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Sunday, May 13, 2012

महाराष्ट्र में सूखा और फिल्मी दुनिया में सामाजिक सरोकार की धूम!

महाराष्ट्र में सूखा और  फिल्मी दुनिया  में  सामाजिक सरोकार की धूम!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

केंद्र और राज्य की सरकारों को बाजार की सेहत की चिंता है। खुद कृषि मंत्री शरद पवार महाराष्य्र से हैं पर उनको क्रिकेट की जितनी चिंता है, उतनी किसानों की नहीं। देशभर में कृषि, देहात और किसान हाशिये पर है और सेनसेक्स अर्थ व्यवस्था में उनके लिए कोजगह नहीं है। मीडिया और वैकल्पक मीडिया में जिस तरह से सत्यमेव जयते की धूम है, उसके मुकाबले थोड़ी चर्चा बदहाल किसानों की भी हो जाती तो उनके सामने आत्महत्या के सिवाय शायद दूसरा कोई विकल्प भी होता। सरकार और राजनीतिक दलों को राजनीति से फुरसत नहीं है और वे अकाल की स्थिति में भी अपने सत्ता समीकरण साधने में लगे हैं। वहीं फिल्मी दुनिया में सामाजिक सरोकारों की धूम है जो कभी अन्ना के अनशन मंच पर तो कभी टीवी के परदे पर जोर शोर से प्रचारित हैं। ये सुपर स्टार और स्टार बड़े बड़े मुद्दों में उलझ हुए हैं और उन्हें मुंबई की सड़कों पर उमड़ते भूके फटेहाल किसानों के हुजूम से कोई लेना देना नहीं है। दिलीप मंडल ने सही लिखा है कि कन्या भ्रूण हत्या सवर्णों की समस्या है जैसे बंगाल में सतीदाह प्रथा सवर्मों की समस्या रही है। इस सिलसिले में सामाजिक सुधार जरूरी हैं, पर वह एक लंभी प्रक्रिया है। किसानों को तो फौरन मदद की दरकार है। मुंबई की सामाजिक  कार्यकर्ता कामायनी महाबल ने चेताया है कि कन्या भ्रूण हत्या रोकने के बहाने अनपेश्क्षित गर्भ से मुक्ति पाने के ्धिकार को ही खत्म न कर दिया जाया।

महाराष्ट्र में 15 जिले अकाल की चपेट में हैं । राज्य सरकार ने काफी विलंब से स्थिती का आकलन किया हैं , अकालग्रस्त क्षेत्र में राहत कार्य शुरू करने और प्रभावित जनता को सहायता पंहुचाने की प्रक्रिया भी काफी समय ले लेगी । सबसे बड़ा खतरा किसान आत्महत्या को लेकर हैं । आत्महत्याएं रोकने के तमाम प्रयासों पर अकाल पानी फेर सकता हैं । महाराष्ट्र सरकार ने नाशिक के साथ १५ जिलों में १० करोड़ का अनुदान देने की बात की है। क्या एक जिला के लिए सिर्फ १० करोड़ काफी है? क्योंकि सिर्फ नाशिक जिले में १५ तालुके और १९३१ गांव आते हैं, क्या इन सबको ये निधि सही में पूरा पड़ेगा? महाराष्ट्र के बहुत सारे गांव में पानी की किल्लत के साथ-साथ जानवरों के पानी और चारा की भी कमी बड़े पैमाने पर पैदा हो गई है। बहुत सारे गांव के लोग शहर की तरफ पानी के लिए रूख कर रहे हैं क्योंकि कम से कम शहर में आधा घंटे तो पीने का पानी आता है।जनवरी महिने से कृषिमंत्री शरद पवार, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, राहुल गांधी इनके साथ साथ शिवसेना, बीजेपी, रिपब्लिकन के नेताओं का भी दौरा हो गया। क्या अब तक जिन गावो में इन्होने दौरे किए , उन गावों में पानी या चारा की समस्या पूरी हो गई है?फिलहाल अकाल से जूझते किसानों के लिए किसी राहत की घोषणा न करना चिंता की बात हैं । मानसून डेढ़ माह बाद शुरू हो जाएगा । किसानों को बुआई के लिए फिर कर्ज लेना पडेगा । यह जगजाहीर है कि हाल के वर्षो में कर्ज के बोझ तले दबकर ही किसान जान दे रहा हैं ।महाराष्ट्र दिवस पर प्रदेश की जनता को दिए संदेश में शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने कहा है कि इन दिनों देश में अक्ल का अकाल पड़ा हुआ है इसीलिए महाराष्ट्र भी इन दिनों अक्ल के अकाल के कारण बेहाल है।

