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Sunday, December 11, 2016

हिंदुओं के डिजिटल नस्ली नरसंहार के खिलाफ संघ परिवार खामोश क्यों है? सवाल यह है करोडो़ं लोगों के साइबर अपराध के शिकार होते रहने का सच जानते हुए संघ परिवार की सरकार किसके हित में डिजिटल इंडिया के लिए देश में नकद लेनदेन सिरे से खत्म करने के लिए नोटबंदी के जरिये आम जनता की क्रयशक्ति छीनकर उन्हें भूखों मारने का इंतजाम कर रही है। क्या संघ परिवार की सरकार और फासिज्म का राजकाज संघ मुख्याल�


हिंदुओं के डिजिटल नस्ली नरसंहार के खिलाफ संघ परिवार खामोश क्यों है?
सवाल यह है करोडो़ं लोगों के साइबर अपराध के शिकार होते रहने का सच जानते हुए संघ परिवार की सरकार किसके हित में डिजिटल इंडिया के लिए देश में नकद लेनदेन सिरे से खत्म करने के लिए नोटबंदी के जरिये आम जनता की क्रयशक्ति छीनकर उन्हें भूखों मारने का इंतजाम कर रही है।
क्या संघ परिवार की सरकार और फासिज्म का राजकाज संघ मुख्यालय से संचालित नहीं हैं?
क्या संस्थागत फासीवादी किसी संगठन का राजनीतिक नेतृत्व संस्था के नियंत्रण से बाहर हो सकता है?
मौजूदा नोटबंदी डिजिटल इंडिया आंदोलन भी संघ परिवार का मंडलविरोधी रामंदिर मार्का कमंडल आंदोलन है और इसका सीधा मतलब है बहुजनों का सफाया।
भस्मासुर ही बना रहे हैं तो भगवान विष्णु कहां हैं?
यह सारा तमाशा संघ परिवार का है।
हिंदुत्व का एजंडा चूंकि नरसंहारी कारपोरेट एजंडा है।
पलाश विश्वास
संघ परिवार की पूंजी परंपरागत तौर पर धर्मप्राण आस्थावान हिंदुओं की आस्था है।हिंदुओं की सहिष्णुता,उदारता को घृणा और हिंसा में तब्दील करने की उसकी सत्ता राजनीति है और घृणा के इस जहरीले कारोबार को वह हिंदुत्व का एजंडा कहता है,जिसका हिंदुत्व से कोई लेना देना नही है और उसके हिंदुत्व के इस कारोबार का मकसद हिंदुओं का सर्वनाश है और कारपोरेट एकाधिकार नस्ली राजकाज है।
नोटबंदी से पहले कालाधन की घोषणा करने पर पैतालीस फीसद का टैक्स और नोटबंदी के बाद पचास फीसद का टैक्स।सिर्फ पांच फीसद टैक्स की अतिरिक्त आय के लिए नोटबंदी कर्फ्यू का मकसद जाहिर है कि कालाधन निकालना कतई नहीं है।
आर्थिक गतिविधियों के खिलाफ यह कर्फ्यू है।
बहुजनों के वजूद के खिलाफ यह कर्फ्यू है।
संघ समर्थक बनियों, सत्ता में भागीदार ओबीसी के खिलाफ यह कर्फ्यू है।
यह संविधान के खिलाफ मनुस्मृति अभ्युत्थान है।
मकसद डिजिटल नस्ली नरसंहार बजरिये कारपोरेट नस्ली एकाधिकार की अर्थव्यवस्था है।
आज सुबह हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांच्यजन्य के ताजा में डिजिटल सुरक्षा को लेकर प्रकाशित मुख्य आलेख फेसबुक पर शेयर किया है।
इस आलेख के मुताबिक आप इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, आपके पास मेल एकाउंट है, सोशल साइट्स पर एकाउंट है, मोबाइल में एप्स हैं- तो समझिए कि आप घर की चाहारदीवारी में रहते हुए भी सड़क पर ही खुले में ही गुजर-बसर कर रहे हैं।आलेख में खुलकर डिजिटल सुरक्षा की खामियों की चर्चा की गयी है।
इस बीच डिजिटल हो जाने की राजकीय हिंदुत्व की कारपोरेट मुहिम जोर शोर से चल रही है। नजारा ये है के जिन्होंने कभी भी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, ऑनलाइन पेमेंट के बारें में सुना तक नहीं था, वो आज डिजिटल होना सीख रहे हैं।जबकि नोटबंदी से पहले लगातार चार महीने तक एटीएम,डेबिट और क्रेडिट कार्ड के पिन चुराये जा रहे थे और यह सब क्यों हुआ ,कैसे हुआ,न सरकार के पास और न रिजर्व बैंक के पास इसका कोई जवाब अभीतक है।बत्तीस लाख से ज्यादा कार्ड तत्काल रद्द भी कर दिये गये।
संघ परिवार के मुखपत्र के ताजा विशेष लेख में जो सवाल उठाये गये हैं,उसका लब्वोलुआब यही है कि  क्या हमारे पास डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर इतना दुरूस्त है कि हम आसानी और सुरक्षित तरिके से डिजिटल हो सकते हैं।
भारतीय बैंकों की तरफ से रोज खाताधारकों को संदेश मिल रहे हैंः
अब अपनी जेब और पर्स में भर-भर के नोट डालने का जमाना चला गया। नोटों को छोड़िए और आ जाइए कार्ड्स पर, आ जाइए इंटरनेट पर, आ जाइए ई-वॉलेट पर। अब कैश नहीं बिना कैश के जिंदगी जीना सीखिए।
लेनदेन से बेदखल बैंक अब संघी डिजिटल मुहिम में शामिल हैं।
यह दिवालिया बना दिये गये के वजूद का सवाल भी है क्योंकि उनके पास नकदी नहीं है और कोी बैंक ग्राहकों का अपना पैसा बैंक किसी सूरत में लौटा नहीं सकता।
गौरतलब है कि  पिछले तीन सालों में साइबर क्राइम 350 फीसदी बढे हैं।
मनीं कंट्रोल के मुताबिक डिजिटल लेनदेन कम लागत के साथ इस्तेमाल में आसान है। इसके इस्तेमाल से रोजमर्रा के खर्च और निवेश में आसानी होगी। साथ ही पैसों के लेनदेन में तेजी आएगी और खर्च का रिकॉर्ड रखने में भी आसानी होगी। लेकिन साथ ही डिजिटल लेनदेन में गोपनीयता और सुरक्षा भी जरुरी होगी। डिजिटल लेनदेन रेलवे, एयरलाइन और बस की टिकट बुकिंग में मुमकिन है। वहीं टोल बूथ, रोजमर्रा के सामान की खरीदारी, टैक्सी और ऑटो का किराया, निवेश और बैंकिंग, टैक्स भुगतान, फीस भुगतान और बिल भुगतान में भी संभव है।

डिजिटल लेनदेन के फायदे तो कई हैं, लेकिन साथ ही खतरे भी ज्यादा हैं। हम देख रहे है कि साल दर साल साइबर क्राइम को लेकर केसेस बढ़ते ही जा रहे है। डिजिटल लेनदेन में आदमी जालसाजी में आसानी से फंस जाता है और फर्जी ई-मेल के जरिए गोपनीय जानकारी, पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड नंबर जैसी जानकारी चुराई जाती है। ऑनलाइन शॉपिंग में ब्राउडर आपको फर्जी वेबसाइट पर ले जाता है और वो वेबसाइट आपकी गोपनीय जानकारी चुराती है। कभी ग्राहक और मर्चेंट्स के बीच हो रहे लेनदेन को हैक किया जाता है। हैकर लॉग इन और पासवर्ड की जानकारी चुराते हैं।

