Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, March 17, 2014

द डॉक्टर एंड द सेंट: एक छोटा सा अनुवाद और अरुंधति से एक संवाद



पिछले दिनों बाबासाहेब बी. आर. आंबेडकर की चर्चित और क्रांतिकारी किताब एन्नाइहिलेशन ऑफ कास्ट (जाति का उन्मूलन) का विस्तृत टिप्पणियों समेत एक नया संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसमें अरुंधति रॉय की 150 पन्ने की प्रस्तावना भी शामिल है. द डॉक्टर एंड द सेंटशीर्षक वाली इस प्रस्तावना के अलग अलग अंश कारवांआउटलुक और द हिंदू में छप चुके हैं, अरुंधति का एक साक्षात्कार आउटलुक में आ चुका है और लेखिका ने देश में अनेक जगहों पर इस सिलसिले में व्याख्यान और भाषण दिए हैं. इसी बीच प्रस्तावना के सिलसिले में, और एक गैर-दलित होते हुए आंबेडकर की रचना पर लिखने के अरुंधति के 'विशेषाधिकार' का मुद्दा उठाते हुए कुछ लेखकों और समूहों ने अरुंधति और किताब के प्रकाशक की आलोचना की है. इनके अलावा फेसबुक पर भी इस सिलसिले में अलग अलग बहसें चल रही हैं. अरुंधति ने इनमें से कुछ का जवाब देते हुए एक टिप्पणी जारी की है जिसे यहां पढ़ा जा सकता है.

5 मार्च 2014 को इंडिया हैबिटेट सेंटर में किताब पर एक बातचीत रखी गई, जिसमें पहले अरुंधति ने एक छोटा सा भाषण दिया और इसके बाद हिंदी के जानमाने कवि असद जैदी के साथ एक संवाद में भाग लिया. पेश है इस संवाद सत्र की रिकॉर्डिंग. साथ में, द डॉक्टर एंड द सेंट के आखिरी हिस्से का अनुवाद. अनुवाद: रेयाज उल हक

हालांकि हम जिस दौर में जी रहे हैं वे उसे कलियुग कहते हैं. राम राज्य में भी शायद बहुत देर नहीं है. चौदहवीं सदी की बाबरी मसजिद को, जो कथित रूप से अयोध्या में 'भगवान राम' की जन्म भूमि पर बनाई गई थी, हिंदू फासीवादियों ने आंबेडकर की बरसी 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया. हम इस जगह पर भव्य राम मंदिर बनाए जाने के खौफ में जी रहे हैं. जैसा कि महात्मा गांधी ने चाहा था, अमीर लोग अपनी (और साथ-साथ हरेक की) दौलत के मालिक बने हुए हैं. चार वर्णों की व्यवस्था बेरोकटोक राज कर रही है: ज्ञान पर बड़े हद तक ब्राह्मणों का कब्जा है, कारोबार पर वैश्यों का प्रभुत्व है.  क्षत्रियों ने हालांकि इससे अच्छे दिन देखे हैं, लेकिन अब भी ज्यादातर वही देहातों में जमीन के मालिक हैं. शूद्र इस आलीशान हवेली के तलघर में रहते हैं और घुसपैठ करने वालों को बाहर रखते हैं. आदिवासी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. और रहे दलित तो हम उन्हीं के बारे में तो बातें करते आए हैं. 

क्या जाति का खात्मा हो सकता है?

तब तक नहीं जब तक हम अपने आसमान के सितारों की जगहें बदलने की हिम्मत नहीं दिखाते. तब तक नहीं जब तक खुद को क्रांतिकारी कहने वाले लोग ब्राह्मणवाद की एक क्रांतिकारी आलोचना विकसित नहीं करते. तब तक नहीं जब तक ब्राह्मणवाद को समझने वाले लोग पूंजीवाद की अपनी आलोचना की धार को तेज नहीं करते. 

और तब तक नहीं जब तक हम बाबासाहेब आंबेडकर को नहीं पढ़ते. अगर क्लासरूमों के भीतर नहीं तो उनके बाहर. और ऐसा होने तक हम वही बने रहेंगे जिन्हें बाबासाहेब ने हिंदुस्तान के 'बीमार मर्द' और औरतें कहा था, जिसमें अच्छा नहीं होने की चाहत नहीं दिखती.

No comments:

Post a Comment