Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Friday, August 17, 2012

कोयला महाकाव्य के नायक भी हर महाकाव्य की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम!

कोयला महाकाव्य के नायक भी हर महाकाव्य की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम!

पलाश विश्वास

कोयला माफिया की बात करें तो जेहन में फौरन धनबाद और कोरबा के नाम कौंधते हैं। अनुराग कश्यप की फिल्म ट्विन वासेपुर गैंग्स ने त कोयला माफिया का दायरा धनबाद के एक मोहल्ले और दो परिवारों के खूनी रंजिश में सीमाबद्ध कर दिया। पर  कोयला आवंटन मामले में कैग की रिपोर्ट के बाद सरकार कितनी मुश्किल में फंसी यह तो कहना मुश्किल है, पर कोयला माफिया के राष्ट्रीय चेहरे की झलक दीखने लगी है, जिसके आगे​ ​ धनबाद कोरबा के माफिया बेहद बौने हो गये हैं।सीएजी की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि कॉर्पोरेट घरानों को कोयले की खानें सरकार ने कौड़ियों के भाव दी  है। इस रपट से खूनी रंजिश के बजाय कारपोरेट वार की महाभारती पृष्ठभूमि भी साफ नजर ​​आती है। रिलायंस को यूएमपीपी के ठेके देने में नियमों की धज्जियां उड़ा दी गई।इंदिरा जमाने में रिलांयस के हैरतअंगेज उत्थान को भी लोग भूल चुके हैं, जिसे अब तरह तरह के माध्यमों में महिमामंडित किया जाता है। ये आवंटन 2004 से 2006 के बीच हुए जब कोयला मंत्रालय खुद पीएम मनमोहन सिंह देख रहे थे।रिलायंस पावर ने अतिरिक्त कोयला आवंटन पर सीएजी का खंडन किया  है। कोयला खानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से यह खेल जारी है, जिससे देश की राजनीति चलती रही है। लोग शायद यह किस्सा भूल​ ​ चुके होंगे कि कैसे केंद्र में काबिज एक प्रधानमंत्री से धनबाद के मफिया सरताज के मधुरतम रिश्ते रहे हैं। तब सत्तादल के राष्ट्रीय अधिवेशन​ ​ के लिए धनबाद के कनात काफी चर्चा में आये थे।इस कैग रपट को बी भुला देने में शायद ज्यादा देर नहीं लगेगी। तमाम घोटालों से घिरी सरकार ने जो राजनीतिक और प्रशासनिक दक्षता उन घोटालों को रफा दफा करने में दिखाया है, किंचित देश चलाने और जनता की तकलीफों को दूर ​​करने में यही करतब दिखाया होता, तो विकास दर कथा में नियतिबद्ध न होते हम।​ कोयला महाकाव्य के नायक भी हर महाकाव्य की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम दीखते हों,तो यह परंपरा और संस्कृति दोनों के माफिक ठीक है और कारोबार के लिहाज से अत्यंत सुविधाजनक। इस कैग रपट से पहले पहले से संकट में फंसे कोल इंडिया को निजी बिजली कंपनियों को कोयला आपूरिति सुनिश्चित करने के लिए सीधे राष्ट्रपति भवन से डिक्री जारी हुआ था। पर इस कारपोरेट लाबिंइंग पर मीडिया और राजनीति दोनों ने ​​रणनीतिक मौन धारण किये रखा।अब मौन जरूर टूटता दीख रहा है, लेकिन हर घोटाले के बेपर्दा होने के बाद यह तो सत्ता समीकरण साधने की परंपरागत कवायद है, कालेधन की व्यवस्था को बदलने के लिए नहीं।कैग ने संसद में आज तीन रिपोर्ट पेश कीं, जिनमें कहा गया है कि निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है। इस पर रिलायंस पावर ने त्वरित प्रतिक्रिया में कहा कि अंकेक्षण आकलन में घरेलू कोयले के उत्पादन को बढ़ाने के हित को ध्यान में नहीं रखा गया। अपने बचाव में दिल्ली इंटरनैशनल एयरपोर्ट लि. (डायल) की नियंत्रक कंपनी जीएमआर ने नवंबर 2006 के उच्चतम न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें बोली प्रक्रिया को वैध और सही करार दिया गया था। सरकार की दलील है कि सीएजी का विंडफॉल गेन्स का दाव भ्रामक, अनुमानित और काल्पनिक है। सासन यूएमपीपी का 160 मीट्रिक टन सरप्लस कोयला सिर्फ 1,700 करोड़ रुपये था। वहीं सासन यूएमपीपी का 29,033 करोड़ रुपये का आकलन 1700 फीसदी ज्यादा है। कोल इंडिया की कीमतों पर नुकसान का अंदाजा लगाना गलत है। कोयला मंत्रालय कैप्टिव ब्लॉक के सरप्लस कोल पर पॉलिसी बना रहा है। माना जा रहा है कि सरकारी कंपनियों को बिना बोली लगाए कोल ब्लॉक मिलेंगे। वहीं कोल ब्लॉक के आवंटन में देरी के लिए कंपनियों को जिम्मेदार ठहराना गलत है।