तो पांचजन्य में पाठकों से सीधा सवाल किया गया हैःआप गूगल पर 'सर्च' करते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि गूगल भी आपको सर्च करता है? एकाउंट बनाते समय मांगी गई जानकारियां आपने दी होंगी, पर यदि फेसबुक के पास वे जानकारियां भी हों जो आपने नहीं दी थीं, तो? आपके मेल आपकी प्रेषण सूची तक ही पहुंचते हैं या उसके और भी ठिकाने हैं? आपके व्हाट्सअप संदेश कौन-कौन पढ़ सकता है आपके मित्रों के अलावा? स्मार्टफोन में डाउनलोड एप्स क्या आपकी निजता के लिहाज से सुरक्षित हैं? क्या बड़ी-बड़ी इंटरनेट कंपनियां आपको मंजे हुए खुराफाती हैकरों से बचा सकती हैं... आखिर करोड़ों लोग साइबर अपराधों के शिकार हुए हैं। खतरे की संभावनाएं बहुत लंबी-चौड़ी हैं। पर डरिए मत, सजग रहिए। सजगता ही बचाव है।
सवाल यह है करोडो़ं लोगों के साइबर अपराध के शिकार होते रहने का सच जानते हुए संघ परिवार की सरकार किसके हित में डिजिटल इंडिया के लिए देश में नकद लेनदेन सिरे से खत्म करने के लिए नोटबंदी के जरिये आम जनता की क्रयशक्ति छीनकर उन्हें भूखों मारने का इंतजाम कर रही है।
गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद देश में आमदनी व खर्च में कमी आई है। एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सबसे अधिक प्रभावित बिहार, झारखंड और ओडि़शा जैसे राज्य रहे हैं। लोकल सर्किल्स के सर्वेक्षण में देश के 220 जिलों के 15,000 लोगों की राय ली गई। 20 प्रतिशत ने कहा कि इस कदम के बाद उनकी आय प्रभावित हुई है, वहीं 48 प्रतिशत ने कहा कि नोटबंदी के बाद उनका खर्च घटा है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि लोगों को इस कदम से काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है, बैंकों और एटीएम में कतार में काफी समय गंवाने के बाद भी लोगों को आसानी से नकदी उपलब्ध नहीं हो रही है।
बैंक दिवालिया हैं।बैंकों और एटीएम से लाशें निकलने लगी हैं।कालाधन का कहीं अता पता नहीं है।अब डिजिटल इंडिया की मंकी बातें ही सारेगामापा है।नजारा यह है कि  देश में डिजिटल भुगतान को बढावा देने के लिए एक टीवी चैनल व वेबसाइट शुरू करने के बाद देशव्यापी टोलफ्री हेल्पलाइन नंबर 14444 शुरू किया जाएगा। इस हेल्पलाइन का उद्देश्य लोगों को नकदीविहीन लेनदेन के प्रति शिक्षित करना तथा जरूरी मदद उपलब्ध कराना है।
यह सेवा सप्ताह भर में शुरू होने की संभावना है। साफ्टवेयर सेवा कंपनियों के संगठन नासकाम के अध्यक्ष आर चंंद्रशेखर ने पीटीआई को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, सरकार ने देशभर में जनता की मदद के लिए नासकाम की मदद मांगी थी।
दूसरी ओर सूचना तकनीक के माध्यम से आईटी धमाके का बैंड बाजा डिजिटल इंडिया कारपोरेट मानोपाली नस्ली नरसंहार अश्वमेधी अभियान के मध्य ही बजने वाला है।अमेरिका ने भारत को उसके दुनियाभर के युद्ध में पार्टनर बना लिया है और इसके बदले में भारत की आईटी क्रांति की हवा निकालने की जुगत में है अमेरिका।
