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Saturday, June 16, 2012

दलितों के बहिष्कार की दर्दनाक व्यथा

दलितों के बहिष्कार की दर्दनाक व्यथा



दलितों के बहिष्कार की दर्दनाक व्यथा

प्रतिरोध ब्यूरो   

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मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में दलित उत्पीड़न और बहिष्कार
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा तहसील से लगभग 20 किमी की दूरी पर बसे मारेगांव में अहिरवार समुदाय (दलित) के लोगों का ऊंची जाति समुदाय द्वारा लगभग 2 माह से सामाजिक/सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है.
 
नागरिक अधिकार मंच और युवा संवाद द्वारा 2009 में गाडरवारा तहसील के चार गांव नांदेर, मड़गुला, देवरी और टेकापार में अहिरवार (दलित) लोगों के साथ ऊंची जाति के लोगों द्वारा सामाजिक/सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार की पड़ताल की गई थी. दोनों ही मामलों में अहिरवार समुदाय के बहिष्कार का मुख्य कारण उनके द्वारा सदियों से चली आ रही मृत मवेशी उठाने जैसे धृणित काम से इनकार करना था. अहिरवार समाज के इस निर्णय को सदियों से जाति के आधार पर दलितों को इंसान ना मानने वाले सवर्ण समाज ने बगावत के रूप में लिया. मध्य प्रदेश के गाडरवारा तहसील के गांवों में अहिरवार समाज पर पिछले दो-तीन सालों से समय-समय पर लगाई जा रही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक पाबंदियां इसी मानसिकता का परिणाम हैं.
 
देश-प्रदेश में जातीय भेदभाव के खिलाफ कई कानून और संवैधानिक प्रावधान हैं. संगठनों द्वारा पिछली बार की गई पड़ताल को लेकर एक लंबी प्रक्रिया चलाई गई थी. सबंधित सरकारी विभागों, आयोगों को ज्ञापन सौपे गए, मीडि़या में मुद्दा उठाया गया तब जा कर सरकार की तरफ से कुछ कार्रवाई हुई और उन चार गांवों में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पाबंदियां झेल रहे अहिरवार समुदाय को कुछ राहत मिली.
 
लेकिन स्थितियां पूरी तरह से नहीं बदली. फिर उसी तहसील के गांवों में वही दुहराया जा रहा है. कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाऐं पूरे देश में लगातार घट रही हैं. ऐसे में बड़ी चुनौती ये है कि दिमागों और सदियों से चले आ रहे व्यवहार में बसे जाति आधारित भेदभाव, उत्पीड़न और शोषण का खात्मा कैसे हो, जो नित्य नये-नये रूप में सामने आ रहा है.
 
बहरहाल जातीय भेदभाव की कड़ी में मध्य प्रदेश के एक गांव में अहिरवार समुदाय के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार की कहानी कहती हुई यह रिपोर्ट.
 
नरसिंहपुर जिले का परिचय
 
नरसिंहपुर जिला मध्य प्रदेश के जबलपुर संभाग के अंर्तगत आता है. नरसिंहपुर प्रदेश की राजधानी भोपाल और जबलपुर के बीच में स्थित है. यहां आर्थिक क्रियाकलाप मुख्यतः गन्ने और दाल की खेती है. नरसिंहपुर में राजपूत, लोधी, पटेल, किरार और अहिरवार की आबादी ज्यादा है. गाडरवारा नरसिंहपुर की प्रमुख तहसील है.
 
गाडरवारा 
 
नरसिंहपुर की प्रमुख तहसील गाडरवारा की आबादी 70 से 80 हजार जिसमें अहिरवार समाज के लगभग 38 से 40 हजार लोग हैं. गाडरवारा की 80 से 85 फीसदी आबादी खेती के काम में संलग्न है. इसमें खेतिहर मजदूर और भूमिहीन किसानों की तादाद ज्यादा है. इन खेतिहर मजदूरों में अधिकांश आबादी दलित समुदाय की है. इसमें सबसे ज्यादा अहिरवार (चमार) जाति के लोग हैं. संविधान के अनुसार यह जाति अनुसूचित जाति में शामिल है. पूरे भारत में अनुसूचित जाति की जनसंख्या में एवं हिन्दी क्षेत्र में चमार जाति (जो कि अपमानसूचक संबोधन है) की संख्या सबसे ज्यादा है. भारत में यह 700 से ज्यादा उपनाम से चिह्नित की जाती हैं. गाडरवारा के आस-पास के लगभग सभी गांवों में अहिरवार समुदाय के लोग निवास करते हैं. उनकी यहां के सामाजिक-आर्थिक क्रियाकलापों में उपयोगी भूमिका है.
 
अहिरवार समुदाय का सामूहिक निर्णय और मौजूदा उत्पीड़न की शुरुआत
 
अहिरवार समुदाय की महापरिषद द्वारा मध्य प्रदेश स्तर पर अक्टूबर 2009 में तय किया गया कि अब समुदाय द्वारा मृत मवेशी नहीं उठाए जाएंगे. गांवों में अहिरवार समुदाय के लोगों द्वारा इस घृणित कार्य को बंद किया जाए जिससे मवेशी उठवाने के कारण सदियों से चली आ रही छुआ-छूत और भेदभाव को कम किया जा सके.
 
मारेगांव की स्थिति
 
मारेगांव गाडरवारा तहसील के सालेचैकी से तीन किमी की दूरी पर बसा हुआ है. यहां लोधी, कोटवार, लोहार, कलवार तथा अहिरवार समुदाय के लोग रहते हैं. इस गांव की आबादी लगभग 2000 है जिसमें लगभग 100 परिवार अहिरवार हैं. ऊंची जाति (लोधी) के लोग बड़े खेतिहर हैं. इन्हीं की खेतों में अहिरवार लोग मजदूरी करते हैं. अहिरवार समुदाय के पास गांव में केवल 4-5 परिवार के पास ही आधा एकड़ जमीन है. अहिरवार समाज का टोला गांव में अलग है. इस समाज में 80 प्रतिशत परिवार अति गरीब हैं.
 
अहिरवार समाज महापरिषद द्वारा गाडरवारा तहसील में पिछले तीन-चार वर्षों से समुदाय द्वारा मृत मवेशी न उठाने के लिए आम सहमति बनाई जा रही थी ताकि अहिरवार लोगों द्वारा इस घृणित कार्य को बंद किया जाए. आम सहमति से मारेगांव के अहिरवार समाज ने तीन-चार महीने पहले गांव से मृत पशुओं को ना उठाने का निर्णय लिया था. इसी के बाद से ऊंची जाति (लोधी समुदाय) द्वारा इनका सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार किया जाने लगा जो अभी तक बदस्तूर जारी है. अहिरवार समाज द्वारा उनके साथ उत्पीड़न को लेकर प्रशासन को लगातार शिकायतों व दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग के बावजूद प्रशासन का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं रहा है.
 
फैक्ट फाइन्डिंग टीम से चर्चा के दौरान अहिरवार समाज के लोगों से जो तथ्य सामने आये उसकी विस्तृत रिपोर्ट यहां दी जा रही है.
 
फैक्ट फाइन्डिंग टीम को मारेगांव के अहिरवार समुदाय के लोगों ने बताया कि आम सहमति के चलते उन्होंने गांव में मृत पशुओं को ना उठाने का निर्णय लिया है. इसी के बाद से लोधी समाज द्वारा अहिरवार समाज का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है.
 
सीताराम अहिरवार ने बताया कि इस साल होली से कुछ दिन पहले लोधी समाज के लोगों ने उनके समाज के लोगों को गांव से मरे पशु को उठाने को कहा तो उन लोगों ने यह काम करने से मना कर दिया. इसके बाद लोधी समुदाय के लोगों ने पंचायत बुलाया जहां अहिरवार समुदाय के लोगों को भी बुलाया गया. पंचायत में अहिरवार समुदाय के लोगों को ऊंची जाति के लोगों ने गालियां दी और अपमानित कर भगा दिया. दूसरे दिन पूरे गांव में यह ऐलान कर दिया गया कि अहिरवार समाज का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया है और कोई भी इनसे सबंध नहीं रखेगा.
 
सामाजिक/सांस्कृतिक प्रतिबंध

गांव में प्रवेश पर रोक
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि लोधी समाज ने उनके गांव के अंदर आने पर रोक दी है तथा अन्य गांव में जाने वाले आसान रास्तों को बंद कर दिया है. इसके कारण इन्हें अन्य गांव जाने के लिए बहुत लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.
 
रोजमर्रा के आवश्यक चीजों पर प्रतिबंध
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि लोधी समाज के लोगों ने गांव के सभी दुकानदारों को अहिरवार लोगों को राशन-किराना सामान देने से मना कर दिया है. उन्होंने आटा-चक्की वालों से कहा है कि वे अहिरवार समाज के किसी भी परिवार का अनाज नही पीसेंगे. दूध बेचने वाले को धमकाया गया है जिसके कारण वे अहिरवार लोगों को दूध नही बेचते हैं. इसलिए इन्हें दूध लेने के लिए गांव से 3 किमी दूर स्थित सालेचैकी गांव जाना पड़ता है. ऐसे में अगर समुदाय का कोई बच्चा बीमार होता है और डॉक्टर उसे दूध के साथ दवा खाने को कहते हैं तो गांव में दूध ना मिलने के कारण बच्चे को पानी के साथ ही दवा खिलानी पड़ती है.
 
पीने के पानी पर प्रतिबंध
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि वे लोग पहले अपने टोले मे स्थित हैंड पंप के साथ-साथ गांव के मंदिर के पास के हैंड पंप से भी पानी भरते थे. पानी के दो स्रोत होने से पानी की समस्या नहीं होती थी लेकिन वर्तमान में लोधियों द्वारा मंदिर व उसके पास के हैंड पंप के चारों ओर बाड़ लगाकर बंद कर दिया गया है. अब पूरे अहिरवार टोला को एकमात्र हैंड पंप पर ही निर्भर रहना पड़ता है. एक हैंड पंप 100 परिवारों के लिए पानी की जरूरत के हिसाब से कम पड़ता है. गर्मी में तो और समस्या हो रही है. एक ओर गर्मी के कारण पानी की जरूरत बढ़ गई है तो दूसरी तरफ जलस्तर भी नीचे चला गया है.
 
कुछ महीने पहले जब अहिरवार समुदाय की कुछ महिलाएं मंदिर वाले हैंड पंप से पानी लेने गयी थीं तो मंदिर के पुजारी कमल तिवारी ने अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए कहा कि 'इन चमारों का पानी का बर्तन फेंक दो' और वहां से भगा दिया था.
 
तालाब के पानी पर प्रतिबंध
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव में एक तालाब है जिसके पानी को जानवर पीते हैं. गांव के लोग उस तालाब के पानी का उपयोग नित्य कर्म के लिए करते हैं. इस तालाब को भी लोधियों द्वारा तार से घेर दिया गया है. जिसके कारण अब इस तालाब में अहिरवार समुदाय के जानवर पानी नहीं पी पा रहे हैं और ना ही वे इस पानी का उपयोग नित्य कर्म के लिए कर पा रहे हैं. अब इन लोगों को जानवरों को पानी पिलाने के लिए बहुत दूर ले जाना पड़ रहा है.
 
अहिरवार समाज की महिलाओं ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव के किसी भी अहिरवार के घर में शौचालय नहीं है. इसी वजह से पूरे परिवार को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. प्रतिबंध लगने के बाद से लोधी समुदाय के लोग शौच के लिए रास्ता भी रोकने लगे हैं. यह इस तरह से होता है कि लोधी समुदाय के लोग शौच वाली जगह के पास के चौराहे पर जान-बूझ कर खड़े होकर घंटों बात करते हैं. इस वजह से महिलाओं और बच्चियों को शौचालय जाने और करने में दिक्कत होती है.
 
कदम-कदम पर अपमान और भेदभाव 
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव के लोधी समुदाय के लोग अहिरवारों को अपमानजनक सूचकों से संबोधित करते हैं. लोधी समुदाय के लोग पास के सालेचैकी गांव के दुकानदारों (जो ज्यादातर लोधी समुदाय से हैं) को कहते है कि 'इन चमारों (अहिरवारों) को सामान मत दिया करो.'
 
ये दुकानदार सभी लोगों को कांच के गिलास में चाय/पानी देते हैं लेकिन अहिरवारों को दुकान के अंदर नहीं आने दिया जाता है और उन्हें कुल्हड़ में पानी/चाय दिये जाते हैं. गांव के अहिरवार लोगों ने बताया कि मारेगांव में सरपंच की सीट दलित महिला के लिए आरक्षित है. वर्तमान महिला सरपंच अहिरवार ही हैं लेकिन जब भी पंचायत बैठती है तब ऊंची जाति के पंच दरी पर बैठते हैं और सरपंच जमीन पर बैठती हैं. अहिरवार लोगों के विरोध करने पर सभी लोधी नाराज होकर ग्राम सभा छोड़ कर चले गये.
 
बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव 
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि अहिरवार बच्चों के साथ स्कूल में भी भेदभाव होता आ रहा है.
 
मध्याह्न भोजन
 
बच्चों ने बताया कि ऊंची जाति के बच्चे मध्याह्न भोजन के समय अहिरवार समाज के बच्चों से अलग बैठ कर भोजन करते हैं. लोधी बच्चों को भोजन करने के लिए स्कूल से ही थाली दी जाती है और भोजन के बाद उनके बर्तन को खाना बनाने वाली ही साफ करती हैं. लेकिन अहिरवार बच्चों को मध्याह्न भोजन के लिए अपने घर से बर्तन लेकर आना पड़ता हैं जिसे भोजन के बाद वे स्वयं धोते हैं.
 
मध्याह्न भोजन परोसने वाली ऊंची जाति के बच्चों को पहले खाना देती है. उन्हें अच्छी रोटी और मसालेदार गाढ़ी सब्जी दी जाती है. उनके द्वारा और भोजन मांगने पर दोबारा दिया जाता है लेकिन अहिरवार बच्चों को महिला द्वारा थाली में रोटी/पूड़ी फेंक कर दिया जाता है ताकि वह इन बच्चों के संपर्क में (छू ना जाये) ना आ पाये. रसोइन इन बच्चों को सब्जी में पानी मिला कर देती है. इन बच्चों को पेट भर भोजन नहीं दिया जाता है. उन्हें केवल दो-दो पूड़ी ही दी जाती है. अगर बच्चे और मांगते हैं तो वो डांटती हैं. इसके साथ ही अहिरवार बच्चों को सबसे अंत में भोजन दिया जाता है.
 
साफ-सफाई
 
बच्चों ने बताया कि स्कूल में उन्हें ही कक्षा की साफ-सफाई का काम करना पड़ता हैं जबकि सवर्ण जाति के बच्चे ये काम नही करते हैं.
 
कक्षा की बैठक व्यवस्था में भेदभाव
 
बच्चों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव की शासकीय शाला में लोधी समाज के बच्चे एक साथ बैठते हैं और वे अहिरवार समुदाय के बच्चों के साथ ना तो बैठते हैं और ना ही उनके साथ खेलते हैं. अगर कोई बच्चा भूल से ऊंची जाति के बच्चों के पास बैठ जाता है तो वो उसे गाली देकर भगा देते हैं. ये अहिरवार बच्चों को 'चमट्टू' बुलाते हैं.
 
शिक्षकों द्वारा भेदभाव
 
अहिरवार बच्चों ने बताया कि शिक्षकों द्वारा ऊंची जाति के बच्चों से ही पानी और चाय मंगवाया जाता है. उन लोगों से कभी पानी या चाय लाने नहीं कहा जाता. अगर स्कूल में कभी बाहर से कोई अधिकारी आता है तब भी चाय और पानी लोधी बच्चे ही लाते हैं.
 
