Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Sunday, January 29, 2017

आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये! संघ परिवार से नत्थी हिंदुत्व की वानर सेना और उनके सिपाहसालारोंकी आस्था ने उनकी आंखों में पट्टी बांध दी होगी ,लेकिन जो सामाजिक बदलाव के मोर्चे पर स्वंभू मसीहा हैं, वे न राम मंदिर के नये आंदोलन और न मुसलमानों के खिलाफ ,काली दुनिया के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की साझेदारी के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं। बलिहारी उनकी चुनावी सत्ता समीकरण साधने वाली फर्जी


आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये!

संघ परिवार से नत्थी हिंदुत्व की वानर सेना और उनके सिपाहसालारोंकी आस्था ने उनकी आंखों में पट्टी बांध दी होगी ,लेकिन जो सामाजिक बदलाव के मोर्चे पर स्वंभू मसीहा हैं, वे न राम मंदिर के नये आंदोलन और  न मुसलमानों के खिलाफ ,काली दुनिया के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की साझेदारी के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं।

बलिहारी उनकी चुनावी सत्ता समीकरण साधने वाली फर्जी धर्मनिरपेक्षता की भी।

पलाश विश्वास

नई विश्वव्यवस्था में भारत अमेरिका के युद्ध में पार्टनर है,हमारी राजनीति, राजनय के साथ साथ आम जनता को भी यह हकीकत याद नहीं है।

नये अमेरिकी राष्ट्रपति डान डोनाल्ड ट्रंप ने बाकायदा दुनियाभर के अश्वेतों और खासतौर पर मुसलमानों के खिलाफ युद्ध घोषणा कर दी है।यह तीसरे विश्ययुद्द की औपचारिक शुरुआत जैसी है।

आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत के उपनिवेश होने की वजह से भारतीय जनता की और भरतीय राष्ट्रीय नेताओं की इजाजत के बिना भारत पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन के साथ युद्ध में शामिल रहा है।

नतीजतन जब नेताजी सुभा, चंद्र बोस ने भारत की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़कर सिंगापुर रंगून फतह करने के साथ साथ अंडमान और मणिपुर में भी तिरंगा ध्वज फहरा दिया ,तब आजाद हिंद फौज का समर्थन करने के बजाय भारतीय राजनीति ने ब्रिटिश हुकूमत का समर्थन किया था और नेताजी को गद्दार बता दिया था।

आज आजाद देश किसका उपनेवेश है कहने और समझाने की कोई जरुरत नहीं है।अब भारत अमेरिका के युद्ध में अहम पार्टनर है और इस युद्ध को आतंकवाद के खिलाफ युद्ध कहा जाता रहा है।

मुसलमानों और शरणार्थियों के लिए दरवाजा बंद करने का डान डोनाल्ड का फैसला भी अमेरिका का आतंक के खिलाफ युद्ध बताया जा रहा है।डान डोनाल्ड के इस एक्शन से एक झटके के साथ इसी उपमहाद्वीप में रोहंगा मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार में,तमिलों के खिलाफ श्रीलंका का और हिंदू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ बांग्लादेश में नरसंहारी बलात्कारी उत्पीड़न की विचारधारा मजबूत हो गयी है।

जाहिर है कि इस युद्ध की परिणति इराक,अफगानिस्तान और सीरिया से ज्यादा भयंकर होगी।दुनिया का श्वेत अश्वेत नस्ली ध्रूवीकरण के तहत जो तीसरा विश्वयुद्ध अश्वेत काली दुनिया के खिलाफ डान डोनाल्ड ने छेड़ दिया है,उस युद्ध में भारत आटोमेटिक शामिल है और और इस युद्ध की परिणति में भी भारत को साझेदार बनकर उसके तमाम नतीजे भुगतना है।

विडंबना है कि ताज्जुब की बात है कि सूचना तकनीक के जरिये रियल टाइम पल पल की जानकारी रखने वाला मीडिया और वैश्विक इशारों के मुताबिक राजनीति और अर्थव्यवस्था चलाने वाले देश के भाग्यविधाता और भारतीय जनता के जनप्रतिनिधि ने इस वैश्विक घटनाक्रम का कोई संज्ञान नहीं लिया है।

धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत और बहुलता विविधता के तमाम बयान दिखाने के और हैं और खाने के और हैं।धर्मनिरपेक्ष ताकतों का स्वर भी भारत में कहीं उस तरह गूंज नहीं रहा है जैसा अमेरिका,यूरोप या दनिया में बाकी जगह हो रहा है।

जाहिर है कि दलितों ,पिछड़ों और आदिवासियों के प्रति वोट की गरज से जितनी सहानुभूति राजनीतिक मीडिया खिलाड़ियों पिलाड़ियों को है,उससे कुछ ज्यादा धर्निरपेक्ष तेवर के बावजूद गैरहिंदुओं से कोई सहानुभूति सत्ता वर्ग के विविध रंगबिरंगे लोगों को उनकी पाखंडीविचारधाराओं के बावजूद नहीं है।उन्हें भी नहीं,जिन्होंने गठबंधन बनाकर यूपी बिहार में संघ परिवार का हिंदुत्व रथ को थामा है। वे तमाम सितारे भी मूक और वधिर बने हुए हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं और भारत में भी बहुसंख्य हिंदुओं के बाद उनकी आबादी सबसे बड़ी है।

मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका के खुल्ला युद्ध में भारत के शामिल हो जाने जैसी घटना के बारे में मीडिया और राजनीति की खामोशी हैरतअंगेज है।

