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Monday, March 24, 2014

हमने लोकतंत्र ऐसे हाथों में सौंप दिया है या सौंप रहे हैं जो बलात्कार को मजे में बदल रहे हैं। पाश का लिखा आज भी सच है सबसे खतरनाक वो आँखें होती है जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..

हमने लोकतंत्र ऐसे हाथों में सौंप दिया है या सौंप रहे हैं  जो बलात्कार को मजे में बदल रहे हैं।

पाश का लिखा आज भी सच है

सबसे खतरनाक वो आँखें होती है

जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..

पलाश विश्वास

ধর্ষণ নিয়ে বিতর্কিত মন্তব্য, টুইট করে ক্ষমা চাইলেন দেব

ধর্ষণের মতো স্পর্শকাতর বিষয়কে জড়িয়ে মন্তব্য করে বিতর্কে জড়িয়েছিলেন ঘাটাল কেন্দ্রের তৃণমূল প্রার্থী দেব। দিনভর নাটকের পর অবশেষে টুইট করে ক্ষমা চাইলেন দেব।


ভোটের উত্তেজনা কেমন লাগছে? একটি সংবাদপত্রে দেওয়া সাক্ষাত্কারে দেবের মন্তব্য, ধর্ষিত হওয়ার মতো অনুভূতি হচ্ছে। হয় চিত্কার করো না হলে উপভোগ করো। দেবের রুচিবোধ নিয়ে সমালোচনার ঝড় উঠেছে রাজ্য রাজনীতিতে।


কেশপুরে গ্রামের বাড়িতে গিয়ে বলেছেন মিলেমিশে কাজ করার কথা। বিরোধী বামপ্রার্থী সন্তোষ রাণাকে ফোন করে নিজেই আদায় করেছেন চায়ের নেমন্তন্ন। রাজ্য রাজনীতিতে হঠাত্ই সৌজন্যের টাটকা বাতাস। সৌজন্যে ঘাটালের তৃণমূল প্রার্থী দীপক অধিকারী, ওরফে দেব। সেই ফিলগুড ফ্যাক্টরে জল ঢেলে দিলেন দেব নিজেই।


ভোটের উত্তেজনা কেমন উপভোগ করছেন। একটি সংবাদপত্রের প্রতিনিধির প্রশ্নের জবাবে দেবের সরস উত্তর, নিজেকে ধর্ষিত মনে হচ্ছে তাঁর। তিনি বলছেন, এটা অনেকটা ধর্ষণের মতো। হয় চিত্কার করো, কিংবা উপভোগ কর। এই মন্তব্যে সমালোচনার ঝড় রাজ্যজুড়ে।


বেফাঁস এই মন্তব্যের জন্য দেবকে সরাসরি দায়ী করতে নারাজ অভিনেতা বাদশা মৈত্র। দেবকে বুঝেশুনে কথা বলার পরামর্শ দিয়েছেন তিনি।


সিপিআইএম নেতা সুজন চক্রবর্তীর দাবি, দেবকে যে চাপ দিয়ে প্রার্থী করা হয়েছে তা তাঁর এই মন্তব্যেই পরিষ্কার।


যদিও দেবকে ক্লিনচিট দিচ্ছেন না সমাজকর্মীরা। ইয়ুথ আইকন দেব কী করে এমন দায়িত্বজ্ঞানহীন মন্তব্য করতে পারেন, সেই প্রশ্ন তুলছেন তাঁরা।

पाश का लिखा आज भी सच है

सबसे खतरनाक वो आँखें होती है

जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..

कितना बड़ा और कितना भयंकर सच है यह, इसका अंदाजा हममें से किसी को नहीं है। उपभोक्ता संस्कृति के मुक्त बाजार में सेलिब्रिटी राजनीति किस आत्मघाती ब्लैकहोल में समाहित करने लगी है और किस बरमुडा त्रिभुज में भारतीय समाज,भारत गणराज्य और उसका लोकतंत्र सिरे से लापता होने लगा है कि मलबे तक का नामोनिशान न रहे,इसका सचमुच पढ़े लिखे लोगों को तो कोई अंदाजा नहीं है।


