Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, July 23, 2012

Fwd: TaraChandra Tripathi updated his status: "क्या जिनका डी.एन.ए. शत प्रतिशत भारतीय है वे क्या शोषण में...



---------- Forwarded message ----------
From: Facebook <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2012/7/22
Subject: TaraChandra Tripathi updated his status: "क्या जिनका डी.एन.ए. शत प्रतिशत भारतीय है वे क्या शोषण में...
To: Palash Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>


facebook
TaraChandra Tripathi
TaraChandra Tripathi updated his status: "क्या जिनका डी.एन.ए. शत प्रतिशत भारतीय है वे क्या शोषण में शामिल नहीं हैं? यदि ब्राह्मण का अभिप्राय बुद्धिजीवी लिया जाने वाला होता, तो तुम्हारे विचारों से मतभेद होने का सवाल ही नहीं था. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. यह किसी जाति में जन्मे व्यक्ति का बोधक हो गया है. मेरा अम्बेदकर को आदर्श मानने वाले लोगों से भी कोई मतभेद नहीं है. मुझे तो चिन्ता इस बात की होती है कि मनु को मानने वाले और मनु की परम्परा का घोर विरोध करने वाले नेताओं के विचारों और आचरण में कोई अन्तर ही नही है. मायावती जी दलितजीवी हैं, जैसे मुलायम सिंह अल्पसंख्यक और यादव जीवी, भा.ज.पा हिन्दू जीवी. जीवी या पलने वाला.( पालने वाला नहीं.) भारत के सभी बुद्धिजीवियों का यही हाल है. नहीं तो अम्बेदकर स्मारक या दूसरे शब्दों में अम्बेदकर मन्दिर बनने से पहले अम्बेदकर ग्राम बनते. जिनमें युगों से दरिद्रता, उत्पीड़्न और अपमान का भीषण दंश सहते आ रहे दलितों की अगली पीढी को स्वस्थ और सम्पन्न परिवेश मिलता. पर ऐसा नहीं हुआ. मायावती जी भी अपने हित साधने के लिए अम्बेदकर और दलितों की नई पीढी के आक्रोश का इस्तेमाल करती रहीं मित्र मेरे! हम सब बुद्धिजीवी केवल अपने से प्रतिबद्ध होते हैं. मैं किसी वाद की अपेक्षा आचरण को ही मानक मानता हूँ. थोथे आदर्शों की दुहाई देने से कुछ नहीं होने वाला है. किसी वाद से देश की नींव में बोझ और अन्धकार के तले दबते श्रमजीवी वर्ग का भला होने वाला नहीं है. यहाँ पर में अपनी पुस्तक 'तोक्यो की छत से' का एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ दिनांक 5 अक्टूबर आज मेइजी जिंगू गया। मेइजी जिंगू या जापान में नवजागरण के अग्रदूत सम्राट मुत्सोहितो का स्मारक। वे 1868 में 16 वर्ष की अवस्था में जापान की गद्दी पर बैठे। शताब्दियों के बाद शोगुन या सेनापति के नियंत्रण से मुक्त जापान के वास्तविक रूप से प्रथम स्वतंत्र अधिपति। 18वीं शताब्दी का जापान। हमारे देशी राज्यों से भी अधिक उत्पीड़नकारी जापान की राजव्यवस्था। शोगुन द्वारा क्योतो के महल में नजरबन्द सम्राट। षडयंत्र और विप्लव की शंका से शोगुन के बंधक बने रहने को विवश डेम्यो या क्षेत्रीय सामन्तों के परिवार। प्रचंड जातिवाद। समुराई, किसान, कारीगर और बनिये एक से नीचे एक। अछूत समझे जाने वाले महादलित बुराकुमिन। एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए परमिट अनिवार्य। जनता के आवागमन को रोकने के लिए सरकार द्वारा सारे पुल ध्वस्त। बंदरगाह पर डचों के अलावा किसी भी जहाज को आने की अनुमति नहीं। जो आया उसके कर्मियों और यात्रियों का कत्ले आम। जापान से बाहर जाने का सर्वथा निषेध। कमोडोर मैथ्यू पेरी के जहाजी बेड़े ने इस जड़ता को तोड़ा। शोगुन परास्त हुआ। सम्राट वास्तविक सम्राट बना। कोकुगाकु या विदेशों में हो रहे नव जागरण से पे्ररित मनस्वियों ने नये जापान की नींव डाली। और 1912 में मुत्सोहितो की मृत्यु तक जापान ब्रिटेन की तरह विश्व का अग्रणी देश बन गया। जापान में मृतक को नया नाम देने की परंपरा है। मुत्सोहितो को भी नया नाम दिया गया-'मेइजी'। 'मेइजी' या नव जागरण। सामन्तवाद के उत्पीड़नकारी अंधकार से मुक्त हुई जनता ने सम्राट के प्रति श्रद्धास्वरूप उनकी यादों को युग.युगान्तरों तक बनाए रखने के लिए स्मारक बनाने की सोची। तोक्यो के उपनगर हराजिकू के पास एक अत्यन्त ऊसर भूमि चुनी गई। 'उसर बरसे तृण नहीं जामा'। शायद शोगुन युग की तरह ही ऊसर जिसमें प्रतिभाओं का अंकुरण संभव ही नहीं था। सात लाख वर्गमीटर या 175 एकड़ में विस्तीर्ण इस ऊसर भूमि को उसी प्रकार पल्लवित करने की सोची गयी, जैसे मेइजी के शासन काल में जापान पल्लवित हुआ था। जापान के प्रत्येक क्षेत्र के लोगों ने ही नहीं विदेशों में बसे जापानियों ने भी अपने सम्राट के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए पौधे भेजे। जापान में वनीकरण के पिता माने जाने वाले डा. सेइरोकु होंडा ने वनीकरण की योजना बनाई। पुजारियों ने कहा मंदिर के आस.पास तो देवदारु या इसी प्रकार के वन लगाना उपयुक्त होगा। होंडा ने उनकी बातों पर ध्यान न देते हुए चैड़ी पŸाी वाले पादपों को चुना। जापान भर से एक लाख दस हजार स्वयंसेवकों ने वनीकरण में भाग लिया। 245 प्रजातियों के एक लाख बीस हजार पौधे रोपे गये। उनकी परवरिश हुई। थोड़े ही वर्षो में वन इतना घना और हरा.भरा हो गया कि उसे किसी की देख.रेख की आवश्यकता ही नहीं रही। कितना अन्तर है नोएडा के अंबेदकर पार्क और तोक्यो के मेइजी जिंगू में। एक ने ऊसर में जीवन को संवारा, तो दूसरा जीवन्त धरा में मौत को सजा रहा है। एक में जनता की स्वतःस्फूर्त श्रद्धा है, तो दूसरे में दीन.हीन जनता के धन पर डाका। वह भी उस महिला नेत्री के द्वारा जो अपने आप को दलितों का उद्धारक कहती है। उन दलितों की नेत्री, जिनके पास दो जून रोटी का जुगाड़ नहीं है, जो दूसरों की फटी.पुरानी उतरन से अपने तन को ढकने के लिए विवश हंै, जो जीर्ण.शीर्ण टाटों को जोड़ कर जैसे.तैसे शीत, घाम और वर्षा से बचने का प्रयास करते हैं। बीमार पड़ने पर जिनके उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। जो नेताओं की करतूतों के कारण अपने.आप में फिर से सम्पन्न और विपन्न वर्गों में बँट गये हैं। जिनका सम्पन्न वर्ग अपने हाथ में आयी हुई सुविधा को अपनी सन्तानों तक ही समेटे रखना चाहता है। आम दलित के जीवन को उठाने की बातों के भरोसे वे केवल इन नेताओं के वोट बैंक मात्र बन कर रह गये हैं। मैं सोच रहा था कि क्या तीन हजार करोड़ रुपये से बाबा साहेब अंबेदकर का सच्चा 'पार्क'नहीं बन सकता था? ऐसा 'पार्क' जिसमें दलितों के लिए सुदृढ़ आवास की व्यवस्था होती। पीने के लिए साफ पानी का प्रबंध होता। चिकित्सालय होते। बच्चों के लिए अच्छे स्कूल होते, खेल का मैदान होते। रोजगार के लिए कारखाने होते। हरी.भरी उपजाऊ भूमि होती। उनकी पीढ़ियों की प्रतिभाओं को विकास का सर्वोत्तम अवसर देने का प्रबंध होता। फिर यह पार्क एक ही स्थान पर क्यों होता? हर जनपद में होता। इस पर तीन हजार करोड़ तो क्या तीन लाख करोड़ भी लगते तो भी हर्ज नहीं था। वह जीवनदायी होता। उत्कर्षकारी और मानव कल्याणकारी होता। सदियों से पीड़ित दलितों को नयी रोशनी देने वाला होता। पूरे संसार में उसकी और उसकी परिकल्पना करने वाले की कीर्तिपताका फहराती। बिना राजकीय धन को हाथ लगाये निर्मित मेइजी.जिंगू और उसके वन.उपवनों को छोड़ कर जाने का मन नहीं होता। असीम शान्ति का आभास होता है। पक्षियों का कलरव और दूर कहीं से अपने हरिण को पुकारती हरिणी - कहाँ हो....पुकार कर सहसा आपकी आत्मविस्मृति को दूर करती है और आपको लगता है कि अब परिसर से बाहर जाने का समय हो गया है।"
You are receiving this email because you've listed TaraChandra Tripathi as a close friend. Change Close Friend Notifications.
View Post
This message was sent to palashbiswaskl@gmail.com. If you don't want to receive these emails from Facebook in the future, please click: unsubscribe.
Facebook, Inc. Attention: Department 415 P.O Box 10005 Palo Alto CA 94303

No comments:

Post a Comment