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Thursday, May 10, 2012

आंसूओं के बाजार में आमिर खान का दरबार

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आंसूओं के बाजार में आमिर खान का दरबार

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आमिर खान और स्टार के सीईओ उदय शंकर ने मिलकर सत्यमेव जयते की रूपरेखा तैयार की हैआमिर खान और स्टार के सीईओ उदय शंकर ने मिलकर सत्यमेव जयते की रूपरेखा तैयार की है
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आपको निर्मल बाबा भूले नहीं होंगे। निर्मल बाबा का दरबार इसलिए खारिज कर दिया जाता है क्योंकि वे लोगों की भावनाओं का व्यापार करते हैं। लेकिन तमाशा देखिए जिस स्टार टेलीवीजन समूह के न्यूज चैनल ने निर्मल बाबा के दरबार को खारिज किया, अंधविश्वास बताकर जनता को ठगे जाने से बचने की वकालत की उसी टेलीवीजन समूह के एक दूसरे चैनल ने टीवी पर आमिर खान का दरबार सजा दिया। वही इमोशन, वही ड्रामा और आंसूओं के व्यापार का बिल्कुल वही तरीका। निर्मल बाबा व्यक्ति विशेष को ठग रहे थे, आमिर खान समूहगत रूप से लोगों को ठगने का काम कर रहे हैं।

दरअसल टेलीविजन ने हिन्दुस्तान में आंसुओं को भी बाजार की चीज बना दिया है। किसी रियल्टी शो में डांस बाहर हो जाने के बाद रो रहे प्रतियोगी के आंसू हो, चाहे जिंदगी लाइव की एंकर ऋचा अनिरुद्ध के आंसू हो या फिर आमिर खान के आंसू मैं इनमे कोई अंतर नहीं मानता। जितने आंसू, उतनी टीआरपी, उतनी बिकवाली। ये वो बाजार है जिसमे थका हार आदमी समय, समाज और सरोकारों से जुड़ी बातों के लिए भी नायकों की तलाश करता हैं। भ्रूण हत्या रोकने के लिए आमिर खान की। कंडोम पहनने के लिए सनी लियोन की, साबुन के इस्तेमाल को जानने के लिए करीना कपूर की,तो  पोलियो उन्मूलन को सफल बनाने के लिए अमिताभ बच्चन की जरुरत होती है। ये कामयाबी उस वक्त और भी बढ़ जाती है जब इन विज्ञापनों में महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता है। सीधे कहें तो आंसू, महिलाएं और नायकों को मिला दीजिए सौ फीसदी सफल एपिसोड तैयार। लेकिन इन सबके बीच ये सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन विज्ञापनों, इन धारावाहिकों से करोड़ों रूपए की कमाई करने वाले ये नायक हमारे प्रति उतने ही ईमानदार है, जितने हम इनके लिए हैं? क्या सचमुच करीना कपूर लक्स से ही नहाती हैं या अमिताभ बच्चन नवरत्न तेल ही इस्तेमाल करते हैं? या फिर आमिर खान अपनी निजी जीवन में भी स्त्री अधिकारों के प्रति उतने ही संवेदनशील हैं जितने सत्यमेव जयते में दिखते हैं?

फेसबुक पर मित्र शीबा असलम फहमी का स्टेटस पढ़ा वो "देल्ही बेली "को प्रसंगवश रखते हुए कहती हैं "आमिर खान से मेरा सवाल है की कोई कैसे एक महिला का बाप या भाई बनने की हिम्मत करे जब इसी कारण उसे गाली से नवाज़े जाने की संभावना बनती हो? आज वे 3 करोड़ प्रति एपिसोड की दर से नारी-चिंता में कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं. महिलाओं के ज़रिये कामयाब होना है बस, 'वैसे' नहीं तो 'ऐसे'! पहले गाली दे कर, अब गाली दी गई औरत पर ग्लीसरीन बहा कर! ताज्जुब ये कि बड़े-बड़े पत्रकार और लेखक भी इस आमिर-गान में पीछे नहीं! शीबा का तर्क वाजिब है। स्त्री को गाली देना और फिर उसके अस्तित्व के लिए झंडा उठाने की बात करना सीधे तौर पर बेईमानी है ,और मीडिया में फैले बाजारवादी तंत्र की शातिराना चालों का एक हिस्सा है। आमिर इस तर्क को ये कहकर भी खारिज नहीं कर सकते कि फ़िल्में सिर्फ मनोरंजन मात्र हैं और हम जो सत्यमेव जयते में दिखा रहे हैं वो वास्तविक जिंदगी। दोनों ही मनोरंजन है एक में आप औरत को गाली देते हैं दूसरे में उसकी हत्या पर टेसुएँ बहाते हैं, चालाकी यहीं खत्म नहीं होती अमीर दर्शकों से चिट्ठी लिखने की अपील करते हुए सौदे को और भी मजबूत बना देते हैं।