मुक्त बाजार का भी व्याकरण होता है।


पूंजीवाद में भी लोककल्याण की अवधारणा निहित होती है।


हिंदुत्व आखिर धर्म है,जो आदर्श नैतिकता पर आधारित है और उसका भगवान पुरुषोत्तम राम हैं।


हम मुक्त बाजार के खिलाफ हैं।हम धर्मोन्माद के विरुद्ध हैं।


हम संघपरिवार के हिंदू राष्ट्र के एजंडे के खिलाफ हैं।

लेकिन बहुसंख्य भारतीयों की आस्था हिंदुत्व है और भारतीय संस्कृति में भी हिंदुत्व निष्णात है,इस सच से इंकार नही कर सकते।


हिंदुत्व कोई अनुशासित धर्म नहीं है।बाकी धर्मालंबियों की तरह हिंदुओं के लिए धर्मस्थल पर नियमित हाजिरी और अनिवार्य पूजा पाठ का प्रावधन नहीं है।


दरअसल सही मायने में हिंदुत्व की बुनियादी अवधारणा संस्कृति बहुल भारतीय मिजाज के मुताबिक है।


हिंदुत्व में सबसे बड़ा रोग मनुस्मृति आधारित जाति व्यवस्था और विशुद्धता का सिद्धांत है।


बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकर से बहुत पहले इस अस्मिता आधारित नस्ली वर्चस्व के खिलाफ साधु संतों बाउल फकीरों ने क्रातिकारी आंदोलन छेड़ रखा था।और वह आंदोलन भी किसी खास धर्म के खिलाफ था नहीं।


संत कबीर ,चैतन्य महाप्रभु,

संत तुकाराम,हरिचांद गुरुचांद ठाकुर से लेकर दयानंद सरस्वती ने सुधार आंदोलन के जरिये तो बंगाल में नवजागरण के तहत कानूनी पाबंदियों के जरिये आदिम हिंदुत्व का संशोधित स्वरुप हमारी पहचान है आज।


मुक्त बाजार और अबाध पूंजी के व्याकरण के विरुद्ध अपारदर्शी जनविरोधी उपभोक्ता विरोधी मुक्त कारोबार विरोधी आर्थिक सुधारों के नीति निर्धारण हम पिछले बीस साल

से बिना प्रतिरोध जी रहे हैं।

मंडल विरोधी कमंडल मार्फत संघ परिवार के हिंदुत्व का चरमोत्कर्ष अब हर हर मोदी घर घर मोदी है।


जिस महादेव को आर्य अनार्य दोनो प्रजातियों का आदि देव माना जाता है,जो आर्य अनार्य संस्कृतियों के समायोजन के सबसे जीवंत प्रतीक है।


आदिवासियों के टोटम जो सतीकथा में समाहित आदिवासी देवियों के चंडी रुप के पति भैरव के रुप में शिव माहात्म के रुप में पूरे देश को जोड़ता रहा है सदियों से और देवी के वाहन के रुप में आदिवासियों के टोटम की पूजा की जो परंपरा है,उसे मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए तिलांजलि दे रहा है हिंदुत्व के सबसे बड़े प्रवक्ता संघ परिवार।


हम इसे निर्वाक सहन कर रहे हैं।


नस्ली भेदभाव के खंडन बतौर शिव की अवधारणा को समझें तो समझ में आनेवाली बात है कि बाजार और पूंजी के समांतरनस्ली वर्चस्व के वैश्विक गठजोड़ का कौन सा खूनी खेल रचा जा रहा है।



अब शंकराचार्य ने हरहर मोदी के औचित्य पर संघ परिवार से ऐतराज जताया तो नरेंद्र मोदी ने भी अपने अनुयायियों से कह दिया कि यह नारा न लगायें।


हालांकि सच तो यह है कि संघ परिवार और भाजपा इस वक्त मोदीमय है और मोदी एकमुश्त कारपोरेट राज और अमेरिकी हितों के देवादिदेव बनने को बेताब हैं।


बाकी सारे देव देवी कूड़े के ढेर में हैं।भूतों प्रेतों को सिपाहसालार बनाकर मोदी भारत गणराज्य को कैलाश बनाने को तत्पर हैं।


इस महाभियान की बागडोर सूचना तकनीक और सोशल मीडिया में प्रबल रुप में उपस्थित नरेंद्र मोदी स्वयं संभाल रहे हैं।


भाजपा चुनाव प्रचार अभियान के चेहरा वे ही हैं।पार्टी के टिकट उन्हीं के मर्जी से बांटे जा रहे हैं।


रोज इतिहास का पुनर्पाठ रच रहे हैं वे। रोज उनको केंद्रित किंवदंतियां रची जा रही है।


मुद्दे वे अपनी सुविधा के मुताबिकबना बिगाड़ रहे हैं।


काशी भारतीय संस्कृति का प्राचीनतम केंद्र है और मोहंजोदोड़ों हड़प्पा नगर सभ्यताओं के अवसान के बाद नदीमातृक सर्वाधिक प्राचीन नगरी भी है काशी।


धमाकों और हिंसा की छिटपुट वारदातों के बावजूद काशी केइतिहास को खंगाले तो तमाम संवाद शास्त्रार्थ के नाम पर काशी में  ही घटित हुए।


काशी में महाकवि सुब्र्मण्यम भारती और प्तरकार मसीहा विष्णुराव पराड़कर का निवास भारतीयता को मजबूत करता रहा है।


काशी बाकी धर्मस्थलों की तरह एकतरफा प्रवचन का केंद्र नहीं है।


अस्सी के घाट पर वर्गहीन भारतीय समाज की प्रवाहमान अभिव्यक्ति से बाकी देश अपरिचित भी नहीं है।


ऐसे काशी में बाबा विश्वेश्वर महादेव हैं तो पार्वती स्वयं अन्नपूर्मा है,जो खाद्य सुरक्षा की गारंटी हैं।


इस काशी से ही नमो की सुनामी रचने की परियोजना है ताकि उत्तर प्रदेश और बिहार जीतकर बहुमती जनादेश के सहारे दिल्ली का सिंहासन नमो हो जाये।


अब शायद केसरिया शब्द पर भी पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि भाजपा अब भाजपा कहीं है ही नहीं वह तो अब नमोपा है और संघ परिवार भी संघ परिवार नहीं रहा,वह नमोपरिवर है।


तो इस नमोपा और नमो परिवार भारत देश को नमोदेश बनाने पर तुला है और इस परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए भारतीय संस्कृति के प्राणकेंद्र प्रगतिशील हिंदुत्व के प्राचीन शास्त्रित गढ़ काशी को ही बाजारु अंकगणित से निर्वाचित किया गया है।


अब समझने वाली बात है कि इतनी महत्वपूर्ण परियोजना की कमान संघ परिवार और नमो के हाथ में नहीं है,हम ऐसा सोचने का दुस्साहस भी नहीं कर सकते।


तो नमो के वाराणसी में दावेदारी घोषित होते ही गूंज उठा हर हर मोदी घर घर घर मोदी नारे की देश विदेश मथ रही प्रतिध्वनियां का क्या हिंदुत्व के बहरे कानों तक पहुंचाने के लिए शंकराचाचार्य की वाणी ही प्रतीक्षित थी,इस पर सोचें।


इस पर  भी सोचें की बहुसांस्कृतिक काशी के कायाकल्प के जो संघी प्रकल्प हैं,उससे सबसे पहले महादेव विस्थापित हो रहें हैं,यानी नस्ली वर्चस्व की खुली युद्धघोषणा है यह।


भाजपा और संघ परिवार के लोगों ने देव देवी मंडल ने टीवी पर चौबीसों घंटे सातों दिन गूंज रहे इस नारे को सुना ही नहीं,ऐसा अजब संजोग इस देश में हुआ ही नहीं।


मोदी प्रधानमंत्रित्व का चेहरा हैं।यह कैसा चेहरा है जिसे अपने बुनियादी प्रकल्प की कैचलाइन की ही खबर नहीं होती और शंकराचार्य  के कहने पर उन्हें फतवा जारी करना पड़ता है,अब और नहीं।


लेकिन नमोमीडिया फिर भी बाज नहीं आ रहा है।


शंकराचार्य की आपत्ति पर बाकायदा मतदान कराया जा रहा है और इस मतदान में भी मोदी के मुकाबले देवादिदेव महादेव की जमानत जब्त होती दिख रही है।


