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Wednesday, May 9, 2012

टीम अन्ना का गोपनीय तमाशा

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टीम अन्ना का गोपनीय तमाशा

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टीम अन्ना का गोपनीय तमाशा
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अन्ना से उसके कथित फाउंडर मेंबर मुफ्ती शमून काजमी की छुट्टी के साथ एक यक्ष प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि आखिर टीम की बैठक में ऐसा क्या अति गोपनीय हो रहा था, जिसे रिकार्ड करने की वजह से काजमी को बाहर होना पड़ा? एक सोशल नेटवर्किंग मित्र ऐतेजाद अहमद खान ने यह सवाल हाल ही फेसबुक पर डाला है, हालांकि उसका जवाब किसी ने नहीं दिया है।

अव्वल तो सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी पैरोकार और सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने को आमादा टीम अन्ना उस बैठक में ऐसा क्या कर रही थी, जो कि अति गोपनीय था, कि एक फाउंडर मेंबर की छुट्टी जैसी गंभीर नौबत आ गई। क्या पारदर्शिता का आदर्श उस पर लागू नहीं होता। क्या यह वही टीम नहीं है, जो सरकार से पहले दौर की बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग करने के लिए हल्ला मचाए हुई थी और खुद की बैठकों को इतना गोपनीय रखती है?

उसकी यह गोपनीयता कितनी गंभीर है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि टीवी चैनल वाले मनीष सिसोदिया और शाजिया इल्मी से रिकार्डिंग दिखाने को कहते रहे, मगर उन्होंने रिकार्डिंग नहीं दिखाई। इसके दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि रिकार्डिंग में कुछ खास नहीं था, मगर चूंकि काजमी को निकालना था, इस कारण यह बहाना लिया गया। इसकी संभावना अधिक इस कारण हो सकती है क्योंकि इधर रिकार्डिंग की और उधर टीम अन्ना के अन्य सदस्यों ने तुरत-फुरत में उन्हें बाहर निकालने जैसा कड़ा निर्णय भी कर लिया। कहीं ऐसा तो नहीं काजमी की पहले से रेकी की जाती रही या फिर मतभेद पहले से चलते रहे और मौका मिलते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। काजमी ने बाहर आ कर जिस प्रकार आरोप लगाए हैं, उनसे तो यही लगता है कि विवाद पहले से चल रहा था व रिकार्डिंग वाली तात्कालिक घटना उनको निकाले जाने की बड़ी वजह नहीं। इसी से जुड़ा सवाल ये है कि काजमी ने क्या चंद लम्हों में ही गंभीर आरोप गढ़ लिए? य

दि यह मान भी लिया जाए कि उन्होंने सफाई देने के चक्कर में तुरंत आरोप बना लिए, मगर इससे यह तो पुष्ट होता ही है कि उनके आरोपों से मिलता जुलता भीतर कुछ न कुछ होता रहता है। एक सवाल ये भी कि जो भी टीम के खिलाफ बोलता है, वह सबसे ज्यादा हमला अरविंद केजरीवाल पर ही क्यों करता है? क्या वाकई टीम अन्ना की बैठकों में खुद अन्ना तो मूकदर्शक की भांति बैठे रहते हैं और तानाशाही केजरीवाल की चलती है?

हालांकि अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि काजमी ने जो रिकार्डिंग की अथवा गलती से हो गई, उसका मकसद मात्र याददाश्त के लिए रिकार्ड करना था अथवा सोची-समझी साजिश थी। टीम अन्ना बार-बार ये तो कहती रही कि काजमी जासूसी के लिए रिकार्डिंग कर रहे थे, मगर यह स्पष्ट नहीं किया कि पूरा माजरा क्या है? वे यह रिकार्डिंग करने के बाद उसे किसे सौंपने वाले थे? या फिर टीम अन्ना को यह संदेह मात्र था कि उन्होंने जो रिकार्डिंग की, उसका उपयोग वे उसे लीक करने के लिए करेंगे? या फिर टीम अन्ना का यह पक्का नियम है कि उसकी बैठकों की रिकार्डिंग किसी भी सूरत में नहीं होगी? और क्या टीम अन्ना इतनी फासिस्ट है कि छोटी सी गलती की सजा भी तुरंत दी जाती है?

जहां तक रिकार्डिंग को जाहिर न करने का सवाल है, दूसरा मतलब ये है कि जरूर अंदर ऐसा कुछ हुआ, जिसे कि सार्वजनिक करना टीम अन्ना के लिए कोई बड़ी मुसीबत पैदा करने वाला था। यदि काजमी सरकार की ओर से जासूसी कर रहे थे तो वे मुख जुबानी भी सूचनाएं लीक कर सकते थे। फाउंडर मेंबर होने के नाते उनके पास कुछ रिकार्ड भी होगा, जिसे कि लीक कर सकते थे। रिकार्डिंग में ऐसा क्या था, जो कि बेहद महत्वपूर्ण था?

इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण रही अन्ना की चुप्पी। उन्होंने कुछ भी साफ साफ नहीं कहा। उनके सदस्य ही आगे आ कर बढ़-चढ़ कर बोलते रहे। शाजिया इल्मी तो अपनी फितरत के मुताबिक अपने से वरिष्ठ काजमी से बदतमीजी पर उतारु हो गईं। यदि अन्ना आम तौर पर मौनी बाबा रहते हों तो यह समझ में आता भी, मगर वे तो खुल कर बोलते ही रहते है। कई बार तो क्रीज से बाहर निकल पर चौके-छक्के जड़ देते हैं। कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारे जाने का ही मामला ले लीजिए। इतना बेहूदा बोले कि गले आ गया। ऊपर से नया गांधीवाद रचते हुए लंबी चौड़ी तकरीर और दे दी। ताजा प्रकरण में उनकी चुप्पी इस बात के भी संकेत देती है कि वे अपनी टीम में चल रही हलचलों से बेहद दुखी हैं। इस कारण काजमी के निकाले जाने पर कुछ बोल नहीं पाए। इस बात की ताकीद काजमी के बयान से भी होती है।

कुल मिला कर टीम अन्ना की जिस बाहरी पाकीजगी के कारण आम जनता ने सिर आंखों पर बैठा लिया, अपनी अंदरुनी नापाक हरकतों की वजह से विवादित होती जा रही है। आखिर में मेरे मित्र ऐतेजाद का वह शेर, जो उन्होंने अपनी छोटी मगर सारगर्भित टिप्पणी के साथ लिखा है-
जो चुप रहेगी जुबान-ऐ-खंजर
लहू पुकारेगा का आस्तीन का.

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