मंदिर में प्रवेश वर्जित
 
अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव के मंदिर में उनका प्रवेश भी वर्जित है. वैसे तो बहिष्कार से पहले अहिरवार समाज के लोग मंदिर में भगवान के दर्शन और बाहर से ही पूजा कर सकते थे. वे मंदिर के अंदर नहीं जा सकते थे. एक बार कुछ अहिरवार लोग मंदिर के अंदर चले गये थे तो लोधी लोगों द्वारा उन सभी लोगों पर प्रति व्यक्ति 15 रुपया जुर्माना लगाया गया और उनसे सबके सामने माफी मंगवाई गयी और यह कसम खिलवाई गई कि आगे से वे कभी भी मंदिर में प्रवेश नही करेंगे. वर्तमान में लोधी समाज द्वारा मंदिर के चारो ओर तार लगवा दी गई है जिसके कारण अब अहिरवार समाज भगवान की पूजा-अर्चना मंदिर के ठीक बाहर से भी नहीं कर सकते हैं.

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भेदभाव 
 
अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव के पंडि़त दूसरे सभी समाज के लोगों की शादी करवाते हैं लेकिन अहिरवार समाज में शादी नहीं करवाते क्योंकि लोधी समाज के लोगों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया है और बात ना मानने पर मारने की धमकी दी है. बहिष्कार के पहले गांव में कही भी शादी हो, अहिरवार समाज के लोगों को बुलाया जाता था लेकिन अब शादी में नही बुलाया जाता है.
 
डराना/धमकाना 
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि लोधी लोग उन्हें डराते और धमकाते हैं. उनके घर में आग लगाने, जान से मारने की धमकी देते हैं. अहिरवारों को गांव छोड़ कर चले जाने को कहते हैं. जो कोई अहिरवार समाज की मदद करना चाहता है उसे भी लोधी समुदाय के लोग धमकाते हैं. लोधी समाज ने गांव के सभी दुकानदार, नाई, दूध वाले इत्यादि को यह धमकी दी है कि कोई भी दुकानदार अहिरवार समुदाय को सामान या मदद किया तो उस पर 21 हजार रुपए जुर्माना लगेगा.
 
आर्थिक प्रतिबंध

गांव में मजदूरी पर रोक
 
मारेगांव के अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि लोधी समुदाय द्वारा उनका आर्थिक बहिष्कार भी किया जा रहा है. अहिरवार लोगों के गांव में मजदूरी करने पर रोक लगा दी गई है. लोधी या दूसरे समुदाय के लोग इन्हें अपनी खेत में मजदूरी का काम नहीं दे रहे हैं. वे अपनी खेतों में मारेगांव के बाहर से मजदूर बुला कर काम करवा रहे हैं. लोधी लोगों ने अपनी जमीन इन्हें बटाई पर देना बंद कर दिया है. खेत में फसल की कटाई के लिए भी इन्हें नहीं बुलाया जा रहा है.
 
इसी के कारण अहिरवार समाज के लोगों को मजदूरी के लिए दूसरे गांवों में जाना पड़ रहा है. गांव के अंदर से ही उन गांव में जाने के रास्ते हैं लेकिन लोधियों द्वारा इन रास्तों पर रोक दी गई है जिसके कारण अब इन गांव में मजदूरी के लिए बहुत लंबा रास्ता तय करके जाना पड़ता है. जब वे मजदूरी के लिए दूसरे गांव जाते हैं तो जरूरी नहीं कि उन्हें मजदूरी मिल ही जाये. लोगों ने बताया कि इस कारण उनकी आर्थिक स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है और अब अहिरवार समाज के लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. कुछ अहिरवार परिवारों के पास आधा एकड़ या कुछ डिसमिल जमीन है लेकिन वहां भी लोधी समुदाय द्वारा ट्रैक्टर ले जाने से रोका जा रहा है.
 
प्रशासन द्वारा भेदभाव
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि प्रशासन में बैठै अधिकारी भी पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं. गांव में जब लोधी और अहिरवार समाज में आपस में समस्या होती है तथा अहिरवारों द्वारा इसकी शिकायत अधिकारियों से की जाती है तो वे हमेशा लोधी समुदाय का पक्ष लेते हैं और कोई कार्रवाई नहीं करते हैं.
 