ताजा खबरों के मुताबिक अमेरिका में नौकरी करने के इच्‍छुक भारतीयों की राह अब आसान नहीं रहने वाली है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस संबंध में एक बार फिर अपना कड़ा रुख दिखाया है। उन्‍होंने कहा है कि वे राष्‍ट्रपति का पद संभालते ही अपना पहला ऑर्डर वीजा के दुरुपयोग को रोकने के लिए देंगे। इसके चलते ही विदेशी लोग विभिन्‍न जॉब्‍स में अमेरिकियों का स्‍थान ले रहे हैं।
ट्रंप ने चेतावनी दी कि अमेरिका में नौकरी करने आने वाले भारतीयों समेत सभी विदेशियों को उनके प्रशासन में कड़ी जांच से गुजरना होगा।
संघ परिवार की सरकार कारपोरेट एकाधिकार कायम करके बहुसंख्य बहुजनों का नरसंहार अभियान चला रही है जो संघ परिवार के मनुस्मृति एजंडा से अलग नहीं है। साइबर सुरक्षा का सवाल उठाने वाले संघ परिवार ने नागरिकों की सुरक्षा और गोपनीयता के लिए सबसे खतरनाक आधार परियोजना का अभीतक किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया है।जबकि डिजिटल लेनदेन और बिना इंटरनेट डिजिटल लेनदेन में आधार नंबर अनिवार्य है जबकि आधार नंबर हैक या लीक होने की स्थिति में नागरिकों की जान माल को गंभीर खतरा है।इस आलेख में भी आधार योजना की कोई चर्चा नहीं है।
अगर संघ परिवार को जमीनी हकीकत के बारे में मालूम है तो उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि डिजिटल लेनदेन से जो किसान और मेहनतकश और व्यापारी तबाह होंगे ,उनमें बहुसंख्य हिंदू हैं और बहुजन भी हैं।
हिंदुओं के नस्ली नरसंहार के खिलाफ संघ परिवार खामोश क्यों है?
क्या संघ परिवार का अपनी सरकार पर कोई नियंत्रण नहीं है?
या फिर असलियत यह है कि बहुजनों को अब भी संघ परिवार हिंदू नहीं मानता है?
इसका साफ मतलब यह निकलता है कि यह कारपोरेट  नरसंहार कार्यक्रम संघ परिवार का है।
विजेता आर्यों ने इस देश की सांस्कृतिक एकीकरण के लिए वैदिकी नरसंहार के इतिहास के बावजूद सभी नस्ली समुदाओं को हिदुत्व में शामिल किया,जो हिंदुत्व की विरासत है।जिसमें अनार्य और द्रविड़,शक कुषाण अहम और तमान दूसरी नस्लें हिंदुत्व में समाहित हुई है।इसके विपरीत गौतम बुद्ध से पहले ब्राह्मण धर्म और गौतम बुद्ध के बाद मनुस्मृति के जरिये नस्ली एकाधिकार कायम करने की सत्ता संस्कृति रही है और वही रंगभेदी सत्ता संस्कृति संघ परिवार की है।
हिंदुत्व का एजंडा वोट बैंक समीकरण के अलावा कुछ नहीं है।
संघ परिवार का राममंदिर आंदोलन भी वोट बैंक समीकरण के अलावा कुछ नहीं है।ओबीसी आरक्षण के विरोध में आरक्षण विरोधी आंदोलन की पृष्ठभूमि में मंडल के खिलाफ कमंडल युग का प्रारंभ हुआ।दलितों और ओबीसी को हिंदुत्व की पैदल फौजें बनाने के लिए राम की सौगंध ली जाती रही है।
मौजूदा नोटबंदी डिजिटल इंडिया आंदोलन भी संघ परिवार का मंडलविरोधी रामंदिर मार्का कमंडल आंदोलन है और इसका सीधा मतलब है बहुजनों का सफाया।
साइबर सुरक्षा को लेकर वह सत्ता वर्ग को आगाह कर रहा है लेकिन आम नागरिकों और संघ परिवार के हिसाब से बहुसंख्य हिंदुओं और बहुजनों को इस अश्वमेधी नरसंहार से बचाने की उसकी कोई गरज नहीं है और न संघ परिवार इस पर कोई सार्वजनिक बहस चला रहा है और न सार्वजनिक तौर पर वह डिजिटल इंडिया सत्यानाशी कार्यक्रम का किसी भी स्तर पर विरोध कर रहा है।
