नागरिक सम्प्रभूता पर खबरदारी और ग्लोबल सरकार की तैयारी
पलाश विश्वास
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प्रत्येक भारतीय को उसकी बायोमैट्रिक पहचान से जुड़ी एक संख्या देना विशिष्ट पहचान योजना (यूनीक आइडेंटिटी प्रोजेक्ट) का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। यह दुनिया भर में पहला अनूठा प्रयोग होगा, जब एक अरब से अधिक आबादी को बायोमैट्रिक पहचान के आधार पर एक विशिष्ट नंबर दिया जाएगा। यह कई लिहाज से अर्थपूर्ण है।
मेरे पहाड़ में इन दिनों तबाही का आलम है। पिछले दिनों राकेश ने नैनीताल से फोन किया था गिरदा के अवसान के बाद। तब मैं घर नहीं था। वापसी के बाद काफी कोशिशें करने पर भी लाइन कनेक्ट नहीं हो पाया। सविता से उसकी थोड़ी बहुत बात हो गयी। आज दोपहर को मोबाइल पर मैं काफी देर से तुमकुर कर्नाटक में सक्रिय दलित रेड्स के राज ज्योति को पकड़ने की कोशिश में थापर कोई रेजपांस नहीं आ रहा था। अचानक मोबाइल की घंटी बजी। पलाश स्पीकिंग कहते ही राकेश की आवाज। एकबारगी पहचान नहीं पाया। अरसे बाद उसने फोन किया। गौरव के असमय निधन और पिता के स्वर्गवास के साथ एकमात्र भाई मुकेश के सपिरवार महाबालेश्वर स्थान्तरित हो जाने के बाद वह काफी धार्मिक हो गया है। पिछलीबार जब नैनीताल गया तो जाड़े के मौसम में भोर चार बजे उठकर उसके साथ हनुमानगढ़ी जाना हुआ था। हर मंदिर पर उसकी पूजा अर्चना देखते हुए कोलकाता में अपने पूर्व नक्सली मित्र ज्योतिषाचार्य विनय बिहारी सिंह का दिव्य संदेश याद आ गया। लोग कितनी सहजता से आध्यात्म में तमाम सवालों का जवाब खोज लेते हैं।
हमारे धनबाद के मित्र पब्लिक एजंडा के संपादक कवि मदन कश्यप ने बरसों पहले कहा था कि भगवान न हो तो इस देश की आधी आबादी गरीबी और लाचारी में आत्महत्या कर लें।
फिर महाश्वेता देवी ने बरसों बाद माना कि धर्म तो बांधकर रखता है। आत्मा को परिस्थितियों से जूझने में मदद करता है। धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल से सारी गड़बडी हो जाती है जबकि निजी आस्था हिंसा और नरसंहार का सबब बन जाए।
गौरव मेरे बेटे टुसु से थोड़ा ही बड़ा होगा जैसे गिरदा के बेटा तुहीन टुसु से थोड़ा छोटा है। गौरव बेहद कारोबारी था। राकेश की दुकान वही सम्भल रहा था। राकेश की महात्वाकांक्षा पत्रकार बनने की थी। उसकी गद्दी पर गिरदा, मोहन और मेरी बैठकी बाबूजी को ज्यादा पसंद न थी पर वे हम सबको खूब चाहते थे। पोता पर उनकी सारी आस लगी थी। खुद गिरदा तक गौरव की तारीफ करने से अघाते न थे। गौरव पहले दिल्ली गया और फिर ऋषिकेश, जहां सड़के हादसे में उसकी मृत्यु हो गयी। यहां हम और सविता को काटो तो खून नहीं। हमारे भतीजे विप्लव के असामयिक निधन से हम उबर नहीं पाए। प्रिय मित्रों उर्मिलेश, आनंद स्वरूप वर्मा और सुधीर विद्यार्थी को पुत्रशोक से बिखरते देखले का हादसा हम झेल चुके हैं। घर से मंझला भाई पद्म लोचन नैनीताल हो आया था। वही विप्लव का पिता है। पर नैनीताल जाने की हमारी हिम्म्त नहीं हो रही थी। पर राकेश के घर में अद्भुत शांति का वातावरण देखकर मुझे अचरज ही हुआ था। पूरे परिवार ने इसे नियति का खेल मान लिया था।
वह हमारा परम धार्मिक राकेश फोन पर कैसे तो कच्चा कच्चा लग रहा था, जैसे हरेले का सूखा तिनाड़ा। उसने बताया कि दो सितंबर को नैनीताल में सारे मित्र जुटे थे। बसंतीपुर से पद्मलोचन और चनौदा कौसानी से मोहन कपिलेश भोज अल्मोड़ा से पीसी तिवाड़ी भी पहुंचे थे। सविता को शिकायत थी कि पहाड़ से भाई पद्म ही हमें जोड़े रखता है, पर गिरदा की कोई खबर उसने नहीं दी। अपने हिसाब से वह हमसे बदला चुका रहा है। हुआ यह कि सविता के बड़े भाई सत्यदा टिहरी बांध पिरयोजना में काम करते हैं। वहीं उनकी गाड़ी खाई में गिरकर टिहरी जलाशय में गायब हो गयी। पर चमत्का यह हुआ कि गिरती हुई गाड़ी पचास सौ फीच नीचे कुछ देर के लिए रुक गयी थी, तो सारे सवार सकुशल बच निकले। इसकी खबर बसंतीपुर को किसी ने नहीं दी। सच तो यह है कि हमें भी कुछ नहीं मालूम था। उन लोगों ने हमें परेशानी से बचाने के लिए ऐसा किया होगा। पर जिस दिन हमें इस हादसे की जानकारी मिली , उसी दिन पद्मलोचन को फोन आ गया और जब हमने बताया कि हमें खबर मालूम हो चुकी है तब उसके गुस्से का ठिकाना न था। उसने फोन करके मेरे ससुरालवालों को बुरा भला जो कहा, वह अलग , उसने सविता और मुझे तक नहीं बख्शा। तबसे वह नाराज चल रहा है।
मैंने दोनों भाइयों को फोन लगाने की काफी कोशिश की पर उनकी आइडिया सर्विस से कोई जवाब नहीं आ रहा था। हारकर हमने दिनेशपुर में मित्रों से सम्पर्क किया तो पता चला कि बैगुल नदी की बाढ़ से शक्तिफर्म इलाके में तबाही मची हुई है। जेलफर्म और रतनफार्म के दर्जनों गांवों और खेतों को नही ने जलप्लावित कर दिया है। सारे लोग बाढ़ राहत में लगे है। साठ के दशक में भी जब रतनफार्म अग्निकांड से स्वाहा हो गया था तब बसंतीपुर वालों ने करीब पचास किमी दूर पसे ६४ के बाद के इन शरणार्थी गांवों की मदद की थी। मैंने रतनफार्म में रहते हुए शक्तिफार्म के हाईस्कूल से नवीं की परीक्षा पास की। तब मेरे पिता ने नक्सली प्रभाव से बचाने के लिए मुझे वहां निर्वासित कर दिया था। बगल में ही जंगल था और मैं अमूमन रोज उस जंगल में भटकता था, स्कूल के रुटीन से बाहर। बैगुल नदी की कबाही का अंदेशा न था। पर साठ के दशक में ही नानाक सागर डैम टूटने से नैनीताल, बरेली और रामपुर जिलों में मची तबाही अब तक नहीं बूला हूं। बैगुल नदी पर बांध साठ के दशक में ही बन गया था, पर इसबार पानी की निकासी भारी बरसात से गड़बड़ हो जाने की वजह से बांध के ऊपरी इलाके के गांवों में दस पंद्रह फीट बालू जमा हो गया है और पूरा इलाका रेगिस्तान बन गया है। कोठगोदाम से लेकर किछा तक गोला नदी के आसपास ऐसा रेगिस्तान हमने बचपन से देखा है। सन ७१ में ही शक्तिफार्म के छह नंबर शरणार्थी गांव से लेकर एक नंबर, पाड़ागांव होकर पहाड़ ी तलहटी में चोरगलिया तक पैला ऐसा ही रेगिस्तान नजर आया था।
अब तो पहाड़ को ऊर्जा प्रदेश बनाया जा रहा है और सारे राजनीतिक दल विकास की गुहार लगाए हए हैं। सेक्स कांड में बुरीतरह फंसे आंध्र के बर्खास्त राज्यपाल और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों के पूर्व मुख्यमंत्री विकास पुरूष नारायण दत्त तिवारी इस मुहिम की अगुवाई कर रहे हैं। पर राकेश ने जैसा बताया , १९७८ में भागीरथी, अलकनंदा और कोस का बाढ़ें, भूस्खलन की यादे दिमाग में कौंधती चली गया। बरसात ने यमुनौत्री से लेकर केदार बदरी तक तबाही बरपा दी है। टिहरी बांध के जलस्तर बढ़ रहा है, जिसके जद में डूब में शामिस उत्तरकाशी की खूबसूरत घाटियां और टिहरी की बादिया हैं। उसी बांध पर सत्यदा अब भी तैनात है और इस बांध के खिलाफ चिपको के दरम्यान हमने असफल प्रतिरोध किया था। आज यह बांध भारत के माथे पर स्थगित परमाणु बम की तरह दहक रहा है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो न हो, पर पहाड़ की पीर पिघलने का सिलसिला खत्म होता नजर नहीं आता। अनबंधी कोई नदी नहीं है आज। गंगा से तेकर नर्मदा और गोदावरी तक।
गिरदा इस विकास के विरुद्ध थे। अब उनके साथियों का गिरदा के अवसान के बाद इस मुद्दे पर क्या रुख है, यह हमारे सामने साफ नहीं है क्योंकि विकास का शोर भूकम्प से भी भयानक विस्फोटक होता है।
राकेश से मैंने पूछा तो वह टाल गया। हारे हुए लहजे में बोला कि छोड़ यार, कुछ और बोल। फिर उसने पूछने पर बताया कि गिरदा पर नैनीताल समाचार का अंक आने में अभी देरी है। चारों तरफ गिरदा को कितने तो याद करने वाले हैं, पर गिरदा आजीवन जिन मुद्दों को लेकर लड़ते रहे, जिस लोक में डूबे रहे, उलके बारे में किसी को कोई खबर नहीं है।कल अरसे बाद किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल हुआ। कोलकाता के सुरेंद्रनाथ कालेज का हाल खचाखच भरा हुआ था। परिवर्तन की तेज आंधी में ऐसी उम्मीद न थी। वामसेफ का राज्य सम्मेलन था और दार्जिलिंग और पुरुलिया को छोड़कर बाकी सत्रह जिलों के डेलीगेट भारी संख्या में हाजिर थे। परसो शाम को हही मार्क्सवादी त्रिपुरा के मंत्री कै फोन आया था कि कोलकाता में सोलह सितंबर को बांग्ला अकादमी में मेधावी अनुसूचित छात्रों को हरिचांद गुरूचांद ठाकुर पुरस्कार दिये दा रहे हैं। वे मुख्य वक्ता हैं और मैं उकी खातिर हाजिर रहूं, जबकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि भाजपा कांग्रेस कम्युनिस्च आम सहमति से नागरिकता संशोधन विधेयक २००३ पास हो जाने के बाद से मैं किसी माकपाई अनुष्ठान में नहीं जाता। हमने पिछलीबार त्रिपुरा जाने की बात कही थी, तब उन्होंने छूटते ही कह दिया था कि वहां हमारी जरुरत नहीं है। हमें पिछले दो साल से बंगाल में कहीं बी वामसेफ का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने के लिए मैदान नहीं मिल रहा है। इसपर माकपा के शीर्ष नेतृत्व की सलाह है कि लोकल कमिटी से संपर्क किया जाये। हमने अपने प्रिय कवि से पूछा कि अब आप बालू का बांध बनाकर सुनामी रोकने की कोशिश क्योंकर रहे हैं? मतुआ और अनुसूचित समुदाय तो अब आपके झांसे में नहीं आने वाले हैं। वे अब मां काली के अंध भक्त हैं। हमें तो आपने लोगों को संबोधित करने का मौका ही नहीं दिया। अब हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं।
हमने समावेश को साफ साफ बताया कि पिछले दस साल से लगातार देशभर में मुहिंम चलाकर हम लोगों को नागरिकता कानून समझा नहीं सकें। आर्थिक सुधार और विकास का समीकरण सलटा नहीं सके। सारे वित्तीय, कर और श्रम कानून बदल गये। सारी नौकरियां खत्म हो गयीं। विनिवेश, विदेशी पूंजी और सेज रीटेल के साथ साथ रासायनिक खेती और आणविक ऊर्जा के दौर में हैं हम। देशभर में शरणार्थियों,आदिवासियों, मुसलमानों, पिछड़ों, शहरी गरीबों और गैर बामहन बहुसंख्य आम जनों के खिलाफ अश्वमेध यज्ञ र्जारी है। जबकि हमारी जनता बामहणों के आपसी सत्ता संघर्ष में मोहरे बने हुए जान दे रहे हैं। पर अपनी आजादी के लिए किसी को कोई फिक्र ही नहीं है। घर में आग लगी है और आप आराम से सो रहे हैं।
ओड़ीशा के दंडकारण्य मे साढ़े चार हजार पुनर्वासित शरणार्थियों के भारत छोड़ो नोटिस मिल चुका है। बंगाल में हर जिले में हजारों लोग गैर कानूनी घुसपैठिया होने के रोप में बिना किसी मुकदमा या सुनवाई हाजत वास कर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में २३ लाख लोगों के नाम वोटर लिस्ट से भरते का नागरिक न होने के आरोप में हटा दिये गये। उनके खिलाफ थानों में एफआईआर दर्ज हैं। इसबार सत्ता के दोनों खेमों से लाखों दूसरे लोगों को फर्जी और विदेशी बताया जा रहा है और हमारे लोग उन्हीं के पिछलग्गू बनकर आत्महत्या आत्मध्वंस के लिए बेताब हैं। अजब परिस्थिति हैं।
आदिवासी बुद्धिजीवी विजय कुजूर ने आदिवासी स्वायत्तता, संविधान की पांचवीं और छठीं सूची के प्रावधानों के उल्लंघनों के खिलाफ देशभर में आदिवासी आंदोलन छेड़ने के बारे में बताया। विजय हमें कोल्हान स्वात्तता आंदोलन के बारे में बताते रहे हैं। पिछले दिनों राजस्थान के भील बहुल डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर के आदिवासी प्रतिनिधियों से हमारी बात होती रही है। अगले साल वे कालाहांडी में या फिर खास भवानी पटना में अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन करना चाहते हैं। कनेक्टिविटी और सुरक्षा के लिहाज से हमने इसके लिए मना कर दिया है। विजय ने पंचायत, वन और पेसा कानून के तहत आदिवासियों की समस्याओं का खुलासा किया। विलकिनसन कानून का हवाला दिया। बाद में हमने आदिवासी स्वात्तता के तथ्यों के लिए इंडियन ट्राइबल आटोनामी की वर्ड से गुगल पर खोज की कोशिश की तो इंडियन रिजर्वेशन के पेज निकल आया। यह १९वीं सदी से अमेरिका में आदिवासी इलाकों की स्वावत्तता के बारे में चौंकाने वाली जानकारी थी। इसी सिलसिले में खोज करने पर ट्राइबल सोभरिनिटी कानून का पता टला जिसके तहत अमेरिकी कानून के मुताबिक प्रावधान है कि:
The Aboriginal Tribal Areas are considered as Independent sovereign State within United States of America.
