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Monday, December 9, 2013

उम्मीद है कि भगवे स‌ुनामी स‌े फिर भी बचेगा देश

उम्मीद है कि भगवे स‌ुनामी स‌े फिर भी बचेगा देश


पलाश विश्वास

संवाद विषयःउम्मीद है कि भगवे स‌ुनामी स‌े फिर भी बचेगा देश

आपसे निवेदन है कि एकदम खुलकर लिखें।

इसी फेसबुक वाल पर।

ताकि हम आगे की दिशा खोज स‌कें।


पहले इस पर अवश्य गौर करें कि के सेंसेक्स के आज रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बीच 99 शेयरों ने अपने 52 सप्ताह का उच्च स्तर छूआ। एक्सिस बैंक, बायोकॉन, जेएसडब्ल्यू स्टील तथा लार्सन एंड टुब्रो अपने एक साल के उच्च स्तर पर पहुंच गए। हालांकि, एक्सचेंज में 105 शेयर अपने एक साल के निचले स्तर पर आ गए। इनमें वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज तथा अमर रेमेडीज शामिल हैं। एमप्लस कंसल्टिंग के प्रबंध निदेशक प्रवीण निगम ने कहा, 'बीजेपी की जीत के बाद सेंसेक्स ने चार माह का उच्च स्तर छूआ। तीन राज्यों में बीजेपी की जीत के बाद निवेशक भारतीय बाजार में आने वाले समय में स्थिरता आने की उम्मीद कर रहे हैं।


बाजार हिंदू राष्ट्र बनाने का मौका गंवाना नही चाहता और दिल्ली ने कांग्रेस और भाजपा दोनों के रथ के पहिये धंसा दिये। कोई मूर्ख ही होगा जो भाजपा ौर कांग्रेस दोनों का विरोध तो करता हो, लेकिन दिल्ली के जनादेश में निहित तात्पर्य पर किसी संवाद की जरुरत न समझता हो। यह मुक्त बाजार की अर्थ व्यवस्था और कारपोरेट राजनीति के चोली दामन के संबंधों के खुलासे का मौका है और जनविकल्प के लिए नये विकल्प तलाशने का भी मौका है।


निःसंदेह वह जन विकल्प फिलहाल आप नहीं है। लेकिन हमें अगर इस दुधारी वर्णवर्चस्वी जायनवादी कारपोरेट सत्ता यंत्र से भारतीय जन गण और लोकगणराज्य को,संविधान और लोकतंत्र को बचाने की चिंता है.तो हर विकल्प की संभावना पर ईमानदारी से सिलसिलेवार सोटना ही होगा,ऐसे विकल्प पर जो कारपोरेट न हो फिर।


हम अपने आदरणीय मित्र चमनलाल जी से शत प्रतिशत सहमत हैं कि आम आदमी की दिल्ली विजय पर जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है।मेरे हिसाब से तो इस वधस्थल पर किसी भी तरह के उत्सव किसी भी बहाने अनुचित हैं।अभी अभी राजस्थान में हो रहे आदिवासी सम्मेलन के आयोजकों से हमारी लंबी बातचीत हुई है और हम उनसे सहमत है कि मुख्य मुद्दा जमीन का है ।जमीन की लड़ाई की सर्वोच्च प्राथमिकता है।जाति व्यवस्था और कारपोरेट जायनवादी साम्राज्यवाद के निशाने पर है पूरा कृषि समाज,कृषि व्यवस्था,देहात और जनपद,मनुष्य और प्रकृति। जिन लोगों की इस बारे में दृष्टि साफ नहीं है,उनसे बदलाव की कोई उम्मीद भी बेमानी है। हम आदरणीय लेखक वीरेंद्र यादव जी से भी सहमत हैं कि विचारहीन राजनीति की कोई दिशा नहीं होती।


उसीतरह मानते हैं हम कि पिछले सात दशकों में विचारहीन दृष्टिहीन आजादी की लड़ाई और बदलाव  के नाम पर हमने मसीहा पैदा करने के सिवाय कुछ नहीं किया और मलाईदार तबके की कोई भी एकता संभव नहीं है। है भी तो वह एकता लूट खसोट में हिस्सेदारी की एकता होगी। सारे विकल्प कारपोरेट है। पहला दूसरा तीसरा चौथा सारे विकल्प कारपोरेट। हम अन्यतर विकल्प की बात कर रहे हैं।


हम अब भी भारतीय यथार्थ के मुताबिक बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की प्रासंगिकता मानते हैं। लेकिन बाबासाहेब के आंदोलन को क्षेत्र विशेष की पहले से मजबूत जातियों के वर्चस्व को और मजबूत करने की कवायद नहीं मानते। अंहबेडकर आंदोलन की मुख्य थीम जाति  उन्मूलन है और अंबेडकरी आंदोलन के नाम पर अबतक ब्राह्मणवाद के विरोध के नाम पर खास जातियों की सत्ता और व्यवस्था में हिस्सेदारी की लड़ाई ही लड़ते रहे हैं बहुजन। जाति व्यवस्था के बाहर के लोगों को, अस्पृश्य भूगोल को जोड़कर कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करने की पहल अभी तक नहीं हुई है और न जमीन,संसाधनों और अवसरों के बंटवारा को आंदोलन का मुद्दा बनाया जा रहा है।


हम सोशल मीडिया के बेहतरीन इस्तेमाल के संदर्भ में और खास कर सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी की दृष्टि से ही दिल्ली में आप की चमतकृत कर देने वाली कामयाबी का मूल्यांकन कर रहे है और इससे सबक ले रहे हैं कि लोकतांत्रिक संस्थागत आंदोलन खड़ा करने के लिए, चमनलाला जी के शब्दों में बीमारी के इलाज के लिए राष्ट्रव्यापी संवाद में हम सोशल मीडिया के महाविस्फोट और हमारे विरुद्ध इस्तेमाल की जा रही उच्च तकनीक को अपने आंदोलन का हथियार कैसे बनायें।


हम सामाजिक शक्तियों के एकीकरण की बात कर रहे हैं।मौकापरस्तों,दलालों और रंग बिरंगे दूल्हों के निहित स्वार्थों के एकीकरण की नहीं।यह निराशा नहीं है।यथार्थ से मुठभेड़ की कवायद है।जो लोग हमेशा विश्वासघात करने के लिए अभ्यस्त हैं,ऐसे लोगों को साथ लेकर चलने में हमें हमेशा अपनी पीठ पर छुरा घोंपे जाने का अहसास ही होगा।इसलिए उस आत्मघाती प्रक्रिया से ्लगाव की बात कर रहे हैं हम।अंबेडकरी विचारधारा और आंदोलन को विसर्जित करके हम वामपंथियों की तरह भारतीय यथार्थ को नजरअंदाज करने की भूल करके एक कदम भी बढ़ नहीं सकते।


हम छात्रों युवाओं के कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंदी का स्वागत करते हैं।जिन्हें बहुजन आंदोलन ने अबतक संबोधित ही नहीं किया है। मजदूर यूनियनें हमने वामपंथियों के हवाले कर दी हैं और वे अपने हितों के मुताबिक चलाते हुए जायनवादी कारपोरेट साम्राज्यवाद की सहयोगी बनकर खुद को भारतीय परिप्रेक्ष्य में सिरे से गैर प्रासंगिक बना चुके हैं। राजनीति में जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह स्त्री का इस्तेमाल तो खूब होता है, लेकिन बहुजन राजनीति में अभी स्त्री विमर्श अनुपस्थित है।आदिवासी विमर्श अनुपस्थित है। नागरिक व मानवाधिकार के मामले में सन्नाटा है। पर्यावरण चेतना नहीं है।इतिहास का वस्तुपरक अध्ययन नहीं है। प्रकृति से कोई तादात्म्य है ही नहीं।


इसके विपरीत इस महाध्वंस समय को बहुजन चेतना के स्वयंभू रथी महारथी स्वर्ण युग बताते हुए नहीं अघा रहे हैं। जश्न तो वे मना रहे हैं अपनी बेमिसाल कामयाबी का और बहुजनों के सफाये के आर्थिक सुधारों का।


हम जानते हैं कि आम आदमी पार्टी भूमि सुधार और जल जंगल जमीन नागरिकता और आजीविका के अधिकारों को मुद्दा नहीं बना रही है। हम जानते हैं कि खास तबकों को छोड़कर बाकी लोगों की उन्हें फिक्र नहीं है। हम जानते हैं कि कारपोरेट साम्राज्यवाद के जायनवादी विध्वंस से उन्हें कोई तकलीफ नहीं है और न कृषि समाज,कृषि और समूची उत्पादन प्रणाली के बारे में उनकी कोई सोच है।वे इंफ्रा बम और परमाणु शक्तिधर राष्ट्र के जन गण के विरुद्ध युद्ध के खिलाफ भी कुछ कहने जा रहे हैं। न सामाजिक न्याय और समता का उनका कोई लक्ष्य है।


पर हम तो अरविंद केजरीवाल को गरिमामंडित नही कर रहे कारपोरेट और सोशल मीडिया की तरह।हम यह भी जानते हैं कि दिल्ली में या तो सरकार भाजपा की होगी या फिर नये चुनाव होंगे जिसके नतीजे बिहार को दुहरा सकताहै और केजरीवाल का रामविलास हश्र हो सकता है।हालात भी दोबारा चुनाव के बन रहे हैं।कारपोरेट व्यवस्था इतनी बेताब है हिंदू राष्ट्र के लिए कि भाजपा की सरकार नहीं बनी तो चुनाव दोबारा होने की हालत में दिल्ली में फिर भगवा लहर पैदा होकर आप को ही गैरप्रासंगिक बना दें,तो हमें ताज्जुब भी नहीं होना चाहिए।


हालत तो यह है कि दिल्ली राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ता दिख रहा है। दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और आप कह रही हैं कि वो सरकार बनाने के लिए दावा पेश नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें जनादेश नहीं मिला है। विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के एक दिन बाद दोनों पार्टियों ने सोमवार को गहन मंत्रणा की। 70 सदस्यीय विधानसभा में दिल्ली की जनता ने खंडित जनादेश दिया है।

   

जहां 31 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है, वहीं उसके सहयोगी दल अकाली दल (बादल) को एक सीट मिली है। इसके साथ ही वह 36 के बहुमत के आंकड़े के साथ चार सीट पीछे है। दूसरी तरफ आप ने 28 सीटें जीती हैं। उसके बाद कांग्रेस को 8 सीटें मिली हैं। जद (यू) को एक सीट मिली है जबकि मुंडका सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है।


हमारा विनम्र निवेदन बस इतना है कि आम आदमी पार्टी के झंडे तले जो सामाजिक शक्तियां गोलबंद हुईं और देशभर में शायद होने जा रही हैं,उन्हें हम संबोधित क्यों नहीं कर पा रहे हैं,इसपर विचार आवश्यक है।


मुश्किल है कि कारपोरेट मीडिया और सोशल मीडिया में अनिवार्य प्रश्नों के लिए कोई स्पेस नहीं बचा है।हमारे हमपेशा ज्यादातर लोग हर कीमत काग्रेस को पराजित करना चाहते हैं और जायनवादी हिदू राष्ट्र की अवधारणा का भी वे आलिंगन कर चुके हैं। बाकी जो लोग वाम पंथी हैं उनकी प्रगति वाम राजनीति की तरह भारत के बहुजनों के मुद्दो पर किसी तरह के संवाद के विरुद्ध हैं।


इसीलिए हम फेसबुक जैसे माध्यमों के बेहतर इस्तेमाल करने पर जोर दे रहे हैं,जहां बेइंतहा कनेक्टिविटी होने के बावजूद इस माध्यम की ताकत के बारे में मित्र सारे अनजान हैं। लाइक मारने और शेयर करने के अलावा इसे हम गंभीर विमर्श का भी प्लेटफार्म बना सकते हैं ठीक उसीतरह जैसे ध्मोन्मादी राष्ट्रीयता का यह सबसे बड़ा प्लेटफार्म बन गया है। हमारे लिए अपनी बातें,अपना पक्ष कहने लिखने के मौके करीब करीब हैं ही नहीं,ये मौके हमें बनाने होंगे।