खासकर ऐसी परिस्थितियों में जब पांच राज्य के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए डान डोनाल्ड के नक्शेकदम पर मुसलमानों से इतिहास का बदला चुकाने के लिए फिर राममंदिर के लिए बजरंगी वाहिनी और उनके सिपाहसालार नये सिरे से राम की सौौगंध खा रहे हैं।दंगा फसाद की फिजां नये सिरे से तैयार हो रही है।

जिन देशों के मुसलमानों के खिलाफ डान डोनाल्ड की निषेधाज्ञा है,उन सभी एशियाई और अफ्रीकी देशों के साथ भारत के पारंपारिक राजनयिक संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं।

अमेरिका परस्त सउदी अरब के खिलाफ या संयुक्त अरब अमीरात यामिस्र के खिलाफ यह निषेधाज्ञा नहीं है।जबकि नािन इलेवेन को ट्विन टावर के विध्वंसे के मामले में सऊदी आतंकबवादी सबसे ज्यादा थे।

इससे साफ जाहिर है कि यह युद्ध आतंकवाद के खिलाफ नहीं है।

जिस इस्लामी देश पाकिस्तान को लेकर भारत को सबसे ज्यादा परेशानी है और जहां भारत विरोधकी फौजी हुकूमत है,उसके खिलाफ भी यह फतवा नहीं है।

सीधे तौर पर यह रंगभेदी हमला है काली दुनिया के खिलाफ,जिसमें हम भी शामिल हैं।मुसलमानों के अलावा लातिन अमेरिका के खिलाफ भी अमेरिका की यह युद्धघोषणा है।इस निषेधाज्ञा के तहत शरणार्थी हिंदुओं की भी शामत आनी है।

फेसबुक और गुगल केजैसे प्रतिष्ठानों के विरोध के बावजूद सूचना तकनीक पर टिकी भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध का क्या असर होना है,यह बात जझोला छाप विशेषज्ञों को भले समझ में नहीं आ रही हो लेकिन बाकी लोगों को क्या सांप सूंघ गया है कि डिजिटल कैशलैस इंडिया की इकोनामी को अमेरिका के इस युद्ध से क्या फर्क पड़ने वाला है,यह समझ में नहीं आ रहा है।

हम बार बार कहते रहे हैं कि भारत में जाति व्यवस्था सीधे तौर पर वर्ण व्यवस्था का रंगभेदी कायाकल्प है।

अमेरिकी डान डोनाल्ड के श्वेत वर्चस्व के अमेरिका फर्स्ट और हिंदुत्व के एजंडे के चोली दामन के साथ बहुजनों के नस्ली नरसंहार का जो तीसरा विश्वयुद्ध शुरु कर दिया गया है,उसके खिलाफ बहुजन भी सत्ता वर्ग की तरह बेपरवाह है,जबकि भारत के बहुजन समाज में भी मुसलमान शामिल है।

अगर मुसलमान बहुजनों में शामिल नहीं हैं,अगर आदिवासी भी मुसलमान में शामिल नहीं है और ओबीसी सत्तावर्ग के साथ हैं तो सिर्फ दलितों की हजारों जातियों में बंटी हुई पहचान से सामाजिक बदलाव का क्या नजारा होने वाला है,उसे भी समझें।

संघ परिवार से नत्थी हिंदुतव की वानर सेना और उनके सिपाहसालारों की आस्था ने उनकी आंखों में पट्टी बांध दी होगी ,लेकिन जो सामाजिक बदलाव के मोर्चे पर स्वंभू मसीहा हैं, वे न राम मंदिर के नये आंदोलन और न मुसलमानों के खिलाफ,काली दुनिया के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की साझेदारी के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं।

बलिहारी उनकी चुनावी सत्ता समीकरण साधने वाली फर्जी धर्मनिरपेक्षता की भी।

यह सत्ता में भागेदारी का खेल है सत्ता में रहेंगे सत्ता वर्ग के लोग ही।

बीच बीच में सत्ता हस्तांतरण का खेल जारी है।

इसका नमूना उत्तराखंड है,जहां समूचा सत्ता वर्ग हिमालय और तराई के लूटेरा माफियागिरोह से है।वहां शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की तैयारी है।

जैसे बंगाल में नेतृत्व पर काबिज रहने की गरज से सत्ता वर्ग को ममता बनर्जी की संग नत्थी सत्ता से कोई ऐतराज नहीं है और वे हारने को भी तैयार हैं,लेकिन किसी भी सूरत में वंचित तबकों को न नेतृत्व और न सत्ता सौंपने को तैयार हैं।

उसीतरह उत्तराखंड के कांग्रेसियों को  पूरे पहाड़ और तराई के केसरिया होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है और वे संघ परिवार को वाकओवर दे चुके हैं।

हरीश रावत के खासमखास सलाहकार और सिपाहसालार विजय बहुगुणा से भी ज्यादा फुर्ती से अल्मोड़िया राजनीति के तहत उनका पत्ता साफ करने में लगे हैं।

क्योंकि केसरिया राजकाज में उन्हें अपना भविष्य नजर आता है।

यही किस्सा कुल मिलाकर यूपी और पंजाब का भी है।

यूपी में अखिलेश कदम दर कदम यूपी को केसरिया बनाने में लगे हैं तो पंजाब में अकाली भाजपा सरकार के खिलाफ जो सबसे बड़ा विपक्ष है,उसका संघ परिवार से चोली दामन का साथ है।

आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये!



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment