Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, May 2, 2016

कब तक होंगे हम गोलबंद? जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदााएं भी अब कारपोरट आयोजन जियेंगे तो साथ ,मरेंगे तो साथ,मई दिवस का संकल्प यही है। हिंदू राष्ट्र में खत्म हो रहे मेहनतकशों के वे हकहकूक,जो बाबासाहेब ने दिलवाये,तो फासिज्म के राजकाज के खिलाफ बहुजनों को ही मेहनतकशों की लड़ाई का नेतृत्व करना होगा।हम अपनी ताकत नहीं जानते और संसाधन हमारे हैं और देश भी हमारा है,हम यह भी नहीं जानते। इकलौता मरने के बदले हम अपनी ताकत को देस में बदलाव के लिए खड़ी करें और अपने सारे संसाधनों को सक्रिय करके लड़ने के लिए तैनात करें तो कारपोरेट केसरिया आतंकवाद का अंत है।जियेंगे तो साथ ,मरेंगे तो साथ,मई दिवस का संकल्प यही है। 75 साल के सफाई कर्मचारी यूनियन के नेता की चेतावनीःपढ़े लेिखे लोगों की चमडी़ वातानुकूलत हो गयी है और वे किसी भी तरह के जनसरोकार से कोई वास्ता नहीं रखते और न किसी मिशन,विचारधारा या आंदोलन में उनकी कोई दिलचस्पी है और वे तमाम कार्यक्रमों की रस्म अदायगी के जरिये सत्ता से नत्थी होकर अपना मोल बढ़ाने के फिराक में बाबासाहेब का नाम लेकर रस्म अदायगी करते हैं और देश में कहीं अंबेडकरी आंदोलन

कब तक होंगे हम गोलबंद?

जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदााएं भी अब कारपोरट आयोजन

जियेंगे तो साथ ,मरेंगे तो साथ,मई दिवस का संकल्प यही है।

हिंदू राष्ट्र में खत्म हो रहे मेहनतकशों के वे हकहकूक,जो बाबासाहेब ने दिलवाये,तो फासिज्म के राजकाज के खिलाफ बहुजनों को ही मेहनतकशों की लड़ाई का नेतृत्व करना होगा।हम अपनी ताकत नहीं जानते और संसाधन हमारे हैं और देश भी हमारा है,हम यह भी नहीं जानते।


इकलौता मरने के बदले हम अपनी ताकत को देस में बदलाव के लिए खड़ी करें और अपने सारे संसाधनों को सक्रिय करके लड़ने के लिए तैनात करें तो कारपोरेट केसरिया आतंकवाद का अंत है।जियेंगे तो साथ ,मरेंगे तो साथ,मई दिवस का संकल्प यही है।


75 साल के सफाई कर्मचारी यूनियन के नेता की चेतावनीःपढ़े लेिखे लोगों की चमडी़ वातानुकूलत हो गयी है और वे किसी भी तरह के जनसरोकार से कोई वास्ता नहीं रखते और न किसी मिशन,विचारधारा या आंदोलन में उनकी कोई दिलचस्पी है और वे तमाम कार्यक्रमों की रस्म अदायगी के जरिये सत्ता से नत्थी होकर अपना मोल बढ़ाने के फिराक में बाबासाहेब का नाम लेकर रस्म अदायगी करते हैं और देश में कहीं अंबेडकरी आंदोलन जैसे नहीं है वैसे ही मजदूर आंदोलन भी नहीं है।मेहनतकशो की हक हकूक की लड़ाई आखिरकार इन पढ़े लिखे लोगों के भरोसे हो नहीं सकती और हर कीमत पर दुनिया के गरीबों को गोलबंद होना होगा वरना हम सारे लोग मारे जायेंगे।

पलाश विश्वास

हिंदू राष्ट्र में खत्म हो रहे मेहनतकशों के वे हकहकूक,जो बाबासाहेब ने दिलवाये,तो फासिज्म के राजकाझ के खिलाफ बहुजनों को ही मेहनतकशों की लड़ाई का नेतृत्व करना होगा।


मध्य कोलकाता के बुद्ध मंदिर में कल हमने मई दिवस मनाया कोलकाता में और जल जंगल जमीन नागरिकता और मानवाधिकार की लड़ाई जारी रखने के लिए देश के भीतर,सरहदों के आर पार समूचे विश्व में मानव बंधन बनाने की संकल्प लिया।तपती हुई दुपहरी से लोग देर शाम तक विचार विनिमय करते रहे तो उधर हिमालय जलकर राख होता रहा कि जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदााएं भी अब कारपोरट आयोजन हैं।


वक्ताओं ने विस्तार से यह रेखांकित किया की मई दिवस की शहादत के पीछे मेहनतकशों के हक हकूक की जो मांगें उठीं,अमेरिका की उस सरजमीं पर उन्ही हक हकूक के खात्मे के लिए ग्लोबल मनुस्मृति राज का वैश्वक ंत्तर मंत्रयंत्र का मुख्यालय है और आजाद भारत उसका मुकम्मल उपनिवेश है।


वक्ताओं ने बाबासाहेब की मूर्तियां बनाने के अभूतपूर्व अभियान के तहत बाबासाहेब के आंदोलन,उनके विचार और उनके मिशन को खत्म करने के केसरिया आंतकवाद के आगे आत्मसमर्पण की आत्मघाती बहुजन राजनीति पर तीखे प्रहार भी किये।इसी सिलसिले में बंगाल के केसरियाकरण को पूरे देश के लिए बेहद खतरनाक माना गया।


