क्या मुसाफिर बैठा बिहार सरकार से डर गये?
क्या मुसाफिर बैठा बिहार सरकार से डर गये?
♦ विनीत कुमार
बिहार में बहुजन ब्रेन बैंक के लीडर मुसाफिर बैठा का फेसबुक अकाउंट बहुत पवित्र हो गया है। बिहार सरकार क्या, किसी के भी खिलाफ कुछ भी नहीं है यहां, देखिए https://www.facebook.com/mbaitha। मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है कि मैंने क्यों ऐसे लोगों का भावनात्मक होकर साथ दिया। बिहार सरकार के खिलाफ इनकी मुहिम में लगातार लिखा और इन्हें वर्चुअल स्पेस का असली नायक समझ बैठा। ऐसे लोग भरोसा तोड़ते हैं और हमें हतोत्साहित करते हैं कि आप कभी किसी का साथ न दो। …share this status
मुसाफिर बैठा, जो कभी फेसबुक के मसीहा बने फिरते थे और बिहार सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद रखते थे, उन्होंने सारी बातें डिलीट कर दी। दिलीप मंडल ने उन्हें लेकर हम जैसे लोगों की लिखी पोस्टें जुटाकर एक किताब तक संपादित कर दी। आज मैं बहुत ठगा महसूस कर रहा हूं। हम क्यों ऐसे लोगों का साथ देते हैं, जिनकी रीढ़ रेंगने भर लायक होती है, खड़े होकर प्रतिरोध करने की नहीं। … share this status
मुसाफिर बैठा के समर्थन में मोहल्लालाइव पर मैंने जो पोस्ट लिखी थी, उसे दिलीप मंडल ने बिना मेरी पूर्वअनुमति के किताब की शक्ल में शामिल कर लिया था। उसमें मोहल्लालाइव का कहीं जिक्र तक नहीं किया और ऐसा लगा कि मैंने ये लेख बिहार में बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला के लिए ही लिखा हो। हमने तब दिलीप मंडल को मेल के जरिये अपनी बात रखी थी, जबकि पब्लिकली कुछ नहीं कहा कि इससे प्रतिरोध की धार कमजोर पड़ती। लेकिन आज मैं इस किताब की सारी प्रति से अपनी ये पोस्ट फाड़कर जलाना चाहता हूं। … share this status
मुसाफिर बैठा और दिलीप मंडल जैसे लोगों ने फेसबुक और सोशल मीडिया को लेकर जिस तरह नुकसान किया है, अब हमें किसी भी मसले पर साथ खड़े होने का मन नहीं करता। ऐसा लगता है कि इन लोगों ने अब तक विरोध सिर्फ इसलिए किया कि इन्हें अवसर उपलब्ध नहीं थे। ईर्ष्या और मौके का न मिलना ही इनकी नैतिकता थी, जबकि इनके प्रतिरोध की भी प्राइस टैग लगी थी। … share this status
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♦ 'मीडिया कंट्रोल: बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला' लोकार्पित
♦ वो दिमाग जो खुशामदी नहीं है, सरकारों के लिए खतरा है!
♦ बिहार में विसिल ब्लोअर को सजा, साफ है कि कुशासन है!
♦ अभिव्यक्ति की आजादी खत्म करने के लिए हुआ निलंबन
♦ मीडिया को खरीदने के बाद अब स्वतंत्र आवाजों पर हमले!
♦ प्रतिरोध की हर आवाज पर रहती है नीतीश की तिरछी नजर!
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(विनीत कुमार। युवा और तीक्ष्ण मीडिया विश्लेषक। ओजस्वी वक्ता। दिल्ली विश्वविद्यालय से शोध। मशहूर ब्लॉग राइटर। कई राष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सेदारी, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन। हुंकार और टीवी प्लस नाम के दो ब्लॉग। उनसे vineetdu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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विनीत कुमार की बाकी पोस्ट पढ़ें : mohallalive.com/tag/vineet-kumar
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असहमति, आमुख, फेसबुक से, मीडिया मंडी »
विनीत कुमार ♦ बिहार में बहुजन ब्रेन बैंक के लीडर मुसाफिर बैठा का फेसबुक अकाउंट बहुत पवित्र हो गया है। बिहार सरकार क्या, किसी के भी खिलाफ कुछ भी नहीं है। मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है कि मैंने क्यों ऐसे लोगों का भावनात्मक होकर साथ दिया। ऐसे लोग भरोसा तोड़ते हैं और हमें हतोत्साहित करते हैं कि आप कभी किसी का साथ न दो।
मीडिया मंडी »
विनीत कुमार ♦ पत्रकार से मीडियाकर्मी, मीडियाकर्मी से मालिक और तब सरकार का दलाल होने के सफर में नामचीन पत्रकारों के बीच पिछले कुछ सालों से मीडिया के किसी भी सेमिनार को सर्कस में तब्दील कर देने का नया शगल पैदा हुआ है। उस सर्कस में रोमांच पैदा करने के लिए वो लगातार अपनी ही पीठ पर कोड़े मारते चले जाते हैं और ऑडिएंस तालियां पीटने लग जाती है।
नज़रिया, मीडिया मंडी, संघर्ष »
विनीत कुमार ♦ किसी नेता के करियर के लिए तानाशाह के बजाय मूर्ख कहलाना ज्यादा घातक स्थिति हो सकती है। लेकिन सवाल है कि कपिल सिब्बल को इडियट या मूर्ख करार देने के बाद क्या? क्या ये सिब्बल की मूर्खताभर का हिस्सा है कि जो शख्स मोबाइल से रोज एसएमएस की शक्ल में कविताएं लिखता रहा और साल 2008 में बाजे-गाजे के साथ पेंग्विन से किताब की शक्ल में छपवा लाया, वही शख्स फेसबुक और ट्विटर पर लाखों लोगों के ऐसा किये जाने का विरोध माध्यम की अज्ञानता के कारण कर रहा है?
