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Wednesday, May 9, 2012

इन गरीब मुसलमानों के जान की कीमत मात्र पांच हजार!

http://news.bhadas4media.com/index.php/yeduniya/1344-2012-05-09-08-00-49

[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1344-2012-05-09-08-00-49]इन गरीब मुसलमानों के जान की कीमत मात्र पांच हजार! [/LINK] [/LARGE]
Written by अब्‍दुल रशीद Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 09 May 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=4306b10a76c9b6c0ff472eceeceb27eb08170f05][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1344-2012-05-09-08-00-49?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
: [B]विनाश रुपी विकास का उदाहरण है सिंगरौली[/B] : देश में अवैध खनन के जरिए प्राकृतिक स्रोतो की खुलेआम लूट जारी है। और भाजपा शासित मध्य प्रदेश में तो हालात और भी खराब है। कारण जहां एक ओर अवैध खनन में सुरक्षा की अनदेखी से गरीब मजदूरों की जान जा रही है, वहीं अवैध खनन रोकने वाले बहादुर सिपाही को माफियायों द्वारा मौत के घाट उतारा जा रहा है। और शासन मूक दर्शक बनी देख रही है। कारण जो भी हो लेकिन सरकार की अनदेखी का नतीज़ा है कि इस लूट में गरीब मजदूरों की जिंदगी की बलि चढ़ रही है और यह खूनी खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते रविवार की सुबह सिंगरौली जिले में अवैध कोल खनन करते समय 6 लोगों की मौत हो गई और 2 लोग घायल हो गए।

प्राप्त जानकारी के अनुसार घटना बरगवां थाने के अन्तर्गत चीनगी टोला के पास स्थित अवैध खदान में सुबह 6 बजे के लगभग पहाड़ दरकने से मजदूर दब गए, जिसमें 6 मजदूर की मौत हो गई और 2 घायल हो गए। बकौल कमलेश कुशवाहा, जो घटना में घायल हुआ था, के अनुसार वे 20 लोगों के साथ गुफानुमा अवैध खदान के अन्दर जा कर कोयला खनन कर रहा था तभी पहाड़ के भसकने से मजदूर दब गए। मरने वाले सभी स्थानीय लोग थे। इस घटना के बाद डीएम साहब ने कहा मृतक बेहद गरीब हैं इसलिए इनको अंतिम संस्कार के लिए 5000 रु की राशि दिलाई गई। वहीं एसपी साहब ने कोई कार्रवाई इसलिए न करने की बात की क्योंकि वे बेहद गरीब हैं। जनाब मरने वाले बेहद गरीब ही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और सिंगरौली के मूल निवासी थे, जिनके पेट पर लात रखकर राजनीति किया जाता है और वादे किये जाते हैं, कोई कहता है कि हम आरक्षण दे रहे हैं और कोई कहता है कि हम उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहते हैं।

राजनीति का खेल तो देखिए, मरने के बाद अंतिम संस्कार के नाम पर चन्द सिक्के दे कर रस्म अदायगी कर दी गई। यानी गरीब की जान की कीमत महज 5000 रुपये। तो क्या बस इतना सी ही मानवता बची है अब। किसी ने इस बात को जानने और समझने की कोशिश क्यों नहीं किया कि आखिर इन लोगों ने पेट पालने के लिए मौत का रास्ता ही क्यों चुना। यह हालत उस जिले के मूल निवासी का है, जिस जिले के बनने के दिन प्रदेश के मुखिया ने कहा था कि सिंगरौली को स्वीट्जरलैंड बना देंगे तो क्या स्वीट्जरलैंड महज चंद लोगों के लिए बनेगा। यह इस जिले के मूल निवासी के लिए त्रासदी नहीं तो क्या है कि जिस जिले से उत्पादन होने वाली बिजली महानगरों को तो रौशन करती है, लेकिन इनके घर पे रोशनी तो दूर रोजी रोटी भी मयस्सर नहीं। गर्द और प्रदूषण से होने वाली बीमारी तो बोनस के तौर पर मिलती है। अब करे तो क्या करें जब तक सांस है तब तक आस है। अफसोस अब तो बेवफा सांस भी ठीक से साथ नहीं देती।

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्रा में वरदान स्वरुप मिला, जो यहां के मूल निवासी के लिए अभिशाप बन गया है। परियोजना लगाने के नाम पर जमीन तो गया ही अब प्रदूषित वातावरण में रहकर जिंदगी जीने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इस जिले का अकूत प्राकृतिक संपदा जहां उद्योगपतियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। वहीं अवैध खनन माफियाओं को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। रही बात कायदे कानून की तो जिस प्रदेश में कानून के मुहाफिज ही महफूज नहीं वहां कानून का डर भला माफियाओं को क्यों हो? इस जिले का दोहन केवल खनन माफिया ही नहीं करते बल्कि यहां हर तरह का अवैध कारोबार बेखौफ फल फूल रहा है। जैसे कबाड़, कोयला, नशे का कारोबार इत्यादि। सिंगरौली में हो रहे विकास का डंका तो दुनिया में खूब बजाया जाता है, लेकिन ऐसे विकास का क्या मतलब जब यहां के मूल निवासी की स्थिति में कोई बदलाव न ला सकी। हालत तो ऐसी है कि यहां के स्थानीय लोग रोजी रोटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और शायद खनन माफिया ऐसे ही भूखे पेट लोगों का इस्तेमाल कर अपना काम साधते हैं। ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि क्या विस्थापन का दंश और बेगारी सिंगरौली के मूल निवासियों की नियति बन गई है या यह सब किसी राजनीति के तहत सोचीं समझी साजिश?

[B]लेखक अब्दुल रशीद सिंगरौली में पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.[/B]

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