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Monday, May 14, 2012

तब भी तरक्‍कीपसंद कॉमरेड तुम्‍हारे खिलाफ थे, आज भी हैं!

http://mohallalive.com/2012/05/14/a-letter-to-manto-by-prakash-k-ray/

 असहमतिशब्‍द संगतस्‍मृति

तब भी तरक्‍कीपसंद कॉमरेड तुम्‍हारे खिलाफ थे, आज भी हैं!

14 MAY 2012 2 COMMENTS

प्रकाश के रे का खत सआदत हसन मंटो के नाम


महबूब मंटो,
सलाम,

मेरी तरफ से सौवें जन्मदिन की मुबारकबाद कबूल करो। हां, थोड़ी देर हो गयी। बात यह है मंटो, असल में मैं तुम्हें कोई मुबारकबाद भेजने वाला नहीं था। शायद मिट्टी के नीचे दबे तुम अब भी खुदा से बड़ा अफसानानिगार होने के अपने दावे या खुशफहमी से जिरह कर रहे होगे। ऐसे में तुम मेरा खत क्या पढ़ते! लेकिन बात कुछ ऐसी हुई कि बिना लिखे रहा न गया। बात पर आने से पहले यह साफ कर दूं कि मैं तुम्हें 'तुम' कहकर क्यों लिख रहा हूं। क्या पता तुम्हारे नाम पर दुकान चलाने वाले इसी बात पर मेरे खिलाफ कोई फतवा जारी कर दें। इसका सीधा कारण यह है कि तुम 'अकेला' रहते और अपने लिए 'सही जगह' खोजते थक कर जिस दोपहर सो गये, तब तुम्हारी उम्र मुझसे बहुत अधिक न थी। मैं उसी मंटो को जानता हूं, इसी कारण तुम कहकर बुलाना तुम्हारे जैसे यारबाश के लिए सबसे सही तरीका हो सकता है। बहरहाल, अब उस बात पर आता हूं, जिसकी वजह से यह खत लिखना जरूरी समझा।

मेरे मुल्क की सरकार ने तुम्हारे जन्मदिन पर कुछ ऐसा जलसा किया, जिससे तुम्हारी शान दोबाला हो गयी। कसम से, अगर तुम होते तो झूम उठते। मेरे मुल्क से मेरा मतलब हिंदुस्तान से है, जिसके बारे में तुम कहते थे, 'मेरा नाम सआदत हसन मंटो है और मैं एक ऐसी जगह पैदा हुआ था, जो अब हिंदुस्तान में है – मेरी मां वहां दफन है, मेरा बाप वहां दफन है, मेरा पहला बच्चा भी उसी जमीन में सो रहा है, जो अब मेरा वतन नहीं…'

देखो, तुम बात पर ध्यान दो, मुल्क और उसके बंटवारे पर बाद में बहस कर लेना। हुआ यूं कि तुम्हारे जन्मदिन पर हमारी संसद ने आमराय से स्कूल में पढ़ायी जाने वाली एक किताब पर रोक लगा दी। कुछ लोगों को उस किताब के एक कार्टून से परेशानी थी। अब देखो तफसील में जाने की कोई जरूरत नहीं। मामला कुछ कुछ वैसा ही था, जैसे तुम्हारी कहानियों के साथ हुआ था। जिस बात का सारे फसाने में जिक्र न था, उसी का हवाला देकर उसे अपमानित करने वाला कह दिया गया और आनन-फानन में रोक लगा दी गयी।