बहरहाल कैग की रिपोर्ट के बाद सीएजी द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी का आरोप लगाने से बाजारों ने शुरुआती मजबूती गंवाई। कोयला ब्लॉक पाने वाली कंपनियों के शेयरों में आज खासी गिरावट देखी गई। बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर आर पावर का शेयर 5.60 फीसदी, जेएसपीएल का 4.25 फीसदी, टाटा पावर 3.71 फीसदी, जीएमआर इन्फ्रा 3.07 फीसदी और टाटा स्टील का शेयर 0.85 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुआ।बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स कारोबार के दौरान 140 अंक चढ़ने के बाद कोयला ब्लॉकों पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट आने के बाद 'घबरा' गया और अंत में यह मात्र 34 अंक की बढ़त के साथ बंद हुआ।वैसे तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट अक्सर हड़कंप मचाती रही हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसने सरकार के लिए परेशानियां पैदा की हैं। सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की कैग रिपोर्टों से काफी फजीहत हुई है। मामला चाहे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ी रिपोर्ट का हो या राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी अनियमितताओं का, कैग की रिपोर्ट ने सियासी गलियारों में खलबली मचाई। 2जी लाइसेंस और स्पेक्ट्रम आवंटन मसले से जुड़ी कैग की विवादास्पद रिपोर्ट 16 नवंबर, 2010 को संसद में पेश की गई। उससे दो दिन पहले संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ए राजा ने अपने पद से इस्तीफा दिया था क्योंकि इस रिपोर्ट के संसद में पेश किए जाने से पहले ही स्पेक्ट्रम आवंटन विवाद पर काफी हो-हल्ला मच रहा था। दरअसल उस वक्त तक मीडिया में भी 2जी स्पेक्ट्रम से जुड़ी खबरें सुर्खियां बनने लगी थीं। कोयला खदानों के विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट में 2G से भी बडे नुकसान की बात कही गई है।