गौरतलब है कि कोल्हान राष्ट्र की भी यही मांग थी जिसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला चलाकर सरकार हार गयी। भरत में एकमात्र कोल्हान क्षेत्र ही ऐसा है जहां आदिवासियों को स्वायत्त क्षेत्र की सम्प्रभुता हासिल है, अन्यत्र नहीं। गुजरात के कांधला में तो सेज अभियान के तहत नर्मदा तट पर आदिवासी अधिसूचत क्षेत्र और चार जनजातियों की मान्यता ही रद्द कर दी गयी। नर्मदा बांध परियोजना और सेज के खिलाफ आंदोलन के लिए विश्व विख्यात आदरणीय मेधा पाटेकर ने इस सिलसिले में क्या कुछ किया, हमें नहीं मालूम। पर विलकिनसन कानून जो दुनिया में २७ देशों में लागू है और आदिवासी क्षेत्रों की सम्प्रभुता की बात इसमें निहित है, वह भारत में भी लागी है, पर ग्लोबल गवर्नेंस की राह पर वित्तीय, मौद्रिक, नागरिक, अप्रवास, विद्शी पूंजी विनिवेश, श्रम और दंड संहिता कानूनों तक को वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, डब्लूटीओ, गैट के दिशा निर्देशों के तहत बदलने को बेताब इलक्लूसिव ग्रोथ, सोशल कनसर्न के झंडेवरदार भङरत की इंडिया कारपोरेट सरकार आदिवासी स्वायत्ताता के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून का सरासर उलंघन कर रही है।
मित्र सोवियत संघ में बाकायदा परमाणु वैज्ञानिक के तौर पर दस साल तक काम करचुके अब सुप्रीम कोर्ट में वकील डा सुबोध राय, जिन्होंने डा अमर्त्य सेन को नोबेल पुरस्कार मिलने को मिथ्या बताते हुए बरसों मुकदमा लड़ने के बाद वकालत को बतौर पेशा अपना लिया है, नागरिकों की स्वायत्तता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं और एक राजनीतिक दल भी उन्होंने बना लिया है।
बायोमेट्रिक जाति जनगणना का शिगुफा छोड़कर असंवैधानिक गैरकानूनी यूनिक आईडेंटिटी नंबर प्रोजेक्ट के बहाने अमेरिकी औपनिवेशिक सरकार ने इस नागरिक सम्पभूता की हत्या कर दी है। आपको मालूम होगा कि बायोमैट्रिक पहचान के मुद्दे पर नागरिक की निजता के सवाल पर लेबर पार्टी की सरकार चली गया और कंजरवेटिव पार्टी ने सत्ता में आते ही इस कानून को खत्म कर दिया। पर भारत में बिना संसद में कानून पास किये इनफोसिस के पूर्व सीईओ दक्षिण के खतरनाक काला बामहण नंदन निलेकनी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर भारत के मूलनिवासी बहुसंख्यक जनता के महा नरसंहार के लिए एलपीजी माफिया ने वैदिकी कारपोरेच अश्व मेध के घोड़े दौड़ां दिये हैं। मुंबई समेत विभिन्न औद्योगिक केंद्रों से मिल रही खबरों के मुताबिक कारपोरेट कंपनियां इस गृहयुद्ध के लिए जोर शोर से तैयारियां कर रहीं हैं, जिसके तहत करीब ७० करोड़ लोगों को अनोखी पहचान से वंचित करके उनके सफाए का अभियान जारी है।
सबस खतरनाक खबर जो आ रही है, वह हमारी आशंकाओं की हदों को पार करने वाली है। यह किसी से छुपा नहीं है कि अनोखी पहचान की आधार योजना एक कारपोरेट उपक्रम है । अमेरिका और यूरोप में नागरिकों को परिचय पत्र दिया जाता है। हमें कोई परिचय पत्र नहीं मिल रहा है। बल्कि कम्प््यूटर नेटवर्क में हमारी बायोमेट्रिक पहचान को बतौर बदलने वाले उंगलियों के निशान और खराब होने वाली आंखों की पुतलियों की तस्वीर दर्ज होने वाली है, जिसकी गोपनीयता और निजता, व्यक्ति की सार्वभौम सत्ता और स्वतंत्रता की कोई गारंटी नहीं है। हमें एक नंबर बारह अंकों का अनोखी पहचान नंबर मिलेगा, जिसे याद रखना मुश्किल होगा पर जिसका परिचय बतौर उपयोग मे लाना मुश्किल होगा। यह तभी संभव होगा जबकि नागरिकता संशोधन कानून के तहत आप अपनी नागरिकता के प्माण बतौर आवश्यक दस्तावेज पेश कर सकें। चूंकि नैसर्गिक नागरिकता खत्म है और नागरिकता अर्जित की जानी है , इसलिए शरणार्थियों चाहे वे सन ४७ के बाद ही क्यों न आये हो, रोजगार के लिए शहरों में जड़ों से कटे करोड़ों लोगों और राजस्व गांव के दर्जा से वंचित गांवों के निवासी आदिवासी, खानाबदोश, विस्थापित और आर्थिक अश्वमेध विकास के बलि लोगों के लिए ऐसा कर पाना असंबव होगा। फिर चूंकि बायोमैट्रक पहचान दर्ज करने वाले आईटी विशेषज्ञ कारपोरेट निजी क्षेत्र के लोग होंगे और डाटा भी उन्हं के पास जमा होगा, तब जिन क्षेत्रों में संबंधित कंपनियों के हित होंगे, वहां लोगों को नागरिकता मिलेगी नहीं ताकि बेदखली का प्रतिरोध असंभव हो।
णूलनिवासी वामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने कल अपने अध्यक्षीय भाषण में कल इस प्रोजेक्च को नागरिकता काला कानून के परिप्रेक्ष्य में मूलनिवासियों के अस्तित्व के लिए अस्तित्व का संकट बताते हुए इसे मौलिक अधिकारों और नागरिकों की निजता, स्वतंतत्रता के अपहरण का कारपोरेट उपक्रम बताया। उन्होंने बताया कि ये आंकड़े कारपोरेट कंपनियों के उपयोग के लिए होंगे और यह नागरिकों की पहरेदारी का पुख्ता इंतजाम है क्योंकि उदारीकरण और खुला बाजार अर्थनीति के जरिए बामहण शासकों ने देश में गृहयुद्ध की परिस्थितियां पैदा कर दी हैं और देश के विभिन्न् हिस्सों में जनता विद्रोह पर उतारु है। अनोखी पहचान के जरिए कहीं बैठा सासक कबके का कोई कारिंदा किसी को भी रिमोट से खत्म कर सकता है। हम पहले ही इसे बाजार की ऱणीति और उपभोक्ता सर्वेरक्षण मानते रहे हैं। मेश्राम साहब क इस भाषण के बाद हमने आगे पड़ताल की तो पता चला कि हालात जार्ज आरवेल के १९८४ की कल्पना से ज्यादा खतरनाक है और यह प्रोजेक्ट मूलनिवासी जनता के लिए हिटलर का गैस चैंबर बनने जा रहा है। पता चला है कि विशेषज्ञ बायोमैट्रिक पहचान दर्ज करते वक्त आपके शरीर में डिजीटल पहचान इनजर्ट कर सकते हैं, जिसके जरिए एकमुश्त विद्रोही तबके का खात्मा किया जा सकता है। जबकि सरकारी दावा यह है कि2011 के अंत तक भारत के सभी नागरिको के पास एक विशेष पहचान पत्र होंगा जिसको की बायोमेट्रिक तकनीक की मदद से बनाया जाएगा.क्या कहा भैया बायोमेट्रिक तकनीक के मदद से .तब तो किसी भी व्यक्ति विशेष की पहचान को चुराकर उसका गलत उपयोग करना, या उसकी सम्पत्ती को अपना बनाना और नकली पहचान पत्र बनवाना भी बहुत मुश्किल होगा और इसकी मदद से इन अपराधो को काफी हद तक रोका जा सकेगा और औथोराइज़्द व्यक्ति की पहचान कर पाना काफी सरल होगा. लेकिन भैया भारत सरकार ने अपनी आँखे खोलने में थोड़ी देर जरूर कर दी .शायद वो भी जापान की तरह बायोमेट्रिक तकनीक का फायदा उठाना चाहती है।बायोमैट्रिक २ सब्दो से मिलकर बना है बायोस और मैट्रोंन बायोस का मतलब है जीवन संबधित और मैट्रोंन का अर्थ है मापन करना. बायोमैट्रिक विग्यासं की वो शाखा है जिसमे हम किसी व्यक्ति विशेष के जीवन संबधित आंकड़ो का अध्यन करते है । इस तकनीक की मदद से व्यक्ति के अंगूठे के निशान और अंगुलियों और आवाज़ और आँखों की पुतलियो के आधार पर उसकी पहचान करता है। बायोमैट्रिक, मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक गतिविधियों के आधार कार्य करता है । मनोवैज्ञानिक में व्यक्ति के सरीर के अंगो कि बनावट को ध्यान में रखा जाता है जबकि व्यावहारिक में उस व्यक्ति के वयवहार को आधार मन जाता है जैसे कि उस व्यक्ति कि आवाज़ और उसके हस्ताक्षर ।बायोमैट्रिक तकनीक के बड़ते उपयोग का प्रमुख कारण आज के समय में व्यक्ति विशेष कि पहचान से संबधित हो रहे अपराधो को रोकना है । जैसे कि किसी भी व्यक्ति कि पहचान को चुराकर उसका गलत उपयोग करना और उसकी सम्पति को अपना बना लेना और नकली पहचान पत्र बनवा लेना। आज कल नेटवर्किंग, संचार के इस बढ़ते हुए उपयोग के कारण किसी व्यक्ति की जांच करने के विश्वसनीय तरीको कि आवश्यकता बढ़ गयी है।
इस तकनीक के द्वारा ऐ .टी. एम. मशीन से ट्रांजक्शन को भी सिक्योर बनया जा सकता है। जैसे कि जापान में ऐ.टी.एम.मशीन हाथों कि नसों के इम्प्रेसन के आधार खुलती है । जर्मनी, ब्राज़ील ,ऑस्ट्रेलिया में बायोमैट्रिक तकनीक का खूब उपयोग किया जाता है । हर व्यक्ति में पाए जाने वाली बायोमेट्रिक पहचान अलग होती है। जिसमे हेर फेर या कोई बदलाव करना बहुत मुश्किल है । इस तकनीक में पहले डाटा को एनक्रिप्ट किया जाता है ताकि कोई उसको क्लोन ना बना सके।जनगणना-2011 में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर तैयार किया जाएगा। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा जिसके आधार पर पहली बार नागरिक पहचान पत्र (बायोमैट्रिक स्मार्ट कार्ड) जारी किए जाएंगे। नागरिकों को पहचान पत्र जारी होने के बाद मूल निवास प्रमाण पत्रों की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDA ...
21 अप्रैल 2010 ... अंकों का यह सिलसिला आगे बढ़ा है, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के गठन और देश के प्रत्येक नागरिक को विशिष्ट पहचान संख्या देने की तैयारियों के साथ, जिसमें मतदाता ...
mallar.wordpress.com/.../भारतीय-विशिष्ट-पहचान-प्र/ - संचित प्रतिटैग: भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार ...
टैग: भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार. कुल: 1 | दिखाएं: 1 - 1. जिंदगी का नंबर होगा यूआईडी ... भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार (यूआईडीएआई) के अध्यक्ष नंदन निलेकणी के अनुसार विशिष्ट ...
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यूआईडी होगा 'जिंदगी का नंबर'-निलेकणी यूआईडीएआई व इंडियन बैंक में समझौता Mugdha's photo shoot Shawar & Sindhura's photo shoot.
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19 मई 2010 ... भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के प्रमुख नंदन नीलेकणि के अनुसार सरकार ने इस योजना के लिए तय मानकों को सैद्धांतिक तौर पर सहमति दे दी है तथा आंकड़े जुटाने का काम ...
www.tarakash.com/.../2329-indian-citizens-sid-this-year.html - संचित प्रतिHindi News - डाक विभाग विशिष्ट पहचान पत्र ...
9 मई 2010 ... इस संबंध में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण तथा डाक विभाग के बीच पिछले सप्ताह एक करार पर हस्ताक्षर किये गये। यह करार फिलहाल दो वर्ष के लिये किया गया है। ...
josh18.in.com/hindi/yog-moneylife/644532/0 - संचित प्रतिटिप्पन चौकी: अब हमारी भी विशिष्ट ...
18 जुलाई 2010 ... डॉलर, यूरोप के यूरो, जापान के येन व ब्रिटिश पाउंड की तरह अब हमारे रुपए की भी समूची दुनिया में विशिष्ट पहचान होगी। पिछले दिनों कैबिनेट ने इस फैसले पर अपनी मुहर लगाई तो ...
tippanchauki.blogspot.com/2010/07/blog-post.html - संचित प्रतिDeshbandhu : Articles,lalit surjan, विशिष्ट पहचान ...
28 अक्तू 2009 ... भारत सरकार ने समस्त वयस्क नागरिकों को सन् 2011 तक विशिष्ट पहचान नंबर अथवा कार्ड देने की महत्वाकांक्षी योजना हाथ में ली है। आईटी क्षेत्र के प्रमुख उद्यमी नंदन निलेकनी ...
www.deshbandhu.co.in/newsdetail/858/10/8 - संचित प्रतिविशिष्ट पहचान प्राधिकरण, नंदन ...
17 मार्च 2010 ... विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अध्यक्ष नंदन नीलकेणि ने कहा है कि विशिष्ट आईडी नंबर से आम आदमी को घर बैठे आवागमन, तरजीह, पारदर्शिता और जवाबदेही उपलब्ध कराने में मदद ...
livehindustan.com/news/.../248-39-101656.html - संचित प्रतिविशिष्ट पहचान परियोजना के लिए कोष ...
12 जुलाई 2010 ... नई दिल्ली, 12 जुलाई (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि विशिष्ट पहचान संख्या कार्यक्रम को चलाने के लिए तय कोष में कोई कमी नहीं की गई है और परियोजना शीघ्र लागू ...
thatshindi.oneindia.in/news/.../1278897356.html - संचित प्रतिविशिष्ट पहचान पत्र परियोजना के ...
22 जुलाई 2010 ... विशिष्ट पहचान पत्र परियोजना के दूसरे चरण के लिए राशि मंजूर - खास खबर. खास खबरविशिष्ट पहचान पत्र परियोजना के दूसरे चरण के लिए राशि मंजूरखास खबरनई दिल्ली। ...
india1.news365online.com/.../विशिष्ट-पहचान-पत्र-परियोजना-के-दूसरे-चरण-के-लिए-राशि-मंजूर---खा... - संचित प्रतिइसके लिए अनुवादित अंग्रेज़ी परिणाम देखें:
विशिष्ट पहचान (Specific Identification)
एक बार यह विशिष्ट पहचान संख्या मिल जाने के बाद व्यक्ति की अपनी पहचान के सत्यापन से जुड़ी तमाम समस्याओं से निजात मिल जाएगी और वक्त बचेगा सो अलग। फिलहाल विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी कामों के लिए मुझे अपनी पहचान साबित करनी पड़ती है कि मैं कौन हूं और इसके लिए मुझे तरह-तरह की कवायदों से गुजरना पड़ता है। बैंक में खाता खोलने से लेकर राशन कार्ड बनवाने तक और म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने तक तमाम मौकों पर अपनी पहचान को बार-बार सिद्ध करना पड़ता है। एक बार यह विशिष्ट पहचान नंबर मिल जाने के बाद अपनी पहचान साबित करने से जुड़ी तमाम समस्याएं खत्म हो जाएंगी। आयकर विभाग को भी यूनीक ट्रांजेक्शन नंबर (यूटीएन) जारी करने से छुटकारा मिल जाएगा।
इससे धोखाधड़ी के मामले पकड़ने और उन्हें रोकने में भी मदद मिल सकती है। क्रेडिट इनफॉरमेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड (सीआईबीआईएल) जैसे लोगों के कर्ज के इतिहास पर नजर रखने वाले संगठनों के पास भी हरेक व्यक्ति की एक विशिष्ट संख्या होगी। विशिष्ट पहचान संख्या के बाद सरकारों के लिए भी यह सुनिश्चित करना आसान हो जाएगा कि सरकारी योजनाओं का लाभ वास्तव में उन सही लोगों तक पहुंचे जो उसके हकदार हैं। इससे सरकार को अपने अनुदान बजट को कम करने में भी काफी मदद मिलेगी। खाद्यान्न, स्वास्थ्य बीमा, गैस कनेक्शन, नरेगा जैसी योजनाओं के भुगतान जैसे लगभग हरेक मामले में इनके फायदे सही लोगों तक पहुंचाने में सरकार को जबरदस्त मदद मिलेगी। विशिष्ट पहचान संख्या जारी होने के बाद न तो कोई दो बार इन योजनाओं का लाभ ले सकेगा और न ही कोई फर्जीवाड़ा कर सकेगा।
विशिष्ट पहचान संख्या आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में भी बेहद कारगर रहेगी। मिसाल के लिए जब मैं आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए और पीठ पर काला बैग टांगकर किसी होटल में चैक-इन के लिए प्रवेश करता हूं तो होटल के अधिकारियों को अपने सेंट्रल सिस्टम पर विशिष्ट पहचान संख्या की मदद से मेरी जांच करने में सहूलियत रहेगी। बायोमैट्रिक मैपिंग की वजह से कोई भी शख्स एक से ज्यादा पहचानों या आईडी की इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। यानी मेरे लिए कोशी और आनंद दोनों होना मुश्किल होगा।
Wednesday, August 18, 2010
बायोमैट्रिक फेज में जाति गणना का मतलब
बायोमैट्रिक क्या है: बायोमैट्रिक का मतलब शरीर के खास अंगों के जरिए किसी इंसान की पहचान करना है। केंद्र सरकार ने देश के लोगों को विशिष्ट पहचान नंबर यानी यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर देने की योजना बनाई है। सरकार का इरादा देश के नागरिकों की पहरेदारी करने का है। बायोमैट्रिक आंकड़े इसी नंबर के लिए जुटाए जाएंगे। इसके तहत आपके हाथ की सभी उंगलियों और आंख की पुतलियों के निशान लिए जाएंगे। ठीक उसी तरह जैसा कि अपराधियों के साथ किया जाता है।बायोमैट्रिक आंकड़े के साथ जाति गणना को जोड़ने के साजिश यह है कि जाति की गिनती न हो पाए। इसमें मुख्य रूप से ये दिक्कतें हैं:
जाति की गिनती में कम से कम पांच साल लगेंगे क्योंकि सरकार कह रही है कि बायोमैट्रिक डाटा कलेक्शन का काम पांच साल में पूरा होगा। बायोमैट्रिक डाटा इकट्ठा करने वाली एजेंसी यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट - http://uidai.gov.in/ में बायोमैट्रिक डाटा कलेक्शन की यही टाइम लाइन है। इस सरकारी वेबसाइट के होम पेज पर लिखा है कि पांच साल में 60 करोड़ लोगों का बायोमैट्रिक डाटा इकट्ठा कर लिया जाएगा। (Over five years, the Authority plans to issue 600 million UIDs. The numbers will be issued through various 'registrar' agencies across the country.) हालांकि मतदाता पहचान पत्र का काम 25 साल में पूरा नहीं हो पाया है, जिसे देखते हुए बायोमैट्रिक जैसे जटिल काम के पूरा होने में सौ साल भी लग सकते हैं।
जाति गणना ऑप्शनल यानी लोगों के चाहने या न चाहने पर निर्भर हो जाएगी क्योंकि बायोमैट्रिक डाटा ( उंगलियों और आंख की पुतली के निशान) देना ऑप्शनल है। यानी आप चाहें तो डाटा देंगे, नहीं चाहेंगे तो नहीं देंगे। (देखिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट का अंश - Will getting a UID be compulsory? No, it will not be compulsory to get a UID, it is voluntary. However in time, certain service providers may require a person to have a UID to deliver services.) यानी जो लोग बायोमैट्रिक डाटा देने के लिए डाटा सेंटर तक नहीं पहुंचेंगे/ नहीं पहुंच पाएंगे, उनकी जाति नहीं गिनी जाएगी।
सेंसस एक्ट 1948 के तहत आप सेंसस अधिकारी को जानकारी देने से इनकार नहीं कर सकते और गलत जानकारी देने पर जुर्माने की सजा है।
15 साल से छोटी उम्र वालों का बायोमैट्रिक डाटा भी इकट्ठा नहीं किया जाएगा।
जाति की गिनती का काम प्राइवेट कंपनियों को – बायोमैट्रिक डाटाकलेक्शन का इंस्टिट्यूशनल फ्रेमवर्क ऐसा ही है। जिन्हें रजिस्ट्रार एजेंसी बनाया गया है उनमें सरकारी और निजी दोनों तरह की कंपनियां हैं। ( देखिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट का अंश - The Registrars would include both Government and Private Sector Agencies which already have the infrastructure in place to interface with the public to provide specified services for e.g. Insurance companies, LPG marketing companies, RSBY, NREGA etc.) आप अंदाजा लगा सकते हैं कि निजी कंपनियों और एनजीओ के जुटाए आंकड़ें कितने भरोसेमंद माने जाएंगे।
बायोमैट्रिक फॉर्म में जो जानकारियां ली जाएंगी वे इस प्रकार हैं – नाम, जन्म की तारीख, लिंग, पिता/माता, पति/पत्नी या अभिभावक का नाम, पता, आपकी तस्वीर, दसों अंगुलियों के निशान और आंख की पुतली का डिजिटल ब्यौरा। यानी न आपको जातियों की शिक्षा के स्तर का पता चलेगा न आर्थिक स्तर का। किसी समूह की किसी और समूह से तुलना नहीं हो पाएगी।
जिस यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ने अभी अपना काम ठीक से शुरू नहीं किया है और जिसके क्षेत्रीय दफ्तर अभी तक बने नहीं हैं, बैंगलोर दफ्तर का डिजाइन बनाने के लिए आर्किटेक्ट ढूंढने का टेंडर अभी-अभी आया है, उसे जाति गणना का काम सौंपा जा रहा है। इसका दिल्ली का डाटा सेंटर तक अभी तैयार नहीं है।
यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी न तो संवैधानिक संस्था है न ही इसे संसद के एक्ट के जरिए बनाया गया है। इसका अपना भविष्य ही संदिग्ध है और इस पर कभी भी ताला लग सकता है। इस अथॉरिटी को इतने बड़े पैमाने पर लोगों की गिनती का अनुभव भी नहीं है, जबकि जनगणना विभाग यह काम करता रहा है।
-दिलीप मंडल
http://rejectmaal.blogspot.com/2010/08/blog-post_18.html
जाति जनगणना: बायोमैट्रिक के नाम पर धोखा : दिलीप मंडल
अगस्त 14, 2010 Aflatoon अफ़लातून द्वारा
केंद्रीय मंत्रियों के समूह ने जाति गणना को कहने को तो हरी झंडी दे दी है, लेकिन वास्तविकता यह है कि मंत्रियों के समूह ने इस काम को बुरी तरह से फंसा दिया है। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों के समूह का जो फॉर्मूला दिया है, उसके आधार पर जाति की गणना अगले पांच साल तक जारी ही रहेगी (यह समय बढ़ सकता है) और जो आंकड़े आएंगे, उसमें देश की लगभग आधी आबादी को शामिल नहीं किया जाएगा। साथ ही आंकड़ों के नाम पर सिर्फ जातियों की संख्या आएगी। न तो जातियों और जाति समूहों की शैक्षणिक स्थित का पता चलेगा और न ही सामाजिक-आर्थिक हैसियत का। मंत्रियों के समूह की इस बारे में की गई सिफारिश पर बहस आवश्यक है क्योंकि इसे लेकर अभी काफी उलझन बाकी है।
ओबीसी गिनती का प्रस्ताव औंधे मुंह गिरा
मंत्रियों के समूह ने उचित फैसला किया है कि जाति की गणना के दौरान सिर्फ ओबीसी की गिनती नहीं की जाएगी, बल्कि सभी जातियों के आंकड़े जुटाए जाएंगे। वामपंथी दलों ने ओबीसी गिनती के लिए प्रस्ताव दिया था।[i] कुछ समाजशास्त्री भी चाहते थे कि सभी जातियों की गिनती न करके सिर्फ ओबीसी की गिनती कर ली जाए क्योंकि सवर्ण समुदायों के लिए सरकार की ओर से कोई कार्यक्रम या योजना नहीं है। उनका सुझाव था कि सिर्फ अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी की गिनती करा ली जाए।[ii]
