंखलाएं, तथा संघर्षों और पक्षधरताओं की परंपरा की जलती मशाल.
अब यह मशाल है, हम हैं.
और इसे आगे थामते रहने वाले हाथों की श्रृंखला पैदा करते रहने का जुनून.
हम उनके आकस्मिक अवसान पश्चात के चुनौतीपूर्ण क्षणों में संबल बनी मित्रों, साथियों और समूहों-संगठनों की व्यक्त संवेदनाओं और संकल्पों के लिए सभी का आभार प्रकट करते हैं. हम कृतज्ञ हैं.
०००००
रवि कुमार
(सोमवती देवी, पुरुषोत्तम 'यक़ीन', रवि कुमार, शशि कुमार, पवन कुमार, रोहित पुरुषोत्तम)
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19s टिप्पणियाँ
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pallav said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 9:42 अपराह्न
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Veenit Shraddhanjali.
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गिरिजेश राव said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 9:46 अपराह्न
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उन्हें श्रद्धांजलि।
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एक जवान के लिए पिता बरगद की तरह होते हैं।
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जब तक रहते हैं, आप सोचते हैं कि उनकी छाँव बढ़ने नहीं दे रही।
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जब चले जाते हैं तो धूप लगती है।
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ज़िन्दगी ऐसी ही है बन्धु! धीर धरें।
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manik said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 9:46 अपराह्न
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deep condolence
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ललित शर्मा said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 9:46 अपराह्न
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रवि भाई, मुझे द्विवेदी जी की पोस्ट से पता चला कि शिवराम जी नहीं रहे और उसी दिन पता चला कि आप उनके ज्येष्ठ पुत्र हैं। ईश्वर की नियति के सामने किसका बस चला है। उनके विचारों की मशाल हमेशा आलोकित रहे। इस दारुण दुख की घड़ी में हम आपके साथ है। पिता का साया सर से उठ जाना क्या होता है इसे मैं भली भांति जानता हूँ। आप सबल हो कर जिम्मेदारियों को वहन करें। आपका नम्बर मुझसे कहीं खो गया। इसलिए फ़ोन नहीं लगा सका। अवश्य ही कुछ दिनों में आपसे मिलने का यत्न करता हूँ।शिवराम जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
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डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 10:16 अपराह्न
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भाई शिवराम के न रहने से यह दुनिया थोड़ी फीकी, थोड़ी बेरंग लग रही है.
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उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम इस दुनिया को रंगीन बनाने की कोशिश करें.
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अशोक कुमार पाण्डेय said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 10:53 अपराह्न
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मैं समझ सकता हूं मित्र…उन्हीं दिनों मेरे पिता भी बुरी तरह घायल और बीमार थे…पिता का जाना और वह भी एक ऐसे पिता का जो आपका आदर्श भी हो…नेता भी हो…
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मेरी तो उनसे बस एक मुलाक़ात थी…और ऐसा लगा कोई बेहद अपना चला गया हो…क्या कहूं…बस उस मशाल को थामे रहने और चलते जाने का संकल्प!
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दिनेशराय द्विवेदी said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 11:23 अपराह्न
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अब मैं क्या कह सकता हूँ? मैं अभी तक समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि व्यक्तिगत रूप से मैं ने क्या खो दिया है? कभी लगता है मेरी आँखें नहीं रही हैं, कभी लगता है मेरा हाथ कहीं खो गया है, कभी पैर गायब मिलता है। कभी गला अवरुद्ध हो जाता है जैसे मेरी आवाज चली गई है।
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लेकिन दायित्व वे रोज मुझ से बात करते हैं, सब यहीँ है, अवसाद को त्याग और जुट जा।
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कैसे श्रद्धांजलि दूँ उन्हें? शिवराम मेरे लिए सदैव जीवित रहेंगे, जीवन के आखिरी क्षण तक।
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दिनेशराय द्विवेदी said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 11:33 अपराह्न
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…… और एक बात आज पहली बार इस पोस्ट पर लगे चित्रों को देख कर महसूस कर रहा हूँ कि शिवराम शारीरिक रूप से भी असीम सुंदरता के स्वामी थे। उन का आंतरिक सौंदर्य तो उन से मुलाकात के पहले दिन से देखा और महसूस किया है। ऐसा असीम सौन्दर्य जो अंदर से बाहर तक एक जैसा हो, बिरले ही देखने को मिलता है।।
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प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI said,
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अक्टूबर 23, 2010 at 11:35 अपराह्न
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शिवराम जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!
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अनुराग शर्मा said,
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अक्टूबर 24, 2010 at 3:22 पूर्वाह्न
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शिवराम जी को विनम्र श्रद्धांजलि! सत्पुरुष अपने विचारों और सत्कृत्यों के रूप में सदा जीवित रहते हैं।
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sharad upadhyay said,
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अक्टूबर 24, 2010 at 11:07 पूर्वाह्न
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इस पल बैठा जब इस लेख को पढ़ रहा हूं। तो यह सोचकर सिहरन सी दौड जाती है। कि शिवरामजी अब नहीं है। एक अजीब सा सूनापन चारों ओर से घेर लेता है।
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अभी १४ सितंबर को काव्य-मधुबन के कार्यक्रम में स्टेज के पास था। तो उन्होंने कहा, 'शरद, आज नवभारत टाईम्स में तुम्हारा व्यंग्य पढ ा। बहुत अच्छा लिख रहे हो। खूब लिखते जाओ।' यह मेरे और उनके बीच का अंतिम संवाद रहा। बस रवि भाई, अब तो उनके सपनों को खूब साकार करना है। मेरी ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि।
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अफ़लातून said,
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अक्टूबर 24, 2010 at 12:10 अपराह्न
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रविजी और दिनेशराय जी की पोस्ट्स द्वारा शिवरामजी की सोच और कर्म से परिचय हुआ । उनकी स्मृति को प्रणाम । रविजी , उनसे जुड़ी पोस्ट्स की लिंक भीीक साथ प्रकाशित करें ।
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kishore choudhary said,
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अक्टूबर 24, 2010 at 3:08 अपराह्न
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मन कैसा हो रहा है लिख नहीं सकता
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साल बानवे में जयपुर में कवि हंसराज जी ने कहा किशोर इनको जानते हो ? ये शिवराम जी हैं
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फिर जनवादी लेखक संघ, फिर एक राष्ट्र स्तर का वामपंथी आन्दोलन…
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इम्प्रेसिव व्यक्तित्व
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जाने क्या कुछ खो देने को शापित है मनुष्य जाति
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इसी मशाल की लौ से संभव है, युगों का आरोहण… मैं अपनी मुट्ठी को बांधे हुए दायें हाथ को हवा में मजबूती से लहराते हुए उन्हें याद करने का साहस जुटा रहा हूँ.
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Prem Chand Gandhi said,
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अक्टूबर 25, 2010 at 9:26 पूर्वाह्न
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Vinamra Shraddhanjali….
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chandrapal said,
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अक्टूबर 25, 2010 at 1:00 अपराह्न
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उनके नाटक पढ़े थे, पत्रिका पढ़ते थे और सोचते थे की इस व्यक्ति से मिलना बहुत जरुरी है, ये एकला ही क्रांति कर देगा और आप देखते रह जाओगे, फिर एक दो बार खतो खिताबत भी हुई, पर मजा नहीं आया, फिर मयंक जी के प्रोग्राम में उनको सुना और देखता रह गया, राजस्थान जैसे राज्य जन्हा सामन्तवाद का बोलबाला हमेशा से रहा है , वंहा वे उसके विरुद्ध खड़े हो जाते है, फिर एक ख़त जो उन्होंने सोहन शर्मा जी को लिखा था , वो पढ़ा , उस ख़त में उनकी मंशा साफ़ थी की हम तमाम प्रगतिशील शक्तिया एक हो और साम्राज्यवाद को लात मार कर अपने देश से भगा दे. हलाकि अब न तो शीवराम जी है और न ही सोहन शर्मा, पर इन दोने के विचार हमें आगे बढ़ाने होंगे और दुश्मन को बह्गना होगा… जिस दिन हमारे देश की शोषित जनता विद्रोह कर देगी उस दिन हर व्यक्ति में शीवराम और सोहन शर्मा होंगे और फिर क्रांति को कोई नहीं रोक सकता…. 'आखर' की तरफ से दोनों विद्वानों को हार्दिक श्रधांजलि
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ashish said,
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अक्टूबर 26, 2010 at 5:45 अपराह्न
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ravi bhai,
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abhi shayad uncle or mai sath beth k card design kar rahe hote
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Saagar said,
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अक्टूबर 27, 2010 at 6:25 अपराह्न
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उनको मैंने आपके माध्यम से ही जाना था पर अब बहुत बुरा लग रहा है… हाल ही में एक धक्का और लगा था एक और…
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bhagirath said,
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अक्टूबर 28, 2010 at 5:31 अपराह्न
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मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!
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Shivkumar said,
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अक्टूबर 31, 2010 at 9:16 पूर्वाह्न
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pata hi nahi chala kab, kya or kaise ho gaya………………
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aaj bhi vishwash nahi hota………..
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शिवराम की स्मृति में 'हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी' की ओर से पटना में सभा
♦ अनीश अंकुर
'शिवराम को हिंदी नुक्कड़ नाटक का जन्मदाता होने का श्रेय जाता है। जनता पागल हो गयी है के बगैर हम जैसे लोगों और पटना रंगमंच के व्यक्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमलोगों ने नुक्कड़ नाटक का ककहरा उसी नाटक से सीखा।'
ये बातें सुप्रसिद्ध रंगकर्मी जावेद अख्तर ने 'हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी' द्वारा आयोजित 'शिवराम स्मृति सभा' में बोलते हुए कहा। जावेद अख्तर ने कहा कि 'वैसे तो प्रोसेनियम के स्वरूप से उन्मुक्त होकर सबसे पहले थर्ड थियेटर की शुरुआत करने वाले बादल सरकार और उनके नाटक 'जुलूस' का नाम आता है लेकिन नुक्कड़ नाटक की वैचारिक दिशा और इसके स्वरूप को सबसे पहले स्पष्ट किया शिवराम और उनके नाटक 'जनता पागल हो गयी है' ने। इस नाटक के कितने और कहां-कहां प्रदर्शन हुए, ये किसी को नहीं मालूम। इस नाटक में पहली बार वे पात्र – पुलिस, नेता, गुंडा, अफसर आदि – आते हैं जो आगे चलकर भावी नुक्कड़ नाटकों के आधार बने'।
सभा को संबोधित करते हुए रंगमंच के मशहूर अभिनेता जावेद अख्तर खान।
जावेद अख्तर ने शिवराम के इस नाटक के बारे में बोलते हुए आगे कहा कि 'कई बार किसी रचनाकार की कृति उससे स्वतंत्र हो जाती है। शिवराम के नाटक 'जनता पागल हो गयी है' के साथ ऐसा ही हुआ। लोग भले शिवराम को न जानते हों, पर 'जनता पागल हो गयी है' से सभी परिचित हैं। इस नाटक ने नुक्कड़ नाटक के स्वरूप को निर्धारित किया। वैसे 'जुलूस' नाटक का भी मंचन लगभग इसी के आसपास प्रारंभ हुआ, पर जुलूस में सिर्फ रूप और दूसरी चीजें थी। नुक्कड़ नाटक के स्वरूप और चरित्र को निर्धारित करने का काम पहली बार 'जनता पागल हो गयी है' ने किया। ये बड़े अफसोस की बात है कि 'जनता पागल हो गयी' के अलावा हम शिवराम के किसी और नाटक के बारे में नहीं जानते'। बिहार में इस नाटक का पिछले 30 वर्षों से लगातार प्रदर्शन हो रहा है।
61 वर्षीय शिवराम की मृत्यु हर्ट अटैक से एक अक्टूबर को हो गयी थी। वे लगभग 40 वर्षों से सक्रिय थे। पूरे उत्तर भारत में जनसंघर्षों और जनांदोलनों से जुड़े हुए अपने ढंग के वे अनूठे रंगकर्मी थे। राजस्थान के कोटा के रहने वाले शिवराम मजदूरों और किसानों को संगठित करने में मदद करना अपने रंगकर्म का मुख्य ध्येय समझते रहे। उन्होंने लगभग 11 नाटक एवं काव्य संग्रहों की रचना की थी। एक वर्ष पूर्व वे दूरसंचार विभाग में सब डिवीजनल इंजीनियर के पद से रिटायर हुए थे। शिवराम 1980 में सीपीएम से अलग हुए। वे एमसीपीआई (मार्क्सिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) के एक धड़े एमसीपीआई यूनाईटेड के पॉलिट ब्यूरो के सदस्य भी थे। साथ ही मजदूर संगठन सीआईटीयू (सीटू) से भी उनका जुड़ाव बना रहा।
बिहार से उनका गहरा लगाव था। एक बार उन्होंने निजी बातचीत में बताया था कि उनके नाटकों के सबसे ज्यादा प्रदर्शन बिहार में हुए। बिहार में उनके संगठन 'विकल्प : जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा की इकाई' भी थी। मुजफ्फरपुर के चर्चित रंगकर्मी यादवचंद्र पांडे से उनका गहरा जुड़ाव था। बिहार विश्वविद्यालय में शिवराम के कृतित्व पर शोध भी हुआ है। शिवराम पहले प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे, बाद में जनवदी लेखक संघ के संस्थापकों में भी उनका नाम लिया जाता है। 'जलेस' से सैद्धांतिक मतभेद होने के बाद उन्होंने 'विकल्प : जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा' बनाया, जिसके वे राष्ट्रीय महामंत्री थे। 'अभिव्यक्ति' पत्रिका का लंबे अर्से तक उन्होंने संपादन किया। उनके नाटकों के अनुवाद कई प्रमुख भाषाओं में भी हो चुके हैं। उनकी कृतियों में प्रमुख हैं…
नाटक संग्रह
1. जनता पागल हो गयी है
2. घुसपैठिये
3. दुलारी की मां
4. एक गांव की कहानी
5. राधेया की कहानी
6. पुनर्नवा – नाट्य रूपांतर संग्रह
7. गटक चूरमा
हाल के दिनों में 'गटक चूरमा' खासा लोकप्रिय हुआ।
काव्य संग्रह
1. कुछ तो हाथ गहो
2. खुद साधो पतवार
3. माटी मूलकैमी एक दिन
1. सूली ऊपर सेज – एसईजेड पर एक आलोचनात्मक पुस्तक
'सर्जना' से जुड़े संस्कृतिकर्मी और पटना इंजीनियरिंग कॉलेज के रिटायर्ड प्रो संतोष कुमार शिवराम से कोटा में उस वक्त मिले थे, जब वे वहां के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने रिटायरमेंट के बाद प्रिंसिपल थे। प्रो सतोष कुमार ने शिवराम के बारे में बोलते हुए कहा कि 'शिवराम ने कहा था कि नुक्कड़ नाटक एक तेज हथियार होता है। यह मंच नाटक की अपेक्षा ज्यादा प्रभावी होता है क्योंकि नुक्कड़ नाटक में कथ्य ज्यादा प्रभावी होता है। शिवराम ने अपने नाटकों से समाज का चेहरा दिखाया है।'
प्रेरणा कार्यालय में पटना के रंगकर्मियों-कलाकारों के साझा मंच 'हिंसा कि विरुद्ध संस्कृतिकर्मी' की ओर से आयोजित इस स्मृति सभा में पटना के रंगकर्मी बड़ी संख्या में मौजूद थे। युवा रंगकर्मियों की तादाद ज्यादा थी।
'प्रयास' से जुड़े वरिष्ठ रंगकर्मी मिथिलेश सिन्हा ने अपने समय के बारे में बताते हुए कहा 'जब हमलोगों ने नाटक करना शुरू किया, उस वक्त 'जनता पागल हो गयी है' की धूम थी। जिस संस्था या रंगकर्मी ने इस नाटक को किया ही नहीं था, उसे रंगकर्मी ही नहीं माना नहीं जाता था।'
युवा साहित्यकार और समीक्षक जीतेंद्र वर्मा ने सीवान यात्रा के दौरान अपने संस्मरणों को सुनाते हुए बताया 'उनके भीतर बहुत बेचैनी थी। नाटक के छोटे-छोटे कामों को करने में भी वे पीछे नहीं रहते थे। जैसे दरी बिछाना, झाड़ू लगाना आदि। उन्हें कोई संकोच नहीं होता था।'
'जनता पागल हो गयी है' नाटक में पागल की भूमिका निभाने वाले युवा रंगकर्मी कृष्ण किंचित ने इस नाटक को करने के दौरान अपने अनुभवों को बताते हुए कहा 'इस नाटक को करने के बाद मेरे अंदर हिम्मत आयी। इस नाटक ने मुझे सच बोलना सिखाया और सच्चाई का सामना करने का हौसला दिया। इस नाटक को करने के बाद मुझे लगा कि मेरी समझ थोड़ी बढ़ गयी है।' कृष्ण किंचित इतने इन्वाल्वमेंट से बोल रहे थे कि किसी को उनकी बातों पर अविश्वास नहीं हुआ। कृष्ण किंचित ने बोलते समय वीरेंद्र मंडल को भी याद किया गया, जो काफी लंबे समय तक इस नाटक में 'जनता' की भूमिका का अविस्मरणीय अभिनय किया करते थे। कुछ वर्षों पूर्व वीरेंद्र मंडल की टीवी की बीमारी से मौत हो गयी।
स्मृति सभा को संबोधित करने वालों में प्रमुख थे 'थियेटर यूनिट' के राम कुमार मोनार्क व बब्लू गांधी आदि। स्मृति सभा में पत्रकार श्रीकांत, एचएमटी के वरिष्ठ रंगकर्मी सुरेश कुमार हज्जू, मंच आर्ट ग्रुप के जय प्रकाश, 'प्रेरणा' के नीरज, रवि एवं बुल्लू, 'अभियान' के गौतम, कुणाल, सर्वज्ञ एवं शाहिद, 'अक्षरा आर्ट्स' के राणा संतोष कमल, आशुतोष अभिज्ञ, 'निर्माण कला मंच' के अंजारूल हक के अलावा कई रंगकर्मी-कलाकार मौजूद थे। सभा का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव रंजन श्रीवास्तव ने किया। अंत में शिवराम की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया।(अनीश अंकुर। बिहार के प्रखर युवा सांस्कृतिक कार्यकर्ता। पिछले बीस सालों से सक्रिय। जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा की पटना ईकाई प्रेरणा से लंबे समय तक जुड़ाव। बाद में अभियान नाम की रंगसंस्था की नींव रखी। सौ से अधिक नाटकों में अभिनय। सन 2000 में इंडिया टुडे ने उन्हें सदी के चंद चुनिंदा संस्कृतिकर्मियों में जगह दी थी। उनसे anish.ankur@gmail.com पर संपर्क करें।
- डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said:
- शिवराम जितने सहज अपने जीवन में थे उतने ही अपने लेखन में भी थे. यही बात उन्हें महान बनाती है.
- # 9 October 2010 at 5:27 pm
- kabir said:
- anis ji ,very very thanks to this type of report.
- # 9 October 2010 at 5:30 pm
- Parvez Akhtar said:
- शिवराम से 3-4 वर्ष पूर्व जोधपुर में आयोजित 'ओम शिवपुरी स्मृति नाट्योत्सव' में मुलाक़ात हुई थी | वे अपने एक मंच-नाटक के साथ उस आयोजन में भाग लेरहे थे | हमने उन्हें बताया कि हम बिहार से आये हैं और उनके नाटक 'जनता पागल हो गयी है' के मंचन से हम जुड़े रहे हैं…. वे हम से इसतरह मिले, जैसे वर्षों के परिचित हों | बहुत ही सरल और आडम्बरहीन व्यक्तित्व था उनका |
- मेरे ख़्याल से, 'जनता पागल हो गयी है' भारत का अकेला नाटक है, जिसके लाखों मंचन पूरे देश में हुए | यद्यपि कथ्य और शिल्प के स्तर पर यह एक औसत स्तर का नाटक ही है और अब इसका मंचन यदा-कदा ही हुआ करता है; फिर भी नुक्कड़ नाटक के प्रारंभिक दौर में निर्भीक प्रतिरोध के इसके
- तेवर ने प्रतिबद्ध रंगकर्मियों को ज़रूर आकर्षित किया |
- सामाजिक परिवर्तन केलिए उनके संघर्ष को सलाम!
- # 9 October 2010 at 6:35 pm
- sarvagya said:
- janta pagal ho gai hai, iska nukkad play maine dekha hai.aur ushse jyada maine iske bare me suna hai.aur iski lokpriyata k bare me kisi se kuchh batane ki koi jarurat nahi hai.lekin mujhe ish baat ka bahut afsosh hua k mujhe iske writer k bare me jankari tab mili jab SHIVRAM ki kalam chalni ruk gai.lekin ab hame unki kalam ko chalana hoga aur unke natako k madhyam se nukkad abhiyan ko sahi rasta dikhana hoga.
- NUKKAD NATAK K ISH BADSHAH KO MAIN SRADHANJALI DETA HUN
http://mohallalive.com/2010/10/09/shivram-memorial-gathering-in-patna/
Saturday 19 December 2009
अंधों का गीत ..... शिवराम
पिछली पोस्ट चार कदम सूरज की ओर
पर शिवराम जी की इसी शीर्षक की कविता पर विष्णु बैरागी जी ने टिप्पणी की थी कि इस कविता का नुक्कड़ नाटकों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। शिवराम हिन्दी के शीर्षस्थ नुक्कड़ नाटककार हैं। 'जनता पागल हो गई है' तो उन का सार्वकालिक बहुचर्चित नाटक है। जिसे नाटक की किसी भी फॉर्म में खेला जा सकता है और खेला गया है। मुझे गर्व है कि इस नाटक की अनेक प्रस्तुतियाँ मैं ने देखी हैं और कुछ प्रस्तुतियों में मुझे अभिनय का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन के नाटकों में लोक भाषा और मुहावरों का प्रयोग तो आम बात है, लोकरंजन के तत्व भी बहुत हैं। लेकिन वे उन में गीतों का समावेश भी खूब करते हैं और इस तरह कि वे मर्म पर जा कर चोट करते हैं।
ऐसा ही एक गीत है "अंधों का गीत" जो सीधे जनता पर चोट करता है। आज प्रस्तुत है यही गीत आप के लिए। तो पढ़िए .......
अंधों का गीत
- शिवराम
अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत भाई!
दिन में भी रात यहाँ पर
बात-बात में घात यहाँ पर
लूटो-मारो, छीनो-झपटो
राह न कोई राही
अंधा राजा, अंधी पिरजा
अंधी नौकरशाही।।
एक के दो कर, दो के सौ कर
या कोई भी घोटाला कर
तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
अंध बाजार, अंध भोक्ता
अंधी पूँजीशाही।।
अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत है भाई।
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लो, मेरा रूमाल ले लो
हमारे समय के अग्रणी रचनाकार : गजानन माधव मुक्तिबोध (2)
Posted by दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi at 12/19/2009 11:46:00 PM
Labels: Litrature, poetry, Shivram, कवि, कविता, गीत, शिवराम, साहित्य
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