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद सरकार पर कोयला ब्लाकों का आवंटन भारी पड़ गया है। मामला महज कोयला ब्लाकों के हस्तांतरण का नहीं है।खान परियोजनाओं के लिए पांचवी छठीं अनुसूचियों के खुला उल्लंघन,वनक्षेत्र के बेरहम सफाये से प्रकृति और मनुष्य के सर्वनाश और खनन अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम, वनाधिकार कानून, पंचायती राज कानून, पीसा, खान​ ​ सुरक्षा कानून के खुले उल्लंघन का जो कारोबार चलता है, वह राष्ट्रीय मापिया के बिना असंभव है। कर्नाटक के अवैध खदानों से खनन​ ​ उद्योग में सत्ता की गहरी पैठ उजागर हो ही चुकी है।​कैग रपट से तो महज इसका कारपोरेट चेहरा उजागर हुआ है। मुक्त बाजार में अकूत मुनाफा कमाने के लिए कारपोरेट को रंग बिरंगे राहत दिये जाने के इस स्वर्ण युग में जबकि राष्ट्रपति भवन से लेकर पंचायतों तक में औद्यौगिक घरानों की घुसपैठ है,विपक्ष और सत्तादल समान रुप से उनके हितों को सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते तो मामूली कैग रपट की क्या औकात कि इस स्वर्णिम व्यवस्था को बदल दें।​सीएनजी ने कोयला मंत्रालय को दोषी ठहराते हुए आरोप लगाया है कि सरकार ने बैंक गारंटी ही नहीं ली। सीएजी ने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाया है कि रिलायंस पावर को अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल की इजाजत दी गई। रिलायंस पावर को सासन यूएमपीपी में फायदा पहुंचाया गया है। सीएजी ने सरकार को सासन यूएमपीपी को आवंटित तीसरे कोल ब्लॉक की समीक्षा करने को कहा है। रिलायंस पावर को सासन यूएमपीपी से 29,003 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। रिलायंस पावर को अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल की इजातत के लिए नीलामी प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया। सीएजी ने सासन यूएमपीपी के लिए अतिरिक्त कोल ब्लॉक की इजाजत देने के लिए ऊर्जा मंत्रालय की खिंचाई की है। रिपोर्ट में ये भी आरोप लगाया गया है कि मुंद्रा, कृष्णापट्टनम पावर डेवलपर्स को अतिरिक्त जमीन दी गई है।रिलायंस पावर का कहना है कि एडवांस टेक्नोलॉजी की वजह से कंपनी के पास अतिरिक्त कोयला है। कंपनी को दिए गए कोयले के ब्लॉक्स को ईजीओएम से मंजूरी मिली थी। कोयले की मौजूदा कमी को देखते हुए सीएजी की रिपोर्ट निर्थक है। सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए कोयला ब्लॉक्स के आवंटन में कंपनी का कोई लेना-देना नहीं थी।
​​
​हमने अपनी पत्रकारिता धनबाद से शुरू की। कोयलांचल और कोयलाखानों में चार साल खपाये। राजनेताओं और कोयला माफिया के चोली दामन के साथ का चश्मदीद गवाह रहा हूं। बिना काम किये भुगतान से लेकर, खान दुर्घटनाओं और उन्हें रफा दफा करने के चाक चौबंद बंदोबस्त, ​​कोयला मजूर यूनियनों का खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी और अवैध खनन का कारोबार, सबकुछ देखा है।कोयला माफिया कहीं और कभी ​​स्थानीय नहीं हुआ।जैसा कि मीडिया रपटों और फिल्मी चाशनी में बताया जाता है। कोयला का गोरखधंधा हमेशा उन तारों की लंबाई और ​​ताकत पर निर्भर रहा है जो या तो सूबे की राजधानी से या फिर सीधे दिल्ली से जुड़े रहे हैं। संसद में पेश कैग की रिपोर्ट इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के फैसलों पर भी सवालिया निशान खड़े करती है। बोली के जरिये कोयला ब्लाक आवंटन के फैसले को लागू करने में हुई सात साल की देरी को लेकर भी कैग ने हैरानी जताई है।कोयला घोटाले पर कैग ने अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट शुक्रवार को संसद में पेश कर दी। रिपोर्ट में हालांकि सरकार को हुए नुकसान का आंकड़ा करीब तीन महीने पहले लीक हुई रिपोर्ट के आंकड़े से बेहद कम है। लीक हुई रिपोर्ट में निजी कंपनियों को 57 कोल ब्लाकों के आवंटन से 10.67 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का आंकड़ा सामने आया था। लेकिन, इस रिपोर्ट में केवल 1.86 लाख करोड़ का आंकड़ा है। कैग ने इसे सरकार को नुकसान नहीं बल्कि कंपनियों को हुआ फायदा बताया है। चूंकि कैग एक संवैधानिक संस्था है इसलिए यदि वह इसे सरकार को हुए नुकसान के रूप में पेश करती तो उसका असर सरकार के राजस्व संग्रह में हुए नुकसान के रूप में देखा जाता।कैग ने निजी कंपनियों को हुए फायदे का अनुमान ओपन कास्ट खनन के जरिये निकलने वाले कोयले की औसत उत्पादन लागत और 2010-11 के मूल्य के अंतर के आधार पर लगाया है। कैग ने प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये कोल ब्लाकों के आवंटन के फैसले तक पहुंचने में हुई देरी का सिलसिलेवार ब्योरा रिपोर्ट में प्रस्तुत किया है। इसमें कोयला मंत्रालय और पीएमओ के बीच हुए संवाद का पूरा ब्योरा शामिल है। 2004 से 2009 के दौरान एक बड़े अरसे तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोयला मंत्रालय का कामकाज भी देख रहे थे।सीएजी की रिपोर्ट ने देश में भूचाल ला दिया है। बीजेपी ने कोयला आवंटन घोटाले को अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग की। वहीं समाजवादी पार्टी जैसे सहयोगी ने भी केंद्र सरकार को घोटालेबाजों की सरकार तक करार दिया।सरकार ने कैग की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कोयला, विमानन तथा बिजली क्षेत्र की निजी कंपनियों को 3.06 लाख करोड़ रुपये का अनुचित लाभ देने की बात कही गयी है। सरकार का कहना है कि यह रिपोर्ट भ्रमित करने वाली है और गलत है। साथ ही यह भी कहा कैग अपने अधिकारों के दायरे में रहकर काम नहीं कर रहा है।

कोयला ब्लाक आवंटन सहित कैग की रिपोर्ट को लेकर विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निशाना बनाये जाने के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शुक्रवार को वरिष्ठ मंत्रियों और पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की।सोनिया गांधी के निवास पर हुई इस रणनीति बैठक में हिस्सा लेने वालों में रक्षा मंत्री ए के एंटनी, वित्त मंत्री पी चिदम्बरम, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल और संसदीय कार्य राज्य मंत्री वी नारायणसामी शामिल थे। यह बैठक कैग की रिपोर्ट संसद में आने के कुछ घंटे बाद हुई।विमानान मंत्रालय का कहना है कि दिल्ली एयरपोर्ट से संबंधित सभी मामलों पर फैसले ईजीओएम और कैबिनेट की ओर से लिए गए हैं। सीएजी की इन रिपोर्टों से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट्स पर बुरा असर होने के आसार हैं। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की तेज प्रगति में ऐसी रिपोर्ट रोड़ा बन सकती हैं। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने से पहले विमानन मंत्रालय की राय नहीं ली है। दिल्ली एयरपोर्ट के लिए मंगाई गई बोली पारदर्शी थी और सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में नीलामी प्रक्रिया पूरी हुई थी। वहीं एयरपोर्ट रेगुलेटर की ओर से डेवलपमेंट फीस तय की जाती है। डेवलपमेंट फीस तय करने में विमानन मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं होती। दिल्ली एयरपोर्ट पीपीपी के चलते एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को 3 लाख करोड़ रुपये का लाभ हुआ है।

इसी के मध्य कोयला खानों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच में तेजी लाते हुए सीबीआई ने उन वरिष्ठ अधिकारियों से शुक्रवार को पूछताछ की जो 2006-09 के दौरान कोयला मंत्रालय में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे।
सीबीआई सूत्रों ने कहा कि जांच एजेंसी ने सचिवों व संयुक्त सचिव सहित जांच समिति के सदस्यों से भी पूछताछ की।

सूत्रों ने कहा कि वे आज संसद में पेश की गई कैग की रपट का अध्ययन करेंगे, लेकिन तभी कोई मामला दर्ज करेंगे जब जांच के दौरान कुछ आपराधिक तथ्य सामने आते हैं।उन्होंने कहा कि उस दौरान कोयला खानों के आवंटन में शामिल मुद्दों को समझने के लिए जांच समिति के प्रमुखों से पूछताछ की गई।सूत्रों ने कहा कि जांच एजेंसी ने करीब 15 कंपनियों के नाम छांटे हैं जिन्होंने कथित तौर पर कोयला खदान आवंटन के नियमों का उल्लंघन किया और उनके अधिकारियों से पूछताछ जारी है।

सीबीआई ने केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा उसे सौंपी गई एक शिकायत के संबंध में अज्ञात लोगों के खिलाफ आरंभिक पूछताछ (पीई) दर्ज किया जो कि सीबीआई जांच शुरू करने का पहला कदम है।

कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कच्चे तेल को छोड़कर खदानों के आवंटन के लिए अब तक बोली प्रक्रिया के तौर तरीकों को नहीं अपनाया जा सका है। हालांकि कोयला ब्लॉकों की बोली प्रक्रिया के लिए वैधानिक संशोधन के जरिये मंजूरी दी जा चुकी है। कोयला मंत्रालय ने कहा कि संप्र्रग सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 2004 में प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिये कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर विचार किया गया था।2004 में जब इन कोयला ब्लॉकों का आवंटन हुआ था, तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही कोयला मंत्रालय का प्रभार संभाल रहे थे। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा, 'इसके लिए प्रधानमंत्री सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। अब वह किसी तर्क के पीछे नहीं छिप सकते और 2जी मामले की तरह इसमें उनके पास राजा या चिदंबरम जैसी ढाल भी नहीं है।' प्रधानमंत्री के बचाव में उतरे प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने कहा कि कैग अपने कार्यक्षेत्र के बाहर जाकर काम कर रहा है।

इसी बीच टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने जमीन अधिग्रहण व कोयला ब्लॉक की नीलामी को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा है कि इससे देश के पावर सेक्टर के विकास में रुकावट पैदा हो रही है।टाटा पावर की सालाना आम बैठक में टाटा ने कहा, 'बढ़ती ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए मुख्य ईंधन कोयला। जमीन अधिग्रहण तथा कोयला ब्लॉक की नीलामी को लेकर सवाल है। यह चिंता का कारण है।' उन्होंने कहा, 'सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराना चुनौती है।'टाटा ने यह बात ऐसे समय में कही है जब कैग की संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला ब्लाक बिना प्रतिस्पधीर् बोली के देने से सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। रिपोर्ट में टाटा समूह की टाटा स्टील तथा टाटा पावर के भी नाम हैं जिन्हें विभिन्न राज्यों में कोयला ब्लॉक मिले हैं। टाटा ने कहा कि टाटा पावर के सामने जमीन अधिग्रहण तथा पर्यावरण मंजूरी प्रमुख चुनौती है।मोनेट इस्पात के संदीप जाजोडिया का कहना है कि सीएजी द्वारा 1.86 लाख करोड़ रुपये के घाटे के अनुमान को लेकर कई सवाल हैं। अगर कोल ब्लॉक्स का आवंटन रद्द किया जाता है तो कंपनियों को भारी नुकसान होगा। किसी भी कंपनी ने कोयला खदानों का दुरुपयोग नहीं किया है। मंजूरी मिलने में देरी होने की वजह से कोयला खदानों में उत्पादन लटकता है, जिसको दूर करने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए।

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सरकार की नीतियों में खामी को सामने लाते हुए कहा कि यदि कोयला क्षेत्र का आवंटन मनमाना तरीके से न कर प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर किया जाता तो सरकार को 1.85 लाख करोड़ रुपये का राजस्व हासिल होता। साथ ही कैग ने अनिल अंबानी की कंपनी को करीब 29,033 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाए जाने की बात भी कही है।रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह [ईजीओएम] ने अनिल अंबानी की इस कंपनी को यह सहूलियत 2008 में मध्य प्रदेश सरकार के कहने पर दी थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को नवंबर, 2007 में इस बाबत खत लिखकर अनुरोध किया था। शुक्रवार को राज्यसभा में कोल ब्लॉक आवंटन के अलावा पावर और सिविल एविएशन पर भी कैग की रिपोर्ट पेश की गई। बिजली और विमानन के मामले में भी कैग ने सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये पर सवाल खड़े किए हैं।कोयले पर कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्लॉकों की प्रतिस्पर्धी तरीके से नीलामी न कराने की वजह से प्राइवेट कंपनियों को 1 लाख 85 हजार 591 लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ और सरकार को इतने का ही नुकसान हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, मनमानी पूर्ण आवंटन के बजाय इन खदानों की नीलामी की गई होती तो सरकारी खजाने में करीब 1.86 लाख करोड़ रुपये का ज्यादा राजस्व आता। कैग ने अपनी रिपोर्ट में रिलायंस पावर, टाटा स्टील, टाटा पावर, भूषण स्टील, जिंदल स्टील ऐंड पावर, हिंडाल्को और एस्सार ग्रुप समेत 25 कॉर्पोरेट घरानों को फायदा मिलने की बात कही है।कैग ने कहा है कि उसने यह अनुमान कोल इंडिया की वर्ष 2010-11 के दौरान कोयला उत्पादन की औसत लागत और खुली खदान से कोयला बिक्री के औसत मूल्य के आधार पर लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 'यदि कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाने के कई साल पहले लिए गए फैसले पर अमल कर लिया जाता तो कंपनियों को होने वाले इस अनुमानित वित्तीय लाभ का कुछ हिस्सा सरकारी खजाने में पहुंच सकता था।'