जाति गणना के बदले ओबीसी गणना की बात करने वाले लोग जाति के आंकड़ों को सिर्फ आरक्षण और सरकारी योजनाओं के साथ जोड़कर देखते हैं, जो बहुत ही संकीर्ण विचार है। जाति भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहचान है और इससे जुड़े समाजशास्त्रीय आंकड़ों का व्यापक महत्व है। इसी नजरिए इस देश में धर्म (जिसके आधार पर देश टूट चुका है) और भाषा (जिसकी वजह से हुए दंगों में हजारों लोग मारे गए हैं) के आधार पर हर जनगणना में गिनती होती है। अगर समाजशास्त्रीय आंकड़े जुटाने का लक्ष्य न हो तो जनगणना के नाम पर सिर्फ स्त्री और पुरुष का आंकड़ा जुटा लेना चाहिए।
जाति गणना और बायोमैट्रिक की धांधली
जाति गणना पर मंत्रियों के समूह ने जो फॉर्मूला बनाया है उसमें एक गंभीर खामी यह है कि इसमें जाति की गिनती को जनगणना कार्य से बाहर कर दिया गया है। मंत्रियों के समूह ने फैसला किया है कि जाति की गणना नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के तहत बायोमैट्रिक ब्यौरा जुटाने के क्रम में कर ली जाएगी।[iii] बायोमैट्रिक ब्यौरा यूनिक आइडेंटिटी नंबर के लिए इकट्ठा किया जाना है। यानी जब लोग अपना यूआईडी नंबर के लिए जानकारी दर्ज कराने के लिए आएंगे तो उनसे उनकी जाति पूछ ली जाएगी। यह एक आश्चर्यजनक फैसला है। धर्म, भाषा, शैक्षणिक स्तर, आर्थिक स्तर से लेकर मकान पक्का है या कच्चा तक की सारी जानकारी जनगणना की प्रक्रिया के तहत जुटाई जाती है और ऐसा ही 2011 की जनगणना में भी किया जाएगा, लेकिन जाति की गिनती को जनगणना की जगह यूनिक आईडेंटिफिकेशन नंबर की बायोमैट्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की बात की जा रही है।
यहां एक समस्या यह है कि बायोमैट्रिक डाटा कलेक्शन करने के लिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी (जिसके मुखिया नंदन निलेकणी हैं, जिन्हें सरकार ने कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा दिया है) को पांच साल का समय दिया गया है। साथ ही पांच साल में देश में सिर्फ 60 करोड़ आईडेंटिटी नंबर दिए जाएंगे। इस बात में जिसको भी शक हो वह यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट – http://uidai.gov.in/ पर जाकर इन दोनों बातों को चेक कर सकता है कि बायोमैट्रिक डाटा कितने साल में इकट्ठा किया जाएगा और कितने लोगों का बायोमैट्रिक डाटा जुटाया जाएगा। इंटरनेट पर इस सरकारी साइट को खोलते ही सबसे पहले पेज पर ही ये दोनों बातें आपको दिख जाएंगी।
यानी प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रियों के समूह ने जब बायोमैट्रिक दौर में जाति की गणना कराने की सिफारिश की थी, तो उन्हें यह मालूम था कि इस तरह जाति गणना का काम पांच साल या ससे भी ज्यादा समय में कराया जाएगा और इसमें भी देश के लगभग 120 करोड़ लोगों में सिर्फ 60 करोड़ लोगों के आंकड़े ही आएंगे।[iv] मंत्रियों के समूह ने देश के बहुजनों के साथ इतनी बड़ी धोखाधड़ी करने का साहस दिखाया, यह गौर करने लायक बात है। पांच साल बाद आए आकंड़ों का लेखा जोखा करने, अलग अलग जाति समूहों का आंकड़ा तैयार करने में अगर कुछ साल और लगा दिए गए, तो अगली जनगणना तक भी जाति के आंकड़े नहीं आ पाएंगे।
बायोमैट्रिक में गिनती यानी एससी/एसटी/ओबीसी की घटी हुई संख्या
15 साल में जिस देश में सभी मतदाताओं का मतदाता पहचान पत्र नहीं बना, उस देश में बायोमैट्रिक नंबर कितने साल में दिए जाएंगे, इसका अंदाजा भी आप लगा सकते हैं। मतदाता पहचान पत्र में तो सिर्फ मतदाता की फोटो ली जाती है जबकि बायोमैट्रिक नंबर के लिए तो फोटो के साथ ही अंगूठे का और आंख का डिजिटल निशान लिया जाएगा। इस काम के लिए कोई आपके घर नहीं आएगा बल्कि जगह जगह कैंप लगाकर यह काम किया जाएगा। इसमें कई लोग छूट जाएंगे जिनके लिए बारा बार कैंप लगाए जाएंगे। दर्जनों बार कैंप लगने के बावजूद अभी तक वोटर आईडी कार्ड का काम पूरा नहीं हुआ है। यह तब है जबकि वोटर आईडेंटिटी कार्ड बनवाने में राजनीतिक पार्टियां दिलचस्पी लेती हैं। बायोमैट्रिक नंबर दिलाने में पार्टियों की कोई दिलचस्पी नहीं होगी।
सरकार ने यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट पर साफ लिखा है कि यह नंबर लेना जरूरी नहीं है।[v] यानी कोई न चाहे तो यह नंबर नहीं लेगा। बहुत सारे लोग इसका कोई और महत्व न देखकर इसे नहीं लेंगे। ऐसे में जाति की गणना से काफी लोग बाहर रह जाएंगे। जबकि जनगणना के कर्मचारी हर गांव, बस्ती के हर घर में जाकर जानकारी लेते हैं और इसमें लोगों के छूट जाने की आशंका काफी कम होती है।
बायोमैट्रिक के नाम पर जिस तरह की गड़बड़ी हो रही है और उसे देखते हुए कोई सरकार कल यह फैसला कर सकती है कि आईडेंटिटी नंबर नहीं दिए जाएंगे। इस तरह जाति गणना का काम फंस जाएगा। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में लाखों लोग घुमंतू जातियों के हैं। इन लोगों का बायोमैट्रिक आंकड़ा लेना संभव नहीं है। साथ ही शहरों में अस्थायी कामकाज के लिए आने वालों गरीबों का भी बायोमैट्रिक आंकड़ा लेना आसान नहीं हैं। इस तरह आबादी का एक बड़ा हिस्सा यूनिक आईडेंटिफिकेशन नंबर के लिए बायोमैट्रिक आंकड़ा देने की गतिविधि में शामिल नहीं हो पाएगा और उस तरह उनकी जाति का हिसाब नहीं लगाया जाएगा। आप समझ सकते हैं कि इनमें से ज्यादातर लोग अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों से हैं। इस तरह स्पष्ट है कि बायोमैट्रिक के साथ जाति गणना कराने से एससी/एसटी/ओबीसी समूहों की संख्या घटकर आएगी।
बायोमैट्रिक के नाम पर बहुत बड़ी साजिश
ताज्जुब की बात है कि 9 फरवरी से लेकर 28 फरवरी 2011 के बीच जब देश भर में जनगणना होगी और धर्म और भाषा से लेकर तमाम तरह के आंकड़े जुटाए जाएंगे तब जाति पूछ लेने में क्या दिक्कत है? जनगणना से जाति गणना के काम को बाहर करना एक बहुत बड़ी साजिश है, जिसका पर्दाफाश करना जरूरी है। 1871 से 1931 तक जनगणना विभाग जाति गणना का काम करता था और उस समय तो सरकारी कर्मचारी भी कम थे और कंप्यूटर भी नहीं थे। सवा सौ साल पहले अगर जनगणना के साथ जाति की गिनती होती थी, तो नए समय में इस काम को करने में क्या दिक्कत है।
यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि 1931 की जनगणना अभी भी जाति की गिनती से मामले में देश का एकमात्र आधिकारिक दस्तावेज है और मंडल कमीशन से लेकर तमाम सरकारी नीतियों में इसी जनगणना के आंकड़े को आधार माना जाता है। 1931 की जनगणना के तरीकों को लेकर किसी भी तरह का विवाद नहीं है और न ही किसी कोर्ट ने कभी इस पर सवाल उठाया है। जाहिर है कि 1931 में जिस तरह जाति की गिनती जनगणना के साथ हुई थी, वह 2011 में भी संभव है। अब चूंकि कंप्यूटर और दूसरे उपकरण आ गए हैं, इसलिए इस काम को ज्यादा असरदार तरीके से किया जा सकता है। जाहिर है जनगणना के साथ जाति गणना न कराना एक साजिश के अलावा कुछ नहीं है। इसका मकसद सिर्फ इतना है कि किसी भी तरह से ऐसा बंदोबस्त किया जाए कि जाति के आंकड़े सामने न आएं।
बायोमैट्रिक यानी आर्थिक-शैक्षणिक आंकड़े नहीं
बायोमैट्रिक ब्यौरा जुटाने के साथ जाति गणना को जोड़ने में और भी कई दिक्कतें हैं। इसकी एक बड़ी दिक्कत के बारे में केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लई कैबिनेट नोट में लिख चुके हैं। बायोमैट्रिक आंकड़ा संकलन के साथ जाति की गिनती करने से जातियों से जुड़े सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तथ्य और आंकड़े सामने नहीं आएंगे। जनगणना के फॉर्म में ये सारी जानकारियां होती हैं, जबकि बायोमैट्रिक डाटा संग्रह के साथ यह काम संभव नहीं है। बायोमैट्रिक आंकड़ा जुटाते समय लोगों से जो जानकारियां ली जाएंगी वे इस प्रकार हैं – नाम, जन्म की तारीख, लिंग, पिता/माता, पति/पत्नी या अभिभावक का नाम, पता, आपकी तस्वीर, दसों अंगुलियों के निशान और आंख की पुतली का डिजिटल ब्यौरा।[vi]
सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़ों के बिना हासिल जाति के आंकड़े दरअसल सिर्फ जातियों की संख्या बताएंगे, जिनका कोई अर्थ नहीं होगा। सिर्फ जातियों की संख्या जानने से अलग अलग जाति और जाति समूहों की हैसियत के बारे में तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं होगा। यानी जिन आंकड़ों के अभाव की बात सुप्रीम कोर्ट और योजना आयोग ने कई बार की है, वे आंकड़े बायोमैट्रिक के साथ की गई जाति गणना से नहीं जुटाए जा सकेंगे।
जाति जनगणना का लक्ष्य सिर्फ जातियों की संख्या जानना नहीं होना चाहिए। न ही जाति की गणना को सिर्फ आरक्षण और आरक्षण के प्रतिशत के विवाद से जोड़कर देखा जाना चाहिए। जनगणना समाज को बेहतर तरीके से समझने और संसाधनों तथा अवसरों के बंटवारे में अलग अलग सामाजिक समूहो की स्थिति को जानने का जरिया होना चाहिए। जनगणना में जाति को शामिल करने से हर तरह के सामाजिक, शैक्षणिक और सामाजिक आंकड़े सामने आएंगे। इन आंकड़ों का तुलनात्मक अधघ्ययन भी संभव हो पाएगा। सरकार इन आंकड़ों के आधार पर विकास के लिए बेहतर योजनाएं और नीतियां बना सकती हैं। अगर ओबीसी की किसी जाति की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति बेहतर हो गई है, इसका पता भी जातियों से जुड़े तमाम आंकड़ों के आधार पर ही चलेगा। इन आंकड़ों से जातिवाद के कई झगड़ों का अंत हो जाएगा और नीतियां बनाने का आधार अनुमान नहीं तथ्य होंगे।
बायोमैट्रिक डाटा संग्रह के साथ जाति की गणना कराने में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि पहचान पत्र बनाने वाली एजेंसी को जनगणना का कोई अनुभव नहीं है, न ही उसके पास इसके लिए संसाधन या ढांचा है। जनगणना का काम जनगणना विभाग ही सुचारू रूप से कर सकता है। जनगणना के दौरान जाति की गणना करने से जनगणना विभाग इसकी निगरानी कर पाएगा। बायोमैट्रिक आंकड़ा संकलन के दौरान यह व्यवस्था नहीं होगी।[vii] इसे देखते हुए जाति गणना के काम को जनगणना विभाग के अलावा किसी और एजेंसी के हवाले करने का कोई कारण नहीं है।
बायोमैट्रिक: एक अवैज्ञानिक तरीका
साथ ही नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के लिए 15 साल से ज्यादा उम्र वालों की ही बायोमैट्रिक सूचना ली जाएगी। परिवार के बाकी लोगों के बारे में इन्हीं से पूछकर कॉलम भरने का समाधान गृह मंत्रालय दे रहा है, जो अवैज्ञानिक तरीका है।[viii] बायोमैट्रिक और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर का काम अभी प्रायोगिक स्तर पर है। इसे लेकर विवाद भी बहुत हैं। इसलिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन नंबर और बायोमैट्रिक डाटा संग्रह के साथ जाति की गणना जैसे महत्वपूर्ण कार्य को शामिल करना सही नहीं है।
[i] सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का 12 अगस्त, 2010 को दिया गया बयान http://in.news.yahoo.com/43/20100812/818/tnl-caste-census-should-ensure-scientifi_1.html
[ii] योगेंद्र यादव का द हिंदू अखबार में 14 मई को छपा लेख http://beta.thehindu.com/opinion/op-ed/article430140.ece?homepage=true
[iii] समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट, यहां देखिए टाइम्स ऑफ इंडिया का लिंक http://timesofindia.indiatimes.com/india/GoM-clears-caste-query-in-census-at-biometric-stage/articleshow/6295048.cms
[iv] यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट का होमपेज
[v] http://uidai.gov.in/ देखें इस साइट का FAQs सेक्शन, पूछा गया सवाल है – Will getting a UID be compulsory?
[vii] भारत के पूर्व रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त डॉ. एम विजयनउन्नी, कास्ट सेंसस: /टुअर्ड्स एन इनक्लूसिव इंडिया, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूशन एंड इनक्लूसिव पॉलिसी, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी का प्रकाशन, पेज- 39
[viii] केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लई का मंत्रियों के समूह की बैठक में सौंपा गया नोट
- दिलीप मण्डल , सम्पर्क - dilipcmandal@gmail.com
http://samatavadi.wordpress.com/2010/08/14/caste_census_biometric_identification/
बायोमेट्रिक्स
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
इन्हें भी देखें: जैव सांख्यिकी (बॉयोमेट्रिक्स) एवं जैवसाँख्यिकी
वॉल्ट डिज़नी वर्ल्ड में बॉयोमेट्रिक माप मेहमानों की उंगलियों से यह सुनिश्चित करने के लिए लिये जाते हैं कि व्यक्ति की टिकट का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाता रहे.
बायोमैट्रिक्स जैविक आंकड़ों एंव तथ्यों की माप और विश्लेषण के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को कहते हैं। अंग्रेज़ी शब्द बायोमैट्रिक्स दो यूनानी शब्दों बायोस (जीवन) और मैट्रोन (मापन) से मिलकर बना है।[१] नेटवर्किंग, संचार और गत्यात्मकता में आई तेजी से किसी व्यक्ति की पहचान की जांच पड़ताल करने के विश्वसनीय तरीकों की आवश्यकता बढ़ गई है। पहले व्यक्तियों की पहचान उनके चित्र, हस्ताक्षर, हाथ के अंगूठे और अंगुलियों के निशानों से की जाती रही है, किन्तु इनमें हेरा-फेरी होने लगी। इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने जैविक विधि से इस समस्या का समाधान करने का तरीका खोजा है। इसका परिणाम ही बायोमैट्रिक्स है। वेनेजुएला में आम चुनावों के दौरान दोहरे मतदान को रोकने के लिए बायोमैट्रिक कार्ड का प्रयोग किया जाता है।
अनुक्रम[छुपाएँ] |
[संपादित करें] विश्वसनीय प्रक्रिया
बायोमैट्रिक्स प्रणाली की विश्वसनीयता अत्यधिक मानी जाती है। इसके कई कारण हैं, जैसे प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाने वाली बायोमैट्रिक्स विशिष्ट होती है। बायोमैट्रिक खोजों को न तो भुलाया जा सकता है और न ही इनमें फेरबदल आदि संभव है। यदि किसी दुर्घटनावश अंग विकृत हो जाए, तभी इसमें बदलाव संभव है, अन्यथा यह चिह्न व्यक्ति में स्थाई प्रकृति के होते हैं। पहचान बनाये रखने के लिए एकत्रित बायोमैट्रिक आंकड़ों को पहले एन्क्रिप्ट किया जाता है, ताकि उसका क्लोन न बनाया जा सकें। इसके अलावा इस तकनीक को पासवर्ड एवं कार्ड के साथ मिलाकर प्रयुक्त किया जा सकता है। इस प्रकार बायोमेट्रिक प्रणाली की विश्वसनीयता अत्यधिक बताय़ी जाती है।एक बॉयोमेट्रिक प्रणाली का मूल ब्लॉक आरेख
मानव गुणधर्मों को बायोमेट्रिक्स में निम्न पैरामीटरों के पद में प्रयोग किया जा सकता है, ये समझना संभव है।[२]
- सार्वभौमिकता - प्रत्येक व्यक्ति की विशेषता होनी चाहिए।
- अद्वितीयता - कितनी सटीकता से बॉयोमेट्रिक दूसरे से भिन्न व्यक्तियों को अलग करता है।
- स्थायित्व - कितनी सटीकता से बॉयोमेट्रिक आयु वर्धन और भविष्य में होने वाले अन्य परिवर्तनों से अप्रभावित रहता है।
- प्रदर्शन - सटीकता, गति और प्रयुक्त प्रौद्योगिकी की मजबूती।
- स्वीकार्यता - एक प्रौद्योगिकी के अनुमोदन की मात्रा।
- निवारण - एक विकल्प के उपयोग में आसानी।
एक बॉयोमेट्रिक प्रणाली निम्नलिखित दो रूपों में काम कर सकती हैं:
- सत्यापन - एक अभिग्रहीत बॉयोमेट्रिक को संग्रहित टेम्पलेट के साथ एक से एक तुलना करके यह सत्यापित किया जा सकता है कि वह व्यक्ति विशेष जो वह होने का दावा कर रहा है, वह ठीक है या नहीं। एक स्मार्ट कार्ड, उपयोगकर्ता का नाम अथवा परिचय संख्या के साथ संयोजन करके ऐसा किया जा सकता है।
- पहचान - एक अज्ञात व्यक्ति की पहचान करने के प्रयास में एक बॉयोमेट्रिक डाटाबेस के साथ कई अभिग्रहित बॉयोमेट्रिक नमूनों की तुलना की जा सकती है। व्यक्ति की पहचान करने में सफलता तभी प्राप्त हो सकती है जब बॉयोमेट्रिक नमूने की तुलना डाटाबेस में टेम्पलेट के साथ पूर्व निर्धारित सीमा के भीतर किया जाये।
[संपादित करें] प्रयोग
इसमें व्यक्ति के हाथ के अंगूठे के निशान, अंगुलियों, आंखों की पुतलियों, आवाज एवं गुणसूत्र यानि डीएनए के आधार पर उसे पहचाना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की ये चीजें अद्वितीय होती है। ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, जर्मनी, इराक, जापान, नाईजीरिया, इज़रायल में ये तकनीक अच्छे प्रयोग में है। जापान में बैंक एटीएम मशीनें हाथों की नसों के दबाव पर खुलती है, ब्राजील में पहचान पत्र में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।[१] आस्ट्रेलिया में जाने वाले पर्यटकों को सर्वप्रथम अपने बायोमैट्रिक प्रमाण जमा करने होते हैं। आस्ट्रेलिया विश्व का प्रथम ऐसा देश था, जिसने बायोमैट्रिक्स प्राइवेसी कोड लागू किया। ब्राजील में भी लॉग आईडी कार्ड का चलन है। ब्राजील के प्रत्येक राज्य को अपना पहचान पत्र छापने की अनुमति है, लेकिन उनका खाका और आंकड़े सर्वदा समान रहते हैं।[संपादित करें] प्रकार
बायोमैट्रिक का वर्गीकरण मुख्यत: दो गुणधर्मो के आधार पर किया जाता है: मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक गुण। मनोवैज्ञानिक आधार में व्यक्ति के शरीर के अंगों की रचना को ध्यान में रखा जाता है, जैसे उसकी उंगलियों की संरचना, अंगूठे के निशान, आदि; जबकि व्यावहारिक वर्गीकरण में व्यक्ति के व्यवहार को आधार माना जाता है। इसका मापन व्यक्ति के हस्ताक्षर, उसकी आवाज आदि के आधार पर करते हैं।[१] कुछ शोधकर्ताओं ने बॉयोमेट्रिक्स के इस वर्ग के लिए शब्द बिहेवियोमेट्रिक्स शब्द गढ़ा है।[३] वर्तमान में व्यक्ति की जांच पड़ताल हेतु दो विधियों का प्रयोग किया जाता है:[संपादित करें] धारक-आधारित
ये व्यक्ति के पास उपलब्ध सुरक्षा कार्ड, क्रेडिट कार्ड पर आधारित होता है। इनमें आसानी से फेरबदल किया जा सकता है और क्रेडिट कार्ड की जालसाजी की घटनाएं प्रायः सुनायी देती हैं।[संपादित करें] ज्ञान आधारित
फिशिंग एवं हैकिंग में प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग से कोई पासवर्ड अब उतना सुरक्षित नहीं रह गया, जितना पहले हुआ करता था। साथ ही लंबे समय तक प्रयोग न करने पर पासवर्ड भूल जाने की भी समस्या रहती है।ऐसे में व्यक्ति की इन्हीं कमजोरियों का निदान करने में बायोमैट्रिक्स महत्वपूर्ण है। बायोमैट्रिक्स में शरीर और उसके अंग को सुरक्षा का आधार बनाया जाता है। इसके अलावा सुगंध, रेटिना, हाथों की नसों के आधार पर भी इसे जाना जा सकता है।लगभग सभी बोयामैट्रिक प्रणालियों में मुख्यत: तीन चरण होते हैं।
- सबसे पहले बायोमैट्रिक सिस्टम में नामांकन करने पर नामांकन करता है।
- दूसरे चरण में इन चीजों को सहेजता है।
- इसके बाद तुलना की जाती है।
वर्तमान में बात करने के तरीके, हाथ की नसों, रैटिना, डीएनए के आधार पर भी बायोमैट्रिक कार्ड बनाए जाते है।
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ १.० १.१ १.२ समाज की सुरक्षा और सेवा में बायोमैट्रिक्स।हिन्दुस्तान लाइव।२८ मार्च, २०१०
- ↑ Jain, A. K.; अरुण Ross & सलिल प्रभाकर (जनवरी, २००४), "ऐन इन्ट्रोडक्शन टू बायोमेट्रिक रिक'ओग्नीशन", IEEE Transactions on Circuits and Systems for Video Technology १४वां (१): ४-२०, DOI:10.1109/TCSVT.2003.818349
- ↑ [१]
[संपादित करें] अतिरिक्त पठन
- बायोमैट्रिक्स - पहचान की अत्याधुनिक तकनीक
- व्हाइट पेपर - आईडेनटीफिकेसन फ्लाट्स: अ रेवोलिउशन इन फ़िंगरप्रिंट बॉयोमेट्रिक्स. अवेयर द्वारा प्रकाशित, Inc, मार्च 2009.
- डिलैक, के., ग्रजिक, एम. (2004). अ सर्वे ऑफ़ बॉयोमेंट्रिक रेकोग्निसन मेथड्स.
- NBSP बॉयोमेट्रिक टेक्नोलोजी ऐप्लिकेसन मैनुअल. राष्ट्रीय बॉयोमेट्रिक सुरक्षा परियोजना (NBSP) द्वारा प्रकाशित, BTAM बॉयोमेट्रिक प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों पर एक व्यापक संदर्भ मैनुअल है.
- स्कूल में दोपहर के भोजन के लिए फिंगरप्रिंट भुगतान अभिगमन तिथि: २ मार्च, २००८
- जर्मनी बॉयोमेट्रिक पासपोर्ट का क्रमानुसार विवेचन नवंबर 2005 से शुरू करेगा। ई-गवर्नमेंट न्यूज। अभिगमन तिथि: ११ जून, २००६
- जर्मनी द्वारा वीज़ा आवेदक के लिए बॉयोमेट्रिक पंजीकरण विकल्प को प्राथमिकता। ओएज़कैन, वी. (२००३). हम्बोल्ट विश्वविद्यालय बर्लिन।अभिगमन तिथि: ११ जून, २००६
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क्या देश की दशा और दिशा बताएगी जनगणना?
भारत के इतिहास में अंतिम बार होने वाली जनगणना विशेष महत्व लिए हुए हैं। पहली बार यूनिक आईडी पर आधारित जनसंख्या रजिस्टर तैयार किया जा रहा है जो देश के समावेशी विकास की प्राथमिक आवश्यकता है। आशीष शर्मा की रिपोर्ट
जनगणना का पहला चरण एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। दूसरा चरण अगले साल फरवरी में होगा तथा मार्च के पहले सप्ताह में इसके आरंभिक आंकड़े पता चल जाएंगे। लेकिन जनगणना का मतलब अब सिर्फ लोगों की गिनती भर नहीं है बल्कि यह जनगणना हमें बताएगी कि पिछले दस साल में हमने कितनी प्रगति की और कहां चूक रह गई। विकास के सरकारी दावों की असलियत को यही जनगणना हमें बताएगी। दूसरे-विकास संबंधी जो आंकड़े सामने आएंगे, उन्हीं के आधार पर अगले दस साल की नीतियां तय होंगी। वैसे भी 2011 में जब जनगणना के आंकड़े आ रहे होंगे तब बारहवीं पंचवर्षीय योजना की तैयारियां चल रही होंगी। आपको याद होगा 2001 में जब जनगणना के नतीजे आए थे तो उसमें एक चौंकाने वाला तथ्य निकाला था कि देश में 24 लाख मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघर आदि पूजा स्थल हैं लेकिन स्कूल, कालेज आदि की संख्या 15 लाख और क्लिनिक, डिस्पेंसरी और अस्पतालों की संख्या छह लाख है। यानी शिक्षा और स्वास्थ्य के कुल केंद्रों की संख्या मिलकर 2१ लाख बनती है जो पूजास्थलों से तीन लाख कम थी। इन आंकड़ों ने हमारे नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों को झकझोरा जरूर होगा और इस दिशा में कदम भी बढ़ाया होगा। इस जनगणना में उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार ये आंकड़े उलट निकलें। इसी प्रकार यह भी देखने वाली बात होगी कि क्या प्रगति कर रहे हमारे समाज में अभी भी महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में घटता जा रहा है या इसमें वृद्धि के संकेत हैं। संभवत इन्हीं सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इस बार जनगणना की थीम रखी है, 'हमारी जनगणना हमारा भविष्य।'
क्यों जरूरी है जनगणना ?
देश में पहली जनगणना 1862 में हुई थी। यह 15वीं जनगणना है। शरुआत में हो सकता है जनगणना सिर्फ लोगों की गिनती के लिए होती हो। लेकिन आजादी के बाद से इसका विकास में योगदान बढ़ता गया। देश में विकास योजनाएं बनाने के लिए जनसंख्या के अलावा आंकड़े एकत्रित करने का कोई जरिया ही नहीं है। आए जिन जिन सर्वेक्षण रिपोर्टो में हम पढ़ते हैं, वह सिर्फ कुछ हजार या अधिकतम एक-दो लाख लोगों पर सर्वेक्षण करके तैयार की जाती हैं जबकि जनगणना में 102 करोड़ लोगों के आंकड़े व्यक्तिगत स्तर पर जुटाये जाएंगे। इसलिए दिल्ली से लेकर देहात तक की सही स्थिति जानने के लिए जनगणना से पुख्ता और कोई सर्वेक्षण नहीं है।
करीब साल भर चलने वाली जनगणना दो चरणों में होती है। 35 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पहला चरण एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। पहले चरण में घर और घर से जुड़ी वस्तुओं की गणना की जाती है। इसमें कुल 35 किस्म के सवाल पूछे जा रहे हैं। चूंकि इस बार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) भी बन रहा है। इसका कार्य भी पहले चरण में ही किया जा रहा है। एनपीआर के लिए 15 सवाल पूछे जाएंगे। जनगणना का पहला चरण 15 मई तक पूरा होगा। दूसरे चरण में लोगों की गणना होगी जिसमें लोगों से करीब 18-२0 व्यक्तिगत सूचनाओं से संबंधित सवाल पूछे जाएंगे। यह कार्य 9 से 27 फरवरी, 2011 के दौरान देश में एक साथ होगा।
पहला चरण-हाउस लिस्टिंग एंड हाउसिंग जनगणना
कभी भी जनगणना करने वाले 35 सवालों की सूची लेकर आपके पास आ सकते हैं। इसके लिए राज्यवार कार्यक्रम तैयार किया जा चुका है। इनका सही जवाब देना हर नागरिक का कर्तव्य है। क्योंकि इन सवालों के जवाब से ही भावी विकास योजनाएं बननी हैं। सवालों में घर के कमरों से लेकर उसके निर्माण की सामग्री, इस्तेमाल, बिजली, पानी, टॉयलेट, बाथरूम आदि के बारे में पूछा जाएगा। साथ ही आपके घर में वाहन है या नहीं है, कैसे जाते हैं आदि सवाल हैं। इस बार कुछ नए सवाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर एवं लेपटॉप को लेकर जोड़े गए हैं। एक पहले से पूछे जा रहे एक अटपटे सवाल को हटा दिया गया है जिसमें पूछा जाता था कि क्या घर में विवाहित जोड़े के सोने के लिए अलग कमरा है। पूछे जाने वाले एक सवाल से दर्जनों किस्म के आंकड़े एकत्र हो सकते हैं। मसलन, एक सवाल है घर में कितने कमरे हैं। इसका जवाब एक से दस तक हो सकता है। जब 102 करोड़ की जनता के जवाब आएंगे तो इसके आधार पर आंकड़ों की टेबलें बनेंगी कि कितने लोग एक कमरे के घर में रहते हैं, कितने दो, कितने तीन, कितने चार आदि, कितने झोपड़ी में कितने बिना छत के। फिर यह आंकड़ा राज्यवार, फिर जिला, तहसील और शहर, कस्बे और गांव के हिसाब से बनेगा। इस प्रकार जो 35 सवाल घर और घर से जुड़ी वस्तुओं के बारे में पूछे गए हैं वह करीब-करीब हमारे रहन-सहन और आर्थिक स्थिति का 95 फीसदी हालात प्रस्तुत कर देंगे।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
यह नई कवायद है। इस बार जनगणना की सूचनाएं एकत्र करने के साथ-साथ देश के सभी नागरिकों का निजी डाटा भी तैयार होगा। इसमें नाम-पते के अलावा फोटो और दसों अंगुलियों के फिंगरप्रिंट भी लिए जाएंगे। इसके बाद 15 साल से बडे लोगों को एक विशेष पहचान नंबर दिया जाएगा तथा जो कम उम्र के हैं, उन्हें मां-बाप या अभिभावकों के साथ लिंक किया जाएगा। बाद में नागरिकों को बायोमैट्रिक पहचान पत्र भी प्रदान किया जाएगा। इस कार्य के लिए यूनिक आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी (यूआईडीए) की स्थापना की जा चुकी है जिसके चैयरमैन मशहूर आईटी विशेषज्ञ नंदन नीलेकणी हैं। जनगणना के बाद भी विशेष पहचान नंबर और नागरिकता पहचान पत्र का कार्य देने की प्रक्रिया चलती रहेगी। ज्यों-ज्यों युवक 15 साल की उम्र पूरी करेंगे वे नंबर के लिए आवेदन करेंगे और उन्हें बायोमैट्रिक कार्ड मिलते जाएंगे।
एनपीआर के फायदे ?
यह सवाल जब-तब उठे हैं कि हजारों करोड़ रुपये खर्च करके जनसंख्या रजिस्टर और फिर नागरिकता पहचान पत्र देने के क्या फायदे हैं ? जबकि पहले से ही राशन कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट आदि दिए जा रहे हैं। इसका कोई ठोस जवाब अभी किसी के पास नहीं है। अमेरिका जैसे कई देशों में इस तरह के नंबर देने का प्रावधान है जो नागरिकता की पहचान के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में मददगार साबित होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस नंबर या कार्ड से भविष्य में राशन कार्ड, पैन कार्ड या वोटर कार्ड की जरूरत नहीं रहेगी। इसलिए फिलहाल इसे हमारे चंद्र अभियान की तरह संभावित किसी भावी फायदे के लिए निवेश के रूप में देखा जा रहा है। अलबत्ता जनसंख्या से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि पहचान नंबर और पहचान पत्र का यदि फायदा होगा तो सिर्फ पुलिस महकमे को हो सकता है, वर्ना नहीं।
जनगणना का दूसरा चरण
जनगणना का पहला दौर पूरा होने और आंकड़ों के प्रोसेसिंग का काम पूरा होने के बाद फरवरी 9-27 के बीच जनगणना का दूसरा और अंतिम दौर चलेगा। इस दौरान लोगों से व्यक्तिगत जानकारियों के संबंध में 18-20 सवाल पूछे जाएंगे। इन सवालों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इनमें आमतौर पर नाम, पता, उम्र, बच्चों, शिक्षा, रोजगार, भाषा, धर्म आदि के बारे में पूछा जाता है। विशेषज्ञों ने दो और सवाल पूछे जाने की जरूरत पर जोर दिया है लेकिन सरकार उसमें फैसला नहीं ले रही है। एक-इस दौरान लोगों की आय के भी आंकड़े जुटाए जाने चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि देश में वाकई कितने गरीब हैं। इससे गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों का सही ब्यौरा एकत्र किया जा सकेगा। दूसरे, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी का सटीक ब्यौरा नहीं है। आजादी से पूर्व हुए कुछ सर्वेक्षण बताते हैं कि ओबीसी आबादी 27 फीसदी थी। इसी के आधार पर उन्हें 27 फीसदी आरक्षण विभिन्न क्षेत्रों में दिया जा रहा है। लेकिन यह आंकड़ा सटीक नहीं है। सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों की भांति ही ओबीसी के भी आंकड़े वह एकत्र करे लेकिन अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है।
यूआईडीए
यूनिक आईडेंटीफिकेशन अथॉरिटी का गठन किया जा चुका है जिसके प्रमुख नंदन नीलेकणी हैं। कई बार यह सवाल उठता है कि जनगणना महकमे का क्या काम है और यूआईडीए का क्या काम है क्योंकि दोनों एक जैसी बात कहते हैं कि पापुलेशन रजिस्टर बनाया जाएगा, नंबर मिलेगा, कार्ड मिलेगा आदि। यहां स्पष्ट कर दें कि जनगणना, जनसंख्या रजिस्टर बनाने तथा नंबर देने का कार्य जनगणना महकमा ही करेगा जो गृह मंत्रालय के अधीन है। यूआईडी अथारिटी की भूमिका खासतौर पर इसके तकनीकी पहलू को देखना है। नंबर आवंटन की प्रक्रिया को जनगणना महकमा ही पूरा करेगा और सभी पक्षों के कमेंट लेने के बाद उसे यूआईडीए को सौंपेगा। यूआईडीए नंबर की जांच करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि उसकी कोडिंग ठीक है या नहीं, कहीं डुप्लीकेशन तो नहीं हो रहा है। फिर नंबर के आधार पर बायोमैटिक डाटाबेस में डाले जाएंगे और कार्ड बनेंगे।
जनगणना का कानूनी पहलू
जनगणना का काम सेनसेस एक्ट 1947 के प्रावधानों के तहत किया जाता है। जबकि जनसंख्या रजिस्टर बनाने का काम सिटीजनशिप एक्ट के तहत होता है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि यह योजना एनडीए शासन में बनी थी कि हर नागरिक को पहचान पत्र मिले। मकसद देश में अवैध घुसपैठ को रोकना था। लेकिन योजना के और भी इस्तेमाल निकल सकते हैं। इसमें सहयोग करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। एकत्र की जाने वाली सूचनाएं को गोपनीय रखने का प्रावधान है। यहां तक कि कोर्ट के आदेश पर भी ये सूचनाएं किसी को नहीं दी जा सकती हैं। कुल खर्च-जनगणना के कार्य को पूरा करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3538 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। यूआईडीए का आवंटन अलग है। वैसे जनगणना कार्यालय का अनुमान है कि 2209 करोड़ में यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इस कार्य में कुल 25 लाख कार्मिकों की मदद ली जाती है। ये लोग मूलत: राज्य सरकारों के कर्मचारी टीचर वगैरह होते हैं जिन्हें पहले ट्रेनिंग दी जाती है तथा फिर इस कार्य में मदद ली जाती है। ये लोग 640 जिलों, 5767 तहसीलों, 7642 टाउनों, छह लाख गांवों और 24 करोड़ घरों में जाकर आंकड़े एकत्र करते हैं।
घर संबंधी पूछे जाने वाले ये 35 सवाल-
घर कहां पर है?
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बिल्डिंग नंबर ?
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घर का नंबर ?
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फर्श किससे बना है?
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दिवारें किससे बनी हैं ?
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छत किससे बनी है ?
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घर की कंडीशन कैसी है ?
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घर का क्या इस्तेमाल आवासीय या कुछ और ?
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क्या मकान खाली है ?
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कितने लोग रहते हैं ?
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कितने पुरुष ?
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कितनी स्त्रियां ?
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मुखिया का नाम ?
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वह पुरुष है या स्त्री ?
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अनुसूचित जाति या जनजाति ?
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घर के मालिक कौन है ?
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घर में कमरे कितने ?
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विवाहित जोड़े कितने ?
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पानी कौन सा पीते हैं ?
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स्रोत क्या है पेयजल का ?
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प्रकाश का स्रोत क्या है ?
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अटैच टायलेट है या नहीं ?
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सीवर कनेक्शन है या नहीं ?
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बाथरूम है या नहीं ?
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किचन है ?
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खाना बनाने का क्या ईधन है ?
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घर में रेडियो/ट्रांजिस्टर ?
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टेलीविजन ?
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कंप्यूटर/लैपटॉप ?
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टेलीफोन/मोबाइल ?
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साइकिल/स्कूटर/बाइक ?
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कार/जीप/वैन ?
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क्या बैंकिंग सुविधा हासिल है ?
एनपीआर के लिए पूछे जाएंगे ये 15 सवाल
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व्यक्ति का नाम ?
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लिंग ?
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जन्म तिथि ?
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जन्म का स्थान ?
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वैवाहिक स्थिति ?
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पिता का नाम ?
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माता का नाम ?
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पति या पत्नी का नाम ?
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मौजूदा पता ?
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कब से रह रहे हैं ?
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स्थाई पता ?
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व्यवसाय, राष्ट्रीयता ?
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शैक्षिक योग्यता ?
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परिवार के मुखिया के साथ रिश्ता ?
आबादी की रफ्तार पर लगेगा ब्रेक !
देश की जनसंख्या 102 करोड़ से बढ़कर कितनी होती है इसके पक्के नतीजे तो मार्च 2011 में ही पता चल पाएंगे। लेकिन कुछ समय पूर्व राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय की मदद से जनसंख्या वृद्धि को लेकर जो प्रोजेक्शन किया, उसके अनुसार इस बार आबादी में गिरावट का रूझान दिखना शुरू हो जाएगा। इसका यह मतलब नहीं है कि आबादी में इजाफा नहीं होगा। लेकिन वह तो बढ़ेगी ही लेकिन जनसंख्या की वृद्धि दर 1.6 से घटकर 1.3 रह जाएगी। दूसरे कुल प्रजनन दर (टीएफआर) भी 2.9 से घटकर 2.3 तक आने का अनुमान है। जनसंख्या स्थिरीकरण के लक्ष्यों के तहत भी टीएफआर को 2.1 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है जिसके हम काफी करीब पहुंच जाएंगे।
आजादी के बाद से यह पहला मौका होगा जब आबादी में गिरावट का ट्रेंड नजर आएगा। इस बात को यूं समझ सकते हैं कि 1961 में देश की कुल आबादी 55 करोड़ थी। जो 1971 में बढ़कर 68 करोड़ हो गई। इजाफा हुआ 13 करोड़ का। इसके बाद 1981 में जनसंख्या जा पहुंची 84 करोड़ और कुछ इजाफा हुआ 16 करोड़ का। फिर 2001 में जनसंख्या हुई 102 करोड़ और आबादी में कुल इजाफा हुआ करीब 18 करोड़ का। इस वृद्धि दर के अनुसार अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों का आकलन है कि 201१ में भारत की आबादी बढ़कर 125 करोड़ हो जाएगी। यानी कुल इजाफा 23 करोड़ का होगा।
इसके विपरीत महापंजीयक कार्यालय और जनसंख्या आयोग ने पिछले आठ वर्षो के दौरान प्रजनन दर में गिरावट के मद्देनजर जो आकलन प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार 2011में आबादी 118 करोड़ रहने का अनुमान है। यानी इसमें कुल इजाफा महज 17 करोड़ का होगा। यानी वृद्धि की दर पिछले दशक से कम होगी। आबादी में गिरावट के रूझान पर सकारात्मक है या नहीं इस पर जनसंख्याविदों में भारी मतभेद हैं। हालांकि इसे यह बेहतर संकेत माना जाना चाहिए। लेकिन कुछ आकलन खतरे के संकेत भी देते हैं।
स्त्री पुरुष अनुपात-स्त्री-पुरुष अनुपात जिसे लेकर बीते दशक में देश में खूब हंगामा रहा है, उसमें सुधार के संकेत नहीं है। 2001 में प्रति एक हजार पुरुषों पर 933 महिलाएं थी जो 2011 में 932 रहने का अनुमान है।
कम उम्र के लोग घटेंगे-इसी आकलन में कहा गया है कि अभी 2001 में 15 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या 34 फीसदी थी जो 2011 में महज 28 फीसदी रह जाएगी।
बढ़ जाएंगे बूढ़े-२011 में बूढ़ों की आबादी में काफी इजाफे का अनुमान है। 2001 में बूढ़ों की आबादी 6.9 फीसदी यानी करीब 7.06 करोड़ थी जो 201१ में बढ़कर 8.३ फीसदी यानी करीब 9.74 करोड़ हो जाएगी। मध्यम आयु वर्ग के लोगों में इजाफा होगा। अभी 22 फीसदी आबादी मध्यम आयु वर्ग में जो बढ़कर 25 फीसदी हो जाएगी।
औसत आयु में इजाफे के संकेत- यदि पिछली जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो पुरुषों की औसत आयु 64 और महिलाओं की 66 साल दर्ज की गई थी। दस सालों के बाद इसमें इजाफे के संकेत हैं। इसके क्रमश 67.3 तथा 69.6 साल रहने का अनुमान लगाया गया है।
क्या होगी 2011 में कुछ बड़े राज्यों की आबादी? (आकलन)
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उ.प्र. प्रदेश : 20 करोड़
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महाराष्ट्र : 11.2 करोड़
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बिहार : 8.7 करोड़
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राजस्थान : 6.7 करोड़
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मध्य प्रदेश : 7.2 करोड़
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झारखंड : 3.1 करोड़
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उत्तराखंड : 98 लाख
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उड़ीसा : 4 करोड़
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हिप्र : 67 लाख
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हरियाणा : 2.5 करोड़
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दिल्ली : 1.74 करोड़
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पंजाब : 2.6 करोड़
(प्रोजेक्शन जनसंख्या आयोग)
http://dialogueindia.in/magazine/article/bharat-ki-jangarna
1-चेहरे से पहचान -:
यह भी कोई नई बात है.??.जी हाँ नई बात तो है क्यों कि इस तकनीक में न केवल आप के चेहरे की तस्वीर देखी जाती है बल्कि एक still कैमरे या विडियो कैमरे से लीगयी तस्वीर का ज्यामितीय विश्लेषण किया जाता है.चेहरे के नाक नक्शों की आपसी दूरी भी नोट किए जाते हैं. साथ ही त्वचा की बनावट का भी अध्ययन होता है.
-इस का प्रयोग अमेरिका में सरकारी पहचान पत्रों,व्यक्तिगत -पहुँच,सीमा सुरक्षा बालों तथा कसीनो में प्रवेश के लिए किया जाता है.
-इस जांच में शारीरिक संपर्क की आवश्यकता नहीं होती है.दूरी रख कर फोटो खिंच सकते हैं.
-जांच ,पहले से जमा डाटाबेस में से तुलना कर के की जाती है.
-मंद रौशनी,चेहरे पर बाल,चेहरे के हाव भाव,चश्मे आदि से इस जांच में प्रभाव पड़ता है.और इस जांच में अक्सर कंप्यूटर के साथ साथ मनाव सहायता भी जरुरी होती है.
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2-फिन्गेर प्रिंट
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यह तो बहुत ही प्रचलित है और लगभग सभी ने इस के बारे में सुना होगा.
इस जांच में व्यक्ति के दोनों हाथों की उँगलियों की छाप ली जाती है.
इन छापों में सब के विवरण अलग अलग होते हैं.जिनका विश्लेषण कर के मिलान किया जाता है.
दो व्यक्तियों के उँगलियों के विवरण [ridge patterns]एक से नहीं हो सकते और सस्ती होने के कारण प्रचलित भी है.
-इस तकनीक का प्रयोग अपराध शाखा ,सीमा सुरक्षा ,इम्मीग्रेशन विभाग द्वारा ,कंप्यूटर या नेटवर्क को पाने,आदि में किया जाता है.
-सस्ता है,इस्तमाल करने में आसान है, और जल्दी इस तकनीक से परिणाम आ जाता है यह इस का एक लाभ है.
-इस में मुश्किल ये आती हैं की उम्र ,किसी घाव /चोट आदि के कारण या कुछ व्यवसायों में लगे कर्मचारियों के हाथ के प्रिंट साफ़ नहीं आ पाते.
और इस में व्यक्ति के शरीर [हाथ ]से संपर्क करना पड़ता है.चाहे वह सेंसर द्वारा लिए गए प्रिंट हों या स्याही से लगाये गए .
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- Voice recognition security system
3-आवाज़ भी प्रमाण है -
-इस विधि में एक माइक या handset से आवाज़ को रिकॉर्ड किया जाता है.
आवाज़ की पिच,टोन और लय को नापा जाता है.
-इस विधि से 'टेलीफोन से बैंकों में अपने खातों की जानकारी पाने के वाले ग्राहक की पहचान की जाती है.
-इस विधि के प्रयोग में बाहरी शोर,व्यक्ति की बीमारी,तनाव आदि उस की आवाज़ को प्रभावित कर सकती हैं.
इस लिए इस विधि का उपयोग भी बहुत ही सीमित है.
-------------------------------------------------------------------------------हस्त ज्यामिति scanner
4-हस्त ज्यामिति
इस परीक्षण में कैमरे से हाथों के आयामों को नापा जाता है ,साथ ही उँगलियों की बनावट और लम्बाई को भी.
-इस तकनीक का प्रयोग अमेरिका में न्यूक्लीयर प्लांट,एअरपोर्ट ,तथा रक्षा विभाग में किया जाता है.
-यह बहुत आसान और जल्द होने वाली तकनीक है.
-यह बहुत महंगी तकनीक है ,इस में इस्तमाल होने वाले सेंसर भी महंगे हैं .इस लिए इसे सभी जगह इस्तमाल नहीं किया जा सकता है.
------------------------------------------------------------- [Hand Vascular scanner]
5-हाथ की नसों से पहचान -
[Vascular recognitionया vein geometry]
हर व्यक्ति की नसों का विवरण उस के हाथ में अलग होता है.
इस विधि में infrared प्रकाश की मदद से हाथ की उँगलियों ,हाथ के अगले [हथेली]और पिछले हिस्से की नसों के विवरण का विश्लेषण किया जाता है.
इस तकनीक का प्रयोग बैंक की मशीन से पैसा निकलवाने में, तथा अमेरिका में सीमा सुरक्षा विभाग में किया जाता है.इस का लाभ यह है की यह बहुत ही सही नतीजे देती है और हाथों के गंदे होने पर भी नतीजों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
चूँकि नसों में भी रोग आदि के कारण परिवर्तन हो सकता है इस लिए इस विधि का प्रयोग प्रचलित नहीं हो पा रहा है..
इन विधियों के अलावा कुछ और विधियों का प्रयोग भी किया जाता है ,जैसे---
-कानो की बनावट.
-रेटिनल परीक्षण तकनीक
-व्यक्ति के हस्ताक्षर.
-Key stroke dynamics-[इस में व्यक्ति की कीबोर्ड पर कुछ ख़ास शब्दों को टाइप करने की गति आदि नोट की जाती हैं]
जब पहचान प्रमाण परीक्षणों की बात चली है तो आप सब डीएनए जांच के बारे में भी सोच रहे होंगे.-व्यक्ति की पहचान की एक और महत्वपूर्ण विधि है - डीएनए सेम्पलिंग --यह विधि intrusive है यानि की इस में व्यक्ति के शरीर से रक्त या शरीर के किसी और हिस्से से जांच के लिए नमूना लेना होता है.यह बायोमैट्रिक टेकनिक नहीं है इस लिए हम इस पर कभी और बात करेंगे.
इस कड़ी की अगली किश्त [समापन]में हम इन तकनीकियों में सबसे अधिक विश्वसनीय तकनीक की तुलना प्रचलित तकनीकियों से करेंगे.कृपया प्रतीक्षा करीए... हाँ ,अपनी राय और सुझाव भी देते जाईये..धन्यवाद..
http://sb.samwaad.com/2009/02/blog-post_03.html
यूआईडी होगा 'जिंदगी का नंबर'-निलेकणी
वेबदुनिया हिंदी - 28 अगस्त 2010भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार (यूआईडीएआई) के अध्यक्ष नंदन निलेकणी के अनुसार विशिष्ट पहचान-पत्र ऐसे लाखों भारतीयों के लिए 'जिंदगी का नंबर' होगा जिनकी पहुँच सार्वजनिक ...विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के साथ ...
That's Hindi - 13 अगस्त 2010बैंक की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला यूबीआई देश का 11वां बैंक बन गया है। इस समझौते के तहत वह अपने 1.50 करोड़ वर्तमान ग्राहकों को तथा ...सर्वपल्ली राधाकृष्णन
Pressnote.in - 1 दिन पहलेडॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह भी जाना कि भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना सिखाया गया है और सभी धर्मों के लिए समता का भाव भी हिन्दू संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। ...प्रयोगों की प्रणाली
याहू! जागरण - 24 अगस्त 2010माना जा रहा है कि इसी योजना की तरह से विशिष्ट पहचान संख्या आधारित योजना भी कार्य करेगी। विशिष्ट पहचान संख्या के आधार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए न केवल ...योजना आयोग में संरचनात्मक बदलाव की ...
खास खबर - 18 अगस्त 2010वहीं भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के अध्यक्ष नंदन नीलेकणि ने कहा कि देश ... इस प्राधिकरण का लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक को विशिष्ट पहचान नंबर उपलब्ध कराना है। ...
संस्कृति और परम्पराओं के संरक्षण के ...
Pressnote.in - 1 दिन पहलेगंगाधर भट्ट की पुण्य स्मृति में आज यहां इंद्रलोक सभागार में आयोजित विशिष्ट व्याख्यान ... उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य ऐसा विराट दर्पण है, जो व्यक्ति को उसकी पहचान कराता है। ...हर कोने में होगा मोबाइल और इंटरनेट
वेबदुनिया हिंदी - 4 दिनों पहलेप्रौद्योगिकी में सरकार के बढ़ते रुझान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के जरिये सरकार हर नागरिक को ऐसा पहचान पत्र देगी, जिससे सभी सेवाओं का लाभ उठाया ...
