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Sunday, September 5, 2010

हत्‍या के सभी मामलों में मीडिया को चीखना चाहिए


हत्‍या के सभी मामलों में मीडिया को चीखना चाहिए

बिहार के लखीसराय में माओवादियों ने अपने साथियों को छुड़ाने के एवज में तीन पुलिसकर्मियों को बंधक बना लिया। इनमें से एक की हत्‍या कर देने के बाद माओवादियों के अमानवीय किस्‍सों से पटी मीडिया की खबरों ने पूरे देश को हिला दिया। माओवादियों के इस कृत्‍य की चारों ओर निंदा हुई और हो रही है। ऐसे में लेखिका अरुंधती राय ने भी अपना बयान जारी किया है। अरुंधती के मुताबिक मीडिया की ओर से निंदा-बुलेटिन में बांट-बखरा नहीं होना चाहिए। मीडिया को फर्जी पुलिस मुठभेड़ में मारे जा रहे माओवादियों के बारे में भी ऐसी ही संवेदनशीलता से बातें करनी चाहिए : मॉडरेटर

[ माओवादियों द्वारा बिहार में पुलिसकर्मियों को बंधक बनाना और उनमें एक की हत्या उतना ही निंदनीय है, जितना कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मुठभेड़ का सच सामने आने के बाद आंध्र पुलिस के हाथों आजाद और हेमचंद्र पांडेय की हत्या। एक मुद्दे को उजागर कर और दूसरे को दबा कर मीडिया अपनी पक्षधरता साबित नहीं कर सकता। मीडिया के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। ]

2 Comments »

  • sudhanshu chouhan said:

    अरूंधती जी,
    आपकी विचारधारा का आधार क्या है, ये सभी जान चुके हैं। आप उनकी तरफ़दारी कर रहे हैं, जो —
    – न सिर्फ़ आईएसआई से संबंध रखते हैं, बल्कि उनके हथियार भी इस्तेमाल करते हैं…..
    – रेल की पटरी उड़ाकर सैकड़ों मासूमों को मौत के घाट उतार देते हैं…..
    – साथी माओवादी औरतों के साथ बलात्कार करते है…..
    – किशन जी … संबंध रखते है….
    – मासूमों को अनाथ और बेवा बनाने की फ़ैक्ट्री चला रहे हैं वो…

    उपरोक्त सारी बातें किसी से भी छुपी हुई नहीं हैं…..

    ======= गनीमत है कि आप भारत जैसे देश में हैं….नहीं तो किसी और देश में अबतक आपको भी तसलीमा नसरीन की तरह खदेड़ दिया जाता।।।।।।।।
    लेकिन तसलीमा जी वैसी नहीं हैं, क्योंकि उनकी मुहिम सच्चाई के लिए है। और आप तो डपोरशंखी हैं….जिस मीडिया की दलाली कर आपने ख़्याति बटोरी आज उसी को नसीहत दे रही हैं…………..

  • Niranjan said:

    aise logo ke karan hi maowadio ka mann badh raha hai. arundhati ji aapke baare me bahut suna hu, lekin aisa bayan bachkana lag raha hai. aap un logo ko support kr rhi hain jinhe begunaho ka khun bahane me jara bhi jhijhak nhi hoti. jin mulyo ko leke mawowai chale the, kya aapko lagta hai wo un mulyo ko maan rhe hain? nhi…
    main aapse sirf ye kahna chahta hu ki wo sarkar se kahe jo bhi kahna hai, begunah logo ka khun kyu baha rhe hain. isme desh ki janta ka kya dosh…?
    jara sochiye aap, kya begunaho ka khun bahana sahi hai….?
    aur main to ye bhi kahunga ki aise log jo desh hit ki na soch aatanki ho chuke mawowadiyo ka support krte hain… unki baato ko tawajjo na de to behtar hai… aise logo ki soch ko batane ka kya matlab hai…?
    kripya aise aalekh naa chhape, desh hit ke liye…

  • समरेंद्र said:

    अरुंधती की यह प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है। इस दौर में जब युद्ध की मानसिकता हावी हो, वहां हिंसा के विरुद्ध हर किसी को चीखना ही चाहिए। चाहे वो हिंसा नक्सलियों की तरफ से हो या फिर राज्य की तरफ से। जरा सोचिए कि हम सब जब मिलकर एक साथ चीखेंगे तो हमारी आवाज़ों से वो गर्मी पैदा होगी कि वर्षों से जमी बर्फ पिघल जाएगी। तब नक्सली भी अपनी कट्टरता छोड़ कर बात करने को तैयार होंगे और ताकत के नशे में चूर राज्य भी तभी बात करने की कोशिश करेगा।

  • rafat alam said:

    हिंसा किसी की भी हो निंदनीय है.मैं किसी वाद से सम्बंधित नहीं हूँ .मैं तो एक आम आदमी हूँ जो पुलिस मुर्दे से उतना ही विचलित होता हूँ जितना नक्सल मुर्दे से.मैं तो यह सोचता हूँ कोई हिंसा हो उसमे मानवता और विकास दोनों की हत्या होती है .साहिर साब की कविता की पंक्तियाँ याद आ रही हैं
    टेंक आगे बढ़े के पीछे हटें /धरती की कोख बाँझ होती है
    जश्न जीत का हो के सोग हार का /जिंदगी मय्यतों को रोती है
    यह कमाल है ,मेरे महान देश के नोकरशाहों/सत्ताधारिओं /अधिकरियों का कि चापलूसी में सबसे आगे रहते हैं मगर किसी प्रॉब्लम से लड़ते समय पीछे.ज़िम्मेदारी निचले स्तर पर डाल कर मस्त हो जाते हैं. प्रॉब्लम को मामूली खुजली से सड़ता नासूर बनने देते है. आफत उनकी की जिनके पास ना तो उचित संख्या बल है नाप्रॉब्लम से लड़ने के अवश्यक संसाधन और बहादुर – जिम्मेदार लीडर ना होने से मनोबल भी गिरे हुए. निम्नस्तर संसाधन खरीद का कमीशन तो आकाओं के प्राइवेट लाकरों में हज़म है. अरुंधती राय जी या इसी पोस्ट के इक टिप्पणीकार दोनों से ही सहमत होना मुश्किल है क्यों कि दोनों ही अपनी विचारधारा के कैदी हैं.मुंह काला तो उनका होना चाहिये जो कुछ समय बाद ही हमारे दर पर आएंगे और हम बिना लाशों का हिसाब पूंछे भेड़ चल से उन्ही की ताजपोशी कार देंगे .

  • rafat alam said:

    मोडरेटर साब,आपके हवाले से मीडिया की भी अर्ज करना चाहता हूँ .मीडिया सनसनी,टी.आर.पी.और मीडिया मालिकों की केद में है .मीडिया जिसे वास्तविक रूप से चोथा स्तंभ होना चाहिए अधिकांश पूर्वाग्रहों के रोग से ग्रसित है .मीडिया अक्सर खबरों को उसी रूप में दिखाता है जिससे उसके मालिकों की तिजोरी की तरफ सोना जाता हो .मीडिया के लिए ईमानदारी और नेतिकता कोई मानी नहीं रखते .हर चैनल को केवल टी.आर.पी. और विज्ञापन की तलाश है.

  • manu manju shukla said:

    koi bhi janm se ataki or maauvadi nahi hota insan ko smjhna hai to insan banna hoga .. is liya mara bhi manna hai htya kish ki bhi ho sach ko samne lana hi midiya ka uddesh hona chahiye

  • babavijayendra said:

    jab tak bhookha nanga insan rahega, dharti par tuphan rahega, chahe wah toophan naxal ke roop me ho, ya maoist ke roop me.Arundhati chup ho sakti hai ya phir rajya ke dwara karayi jaa sakti hai, par rotee ke prashno par rakha bharee patthar kab hategaa? loktantra kee baat party wale naa hee kare to achha hai.bhookh, bekaree bemaree ,bebasee paida karne wale state aur uske dalalo ko media kuchh kyo nahee kahta. pahale inke chehre ko to benakab karo mediakarmiyo? shayad gair- jarooree hinsha me naxalite ko bhee vishwas nahee,ek do ke marne ke bad itnee hay tauba par desh ka nizam to pooree pidhee koo hee soolee par chadha dee hai, uska kya karna hai? ye bhookh se bhee ladkhadaye to aap kahte hai kee peekar aaya hai? desh aur deshbhaktee sonia aur manmohan ko kyo nahee padhate? yah sab kewal bhookhe nange ke liye hai kya?bhookh bebasee ke khilaf jaree jang me arundhatee taqat laga rahee hai,iska swagat karte hai. kaun patrkar ganesh shankar vidyarthee kaa aulad hai jo updesh de rahe hai. tuchche aur lafange patrakar ke bayan aur bolee ka mahatwa hee kya hai?