दरअसल गौरतलब तो यह है कि मोदी के मुकाबले चाहे केजरीवाल हो या चाहे डां. कर्ण सिंह और तीसरे चौथे अनगिनत कितने ही उम्मीदवार। नमो का मुकाबला भाजपा से था।


नमो का मुकाबला संघ परिवार से था। नमो का मुकाबला भारतीय लोकतंत्र से था।नमो का मुकाबला धर्मनिरपेक्षता से था।


भाजपा नमोपार्टी है।संघपरिवार नमोपरिवार है।


अब नमो लोकतंत्र की बारी है।


नमोनिरपेक्षता और नमोदेश की बारी है।


सही मायने में नमो का असली मुकाबला काशी की गौरवशाली विरासत से है।


नमो के मुकबले दरअसल अकेले उम्मीदवार हैं काशी के अधिष्ठाता देवादिदेव बाबा विश्वेश्वर महादेव।


नमो पार्टी और नमो परिवार के उत्सव अकारण नहीं है क्योंकि एक भी वोट पड़े बिना काशी हारती नजर आ रही है और शिवशंकर भोलेनाथ की तो पहले से ही जमानत जब्त हो गयी।


हमेन कभी शिव के मत्थ जल नहीं चढ़ाया है। हमने कभी शिवरात्रि के मौके पर उपवास नहीं रखा है। हमने कभी किसी शिव मंदिर जाकर अपनी मनोकामनाें व्यक्त नहीं की।हम तो सिरे से इस लिहाज से अहिंदू ही हुए। नरकयंत्रणा के जसायाफ्ता कैदी।


लेकिन जिनकी आस्था प्रबल है जो हिंदुत्व के झंडेवरदार हैं जो भाजपा और संघ परिवार के प्रतिबद्ध सेनानी और सिपाही हैं,वे तनिक ठंडे दिमाग से सोचे काशी और महादेव को तिलांजलि देकर उनका हिंदू राष्ट्र कितना हिंदू होगा आखिरकार।


इससे भी बड़ा सवाल बुनियादी यह है कि सदियों की आजादी की लड़ाई के बाद जो हमने विभाजित लहूलुहान आजादी हासिल की और अपने लिए लोकगणराज्य बनाया,उन्हें हम किन हाथों में सौंप रहे हैं।


इस सवाल पर जवाब खोजने से पहले बंगाल के नये बवाल पर भी गौर करें। पहले ही अरविंद केजरीवाल मुद्दा बना चुके हैं कि भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा है।


पहले भी भारत की न्यायप्रणाली ने बार बार बता दिया है कि कैसे संसद और विधानसभायें अपराधियों और बाहुबलियों की शरणस्थलियां बन गयी हैं।


अरविंद तो नाम लेकर लेकर कारपोरेट एजंटों का खुलासा कर रहे हैं।राडिया टेप भी सारवजनिक हैं।


लेकिन बाजार अर्थव्यलव्स्था के साथ सैकड़ों करोड़ में खेलकर उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के विज्ञापनी माडल प्रतिबद्ध और निष्ठावान नागरिकों और राजनेताओं को हाशिये पर धकेल कर जो अराजनीतिक अलोकतांत्रिक रैंप में बदलने को है संसद को, वह फैशनपरेड कितना लाजबवाब और जायतकेदार है, इसपर भी मुलाहिजा फरमायें।


बंगाल की अग्निकन्या बाकी भारत की देवी चंडिका हैं क्योंकि उन्होंने वामसुर को वध कर दिया।उनके परिवर्तन राज को दिल्ली स्थानांतरित करने के ख्वाब को भले ही अन्ना हजारे के ऐन मौके पर कदम पीछे करने से भारी धक्का लगा है।लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों में बनेन वाली सरकार की रचना में उनकी,जयललिता की और बहन मायावती की निर्णायक भूमिका होनी चाहिए।तीनों महिलाएं अपने अपने राज्य में सत्ता के शिखर को स्पर्स किया हुआ है और उनके मजबूत वोट बैंक भी हैं।


दीदी को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उतने ही नापसंद हैं जितने कि जयललिता और मायावती को। लेकिन माावती और जयललिता ने भी राजनेताओं को इतने थोक दरों पर किनारे नहीं किया है। दीदी के सारे उम्मीदवार या तो उनके अनुगत अंध भक्त हैं जो सवाल नहीं करते या फिर चौंधियने वाले सितारे हैं,जो चमकते तो हैं ,लेकिन जमीन पर कहीं होते ही नहीं हैं।


