कौन लौटाएगा रिफत और सज्जाद के चार साल का विरह?
कौन लौटाएगा रिफत और सज्जाद के चार साल का विरह?
♦ राजीव यादव
'अल्ला पर भरोसा है कि वो बहुत जल्दी छूट कर आएंगे…'
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रिफत फातिमा के जवाब में एक उम्मीद है। पिछले कई सालों से गुलाम कादिर वानी से हो रही मुलाकातों में रिफत को जाना। और अब यूपी की सरकार को भी उसे जानना चाहिए। रिफत सज्जादुर्रहमान की मंगेतर है। पिछले चार सालों से वह सज्जाद का इंतजार दूर किश्तवाड़ जम्मू-कश्मीर में कर रही है। अक्टूबर 2007 में उसकी सगाई सज्जादुर्रहमान से हुई थी और दिसंबर में सज्जाद को यूपी की कचहरियों में हुए धमाकों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। रिफत से यह पूछने पर कि क्या इस बीच रिश्ते आये या फिर कहीं और निकाह करने के लिए लोगों ने कहा तो रिफत कुछ पलों के लिए ठहर कर बोली कि बहुत रिश्ते आये, पर मैंने मना कर दिया।
सज्जादुर्रहमान देवबंद में पढ़ाई कर रहा था। 2007 के दिसंबर में वह बकरीद की छुट्टियों में घर गया था। उसके पिता गुलाम कादिर वानी बताते हैं कि 20 दिसंबर 2007 को स्थानीय पुलिस ने बेटे को उठा लिया था। पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी मो अख्तर वानी के साथ 27 दिसंबर 2007 को दिखायी थी।
अख्तर के पिता मो साबिर का चेहरा आज भी मुझे याद है। बेटे की गिरफ्तारी के सिलसिले में चार साल पहले वो लखनऊ आये थे, तो हमने जब उनसे कहा कि वो अपनी जर्सी उतार दें तो उन्होंने इस बात पर बिना कोई जवाब देते हुए अपने वकील मो शुएब की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरा यहां 'पंजाब' आना बहुत नहीं हो पाएगा। आप लोग मेरे बेटे को बचा लीजिए। मेरा बेटा बेगुनाह है।
हमने जब उनसे कहा कि यह पंजाब नहीं यूपी है, तो उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया। फिर उनसे कभी मुलाकात नहीं हो पायी। बाद में सज्जादुर्रहमान के पिता गुलाम कादिर वानी ने बताया कि बेटे के गम ने उन्हें दिल की बीमारी दे दी।
मो साबिर बेटे के उस पुलिस रिकार्ड को निकलवाना चाहते थे, जिसमें उसने 16 नवंबर 2007 को एक वाहन दुर्घटना की थी और 24 नवंबर तक पुलिस की हिरासत में था। जबकि पुलिस उसे 23 नवंबर 2007 के कचहरी धमाकों में आरोपी बता रही है। पर अफसोस वो नहीं रहे।
पुलिस के अनुसार सज्जादुर्रहमान ने ही लखनऊ की कचहरी में विस्फोटकों से भरा बैग रखा था। पुलिस ने सज्जादुर्रहमान के खिलाफ देशद्रोह, षड्यंत्र रचने, हत्या का प्रयास करने और विस्फोट अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। लेकिन पुलिस के सामने दिये गये बयान के अलावा उसके खिलाफ कोई सुबूत नहीं था। इसके चलते आरोपियों के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट मो शुएब ने कोर्ट में डिस्चार्ज की याचिका दायर की। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 14 अप्रैल को सज्जादुर्रहमान को लखनऊ की कचहरी में हुए विस्फोट के मामले से बरी कर दिया। यहां यह सवाल उठाना लाजिमी है कि जिन आरोपियों में सज्जादुर्रहमान ने चार साल का समय जेल में गुजारे, उसका दोषी कौन है?
गुलाम कादिर वानी
बेगुनाहों की रिहाई के लिए धरना
सज्जादुर्रहमान के पिता गुलाम कादिर वानी इस फैसले को खुद की नेमत मानते हैं। किश्तवाड़ में एक छोटे से किसान गुलाम कादिर की आर्थिक हैसियत गंवारा नहीं करती कि वह लखनऊ जेल में बंद अपने बेटे से समय-समय पर मिल सके। सज्जाद की गिरफ्तारी के बाद गुलाम कादिर के पास वकील करने के लिए भी पैसे नहीं थे। गुलाम कहते हैं कि 'शुक्र है कि मो शुएब ने उनके बेटे का पूरा केस बिना किसी फीस के लड़े। और भी इंसाफपसंद लोग हमारे साथ थे, तभी हमें इंसाफ मिल सका।' इतना सब कुछ होने के बाद भी गुलाम को न्यायप्रक्रिया पर पूरा भरोसा हैं। वह कहते हैं 'पुलिस ने जिस तरह से उसे उठाया था, और आरोप लगाये, हमें नहीं लगा कि वह छूट पाएगा। लेकिन अल्ला ने हमारी सुन ली। हमें भरोसा है कि सज्जाद फैजाबाद कचहरी विस्फोट के आरोप से भी बरी होगा।'
रिफत फातिमा की तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। रिफत से पूछने पर कि क्या वो कभी सज्जाद से मिलने यूपी आयीं, उनका जवाब था, नहीं बहुत दूर है न। सवाल के अंदाज में उन्होंने कहा कि वहां बहुत गर्मी पड़ती है न? कब तक वो छूट जाएंगे?
उनका सवाल और दर्द लाजिमी है। आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद इन लड़कों को हाई सिक्योरिटी के नाम पर 23-23 घंटे जेलों में बंद रखा जाता है। गर्मियों में जेल के कमरे प्रेशर कूकर की तरह हो जाते हैं।
23 नवंबर, 2007 में उत्तर प्रदेश की लखनऊ, फैजाबाद और बनारस की कचहरियों में विस्फोट हुए थे। इस मामले में पुलिस ने पांच मुस्लिम युवकों को अलग-अलग जगहों से उठाया। इसमें आजमगढ़ के सम्मोपुर गांव के तारिक कासमी, जौनपुर के मडियाहूं से मो खालिद मुजाहिद, पं बंगाल से आफताब आलम और जम्मू-कश्मीर के किस्तवाड़ा जिले के मो अख्तर वानी और सज्जादुर्ररहमान शामिल थे। जन दबावों के चलते ही तत्कालीन मायावती सरकार को खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की गिरफ्तारियों की जांच के लिए जस्टिस निमेष की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित करनी पड़ी। और अब सपा सरकार उन्हें छोड़ने की बात कह रही है। इसलिए इन दोनों कश्मीरी लड़कों का सवाल भी प्रमुख हो जाता है। क्योंकि ये दोनों भी इन्हीं केसों में जेल में हैं।
कचहरियों में हुए विस्फोटों का कथित 'मास्टर माइंड' आफताब आलम पहले ही बरी हो चुका है। दिसंबर 2007 में जिस आफताब आलम उर्फ राजू उर्फ मुख्तार को हूजी का आतंकी बताते हुए पं बंगाल से गिरफ्तार किया था, उसे एक महीने से कम समय में ही कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया। तब आफताब के पास से आरडीएक्स, हथियार के अलावा बड़ी मात्रा में बैंक बैलेंस भी दिखाया गया था। बाद में मानवाधिकार संगठनों की सक्रियता के चलते मात्र 22 दिन बाद ही एसटीएफ ने कोर्ट में नाम में गलतफहमी होने का तर्क देते हुए माफी मांग ली थी।
कचहरियों में विस्फोटों पर पुलिस की कहानी पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं। पुलिस ने इन विस्फोटों में हूजी और अन्य इस्लामिक आतंकी संगठनों का हाथ बताया था। गिरफ्तार आरोपियों को भी इन्हीं संगठनों का आतंकी बताया गया था। जबकि कई लोगों का मानना है कि इन विस्फोटों में हिंदुत्ववादी संगठनों का हाथ रहा है। फैजाबाद की कचहरी में शेड नंबर 4 और शेड नंबर 20 के नीचे रखे गये विस्फोटकों में धमाके हुए जो भाजपा के जिला पदाधिकारी विश्वनाथ सिंह और महेश पांडे की थीं और ये दोनों ही उस समय वहां से गायब थे। पुलिस ने इन दोनों से कभी भी पूछताछ की जरूरत महसूस नहीं की। 25 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश के एडीजी बृजलाल ने प्रेस कांफ्रेंस कर इन विस्फोटों के तकनीक की तुलना हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों से की थी। असीमानंद की स्वीकृतियों और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की तहकीकात में मक्का मस्जिद विस्फोट में हिंदुत्ववादी संगठनों की संलिप्तता उजागर हुई है। अगर बृजलाल की इन बातों को सही माना जाए तो कचहरी विस्फोटों में भी हिंदुत्ववादी संगठनों का ही हाथ है।
(राजीव यादव। पीयूसीएल यूपी के प्रदेश संगठन सचिव। आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद अपने प्रदेश में चल रहे जनसंघर्षों की रिपोर्टिंग में रम गये। वाम प्रतिबद्धता वाले युवा पत्रकारों के संगठन जेयूसीएस (जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी) से भी जुड़े हैं। उनसे rajeev.pucl@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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