From: nawal kumar <nawal.buildindia@gmail.com>
Date: 2011/10/23
Subject: दिल्ली दरबार में नीतीश को याद आयी बिहार की गरीबी, कहा- बिहार विशेष राज्य के दर्जे का हकदार
To: secy@prdbihar.org
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क्या राष्ट्रपति के रुप में राजेंद्र बाबू ने तोड़ी थी पद की मर्यादा? |
बिहार में अपराध |
अपना बिहार और राज्य में प्रकाशित विभिन्न अखबारों में प्रकाशित खबरों के अनुसार कल दिनांक23 अक्टूबर सितम्बर 2011 को घटित घटनाओं की संख्या
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नवल की पांच कवितायें (1) ठुंठे पेड़ के शिखर पर, एक नया पीपल उग आया है, पेड़ का ठुंठापन अब दूर हो गया है, अखबारों ने ऐसा दावा किया है, पेड़ की शिकायत है कि, उसकी जड़ें अब उखड़ने लगी हैं। (2) गांव में दो मन्दिर है, एक में लोग पूजा करते हैं, दूसरे का इस्तेमाल बच्चे करते हैं, लोगों का मन्दिर भव्य है, आकर्षक है, भारी चढावा भी जमा होता है, बच्चों का मंदिर बदहाल है, सुना है वहां, निर्जीव मूर्दे नहीं रहते। (3) बीच सड़क कपड़ा बदलने, अर्द्धनग्न हो स्नान करने, सार्वजनिक रुप से हमबिस्तर होने वाली, गरीब महिलायें अधिक इज्जतदार हैं, उन महिलाओं से, जो अट्टालिकाओं में, रोज अपना पार्टनर बदलती हैं। (4) मरते समय उसने कहा था, वह जिन्दगी का मुख चूमना चाहता है, जिन्दगी उसके पास आयी, लेकिन दरवाजे से ही लौट गई, क्योंकि, मरने वाले ने पहले ही मूंह फ़ेर लिया था। (5) इक्कीसवीं सदी के कुरुक्षेत्र में, सारथि बने पार्थ, महान धनुर्धर कृष्ण को, धर्मयुद्ध की शिक्षा दे रहे हैं, कृष्ण लाचार, पार्थ भी लाचार, गीता भी अब असरकारक नहीं रही, सुना है, अब लड़ाई के मायने बदल गये हैं। कुछ कही कुछ अनकही सी लगती है दिन सूने रातें सूनीं, ये जिन्दगी सूनी सूनी सी लगती है, व्क्त की बेरहमी है, कुछ कही कुछ अनकही सी लगती है। इमारतों के पिछवाड़े , एक श्मशान और एक कब्रिस्तान भी है, सुना है वहां आजकल, बेचारी मौत भी बुझी बुझी सी रहती है। जिन्दगी को युं ही प्यार करना, आसान नहीं होता हरदम, कभी कभी अपनों की, पाक वफ़ा भी भीतरघात सी लगती है। सुपूर्द-ए-खाक हो जाना मजबूरी है, जीते जी जिनके लिये, सुना है उनके टूटे कब्र में भी, पेट में एक आग सी जलती है। गढने वालों ने गढ दिये हैं, नाटक में कुछ और अनजने किरदार, अपनी हालत अब हाशिये पर, सोई बेजान ठठरियों सी लगती है। लोग कहते हैं सुबह के सपने, अक्सर सच हो जाया करते हैं, सपने टूटते हैं तो, टूटने की आवाज कुछ अपनी सी लगती है। नदी में बह रहा अथाह पानी, अब जिनकी आंखों में उतर आया है, जीवन जीना या फ़िर मर जाना, सब एक ही बात सी लगती है। "नवल" अच्छा है कि समय रहते, तुमने कांटों से दोस्ती कर ली, फ़ूलों के सहारे जिन्दगी, कभी अपनी कभी बेगानी सी लगती है। अस्तित्व के लिये तरस रहा सिमुलतल्ला आवासीय विद्यालय जमुई (अपना बिहार, 23 अक्टूबर 2011) – एक साल पहले बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने उग्रवाद प्रभावित जमुई जिले में सिमुलतल्ला आवासीय विद्यालय की स्थापना की। सरकार की मुहिम यह थी कि इसे नेतरहाट और नवोदय के रुप में स्थापित किया जाये। लेकिन अपनी स्थापना के एक साल के बाद भी कथित तौर पर हाइटेक