कैग के मुताबिक कोयला ब्लाक प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये आवंटित करने की नीति लागू करने में हुई देरी का फायदा निजी कंपनियों को हुआ। कैग ने रिपोर्ट में कोयला सचिव के 28 जून, 2004 के उस नोट का जिक्र भी किया है जिसमें इस नीति को स्वीकार किया गया था। सरकार इसे 2012 में लागू करवा पाई। जबकि, कैग के मुताबिक इस नीति को 2006 तक लागू हो जाना चाहिए था। कोयला ब्लाकों का आवंटन 2005 से 2009 के बीच हुआ था।पीएमओ ने इस रिपोर्ट को शुरुआती रिपोर्ट बताते हुए कहा है कि कैग ने अपनी सीमाओं से परे जाकर काम किया है। लेकिन, इससे कैग रिपोर्ट की गंभीरता खत्म नहीं होती। जानकारों का मानना है कि सरकार ने इसे संसद में पेश किया है और वह इस पर संज्ञान लेते हुए आगे की कार्रवाई कर सकती है जैसा कि 2जी घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में हुए घपले पर कैग की रिपोर्ट के मामले में हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार सासन अल्ट्रा मेगा पावर परियोजना के लिए सालाना 1.6 करोड़ टन कोयले की जरूरत को देखते हुए सरकार ने रिलायंस पावर को मोहर, मोहर-अमलोहरी एक्सटेंशन और छत्रसाल की तीन कोयला खदानें दी थीं। लेकिन रिलायंस ने इनके कोयले का इस्तेमाल अपनी दूसरी परियोजनाओं के लिए करने की अनुमति लेकर 29,033 करोड़ का अनुचित फायदा उठा लिया। खास बात यह है कि अन्य परियोजनाओं के लिए बिजली टैरिफ आधारित बिडिंग के जरिए बेची जानी थी।

सासन व मुंद्रा के ठेके देने में कदम-कदम पर नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया। पहली गड़बड़ी कंसल्टेंसी का ठेका देने में हुई, जिसे सबसे कम बोली लगाने के बावजूद इक्रा के बजाय अन्‌र्स्ट एंड यंग [ईएंडवाइ] को दे दिया गया। यही नहीं, कृष्णापत्तनम और तिलैया यूएमपीपी की कंसल्टेंसी बिना निविदा मंगाए ही ईएंडवाइ को दी गई। वैसे, बाद में पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन [पीएफसी] ने गड़बड़ियों के कारण ईएंडवाइ को तीन साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया।

निविदा प्रपत्रों के लिए विधि विभाग से जरूरी परामर्श नहीं लिया गया। उलटे विद्युत मंत्रालय समय-समय पर शर्तो में ढील देता रहा। बोली लगाने वाली कंपनियों के लिए शुरू में यह शर्त थी कि इनमें मूल कंपनी की 51 फीसद हिस्सेदारी होनी चाहिए। बाद में इसे 26 फीसद कर दिया गया। यूएमपीपी द्वारा क्षमता का कम से कम 85 फीसद बिजली उत्पादन करने की शुरुआती शर्त को भी बाद में 80 और फिर 75 प्रतिशत कर दिया गया। तिलैया और कृष्णापत्तनम में चुनी गई कंपनी पर इक्विटी-लॉक इन की अवधि को 12 से घटाकर 5 साल कर दिया गया। चारों प्रोजेक्ट में कंपनियों को दो साल में ही अपनी इक्विटी 51 से 26 फीसद करने की सुविधा दे दी गई। कंपनियों के लिए नेट वर्थ की शर्त भी बहुत ढीली रखी गई। सार्वजनिक निजी भागीदारी [पीपीपी] प्रोजेक्ट में वित्त मंत्रालय की शर्त है कि बोली लगाने वाली की नेट वर्थ परियोजना लागत की 15 प्रतिशत होनी चाहिए। लेकिन यूएमपीपी के मामले में इसे पांच प्रतिशत रखा गया। यानी 20 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट के लिए केवल 1,000 करोड़ की नेट वर्थ। और तो और मुंद्रा व कृष्णापत्तनम यूएमपीपी के मामले में कंपनियों को क्रमश: 1,538 एकड़ और 1,096 एकड़ फालतू जमीन भी दे दी गई।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर जहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से तत्काल इस्तीफे की मांग की है, वहीं सरकार ने सीएजी के निष्कर्ष को खारिज कर दिया।कोयला आवंटन मामले में कैग की रिपोर्ट के बाद मुश्किल में फंसी सरकार ने विपक्षी पार्टियों की कई राज्य सरकारों को भी लपेटे में ले लिया है। साथ ही सरकार ने कैग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि इस बारे में सरकार की नीति पारदर्शी थी और उसमें कुछ गलत नहीं हुआ।कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने जोर देकर कहा कि कोल ब्लॉक आवंटन इससे बेहतर तरीके से नहीं हो सकता था। जायसवाल ने कहा कि कई राज्य सरकारों ने भी टेंडर पॉलिसी का विरोध किया था। विरोध करने वालों में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की सरकारें थीं। इन राज्य सरकारों का कहना था कि टेंडर की प्रक्रिया से कोयले की कीमत बढ़ जाएगी और और बिजली भी महंगी हो जाएगी, जो आम जनता के हित में नहीं है। गौरतलब है कि उस वक्त राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार और पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी।कोयला मंत्री ने कहा कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए अपनाई गई नीति में कोई खामी नहीं थी। कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए इससे पारदर्शी और नीति नहीं हो सकती थी, क्योंकि 2004 में प्रतिस्पर्धी बोली की व्यवस्था ही नहीं थी। जायसवाल ने यहां तक कहा, उस वक्त 3 राज्य सरकारों का कहना था कि तत्कालीन आवंटन नीति में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। संघीय ढांचा में हमें राज्यों की भावनाओं का सम्मान करना पड़ता है।
​​


गौरतलब है कि कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए प्रतिस्पर्धी बोली व्यवस्था को समय पर लागू करने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यदि बोली के जरिए आवंटन की प्रक्रिया लागू कर दी जाती तो 1.86 लाख करोड़ रुपये का कुछ हिस्सा सरकार के खजाने में आ सकता था।

जायसवाल ने कहा कि उनका मंत्रालय कैग की रिपोर्ट के सभी पहलुओं से सहमत नहीं है। ऑडिटर ने जो आकलन किया है उसमें कोयला ब्लॉक आवंटन के कुछ ही पहलुओं को आधार बनाया गया है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियों को कोयला ब्लॉकों के विकास का काम इसलिए दिया गया, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया देश की बढ़ती जरूरत को पूरा नहीं कर पा रही थी। सीएजी के आकलन पर जायसवाल ने कहा कि ये आंकड़े काल्पनिक हैं। जब कोयला खदान चालू नहीं थे, ऐसे में किसी किस्म के नफे-नुकसान का आकलन करना सही आइडिया नहीं है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियों को आवंटित 57 कोयला ब्लॉकों में से अभी सिर्फ एक से कोयला निकाला जा रहा है।

एविएशन पर कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर यात्रियों से डिवेलपमंट फीस वसूलने की इजाजत देकर जीएमआर के नेतृत्व वाली डायल को 3415.35 करोड़ का फायदा पहुंचाया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा करके नीलामी की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। सरकारी ऑडिटर की रिपोर्ट में कहा गया है कि डायल को 100 रुपये सालाना लीज पर जमीन उपलब्ध कराई गई और इससे वह 60 साल के दौरान 1 लाख 63 हजार 557 करोड़ रुपये कमा सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों को धता बताकर सिविल एविएशन मंत्रालय ने डायल को डिवेलपमंट फीस लगाने की मंजूरी दी। पावर पर भी कैग ने सरकार को लपेटा है। रिपोर्ट में अनिल अंबानी के नियंत्रण वाली रिलायंस पावर लिमिटेड (आरपीएल) को आवंटित खदानों से कोयला सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट (यूएमपीपी) डाइवर्ट किए जाने का मसला उठाया गया है।

इसके अलावा यह भी आरोप लगा है कि 'महाराजा' से भिखारी बन चुकी इंडियन एयरलाइंस की इस हालत के लिए पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जिम्मेदार हैं। एआई के पूर्व प्रमुख संजीव अरोड़ा ने वर्ष 2005 में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.के. चतुर्वेदी को चिट्ठी लिखकर प्रफुल्ल पटेल और उनके ओएसडी के. एन. चौबे की शिकायत की थी। उन्होंने पटेल पर आरोप लगाया था कि एआई को नुकसान पहुंचाने वाले कई फैसले लेने के लिए उन्हें और एआई बोर्ड को मजबूर किया गया।

अरोड़ा ने आरोप लगाया है कि प्रफुल्ल पटेल ने जरूरत से ज्यादा विमान खरीदने को मजबूर किया और इंडियन एयरलाइंस को फायदा मिलने वाले रूट उड़ान भरने से रोका गया। इस पूरी प्रक्रिया में प्राइवेट एयरलाइंस को फायदा पहुंचाया गया। चिट्ठी सामने आने के बाद अब लोकसभा में विपक्ष के दो सांसद प्रबोध पांडा (सीपीआई) और निशिकांत दुबे ने सीवीसी से संजीव अरोड़ा के आरोपों की जांच कराने की मांग की है।

डायल को लीज पर दी गई जमीन के बारे में कैग की रिपोर्ट को सिविल एविएशन मिनिस्ट्री ने गुमराह करने वाला करार दिया है। रिपोर्ट में कैग का कहना है कि दिल्ली इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डायल) को सस्ते में जमीन लीज पर दिए जाने से सरकार को 1.63 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। मंत्रालय ने कहा कि कैग ने उसके अधिकारियों के साथ बातचीत में कई मसलों- मसलन जमीन, एरोनॉटिकल, नॉन-एरोनॉटिकल सर्विस और बिडिंग की शर्तों का जिक्र नहीं किया। एविएशन सेक्रेटरी सचिव नसीम जैदी ने कैग विनोद राय को लिखी चिट्ठी में कहा है कि कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट में इन मुद्दों को शामिल किया गया है। हालांकि, ये मसले ऐसे हैं जिन पर या तो विचार-विमर्श नहीं हुआ या फिर मंत्रालय को इन पर अपनी स्थिति साफ करने का मौका नहीं दिया गया।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय का कहना है कि उसे सफाई देने का मौका नहीं दिया गया। ऐसे में अंतिम रिपोर्ट में शामिल किए गए मुद्दे तथ्यों की दृष्टि से सही नहीं हैं। जैदी द्वारा राय को लिखी गई चिट्टी में कहा गया है कि कैग के नतीजों में कुछ ऐसे मुद्दों को शामिल किया गया है, जिन पर ऑडिट के दौरान विचार नहीं हुआ। इसके मुताबिक, रिपोर्ट में जो 1,63,560.19 करोड़ रुपए के आंकड़े का जिक्र किया गया है, जो वास्तव में गुमराह करने वाला है।

गौरतलब है कि कैग की इस रिपोर्ट को अभी संसद में पेश किया जाना बाकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सरकार डायल को 100 रुपए सालाना की रियायती दर पर जमीन लीज पर देती है, तो उसे 1.63 लाख करोड़ रुपए के रेवेन्यू का नुकसान होगा। माना जा रहा है कि मंत्रालय ने कैग से इन मुद्दों पर सफाई देने को कहा है। साथ ही, उसने कहा है कि ऑडिटर द्वारा उठाए गए मुद्दों पर उसे स्पष्टीकरण का मौका दिया जाए।
​​

No comments:

Post a Comment