मोहल्ला दिल्ली »
विनीत कुमार ♦ ये कोई पहला मामला है जबकि सामाजिक सरोकार और जागरूकता के नाम पर होनेवाले कार्यक्रमों के भीतर धंधे और फिर चीटिंग के जाल बिछाये जाते हैं? शरद पेशे से कार्टून जर्नलिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अलग-अलग तरीके से अपनी बात उठा सकते हैं। लेकिन क्या सब ऐसा करने की स्थिति में होते हैं?
ख़बर भी नज़र भी, मोहल्ला दिल्ली, मोहल्ला लाइव, विश्वविद्यालय, सिनेमा »
विनीत कुमार ♦ मैं लिखने को जरूरी मानता हूं इसलिए न तो रिपोर्ट लिखने को लेकर कोई आपत्ति है और न ही दिलीप मंडल की मीरा की भक्ति-भावना कहकर उपहास ही उड़ाना जरूरी समझता हूं। बस ये कि आप प्लीज ऐसा करके पीआर एजैंसियों को एक कमाऊ फार्मूला न थमा दें, जिस पर कि कल को आपका ही नियंत्रण न रह सके। ऐसे कार्यक्रम इससे सौ गुनी ताकत के साथ शुरू होने लग जाएं और कलाकारों के प्रति सदिच्छा का भाव मार्केटिंग स्ट्रैटजी में तब्दील हो जाएं। बाकी आप सब ये कहने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं कि ओबीसी की राजनीति को लेकर दिलीप मंडल इन सबसे अलग क्या कर रहे हैं?
नज़रिया, फेसबुक से »
राहुल सिंह ♦ बात फकत इतनी है कि पूरे मामले को समझे बिना तुम उसी तात्कालिकता के फेर में उलझ गये। जो तुम होना चाहते हो, उसके लिए जिस त्याग और साहस की आवश्यकता है, उससे कोसों दूर हो, इसलिए छद्म क्रांतिकारिता से बचो। रही बात सबाल्टर्न की तो मामला दिलचस्प है। आरक्षण का विरोध करनेवाले अगर जातिवादी हैं, तो उसके समर्थक क्यों नहीं?
ख़बर भी नज़र भी, स्मृति »
विनीत कुमार ♦ कैसेट संस्कृति के बीच से लोकप्रिय होनेवाले जगजीत सिंह ने गजल की दुनिया में आखिर क्या कर दिया कि गजल सुनने और न सुननेवालों के बीच की विभाजन रेखा खत्म होती जान पड़ती है। मतलब ये कि जो अटरिया पे लोटन कबूतर रे और ए स्साला, अभी-अभी हुआ यकीं (जेड जेनरेशन) सुननेवाला भी शाम से आंख में नमी सी है गुनगुनाता है और वो इस बात का दंभ नहीं भरता कि गजल सुन और गुनगुना रहा है बल्कि जगजीत सिंह को सुन और गुनगुना रहा है?
नज़रिया, मीडिया मंडी, सिनेमा »
विनीत कुमार ♦ मल्हारगंज थाने में उसके खिलाफ आईपीसी के सेक्शन – 295 ए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। ये वो धारा है, जिसे कि समाज के किसी तबके की धार्मिक भावना को भड़काने के संदर्भ में लगाया जाता है। उसके साथ बहुत ही बुरा सलूक किया गया। अभी भाजपा समर्थक लोग मुस्सिवर को अलग-अलग तरीके से परेशान कर रहे हैं।
मीडिया मंडी, मोहल्ला पटना, संघर्ष »
विनीत कुमार ♦ खबर के नाम पर आप जो देख/पढ़ रहे हैं, वो नीलामी के बाद का निकला हुआ माल है, जिसके लगातार उपयोग से आप बहुत बड़े कुकर्म का साथ दे रहे हैं। आप उसकी खाल मजबूत कर रहे हैं जो कि अब तक के शोषण के तमाम औजारों से भी ज्यादा घातक हमले कर रहा है।
ख़बर भी नज़र भी, फेसबुक से, मोहल्ला दिल्ली, मोहल्ला लाइव, सिनेमा »
विनीत कुमार ♦ गांड, चोद (अनुराग कश्यप) के बाद अब बहनचोद और बंदूक की तरह खड़ा लौड़ा सेमिनारों में बड़े इत्मीनान से इस्तेमाल किया जाने लगा है। दर्शक किस दैवी शक्ति से इसे पचा ले रहे हैं, नहीं मालूम। लेकिन मैंने जो बात कही थी कि गालियों का अगर बहुत इस्तेमाल होने लगे तो ये किसी भी विधा के लिए रिवेन्यू जेनरेट करने का जरिया नहीं रह जाएगा
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