पाकिस्तानी परमाणु जखीरे ने रोका ...
खास खबर - 3 दिनों पहलेपाकिस्तान के पास कोई स्थायी पहचान नहीं होने संबंधी लोकप्रिय सिद्धांत के बारे में पूछे ... हम मुस्लिम लोग अपनी एक विशिष्ट संस्कृति, इतिहास, सामाजिक व्यवस्था और विरासत के कारण ...
सैलानियों से दूर नेहरू गार्डन
दैनिक भास्कर - 28 अगस्त 2010शहर की विरासत के रूप में पहचान बनाने वाला नेहरू गार्डन इन दिनों सैलानियों की पहुंच से ... दुनिया के नक्शे पर शहर को विशिष्ट दर्जा दिलाने वाले नेहरू गार्डन का हाल भी बेहाल है। ...सरहद ने देश को बांटा पर दिलों को नहीं
दैनिक भास्कर - 13 अगस्त 20101961 में उन्होंने गोलबाजार में छोटी सी दुकान की शुरुआत की और इसी 'सरगोधाÓ के नाम से शहर में विशिष्ट पहचान बनाई। प्र मुख स्वर्ण व्यवसायी विजय भोला का परिवार भारत-पाक विभाजन के बाद ...
इन परिणामों पर अप-टु-डेट रहें:
माओवादियों ने पुलिसकर्मियों को किया रिहायाहू! जागरण - 24 मिनट पहले लखीसराय, जागरण संवाददाता। चाहे सुरक्षा बलों के कसते शिकंजे का नतीजा रहा हो कुछ और। गनीमत की बात रही कि माओवादियों ने बंधक बनाए बिहार पुलिस के तीन कर्मियों को सोमवार की सुबह बिना शर्त रिहा कर दिया। क्या पता कब बुरी खबर मिल जाए, इस आशंका में नौ दिनों से कांप रहे परिजन श्रृंगीऋषि धाम के पास पहुंचे तो माओवादियों ने तीनों को उनके हवाले कर दिया। बिहार के लखीसराय के जंगल में 29 अगस्त को माओवादियों से मुठभेड़ के दौरान सात पुलिस ... घर लौटे बंधक पुलिसकर्मी Business standard Hindi बिहार में बंधकों को छोड़ा गया डी-डब्लू वर्ल्ड बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलानवेबदुनिया हिंदी - 2 घंटे पहले बिहार में विधानसभा के चुनाव छह चरणों में 21 अक्टूबर से लेकर 20 नवंबर तक होंगे। मतगणना 24 नवम्बर को कराई जाएगी। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा की। उन्होंने बताया कि पहले चरण में 21 अक्टूबर को 47 सीट के लिए, दूसरे चरण में 24 अक्टूबर को 45 सीट, तीसरे चरण में 28 अक्टूबर को 48 सीट, चौथे चरण में एक नवंबर को 42 सीट, पाँचवे चरण के लिए नौ नवंबर को 35 सीट और 20 नवंबर को अंतिम चरण में 26 सीट ... 21 अक्टूबर से होगा बिहार में मतदान visfot.news गिनती के रह गए हैं माकपा के दिन : राहुलखास खबर - 3 घंटे पहले कोलकाता। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने सोमवार को कहा कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अब गिनती के दिन रह गए हैं। पश्चिम बंगाल में पहली बार किसी रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने यह बात कही। हाल के रूस दौरे को याद करते हुए उन्होंने शहीद मीनार मैदान में मौजूद हजारों लोगों की तालियों की ग़डग़डाहट के बीच कहा, ""रूस में कम्युनिस्ट शासन एक दिन अचानक खत्म हो गया था। यहां भी (पश्चिम बंगाल) ... राहुल की टिप्पणी पर माकपा सख्त SamayLive |
आत्मघाती हमले में चार स्कूली बच्चों सहित 19 की मौत
कांगो में नौका हादसा, 275 की मौत
नेपाल में 'चीनी भूमिका' पर नजरें गड़ाए है भारत
याद किये गये डा. राधाकृष्णन
नेहरू-इंदिरा से बेहतर समन्वय है मेरे मंत्रियों में
कश्मीर में सुरक्षाकर्मियों की गोलीबारी में फिर तीन की मौत
जीटीएल-आरकॉम की कटी कॉल
आरबीआई के गवर्नर का वेतन महज 15 लाख रू. सालाना
ओएनजीसी का भी एफपीओ
'कैटरीना से मेरा रिश्ता राष्ट्रीय खबर क्यों'
मल्लिका ने हिस्स से गायकी की शुरूआत की
सीएम को धमकी देने वाला गिरफ्तार
फिक्स थे ऑस्ट्रेलिया-पाक मैच!
क्यों उठती है पाकिस्तान क्रिकेटरों पर अंगुली
सट्टेबाज संपर्क करेगा, तो जड़ दूंगा थप्पड़: भज्जी
अक्षरधाम हमले के 2 दोषियों के मृत्युदंड पर रोक (लीड-1)
राजस्थान में सरकारी डॉक्टर हड़ताल पर
चिदम्बरम के खिलाफ मानहानि मामले में जांच का आदेश
Tribal sovereignty in the United States - Wikipedia, the free ...
Tribal sovereignty in the United States refers to the inherent authority of indigenous tribes to govern themselves within the borders of the United States ...
en.wikipedia.org/.../Tribal_sovereignty_in_the_United_States - Cached - SimilarVideos for Tribal Sovereignty
Bush Speech on Tribal Sovereignty
36 sec - 11 Apr 2006
Uploaded by KaoruX
www.youtube.comGeorge W. Bush - sovereignty
58 sec - 15 Sep 2007
Uploaded by FreakyOrthopedic
www.youtube.comAmerican Indian Tribal Sovereignty Primer
10 Dec 2005 ... American Indian Tribal Sovereignty Primer. Many of us have not had an opportunity to learn the facts about the unique relationship between ...
www.airpi.org/pubs/indinsov.html - Cached - SimilarTribal Sovereignty
Essay about the sovereignty of the Penobscot Nation, by tribal member Mark Chavaree.
www.ptla.org/wabanaki/sovereign.htm - Cached - SimilarBush's comment on tribal sovereignty creates a buzz
13 Aug 2004 ... Question: What do you think tribal sovereignty means in the 21st century, and how do we resolve conflicts between tribes and the federal and ...
www.seattlepi.com/national/186171_bushtribes13.html - Cached - Similar2000: Tribal Sovereignty Defined
Without Tribal sovereignty, and the financial means to exercise powers of self-government, Tribes would not survive as Indian Nations. ...
www.sagchip.org/council/.../082800-sovereignty-defined.htm - Cached - Similar- [PDF]
TRIBAL SOVEREIGNTY
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TRIBAL SOVEREIGNTY. Indian tribes existed as sovereign governments long before European settlers arrived in North America. ...
www.indiangaming.org/info/pr/presskit/SOVEREIGNTY.pdf - Similar - [PDF]
INDIAN TRIBAL SOVEREIGNTY
File Format: PDF/Adobe Acrobat - Quick View
Both the relationship and separate tribal sovereignty set forth in these .... it is generally conceded by American courts that tribal sovereignty is ...
www.upstate-citizens.org/Sovereignty.pdf - United States - Similar SOVEREIGNTY - in the Context of U.S. "Indian law"
The legal history of "tribal sovereignty" starts with colonialism. From their earliest contacts with the "new world," colonizing powers asserted sovereignty ...
www.umass.edu/legal/derrico/sovereignty.html - Cached - SimilarTribal Sovereignty
This brief explanation of the term tribal sovereignty is from the homepage of the American Indian Research and Policy Institute. You may find their homepage ...
www.aipc.osmre.gov/.../7_1997.htm - Cached - Similar
Showing results for Tribal Sovereignty. Search instead for the original terms: Tribal Sovereignity
bush speech tribal sovereignty
What exactly is the Unique ID project? - CIOL News Reports
26 Jun 2009 ... What exactly is the Unique ID project? A project in which every Indian citizen would have one unique identification number that will ...
www.ciol.com/News/News-Reports/...Unique-ID-project/.../0/ - Cached - SimilarUnique Identification Authority of India - Wikipedia, the free ...
The authority will aim at providing a unique number to all Indians, but not smart .... "Nilekani first chief of Unique 'ID' project", The Assam Tribune, ...
en.wikipedia.org/.../Unique_Identification_Authority_of_India - Cached - SimilarThe Hindu Business Line : 10 cos shortlisted for Unique ID project
20 Mar 2010... the Centre plans to hand out a unique identification number to every Indian resident over the coming years. ... Unique ID project makes a start in 2 AP districts · Unique ID project to decide on 'biometric set' soon ...
www.thehindubusinessline.com/2010/03/.../2010032054040100.htm - CachedState chosen for unique ID project
You are here: Home » State » State chosen for unique ID project ... A unique National Identity Number will be assigned to each individual including those ...
www.deccanherald.com › State - Cached - SimilarThe Telegraph - Calcutta (Kolkata) | Business | Cabinet prop for ...
23 Jul 2010 ... New Delhi, July 22: The cabinet today cleared Rs 3023 crore for the second phase of the unique identity number (UID) project. ...
www.telegraphindia.com/1100723/jsp/business/story_12716152.jsp - CachedGovt kicks off unique ID project for all citizens
28 Jan 2009 ... The project will ensure a permanent ID card, which would have a unique number, photograph and biometric data, for every Indian, ...
www.indianexpress.com/...unique-id-project....../416129/ - United States - Cached - SimilarUnique Identity Project Details Leaked
18 Nov 2009 ... Indian Government's ambitious Unique ID project that will impart unique identity number to each and every resident will change the way ...
www.pluggd.in/unique-identity-project-uid-details-297/ - Cached - SimilarWhat Is Indian National Unique ID Project?
7 Dec 2009 ... national-id-number-project Just like other 56 countries around the ... The unique ID number will not substitute other existing numbers a ...
informationmadness.com/.../1910-what-is-indian-national-unique-id-project.html - Cached - SimilarUnique Identification Number Project (UID)and the Indian Citizen ...
3 Jun 2010 ... The UID (Unique Identity) project is one of the most ambitious projects of the UPA government. The move to set up the UID Authority of India ...
eventsbengaluru.com/.../unique-identification-number-project-uidand-the-indian-citizen/ - CachedThe Hindu : Business News : Government sanctions funds for unique ...
22 Jul 2010 ... The estimated cost includes project components for issue of 10 crore unique identity (UID numbers by March 2011 and recurring establishment ...
www.thehindu.com/business/article528491.ece - Cached
Search Results
UID has inbuilt security and privacy component
IBNLive.com - 1 hour agoThe project,which attempts to give a unique identity number to the country''s over billion people and expected to be rolled out shortly, would help in ...Biometric Identification for India's 1.2 Billion People Raises ... - truthout
UID an assault on individual liberty: Activists - Rediff
all 6 news articles »
Unique ID adequate to get bank account: Nilekani
Deccan Herald - 58 minutes agoThe unique ID will be sufficient," said UIAI Chairman Nandan Nilekani. ... Nilekani said the unique identification number project will be launched in a few ...Organisations to enrol for unique entity IDs
Rediff - 12 hours agoThe authority expects that entity ID numbers will have different rules for ... the purpose of collection of demographic and biometric data for the project. ...
After individuals, organisations to enrol for unique entity IDs
Business Standard - Kirtika Suneja - 2 days ago
The authority expects that entity ID numbers will have different rules for ... the purpose of collection of demographic and biometric data for the project. ...Thumbs up now
Hindustan Times - 6 days agoThe ambitious UID (Unique Identity) project is about to roll out the first set of numbers. Since the setting up of the Unique Identification Authority of ...Unique ID plan hits advisory panel roadblock - Hindustan Times
Nilekani's faceless Indian gets prisoner number - mydigitalfc.com
UID kit ready, rollout soon - Financial Express
Bharat Chronicle - Expressindia.com
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'Appoint registrars for UID project'
Times of India - 27 Aug 2010Saxena said the issue of unique identification numbers to residents will greatly reduce identity-related frauds. Also, it will help in verifying the ...I-T Dept for UID projects in Haryana - Sify
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UPites to get a unique base for existence soon
Times of India - Swati Mathur - 26 Aug 2010
State nodal officer for UIDAI project and additional director, ... The UIDAI plans to issue 10 crore `aadhaars' or unique identity numbers, by March 2011. ...Issues With The UID Project (Aadhaar) - Desicritics.org
all 2 news articles »Why e-governance is important for the common man
Financial Express - 1 day agoIt is worth talking about Aadhar—the new Unique Identification (UID) project which aims at providing a 16-digit identification number to all citizens of ...Our strategy's to both build & buy: CA Tech's McCracken
Economic Times - 3 days agoWhat is CA India's strategy for the Unique ID project? The Unique ID is a complex project with technology sophistication and scale of 1.2 billion people. ...FE Editorial : Food for thought
Financial Express - 3 days agoSuresh Tendulkar has put the number at 8.14 crore, and Arjun Sengupta has a number of ... in Tamil Nadu) or looking at greater use of the Unique ID project. ...
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
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