फतवेबाजी की संस्कृति के बजाय हम अगर लोकतांत्रिक विमर्श के तहत जाति उन्मूलन के एजंडे को सर्वोच्च प्राथमिकता बना पाते हैं और सामाजिक शक्तियों का राष्ट्रव्यापी एकीकरणकर पाते हैं ,तो शायद बदलाव के हालात बनें।


लेकिन हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। इसके विपरीत वे लोग ऐसा कर रहे हैं,जिनका देश की निनानब्वे फीसद जनता के मृत्यु उपत्यका में मारे जाने के लिए युद्ध बंदी बन जाने की नियति से कोई लेना देना नहीं है।

24 Ghanta

বিজেপি-র জয়ের প্রভাবে শেয়ার বাজারে রেকর্ড।

http://zeenews.india.com/bengali/nation/sensex-jumps-487-points-after-bjp-sweeps-state-polls-nifty-hits-6400_18399.html


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हालत यह है मित्रों,कांग्रेस ध्वस्त है।बाजार व्यवस्था के तमाम हिमायती इस फिराक में है कि यह अल्पमत सरकार जितना जल्दी जाये,उतना ही बेहतर।क्योंकि चार विधानसभाओं में बढ़त के बाद भारत को नमोभारत बानाने की कवायद में भाजपा अब संसद चलने नहीं देगी। इसलिए बाजपा को सत्ता में लाने की उतवाली बाजार में उछाल से अभिव्यक्त होने लगी है। उद्योग जगत को नीतिगत विकलांगकता के साथ साथ मंहगाई, मुद्रास्फीति और मंहगाई और आम आदमी की जेबों की परवाह होने लगी है। अब तक तीसरे मोर्चे की बात करने वाले वामपंथी पूरे देश में गैर प्रासंगिक हो गये हैं। बंगाल में भाजपा को बढ़त मिल  रही है।केरल,बंगाल और त्रिपुरा के बाहर बाकी देश में मकपा का सफाया हो गया है। चार विधानसभाओं के लिए उसके उम्मीदवार सारे के सारे हार गये हैं। ज्यादातर जमानत भी नहीं बचा सके।राजस्थान में माकपा की तीनों सीटें भाजपा के खाते में जमा हो गयी है तो प्रकाश कारत और सीताराम येचुरी की दिल्ली में पांचों सीटों में जहां माकपाई चुनाव मैदान में थे, एकभी पांचवे स्तान तक पर नहीं है। जनाधार से बुरीतरह कटे लोग किस विचारधारा की बात कर रहे हैं,समझ से परे है।


इसी बीच चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद अब तेलंगाना के सांसदों ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। तेलंगाना से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के सांसदों ने सोमवार को अपनी सरकार के खिलाफ ही अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। कांग्रेस सांसदों के बाद तेलगुदेशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस ने भी अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस दिए हैं। तेलंगाना के गठन से नाराज आर. संबाशिवराव,सब्बम हरि, वी. अरुण, ए. साई प्रताप, एल. राजगोपाल और जीवी हर्ष कुमार ने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को एक पत्र लिखा है। पत्र में इन नेताओं ने नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाने की इजाजत मांगी है।


मिजोरम में कांग्रेस की जीत से पस्त कांग्रेस का हौसला बुलद होने की कोई संभावना नहीं है।मिजोरम विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की है। चार राज्यों में हार झेल चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए यह जीत 'संजीवनी' की तरह होगी। 40 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 28 सीटें जीत ली है और दो पर आगे चल रही है। मुख्यमंत्री ललथनहावला (71) रिकार्ड नौंवी बार चुनाव जीतने में सफल रहे। वह दो सीटों पर उम्मीदवार थे और दोनों ही सीटें जीत ली हैं। इनमें सरछिप और हरंग्टुजरे सीट शामिल है। मिजोरम में निवर्तमान विधानसभा में कांग्रेस की 32 सीटें हैं। प्रदेश की सीमाएं म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा से जुड़ती है।


इन परिस्थितियों का जो आकलन वाशिंगटन में हुआ है ,उसपर भी गौर करना जरुरी है।अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में चार विधानसभा चुनावों के परिणामों ने अगले साल होने जा रहे आम चुनाव से पहले विपक्षी भाजपा को आवश्यक गति जरुर प्रदान की है, लेकिन इसमें न तो 'नरेंद्र मोदी की लहर' का कोई संकेत दिखा और न ही यह अगले साल ऐसे ही प्रदर्शन की गारंटी है।


भारत के चुनावों पर करीब से नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दिल्ली, जहां 'आप' ने बहुत से लोगों को चौंका दिया, में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन का एकमात्र कारण केवल मोदी नहीं हैं। साउथ एशिया, मैक्लार्टी एसोसिएट्स के निदेशक रिचर्ड एम रोसो ने कहा, ''इन राज्यों में भाजपा हमेशा मुकाबले में रही है, लगभग ऐसे ही नतीजे 2003 में थे। लहर की बड़ी परीक्षा इस बात को लेकर होगी कि क्या भाजपा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल से लोकसभा सीटें जीत सकती है। पिछले दो चुनावों में भाजपा को इन राज्यों से केवल एक संसदीय सीट मिली थी।''


हाल के महीनों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार मोदी ने इन राज्यों का एक दर्जन से अधिक बार दौरा किया है। उन्होंने कहा,''हर किसी की राय है कि कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं दिखता जो यह साबित करे कि किसी भी नेता ने किसी एक दिशा में कोई लहर पैदा की है।''


दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के आवास पर पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद आप नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि अगर उपराज्यपाल नजीब जंग पार्टी को सरकार बनाने का न्योता देते हैं तो वह बहुमत नहीं होने का हवाला देते हुए इस तरह की किसी भी पेशकश को ठुकरा देगी।


यादव ने कहा कि हम सरकार बनाने नहीं जा रहे हैं। हम विपक्ष में बैठेंगे और रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। संविधान के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें बहुमत नहीं मिला है इसलिए यह बेहद आश्चर्यजनक है कि एक पार्टी (भाजपा) सरकार बनाने को तैयार नहीं है और हमसे ऐसा करने को कह रही है।


केजरीवाल ने रणनीति पर चर्चा करने के लिए आप के नवनिर्वाचित विधायकों के साथ एक और बैठक की। केजरीवाल ने कहा कि वे विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे और अगर हालात बने तो चुनाव का सामना करना पसंद करेंगे। भाजपा और आप दोनों ने कहा कि वे न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे।

सरकार बनाने को लेकर अनिश्चितता के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कई दौर की बैठकें कीं और अपने पूर्व के रुख को बरकरार रखा कि वे सरकार बनाने के लिए दावा पेश नहीं करेंगे क्योंकि वह स्पष्ट बहुमत से दूर है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली में पार्टी के प्रभारी नितिन गडकरी ने कहा कि हमारे पास संख्या नहीं है। हम किसी विधायक को खरीदना नहीं चाहते हैं।

   

सूत्रों ने बताया कि गडकरी ने टेलीकान्फ्रेंसिंग के जरिए नरेंद्र मोदी के साथ चर्चा की और पार्टी की आम राय है कि उसे कोई अनैतिक कदम नहीं उठाना चाहिए। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने कहा कि साफ तौर पर हमारे पास संख्या नहीं है। हमारे पास 32 विधायक हैं जबकि हमें 36 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। अगर एक निर्दलीय विधायक भी हमारा समर्थन कर देता है या कुछ पुनधुर्वीकरण हो तब भी हमारे विकल्प सीमित हैं।


भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्षवर्धन ने भी इसी राय से सुर में सुर मिलाया। उन्होंने कहा कि पार्टी सरकार नहीं बनाएगी क्योंकि दिल्ली की जनता ने ऐसा जनादेश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता ने हमें सबसे बड़ी पार्टी बनाया। लेकिन उसने हमें सरकार बनाने के लिए समर्थन नहीं दिया। हम खरीद फरोख्त की राजनीति में विश्वास नहीं करते। गेंद हमारे पाले में नहीं है।




ET NOW

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The Economic Times

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अब बुनियादी मुद्दों पर भी गौर करना निहायत जरुरी है ।मसलन

Himanshu Kumar

क्या कोई मित्र कल सुबह दिल्ली से डाकटरों की टीम को मुज़फ्फर नगर कैम्प में बच्चों के लिए लाने व शाम को लेकर वापिस जाने के लिए एक गाड़ी की व्य्वस्था कर सकता है ?

क्या कुछ मित्र थोड़ी दवाइयां खरीद कर आज शाम तक दे सकते हैं ताकि डाकटरों की यह टीम उन दवाओं को ले कर आ सके। करीब तीन सौ लोगों के लायक दवाइयों की अभी ज़रुरत होगी।

संपर्क नंबर है - 08745007812


मित्रों, ईपीडब्लू के इस विश्लेषण पर भी गौर करें।

Economic and Political Weekly

"It is true that the Aam Aadmi Party (AAP) could not win an absolute majority in Delhi and in that sense the party is not in the same league as the Telugu Desam Party or the Asom Gana Parishad. These two parties wrested power from Congress (I) in Andhra Pradesh and Assam in the 1980s in the first ever elections they contested. But neither of the parties was powered by idealism and hence it would be unfair to compare them to AAP's electoral win." V Krishnan Ananth writes in EPW how ‪#‎AAP‬'s idealism set them apart from all other political parties in‪#‎DelhiElections2013‬.

http://www.epw.in/web-exclusives/message-aam-aadmi-party.html-0

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आदरणीय वीरेंद्र यादव जी के इस मंतव्य पर भी संवाद की गुंजाइश है।

Virendra Yadav

'आप' और केजरीवाल की सबसे बड़ी सीमा उनकी विचारधारा विहीनता और 'नो आईडियालोजी ' का नारा है .राजनीतिक तंत्र 'न वाम न दक्षिण ' की विचारधारा विहीनता से नहीं चलता है . हाँ ,इससे म्युनिसिपलटियों को जरूर चलाया जा सकता है मेट्रोपालिटन दिल्ली को भी चलाया जा सकता है .'आप' को देश की वृहत्तर राजनीति में आने और विकल्प निर्माण में शामिल होने के लिए यह स्पष्ट करना होगा कि देश के विकास की अवधारणा में वे मोदी के बरक्स कहाँ खड़े हैं ? कार्पोरेट के साथ या हाशिये के समाज के साथ . वंचित वर्गों को विशेष अवसर दिए जाने पर उनकी पार्टी क्या सोचती है ? उन्हें मोदी की विचारधारा के बरक्स अपनी स्थिति को स्पष्ट करना होगा .और यह सब करने के बाद भी क्या वह मतदाता उनके साथ होगा जिसकी पसंद आज मोदी हैं ? .... क्या शाजिया इल्मी तब भी हारती जब वो मुस्लिम नहीं होती ? 'आप ' के मतदाता ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को क्यों नहीं जिताया ? क्या इसलिए कि इस मतदाता की पसंद दिल्ली में केजरीवाल और लालकिले पर मोदी देखने की थी ? क्यों अनारक्षित सीट से एक भी दलित उम्मीदवार को 'आप' मतदाता ने नहीं जिताया ?.इन प्रश्नों को स्थगित नहीं किया जाना चाहिए . फिलहाल' न वाम न दक्षिण ' का विचार अरविन्द केजरीवाल की जुबानी जान लीजिये -"Kejriwal says AAP refuses to be guided by ideologies and that they are entering politics to change the system: "We are aam aadmis. If we find our solution in the Left we are happy to borrow it from there. If we find our solution in the Right, we are happy to borrow it from there."

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  • Mukesh Burnwal ये हमें ध्यान रखना ही चाहिए कि आप मेन बहुत जाने-माने बुद्धिजीवी जुड़े हुए हैं और उनकी पहचान दक्षिणपंथियों के जैसी तो नहीं है। दूसरी बात कि बामपंथियों ने ही विचार देने के अलावा और भूमिसुधार के अलावा बंगाल में ही क्या कर लिया। ये भी मनी हुई बात है कि बाम अपने मूल स्वरूप में सफल नहीं हो सकता खासकर भारत में तो भाई moderate हाना क्या कोई मूल्य नहीं है अगर उससे किसी आदर्श की स्थापना होती है।

  • about an hour ago · Like

  • Madhukar Sharma vichardahara, parivarvad ,jati, aarksan, lal , bagva, india me bhut ho chuka sab ke rang dekhe hai. imandari pahle baar dekhe hai jo in sab yougato se uper ke chij hai, Sir arivendji ke imandari or hosle ko bhe dekha kro jo aaj ke sabse badi jarurat hai

  • about an hour ago · Like

  • Uma Naidu kabhi2 sthaniy mudde mahtwpun hote hai jese ki aap

  • 58 minutes ago via mobile · Like

  • Tahira Hasan true even communalism is not mudda for them but it is fact virendra ji that they have created space for alternative politics where we failed badly

  • 44 minutes ago · Like



स‌ुबह के अखबारों को पढ़ते हुए लग रहा है कि चोरों की बारात की विदाई पर कितनी महान शोक गाथा लिखी जा स‌कती है कारपोरेट मीडिया में।टनों कागद कारे हो गये।इस दुश्चक्र को जारी रखने के मकसद स‌े वाक्य बवंडर रचने में।उम्मीद है कि भगवे स‌ुनामी स‌े फिर भी बचेगा देश,अगर युवाशक्ति का जागरण आप की स‌त्ता तक स‌ीमाबद्ध न रहे।


हम तो युवाशक्ति के जागने का दशकों स‌े इंतजार कर रहे हैं।आप की राजनीति में बहुजनों,आदिवासियों या देहात जनपदों की चिंता नहीं है।आर्थिक स‌ुधारों का प्रतिवाद नहीं हैयययययययययययययययययय,लेकिन भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ युवा विद्रोह का आवाहन है। जैसी जेपी आंदोलन ने देश की राजनीति बदल दी,इस विद्रोह के महाविद्रोह में बदलने पर राजनीति फिर बदलेगी।और कोई दूसरी दिशा फिलहाल खुल नहीं रही है।


हमारे परम मित्र एच एल दुसाध कल भी शुरुआती रुझान स‌े आप को बदमाश कह चुके हैं। आज उन्होंने आप की स‌ामाजिक स‌ंरचना का खुलासा करते हुए ग्लोबीकरण के परिप्रेक्ष्य में,कारपोरेट राज के संदर्भ में बहुसंख्य जनगण के हितों के मद्देनजर आप महासंकट का खुलासा किया है। आप उनके विचारों को पढ़ लीजिये।


मैंने कल भी दुसाध जी और आदरणीय मोहन क्षोत्रिय के लिखे का जवाब दिया था। बल्कि आज हमारे पत्रकार अग्रज,इंडियन एक्सप्रेस से रिटायर और मीडिया दरबार के माडरेटर सुरेंद्र ग्रोवर जी के मंतव्य को मौजूदा सामाजिक यथार्थ के कहीं करीब मानता हूं।पहले वे मंत्वय पढ़ लें।बाद में इस पर संवाद।


अब इस संवाद का जारी रहना बेहद जरुरी है,अनिवार्य है।जनसरोकार से जुड़े लोगों से विनती है कि वे भी अपने अपने विचारों के साथ खुलकर आये।


जैसे दुसाध जी के विचारों से मैं सहमत नहीं हूं क्योंकि जिन बहुजनों की बात वे कर रहे हैं,उनमें न राजनीतिक चेतना है, न अर्थव्यवस्था की समझ और न इतिहासबोध से उनका कोई नाता है।जिस डायवर्सिटी की अवधारणा के लिए हम सभी लोग दुसाध जी का आभार मानते हैं,उसको अगर लागू करने का लक्ष्य है तो बहुजनसमाज को विकलांग तन मन मानस से ऊपर उठना पड़ेगा। इसके विपरीत मुझे तो बाबासाहेब अंबेडकर के आंदोलन के बुनियादी एजंडा जाति उन्मूलन को अमल में लाने की दिशा जाति धर्म निर्विशेष इस जाति अस्मिता ,क्षेत्रीय अस्मिता से परे युवाशक्ति के पुनरुत्थान में खुलती नजर आ रही है।दुसाध जी बहुजनों को मुझसे बेहतर जानते होंगे,ईमानदारी से बताये बहुजनों के आंदोलन ने अंबेडकरी आंदोलन को क्या अंजाम दिया है। हम सारे लोग व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं।दुसाध जी भी। लेकिन निरंतर घृणा और मौजूदा व्यवस्था को कायम रखते हुए उसीमें हिस्सेदारी की मलाईदार मौकापरस्त बहुजन राजनीति अब भारतीय परिप्रेक्ष्य में जाहिरा तौर पर ठीक उतना ही गैर प्रासंगिक है जितना भारतीय वामपंथी।इस पर दुसाध जी और दूसरे तमाम लोग सोचें तो हम इस बहस को जारी रख पायेंगे।इसी सिलसिले में उत्तराखंड स्टुडेंट फेडरेशन के वाल पर हिमालयी क्षेत्र की एंजेल दीपिका के विचार भी पढ़ लें।आप ने उन्हें प्रेरित किया है।बहुजन आंदोलन आदिवासियों को,हिमालयी जनता को ,पूर्वोत्तर को क्यों नहीं प्रेरित करता है,इस पहेली को बूझना जरुरी हैं।बूझें।


इसी बीच पटना में अत्यंत सक्रिय साथी मुसाफिर बैठा जी ने दुसाध जी से कहीं ज्यादा आक्रामक मंतव्य किया है।


मुसाफिर बैठा जी ने लिखा है,आईआईटी-आईआइएम में पढ़कर धन्ना सेठों की चाकरी को शौक से चूमती है, फ़िल्मी विकृत गानों के प्रति सनकी दीवानगी रखती है, फ़िल्मी दुनिया के मायावी-नकली हीरोडम से ऊर्जा लेती है, धार्मिक गर्दन रेतने वालों की शंसा में नमो नमो रत है, उससे क्या कोई ठोस, सार्थक, मानवतावादी हस्तक्षेप करने की उम्मीद कीजै?


मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कियुवा पीढ़ी के बारे में जो आम राय है,वह यही है।लेकिन मुझे बताइये कि बहुजन आंदोलन के झंडेवरदार भी इनसे कहां अलग है जो महाविध्वंस के कारपोरेट राज को स्वर्ण युग कहाने से अघा नहीं रहे हैं।


फिर बहुजन बच्चों को भी तो आप उन्हीं निजी क्रय शक्ति सापेक्ष आईआईटी-आईआइएम वगैरह संस्थानों में कारपोरेट मैनेजर बनाने की आकांक्षा से धकेल ही रहे हैं। अगर समाज में जातियां हैं और  वर्ग हैं तो हमने ईमानदारी से उन्हें खत्म करने की कोशिश करमने के बजाय अपनी अपनी जाति और अपने अपने वर्ग के सशक्तीकरण का एजंडा क्यों अपनाया हुआ है।


अगर युवाशक्ति इस कारपोरेट सामाजिक यथार्थ के विरुद्ध दिसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं तो आजादी के बाद,और खासकर अंबेडकर के अवसान के बाद सत्ता में भागेदीरी के जरिये उसी वैश्विक मनुस्मृति वर्णवर्स्वी रंगभेदी जायनवादी कारपोरेट तंत्र यंत्र को बिना शर्त समर्थन देते रहने के इतिहास के बाद युवाशक्ति के खिलाफ यह आरोप दागने से पहले हमें अवश्य आत्म मंथन करना चाहिए।


मुक्त बाजार व्यवस्था के तहत सांस्कृतिक अवक्षय की जिम्मेदार उन्हीं विकृत बच्चों के मां बाप और हमारी पीढियों के लोग हैं और हमने प्रतिरोध किया नहीं है।अब इनसे उम्मीद न करें तो किसानों की तरह थोक दरों पर खुदकशी करने या निरंतर सत्ता में भागेदीरी के जरिये या आर्थिक नीतियों के जनसंहार कार्यक्रम में अपना हिस्सा बूझ लेने के सिवाय विकल्प क्या बचते हैं।


नमोमय भारत का विकल्प आर्थिक नरसंहार की निरंतरता नहीं है।कांग्रेस देश का जितना बेड़ा गर्क कर चुकी है संस्थागत तरीके से,जितने कारपोरेट सिपाहसालार हैं कांग्रेस के,उस मुकाबले भाजपाई कुछ भी नहीं हैं।विनिवेश कार्यक्रम को लागू करने में कांग्रेस कामयाब रही है।भाजपा के ही विनिवेश कार्यक्रम को लाघू किया कांग्रेस ने पूरी दक्षता और निरंकुश निर्ममता के साथ।नरसंहार की यह वैज्ञानिक विशेषज्ञता,भोपाल त्रासदी और सिख नरसंहार को अंजाम देने के बाद,रक्षा सौदों से लेकर कोयला स्पेक्टम घोटाला कर लेने के बाद सबकुछ मटिया देने का हुनर भाजपाइयों के पास नहीं है।भाजपा गुजरात नरसंहार और बाबरी विध्वंस से अभी उबर ही नहीं पायी है।जबकि एक कांज बताइये,एक घोटाला बताइये जिसे कांग्रेस ने न निबटाया हो।


नमोमय देश बनने पर भी उतना सत्यानाश नहीं होगा जितना कांग्रेस कर रही है।भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस को बहाल रखने के पक्ष में जो हों हम नहीं हैं।


हम बल्कि भाजपा और काग्रेस के बजाय तीसरे विकल्प के ही पक्षधर हैं। जैसे कि हमारे पत्रकार मित्र और दूसरे साथी बता रहे हैं कि आप की कामयाबी से यह तीसरा विकल्प खुला है।


अगर देश बचाने की गरज है तो भाजपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनने के बजाय दोनों को इतिहास के गटर में फेंक देने की जरुरत है।


लेकिन मुसाफिर जी,दिक्कत यह है कि बहुजनों के ठेकेदार झंडावरदार तमाम ताकतें विभाजित हैं और समग्रता में उनकी कोई औकात है ही नहीं।अपने हिस्से की मलाई,अपने हिस्से की चांदी काटने के लिए बहुजन झंडेवरदार या कांग्रेस या फिर भाजपा के साथ नत्ती हैं।इस अवस्थान पर शर्तिया यह देश नहीं बदलेगा और न नरसंहार संस्कृति को रोका जा सकेगा।


सामाजिक बदलाव के तूफान की शुरुआत जेपी आंदोलन से हुआ तो यह भी मत भूलिये कि वह पहला अमेरिकापरस्त राष्ट्रव्यापी जनांदोलन है और जो मुक्त बाजार की व्यवस्था है,वह उसीकी तार्किक परिणति है।अस्मिताबद्ध सामाजिक बदलाव ने इस मुक्त बाजार के प्रतिरोध के कार्यभार को हमेशा टाला है।


फिर युवाशक्ति अगर कांग्रेस और भाजपा दोनों को खारिज करके आपको तीसरा विकल्प का रास्ता दिखा रही है,तो हम सिर्फ उनके सांस्कृतिक विचलन,बिखराव के बहाने उनके इस महाप्रयास को सिरे से खारिज नहीं कर सकते। क्योंकि सांस्कृतिक विचलन,बिखराव के शिकार बच्चों और युवाओं से कही ज्यादा हम लोग हैं।उनमें से ज्यादातर अब भी बेरोजगार हैं,ज्यादातर महज छात्र हैं। लेकिन जो लोग खुद मुक्त बाजार के आर्थिक अपराधों में निष्णात कारपोरेटजीवी हैं,उनका क्या कीजै।


हमारे विशेषज्ञ मित्र आनंद तेलतुंबड़े को मुताबिक भाजपा और कांग्रेस में फर्क बस इतना है कि एक चड्डी वाला है तो दूसरा बिना चड्डीवाला।बिना चड्डीवाला आदमजाद नंगा है।उसको पहचानने में दिक्कत नहीं है और उसका मुकाबला भी संभव है। लेकिन चड्डीवाले का आप मुकाबला कर ही नहीं सकते।


मेरा मानना हो कि पिछले दो दशकों में सत्ता में हो कांग्रेस या सत्ता में हो भाजपा या दूसरा कोई,सत्ता पर नियंत्रण हमेशा कांग्रेस का रहा है। कांग्रेस की नीतियां ही लागू होती रही है।इसलिए एक संकट से निजात पाने के लिए अंधे की तरह दूसरे संकट को गले लगाने का वक्त यह नहीं है। बिना पूर्वग्रह वाले बिना वैचारिक मुश्टैंड बने युवाजनों ने कम से कम नया विकल्प,सही हो या गलत,कोलने की पहल करके हमें बताया है कि दोनों को खारिज करके भी देश बनाया और बचाया जा सकता है।


युवाशक्ति का फिर अभिनंदन।


अब मेरे विचारों को तनिक विराम,बाकी लोगों के दिमाग की परतों में तनिक झांक लें।

Ashutosh Kumar

फेसबुक पर क्रांतिकारी चिंताओं , गगनगुंजित आवाहनों , भूकम्पी सवालों , झंझावाती बहसों और हृदयविदारक चीत्कारों से घबराहट महसूस होने लगे तो तीन दिन का ब्रेक लेना चाहिए . जब लौट कर आयेंगी, पता चलेगा वे सब युगांतकारी समस्याएं हल हो चुकी हैं .और नए तूफानों का जन्म हो चुका है . अब मुस्कुराइए .