कर्ज के मारे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे महाराष्ट्र के विदर्भ के किसानों की मदद के लिए इस बार बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन सामने आए हैं व इन किसानों को मदद करते हुए 29 लाख रूपए दिए हैं। बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने कर्ज के बोझ से दबे विदर्भ के 90 किसानों को कर्ज से निजात दिलाया है। अमिताभ ने महाराष्ट्र के वर्धा जिले के करीब 90 किसानों को उनका कर्ज चुकता करने के लिए चेक भेंट किया जिससे वह अपना कर्ज चुका सकें।बिग बी के चेक 24 अन्य जरूरतमंद किसानों के घरों तक भी पहुंचाए जाएंगे।जिले के 20 से अधिक गांवों से जरूरतमंद किसानों का चयन वर्धा और मुम्बई के रोटरी क्लब ने किया है। ये चेक कुल 30 लाख रुपये के हैं जो बच्चन ने दानस्वरूप दिए हैं।वर्धा के रोटरी क्लब के सदस्य एवं पूर्व अध्यक्ष महेश मकोलकर ने बताया, "जब बच्चन ने किसानों के लिए दान देने की इच्छा जताई तब हमने इन गांवों में जाकर पता लगाया कि किस किसान पर कितना कर्ज है. इसके बाद हमने उन्हें 300 से अधिक किसानों की सूची भेजी।उन्होंने बताया कि सूची भेजे जाने के बाद बच्चन के प्रतिनिधियों ने इन गांवों का दौरा किया और जानकारी का सत्यापन किया. उन्होंने सूची में कटौती कर 114 किसानों के नाम रखे।मकोलकर ने कहा, "यहां शनिवार को हुए एक समारोह में लगभग 90 किसानों को चेक सौंप दिए गए. हमने उन किसानों तक चेक भिजवाने की व्यवस्था की जो समारोह में आने में सक्षम नहीं थे।"


पूरे देश में विदर्भ ऐसा क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा किसानों ने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या की है। वहीं सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद आत्महत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है।कहने का तात्पर्य यह है कि इतनी बड़ी आपदा के बावजूद भी अभी तक सरकार ने किसानों के हित में कोई सीधा कदम नहीं उठाया है।ऐसे में बिग बी के इस कदम से जहां विदर्भ के उन किसानों को राहत मिलेगी वहीं सरकार को इससे बहुत कुछ सीख मिलेगी।

अकाल और सूखे से महराष्ट्र जूझ रहा हैं। राज्य के 15 जिलों में पीने के पानी की समस्या हैं और बूंद बूंद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं।विदर्भ से लेकर पश्चिम महाराष्ट्रा का किसान भी सिर पर हाथ लगाकर तड़पती धूप में मंत्रालय की और नजर गडाकर बैठा है कि सरकार उसकी मदद करेगी, लेकिन किसानों की उम्मीदों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पानी फेर दिया हैं।दरअसल मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में सांसद गोपीनाथ मुंडे प्रफुल्ल पटेल, विजय दर्डा जैसे सासंद मिनिस्टर और कुछ विधायक दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिले और महाराष्ट्र के लिए करीब 2700 करोड़ रूपयों का आर्थिक पैकज की मांग की।लेकिन प्रधानमंत्री ने कोई ठोस आश्वासन नही दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों के लिए राहत पैकेज के लिए वो गृहमंत्री से बात करेंगे क्योंकि सूखाग्रस्त कमिटी के मुखिया गृहमंत्री हैं।मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान को उम्मीद है प्रधानमंत्री की तरफ से आर्थिक पैकेज मिलेगा।  

पानी का संकट झेल रहे महाराष्ट्र के इलाकों में ही एक इलाका है सतारा। इस जिले की दो तहसीलें माण और खटाउ में हालात सबसे ज्यादा गंभीर हैं। इन तहसीलों के लोगों की एक ही मांग है कि जैसे भी हो उन्हें पानी चाहिए। 17 साल पहले इस इलाके में पानी संकट दूर करने के लिए दो प्रोजेक्ट शुरू किए गए, लेकिन आज तक लोगों को पानी की एक बूंद तक नहीं मिली।