ऐसे ही एक सितारे का नाम है बांग्ला फिल्मों का मौजूदा नंबर वन स्टार देव जो गुरुदास गुप्ता के घाटालकेंद्र से तृणमूली उम्मीदवार हैं।गुरुदास बाबू नहीं लड़ रहे हैं और उनकी जगह भाकपा के संतोष राणा हैं। मेदिनीपुर तृणमूल का सबसे मजबूत गढ़ है और देव की दिवानगी अपराजेय है।लाखों वोटों से वे वामपक्ष की यह सीट छीन लेंगे,इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है।


उन्हीं देव ने कल एक बांग्ला अखबार में साक्षात्कार में राजनीति के अपने अनुभव के बारे में बताते हुए खुद को रेप्ड बताया।किसने यह रेप किया ,यह हालांकि उन्होंने नहीं  बताया।लेकिन बलात्त्कार पीड़ितों के लिए एक रामवाण सुझा दिया।


देव के मुताबिक बलात्कार के पीड़ितों के लिए दो ही विक्लप खुले होते हैं।या तो खूब चीखों या बलात्कार के मजे ले लो। उन्होंने बताया कि वे बलात्कार का शिकार होकर मजा ले रहे हैं।हालांकि मीडिया,राजनीति और समाज में हुई तीखी प्रतिक्रिया के मद्देनजर राजनीतिक समीकरण ही बदल जाने के खतरे को भांपते हुए देब की लगाम कस दी गयी है।


देव ने ट्विटर पर बयान जारी रखकर अपने इस वक्तव्य के लिए माफी मांग ली है।लेकिन इस बयान का मतलब एकदम बदल नहीं गया सोशल मीडिया पर जारी इस माफीनामे से।


युवाओं के सबसे बड़े बंगाली सुपरआइकन के इस सुवचन से युवा मानसिकता का कितना कायाकल्प होगा,अब आप इस पर विचार जरुर करें।


जाने अनजाने देव ने मुत् बाजार की अर्थ व्यवस्था के सबसे बड़े सच को नंगा पेश कर दिया है।


यह वक्त बलात्कार  के खिलाफ चीखों का नहीं है शायद।


हमने लोकतंत्र ऐसे हाथों में सौंप दिया है या सौंप रहे हैं  जो बलात्कार को मजे में बदल रहे हैं।


इसक साथ ही प्रासंगिक एक सच यह है कि दिल्ली और मुंबईे के बहुचर्चित बलात्कार कांडों पर छह सात महीने में फैसले भी आ चुके हैं। लेकिन बंगाल में परिवर्तन राज में हुए किसी भी बलात्कारकांड की अभी सुनवाई ही नहीं हुई है। न अभियुक्तों के खिलाप अभियोग दायर ह पा रहे हैं।


जाहिर है, कि सुपरस्टार भावी सांसद के सुवचन का तात्पर्य बेहद भयानक है।

उससे भी भयानक है मुक्त बाजार का यह स्त्री विमर्श।



आज से छब्बीस साल पहले, सिर्फ़ सैंतीस साल की उम्र में, ‪#‎पाश‬ खालिस्तानी आतंकवाद के शिकार हुए थे.


उनकी प्रसिद्ध कविता...


‪#‎सबसे_खतरनाक_होता_है_हमारे_सपनों_का_मर_जाना‬ !


सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना...

श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

गद्दारी, लोभ की मुट्ठी

सबसे ख़तरनाक नहीं होती


बैठे बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है

सहमी सी चुप्पी में जकड़े जाना बुरा तो है

पर सबसे ख़तरनाक नहीं होती


सबसे ख़तरनाक होता है

मुर्दा शांति से भर जाना

ना होना तड़प का

सब कुछ सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौट कर घर आना

सबसे ख़तरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना


सबसे खतरनाक वो आँखें होती है

जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..

जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीज़ों से उठती अन्धेपन कि भाप पर ढुलक जाती है

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है


सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है

जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए

और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके ज़िस्म के पूरब में चुभ जाए


श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

गद्दारी, लोभ की मुट्ठी

सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे ख़तरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना.....


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