Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Friday, November 21, 2014

उलटबाँसियां: उल्टी दुनिया की पाठशाला

उलटबाँसियां: उल्टी दुनिया की पाठशाला

Posted by Reyaz-ul-haque on 11/09/2014 03:17:00 PM

एदुआर्दो गालेआनो 
अनुवाद: पी.के. मंगलम

अगर एलिस वापस आती

आज से एक सौ तीस साल पहले, आश्चर्यों भरी दुनिया घूमने के बाद एलिस उल्टी दुनिया की खोज में एक आईने के भीतर गई थी। अगर एलिस हमारे जमाने में वापस आती तो उसे किसी शीशे से होकर जाने की जरूरत नहीं होगी; बस खिड़की से बाहर देखना होगा।
इस सदी के खत्म होते होते उल्टी दुनिया हम सबके सामने है; वही दुनिया जिसमें हम रहते हैं  और जहां बायां दाईं तरफ, पेट पीठ में और सिर पैरों में है। 
                                           मोंतेविदियो, 1998 के मध्य में

विषय-क्रम

आभार
भाईयों और बहनों, आगे बढ़ते रहिए!
पाठ का हिसाब
माता-पिता के नाम संदेश
अगर एलिस वापस आती
उल्टी दुनिया की पाठशाला
सीखाना उदाहरणों के साथ
विद्यार्थी
अन्याय का शुरुआती पाठ
रंगभेद और पुरुष वर्चस्ववाद के शुरुआती पाठ
पुरोहिती डर की
डर की पढ़ाई
डर का उद्योग
दुश्मनों को अपने हिसाब से कैसे बनाएं: कांट-छांट और दर्जीगिरी के सबक
मठ नीतिशास्त्र का
जमीनी काम: सफल जिंदगी और नए दोस्त कैसे बनाएं
सबक बेकार की आदतों से निबटने के 
कुछ भी कर बच निकलने की महाविद्या
मिसालें पढ़ने के लिए
सीनाजोरी हत्यारों की
सीनाजोरी धरती के विनाशकों की
सीनाजोरी चंहुओर पुजाते मोटरइंजन की
सीख अकेलेपन की
सबक उपभोक्ता समाज के
अलग-थलग पड़ने की पूरी तैयारी
एक पाठशाला इन सबके खिलाफ़ भी
खत्म होती सहस्राब्दी के छल और उम्मीद
उन्मुक्त उड़ान का अधिकार
नामों की फेहरिस्त

विद्यार्थी

दिन-प्रतिदिन बच्चों को बचपन के अधिकार से दूर किया जा रहा है। इस अधिकार की हँसी उड़ाते सच अपनी सीखें हम तक रोज़ाना पहुँचाते हैं। हमारी दुनिया धनी बच्चों को यूँ देखती है मानो वे कोई चलती-फिरती तिजोरी हों! और फिर होता यह है कि ये बच्चे असल जिंदगी में भी खुद को रुपया-पैसा ही समझने लग जाते हैं। दूसरी ओर, यही दुनिया गरीब बच्चों को कूड़ा-कचरा समझते हुए उन्हें घूरे की चीज बना डालती है।  और मध्यवर्ग के बच्चे, जो न तो अमीर हैं न गरीब, यहाँ टी.वी से यूँ बांध दिए गए हैं कि बड़ी छोटी उमर से ही वो इस कैदी जीवन के ग़ुलाम हो जाते हैं। वे बच्चे जो  बच्चे  रह पाते हैं, फिर किस्मत के धनी और एक अजूबा ही माने जाएंगे।

ऊपर, नीचे और बीच वाले

चारों ओर फैले उपेक्षा के अथाह समंदर में सुख-सुविधाओं के टापू गढ़े जा रहें हैं। ये ऐशो-आराम के सामानों से भरपूर, किसी जेलखाने की निगरानी और चुप्पी लेती जगहे हैं। यहाँ  धन और बल के महारथी, जो अपनी ताकत के अहसास को एक पल भी छोड़ नहीं सकते हैं, सिर्फ़ अपने जैसे लोगों से घुलते-मिलते हैं। लातीनी अमरीका के कुछ बड़े शहरों में अपहरण बिल्कुल रोज की बात हो गई है।  ऐसे में यहाँ के अमीर बच्चे लगातार फैलते डर के साए में ही बड़े होते हैं। चारदीवारीयों वाली कोठियाँ और बिजली के बाड़ों से घिरे बंगले इनका ठिकाना होते हैं। यहाँ सुरक्षागार्ड और क्लोज सर्किट कैमरे धन के इन संतानों की रखवाली दिन-रात किया करते हैं। ये बाहर निकलते भी हैं तो रूपये-पैसों की तरह हथियारों से लैस गाड़ियों में बंद होते हैं।  सिवाय सिर्फ़ दूर से देखते रहने के, अपने शहर को ये ज्यादा नहीं जानते। पेरिस  या न्यूयार्क की भूमिगत सुविधाओं का तो इन्हें खूब पता रहता है, लेकिन साओं पाओलो [1] या मेक्सिको [2] की राजधानी की ऐसी ही चीजों का ये कभी इस्तेमाल नहीं करते।

देखा जाए तो ये बच्चे उस शहर में रहते ही नहीं, जहां के वो रहने वाले हैं। अपने छोटे-से जन्नत के चारों ओर पसरी भयावह सच्चाईयों से ये बिल्कुल दूर खड़े होते हैं।  आखिर इस जन्नत के बाहर ही वह भयानक दुनिया शुरू होती है, जहां लोग बहुत ज्यादा, बदसूरत, गंदे और उनकी खुशियों से जलने वाले हैं। जब पूरी दुनिया के एक गाँव बनते जाने की बात बड़े जोर-शोर से फैलाई जा रही है, बच्चे किसी एक जगह के नहीं रह गए हैं। लेकिन जिनकी अपनी दुनिया छोटी-से-छोटी होती गई है, उन्हीं की आलमारियाँ  सामान से भरी भी हुई हैं। ये वो बच्चे हैं, जो जड़ो से कटे और बिना किसी सांस्कृतिक पहचान के ही बड़े होते हैं। इनके लिए समाज का कुल मतलब यही यक़ीन होता है कि बाहरी दुनिया की सच्चाईयाँ  खतरनाक हैं। पूरी दुनिया पर छाए ब्रांड ही अब इन बच्चों का देश बन गए हैं, जहां ये अपने कपड़ों और बाकी चीजों को अलग-अलग दिखाने की जुगत में लगे रहते हैं। और भाषा के नाम पर इनके लिए अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक संकेत ही सब कुछ हैं। एक-दुसरे से जुदा शहरों और मीलों दूर खड़ी जगहों में पलती-बढ़ती धन की ये संताने अपनी आदतों और रूझानों में एक जैसी दिखाई देने लगी हैं। ठीक अपने समय और स्थान के सरोकारों से बाहर खड़े, एक-दूसरे की नकल करते मॉलों और हवाईअड्डों की तरह। सिर्फ दिखने वाले सच का पाठ पढ़े ये बच्चे जमीनी हकीकत से बिल्कुल बेखबर होते हैं। वही हकीकत जो उनके लिये सिर्फ डराने वाली या फिर पैसे के बल पर जीत  ली जाने वाली चीज होती है।

बच्चों की दुनिया

'सड़क बहुत देख-भाल कर पार करनी चाहिए' 

कोलम्बिया  [3] के शिक्षक गुस्ताव विल्चेस बच्चों के एक समूह को समझा रहे थे:

'चाहे बत्ती हरी ही क्यों न हो, कभी भी सड़क दोनों ओर देखे बगैर पार नहीं करनी चाहिए'।

विल्चेस ने उन्हें यह भी बताया कि कैसे एक बार वह एक कार से कुचले जाने के बाद बिल्कुल बीच सड़क पर गिरे पड़े थे। उन्हें अधमरा कर छोड़ देने वाली उस दुर्घटना को याद कर विल्चेस का चेहरा पीला पड़ गया था।

लेकिन बच्चों ने उनसे यह पूछा:
किस ब्रांड की कार थी वह?

क्या उस कार में एयर कंडीशनर की सुविधा थी?

वो कार क्या सौर ऊर्जा से चलने वाली थी?

बर्फ हटाने वाली मशीन थी न उसमें?

कितने सिलेंडरों वाली कार थी वह?

दुकान के शीशे

लड़कों के खिलौने; रैंबो, रोबोकौप, निंजा [4], बैटमैन, राक्षस, मशीनगन, पिस्तौल, टैंक, कार, मोटरसाईकिल, ट्रक, हवाई जहाज, अंतरिक्षयान

लड़कियों के खिलौने: बार्बी गुड़िया, हाइडी, इस्तरी करने की मेज, रसोई का सामान, सिल-बट्टा, कपड़े धोने की मशीन, टीवी, बच्चे, पालना, दूध की बोतल, लिपिस्टीक, बाल घुंघराले करने की मशीन, सुर्खी पाउडर, आईना