संघ परिवार के स्वदेशी आंदोलन का कहीं अता पता नहीं है जबकि खुदरा कारोबार खत्म है और छोटे और मंझौले व्यवसाय पर कारपोरेट एकाधिकार का डिजिटल स्थाई बंदोबस्त लागू हो गया है।
इससे पहले खेती बेदखल है और उत्पादन प्रणाली तबाह है।
देश के सारे साधन संसाधन विदेशी पूंजी के हवाले है।
शेयर बाजार ग्लोबल इशारों के मुताबिक है।
सेवाक्षेत्र से लेकर रक्षा और आंतरिक सुरक्षा भी बेदखल हैं।
बैंक बीमा संचार उर्जा परिवहन रेलवे उड्डयन जहाजरानी परमाणु उर्जा निर्माण विनिर्माण बिजली पानी भोजन सौंदर्य प्रसाधन सिनेमा संस्कृति बाजार शिक्षा चिकित्सा सबकुछ विदेशी कंपनियों के हवाले हैं।
सबकुछ विशुद्ध आयुर्वेदिक पतंजलि ब्रांड हैं।
निजीकरण विनिवेश छंटनी बेदखली अत्याचार उत्पीड़न बलात्कार सुनामी की वैदिकी संस्कृति कारपोरेट है।
यही संघ परिवार का रामराज्य है।
रामराज्य है तो शंबूक की हत्या भी होनी है।
नस्ली दुश्मनों का वध और अश्वमेध भी तय हैं।
दरअसल वही हो रहा है और आस्था की वजह से हम इस अधर्म को धर्म मान रहे हैं।अपने ही नरसंहार के लिए उनकी पैदल सेना में हम शामिल हो रहे हैं।
क्या संघ परिवार की सरकार और फासिज्म का राजकाज संघ मुख्यालय से संचालित नहीं है?
क्या संस्थागत संगठन का राजनीतिक नेतृत्व संस्था के नियंत्रण से बाहर हो सकता है?
क्या संघ परिवार का कोई प्रधानमंत्री कारपोरेट सुपरमाडल बन सकता है?
क्या संघ परिवार भस्मासुर बनाने का कारखाना है?
भस्मासुर ही बना रहे हैं तो भगवान विष्णु कहां हैं?
यह सारा तमाशा संघ परिवार का है।
हिंदुत्व का एजंडा चूंकि नरसंहारी कारपोरेट एजंडा है।
भारतीयता का मतलब सिर्फ मुसलमान विरोध है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ पाकिस्तान और चीन के खिलाफ युद्धोन्माद है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ ग्लोबल हिंदुत्व है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ अमेरिका और इजराइल का रणनीतिक पार्टनर है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ रंगभेद,जाति व्यवस्था की असहिष्णुता और घृणा है?
भारतीयता का मतलब समानता और न्याय का विरोध है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ निरंकुश बलात्कारी पितृसत्ता है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ सलवा जुड़ुम है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ दलितों का उत्पीड़न है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ सैन्य दमन है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ लोकतंत्र का निषेध है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ कानून का राज निषेध है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ नागरिकों के मौलिक अधिकारों का अपहरण है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ मानवाधिकार हनन है?
भारतीयता का मतलब सिर्फ संविधान का दिन प्रतिदिन हत्या है?
