Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Saturday, May 30, 2015

क्रीमीलेयर एक धोखा है-अजा एवं अजजा वर्गों में क्रीमी लेयर सम्भव नहीं!

क्रीमीलेयर एक धोखा है-अजा एवं अजजा वर्गों में क्रीमी लेयर सम्भव नहीं!
***********************************************
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

मोहनदास कर्मचन्द गांधी द्वारा देश के सभी वंचित वर्गों को हमेशा के लिये पंगू बनाये रखने के लिये जबरन थोपे गये पूना पैक्ट को लागू करने के लिये भारत के संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय का उल्लेख किया गया है। जिसके क्रियान्वयन के लिये संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में पिछड़े वर्गों को प्रशासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये अजा एवं अजजा वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के प्रावधान किये हैं। जिसके तहत इन वार्गों को 22.50 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है।

इस सम्बन्ध में सबसे पहले तो यह समझना बहुत जरूरी है कि संविधान में व्यक्तियों को नहीं, बल्कि अजा-अजजा वर्गों में शामिल मिलती-जुलती जातियों को वर्गीकृत करके आरक्षण प्रदान किया गया है। आरक्षण प्रदान करने के दो आधार निर्धारित किये गये हैं :-

1. ऐसा वर्ग जो सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा हो। तथा 
2. सरकार के अधीन प्रशासनिक पदों पर उस वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो।

नोट : सुप्रीम कोर्ट की राय में इन दोनों में से कोर्इ भी एक अकेली या आर्थिक शर्त आरक्षण प्रदान करने की कसौटी नहीं हो सकती है।

इसके विपरीत संविधान लागू होने के दिन से लगातार आर्य-मनुवादियों की ओर से यह झूठ प्रचारित किया जाता रहा है कि आरक्षण का उद्देश्य वंचित वर्गों के सभी गरीब लोगों को नौकरी लगाना है। जबकि वंचित वर्गों के सम्पन्न व धनाढ्य लोग पीढी दर पीढी आरक्षण का लाभ लेकर अपने ही वर्गों के साथ अन्याय कर रहे हैं। ऐसा कहकर मनुवादी आरक्षित वर्गों के उन आम-गरीब लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर लेते हैं, जिनको मनुवादियों के गुप्त दुराशय का ज्ञान नहीं है। क्योंकि आरक्षण का मकसद प्रत्येक आरक्षित व्यक्ति को नौकरी देना या गरीबी उन्मूलन नहीं है। क्योंकि यदि अजा एवं अजजा वर्गों को 100 फीसदी आरक्षण भी दे दिया जावे तो भी 1000 साल में भी प्रत्येक व्यक्ति को नौकरी नहीं दी जा सकती। फिर भी मनुवादी क्रीमीलेयर की बात करके एक ही तीर से अनेक निशाने साधते रहे हैं। जैसे-

1. प्रशासन में आरक्षित वर्गों के मजबूत प्रतिनिधि पैदा नहीं होने देना। ताकि आरक्षित वर्गों का हक आगे भी आसानी से छीना जाता रहे।
2. पदोन्नति का आरक्षण समाप्त करवाना।
3. आरक्षण के मूल आधार को आर्थिक घोषित करवाकर खुद मनुवादी आरक्षण का लाभ प्राप्त करने में सफल हो सकें। और
4. आरक्षित वर्गों के प्रथम श्रेणी लोक सेवकों को अनारक्षित घोषित करवाकर आरक्षित वर्गों की एकता को विखण्डित किया जा सके।

इसीलिये सुप्रीम कोर्ट ने अनेकानेक मामलों में साफ शब्दों में कहा है कि अजा एवं अजजा वर्गों को आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है, न दिया जा सकता है :-

1. इन्दरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, ए आर्इ आर.1993 में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्छेद 16 (4) आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की अनुमति नहीं देता है। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत ने कहा कि किसी एक व्यक्ति के आर्थिक विकास के आधार पर उसके बच्चों को आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता।

2. उत्तर प्रदेश बनाम प्रदीप टण्डन, ए आर्इ आर-1975 में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि गरीबी के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह को आरक्षण नहीं दिया जा सकता, क्योंकि गरीबों का कोर्इ जाति समूह या वर्ग नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि गरीब तो सारे भारत में और सभी जातियों में पाये जाते हैं।