सतारा जिले की तहसील माण और खटाउ में अगर आप पानी देख लें तो शायद उससे हाथ भी न धोना चाहें। लेकिन हाल कुछ ऐसा है कि इस गंदे पानी को यहां लोग पीते हैं। इलाके के गांव 1972, 1986 और 2003 के अकाल और सूखा झेल चुके हैं लेकिन इस साल का सूखा सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। पानी लाने की योजनाएं फेल साबित हुई हैं।जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कहे या महाराष्ट्र के राजा, सातारा जिले के एक गाव में कांग्रेस के युवराज कहेजाने वाले राहुल गांधी के साथ गए, तब वहां के गांववाले इनके सामने "पाणी पाहिजे साहेब, पाणी पाहिजे" ऐसा करूण भावना से विवश होकर कह रहे थे। जब इन्होने एक गाव की बुजुर्ग महिला को हाथ-पंप चलाते देखा तो ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे इतनी देर से हाथ पंप चलाने की वजह से उसका सीना फट जाएगा, फिर भी उस बुजुर्ग महिला को पानी का दीदार नही हुआ. ये दृश्य देखने के बाद जब मुख्यमंत्री साहब मुंबई पहुचे तो २४ घंटे बीतने से पहले ही मुकेश अंबानी के पार्टी में पहुंच गए, जो संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि बान की मून के स्वागत में आयोजित की गई थी। सवाल यह है कि एक राज्य के प्रतिनिधित्व कर रहे मुखिया को जब राज्य में सूखा-अकाल पड़ रहा है, इस स्थिति में क्या ऐसी पार्टियों में जाना चाहिए? .ऐसी हालत सिर्फ एक गांव की नही बल्कि महाराष्ट्र के १५ जिलों के लगभग सभी गांवो की है। महाराष्ट्र संतो की भूमि कही जाती है मगर आज के राज्यकर्ता आम जनता के प्रश्नों के उपर ध्यान देने की बजाय अपने स्वार्थ के लिए लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।यहां मंत्री-संत्री सब आते हैं, फिर भी हाल जस का तस बना हुआ है। सरकार ने यहां कठापुर और उर्मोडी में दो बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए। उर्मोडी बांध के जरिए माण और खटाउ में कनाल से पानी लाना था तो कठापुर योजना में कृष्णा नदी का पानी पंप करके माणगंगा और इर्ला नदी में छोड़ा जाना था।दोनों प्रोजेक्ट्स को तीन साल में पूरा होना था, पर 17 साल हो चुके हैं, दोनों प्रोजेक्ट अधर में लटके हैं। दरअसल सातारा के सूखाग्रस्त तहसील में पानी के अलावा महत्वकांक्षा की भी कमी है। सरकार ने जो प्रोजेक्ट लाए वो अब भी आधे-अधूरे हैं। अधूरा पड़ा उर्मोडी प्रोजेक्ट का यह काम इसका जीता-जागता सबूत है।सरकार के मुताबिक उसके पास प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए पैसा नहीं जबकि केंद्र सरकार की एआईबीपी पानी योजना के तहत इन पर करोड़ों रुपए खर्चे जा चुके हैं। सवाल ये है कि ये करोड़ों रुपए कहां गए। इतना पैसा खर्च होने के बावजूद गांव प्यासे क्यों हैं।

अकाल का सीधा संबंध अर्थव्यवस्था से है । व्यापक शहरीकरण के बावजूद महाराष्ट्र में कृषि ही अर्थव्यवस्था का पूरक आधार हैं । राज्य को अपने संसाधन अकाल से निपटने में लगाने पडेंगे । भूजल स्तर राज्य के उन हिस्सों में भी नीचे जा रहा है जहां पर्याप्त वर्षा हुई थी । हालांकि केंद्र को राज्य सरकार ने 15 जिलों में अकाल की रिपोर्ट भेजी हैं । । राज्य में ढेरों सिंचाई परियोजनाएं कई दशकों से किसी न किसी छोटे-मोटे कारणों से अधूरी पड़ी हैं ।  मुख्यमंत्री के रूप में सुधाकर राव नाईक ने महात्वाकांक्षी जल संवंर्धन योजना शुरू की थी । वह अब सिर्फ दिखावा रह गई हैं ।

