विजय बहुगुणा की मुश्किल डगर
- SUNDAY, 13 MAY 2012 14:01
हरीश रावत गुट ने अभी तक जो माहौल बना रखा है उससे तो यही लग रहा है कि प्रदेश सरकार का पांच साल चलना मुश्किल है. कोई भी परिस्थिति या तो सरकार गिरा सकती है या फिर नेतृत्व परिवर्तन करवा सकती है. यशपाल आर्य के लिए भी हरीश रावत ने सीधी चुनौती पेश कर दी है...
नरेन्द्र देव सिंह
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं . हरीश रावत गुट खुलेआम उनको तरह-तरह से चुनौती दे रहा है. हरीश रावत गुट के नेता, विधायकों की अनुशासनहीनता के चलते प्रदेश कांग्रेस में अस्थिरता का माहौल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
मई के पहले हफ्ते में विजय बहुगुणा कुमाऊं मण्डल के दौरे पर पहुंचे. हालांकि उनका मकसद विकास योजनाओं की घोषणाओं की आड़ में अपना जन समर्थन बढ़ाना था. इस दौरे के दौरान जब मुख्यमंत्री पिथौरागढ़ या कहें हरीश रावत के गढ़ में पहुंचे तो उन्हें यह अहसास हो गया कि विरोधी गुट अभी भी उन्हें बख्शने के मूड में नहीं है. पिथौरागढ़ जिले के तीनों कांग्रेसी विधायकों व हरीश रावत के पुत्र व यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आनन्द रावत ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया.
पिथौरागढ़ जिले के तीनों कांग्रेसी विधायक मयूर महर, नारायण रामदास और हरीश धामी व यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आनन्द रावत मुख्यमंत्री के जन समस्याएं सुनने के दौरान ये नेता बीच कार्यक्रम से ही उठकर चले गये. इन लोगों का कहना है कि जिला प्रशासन व संगठन के कुछ नेताओं के व्यवहार के कारण ऐसा करना पड़ा.
उक्रांद(पी) कोटे के मंत्री प्रीतम सिंह पंवार का भी रवैया मुख्यमंत्री को परेशानी में डालने वाला रहा है. अपने मंत्रालय को संभालने के साथ-साथ वह हरीश रावत के मुख्यमंत्री विरोधी अभियान में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. उन्होंने नौकरशाही पर निशाना साधते हुए सीधे सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. पहले कांग्रेस के तीन विधायकों ने मुख्यमंत्री पर अपने क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाया और अब प्रीतम सिंह पंवार ने एक तरह से सरकार में अव्यवस्थाओं को सबके सामने ला दिया.
हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य जो की इस संकट की घड़ी में मुख्यमंत्री के साथ पूरी मुस्तैदी से खड़े हैं, उन्होंने अनुशासनहीनता की बातों को नकार दिया है. यह बात अलग है कि कुछ दिनों पूर्व मुख्यमंत्री से अपनी उपेक्षा को लेकर वो भी नाराज हो गये थे.
मुख्यमंत्री विरोधी इस अभियान में हरीश रावत गुट के नेता व विधायक अब विरोध का अलग तरीका अपना रहे हैं. सरकार गठन के कुछ दिनों बाद तक इन लोगों ने हरीश रावत को मुख्यमंत्री न बनाये जाने पर सीधे तौर पर बगावत की थी. लेकिन अब ऐसा करना ठीक नहीं होगा, कुछ ऐसा सोच कर हरीश रावत गुट क्षेत्र के विकास, सरकारी कार्यों में अव्यवस्थाओं को मुद्दा बना रहे हैं. इससे विरोध भी जारी रहेगा और जनता की नजरों में अच्छे भी बने रहेंगे.
धारचूला के विधायक हरीश धामी ने मुख्यमंत्री पर सीमान्त क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाया और खुद के इस्तीफे की भी धमकी दे दी. कुछ दिनों पूर्व चम्पावत के कांग्रेसी विधायक हेमेश खर्कवाल ने भी खुल मंच से कहा था कि ''मुख्यमंत्री के मसले पर एक बार फिर से सोचा चाहिए.''
चुनाव परिणाम के दो महीने के बाद भी विपक्षी दल का नेता तय नहीं कर पाई भाजपा के लिये यह सारी परिस्थितियां सकून देने वाली लग रही हैं . भाजपा में भी अन्दर ही अन्दर असन्तोष चल रहा है, लेकिन कांग्रेस की नौटंकी के आगे अभी यह बहुत छोटा लग रहा है.
हरीश रावत गुट ने अभी तक जो माहौल बना रखा है उससे तो यही लग रहा है कि प्रदेश सरकार का पांच साल चलना मुश्किल है. कोई भी परिस्थिति या तो सरकार गिरा सकती है या फिर नेतृत्व परिवर्तन करवा सकती है. यशपाल आर्य के लिए भी हरीश रावत ने सीधी चुनौती पेश कर दी है. सांसद प्रदीप टम्टा के अलावा कांग्रेस के अधिकांश दलित विधायक हरीश रावत के ही साथ हैं. प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी व खाली पड़ा कैबिनेट पद पर इस गुट की नजर लगी हुयी है. यह दोनों पद भी हरीश रावत अपने ही गुट में लाना चाहेंगे. अभी आने वाले समय में और भी कई घटनाक्रम देखने को मिलेंगे.
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