  • ramya said:

    media kin muddon ko uthaye aur kinko nhi ye to satta varg tay karta hai aur satta paksh kabhi aam janata ke saath nhi hota aur hamara media ka varg chritra bhi badal chuka hai. ab vah aam aadami ki baat nhi kahta..arundhati ne to yahi kaha hai ki media ko nishpakhstata se sabhi hataayon ke baare me likhna chahiye…ye ek seedhi si baat hai jo shayad arundhati ka virodh karne waalo ke samajh me nhi aayegi…

  • ak pankaj said:

    आज 5 अगस्त की सुबह से ही बिहार-झारखंड के चैनलों पर एक बड़ा ही फिल्मी मेलोड्रामा चल रहा है। एक आदमी अपना चेहरा छुपाये रजनी यादव के घर आता है और मीडिया व उपस्थित लोगों के सामने चीख-चीखकर कहता है, 'नक्सलियों की भी मां-बहन है। मैं यहां अपनी बहन … अपने भांजे-भांजियों की पुकार सुनकर आया हूं। मानवता की अपील पर एक भाई अपने बहन के घर आया है'। इसके बाद रजनी उस आये हुए व्यक्ति को जो कि खुद को नक्सली बताता है, की कलाई पर राखी बांधती है। फिर रजनी यादव चेहरे पर छलकती हुई खुशी के साथ बाइट देती है, 'वे 6 बजे मेरे घर आए और कहा मैं आपको अपनी बहन मानता हूं जिसके बाद मैंने उनको राखी बांधी। उस नक्सली ने कहा कि तुमने मुझे अपना भाई कहा है इसलिए मैं तुमसे राखी बंधवा रहा हूं और तुम्हारा सुहाग वापस लौटा रहा हूं।'
    रजनी यादव नक्सलियों द्वारा बीते रविवार 29 अगस्त को बंधक बनालिए गए बिहार मिलिट्री पुलिस के तीन पुलिसकर्मियों में से एक अभय यादव की पत्नी हैं। इस समाचार के आने के बाद से झारखंड में आदिवासी लोग पूछ रहे हैं, '… क्या लुकस टेटे की पत्नी नक्सलियों की बहन नहीं है? क्या एक आदिवासी महिला की पुकार में वह अपील नहीं थी?' क्या लुकस टेटे सिर्फ इसलिए मारा गया कि वह आदिवासी था! या उसकी हत्या से बिहार चुनाव में नितीश-लालू को 'वोट बैंक' का कोई नुकसान नहीं होनेवाला था? पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए जिस तरह की कार्रवाई माओवादियों ने की थी, क्या यह ड्रामा भी चुनाव में नितीश को फायदा पहुंचाने के लिए की गई कोई 'डील' है? क्योंकि यादव, कायस्थ और अल्पसंख्यक नहीं मारे जाते हैं, मारा जाता है आदिवासी!' बिहार में जो वोट बैंक नहीं है।
    माओवादी संघर्ष में आदिवासी हरावल दस्ता हैं। आदिवासियों के ठिकाने ही उनके पनाहगाह हैं। पर झारखंड में आदिवासी पर्व-त्योहारों पर माओवादी बंद बुलाते हैं। आदिवासी इलाकों में एक्शन करके गायब हो जाते हैं और अपने पीछे छोड़ जाते हैं राज्य दमन के लिए आदिवासी बस्तियां, औरतें और बूढ़े। कंधमाल (उड़ीसा) और लालगढ़ में यही हुआ था। और जब किसी बंधक को मारना भी होता है तो आदिवासी को ही मारते हैं।
    (इस प्रतिक्रिया को किसी भी दृष्टिकोण से राज्य सत्ता के पक्ष में नहीं माना जाए।)

  • ak pankaj said:

    5 अगस्त नहीं 5 सितम्बर पढ़ें

  • bhootnath said:

    Arundhati roy jaisi naxal ki pravakta par karravai na hona sarkar ki kamjori hai. aisy lady ki jagah jail mein honi chahiye.Media se bhi anurodh hai ki aise rashtravirodhi tattvo ko vah najarandaj kare.

  • arun said:

    अरुंधती जी को मीडिया का दलाल कहने वाले भोले बच्चे है जों मीडिया को न समझतें है न भारत को न ही उन्हें नक्सलवाद से कोई सरोकार है ….. भाई साहब अघाए हुए मूढ़ है जों अपने को चिंतक घोषित करने के लिए नीचता के किसी भी स्तर तक उतर सकतें है . इस गधे को यह तक नही पता की सरकार ने अभी तक एक भी सबूत नही पेस किये की नक्सलियों ने पटरी उड़ाई . अभी तक नक्सलियों के बलात्कार की शिकार कोई महिला सामने नही आयीं जाने कहाँ से इन महा मानव को यह सपना आ गया ….


--
Palash Biswas
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2 comments:

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