शासकीय योजनाओं का लाभ ना मिल पाना

गरीबी रेखा कार्ड
 
अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव में उनके समुदाय के करीब 100 परिवारों में से केवल 20-25 परिवारों के पास गरीबी रेखा कार्ड है. जबकि लगभग सभी परिवार मजदूरी का काम करते हैं. ज्यादातर अहिरवार परिवार गरीबी रेखा कार्ड की पात्रता रखते हैं. दूसरी तरफ लोधी समाज में अनेक ऐसे परिवार हैं जिनके पास ट्रैक्टर है और गरीबी रेखा का कार्ड भी.
जॉब कार्ड से मजदूरी का ना मिलना
 
मारेगांव के अहिरवार समाज के लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि उनके जॉब कार्ड बने तीन-चार साल हो गये हैं लेकिन एक-दो लोगों को छोड़कर किसी को भी इसके तहत आज तक मजदूरी नहीं मिली है. मनरेगा का फायदा केवल ऊंची जाति के लोग उठा रहे हैं.
 
अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ
 
लोगों ने बताया कि सरकारी योजनाओं का लाभ ज्यादातर ऊंची जाति के लोगों को मिल रहा है. चाहे वो बीपीएल कार्ड हो या जॉब कार्ड. अहिरवार समुदाय को किसी भी प्रकार की सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है. इंदिरा आवास योजना का लाभ अहिरवार समुदाय की एक ही विधवा महिला को मिला है. जबकि समुदाय में कई ऐसी विधवा हैं जिन्हें तत्काल सहायता की जरूरत है.
 
शासकीय भूमि और चरनोई भूमि पर कब्जा
 
मारेगांव के अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि इस गांव की चरनोई और शासकीय जमीन पर लोधी लोगों ने कब्जा कर लिया है. गांव में लगभग 80 एकड़ जमीन शासकीय है लेकिन इन पर लोधी समाज का कब्जा है.
 
स्थानीय अहिरवार समुदाय द्वारा अभी तक विभिन्न कार्यालयों/विभागों में दिये गये ज्ञापन/शिकायत की सूची
 
3 मार्च, 2012 को नरसिंहपुर कलेक्टर, हरिजन थाना, एसपी ऑफिस, थाना काली चैकी को आवेदन दिया गया है.
6 मार्च, 2012 को मुख्यमंत्री और राज्य मानवाधिकार आयोग को आवेदन फैक्स किया गया है.
14 मार्च, 2012 को अहिरवार प्रगति मंच, सागर द्वारा इसी सदर्भ में राज्य के मुख्यमंत्री को आवेदन फैक्स किया गया है.
18 मार्च, 2012 को दोबारा मुख्यमंत्री और एससी-एसटी आयोग को आवेदन फैक्स किया गया है.
20 अप्रैल, 2012 को फिर से कलेक्टर, हरिजन थाना, एसपी, जहसीलदार गाडरवारा को आवेदन दिया गया है.
30 अप्रैल, 2012 को दोबारा तहसीलदार गाडरवारा को आवेदन दिया गया है.
 
प्रशासन द्वारा अब तक की गई कार्यवाही
 
लगभग 2 माह से लोधी समाज द्वारा अहिरवार समाज के लोगों के साथ भेदभाव लगातार जारी है. अहिरवार लोगों ने इसकी शिकायत एसडीएम और पुलिस अधीक्षक से की थी. इसके बाद पुलिस अधीक्षक और तहसीलदार गांव आये और दोनों समुदाय के लोगों को बिठाकर समझाया और समझौता करा कर चले गये. इन अधिकारियों के सामने तो लोधी समुदाय ने सहमति दिखाई लेकिन अधिकारियों के लौटने के बाद उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया और बहिष्कार अभी तक जारी है.
 
