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Tuesday, February 28, 2012

गैरकानूनी आधार कार्ट पर संसदीय आपत्ति को दरकिनार करके इसे मनरेगा के साथ नत्थी करके वैधता दी जा रही है!

गैरकानूनी आधार कार्ट पर संसदीय आपत्ति को दरकिनार करके इसे मनरेगा के साथ नत्थी करके वैधता दी जा रही है!


पलाश विश्वास


गैरकानूनी आधार कार्ट पर संसदीय आपत्ति को दरकिनार करके इसे मनरेगा के साथ नत्थी करके वैधता दी जा रही है।जयराम रमेश ने कहा कि झारखंड में मनरेगा में पगार का भुगतान करने के लिए यूआईडी का इस्तेमाल हो रहा है।महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में आधार अंक का सबसे अधिक इस्तेमाल हो रहा है।आधार नंबर को मनरेगा से जोडऩे को लेकर तमाम चिंताओं को दरकिनार करते हुए जयराम रमेश ने एक बार फिर कहा है कि आधार का सबसे बड़ा उपभोक्ता मनरेगा ही है। जयराम लंबे समय से आधार को मनरेगा के साथ संबद्ध करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हालांकि जमीन पर सक्रिय लोगों को इन दोनों के बीच इस अंतरसंबंध से बहुत आपत्ति है। जयराम रमेश का कहना है कि झारखंड में पायलेट प्रोजेक्ट को आधार के साथ जोड़ा गया है और वहां सिर्फ आधार कार्ड या नंबर बता कर मजदूरी मिल रही है।पिछले दो सालों से भारत सरकार दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे अधिक प्रगतिशील परियोजना में डाटा इकट्ठा कर रही है। इस योजना के तहत देश की लगभग सवा अरब जनसंख्या को विशिष्ट पहचान नंबर या आधार (यूआईडी) कार्ड दिए जाने हैं।लेकिन इस योजना को लेकर विवाद भी पैदा हुआ है. इस पर हो रहे खर्च, डाटा के गलत इस्तेमाल और देश की सुरक्षा को लेकर खतरे पर चिंता जताई गई है।



रमेश ने संवाददाताओं से कहा कि मंत्रालय मनरेगा के तहत भुगतान में होने वाली देरी को दूर करना चाहता है. उन्होंने कहा कि झारखंड में मनरेगा में आधार अंक का इस्तेमाल हो रहा है और इसका परिणाम सकारात्मक रहा है।उन्होंने कहा कि मनरेगा के लाभार्थी माइक्रो एटीएम के सहारे बैंकिंग कॉरसपोंडेंट से 10 मिनट में पगार का भुगतान पा रहे हैं।मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि मनरेगा के तहत 80 फीसदी भुगतान बैंकों और डाकघर के माध्यम से हो रहा है, जिसके लिए 10 करोड़ खाते खाले गए हैं।मजे की बात तो यह है कि  इस योजना को देश की सबसे बड़ी रोजगार योजना बताया जाता है, लेकिन इसके क्रियान्वयन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उठाने वाले कर्मचारियों के रोजगार की ही कोई गारंटी नहीं है