अब भी बचपन में पढ़े गए अखबारों के बीच के पन्नों पर छपे मेरी स्टोवस क्लिनिक के वो विज्ञापन याद है जिनमे सुरक्षित गर्भपात के दावे किये जाते थे। मैंने आमिर खान का "सत्यमेव जयते भी देखा है और उनकी "देल्ही बेली'' भी देखी है, जिसमे हीरो बेशर्मी से "इसने मेरा चूसा है और मैंने इसकी ली है" जैसे जुमले इस्तेमाल करता नजर आता है। आमिर खान इसी फिल्म में हमारे यहाँ बनारस में दी जाने वाली एक गाली "भोसड़ी के को सीधे न कहकर उसे बोस डी के कहकर जनता का मनोरंजन करते हैं। कुछ कुछ वैसा ही मनोरंजन उनके इस नए धारावहिक सत्यमेव जयते में भी है।

आमिर खान नायक हैं लेकिन अब वो जन नायक बनना चाहते हैं, और ये धारावाहिक उनकी इस महत्वांक्षा को पूरा करने का प्लेटफार्म है। आम तौर पर मीडिया से दूर भागने वाले आमिर, मीडिया का ही इस्तेमाल कर इस सारी कवायद को अंजाम दे रहे हैं और पारंपरिक मीडिया को जनता से गाली भी सुनवा रहे हैं कि अब तक इन लोगों ने ऐसा कुछ करके क्यों नहीं दिखा दिया? अरे क्या दिखा दें! लगभग डेढ़ दशक की पत्रकारिता में मैं दो ऐसे लोगों से मिला हूँ जिन्होंने प्रसवपूर्व लिंग परिक्षण कराया था, दोनों की पहले से तीन-तीन बेटियां थी। अपराध घोषित होने के बाद से प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण करने कि हिम्मत बहुत कम चिकित्सक दिखा पाते हैं। आम तौर पर शहरी माध्यम वर्ग दो से ज्यादा बच्चे पैदा करना नहीं चाहता. दो बच्चे लड़का हों चाहे लड़की, चाहे खुशी से चाहे नाखुशी से, आगे की प्लानिंग करने का न तो उसमे साहस है न ही जेब इजाजत देती है, गाँवों में परिवार नियोजन कोई विषय ही नहीं है, लड़का हो चाहे लड़की सभी राजी-खुशी। ऐसे में लिंग परिक्षण कराने वालों की तादात पिछले दो दशकों के दौरान तेजी से घटी है। ऐसे में कल को अपनी सफलता में एक और तमगा जोड़ने के लिए अगर अमीर खान कह दें कि हमने भ्रूण हत्या रुकवा दी तो उसे आप क्या कहेंगे ?

जो लोग भी इस मुगालते में हैं कि आमिर खान इस धारावहिक के माध्यम से सामाजिक क्रान्ति करने जा रहे हैं। उन्हें ये जान लेना चाहिए कि पर्दों के नायक, वास्तविक जिंदगी में भी नायक हो ऐसा हिंदुस्तान में आज तक नहीं हुआ। हमें अभिनेता और व्यक्ति के फर्क को समझना होगा और उन चालाकियों को भी ,जिनसे संवेदनाएं बाजार का हिस्सा बन जाती है। इस धारावाहिक की विषय-वस्तु से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन आमिर को जन नायक थराने पर आपत्ति जरुर है। अब तक आमिर खान ने दावा नहीं किया था कि वो जन नायक बनने जा रहे हैं, लेकिन अब वो उस और बढ़ रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या पर अशोक गहलौत से मुलाक़ात उसकी एक बानगी भर हैं, शिवराज सिंह चौहान ने भी मौके का सही इस्तेमाल करते हुए आमिर को मध्य प्रदेश आने का न्यौता दिया है, ब्रांडिंग चल निकली है, जनता, नेता ठीक उसी तरह से पागल हो रहे हैं, जैसे अन्ना की रामलीला के वक्त हो रहे थे। आप स्वागत करें तो करें हम तो यही कहेंगे भाग बोस डी के आमिर खान।

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