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Wednesday, January 25, 2012

अजित सिंह को भी भाया मायावती का फार्मूला

अजित सिंह को भी भाया मायावती का फार्मूला


Wednesday, 25 January 2012 09:42

अनिल बंसल

नई दिल्ली, 25 जनवरी। कांग्रेस से गठबंधन की वजह से बसपा को कोस रहे हों पर टिकट बांटने में अजित सिंह को मायावती का फार्मूला ही रास आया है। उत्तर प्रदेश में अपने हिस्से की 46 विधानसभा सीटों पर अजित ने नौ मुसलमान और आठ गैरजाट पिछड़ों को उम्मीदवार बनाया है। 11 जाट उम्मीदवार भी उत्तर प्रदेश के लिहाज से तो पिछड़ों की सूची में ही हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने यूपी के जाटों को अभी पिछड़ा नहीं माना है। उत्तर प्रदेश में उन्हें पिछड़े तबके में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्त ने शामिल किया था। पर उलटबांसी देखिए कि जाटों के सूबे में सबसे बड़े नेता माने जानेवाले अजित सिंह ने 46 में से एक भी टिकट रामप्रकाश गुप्त की बनिया बिरादरी को नहीं दिया है। 
मायावती का एक और नुस्खा टिकट बांटने में राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया ने आजमाया है। अपने मौजूदा दस विधायकों में से उन्होंने छह की छुट्टी कर दी है। केवल चार को ही फिर टिकट दिए हैं। इनमें लोनी से मदन भैया, बागपत से कोकब हमीद, बलदेव (सुरक्षित) से पूरन प्रकाश जाटव और मीरापुर से मिथलेश पाल ही उनकी कसौटी पर खरे उतरे हैं। हालांकि इन चारों का अपना भी इलाकों में दबदबा है। लिहाजा अजित सिंह चाहते भी तो उन्हें बदलने से घाटा ही होता। अपने सांसद बेटे जयंत चौधरी को भी उन्होंने मथुरा जिले की जाट बहुल मांट सीट से टिकट दिया है। यह दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। अभी से संकेत मिल रहे हैं कि अगली विधानसभा में बहुमत शायद ही किसी पार्टी को मिल पाए और वह त्रिशंकु ही रहेगी। ऐसे में अजित सिंह की सरकार के गठन में अहम भूमिका हो जाएगी। तब वे अपने बेटे को मंत्री बनवा सकेंगे। 
कांग्रेस से हाथ मिला कर अजित सिंह ने खासा जोखिम मोल लिया है। उत्तर प्रदेश में जाटों का मिजाज मोटे तौर पर कांग्रेस विरोधी रहा है। 1979 में इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवा कर बड़ी जल्दी उनकी सरकार गिरा दी थी। तभी से जाट कांग्रेस से खफा चले आ रहे हैं। राम लहर की वजह से वे अजित सिंह के बाद भाजपा को पसंद करते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने बसपा के समर्थन से भी गुरेज नहीं किया था। कांग्रेस ने अजित सिंह से अपने सियासी फायदे के लिए हाथ मिलाया है। चुनावी नतीजे ही तय करेंगे कि किसे फायदा होगा और किसे नुकसान। 
अपने हिस्से की 46 सीटों में से महिलाओं को अजित सिंह ने दो ही टिकट दिए हैं। इनमें मीरापुर से उम्मीदवार बनाई गई अतिपिछड़े तबके की मिथिलेश पाल पिछली दफा भी जीती थीं। दूसरी महिला उम्मीदवार अंशु नागपाल को नौगांव सादात से टिकट दिया गया है। इसकी वजह उनके सांसद पति देवेंद्र नागपाल हैं। अंशु को नागपाल ने इससे पहले गाजियाबाद से मेयर का चुनाव भी लड़वाया था। पर वे हार गर्इं थीं। खुद देवेंद्र नागपाल 2009 में अमरोहा से रालोद के उम्मीदवार की हैसियत से लोकसभा चुनाव जीते थे। खत्री बिरादरी के नागपाल का अपने इलाके में खासा असर है। हालांकि उनकी बिरादरी के वहां ज्यादा मतदाता नहीं हैं। 
जिन मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया गया है वे बगावत पर आमादा हैं। पर अजित सिंह को इसकी ज्यादा चिंता नहीं है। वे दलील दे रहे हैं कि नए लोगों को भी मौका देना जरूरी है। एक ही परिवार को लगातार तरजीह नहीं दी जा सकती। यह टिप्पणी वे बरनावा के अपने मौजूदा विधायक सत्येंद्र सोलंकी के संदर्भ में करते हैं। बरनावा सीट परिसीमन की वजह से खत्म हो गई और उसकी जगह नई बड़ौत सीट अस्तित्व में आ गई। सोलंकी बड़ौत से ही दावेदार थे। पर यहां अजित सिंह ने नए उम्मीदवार अश्विनी तोमर को टिकट दे दिया। इससे पहले छपरौली सीट से उन्होंने एक बार सोलंकी के ससुर महक सिंह को और एक बार उनके साले अजय को टिकट देकर विधायक बनवाया था। छपरौली उनका अभेद्य दुर्ग माना जाता है। पिछली बार यहां डाक्टर अजय तोमर जीते थे। इस बार उन्हें भी अजित ने बदल दिया। उनकी जगह वीरपाल राठी को उम्मीदवार बना दिया है। 