संघ परिवार की भारतीयता के ये तमाम रंगबरंगे आयाम हैं।
फासिज्म का राजकाज नस्ली नरसंहार है।
डिजिटल नरसंहार अब संघ परिवार का कारपोरेट एजंडा है।
डिजिटल नरसंहार के लिए फासिज्म का यह कारोबार है।

हम शुरु से संघ परिवार को हिंदुत्व के हितों के खिलाफ मानते रहे हैं और उनके हिंदुत्व के एजंडे को नस्ली कारपोरेट नरसंहारी एजंडा मानते रहे हैं।
इस देश में बहुसंख्य आबादी हिंदुओं की है।
संघ परिवार ब्राह्मण धर्म के मुताबिक मनुस्मृति शासन भारत के संविधान के बदले लागू करना चाहता है और विशुद्ध रक्त सिद्धांत के तहत जिनके बूते हिंदू इस देश में बहुसंख्य हैं,उन दलितों,पिछडो़ं और आदिवासियों को वह हिंदू मानने से इंकार करता रहा है।बहुजनों को हिंदू न माने तो दस फीसद से कम सवर्ण और मात्र तीन प्रतिशत ब्राह्मण अल्पसंख्यक होते हैं बहुजनों के मुकाबले और मुसलमानों के मुकाबले भी।
पूर्वी बंगाल में दलितों की गिनती हिंदुओं में नहीं होती थी।इसलिए बंगाल में आजादी से पहले मुसलमान बहुमत रहा है और तीनों अंतरिम सरकारें मुसलमानों के नेतृत्व में बनी,जिनमें दलित भी शामिल थे।
मनुस्मृति शासन के लक्ष्य से संघ परिवार ने बहुजनों को भी हिंदुत्व के भूगोल में शामिल कर लिया।यह उसका राजनीतिक समीकरण है।
बहुजन अगर हिंदू न माने जाते तो भारत हिंदू राष्ट्र न हुआ रहता।
यह जितना सच है ,उससे बड़ा सच यह है कि संघ परिवार का सारा कामकाज हिंदुओं के हितों से विश्वासघात का है।
ठीक उसीतरह जैसे सर्वहारा हितों के खिलाफ वामपक्ष की राजनीति है।
डिजिटल बैंकिंग के फायदे पर जानकारों का कहना है कि डिजिटल इंडिया के लिए करेंसी का डिजिटाइज्ड होना जरूरी है। नोट की जगह डिजिटल करेंसी में ट्रांजैक्शन आसान होता है। बदलते वक्त के साथ  बैंकिंग बदल रही है। डिजिटल बैंकिंग बेहद सुरक्षित है। अब *999# के जरिए आम आदमी भी डिजिटल बैंकिंग कर सकता है। *999# के जरिए सस्ते मोबाइल से भी बैंकिंग संभव। डिजिटल बैंकिंग के जरिए अब 24/7 बैंकिंग ट्रांजैक्शन मुमकिन है। ट्रांजैक्शन के लिए घंटों लाइन में खड़ा रहना जरूरी नहीं है।
बैंक सेविंग अकाउंट होल्डर को डेबिट कार्ड देते हैं। डेबिट कार्ड से एटीएम से पैसा निकालना और दुकानों पर भुगतान संभव है। डेबिट कार्ड से ऑनलाइन पेमेंट भी संभव है। डेबिट कार्ड चेक-बुक की तर्ज पर काम करता है। डेबिट कार्ड से किसी दूसरे अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करना मुमकिन है।
डेबिट कार्ड नबंरों की अहमियत होती है। डेबिट कार्ड इस्तेमाल में 3 नंबर जरूरी होते हैं। ये हैं डेबिट कार्ड नबंर, सीवीवी और पिन नंबर। इनके बिना कोई ट्रांजैक्शन संभव नहीं होता। कार्ड नंबर में खाताधारक की सारी जानकारी छिपी होती है। वहीं पिन नंबर सीक्रेट नंबर होता है। पिन नंबर कार्डधारक याद रखता है। पिन नंबर किसी को बताना नहीं चाहिए। पिन नंबर ताले की चाबी की तरह है। जबकि सीवीवी नंबर कार्ड के पिछले हिस्से पर छपा होता है।
