कन्या भ्रूण हत्या शहरी-इलीट-हिंदू-सवर्ण समस्या है!
♦ दिलीप मंडल
यह टिप्पणी पत्रकार दिलीप मंडल के कई फेसबुक स्टैटस का जोड़ है। दिलीप जी कई तरह की अस्मिताओं के लिए देश में चल रहे संघर्षों के बड़े पैरोकार रहे हैं और हैं। सत्यमेव जयते के पहले एपिसोड का विषय यानी कन्या भ्रूण हत्या उन्हें राष्ट्रीय समस्या इसलिए नहीं लगती, क्योंकि उनके अनुसार यह इलीट सवर्णों की समस्या है और ओबीसी-दलित-पिछड़े-आदिवासी-अल्पसंख्यकों की समस्याएं दूसरी हैं। जाहिर है, उनके विचार बहसतलब हैं : मॉडरेटर
…
आमिर खान ने शहरी-इलीट-उच्च वर्ण की एक गंभीर समस्या की ओर उन लोगों का ध्यान खींचा है। इन समूहों को समाज सुधार की सख्त जरूरत है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों और दलितों का भ्रूण हत्या नाम की समस्या से साक्षात्कार कम ही हुआ है। ओबीसी के आंकड़े नहीं हैं क्योंकि सरकार उन्हें गिनती ही नहीं है। इसी तरह सती प्रथा भी उच्च वर्णीय समस्या थी, जिसके खिलाफ राममोहन राय ने अभियान चलाया था।
भ्रूण हत्या और कन्या शिशु हत्या, गंभीर रूप में, शहरी-इलीट-हिंदू-सवर्ण समस्या है। आदिवासियों और मुसलमानों का इस समस्या से कोई लेना देना नहीं है, उनका जेंडर रेशियो ठीक है। दलितों में यह समस्या कम है, किसी भय की वजह से ओबीसी के आंकड़े सरकार नहीं जुटाती हैं। जनगणना की इन सच्चाइयों को आप अपने आस-पास भी महसूस कर सकते हैं।
कोई मुझे समझाये कि बेटियों की हत्या को आदिवासी और मुसलमान अपनी समस्या क्यों मान लें, जबकि वे अपनी बेटियों की हत्या नहीं करते। जनगणना के आंकड़े लगातार साबित कर रहे हैं कि उनका जेंडर रेशियो ठीकठाक है। दलितों का जेंडर रेशियो भी अपेक्षाकृत बेहतर है। जिनकी समस्या है, निपटने का मुख्य दायित्व उनका ही है। बाकी लोग सहानुभूति जता सकते हैं। इंसानियत के नाते उन्हें सहानुभूति जतानी भी चाहिए।
वे औरत को सती बनाकर जिंदा जलाने का जश्न मना सकते हैं, बाल विधवाओं को शादी करने से रोक सकते हैं, एज ऑफ कंसेंट तय करने का विरोध करते हैं, रजस्वला होने से पूर्व ही लड़कियों की शादी के पक्षधर हो सकते हैं, कुलीन प्रथा जैसा शर्मनाक सिस्टम चला सकते हैं, अपने परिवार की विधवाओं को वृंदावन में भीख मांगने और मरने के लिए छोड़ सकते हैं, उनके लिए कन्या भ्रूण हत्या में ऐसी क्या सीरियस बात है?
दलितों और किसान तथा कारीगर-कामगार जातियों में और अल्पसंख्यकों में सती प्रथा कभी नहीं थी? राममोहन राय अपनी कुलीन बिरादरी के बीच व्याप्त एक बुरी प्रथा को खत्म कर रहे थे, जिसके लिए उन्हें निस्संदेह महान माना जाना चाहिए और उनका आदर किया जाना चाहिए। वह राष्ट्रीय पुनर्जागरण या रेनेसां कभी नहीं था … आमिर खान का भी मैं इसलिए सम्मान करता हूं। वे आदर के पात्र हैं। वे भी इलीट में व्याप्त एक बुराई कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जनजागरण कर रहे हैं। कामना कीजिए कि वे सफल हों।
♦ ओ री चिड़ैया, नन्हीं सी चिड़िया… अंगना में फिर आ जा रे!
♦ हमने यह कैसा समाज रच डाला है?
♦ संदेश महत्वपूर्ण है, संदेशवाहक नहीं!
♦ आमिर ने एक संवेदनशील मुद्दे को भी बाजार में बेच दिया!
♦ सत्यमेव जयते ने लोगों को ग्लानि और करुणा से भर दिया!
(दिलीप मंडल। वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, अमर उजाला, सीएनबीसी आवाज, ईटी हिंदी के बाद फिलहाल इंडिया टुडे हिंदी के संपादक। मीडिया पर उनकी दो महत्वपूर्ण किताब राजकमल प्रकाशन ने छापी है, मीडिया का अंडरवर्ल्ड और मीडिया: दलाल स्ट्रीट। जातिवार जनगणना पर भी उन्होंने एक किताब लिखी है। उनसे dilipcmandal@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
No comments:
Post a Comment