आवासीय विद्यालय उपेक्षित है। इसकी उपेक्षा इसलिये भी उल्लेखनीय है कि इस स्कूल में गरीबों के बच्चे नहीं पढते। इस स्कूल में पढने वाले अधिकांश बच्चे नौकरशाहों की संतान हैं। स्कूल की उपेक्षा की बात करें तो स्कूल द्वारा एक साल पूरा होने पर एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया है। इस स्मारिका के संपादकीय में स्कूल के प्रिंसिपल डा शंकर कुमार ने स्कूल की बदहाली का जिक्र किया है। इन्होंने अपने संपादकीय में लिखा है कि अभी तक सिमुलतल्ला आवासीय स्कूल किराये के मकान में चल रहा है और स्कूल कैंपस के निर्माण के लिये कोई कोशिश शुरु नहीं की गई है। इन्होंने इसका जिक्र भी किया है कि स्कूल के सभी शिक्षक प्राइवेट स्कूलों के जैसे अनुबंध पर बहाल किये गये हैं, जिनका मानदेय भी सम्मानजन्क नहीं है। एक साल पूरा होने के बावजूद भी अभी तक शिक्षकों की सेवा शर्तों का निर्धारण नहीं किया गया है। हालांकि डा शंकर ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त किया है कि तमाम प्रतिकुलताओं के बावजूद स्कूल के शिक्षकों की लगन के बूते बच्चों ने एक मिसाल पेश किया है। बताते चलें कि स्कूल में प्रत्येक वर्ष 60 लड़कों और 60 लड़कियों का चयन कर उन्हें निशुल्क स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराया जाना है। स्कूल में आधारभूत संरचनाओं की कमी के कारण दूसरे वर्ष में बच्चों का प्रवेश नहीं लिया जा रहा है। वैसे खास बात यह है कि स्कूल के पास अपना कोई वाहन भी नहीं है जो आवश्यकता पड़ने पर बच्चों को अस्पताल भी ले जा सके। बहरहाल, खास खबर यह है कि सिमुलतल्ला आवासीय स्कूल के नाम पर 7 करोड़ रुपये की लूट हो चुकी है। इस संबंध में एक मामला सीएजी की रिपोर्ट में भी उल्लेखित है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस लूट की जांच करवाने का साहस करेगी। मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा के नाम पर होने वाले इस लूट में स्कूल प्रबंधन से लेकर मुख्यमंत्री तक शामिल हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सिमुलतल्ला आवासीय स्कूल में पढ रहे बच्चों का भविष्य क्या होगा? |
परम सौभाग्यक विषय थीक जे बिहार शताब्दी वर्ष में राज्य सरकार द्वारा मैथलीक लुप्तप्राय गीत एवं धुन केर दस्तावेजीकरणक स्वीकृति देल गेल। एहि दस्तावेज में मैथलीक विविध प्रकारक संस्कार गीत, व्यवहार गीत, ॠतु प्रधान गीत आ पाबनि तिहारक गीत भंडार सौं 50 अलग-अलग धुन में मिथिलाक लोक कण्ठ में रचल बसल किन्तु लुप्तप्राय गीत आ धुन के संकलन एमपीथ्री आ ओहि गीतक पुस्तिका प्रकाशित करबाक लक्ष्य निर्धारित अछि। ई दस्तावेज मिथिलाक भावी पीढीक लेल मैथिली गीत परंपराक बहूमूल्य धरोहर बनए तें सर्वोत्तम तैयारी हेतु गीत, आपन स्वर एवं संगीत संबंधी अपनेक सुझाव सादर आमंत्रित करै छी। हृदय नारायण झा कलाकार( मैथिली लोकगीत), आकाशवाणी, पटना पता- सांस्कृतिक संवाददाता, "आज" हिन्दी दैनिक, फ़्रेजर रोड, पटना,, मोबाइल नं- 9308765099, ईमेल –hridaysaroj26@gmail.com |
यूपी का डाकू बना कश्मीर का गांधी (नवल की विशेष रिपोर्ट) |
पिछले डेढ दशक में चार गुणी हुई खुले बाजार में चावल की न्यूनतम कीमत |
बिहार स |
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