बंगाल के युवा सामाजिक कार्यकर्ता शरदिंदु विश्वास ने मई दिवस के इतिहास और मई दिवस के चार्टर और शहादतों की विस्तार से चर्चा की और वक्ता इस पर सहमत थे कि भारत के मेहनतकशों के असल नेता बाबासाहेब थे,इसलिए मेहनतकशों की लड़ाई में अंबेडकरी अनुयायियों को बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के मिशन को प्रस्थानबिंदू मानकर हक हकूक की लड़ाई का हीरावल दस्ता बनना चाहिए।


रिसड़ा से आये सफाई मजदूरों के राष्ट्रीय नेता वे पेशे से शिक्षक पचत्तर वर्षीय ईवी राजू की भड़ास से हम तमाम लोग जो बंगला के विभिन्न हिस्सों में सक्रियअंबेडकरी संगठनों,मजदूर संगठनों के सक्रिय नेता कार्यकर्ता थे,हतप्रभ रह गे।


उनने खुल्लाखुल्ला कहा कि पढ़े लेिखे लोगों की चमडी़ वातानुकूलत हो गयी है और वे किसी भी तरह के जनसरोकार से कोई वास्ता नहीं रखते और न किसी मिशन,विचारधारा या आंदोलन में उनकी कोई दिलचस्पी है और वे तमाम कार्यक्रमों की रस्म अदायगी के जरिये सत्ता से नत्थी होकर अपना मोल बढ़ाने के फिराक में बाबासाहेब का नाम लेकर रस्म अदायगी करते हैं और देश में कहीं अंबेडकरी आंदोलन जैसे नहीं है वैसे ही मजदूर आंदोलन भी नहीं है।मेहनतकशो की हक हकूक की लड़ाई आखिरकार इन पढ़े लिखे लोगों के भरोसे हो नहीं सकती और हर कीमत पर दुनिया के गरीबों को गोलबंद होना होगा वरना हम सारे लोग मारे जायेंगे।


हम चूंकि 17 मई से सड़क पर होंगे,इसलिए आगे की कार्यजोजना पर हमने विस्तार से चर्चा की और संस्थगत सामाजिक आंदोलन की रुपरेखा पेश की।क्योंकि निरंकुश सत्ता के मुकाबले तमाम सामाजिक शक्तियों की साझा मोर्चाबंदी के बिना बाबासाहेब के मिशन को अंजाम देना मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है।


गौरतलब है कि ब्रिटिश भारत में 1942 मे श्रममंत्री बने बाबासाहेब 1946 तक मेहनतकशों के हक हकूक के लिए मई दिवस के चार्टर के मुताबिक सारे कायदे कानून बनाये तो भारतीय संविधान की रचना के वक्त भी श्रमजीव वर्ग और औरतों,वंचितों और आदिवासियों  के हक हकूक के लिए रक्षा कवच के प्रावधान भी किये।उनने भारत में ब्रिटश राज में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी बनायी तो मेहनखसों की हक हकूक की लड़ाई के बिना बाबासाहेब के नाम किसी भी तरह का आंदोलन बेमानी है।


गौरतलब है ब्रिटिश राज में बाबासाहेब ने जो कानूनी  हकहकूक मेहनतकशों के लिए सुनिश्चित कर दिये,मुक्तबाजारी हिंदू राष्ट्र में संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण बाजारीकरण और अबाध पूंजी निवेश के कयामती आलम में वे सारे कायदे कानून खत्म हो गये तो न मजदूर यूनियनों ने इसका प्रतिरोध किया और न पूना समझौते के तहत राजनीतिक आररक्षण से चुने हुए प्रतिनिधियों ने इसका किसी भी स्तर पर विरोध किया।


पहाड़ से हमारे साथी राजा बहुगुणा ने लिखा हैः


उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से मैं विचलित व आहत महसूस कर रहा हूं।इस भीषण आग से हुए नुकसान का रूपयों में आकलन करना हास्यास्पद है।कडे शब्दों में कहूं तो लुटेरे तंत्र की न यह औकात है और न ही उसके पास दिमाग है कि वह पूरी स्थिती का सही आकलन कर सके।अभी तक इस आग के लिए एक महिला व एक पुरूष को दोषी ठहराने की खबर आ रही है और लगता है कि गाज स्थानीय लोगो पर ही पडेगी।इधर केन्द्र सरकार व गृहमंत्री के बयान से लग रहा है कि जैसे वह आग बुझाने के कार्य में युद्ध स्तर पर जुट गई है।इस पर मैं यही कहूंगा -सब कुछ लुटाके होश में आए तो क्या हुआ।देख लेना यह कवायद भी क्षणिक साबित होगी।लगता है भीषण सूखे की संभावना के बाबजूद एडवांस में जरूरी सुरक्षा उपाय किए ही नहीं गए थे।दूसरा जंगलों को बचाने के लिए सक्षम उपकरण आज तक नहीं बना है।इसके लिए निश्चित रूप से नीति नियंता दोषी हैं।यहां पर यह भी कहूंगा कि यदि जंगलों पर जनता का अधिकार हो तो तब ही उनका बेहतर विकास व सुरक्षा हो सकती है।केवल ऐसा करने से सक्षम उपकरण बन सकता है।वन कानूनों ने लगातार वनों के प्रति जनता के अलगाव को बढाया है।उत्तराखंड राज्य की मांग में जल,जंगल,जमीन पर जनता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण मांग थी जिसे लुटेरे शासकों ने जमींदोज कर दिया है।

Labour Day celebration & Babasaheb Dr Ambedkar 2016 by National Social Movement of India at kolkata

মে দিবস উদযাপন এবং বাবাসাহেব ডঃ আম্বেদকর ২০১৬, কোলকাতা


P



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment