Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Saturday, June 29, 2013

किधर गुम हो गये अदानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला

किधर गुम हो गये अदानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला


संजीव पांडेय

संजीव पांडेय

संजीव पांडेय, लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवम् राजनीतिक विश्लेषक हैं।

उत्तराखण्ड की भयानक त्रासदी के बीच तीन खबरें सामने आयीं। एक खबर थी अमिताभ बच्चन ने पचास करोड़ रुपये का एक बँगला खरीदा। दूसरी खबर थी, कुछ कॉरपोरेट हाउस के हेलिकॉप्टर इस त्रासदी में लोगों को निकालने के नाम पर लूट रहे हैं। एक खबर आयी कि एक खास लॉबी को फायदा करने के लिये सरकार ने नेचुरल गैस की कीमतों में अगले साल से इजाफा करने का फैसला लिया है। ये खास कॉरपोरेट लॉबी कौन है ये सारों को पता है। लेकिन इन सब के बीच एक खबर गुम थी। यह गुम खबर ज्यादा चोट पहुँचाने वाली थी। यह गुम खबर यह थी कि एक भी कॉरपोरेट हाउस उत्तराखण्ड त्रासदी में लोगों की मदद के लिये सामने नहीं आया। हजारों लोग मर गये, पहाड़ों के गाँव बर्बाद हो गये। लेकिन किसी कॉरपोरेट हाउस ने न तो यात्रियों को निकालने में मदद की, न ही यह वादा किया कि बर्बाद हुये गाँवों के निर्माण में हम मदद करेंगे।

गौर करें। पहाड़ों की बर्बादी के लिये यही कॉरपोरेट हाउस जिम्मेवार है। अँधाधुँध मुनाफे का खेल यही कॉरपोरेट हाउस करवा रहे हैं। और तो और उत्तराखण्ड में मुख्यमन्त्री कौन बनेगा, इसका फैसला भी यही कॉरपोरेट हाउस कर रहे हैं।

उत्तराखण्ड त्रासदी के बाद नेताओं, सेना और सिविल सोसायटी की भूमिका की चर्चा खूब हुयी। लेकिन देश के संसाधनों के भयानक दोहन कर अरबों डॉलर के मालिक बने कॉरपोरेट हाउसों की चर्चा कहीं नहीं हुयी। आखिर इस त्रासदी के बाद कॉरपोरेट जगत क्यों उत्तराखण्ड में फँसे लोगों की मदद के लिये आगे नहीं आया। क्यों कॉरपोरेट हाउस यहाँ बर्बाद हुये स्थानीय लोगों के संकट को दूर करने के लिये आर्थिक मदद देने की घोषणा नहीं की। अदानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला सारे गायब हो गये। ये वही हैं जिन्होंने देश के प्राकृतिक संसाधनों का सबसे ज्यादा लाभ उठाया है। उत्तराखण्ड की पहाड़ियों को बर्बाद करने का ठेका भी देश के कुछ कॉरपोरेट हाउसों ने ले रखा है। छोटी-बड़ी पनबिजली योजनाओं के माध्यम से पहाड़ों को खोखला इन्हीं कॉरपोरेट हाउसों ने किया।

इस भयानक त्रासदी में लोगों को निकालने में सेना को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। सेना के पास हेलिकॉप्टर की कमी थी। अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, अदानी, टाटा, बिड़ला, जेपी इस त्रासदी में चाहते तो सैकड़ों हेलिकॉप्टर लोगों को मुसीबत से बाहर निकालने के लिये लगा देते। लेकिन यह नहीं हुआ। जिन कॉरपोरेट हाउसों ने हेलिकॉप्टर लगाया उन्होंने मुनाफे का खेल किया। मुसीबत में पड़े यात्रियों से निकालने के लिये दो-दो लाख रुपये लिये। इसकी शिकायत कई यात्रियों ने घर पहुँचने के बाद किया। जबकि इन पहाड़ों को बर्बाद इन कॉरपोरेट हाउसों की पनबिजली योजनाओं ने किया। इससे निकलने वाले मलबे को वहीं का वहीं छोड़ दिया गया। जब भयानक पानी आया तो यही मलबा लोगों की जान की आफत बन गया।

जल, जंगल और जमीन के दोहन में कॉरपोरेट हाउसों ने सारा रिकार्ड तोड़ दिया है।सच्चाई यह है कि नरेंद्र मोदी भी इनके काबू है तो राहुल गांधी भी इनके हुक्मबजाऊ हैं। देश के नौकरशाही इनके इशारों पर नाचती है। सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, कानून इनकी मर्जी से बनेगा। अपनी मर्जी से कानून और नीति बनाकर जल, जंगल और जमीन को बर्बाद करने में ये घराने लगे हैं। उत्तराखण्ड में निशंक हों या खंडूरी या आज बहुगुणा, ये सारे कॉरपोरेट घराने के इशारे पर आज तक नाचते रहे। मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड का कौन बनेगा ये फैसला कॉरपोरेट घराने करते रहे। सैकड़ों करोड़ रुपये कॉरपोरेट घरानों ने यहाँ पर मुख्यमन्त्री बनाने में लगा दिए। बस उनकी मर्जी का मुख्यमन्त्री बन जाये। पार्टियों के हाईकमान ने उत्तराखण्ड में कॉरपोरेट घरानों के मर्जी के मुख्यमन्त्री बना दिये। उसके बाद इनके ही मजे रहे। कुछ समझदार लोगों ने हस्तक्षेप किया तो कुछ पनबिजली योजनाएं रोकी गयीं। नहीं तो सरकारें तो पूरी तरह से पहाड़ों को बर्बाद करने में लग गयीं थी। ये तो प्रणव मुखर्जी जैसे लोग थे जिन्होंने कुछ पनबिजली योजनाओं को रोका।

लोगों को निकालने में अभी तक सेना कामयाब रही है। लोग निकाल लिये गये। लेकिन सही चुनौती अब आयेगी। उत्तराखण्ड के गाँव बर्बाद हो गये। इन गाँवों को बसाने में भारी चुनौती होगी। सड़कें बर्बाद हो गयीं। अब भी कॉरपोरेट घराने चाहें तो गाँवों के बसाने का जिम्मा ले ले। सरकारों को पैसे देने के बजाए इनके प्रतिनिधि सीधे गाँवों में जायें और लोगों की सेवा कर बतायें कि सिर्फ लूटने का ठेका उनके पास नहीं है वो देश की सेवा में भी माहिर हैं। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक किसी ने यह घोषणा नहीं की है। मुकेश अंबानी देश के संसाधनों का दोहन कर अरबों डॉलर के मालिक बन सकते हैं। मुंबई में बड़ी अट्टालिका बना सकते हैं। लोगों के टैक्स से चलने वाली पुलिस फोर्स और एनएसजी के कमाण्डों अपनी सुरक्षा में ले सकते हैं। लेकिन मुसीबत में पड़े लोगों को मदद करने के लिये आगे नहीं आयेंगे।

इन घरानों ने लाखों करोड़ रुपये के टैक्स का छूट सरकार से ले लिया। लेकिन कुछ करोड़ रुपये लोगों की मदद के लिये नहीं दिये। सरकार गरीबों की सब्सिडी तो खत्म कर रही है। लेकिन अमीर कॉरपोरेट घरानों को लाखों करोड़ की टैक्स छूट दे रही है। इसके बावजूद इनके पेट में चवन्नी खर्च करने से ही दर्द हो जाता है। जबकि उत्तराखण्ड में बीते चुनाव के बाद परिणाम आये थे तो मुख्यमन्त्री कौन होगा और सरकार किसकी बनेगी इस पर कारपोरट घरानों ने सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर दिये। लेकिन यही लॉबी भयानक आपदा में जनता की मदद के लिये एक पैसा खर्च करने को  राजी नहीं हैं।

इस भयानक त्रासदी के बाद उत्तराखण्ड में बनाये गये पन बिजली योजनाओं पर बहस हो रही है। निश्चित तौर पर उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संतुलन इन पनबिजली योजनाओं के कारण गडबड़ाया है। इससे उत्तराखण्ड में सक्रिय डैम लॉबी घबराहट में है। उन्हें डर है कि इसके बाद डैमों के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे पर्यावरणविद, साधू संत और तेज होंगे। उसे रोकने की कवायद शुरू हो गयी हैं। कुछ अखबारों के माध्यम से यह बताया जा रहा है कि अगर उत्तराखण्ड में डैम नहीं होते तो आधा उत्तर प्रदेश बर्बाद हो जाता। पश्चिमी उतर प्रदेश के सारे शहर डूब जाते। अखबारों के मुताबिक इन डैमों ने भारी बहाव को ऊपर ही रोक लिया। अगर ये पानी सीधे नीचे आता तो हरिद्वार और ऋषिकेष समाप्त हो जाता। मुजफ्फरनगर, मेरठ, आदि कई शहर डूब जाते। लेकिन यह नहीं बताया गया कि डैम बनाने के लिये किये धमाकों से पहाड़ों को कितना नुकसान हो गया। साथ ही डैमों के मलबों को नहीं हटाने से बाढ़ आने के बाद कितने हजार लोग मलबे में दब गये। आखिर ये क्यों नहीं बताया जा रहा है कि दुनिया के कई विकसित देश अब बड़े डैम से तौबा कर रहे हैं। देश के विकास के लिये बिजली जरूरी है। लेकिन इस विकास के नाम पर देश की प्रकृति को पूरी तरह से नष्ट करना कहाँ तक उचित होगा।


कुछ पुराने महत्वपूर्ण आलेख

No comments:

Post a Comment