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Rohit Joshi

दिल्ली में 'आप' की इस दस्तक के बाद लोगों ने वामपंथियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है कि '...आप ने वामपंथियों की जमीन पर राजनीति करके ये मुकाम हासिल किया है. और वामपंथी नाकारे/निकम्मे हैं..' मैं इस बात से हरगिज असहमत हूँ... और मुझे लगता है जो लोग ये सिगूफा उछाल रहे हैं इनकी मार्क्सवाद और वामपंथी राजनीति की समझ बड़ी लचर है... मियां 'आप' वर्ग संघर्ष की राजनीति नहीं कर रही... और मार्क्सवाद की राजनीति का आधार वर्ग-संघर्ष ही है...आप यदि यह राजनीती कर रही होती तो मुह की खाती... वर्गसंघर्ष की राजनीति करने पर जो चुनौतियाँ समाज में पूर्ववत मौजूद वर्चस्व की संस्थाओं की तरफ से हैं.. वे दिक्कतें उस चरम पर 'आप' को नहीं हैं... दरअसल आप रेवोल्युशनरी विचार लगता जरूर है पर असल में है नहीं..

ये बात अलग है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में 'आप' जैसी एक पार्टी की प्रासंगिकता पर बहस एक दूसरा सवाल है... जिसका विश्लेषण एक-रेखीय नहीं हो सकता...

और एक बात दिल्ली तो दरअसल अपनी ओवर-ऑल मानसिकता में 'आप' की ही है... और इसी मानसिकता का एक्सटेंशन लोकसभा चुनावों में मोदी होना है...

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Yashwant Singh

सुना है केजरीवाल ने दिल्ली जीतने के बाद पहला इंटरव्यू राडिया कांड में शामिल रहीं कुख्यात पत्रकार बरखा दत्त को दिया है... गांव में होने के कारण मैं टीवी से दूर हूं लेकिन एक साथी ने जब फोन करके यह जानकारी दी तो मुझे लगा कि केजरीवाल को ऐसा करने से बचना चाहिए था.. कार्पोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया की परम मित्र बरखा दत्त से केजरीवाल को बचना चाहिए था... ये वही बरखा दत्त हैं जिन्हें अन्ना आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों ने हूट कर इंडिया गेट से भगा दिया था.. अरे इंटरव्यू ही देना था तो पहले रवीश कुमार को देते... पुण्य प्रसून बाजपेयी को देते... कई और प्रखर, ईमानदार पत्रकार हैं, उन्हें देते... पर ये क्या? ऐसी विवेकहीनता क्यों?? मुझे लगता है कि इस मसले पर आप को भी अपनी राय देनी चाहिए, बोलना चाहिए... आम आदमी पार्टी से हम लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं... अगर वो एक कदम भी गलत चलते हैं तो उस पर सवाल तो उठाया ही जाना चाहिए... खासकर हम सोशल मीडिया वालों, न्यू मीडिया वालों को.. जिन्होंने केजरीवाल एंड कंपनी से बिना परिचय के ही, बिना किसी अनैतिक समझौते के ही दिल खोलकर सपोर्ट किया....

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Rajiv Nayan Bahuguna

मेरे पिता ----

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कांग्रेस में मेरे पिता असहज महसूस कर रहे थे . उन्ही के साथियों ने उन्हें साज़िश करके टिहरी राज्य विधान सभा का चुनाव हरवा दिया था . यह बालिग़ मताधिकार के आधार पर हुआ देश का पहला चुनाव था आजादी के बाद . गांधी जी की पाश्चात्य अन्तेवासिनी मीरा बहन ( मिस स्लेड ) उन दिनों उत्तराखंड में आ गयी थीं . एक दिन उन्होंने किसी से कहा - यह लड़का तो खरा सोना है , पर इसमें एक एब है कि छुप कर सिगरेट पीता है . बस मेरे पिता ने उसी वक़्त सिगरेट की डिब्बी तोड़ कर फेंक दी , और कभी हाथ नहीं लगाई . उनके लगभग सारे साथी सत्ता की जोड़ - तोड़ में लीन हो गए थे , लेकिन वह अपने लिए एक नया मार्ग तलाश रहे थे . दलित छात्रों के लिए ठक्कर बापा हरिजन छात्रावास की स्थापना टिहरी में कर ही चुके थे . फिर भी जिला कांग्रेस कमेटी के महा मंत्री का पद संभाल रहे थे . आजादी की लड़ाई में शरीक रहे तमाम कांग्रेसियों ने तय किया की सभी स्वाधीनता सेनानियों को बसों के परमिट दिलाये जाएँ . यह असल में आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित होने का नुस्खा था ,. कांग्रेस के महा मंत्री होने के नाते ये सारे परमिट मेरे पिता के दस्तखतों से जारी हुए , पर उन्होंने खुद नहीं लिया . परमिट के लिए मार - काट मच गयी . " परमिट की खातिर मर मिट " . इसी बीच मेरे पिता के जीवन में एक ऎसी घटना घटी , जो उन्हें सता की राजनीति से दूर लोक नीति की दिशा में ले गयी ( जारी )

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Economic and Political Weekly

Commentary: Ailing Public Sector Undertakings: Revival or Euthanasia

http://www.epw.in/commentary/ailing-public-sector-undertakings.html

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Afroz Alam Sahil

आम आदमी पार्टी बदलेगी या भारत की राजनीति?


पढ़िए बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास का यह विश्लेषनात्मक लेख...http://beyondheadlines.in/2013/12/future-of-aap/


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H L Dusadh Dusadh

आज के अखबारों में देखा भाजपा-कांग्रेस सामान रूप से 'आप' से खौफजदा हैं.होना ही चाहिए क्योंकि आप की बैटिंग ट्रेडिशनल नहीं ,निहायत ही अनआर्थोडाक्स है जिसके खिलाफ पारंपरिक तरीके की बोलिंग उतनी कारगर नहीं हो सकती.किन्तु अब सबसे अधिक बहुजन समाज को आप से चिंतित होना चाहिए.मीडिया के अपार समर्थन से पुष्ट इस पार्टी के पीछे ग्लोबलाईजेशन के दौर के सृजित अवसरों का लाभ उठा कर ताकतवर बना मुख्यतः भारत के सवर्णों की वे संताने हैं जिनकी 'नेशनल काउन्सिल फॉर एप्लायड इकॉनोमी'के सर्वे के मुताबिक २००१-०२ में भारत की कुल आबादी में ५.७ %हिस्स्सेदारी थी,जो आज १५%तक हो गयी है.उम्मीद है की इसकी हिस्सेदारी २०१५-१६तक २०.३ और २०२५-२६ तक ३७.२%हो जाएगी.वित्त और आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस यह युवा माध्यम वर्ग अन्ना-केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन तथा दिल्ली गंग रेप में अपनी ताकत दिखा चुका है.इसकी आँखों की सबसे बड़ी किरकिरी जाति चेतना से पुष्ट बहुजन प्रधान राजनीति है .अतः वह भारत की सत्ता हाथ में लेने का प्रयोग कर रहा है.फिलहाल वह आपके जरिये अपना प्रयोग कर रहा है.दिल्ली से कोलकाता ,मुंबई जैसे मेट्रोपोलिटन शहरो में झाष्ण में आप के चेहरों पर गौर करें.वह चेहरा इसी युवा वर्ग का है.आप के परिणाम ने उसका हौसला बुलंद किया है .यह मध्यम युवा वर्ग खुद तो सोशल मीडिया के अधिकतम इस्तेमाल में पटु है ही ट्रेडिशनल सवर्णवादी मीडिया का भी इसे बेपनाह सहयोग प्राप्त है .इस युवा वर्ग को न तो भ्रष्टाचार खात्मे और न ही किसी और समस्या के खात्मे कोई रूचि है.अतःट्रेडिशनल सवर्णवादी दलों(भाजपा-कांग्रेस-वाम)का मुकाबला तो पारम्परिक बहुजनवादी राजनीति से किया जा सकता है ,पर आप का नहीं.अतः आप को ध्यान में रखकर भिन्न रणनीति अख्तियार करनी होगी.आप के मुकाबले बहुजन्वादी नेता और उनके समर्थक कम से कम दो दशक पीछे नज़र आ रहे हैं .अतः बहुजन बुद्धिजीवियों के उपर आप का मुकाबला करने की अतिरिक्त जिम्मेवार आन पड़ी है.


Ashok Dusadh बामसेफ गुजरे ज़माने कि बात हो गयी है अब उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं .चंदा के रूप में रुपये और रुतबा छापनेवाली मशीन रह गयी है .

Rajiv Nayan Bahuguna

झाड़ू के ज़रिये व्यक्ति को मोर भी बनाया जा सकता है . फिर नाचता ही रहता है

Palash Biswas यह खतरा तो है नयन दाज्यू।लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों को खारिज करने का जो जनादेश है,उसका नोटिस न लें तो हम भूल करेंगे।

Chaman Lal

बनिया गाँधी ने जिस तरह से SC/ST के लोगों को मूर्ख बनाकर उनका मत लेकर कांग्रेस के सवर्णों को देकर उनका मातहत बनाया, वही काम अगर बनिया केजरीवाल ने दोहराया तो इसमें गलती किसकी है मूर्ख बनाने वालों की या फिर मुर्ख बनने वालों की ?

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Chaman Lal

ÁAP', RSS की राजनैतिक प्रयोगशाला में स्वर्ण पदार्थों के भिन्न-भिन्न मात्राओं के साथ किया गया प्रयोग मात्र है !

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मेरा जवाबः बेशक यह स‌ंभावना है।आप स‌े हमें भी कोई उम्मीद न करें।लेकिन बहुजनों ने उस‌ युवा छात्र शक्ति का आवाहन ही नहीं किया,उसे स‌ंबोधित ही नहीं किया कि वे कुछ दे नहीं स‌कते।उन्हें आप में मंच मिला तो वे वहां हैं।इसकी जिम्मेदारी स‌े बहुजन आंदोलन बच कैसे स‌कता है।हमें आप स‌े कोई उम्मीद नहीं है।हो स‌कता है कि यह प्रयोग कांग्रेस और भाजपा स‌े कहीं ज्यादा खतरनाक हो।हमारा दांव तो युवा छात्र शक्ति पर है जो लसामाजिक शक्तियों की गोलबंदी की आखिरी उम्मीद है।


Chaman Lal

फुले-अम्बेडकरी विचारधारा का बहु-आयामी वैचारिक धरातल खड़ा किये बैगेर 'बहुजनो' की राजनीती संभव नहीं है !

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Chaman Lal

ब्राह्मणी वैचारिक प्रष्ठभूमि में यदि आप समाजवाद के नाम पर, बहुजन को छोड़कर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के नाम पर, वामपंथ के नाम पर .....आदि-आदि के नाम पर ब्राह्मणवाद को ही मजबूत करने का काम करते हैं तो तथाकथित बहुजन सवर्णों का वोट पाकर 'बहुजनो' के सत्यानाश करने का कार्यक्रम चला सकते हैं !

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Chaman Lal

ब्राह्मणवाद के वैचारिक धरातल पर कोई भी राजनैतिक पार्टी बनती या खड़ी होती है, तो वह बहुजनो के हित के मुद्दों को आधार बनाकर काम काम करना तो दूर बल्कि वोट भी हासिल नहीं कर सकती है !

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मेरा जवाबःसहमत।लेकिन मुश्किल यह है कि फूले अंबेडकवाद के झंडेवरदार तो महज दुकानदार बने रहे अंबेडकर के अवसान के बाद से लेकर अबतक।फूले अंबेडकर विचारधारा का अपने हित में कबाड़ा करने में ही लगे बहुजन बारात के तमाम दूल्हे।इस दूल्हा संप्रदाय ने कोई विकल्प तैयार ही नहीं किया तो आप जैसे प्रयोग भी होंगे और सामाजिक शक्तियों को जिन्हें बहुजन आंदोलन के साथ होना चाहिए वे ऐसी प्रयोगशालाओं में चली जायेंगी।सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा को खारिज कर देने के इस प्रयोग से मौका बहुजनों के लिए ही बना है। लेकिन हमारे लोग मसीहासंप्रदाय की अंधभक्ति के अलावा कुछ कर ही नहीं रहे हैं।जनांदोलन के बजाय फंडिंग के सिवाय।अब कारपोरेट फंडिंग भी।पहले आप विकल्प तो खड़ा करें ।फूले अंबेडकरी आंदोलन तो चलायें,संस्थागत लोकतांत्रिक संगठछन तो बनाये,सामाजिक शक्तियों को संबोधित तो करें।वरना विचारधारा भघारने की प्रतिभा हमारे मुकाबले कारपोरेटदक्ष संघियों और वामपंथियों की ज्यादा है।वामपंथी भी फेल हो गये।संघियों के लिए खुल्ला मैदान है।बहुजन तो मैदान में हैं ही नहीं सब वातानुकूलित कारपोरेट दड़बे के शुतूरमुर्ग हैं जिन्हें सामाजिक यथार्थ का मुकाबला करने के बजाय,भारतीयजनगण को संबोधित करने के बजाय,माध्यमों के इस्तेमाल की दक्षता के बजाये जुमले उछालने आते हैं या फिर विशुद्ध गालीगलौज और अपनों के ही चरित्रहनन का उनका राष्ट्रव्यापी जनांदोलन है।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए यज्ञ करने वाले लोग,संघियों के साथ मंच साझा करने वाले लोग फूले अंबेडकर विचारधारा के कैसे वाहक हैं,यह हमारी समझ से परे हैं।

चोरों और दलालो के भीड़,तमाशे,प्रवचन से जाहिर है कि कोई आंदोलन दुनिया में कहीं नहीं हुआ।गौतम बुद्ध के पंचशील आज भी जनांदोलन की अनिवार्य शर्तें है।

अब इस पर भी विचार करें कि गौतम बुद्ध और बाबा साहेब अंबेडकर को ईश्वर बताने वाले मूर्तिपूजक की कर्मकांडी ब्राह्मणी संस्कृति  में गौतम बुद्ध के पंचशील का अनुशीलन कितना हुआ है।



Chaman Lal

हमारी फुले-अम्बेडकरी विचारधारा में अपनी स्वतंत्रता के प्रति हमारा कोई संदेह नहीं है ! हमें अपनी एतिहासिक विरासत पर भी गर्व है ! हमने अपने बहुजन नेताओं की गैर संस्थागत बीमारी का भी विश्लेषण कर लिया ! अब केवल इलाज बाकी है ! यह इलाज आप भी कर सकते है !

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Economic and Political Weekly

Commentary: The Reality of North-East as an Entity

http://www.epw.in/commentary/reality-north-east-entity.html

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Chaman LalBuddhist Friends

बहुजन आन्दोलन यह भारत की सम्पूर्ण आजादी का आन्दोलन है और इस आन्दोलन को निराशावादी लोगों की कोई आवश्यकता नहीं है !

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ibnlive.com

Arvind Kejriwal after making a stunning political debut, "I urge to all those who have won to work for their constituency the way they are expected to. I congratulate Dr Harsh Vardhan and BJP. It's not a personal fight with Sheila Dikshit.


It's a fight against corruption and price rise. Congratulate the people of Delhi. This is a kranti. We apologise for any mistake we've made,"


‪#‎DelhiPolls‬ ‪#‎AAP‬ ‪#‎ArvindKejriwal‬ ‪#‎BJP‬ #‪#‎Congress‬



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Musafir D. Baitha जो युवा शक्ति/प्रतिभा आईआईटी-आईआइएम में पढ़कर धन्ना सेठों की चाकरी को शौक से चूमती है, फ़िल्मी विकृत गानों के प्रति सनकी दीवानगी रखती है, फ़िल्मी दुनिया के मायावी-नकली हीरोडम से ऊर्जा लेती है, धार्मिक गर्दन रेतने वालों की शंसा में नमो नमो रत है, उससे क्या कोई ठोस, सार्थक, मानवतावादी हस्तक्षेप करने की उम्मीद कीजै?

Patrakar Praxis
"...इतनी सीटें और इतनी बातों के निकलने का सीधा मतलब ये है कि ये बात अब दूर तलक जायेगी. आम आदमी पार्टी की जीत ने संभावनाओं और सवालों का जो पिटारा खोला है, उनके जवाबों का एक बड़ा हिस्सा इस नयी पार्टी की आगामी राजनीति से ही मिलने वाली है. अगर ये भी संभावनाओं के वैसे ही तस्कर निकले, जो अब तक अन्य दूसरी पार्टियां होती आयीं हैं तो हश्र भी वही होगा जो अब तक होता आया है और अभी-अभी हुआ है..."
By- Ashish Bhardwaj
http://www.patrakarpraxis.com/2013/12/blog-post_9.html

जनादेशों के संदेश | पत्रकार Praxis

www.patrakarpraxis.com


Surendra Grover

भाजपाइयों को यह मुगालता दूर कर लेना चाहिए कि इन विधानसभा चुनावों में मोदी की लहर चली है.. वास्तविकता तो यह है कि महंगाई, घोटालों और बेशर्म कांग्रेस से उकताई जनता ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया है.. दिल्ली में उसे "आप" विकल्प नज़र आया तो जनता ने इसे बेहतर विकल्प माना तथा "आप" को वोट देने में कोई कोताही नहीं बरती.. यदि अन्य राज्यों में भी "आप" होती तो भाजपा औंधे मुंह गिर सकती थी. आगामी लोकसभा चुनावों से पहले यदि केजरीवाल ने आप की इकाइयाँ खड़ी कर दी और आमजन तक झाड़ू पहुंचा दी तो मोदी को अडवाणी के हाल तक पहुँचने में देर नहीं लगेगी.. उन्हें नकली लालकिले और नकली संसद की तरह प्रधानमंत्री की नकली कुर्सी से ही संतोष करना होगा…

24 Ghanta

আপ কো সেলাম বলেও দিল্লি ঝুলেই থাকল, রাজধানীতে হয়তো রাষ্ট্রপতি শাসন। বিস্তারিত নিচের লিঙ্কে

http://zeenews.india.com/bengali/nation/after-hung-verdict-who-will-form-next-government-in-delhi_18398.html/?ll;allal;;aa

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24 Ghanta

রবিবারের হিট বিজেপি, মাটি খুঁজছে কংগ্রেস, দিল্লিতে বাজিমাত আম আদমির


http://zeenews.india.com/bengali/nation/live-super-sunday-for-bjp-congress-bites-dust-stunning-show-by-aap_18388.html

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Avinash Das

भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी की परिघटना को समझना चाहिए। दिल्‍ली में उसका प्रदर्शन बताता है कि राजनीति में ईमानदार विकल्‍प की गुंजाइश अपनी दस्‍तक दे रही है। छत्तीसगढ़ में बीजेपी के हाल से जाहिर है कि मोदी कोई भी करिश्‍मा कर पाने में अक्षम हैं। मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में उसकी जीत को वहां की सरकारो के कामकाज से अधिक केंद्र में यूपीए की संदिग्‍ध नीतियों के परिणाम के रूप में देखना चाहिए।

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Angel Dipika
भारतीय राजनीति ने एक नया मोड लिया है..एक नयी शुरूआत राजधानी से हुई है जिसे लाने वाले केजरीवाल को कुछ क्रांति लाल कहने लगे हैं और इस बात को उनके मेंटर अन्ना ने भी मान लिया है..
...इस बार केवल कांग्रेस ही नहीं हारी सारे चुनावी विश्लेषक भी धरासायी हो गये जो किसी भी सूरत में आम आदमी पार्टी को दस से अधिक सीट नहीं दे रहे थे...
..जीत आप की ही नहीं आज एक उम्मीद और आशा की जीत हुई है जिसमें मुझ शरीका हर व्यक्ति शामिल है जो इस भ्रष्ट तंत्र से त्रस्त हो चुका है..
..हार उनकी हुई जो सोचते थे कि सत्ता उनकी बपौती है और धन बल से येन केन प्रकरेण उनकी पकड इस पर बनी रहेगी...
..जीत उन आंसुओं की हुई जो भ्रष्ट व्यवस्था के दरबार को गीला कर चुकी थी..जीत उन विदर्भ के किसानों की हुई जो आत्महत्या कर रहे हैं..जीत उन अबला और पीडिताओं की हुई जिन्हें उन लोगों से सताया जिन्हें कानून का कतई खौफॅ नहीं ..
..यह उन सबकी जीत है जो सर्वेसुखांति में विश्वास रखते हुए शांति चाहते हैं..
..उन सबकी हार है जो हर बुराई को अपनाते हुए सफेदपोश बने रहते हैं....

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Afroz Alam Sahil

'AAP' Victory Means 'None of the Existing'


Appreciable poll-gain with maximum vote-percentage amongst any party in Delhi by 'Aaam Admi Party' (AAP) is clear endorsement of voters for 'None of the Existing' which in other words is popular public demand to convert 'None of the Above' (NOTA) into 'Right To Reject', an aspect favoured by 'AAP'. Same trend could be exhibited if 'AAP' would have contested in other states also... http://beyondheadlines.in/2013/12/aap-victory-means-none-of-the-existing/


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Sudha Raje

‪#‎Arvindkejariwal‬ &आम आदमी पार्टी की सबसे कठिन चुनौती उत्तर प्रदेश साबित होने वाला है।


क्योंकि यहाँ की सामाजिक संरचना दिल्ली के नगरवाद से ठीक उलट है ।


लोग आदमी की तात्कालिक छवि संकल्प कुछ नहीं देखते ना ही योग्यता ।


यहाँ तो जनता भ्रष्ट है!!!!!


यानि लोग दारू पीकर सबकी सोचते हैं कि किसने अंतिम समय तक और सबसे ज्यादा पिलाई?????


लोग साङी कपङा बिरयानी कवाब मिठाई कोल्डड्रिंक खा खा पी पी कर फिर सोचते है ।

सबसे ज्यादा और अंत अंत तक किसने दिया ।


फिर बिरादरी की बैठक फङ पर लगाकर विचार किया जाता है कि भाईयो वोट किसे देना है?????


और एकदम मन बना लेते है गुट के गुट कि वोट अमुक को देना है।


अपनी जाति से बाहर दलित कभी वोट नहीं करते । और अपनी जाति को सवर्ण अकसर वोट नहीं देते।


मजहब पर पहला क्लेम होता है और वोटिंग के ठीक पहले वाले शुक्रवार को नमाज़ के समय तय हो जाता है कि हमारे मजहब के चार लोग खङे है ।

किंतु वोट केवल एक को देना है और बाकी तीन प्रत्याशी भी फिर चुपचाप उस एक के लिये वोट माँगने चल पङते हैं ।


मुद्दा यहाँ सङक बिजली पढ़ाई गन्ना क्राईम है किंतु वोट तो तय करता है मुफ्त बाँटा गया उपहार!!!!!!


लोग लंबी योजना पर सोचते ही नहीं ।


कॉग्रेस गयी तो फिर नहीं आयी ।


भाजपा गयी तो फिर नहीं आयी ।


मध्यम वर्ग छटपटा रहा है जॉब नहीं पढ़ाई दवाई सफाई नहीं ।


स्त्रियों की सुरक्षा का आलम ये कि रिपोर्ट दर्ज नहीं करते सो आँकङे दिखेगे ही नहीं मामला पंच मिलकर सुलटा लेते हैं।


यहाँ विचारधारा का कोई उबाल बस एक शाम तक ।


जो बाहरी यूपी आकर फँस गया छटपटाकर मर मर कर जिया ।


क्योंकि यहाँ हर मुहल्ले में सरकार है।


और हर दूसरा आदमी नेता है।

हर गाँव में हाईकोर्ट हैं ।

नहीं है तो बस सुनवाई।

ये है गाँवों का जमावङा जमावङों का शहर और शहरों का गाँव । सबसे बङा देहात ।

सुधा राजे

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  • Sudha Raje पोलिंग बूथ पर तीन घंटे बाद धूसर रंग को मिठाई गड्डी और कच्ची पक्की की बू बास की लगेगी और धङाधङ धनबल काम करेगा 70से ऊपर की आयु का वोट जबरजोर का पोलिंग एजेंट एक वोटर प्रतीक्षक एजेंट के हाथो मदद कर कर के ठोकता रहेगा ।।विरोधी हल्ला मचायेगा तो एक डंडा फटकार पर दस मिनट बाद दूसरा पोलिंग वोटर एजेंट लाईन में वोट डालने आ जायेगा

  • about an hour ago via mobile · Like · 2

  • Latant Prasun wah sudha vajib bat kahti ho

  • about an hour ago via mobile · Like · 1

  • Sudha Raje प्रणाम दादा

  • about an hour ago via mobile · Like

  • Sudha Raje वोट डालने के मौसम में सब मुरदे भी वोट डालने आयेंगे जिनके मत हैं किंतु वे परलोक ।।।।वोट डालने उनके भूत जरूर आयेंगे ।।।

  • about an hour ago via mobile · Like · 1

  • Prabhat Samir bilkull sahi,lekin Aap ka sangharsh sirf 2014 tak ka nahi.wo subah kabhi to aayegi

  • a few seconds ago · Like

  • Tehelka
  • ‪#‎TehelkaDaily‬ AAP Says It Will Play Role Of Constructive Opposition

  • AAP leader Yogendra Yadav said, even if Lt Governor Najeeb Jung invites the party to form the government it will decline such an offer citing lack of majority | http://bit.ly/1cvr00P

Like ·  · Share · 13 · about an hour ago ·

चन्द्रशेखर करगेती
अरे भाई, अब दिल्ली में कांग्रेस को साफ़ कर डालो !

आखिरकार जिन लोगो ने "आम आदमी पार्टी" को इस उम्मीद में वोट दिया था कि "आम आदमी पार्टी" के सत्ता में आने पर वे लोग बिजली का बिल कम करेंगे और साथ ही साथ भ्रष्टाचार को भी जड़ से खत्म कर देंगे, क्या "आम आदमी पार्टी" नेतृत्व उनकी उम्मीद और वोट को ऐसे ही जाया जाने देगा ?

अब वोटरों ने अपना काम तो कर ही दिया और उम्मीद से ज्यादा भरपूर सीटें भी "आम आदमी पार्टी" को दे दी है , लेकिन ये क्या, आम आदमी पार्टी है कि विपक्ष में बैठने की तैयारी कर रही है, आखिरकार पहली बार में ही इतना जनसमर्थन विपक्ष में बैठने को तो नहीं मिला है ना ?

अरविंद केजरीवाल जी की जगह अगर मैं होता तो मैं जनता के साथ छल नहीं करता बल्कि कांग्रेस के आठों विधायकों का शुद्धिकरण कर उन्हें "आम आदमी पार्टी" में ले आता ! आखिरकार कांग्रेस-भाजपा के कुछ लोगो को उन्होंने टिकट भी तो दिया ही था चुनाव से पहले, अब आठो को साथ ले आयेंगे, तो ये एक और इतिहास हो जायेगा, दिल्ली लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस विहीन हो जायेगी ! जो भाजपा करने का दावा कर रही है वो "आम आदमी पार्टी" कर दे ?

देश की राजनीति बदलने को शुरू में इतना तो किया ही जा सकता है !
Like ·  · Share · 9 minutes ago ·

Kumar Sundaram

'आप' को लेकर कुछ व्यक्तिगत अनुभव -


अरविंद केजरीवाल जी पिछले साल कूडनकुलम गए थे और वहाँ आंदोलनरत ग्रामीणों-मछुआरों पर हुए बर्बर दमन की निंदा की थी लेकिन दिल्ली वापस आकर कूडनकुलम के बारे में उन्होंने एक भी शब्द नहीं कहा। मैंने उन्हीं की यात्रा की एक खबर फेसबुक पर 'आप' के समूह में साझा की तो कोई समर्थन नहीं मिला, उलटे कुछ लोगों ने गरिया दिया कि इसका मतलब तो शहर में बिजली नहीं मिलेगी। प्रशांत भूषण जी सुप्रीम कोर्ट में कूडनकुलम के वकील हैं लेकिन वे 'आप' के मंच से कूडनकुलम के बारे में कुछ नहीं बोल पाए। एक बार कश्मीर पर कुछ बोला तो चुप करा दिए गए।


अरविंद जी अपने समर्थक समूह की समझदारी की सीमाएं जानते हैं, लेकिन इसे विस्तार देने की कोई कोशिश उन्होंने नहीं की।'आप' ने कई महीने पहले अलग-अलग मुद्दों पर नीति-निर्धारण के लिए विशेषज्ञों की टीमें बनाई थीं, लेकिन पता नहीं फिर उसका क्या हुआ। औरतों के बारे में इस पार्टी का एजेंडा हर जगह कमांडो लगाने से आगे नहीं बढता जबकि इसी दिल्ली में पिछले आंदोलन के दौरान ज़्यादा बेहतर समझ सामने आ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और विदेश नीति पर 'आप' के एक ऐसे ही पॉलिसी ग्रुप में तब मुझे संदीप पाण्डेय और पुष्पेश पंत के साथ निमंत्रित किया गया था, मैं नहीं गया।


मुझे लगता है कि आप एक नई पार्टी है और ये धीरे-धीरे अन्य मुद्दों पर समझ बनाएगी, ये इतनी मासूम बात है नहीं। इसकी अपनी एक तयशुदा समझ है जो बहुत कुछ उस 'राष्ट्र की अंतश्चेतना' की आवाज़ के आस-पास ही है जो अफज़ल को फांसी दिलाती है और सोनी सॉरी पर चुप रहती है। हर पार्टी को जनसमर्थन पाने के लिए गरीबों और आम लोगों की बात करनी पड़ती है, कांग्रेस को भी। तो झुग्गियों में इस पार्टी को मिले समर्थन में ज़्यादा कुछ ढूंढना सही नहीं होगा।


'भ्रष्टाचार' की एक निहायत फूहड़ आर्थिक समझ के साथ-साथ 'आप' समर्थक लोकतंत्र के उस 'शोर' को भी करप्शन में ही गिनते हैं जो इनके उपभोक्ता सुकून में खलल डालता है। कांग्रेस से लोगों का गुस्सा भी वाजिब है और यह भी तात्कालिक राहत की ही बात है कि भाजपा सीधे जितना बड़ा स्वीप कर सकती थी, 'आप' की वजह से शायद वह रुका। लेकिन देश के सारे राजनीतिक सवालोंं को 'गुड गवर्नेंस' की भाषा में समेट देने से उन मुद्दों और तबकों की अनदेखी ही होगी जो वर्त्तमान व्यवस्था जितने 'गुड', पारदर्शी और सक्षम तरीके से काम करेगी, असल में उतने ही ज़्यादा उत्पीड़ित होंगे।

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  • Dhwajendra Dhawal, Shahnawaz Malik, Sanjeev Chandan and 31 others like this.

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  • Prakash K Ray Sawal poochha jana chahiye. Loktantra hai.

  • 2 hours ago · 1

  • Shalini Dixit True!

  • about an hour ago via mobile

  • Tushar Bhattacharjee Kuch deen ke baad Open Market aor Corporate Punji k DALAL ban jayrga.

  • 50 minutes ago via mobile

  • Prakash K Ray Pankaj Srivastava says: इस चुनाव ने ये भी साबित किया है कि फासीवाद को "'जुगाड़"' से नहीं रोका जा सकता। इसके लिए जमीन पर उतरकर जनता के दिलों को खटखटाना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि ये काम "'आप" ही कर सकती है। उसकी सीमाएं समझी जा सकती हैं, पर जिनके पास "'सही राजनीतिक दिशा"' है, वे उसे "'गुप्त ज्ञान"' क्यों बनाये बैठे हैं.. ?

  • 48 minutes ago


Amalendu Upadhyaya

केजरीवाल जी जनता के साथ छल नहीं कीजिए। लोग बिजली का बिल कम होने और भ्रष्टाचार खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं और आप विपक्ष में बैठने की तैयारी कर रहे हैं !!! पहली बार में इतना प्रचंड बहुमत विपक्ष में बैठने को नहीं न मिला है.......

Like ·  · Share · 24 minutes ago ·

Yogesh Kumar Sheetal

नमक जैसी चीज को राष्ट्र का मुद्दा बना देने वाले महात्मा गांधी के पास आत्मबल था.


केजरीवाल ने पानी को मुद्दा बना डाला. RTI के माध्यम से पानी के निजीकरण के पीछे की कहानी सबके सामने लाई और साबित किया कि भाजपा और कांग्रेस की जनविरोधी नीतियां एक हैं और किस तरह दोनों पार्टियां तंजानिया, कोलंबिया, फिलिपिंस आदि देशों में विश्व बैंक के इस खेल को जानकर भी अनदेखा कर रही है.


लेकिन सामाजिक न्याय को मुद्दा आप नहीं बना रहे हैं तो इसलिए कि आपके पास न आत्मबल है न ही समर्पण.


बावजूद कई ऐसे लोग हैं जो नेपथ्य से सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं. बेचारों को यह भी नहीं पता है कि उनके काम का श्रेय आप जैसे लोग लेते जा रहे हैं.


काम उनका, नाम आपका.