समुदाय द्वारा प्रशासन को दिये शिकायत पत्र में जिन लोगों के खिलाफ नामजद शिकायत की गई है उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. अहिरवार समुदाय के लोगों ने इस भेदभाव के खिलाफ हरिजन थाने में भी शिकायत की तो उन्होंने कार्रवाई करने के बदले कलेक्टर के पास जाने को कहकर शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
 
अहिरवारों ने कलेक्टर को 20 अप्रैल, 2012 को बहिष्कार खत्म कराने के लिए आवेदन दिया. तब गांव में दोबारा एसपी, तहसीलदार और थाना प्रभारी आये तथा पूरे गांव को जुटाकर लोगों को समझाया और सामंजस्य बनाने की सलाह दी. तालाब में लगी फेन्सिंग तार तत्काल हटाने और दुकानदारों को अहिरवारों को सामान देने को कहा गया.
 
सरकारी दबाव के कारण गांव में एक आटा चक्की तथा एक किराना दुकानदार अहिरवार समाज को सामान देने को राजी हुए हैं. वर्तमान में अहिरवार लोग इन दोनों दुकानों से सामान ले रहे है लेकिन गांव के बाकी दुकानदारों द्वारा बहिष्कार जारी है.
 
अहिरवार समुदाय के लोगों ने तहसीलदार को कचरा पेटी और शौचालय की समस्या को लेकर भी आवेदन दिया. तहसीलदार द्वारा बताया गया कि शौचालय की राशि का आवंटन हो गया है लेकिन पहले समुदाय के लोगों को अपने घरों में स्वयं के पैसे से शौचालय का निर्माण करना होगा. उसके बाद ही उन्हें राशि का भुगतान किया जाएगा. भुगतान उन्हीं परिवारों को किया जायेगा जिनके पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड होगा.
 
अहिरवार लोगों ने फैक्ट फाइन्डिंग टीम को बताया कि गांव में कचरादानी के लिए शासन की तरफ से स्वीकृति मिल गई थी लेकिन जिस सरकारी भूमि पर कचरादानी बनना था उसके सामने रहने वाले सीताराम चैकसे ने इसे नहीं बनने दिया. जब लोगों ने इसकी शिकायत की तब 1 मई, 2012 को पटवारी और आर.आई गांव आये थे और लोगों से कहा था कि गांव के कई मकान सरकारी जमीन पर बने हैं. पहले वो मकान टूटेंगे, उसके बाद ही कचरादानी बनेगा.
 
समस्याओं का अंत ना होते देख अहिरवार लोगों ने पुनः 30 अप्रैल, 2012 को तहसीलदार से शिकायत की लेकिन तब से टीम के भ्रमण करने के दिन तक तहसीलदार और चैकी की ओर से कोई भी अधिकारी गांव नही पहुंचा था.
 
अहिरवार समाज के लोगों ने वर्तमान विधायक सुश्री साधना स्थापक तथा पूर्व एमएलए श्री पटेल से इसकी शिकायत की लेकिन उनके द्वारा भी अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है.
 
हमारी मांगें
 
फैक्ट फाइन्डिंग टीम द्वारा उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए प्रशासन से तत्काल कार्यवाही के लिए निम्नलिखित मांगें की जाती हैं-
 