फास्ट फूड, तेज कारें, तेज जिंदगी: इस दुनिया में आते ही धनी बच्चों को यह सिखाया जाने लगता है कि सभी चीजें सिर्फ कुछ पलों की और इसीलिए खर्चने की होती हैं। इनका बचपन यही देखते-दिखाते बीतता है कि मशीने इंसानों से ज्यादा भरोसे लायक हैं। और  जब ये बड़े होंगे [5] तब बाहर की "खतरनाक" दुनिया से हिफाजत के लिए इन्हें पूरी धरती नापने को तैयार चारपहिया सौंपी जाएगी! जवानी की ओर कदम बढ़ाते-बढ़ाते ये बच्चे साइबर दुनिया की सरपट सड़कों पर फर्राटे भरने लग जाते हैं। अपने कुछ होने का अहसास ये तस्वीर और सामान निगलते, टी.वी. के चैनल बदलते और बड़ी-बड़ी खरीददारीयाँ करते हुए पाते हैं। साइबर दुनिया में घूमते इन साइबरी बच्चों का निपट अकेलापन शहरों की गलियों में भटकते बेसहारा बच्चों की तरह ही होता है।
 

धनी बच्चे जवान होकर अकेलापन खत्म करने और तमाम डर भुलाने के लिए नशीली दवाएं ढूँढें, इसके बहुत पहले से ही गरीब बच्चे पेट्रोल और गोंद में छुपा नशा ले रहे होते हैं। वहीं, जब धनी बच्चे लेज़र बंदूकों के साथ युद्ध का खेल खेलते हैं, गली के बच्चों को असली गोलियाँ निशाना बना रही होती हैं। 

लातीनी अमरीका की आबादी का लगभग आधा हिस्सा बच्चों और जवान होते लड़कों-लड़कियों का है।  इस आधे हिस्से का आधा बहुत बुरे हाल में जी रहा है।  इस बुरे हाल से वही सौ बच्चे बच पाते हैं, जो हर घंटे यहाँ  भूख या ठीक होने वाली बीमारीयों से मर जाते हैं! फिर भी, गलियों और खेतों [6] में ग़रीब बच्चों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। यह दुनिया के उस हिस्से की बात है, जो दिन-रात ग़रीब पैदा करता है और ग़रीबी को गुनाह भी मानता है! यहाँ ज्यादातर ग़रीब बच्चे और ज्यादातर बच्चे ग़रीब हैं। और, व्यवस्था से बाँध दी गई जिंदगियों में ग़रीबी की सबसे ज्यादा मार इन्हीं बच्चों पर पड़ती है। इन्हें निचोड़ कर रख देने वाला समाज इनको हमेशा शक के दायरे में रखता है। इतना ही नहीं, यहाँ ग़रीबी के इनके 'अपराध' की सजा भी सुनाई जाती है, जो कभी-कभी मौत होती है। वे क्या सोचते और महसूस करते हैं, यह कोई नहीं सुनता, उन्हें समझने की बात तो फिर बहुत दूर  है। 

ये बच्चे, जिनके माँ-बाप या तो काम की तलाश में भटकते रहते हैं या फिर बिना किसी काम और ठिकाने के ही रह जाते हैं, बड़ी छोटी उमर से ही कोई भी छोटा-मोटा काम कर जीने को मजबूर होते हैं। सिर्फ पेट भरने या उससे थोड़ा ज्यादा पा लेने के बदले ये पूरी दुनिया में कहीं भी कमरतोड़ खटते हुए मिल जाएंगे। चलना सीखने के बाद ये यही सीखते हैं कि अपना काम 'ठीक' से करने वाले ग़रीबों को क्या क्या ईनाम मिलते हैं। इन लड़के-लड़कियों की "बढ़िया" मजदूर बनने की शुरूआत गराजों, दुकानों और छोट-मोटे, घर से चलाए जाने वाले ढाबों से होती है, जहाँ इनसे मुफ्त काम लिया जाता है। या फिर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए खेलकूद  के कपड़े बनाने वाले कारखानों से, जहाँ इनकी मजदूरी कौड़ियों के मोल खरीदी जाती है। खेतों या लोगों से ठसमठस शहरों या फिर घरों में काम करते हुए ये अपने मालिकों की मर्जी से बँधे रहते हैं। कुल मिलाकर इनकी हालत घरेलू या वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के 'असंगठित' कहे जाने वाले क्षेत्र के गुलामों की है। पूरी दुनिया में फैलते बाज़ार की चाकरी करते ये बच्चे उसके सबसे शोषित मजदूर भी हैं।

नोट्स

1. लातीनी अमरीकी देश ब्राजील का एक महानगर
2. लातीनी अमरीकी देश
3. लातीनी अमरीकी देश
4. एक जापानी मार्शल आर्ट के लड़ाके।
5. मूल शब्द हैं "la hora del ritual de iniciacion" जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "प्रवेश के अनुष्ठान की घड़ी" ।
6. मूल शब्द "campo" है जिसके मायने गाँव या खेत दोनों ही होते हैं। 

No comments:

Post a Comment