Like ·  · Share · about an hour ago near New Delhi ·

Jagadishwar Chaturvedi

'अाप 'पार्टी आज दोनों दलों -कांग्रेस और भाजपा - से दूरी बनाए हुए है तो इसके लिए ये दोनों दल ज़िम्मेदार हैं । आधारहीन तरीक़े से "आप "पर ये दोनों दल एक -दूसरे के 'बी टीम 'होने का आरोप लगाते रहे हैं । कांग्रेस कहती है "आप "तो भाजपा की 'बी टीम 'है। भाजपा कहती है कि "आप "तो कांग्रेस की 'बी टीम 'है । यहाँ से ही सारा खेल ख़राब हुआ है । कम से कम इन दलों का यह आरोप ग़लत साबित हो रहा है ।

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Jagadishwar Chaturvedi

कांग्रेस को अपने नज़रिए को दुरुस्त करना चाहिए । जनविरोधी नीतियों के बारे में विपक्ष की आलोचना पर ग़ौर करने की ज़रुरत है । पुराने वैचारिक कार्यक्रम केआधार पर यदि आगामी २०१४ का लोकसभा चुनाव लड़ा जाता है तो कांग्रेस को जनता के ग़ुस्से का फिर से सामना करना पड़ेगा। साथ ही समझना होगा कि विकास कार्यक्रमों के अलावा जनता से संगठन को जोड़ने वाली नीतियों और एक्शनों पर ध्यान देना होगा ।

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The Economic Times

Narendra Modi vs Rahul Gandhi is an unequal fight in 2014. Do you agree? Tell us your views. http://ow.ly/rzFNf


Like ·  · Share · 2324115 · 2 hours ago ·


Yogesh Kumar Sheetal

वर्षों से षडयंत्र के शिकार लोगों के नए शिकारी और षडयंत्र करने वाले लोगों में से बचे-खुचे लोग. इन दोनों से केजरीवाल को अकेले भिड़ना है हर मोर्चे पर. ऐसी लड़ाइयां आत्मबल से ही जीती जा सकती है. वरना स्वामी अग्निवेश जिस तरह से आदिवासियों के हक के लिए अपने एनजीओ के माध्यम से "लड़" रहे हैं वैसे ही कई लोग सामाजिक न्याय के लिए भी "लड़" रहे हैं.

Like ·  · Share · 43 minutes ago near New Delhi ·


Reyazul HaqueLaxman Kalleda

Performed by Revolutionary Cultural Front, this song originally written by revolutionary poet and singer Gaddar was translated by another revolutionary poet and singer Villas Ghogre to Hindi...various people's organization have sung the songs and developed it further. The song sarcastically exposes the so-called Indian democracy, its entrenched feudal character and capitulation of the ruling classes before imperialism. it also shows how each and every parliamentary party is equally involved in perpetrating extreme exploitation and oppression through their anti-people policies and politics..it ends with giving a call to the oppressed masses to build a revolutionary unity against the powers that be and strengthen the fight for justice.


https://www.youtube.com/watch?v=jYhSLGwZc2k

Bharat Apni Mahan Bhumi

youtube.com

Performed by Revolutionary Cultural Front, this song originally written by revolutionary poet and singer Gaddar was translated by another revolutionary poet ...

Like ·  · Share · 54 minutes ago ·

Faisal Anurag

KEVAL SANAD KE LIYE. ASOM ME JAB AASU NE CHUNAAV JEETA THA SAB YUVA THE DESH KO KHAS KAR ASOM KE JANGAN KO BAHUT UMMEED THI UNNSE. ES SABAK KO YAAD RAKHANA ZARURI HAI TAAKI KAL KOI FIR YAISA NAA KAHE. MAHNTHA TO COLLEGE SE SEEDHE CM BANE AUR JANTA KI UMEED KAA HASHRA AB V TAZA HAI.

Like ·  · Share · 14 hours ago · Edited ·


Ashutosh Kumar

मिजोरम में कांग्रेस भारी जीत की ओर. न सोशल मीडिया पर कोई चर्चा है न एंटीसोशल(-:)) मीडिया पर . जबकि नक़्शे में मिज़ोरम भारत में ही है .

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24 Ghanta

ত্রিশঙ্কু দিল্লিতে হয়তো ফের ভোট, প্রস্তুতি শুরু কেজরিওয়ালদের

http://zeenews.india.com/bengali/nation/after-hung-verdict-who-will-form-next-government-in-delhi_18398.html/?kkllaa


Like ·  · Share · 1301013 · about an hour ago ·




  • Faisal Anurag SANJAY JI PURAA INTZAAR HAI AUR DHEERAJ BHEE, LEKIN KUCHH BAATE HAIN JINHE YAAD RAKHANA ZARURI HOTA HAI. 1977 ME HAM SAB KAM UTSAAHIT NAHI THE KI SAB KUCHH BADAL JAAYEGA LEKIN KYA BADALA AAP V DEKH HEE RAHE HAIN AUR 1967 KE ZAMAANE ME ME BHEE KUCHH YAI...See More

  • 2 hours ago · Like

  • Sanjay Verma Cong bjp to unhi aarthik nitiyon ke sahare nachengen hin phir isse kaun hai jo desh ko andar hi andar dimak ki tarah a khokhla karnewali nitiyon ko badlegi? Aap jaisi partiyon se umid kiya ja sakta hai? Magar dhairya to chaìye?

  • about an hour ago · Like

  • Brijendra Dubey true

  • about an hour ago · Like

  • Shamim Ahmad Ummeed pe duniya tiki hai aakhir kisi par to wishwas to karna hi padega. Antatah hamari naiya doob jaye magar majhi par wishwas zaruri hai.

  • 35 minutes ago via mobile · Like


Jagadishwar Chaturvedi

हाल के ४विधानसभा चुनाव परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस के पराभव में मूल कारक है जनता से कांग्रेस का अलगाव। कांग्रेस के सामने नेताओं का संकट नहीं है । संकट है जनता से अलगाव को ख़त्म करने का । त्रासदी यह है कि कांग्रेस के पास इस अलगाव को ख़त्म करने वाली सक्रिय वैचारिक संगठन संरचनाएँ नहीं हैं।

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Alok Putul

http://cgkhabar.com/chhattisgarh-raman-singh-wins-20131209/

क्यों हारे तुम? क्यों जीते तुम?

cgkhabar.com

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से सरकार बना ली है.

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Satya Narayan

कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन के ऊपर इस तरह का घटिया लेबल चस्‍पां करना Non Party Intellectual महोदय की खुद की एक घटिया बौद्धिक कसरत ही है। इनके हिसाब से अब जो कुछ साम्‍यवाद के नाम पर हो रहा है वो मात्र एक बौद्धिक कसरत ही है। मज़दूर इलाकों में लगे हुए तमाम कम्‍युनिस्‍ट कार्यकर्ता बौद्धिक कसरत ही कर रहे हैं ! पता नहीं ये महाशय भी सिर्फ बौद्धिक कसरत ही कर रहे हैं या कहीं उसको भौतिक रूप से यथार्थ में भी उतार रहे हैं।

निश्चित रूप से हर देश के कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन के अन्‍दर विभिन्‍न प्रकार की पार्टियां (व ग्रुप भी) होती हैं। उसमें से कुछ वामपंथी दुस्‍साहसवाद का नेतृत्‍व कर रही होती हैं तो कुछ संशोधनवाद का व कोई एक पार्टी ऐसी होती है (या नहीं भी हो सकती है, फिर हमें उसे बनाने के लिए लड़ना चाहिए) जो मास लाइन लागु करते हुए सच्‍चे अर्थों में लेनिनवादी पार्टी सिद्धान्‍तों पर बनी होती है। हर पार्टी अपनी पार्टी लाइन को सही साबित करने के लिए लड़ती भी है (और लड़ना भी चाहिए), पता नहीं इन महाशय को क्‍या दिक्‍कत है कि भारत में सब कम्‍युनिस्‍ट पार्टियां व ग्रुप अपने आप को सही साबित करने के लिए लड़ रहे हैं।

अन्‍त में ये महोदय एक ऐसा बना बनाया प्रवचन दे रहे हैं जो आपको हर किसी से सुनने को मिल जायेगा। विकल्‍प प्रदान कीजिए आपको कौन रोक रहा है। भारत के कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन की सांगोपांग आलोचना रखिए व उसके आधार पर कुछ नया बनाकर किसी मज़दूर बस्‍ती से शुरूआत कीजिए।

Girijesh Tiwari

Ashok Kumar Pandey - "यह असली या नकली कम्युनिस्टों का सवाल नहीं है. यह हाल के चुनावों में हमारी कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा जीते गये तीन अंकों के वोटों की संख्या का भी सवाल नहीं है. यह निश्चित रूप से अपने दिवा-स्वप्नों के द्वीपों में जीने वाले हमारे 'असली क्रांतिकारी' कम्युनिस्ट पार्टियों या ग्रुपों या क्लबों का भी सवाल नहीं है. सच यह है कि एक विचारधारा के तौर पर साम्यवाद केवल बुद्धिजीवियों की एक कसरत के रूप में सिमट गया है. सच यह है कि दरअसल तथाकथित लाल, अल्ट्रा लाल और गुलाबी कम्युनिस्ट पार्टियाँ या ग्रुप्स या क्लब अपने ही शेड को सबसे बेहतर साबित करने के लिये लड़ रहे हैं. सच यह है कि वे अपने गौरवशाली अतीत से इतना संतुष्ट हैं कि वे बदसूरत वर्तमान को और निश्चित तौर पर और भी बदसूरत भविष्य को देखना ही नहीं चाहते हैं. सच यह है कि उनकी दरअसल केवल एक भ्रामक उपस्थिति है. हम तथाकथित वामपंथी लेखकों ने केवल शोक-पत्र के सन्देश लिखने के लिये जन्म नहीं लिया है. यह कटु-सत्य कहने का, विद्रूप और विकृत यथार्थ को खुली आँखों से देखने का, इतिहास के ताबूतों के बाहर निकल आने का और भविष्य की ओर कूच कर देने का समय है. तो गैर पार्टी वामपंथी मित्रो, यह एकजुट और एकताबद्ध होने का और जोरदार तरीके से दो-टूक सच कहने का समय है. हम वर्तमान परिदृश्य में ठगे हुए हैं और हमारी सर्वाधिक परिष्कृत आलोचनाओं और क्रान्तिकारी शब्दावली से अभामंडित हमारी बात को कोई भी सुनने वाला नहीं है. यह विकल्प प्रदान करने का समय है. उसके बिना हमारी आलोचनाएँ केवल बेहया किताबी कसरतें हैं, जो बेजान पुस्तकालयों के लिये ही सबसे उपयुक्त हैं. एकजुट हों, सकारात्मक बनें. वरना इतिहास का महान कूड़ेदान पूरी बेकरारी से हमारी प्रतीक्षा कर रहा है."

Like ·  · Share · 7 · about an hour ago ·

Rajiv Nayan Bahuguna

यह आवाम है मेरे आक़ा , एक ही झटके में अर्श से फर्श पर ले आती है . आपके वालिद मरहूम और उनके भी वालदैन यह अज़ाब झेल चुके हैं . होश की दवा खाईये , वगरना क़यामत बस आया ही चाहती है

Like ·  · Share · 16 minutes ago ·

Chaman Lal

चुनावी परिणाम तो उन लोगों का जश्न है जिनका विचार पहले से स्थापित है ! हम तो आशावादी भाव से अपना बहुजन वादी विचार स्थापित करने की यंत्रणा विकसित कर रहे हैं !

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Aayush Kumar Gautam कुछ दिन में यह मंत्रणा भी नहीं करने को मिलेगा।

2 hours ago · Like

जनज्वार डॉटकॉम

पिछ्ले वर्ष भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने देश के 33 राज्यों के शहरी व देहाती सभी क्षेत्रों से दूध के 1791 नमूने इकट्ठे किए थे. इसकी जांच में पाया गया कि भारत में बिकने वाला लगभग 70 प्रतिशत दूध खाद्य सुरक्षा के निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करता...http://www.janjwar.com/society/1-society/4589-milavatkhori-chaaloo-aahe-for-janjwar-by-tanveer-jafri-f



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Yashwant Singh added 2 new photos to the album मेरे गांव की दो तस्वीरें— in Ghazipur.

अंधियारा है, संघर्ष है.. सब कुछ सहर्ष है...


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Like ·  · Share · 98318 · about an hour ago ·


Afroz Alam Sahil

The Indian government has turned down visit of a Palestinian leader Israel Ahmed Tibi (Ra'am-Ta'al) who tried to arrange a diplomatic trip to India via Palestinian Authority, an Israeli website has reported.... For more details : http://beyondheadlines.in/2013/12/india-denies-ahmed-tibis-visit-to-attend-palestinian-solidarity-meeting/

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Faisal Anurag

UDYOG JAGAT KAA EK BAYAAN DEKHA KI BHARSHTACHAARMUKTI KE LIYE YAH JANADESH HAI. KYA UDYOG JAGAT RADIA PARAKARN SAHIT TAMAAM BANKON KEE LOOT KI APANI HISSEDARI KE LIYE SAZA KE LIYE TAIYAAR HAI. KYA WAH ADIVASION KI JABRAN ZAMEEN CHHEENANE SE BAAJ AAYEGA AUR APANE VANSHVAAD KO KHATM KAREGA? ARE SAAF KAHO UDYOGSMUHOON TUMNE UDARIKARAN AUR NIJIKARAN KE KE SABSE VISHWAST SAHYOGI KE LIYE TUMNE YAH KAHA HAI KYONKI CONGRESS KO TUM NE CHOOS KAR BEJAAN KAR DIYA HAI.

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ईमानदारी को सलाम... आम आदमी को सलाम... और क्‍या क्‍या नियम तय किए अरविन्‍द केजरीवाल ने... पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...http://aajtak.intoday.in/story/people-matter-5-ways-aam-aadmi-party-rewrote-the-rules-of-the-game-1-749088.html

Alok Putul

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/12/131209_chhattisgarh_election_alokputul_sk.shtml

छत्तीसगढ़: रमन सिंह के नेतृत्व में टूटे कई मिथक - BBC

Hindi - भारत

bbc.co.uk


छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि बस्तर के रास्ते राज्य में नई सरकार बनेगी. मगर चुनाव परिणामों में यह एक मिथक साबित हुआ. राज्य में ऐसे ही कई मिथक टूटे और कई नए गढ़े गए.

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Satya Narayan

जब तक पूँजीवादी व्यवस्था का कोई विकल्प पेश नहीं किया जाता तब तक हर चुनाव की नौटंकी में जनता का एक हिस्सा कभी इस तो कभी उस चुनावी मदारी के निशान पर ठप्पा लगाता रहेगा। जनता बिना किसी विकल्प के भी स्वत:स्फूर्त तरीक़े से सड़कों पर उतरती है। लेकिन ऐसे जनउभार किसी व्यवस्थागत परिवर्तन तक नहीं जा सकते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा कुछ समय के लिए पूँजीवादी शासन-व्यवस्था को हिला सकते हैं। लेकिन ऐसी उथल-पुथल से पूँजीवादी व्यवस्था देर-सबेर उबर जाती है। पूँजीवादी व्यवस्था पूरी दुनिया में कई वर्षों से आर्थिक संकट में है और अब यह आर्थिक संकट अपने आपको राजनीतिक संकट के रूप में भी अभिव्यक्त कर रहा है। लेकिन हर जगह संकट विकल्प का है। जिस मज़दूर वर्ग और उसकी हिरावल पार्टी को पूँजीवाद का विकल्प पेश करना है, वह हर जगह बिखरा हुआ है, विचारधारात्मक और राजनीतिक रूप से कमज़ोर है।

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Pushya Mitra

कांग्रेस और वाम ने सालों से बीजेपी को सांप्रदायिक कह कर ख़ारिज करने की कोशिश की मगर बीजेपी मजबूत होती चली गयी. केजरीवाल ने कहा भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस-बीजेपी एक जैसी है, लोग कन्विन्स हो गए. सोचिये ऐसा क्यों हुआ।

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  • 8 people like this.

  • Faisal Anurag यह सच है की वामपंथी हाशिए पर हैं. लेकिन क्या भाजपा साम्प्रदायिक नहीं है ? चुनाव जीत लेना एक बात है ,दुनिया के अनेक तानाशाहों ने चुनावों में जीत हासिल क्या है. हिटलर मुसोलोनी और फंको भी चुनाव जीत कर आये थे तो क्या वे लोकतांत्रिक थे. वामपंथ अपने अवसरवा...See More

  • 11 minutes ago · Edited · Like · 1

  • Pushya Mitra काम तो करना पड़ेगा। एक साहब परमाणु करार के बाद जनता को कन्विंस करने की बात कह कर सरकार से निकले और घर जाकर बैठ गए. मगर एक आदमी ने लोकपाल से लड़ाई शुरू की और साल भर में सरकार की चूलें हिला दी. बगैर काम के पूंजीवाद कैसे ख़त्म होगा सर ...

  • 10 minutes ago · Like · 1

  • Rupesh Kumar Singh समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई , अन्ना से आई , केजरीवाल से आई , "बिन पेंदी के लोटे" से आई , समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई !

  • 6 minutes ago · Like

  • Faisal Anurag असल बात यह है की इन्हीं कारणों से संसदीय वामपंथ का यह हाल है. हथियारबंद समूह भटके हुए हैं. बड़े वामपंथी दलों का सांगठनिक ढांचा आंतरिक तानाशी जैसा है और वे किसी जननेता के उभरने भर से घबराते हैं. एन तमाम स्थितिओं से उबरे बिना २१ वीं सड़ी में समाजवाद की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. वेनेजुअला छोअता देश है लें चबेज़ से हम वाम्पन्थिओं को बहुत कुछ सीखाना चाहिए और अपने देश की खासियतों के अनुरूप दीर्घकालिक संघर्ष में जाना चाहिए

  • 4 minutes ago · Edited · Like · 1

Sudha Raje

दिल्लीवालो!!!!!!!

अजी

अब तो सरकार बना लो।


एक

दिन ऐसा यूपी यानि उत्तर परदेश में बी आया ता ।


गज और फूल में


फैसला सुलट गया ।


सरकार बनाम्गे जी


पहले छह महीने गज


दूसरे छह महीने बाद फूल


फिर

????


फिर क्या गज ने फूल कूँ राक्की बाँद दी ।


और!!!!!


मुखिया बन गिया गज


बस्स


जब छह महीने होणे कूँ आये


भिधान सबा

भंग कद्दई ।


फूल बन गया इंगरेजी का ‪#‎फूल‬


कोंकी


गज ने पेलेई मामला सेट्ट कर दिया था।


बस्स


छह महीने पहले पहल जो सरकार बनेगा वोई जित्तेगा इगला इलक्सन


फिर


फूल कबी नई खिला ।


साईकिल हाथी लुका चुप्पी खेलते रये


सुन रहे न ‪#‎AAP‬


सुधा राजे

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Afroz Alam Sahil

क्या आप समीना को खोजने में मेरी मदद करेंगे...?

http://beyondheadlines.in/2013/12/will-you-help-me-to-find-samina/

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Mohan Shrotriya

उत्तर-पूर्व के प्रति मीडिया और राजनैतिक पार्टियों का यह नज़रिया राष्ट्रीय एकता के लिए भी खतरा है.


पांचवीं विधानसभा के चुनाव परिणामों में मीडिया की दिलचस्पी न होना सही संदेश नहीं भेजता. मीडिया को वहां के लोगों के दुख-दर्द, उनकी परेशानियों व समस्याओं में तो पहले भी कोई दिलचस्पी नहीं थी. छोटा-सा प्रदेश, और वहां की छोटी-सी विधान सभा ! पर इन परिणामों का वहां के लोगों के लिए तो एक सुनिश्चित अर्थ है. वहां कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है.


यह ध्यान रखने की ज़रूरत तो है ही कि "सेवेन सिस्टर्स" के नाम से जाने जानेवाले इन राज्यों के बिना इस देश का नक्शा पूरा नहीं होता ! राष्ट्र की छवि भी इनके होने से ही पूर्णता प्राप्त करती है !

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Uttam Sengupta

Statistical significance and insignificance of the polls in five states

Election results: Much ado about nothing? - Livemint

livemint.com

The 72 Lok Sabha seats that these four states represent are a mere 13% of all seats in the lower house of Parliament


Tehelka

Why Kejriwal Could Be The Delhi CM


The Aam Aadmi Party (AAP) has shown political finesse in stating right at the outset that it would sit in the opposition in the 70-seat Delhi Assembly because its final tally of 28 seats is short of a simple majority. | http://bit.ly/1jCKSSU


Like ·  · Share · 1741 · 34 minutes ago ·

Uttam Sengupta

Too early to see in the polls an end of populism. After all both BJP and AAP in Delhi promised to reduce electricity and water tariff and give consumers 12 gas cylinders in place of 9.

Election results show populist measures may have reached limits - Livemint

livemint.com

Analysts say the assembly election results indicate populist measures may have already run their limits

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Mohan Shrotriya

जो आशंका थी, वही हो रहा है...


भाजपा और ‪#‎आप‬ दोनों ही विपक्ष में बैठना चाहती हैं. कांग्रेस को तो जनादेश मिला ही विपक्ष में बैठने का है.


यह स्थिति चलती रही तो एक संवैधानिक संकट खड़ा हो जाना सुनिश्चित है.


सरकार तो बननी ही चाहिए, वरना राष्ट्रपति शासन लागू कर के पुनः चुनाव कराना अवश्यंभावी हो जाएगा. दोनों पार्टियों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे सरकार के गठन को संभव बनाएं ! चाहे साझा, या फिर बाहरी समर्थन से ! जनता के पैसे को दुबारा चुनाव पर बर्बाद होने से बचाना भी सही अर्थशास्त्र होगा.

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Dalit Mat

बहुजन समाज पार्टी के कमजोर प्रदर्शन की वजह क्या रही??

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Dilip Khan

दिल्ली में रोहिणी के जापानी पार्क में 29 सितंबर को 'भारत मां का शेर' आया था। रोहिणी सीट बीजेपी हारी। अंबेडकर नगर गया, बीजेपी 12 हज़ार वोट से हारी। इन दोनों जगहों पर आम आदमी पार्टी जीती। चांदनी चौक में बीजेपी को कांग्रेस ने हरा दिया। सिर्फ़ शाहदरा में बीजेपी जीत पाई। मोदी के इस जादू का क़ायम रहना बहुत ज़रूरी है कि चार में से तीन सीट पार्टी हार जाए। लहर है भई, लहर। इसे ही कहते हैं लहर।

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Bhargava Chandola with Aap West Vinod Nagar and 14 others

.................प्रेस-विज्ञप्ति........... दिनांक 8-12-2013

आम आदमी पार्टी की "जीत का जश्न शालीनता के साथ"


दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी "AAP" को 28 सीटों पर जीत | आम आदमी पार्टी को मिलता जनसमर्थन देश में परिवर्तन की लहर की बुनियाद डाल चुकी है देश की जनता को हार्दिक बधाई |

सभी आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों ने परिवर्तन की लहर की जीत की खुशी में आम आदमी पार्टी के प्रदेश कार्यालय उत्तराँचल शोपिंग कॉम्प्लेक्स, विधानसभा रोड, देहरादून में सभी देशवाशियों को बधाई के साथ एक-दुसरे का मुह मीठा कर बधाई दी, तत्पश्चात पार्टी के समस्त कार्यकर्त्ताओं ने रिछ्पना पुल से विधानसभा होते हुवे जीत के नारे लगाये और आम लोगों को मुह मीठा कर बधाई दी और लोगों से कहा ये आम आदमी की जीत है आपकी जीत है |


इस मौके पर आम आदमी पार्टी के गणेश काला, ओंकार भाटिया, सोमेश बुडाकोटी, हिमांशु भटनागर, आर्यन कोठियाल, भीम सिंह रावत, सुनील काला, हरि सिमरन सिंह, मयंक नैथानी, सुराज पंखोली, अश्वनी सिंह, प्रकाश तिवारी, राजेन्द्र सिंह बिष्ट, हर्देश कुमार शर्मा एवं भार्गव चन्दोला उपस्थित रहे | इससे पहले आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने घंटाघर पर, प्रेमनगर, ऋषिकेश एवं उत्तराखंड के सभी जिलों एवं ब्लाकों में शालीनता पूर्वक जश्न मनाया एवं एक-दुसरे को बधाई दी |

आम आदमी का संघर्ष आम आदमी के लिए |

आम आदमी की जीत आम आदमी के लिए |

आम आदमी का समर्थन आम आदमी के लिए |.

धन्यवाद सहित प्रकाशन हेतु,


भार्गव चन्दोला-9411155139

प्रवक्ता (आ.प्र.स. उत्तराखंड)

आम आदमी पार्टी उत्तराखंड|

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