1. सवर्ण समाज द्वारा अहिरवार समुदाय के गांव प्रवेश पर लगी रोक को तत्काल प्रभाव से हटाया जाये तथा अन्य गांव में जाने वाले रास्ते को तत्काल खोला जाये.
2. रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर लगी रोक तत्काल प्रभाव से हटाई जाये.
3. सवर्ण वर्ग के जिन लोगों द्वारा मृत मवेशी उठाने को विवश किया जा रहा है, उन पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाए और उन पर उचित कार्यवाही की जाए.
4. जिनके पास जॉब कार्ड है, उन्हें तुरंत मनरेगा के तहत मजदूरी मिले.
5. सरकार द्वारा चलाए जा रहे कल्याणकारी कार्यक्रमों जैसे- इंदिरा आवास योजना, मनरेगा, वृ़द्धावस्था पेंशन का लाभ दिया जाए. गरीबी रेखा में नाम से अहिरवार समुदाय के जिन लोगों को वंचित रखा गया है, उन्हें जोड़ा जाए. प्रभावित गांवों में शासन द्वारा विशेष लाभ सीधे शासन के विभागों द्वारा सुनिश्चित किया जाए.
6. सवर्ण वर्ग प्रभावित गांवों की शासकीय कृषि भूमि, निस्तारण भूमि पर कब्जा कर स्वयं काबिज हैं. अहिरवार समाज के लोगों को सैकड़ों वर्षों के मूल निवासी होने के बावजूद भूमि पट्टा, कृषि भूमि पट्टे एवं आवसीय पट्टे से वंचित किया गया है. इस तरफ शासन द्वारा कभी ध्यान नहीं दिया गया है. इसलिए दलित समुदाय को कृषि भूमि और आवासीय भूमि के पट्टे दिए जाएं.
7. स्कूल में मध्याह्न भोजन में बच्चों के साथ किये जा रहे भेदभाव को तुरंत रोका जाये.
8. तालाब और हैंड पंप के चारों ओर लगी फेन्सिंग तार को तत्काल हटाया जाये.
9. अहिरवार समाज को भय से निजात दिलाने के लिए कड़े कदम उठाए जायें.
10. अनुसूचित जातियों पर अत्याचार का प्रमुख कारण जातिगत भेद, अस्पृश्यता एवं संकीर्ण मानसिकता है. इस मानसिकता में बदलाव के लिए जनजागरण कार्यक्रम चलाना मध्य प्रदेश शासन के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग का काम है. इस दिशा में संबंधित विभाग द्वारा प्रभावित गांवों में साल भर सद्भावना, अस्पृश्यता व भेदभाव निवारण के समयबद्ध कार्यक्रम चलाए जाएं.
11. विशेष रूप से, मृत मवेशी उठाने को विवश करने के विरोध स्वरूप शासन द्वारा प्रभावित गांवों के अलावा पूरे नरसिंहपुर जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्चे, पोस्टर, दीवार लेखन और प्रचार-प्रसार के अन्य माध्यमों से सद्भावना का वातावरण तैयार करवाया जाए.
12. सवर्णों से पीड़ित अहिरवार समाज के लोगों को प्रभावित गांवों में किराना दुकानस चाय-पान के अलावा अन्य कारोबार के लिए अन्तया व्यवसायी निगम, अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा सीधे ऋण/अनुदान से सहायता दी जाए.
13. प्रभावित गांवों के अहिरवार समाज की बस्तियों में सड़क, पानी, बिजली, स्वच्छता के कार्य प्राथमिकता के आधार पर करवाये जाएं. शौचालय, स्नानागार एवं समाज के सामाजिक उपयोग जैसे शादी-विवाह, सांस्कृतिक कार्य आदि को संपन्न करने के लिए सामुदायिक भवन इन सभी गांवों में सीधे शासन द्वारा स्वीकृत कर शासन की निर्माण एजेंसी के माध्यम से निर्मित कराया जाए.
14. इस समस्या के स्थायी हल के स्थायी उपाय किए जाएं. जिस प्रकार शहरी क्षेत्रों में नगर निगम एवं म्युनिसिपल कमेटी द्वारा मृत मवेशी उठाने की व्यवस्था है, उसी प्रकार की व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों में भी की जाए.
 
फैक्ट फाइन्डिंग टीम के सदस्य
 
एल.एस. हरदेनिया, राष्ट्रीय सेक्यूलर मंच- 9425301582
उपासना बेहार. नागरिक अधिकार मंच- 9424401469
मधुकर शर्मा, युवा संवाद- 9893032576
 
रिपोर्ट में सहयोग- जावेद अनीस
 
(मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा तहसील के मारेगांव में सवर्ण जातियों द्वारा दलित समुदाय के सामाजिक/सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार को लेकर रिपोर्ट

नागरिक अधिकार मंच, राष्ट्रीय सेक्यूलर मंच और युवा संवाद भोपाल द्वारा जारी रिपोर्ट

जिला- नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) तहसील- गाडरवारा, फैक्ट फाइन्डिंग टीम द्वारा भ्रमण किए गए गांव – मारेगांव (गाडरवारा), भ्रमण दिनांक- 2 मई, 2012)

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