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Monday, May 14, 2012

पूर्ति की तरह आप भी उठिए, सिनेमा की खेती शुरू कर दीजिए

http://mohallalive.com/2012/05/13/purti-sohani-shared-her-experiances-about-her-first-film-gps/

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पूर्ति की तरह आप भी उठिए, सिनेमा की खेती शुरू कर दीजिए

13 MAY 2012 8 COMMENTS

♦ पूर्ति सोहनी

सिनेमा सिर्फ तकनीक से नहीं बनता। न सिर्फ पैसे से। आपके पास एक कहानी हो, तब भी आप सिनेमा के जरिये उसे कह सकें, ये जरूरी नहीं। जरूरी है वो जिद, जिसकी ओढ़नी ओढ़ कर आप चल पड़ते हैं और जैसी भी हो, एक शुरुआत कर डालते हैं। पूर्ति सोहनी ने ऐसी ही एक शुरुआत की है और जिंदगी में पहली बार एक्‍शन बोलते हुए वह एक इतिहास में शामिल हो जाती हैं, जहां पहली बार किन्‍हीं दादा साहब फाल्‍के ने एक्‍शन बोला होगा, पहली बार किन्‍हीं शांताराम, गुरुदत्त, श्‍याम बेनेगल और अनुराग कश्‍यप ने एक्‍शन बोला होगा। अपनी छोटी सी फिल्‍म के बनने की कहानी वो हमारे आग्रह पर हमसे साझा कर रही हैं : मॉडरेटर


जीपीएस उर्फ गेस प्‍यार से का पोस्‍टर। चटका लगा कर पोस्‍टर को बड़ी साइज में देखें।

मेरी साढ़े चार पेज की स्क्रिप्‍ट तैयार थी। बहुत सोच के लिखी गयी थी। अफजाल के घर की चार दीवारी से बाहर नहीं जाना था, वरना बजट उलट पलट हो जाता और एक दिन में सब शूट करना था। री-टेक्‍स ज्‍यादा न हो और एक दिन में शूट पूरी हो जाए, यह ध्‍यान में रख कर मैंने अदाकारों की एक वर्कशॉप रखी। हमने वर्कशॉप में वो सब गलतियां की, जो शूट पर नहीं करनी थी। हमारे कैमरा मैन दीपक पांडे ने अदाकारों को वर्कशॉप के दौरान रेकॉर्ड किया, जो फुटेज शूट पर बहुत काम आया।

शूट से एक दिन पहले मैंने, अफजाल और दीपक ने फैसला लिया कि हम इसे सिंक साउंड पर शूट करेंगे। सिंक साउंड पर शूट करने के फायदे और नुकसान, दोनों होते हैं। री-टेक्‍स ज्‍यादा होते हैं और शूटिंग लंबी खिंच सकती है। पर कहानी और अदाकार आम जिंदगी के करीब थे, इसलिए हमने फैसला लिया कि फिल्‍म को ऑन लोकेशन साउंड पर शूट करेंगे।

शूट का दिन आया। मैं थोड़ी घबरायी हुई थी। अफजाल के घर के बेडरूम और ड्रॉइंग हॉल में हमें शूट करना था। मेरी प्रोडक्‍शन डिजाइनर और स्‍टाइलिस्‍ट सना ख़ान दोनों कमरों को संवारने में लग गयी। अदिति चौधरी और जीशान अय्यूब जो मेरी फिल्‍म के मुख्‍य पात्र हैं, सबसे पहले शूट पर पहुंचे। हमें उनकी कुछ तस्‍वीरें उतारनी थी। स्क्रिप्‍ट में दरकार थी। अदिति और जीशान इससे पहले नहीं मिले थे। फोटो सेशन के दौरान उन दोनों में भी जान-पहचान हो गयी।

दीपक अपने कैमरा के साथ तैयार था। मैंने अपनी स्क्रिप्‍ट के अनुसार पहला शॉट दीपक को बताया। अदिति जो एक टूटे रिश्‍ते से गुजरती हुई सुनिधि का किरदार निभा रही थी, मुझे उसकी तकलीफ बहुत सरल भाव में दर्शानी थी। दीपक ने शॉट लगाया। साउंड मैन भी तैयार था, और फिर मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार 'एक्‍शन' पुकारा। बाकी आठ घंटे कैसे बीते, मुझे खुद खबर नहीं हुई।

हमारे पास कुल 40 मिनट की फुटेज इकट्ठा हुई थी, जिसको हम एडिटिंग स्‍टूडियो ले गये। इससे पहले मैंने सिर्फ सुना ही था बड़े बड़े फिल्‍ममेकर्स के मुंह से कि फिल्‍म असल में एडिटिंग टेबल पर बनती है। एडिटिंग का सबसे बड़ा अनुभव यह रहा कि जो गलतियां शूट पर हुई थीं, उन्‍हें काफी हद तक ठीक किया जा सकता है, पर इसका मतलब यह नहीं कि सेट पर आप रिलैक्‍स कर सकते हैं। हमारे एडिटर नदीम खान ने कुल चार घंटे के अंदर उस चालीस मिनट के फुटेज को साढ़े पांच मिनट की एक लघु फिल्‍म में तब्‍दील कर दिया।

अब मेरी लघु फिल्‍म तैयार थी। मैंने पहले कट को बार-बार देखा और यही सोचा कि इससे पहले मैंने फिल्‍म क्‍यों नहीं बनायी। फिल्‍ममेकिंग ऐसा अनुभव है, जो आपकी आत्‍मशक्ति को एक अलग मुकाम पर ले जाता है। मैंने और अफजाल ने यह फिल्‍म अपने दोस्‍तों को दिखायी। उन्‍होंने हमारी इस छोटी सी फिल्‍म को सराहा। मैंने तब यह महसूस किया कि मुझ जैसे अस्‍पाइरिंग फिल्‍ममेकर को एक सच्‍ची पहल करनी चाहिए। यह सोचे बिना कि अंजाम क्‍या होगा। फिल्‍म बनानी जरूरी है, दर्शक उसे छोटा या बड़ा बनाते हैं।

(पूर्ति सोहनी। युवा फिल्‍मकार। जीपीएस (गेस प्‍यार से) पहली शॉर्ट फिल्‍म। विद्या भवन, पुणे और सिंबॉयसिस कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स से डिग्रियां। पिछले कुछ सालों से मुंबई में। उनसे http://facebook.com/purti.sohani पर संपर्क कर सकते हैं।)


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