Palah Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

what mujib said

Jyothi Basu Is Dead

Unflinching Left firm on nuke deal

Jyoti Basu's Address on the Lok Sabha Elections 2009

Basu expresses shock over poll debacle

Jyoti Basu: The Pragmatist

Dr.BR Ambedkar

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Saturday, April 28, 2012

पदोन्नति में आरक्षण नहीं: सुप्रीम कोर्ट

पदोन्नति में आरक्षण नहीं: सुप्रीम कोर्ट


Saturday, 28 April 2012 11:03

जनसत्ता ब्यूरो

नई दिल्ली, 28 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने के मायावती सरकार के फैसले को खारिज कर दिया।

साथ ही शीर्ष अदालत ने पदोन्नति में आरक्षण पाकर उसके आधार पर वरिष्ठता का लाभ लेने को भी अनुचित ठहराया है। 
उत्तर प्रदेश सरकार और अनुसूचित जाति के कुछ लोगों की तरफ से दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए शुक्रवार को न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की एक खंडपीठ ने यह अहम फैसला सुनाया। ये याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई थीं। हाई कोर्ट ने पिछले साल चार जनवरी को पदोन्नति में भी दलितों को आरक्षण देने के मायावती सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था। 
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मायावती और बहुजन समाज पार्टी के लिए करारा झटका है। नियमानुसार अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े तबकों को सरकारी नौकरियों में भर्ती के वक्त आरक्षण का लाभ दिया जाता है। लेकिन अनुसूचित जातियों को जब सरकारी नौकरी में पदोन्नति में भी आरक्षण दिया गया तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में इस आरक्षण को रद्द कर दिया था। लेकिन तब की वाजपेयी सरकार ने संविधान संशोधन कर इसे फिर लागू किया था। हालांकि इंदिरा साहनी के पिछड़े तबकों के आरक्षण संबंधी अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में ही साफ कर दिया था कि आरक्षण का लाभ आरक्षित तबकों में संपन्न हो चुके लोगों को नहीं दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को भी अनुचित ठहराया था। 
मायावती ने 2002 में सत्ता संभालने के बाद सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में तो अनुसूचित जातियों का आरक्षण लागू करने के साथ एक और मनमानी व्यवस्था लागू कर दी। मसलन, पदोन्नति में आरक्षण पाने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति को हमेशा के लिए नए पद पर भी वरिष्ठ माना गया। जबकि पहले व्यवस्था अलग थी। सामान्य वर्ग के कर्मचारी से जूनियर होने पर भी अनुसूचित जाति का कर्मचारी बेशक अगले पद पर पदोन्नति तो आरक्षण का लाभ ले कर पहले पा जाता था पर जब सामान्य वर्ग के कर्मचारी की अगले पद पर तरक्की होती थी तो वही वरिष्ठ माना जाता था। मायावती ने पदोन्नति में आरक्षण भी दिया और वरिष्ठता का लाभ भी। इससे बड़े पदों पर अनुसूचित जाति के लोगों की भरमार हो गई। सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने इस व्यवस्था को अदालत में चुनौती दी। पर 2003 में मायावती ने इस्तीफा दे दिया और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए जिन्होंने मायावती के फैसले को उलट दिया।   बाकी पेज 11 पर   उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी ११

मायावती 2007 में जब फिर मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी कर फिर दोहरी अन्यायपूर्ण व्यवस्था लागू कर डाली। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। नतीजतन अदालती लड़ाई के चक्कर में उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों से सरकारी विभागों में पदोन्नति के लिए डीपीसी ही नहीं हो पाई। अनेक पद इस चक्कर में खाली पड़े हैं। पिछले साल जनवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला भी सुना दिया। फैसले में हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट की एम नागराज मामले में दी गई हिदायतों के हिसाब से ही पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सकता है। यानी पहले राज्य सरकार पुख्ता अध्ययन करे कि कहां कितने पद अनुसूचित जाति के हिसाब से नाकाफी हैं। मायावती ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर भी अमल नहीं किया। अलबत्ता इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। शीर्ष अदालत ने यथास्थिति कायम रखने का अंतरिम आदेश जारी किया और इसी के साथ पदोन्नतियों का मामला लटक गया। 
सुप्रीम कोर्ट में इस अहम मामले में सुनवाई फरवरी में पूरी हो गई थी। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को सुनाए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बहाल रखा और मायावती सरकार के फैसलों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य के गैर-अनुसूचित जाति के कर्मचारी और अफसर बेहद खुश हैं। उत्तर प्रदेश विद्युत अभियंता संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश पांडेय ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि अखिलेश यादव की सरकार अब फटाफट विभागीय पदोन्नति समितियों की बैठक बुलाकर खाली पड़े सरकारी पदों को तरक्की से भरेगी ताकि निचले स्तर पर भर्ती का रास्ता साफ हो सके और अर्से से पदोन्नति का इंतजार कर सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को इंसाफ मिल सके।

No comments:

Post a Comment