कार्टून बड़ी साइज में अलग पन्‍ने पर दिखेगा, अगर तस्‍वीर पर जाकर चटका लगाएंगे।

अब देखो, अगर हमारे नेता तुम्हारी तस्वीर पर फूल-माला चढ़ाते तो क्या तुम्हें अच्छा लगता! आगे सुनो, जिन मंत्री महोदय ने इस किताब और कार्टून के लिए माफी मांगी, उसे रोक देने का आदेश दिया और इसके लिए दोषी विद्वानों पर कारवाई की बात कही, वे तुम्हारी और से मुकदमा लड़ने वाले वकील हरिलाल सिब्बल के बेटे कपिल सिब्बल हैं। वे भी वकील हैं, लेकिन साथ में मंत्री भी हैं। उनकी मजबूरी समझी जा सकती है। इनके बेटे सिर्फ वकील हैं और उन्होंने देश छोड़ देने पर मजबूर कर दिये गये मकबूल फिदा हुसैन क मुकदमा लड़ा था और जीता था। अब यह और बात है कि अदालत का आदेश भी हुसैन को देश वापस लाने में कारगर नहीं हुआ। तुम्हें हुसैन तो याद होंगे, जिनके साथ तुम कभी-कभी इरानी चाय पिया करते थे! खैर, तुम्हारी तरह हुसैन भी उस मिट्टी में दफन न हो सके, जिसमें उनके मां-बाप दफन हैं। तुम पकिस्तान में 'अपना' ठिकाना खोजते रहे, हुसैन परदेस में ठौर जोहते रहे।

यह संयोग यहीं खत्म नहीं होता मंटो। आगे सुनो। तुम्हें तो याद ही होगा कि किस तरह तुम्हारे खिलाफ 'तरक्कीपसंद' कॉमरेडों ने खेल रचा था। सज्जाद जहीर, अली सरदार जाफरी, अब्दुल अलीम आदि ने तुम्हारे और इस्मत आपा के खिलाफ 'अश्लील' होने का आरोप मढ़ा था और प्रोग्रेसिव राइटर्स की बैठक में इस बाबत प्रस्ताव पास कराने की कोशिश की थी। वे तो ऐसा नहीं कर पाये, लेकिन संसद में बैठे कॉमरेडों ने यह काम बखूबी अंजाम दिया और मरहूम शंकर के उस कार्टून के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत से फतवा पारित करवा लिया। मंटो, तब से अब तक हिंदुस्तान के अफसाने में सिर्फ किरदार बदले हैं, कहानी का प्लॉट वही है।

अब इस्मत आपा की बात आयी तो यह बताने में अच्छा लग रहा है कि उनकी जिस कहानी 'लिहाफ' के लिए समाज और अदालत ने कठघरे में खड़ा किया और बाद की कूढ़मगजी और नासमझी ने बस 'लेस्बियन' कहानी कह कर पढ़ा और हम यह लगभग भूल से गये कि आज से सत्तर साल पहले आपा घर की चारदीवारियों में होने वाले बच्चों के यौन शोषण की और ध्यान दिला रही थीं, इस सवाल को हिंदुस्तानी सिनेमा के बड़े कलाकार आमिर खान ने टेलीविजन के जरिये घर-घर का सवाल बना दिया है। उम्मीद है कि लिहाफ का अधूरा काम अब काफी हद तक पूरा होगा।

आखिर में, एक मजेदार बात और। मुझे पता है कि तुम्हें अपने कश्मीरी होने पर बड़ा गुमान था, लेकिन तुम कभी वहां नहीं जा सके। इधर, दिल्ली के एक लड़के अश्विन कुमार ने कश्मीर जा कर फिल्म बनायी है। जिस फिल्मी इतिहास के तुम महत्वपूर्ण हिस्सा रहे, यह साल उस तारीख का सौवां साल भी है। साल का आगाज करते हुए सरकार ने उस लड़के को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा लेकिन उसकी फिल्म को रोक दिया। तुम यह फिल्म देखते तो इसमें अपने अफसानों का रंग पाते। वैसे कश्मीर को आज मंटो की जरूरत है, जो वहां के दुःख-दर्द को दर्ज कर सके।

और यह कि, वैसे तो यह तुमने पकिस्तान के लिए लिखा था, लेकिन हिंदुस्तान में भी 'हमारी हुकूमत मुल्लाओं को भी खुश रखना चाहती है और शराबियों को भी'। और यह भी कि तुम्हारे अफसाने पढ़ने वाले 'तंदुरुस्त और सेहतमंद' लोग भी कम नहीं हैं।

तुम्हारा
प्रकाश के रे

(प्रकाश कुमार रे। सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता के साथ ही पत्रकारिता और फिल्म निर्माण में सक्रिय। दूरदर्शन, यूएनआई और इंडिया टीवी में काम किया। फिलहाल जेएनयू से फिल्म पर रिसर्च। उनसे pkray11@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)


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