इसलिये यदि गरीबी के आधार पर आरक्षण दिया जाना शुरू हो गया तो आरक्षण का मूल संवैधानिक मकसद ही समाप्त हो जायेगा। क्योंकि आरक्षण का संवैधानिक मकसद हजारों वर्षों से वंचित वर्गों के प्रतिनिधियों का प्रशासन में चयन करने के लिये, अर्हक योग्यताओं में छूट के साथ आरक्षण प्रदान किया जाना जरूरी था, जिससे कि चयनित आरक्षित लोक सेवक प्रशासन में अपने-अपने वर्गों का सशक्त प्रतिनिधित्व करते हुए अपने-अपने वर्गों को न्याय और संरक्षण प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकें।

लेकिन इसके विपरीत अजा, अजजा एवं अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सभी आरक्षित वर्गों के आम लोगों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि- नौकरियों के लिये आयोजित चयन प्रतियोगिताओं में तुलनात्मक रूप से मैरिट में कम अंक प्राप्त करने के बावजूद भी, इन वर्गों के लोग आरक्षण के आधार पर सरकारी सेवाओं में उच्च पद प्राप्त तो कर लेते हैं, लेकिन पद प्राप्त करते ही अधिकतर लोग अपनी जाति और समाज के प्रति अपनी सामाजिक जिम्मेदारी (पे-बैक टू सोसायटी) को भूल जाते हैं। जबकि उन्हें तुलनात्मक रूप से कम योग्य होते हुए भी राज्याधीन पदों पर अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के संवैधानिक मकसद से आरक्षित पदों पर चयनित किया जाना मूल उद्देश्य है।

इसी का दूसरा पहलु यह भी है कि यदि उच्च पदों पर आरक्षित वर्गों के चयनित लोगों को क्रीमीलेयर अर्थात् आर्थिक आधार पर आरक्षित वर्गों से बाहर करना शुरू कर दिया गया तो सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु प्रदान किये गये आरक्षण का मूल मकसद अर्थात् सभी राज्याधीन पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में शसक्त प्रतिनिधित्व स्थापित किया जाना, कभी पूर्ण ही नहीं हो सकेगा। क्योंकि यदि उच्च आय/क्रीमीलेयर लागू करके आरक्षित वर्ग के लोगों को आरक्षित सूची से बाहर कर दिया गया तो उच्च पदों पर पदस्थ होते हुए आरक्षित वर्ग में चयनित होकर भी अजा एवं अजजा वर्ग के उच्चाधिकारी, संवैधानिक मकसद के अनुसार अपने ही वर्ग के लोगों का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। क्योंकि यदि उन्हें क्रीमीलेयर के आधार पर उनके पैतिृक वर्गों से बाहर कर दिया गया तो उनसे, उनके पैतिृक वर्गों का र्इमानदारी से प्रतिनिधित्व करने की अपेक्षा करना अन्यायपूर्ण और संविधान के विपरीत होगा।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही होगा कि अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासन में प्रतिनिधित्व कौन करेगा? केवल यही नहीं, क्रीमीलेयर के लागू होते ही पदोन्नति में आरक्षण का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा।

अत: क्रीमीलेयर एक धोखा है और अजा एवं अजजा वर्गों के प्रशासनिक प्रतिनिधियों की बेर्इमानी, असफलता या अपने वर्गों के प्रति निष्ठा नहीं होने का समाधान क्रीमीलेयर लागू करना नहीं है, बल्कि आरक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ लोक सेवकों को प्रशासन और सरकार में अपने-अपने वर्गों का र्इमानदारी और निष्ठापूर्वक प्रतिनिधित्व करने के लिये, कड़े कानून बनाकर और संवैधानिक तरीके से पाबन्द किये जाने, अन्यथा दण्डित किये जाने की सख्त व्यवस्था की तुरन्त जरूरत है।

>>>>>>आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा? कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत जरूर करावें और आपके सुझावों का स्वागत है।

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, नेशनल चेयर मैन-जर्नलिस्ट, मीडिया एण्ड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन और राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान, मो. 98750 66111,baaaoffice@gmail.com

No comments:

Post a Comment