कार्ड इस्तेमाल में कुछ एहतियात वरतने की जरूरत होती है। कार्ड से भुगतान अपने सामने ही करें। स्किमर डिवाइस से कार्ड की क्लोनिंग होने का खतरा रहता है। कार्ड अपने सामने ही स्वाइप करवाएं। कार्ड स्वाइप करते वक्त पिन नंबर डालना जरूरी होता है। भुगतान के वक्त अपना पिन नंबर खुद ही दर्ज करें।
कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ रहे संघी कदमों में यूपीआई एक बड़ा गेम चेजर  साबित हो सकता है। बस, जरूरत है इसे समझने की और इस्तेमाल में लाने की। मनीकंट्रोल ने लजे बिजनेस स्कूल की सीईओ पूनम रुंगटा केहवाले स इस समझाने की कोशिश की हैः
पूनम रुंगटा का कहना है कि यूपीआई का इस्तेमाल करने के लिए सबसे पहले  यूपीआई पर रजिस्ट्रेशन करना होता है। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के लिए सबसे पहले अपने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से बैंक ऐप डाउनलोड करें और बैंक ऐप में यूपीआई का विकल्प चुनें। फिर अपना वर्चुअल एड्रेस बनाएं और वर्चुअल एड्रेस से बैंक अकाउंट लिंक करें।

यूपीआई के जरिए ई-कॉमर्स शॉपिंग आसानी से की जाती है। इसके जरिए आप पेमेंट ऑपशंस में यूपीआई का विकल्प चुनें और अपना वर्चुअल एड्रेस और भुगतान की राशि भरें। वर्चुअल एड्रेस भरने के बाद मोबाइल पर पिन आएगा और पिन भरने के बाद खरीदारी की प्रकिया पूरी होती है।

पूनम रुंगटा के मुताबिक यूपीआई के जरिए फंड ट्रांसफर आसानी से किया जा सकता है। फंड ट्रांसफर के लिए आप बैंक ऐप के यूपीआई सेक्शन में जाएं। जिसको पैसे ट्रांसफर करना है उसका वर्चुअल एड्रेस और राशि भरें। आप जैसे ही वर्चुअल एड्रेस भरेंगे उसके बाद मोबाइल पर पिन आएगा और मोबाइल पिन भरने के बाद आपके खाते से राशि ट्रांसफर हो जाएगी।

इतना ही नहीं यूपीआई के जरिए टैक्सी का भुगतान भी किया जा सकता है। टैक्सी भुगतान के लिए टैक्सी सर्विस के ऐप पर जाएं और राशि भरने के बाद एड मनी का विकल्प चुनें। अपना वर्चुअल एड्रेस भरें और वर्चुअल एड्रेस भरने के बाद मोबाइल पर पिन आएगा। मोबाइल पिन भरने के बाद भुगतान हो जाएगा।

सवालः आरबीआई के नए नियम के मुताबिक जल्दी कर्ज चुकाने पर कोई चार्ज नहीं लगेगा, क्या ये नियम डीएचएफएल पर भी लागू होगा? क्या होम लोन बंद कर देना चाहिए? कर्ज बंद करने पर किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?

पूनम रुंगटाः 80सी के तहत टैक्स छूट पाने के लिए अभी कर्ज बंद ना करें। कर्ज लेने के 6 महीने बाद ही लोन बंद कर सकते हैं। कर्ज बंद करने से सिबिल स्कोर पर असर नहीं होता है। कर्ज लेने के 6 महीने बाद लोन बंद करने पर प्रीपेमेंट चार्ज लगेगा।



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