आधार कार्ड योजना और मनरेगा दोनों ही केंद्र सरकार की विवादास्पद योजनाएं हैं। आधार योजना से जहां नागरिकों की निजी गोपनीयता को ​​कारपोरेट वर्चस्व के हवाले करते हुए देश की आधी आबादी की नागरिकता से वंचित करने और बहुजन मुलनिवासियों  की नैसर्गिक संपत्ति, जमीन और आजीविका से बेदखल करने की साजिश है, वहीं मनरेगा सत्तावर्ग के प्रभावशाली तबके के लिए खाने कमाने का जरिया बन गया है। लाभार्थियों को सीधे भुगतान और भ्रषटाचार खत्म करने के बहाने दोनों को जोड़कर आखिरकार आधार कार्ड परियोजना को विधिसम्मत बनाया जा रहा है, जिससे कथित लाभार्थी ही बाद में जल जमीन और जंगल से बेदखल किये जाएंगे।जयराम रमेश ने दावा किया है कि बेहतर निगरानी, सोशल आडिट और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक :सीएजी: के अंकेक्षण से मनरेगा और इंदिरा आवास योजना में कथित भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगी। ऐसे दावे कितने खखले होते हैं, इसका खुलासा तो तमाम घोटालों से हो ही चुका है। खुद रमेश पर्यावरण मंत्रालय से महज इसलिए हटा दिये गये कि कारपोरेट ​एकाधिकार घरानों को अपनी परियोजनाओं के लिए रमेश की अति सक्रयता की वजह से लंबित पर्यावरण हरी झांडी मिल जाए। विडंबना यह है कि सबसे बड़ी कारपोरेट यो आधार परियोजना को नए अवतार बतौर मारकेटिंग करने का काम रह गया है रमेश के जिम्मे!


ऊपरी तौर पर देखने से यह योजना काफी आकर्षक जरुर लगती है। मनरेगा में काम कर रहे मजदूरों को न तो पोस्ट ऑफिस जाने की जरूरत है और न ही बैंक। अब घर पर ही बैंक पहुंचेगा।  मजदूर आधार कार्ड लेकर अपने पंचायत के पंचायत भवन में आकर हर दिन पैसा जमा कर व निकाल सकते हैं। पर इसके खतरनाक अंजाम पर किसी की नजर नहीं है। वेसे भी राजकोषीय घाटे और तेल संकट के मद्देनजर अगले बजट में वित्तमंत्री मनरेगा पर एलोकेशन घटाने की सोच रहे हैं।चालू साल के लिए आम बजट में योजना को आवंटित धन का आधा भी खर्च नहीं हो पाया है, जिसका सीधा असर गरीबों की रोजी-रोटी पर पड़ा है। यही वजह है कि राज्यों के 'रवैए' से नाखुश केंद्र सरकार आगामी आम बजट में इसके आवंटन में भारी कटौती कर सकती है।


योजना के क्रियान्वयन में हुए घपलों को देखते हुए लगभग एक दर्जन बड़े राज्यों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] से जांच कराई जा रही है। जांच के डर से भी तमाम राज्यों में योजना के तहत अंधाधुंध होने वाले खर्च पर लगाम लगी है।

चालू वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अभी तक 22 हजार करोड़ रुपये जारी किए हैं। इसकेविपरीत 20 हजार करोड़ रुपये भी खर्च नहीं हो पाए हैं। मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मार्च के आखिर तक थोड़ा बहुत खर्च और बढ़ सकता है।

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल जहां 5.4 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था, वहीं चालू साल में केवल 3.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिल पाया है। दरअसल मनरेगा में भारी गड़बड़ियों की शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। योजना के पहले दो सालों में राज्यों की मांग के आधार पर केंद्र से धन जारी किया जाता था। लेकिन सत्ता में लौटने के बाद से संप्रग सरकार ने योजना की निगरानी पर ध्यान केंद्रित किया है। यही वजह है कि चौतरफा गड़बड़ियों की शिकायतें मिलीं, जिनकी जांच शुरू करा दी गई।


य़ह असंगठित मजदूरों का हुजूम तैयार करते हुए विकास परियोजनाओं, बांधों, बिजलीघरों, सेज, शहरी करण,औद्योगीकरण और अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण से बेदखल ग्रामीण आबादी को खपाने के काम आयेगा। दूसरी ओर देहात में खेतिहर मजदूरों का संकट पैदा करके खेती की लागत बढ़ाते हुए किसानों को की बेदखली का भी इंतजाम करेगा।भाई लोगों के कमाने खाने का धंधा तो शुरू से यह बन ही गया है और राजनीतिक दल इसे लेकर आये दिन एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के चुनावों में यह मसला खूब उछला।महात्मा गांधी नरेगा के तहत मजदूर अब खेती, बागवानी व पशु पालन के काम भी कर सकेंगे। सरकार ने संशोधित मनरेगा योजना में तीस नए कार्यों को शामिल किया है। इसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। साथ ही गरीबों के लिए इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) के तहत बनाए जाने वाले मकानों का निर्माण भी मनरेगा के जरिए किए जाने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। नक्सल प्रभावित जिलों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय बनाने की योजना को भी मनरेगा में शामिल किया गया है। इसे विशेष तौर पर चलाया जाएगा।


मतलब है कि गांवों में बाजार का विस्तार करने में आधार और मनरेगा दोनों का पुरकस इस्तेमाल होना है। एक ओर वंचितों को नकदी देकर बाजार में मांग की रचना करना तो दूसरी ओर बाजार का विस्तार, इस युगलबंदी का यही चरम लक्ष्य है। हर किस्म के कारपोरेट गोरखधंधे में मनरेगा ौर आधार परियोजना का इसतमाल होना है। जरा गौर कीजिए,अभी तक मनरेगा का फोकस जल संबंधित काम से रहता था, अब मनरेगा 2 में सभी तरह की खाद तैयार करना, बायो गैसप्लांट तैयार करना, मुर्गी-बकरी आदि जानवरों के रहने के लिए शेड, मछली पालन और घरों से लेकर स्कूलों और आंगनबाडिय़ों में शौचालय निर्माण करना शामिल है। केंद्र सरकार का मानना है कि इन तमाम कामों को जोड़कर मनरेगा को मजदूरों के लिए ज्यादा लुभावना और उपयोगी बनाया जा सकता है।


हालांकि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के इस आरोप का खंडन किया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के चलते खेती के कार्यो में मजदूरों की कमी हो गई है, लेकिन खेतिहर मजदूरों की कमी खेती के आधार पर प्रहार कर रही है। पूरे देश में खेतिहर मजदूरों का अभाव इन दिनों चरम पर है। बुवाई और फसल कटने के महत्वपूर्ण काल में इनकी कमी न केवल उत्पादन पर असर डाल रही है, बल्कि इसकी वजह से छोटे किसान खेती से नाता तोड़ने लगे हैं।


मनरेगा में संशोधन के लिए गठित शिशिर शाह की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशों के आधार पर संशोधित मनरेगा योजना को जारी कर बुधवार को ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इसे मनरेगा दो का नाम दिया। मनरेगा दो एक अप्रैल से प्रभावी होगी। इसमें जोड़े गए 90 फीसदी कार्य कृषि से संबंधित हैं। मनरेगा की नई सूची में 30 कार्यों को जोड़ा गया है। जिसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। इसमें पशु , मुर्गी व मछली पालन से जुड़े कार्य भी शामिल हैं। अन्य कार्यों में नक्सल प्रभावित 78 जिलों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण और इंदिरा आवास योजना का काम भी जोड़ा गया है।


जयराम के मुताबिक मनरेगा से कृषि कार्य प्रभावित होने की दलील देते हुए कई राज्यों ने खरीफ सीजन के दो महीनों के लिए इसे स्थगित करने की मांग की थी। जिसे मनरेगा दो में पूरी तरह से नकार दिया गया है। साथ ही मनरेगा राशि का 60 फीसदी खर्च मजदूरी व 40 फीसदी सामग्री पर खर्च के कानून में परिवर्तन कर इसे 50-50 फीसदी करने की राज्यों की मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया गया है। नए कार्यों में शुद्ध पेयजल योजना को भी शामिल किया गया है। लेकिन मनरेगा के तहत शुद्ध पेयजल योजना सिर्फ निर्मल गांवों में ही क्रियान्वित की जाएगी।



केंद्र सरकार के सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी भले ही पूरे देश में लागू करने का सपना बुन रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि अभी तक इस योजना के लिए आवंटित आधी धनराशि भी खर्च नहीं हो पाई है। ऐसे में मनरेगा-2 जिसे मनरेगा का नया अवतार कहा जा रहा है, उसमें 30 नए तरह के काम जोड़कर उसे ज्यादा आकर्षक बनाने की कोशिश की गई है। अप्रैल से मनरेगा-2 के लागू होने की घोषणा करते हुए यह साफ कर दिया गया कि बुआई-कटाई के मौसम में मनरेगा पर रोक लगाने की कृषि मंत्री की मांग को खारिज कर दिया है। कृषि मंत्री शरद पवार लंबे समय से यह कह रहे हैं कि मनरेगा के चलते खेती प्रभावित हो रही है और इस समय इस पर रोक लगा देनी चाहिए। कृषि के कामों को मनरेगा के तहत बढ़ावा देने के लिए 28 नए काम शामिल किए गए है। योजना आयोग के सदस्य मिहिर शाह की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशें स्वीकार करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि नए रंग-रूप में मनरेगा गांवों की तस्वीर को बेहतर ढंग से बदलेगी। हालांकि यह समिति मनरेगा से जुड़े दो अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर खामोश रही-पहला राहुल का एजेंडा जिसमें इसे देश के तमाम जिलों में शामिल करने की बात है, दूसरा मनरेगा की मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी से जोडऩे के बारे में।  आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश में जिस तरह से मनरेगा के कार्यक्रमों को दूसरी योजनाओं के साथ संबद्ध किया गया है, उसी की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर पहल करने की बात कही गई है।



मालूम हो कि मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी के मुद्दे पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देशों पर झुकने से पहले इस मामले पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और सिंह दोनों के रूख सख्त थे. केन्द्र वित्तपोषित मनरेगा के तहत प्रति व्यक्ति प्रति दिन 100 रुपये का भुगतान किया जाता है और साल में अनिवार्यत 100 दिन का रोजगार दिया जाता है.

कुछ राज्यों ने मनरेगा के तहत तय राशि के मुकाबले न्यूनतम मजदूरी की राशि में बहुत इजाफ़ा कर दिया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 23 सितंबर को मनरेगा में मजदूरी के निर्धारण को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दरें इस तरह से निर्धारित हों कि वे राज्य सरकारों की ओर से अपने क्षेत्रों में कृषि मजदूरों के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं हों.

केन्द्र ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय से इसी तरह के फ़ैसले की अपेक्षा करते हुए एक विशेष अनुमति याचिका एसएलपी के माध्यम से इस फ़ैसले को उच्चतम न्यायलय में चुनौती देने का फ़ैसला किया।

रमेश ने तीन आधार पर - सात दिसंबर 2010 के अटार्नी जनरल के विचार, 11 नवंबर 2010 को प्रधानमंत्री को लिखे गए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी का पत्र और मनरेगा और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए मनरेगा में परिवर्तन का समर्थन करने वाले अपने विचार के आधार पर एसएलपी का विरोध किया था।

लंबी चर्चा के बाद सरकार ने एक एसएलपी दायर की लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस साल 23 जनवरी को उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन देने से इनकार कर दिया. एसएलपी के पीछे सिंह और रमेश के बीच चिट्ठियों और बैठकों का सिलसिला है जहां दोनों के सख्त रूख स्पष्ट थे।

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत यह पत्र सुभाष अग्रवाल को प्रकट किए गए हैं जो दिखाते हैं कि केन्द्र उच्च न्यायालय के फ़ैसले को चुनौती देना चाहता था।

इस कदम का विरोध करते हुए रमेश ने 30 अक्तूबर 2011 को प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना ''परामर्श योग्य नहीं है।'' रमेश ने यह भी कहा था कि इसकी संभावना है कि उच्चतम न्यायालय मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान के प्रावधानों को उसी आधार पर उल्लंघन करार देगा जिस आधार पर उच्च न्यायालय ने ठहराया था।

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