सूके को लेकर इन दिनों महाराष्ट्र में जो राजनीति हो रही है, वह कम सर्मनाक नहीं है।आरोप है कि विदर्भ-मराठवाड़ा की अनुशेष निधि पर पश्चिम महाराष्ट्र के दबंग नेताओं और सरकार की वक्रदृष्टि पड़ने लगी है। हालांकि इस बार इसके लिए मोहरा बनाया गया है सूखे के मुद्दे को। कहा जा रहा है कि सरकार में शामिल शक्तिशाली पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं की लॉबी को जब अपने क्षेत्र में किसी परियोजना या समस्या से निपटने के लिए निधि की कमी महसूस होती है तो, उनकी  नज़र सबसे पहले विदर्भ का अनुशेष भरने के लिए आवंटित निधि पर पड़ती है। इस बार पश्चिम महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति होने की बात कही जा रही है और इस सूखे की समस्या से पश्चिम महाराष्ट्र को राहत दिलाने के लिए निधि की ज़रूरत है ।
इस निधि की पूर्ति कहां से की जाए, इस सवाल का तोड़ पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं ने यह निकाला है कि विदर्भ व मराठवाड़ा के अनुशेष को भरने के लिए जो निधि आवंटित की गई है, वह उनके क्षेत्र को सूखे से राहत दिलाने के लिए दे दी जाए । हालांकि इससे विदर्भ का अनुशेष कम होने की बजाय और बढ़ेगा. इससे विदर्भ व मराठवाड़ा के विधायकों में खलबली मच गई. अब वे अपने क्षेत्र की निधि सुरक्षित रखने के लिए प्रयास तेज़ कर दिए हैं । वहीं इसे लेकर सरकार पर पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं का भी दबाव बढ़ता जा रहा है ।


दरअसल यह मामला तब अधिक गरमा गया, जब केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को निशाना बनाते हुआ कहा था कि किसानों के साथ भोजन करने से सूखे का समाधान नहीं होगा । उन्होंने विदर्भ व मराठवाड़ा का नाम लिए बग़ैर यह भी कहा था कि अनुशेष के नाम पर अधिक निधि का आवंटन करने की ज़रूरत नहीं है । उसके बाद पश्चिम महाराष्ट्र के विधायक सक्रिय हो गए और विदर्भ-मराठवाड़ा के अनुशेष निधि का अपहरण करने की जुगत लगाने लगे, लेकिन इस बार विदर्भ-मराठवाड़ा के विधायक भी का़फी सतर्क थे । इस बात की भनक लगते ही विदर्भ व मराठवाड़ा के सभी विधायकों ने सीधे राजभवन की ओर रुख किया । राज्यपाल के. शंकरनारायणन से मुलाकात कर उन्होंने आशंका जताई कि राज्य सरकार उनके क्षेत्र के अनुशेष को दूर करने के लिए आवंटित निधि को स्थानांतरित करना चाह रही है । इन विधायकों ने राज्यपाल से सा़फ कहा कि राज्य के जिन इलाक़ों में सूखे की स्थिति है, उससे हम भी चिंतित हैं. वहां के लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार जितनी चाहे उतनी निधि ख़र्च कर सकती है ।

दूसरी ओरउत्तर प्रदेश और बिहार से मुंबई आए लोगों को निशाना बनाते रहे मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने अब जैन समाज पर भी निशाना साधना शुरू कर दिया है। बहाना है महाराष्ट्र के सूखे में इस समाज द्वारा किसानों की मदद करने के बजाय अपना धार्मिक उत्सव मनाने का।मुंबई के पायधुनी क्षेत्र में श्वेतांबर जैनों के श्री गोदीजी पा‌र्श्वनाथ भगवान मंदिर के 200 वर्ष पूरे होने के अवसर पर यह समुदाय पिछले कई दिनों से एक समारोह मना रहा है। इसी समारोह की कड़ी में समारोह समिति ने मुंबई में रहनेवाले 1.4 लाख जैन परिवारों में आमरस एवं पूड़ियां भिजवाने की व्यवस्था की थी।राज ठाकरे ने आज जैन समुदाय के इसी मिठाई वितरण कार्यक्रम पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ महाराष्ट्र में किसान सूखे और अकाल से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर जैन समाज के लोग एक-एक परिवार को आमरस एवं पूड़ियां भिजवाई जा रही हैं। इस समाज में इतना अहंकार कैसे आ गया। क्या दिखाना चाहता है यह समाज?गौरतलब है कि राज ठाकरे द्वारा इससे पहले समय-समय पर उत्तर प्रदेश और बिहार से आए लोगों पर निशाना साधा जाता रहा है। सन् 2008 में उनकी पार्टी द्वारा किए गए उग्र आंदोलन के कारण बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग मुंबई छोड़कर जा चुके हैं। राज ठाकरे जिस शिवसेना को छोड़कर निकले हैं, उसके द्वारा भी मुंबई में रहनेवाले दक्षिण भारतीयों, उत्तर भारतीयों एवं अन्य वर्गो को निशाना बनाकर मराठी वोटबैंक को रिझाने का काम किया जाता रहा है।

राज्यसभा में मंगलवार को देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति पर चर्चा हुई. विपक्षी दलों ने इस प्राकृतिक संकट से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई किए जाने की मांग की।


कर्नाटक में सूखे जैसी स्थिति पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू ने आरोप लगाया कि कर्नाटक में सूखे की स्थिति के बावजूद सरकार का रवैया 'उदासीन' और 'असंवेदनशील' बना हुआ है।


केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार इस मुद्दे को लेकर उदासीन नहीं है और एक केंद्रीय टीम जल्द ही सूखा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेगी। लेकिन विपक्षी दल भाजपा ने इस आश्वासन को खारिज कर दिया और सरकार पर इस दिशा में कोई कारगर कदम न उठाने का आरोप लगाते हुए इसके सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गए।इससे पहले कई अन्य सदस्यों ने भी महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में सूखे जैसी स्थिति का मुद्दा उठाया। भाजपा सांसद माया सिंह ने केंद्र पर मध्य प्रदेश को जूट के बोरे उपलब्ध नहीं कराने का आरोप लगाया। वहीं, अकाली दल के सांसद बलविंदर सिंह भुंडर ने अपील की कि पंजाब से खाद्यान्न लेकर उसका वितरण सूखा प्रभावित क्षेत्रों में किया जाए।


हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन ने सलाह दी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए सरकार दीर्घकालिक योजना बनाए और उन जिलों के लिए दिशा-निर्देश जारी करे, जो सूखा प्रभावित हैं।

हिंदी फिल्म जगत में 'मिस्टर परफेक्शनिस्ट' के नाम से मशहूर अभिनेता आमिर खान के पहले टीवी शो 'सत्यमेव जयते' को दर्शकों का जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है और एक सप्ताह के अंदर ही यह टीवी शो सोशल नेटवर्किंग साइटों पर छा गया है।

दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर 'सत्यमेव जयते' के पेज को 747,572 लोगों ने अब तक पसंद किया है और 356,838 लोग इस शो की चर्चा कर रहे हैं। प्रत्येक रविवार को सुबह 11 बजे प्रसारित हो रहे इस टीवी शो की लोकप्रियता का आलम यह है कि बच्चे, बूढ़े, जवान सभी इस शो को न केवल देख रहे हैं बल्कि आमिर खान द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।

'चुप्पी तोड़ो' के नारे के साथ बाल यौन शोषण पर आज दिखाए गए शो को अब तक 3504 लोगों ने फेसबुक पर 'पसंद' किया है और 353 लोगों ने इस शो पर अपनी टिप्पणियां दी हैं। गत 6 मई को दिखाए गए इस शो के पहले एपिसोड में आमिर खान ने कन्या भ्रूण हत्या के मुद्दे को उठाया था। इस शो को अबतक फेसबुक पर 14930 लोगों ने 'पसंद' किया है और 1450 लोगों ने टिप्पणी की है।

जन अभिव्यक्ति का सशक्त मंच बन चुकी माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर आमिर खान द्वारा उठाये गये मुद्दों की जबर्दस्त चर्चा है। ट्विटर पर आज भारत में जिन विषयों की सबसे ज्यादा चर्चा है उसमें 'सत्यमेव जयते' में आज दिखाया गया 'बाल यौन शोषण' का मुद्दा सबसे उपर रहा। इसके अलावा इस एपिसोड का गीत 'हौले हौले' पांचवें नंबर पर है। ट्विटर पर 'सत्यमेव जयते' के 21790 फालोवर हैं।

आमिर ने आज 'सत्यमेव जयते' के दूसरे एपिसोड में बाल यौन शोषण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि बाल यौन शोषण एक डरावनी वास्तविकता है और शोध बताते हैं कि करीब 53 प्रतिशत बच्चे या दो में से एक बच्चा बाल यौन शोषण का शिकार रहा है।


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