गैरजाट पिछड़ों में तीन उम्मीदवार गूजर हैं। इनमें मदन भैया पुराने बाहुबली हैं। वे निर्दलीय भी जीत चुके हैं। लिहाजा अजित उन्हें बदल नहीं पाते। दूसरा गूजर उम्मीदवार उन्होंने खतौली में उतारा है। फरीदाबाद के कांग्रेस सांसद अवतार सिंह भड़ाना के भाई करतार सिंह भड़ाना को उन्होंने इस उम्मीद से टिकट दिया है कि वे गूजर वोट अपने बूते लाएंगे और अजित के जाट वोटों के बल पर जीत जाएंगे। पिछली बार खतौली में अजित सिंह के राजपाल बालियान को बसपा के योगराज सिंह ने हरा दिया था। पर अब खतौली सीट का परिसीमन होने के बाद जातीय गणित बदला है। इसीलिए बालियान को अजित सिंह ने जाट बहुल बुढ़ाना सीट पर उतारा है। 
अगड़ों में अजित सिंह ने राजपूतों को तरजीह दी है। सात राजपूत उम्मीदवारों में चर्चित रिटायर पीसीएस अफसर बाबा हरदेव सिंह एत्मादपुर और बिलारी के राजपरिवार के नाती युवराज दिग्विजय सिंह को बिलारी से ही उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के एमएलसी रह चुके मुन्ना सिंह चौहान को फैजाबाद की बीकापुर सीट से टिकट दिया गया है। मथुरा के जाट विधायक अनिल चौधरी को इस बार टिकट नहीं दिया गया है। इसी तरह इगलास और खैर से   पिछली बार जीते अपने विधायकों को भी निराश किया है। बेशक इगलास और खैर सीटें परिसीमन की वजह से अस्तित्व में नहीं बचीं पर उनकी जगह नई बनी सीटों पर भी राजपाल वालियान जैसी कृपा अजित ने इन दोनों पर करना जरूरी नहीं समझा। 
उम्मीदवारों के चयन में अजित हर सीट पर जातीय जोड़तोड़ बिठाने की कोशिश में नजर आते हैं। मसलन, कहीं उन्हें जाट और मुसलमान गठजोड़ की उम्मीद है तो कहीं जाट और गूजर की। अपनी छह सुरक्षित सीटों पर उन्होंने केवल बलदेव में ही मायावती की जाटव जाति के मौजूदा विधायक पूरन प्रकाश को मौका दिया है। बाकी चारों सुरक्षित सीटों पर गैर जाटव दलित यानी धोबी और खटीक उम्मीदवार उतारे हैं। जिन तीन ब्राह्मणों को उम्मीदवार बनाया है उनमें मोदी नगर के सुदेश शर्मा अभी नगरपालिका के चेयरमैन हैं। 
जाट उम्मीदवारों में राजपाल बालियान (बुढ़ाना), स्वामी ओमवेश (चांदपुर), अनिल कुमार (कांठ), यशवीर सिंह (सिवाल खास), वीरपाल राठी (छपरौली), अश्विनी तोमर (बड़ौत), राजीव चौधरी (अनूप शहर), किरनपाल सिंह (शिकारपुर), प्रताप चौधरी (सादाबाद), जयंत चौधरी (मांठ) और बाबूलाल (फतेहपुर सीकरी) हैं। इनमें ओमवेश, किरनपाल और बाबूलाल मंत्री रह चुके हैं। किरनपाल सपा छोड़ कर रालोद में आए हैं। छाता से उम्मीदवार बनाए गए तेजपाल सिंह ठाकुर भी पूर्व में मंत्री रह चुके हैं। अजित की सबसे ज्यादा आलोचना सरधना से हाजी याकूब कुरेशी को उम्मीदवार बनाने के लिए हो रही है। याकूब पिछला चुनाव यूडीएफ उम्मीदवार की हैसियत से मेरठ शहर से जीते थे। फिर बसपा में शामिल हो गए थे। पर उनकी विवादास्पद छवि और भड़काऊ गतिविधियों की वजह से मायावती ने उन्हें पिछले दिनों पार्टी से निकाल दिया था।

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