सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?
सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि... अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.
सहाराश्री बहुत बड़े आदमी हैं. अखबार, न्यूज चैनल, मनोरंजन चैनल, मैग्जीन... ढेर सारे हथियार उनके हाथ में हैं. जाने किस पत्रकार को उनके यहां नौकरी करनी पड़ जाए, सो, सभी चुप रहना बेहतर समझते हैं. बिना किसी बात एक दूसरे की पैंट उतारने पर आमादा रहने वाले पत्रकार सहाराश्री के विज्ञापनी भाषण पर चुप हैं. अन्य अखबार-चैनल वाले इसलिए नहीं बोल रहे क्योंकि उनके अखबारों-चैनलों में सहाराश्री के विचार को विज्ञापन की शक्ल में परोसा जा चुका है. मतलब, मुंह बंद करने में समर्थ यथोचित मुद्रा का जाल पहले ही फेका जा चुका है. वैसे भी सहारा वाले दूसरे अखबारों चैनलों को साल में कुछ एक बार विज्ञापन जरूर दे देते हैं, कई पन्नों के, ताकि, जरूरत पड़ने पर सहारा समूह के खिलाफ किसी जेनुइन खबर को ड्राप कराया जा सके, चिटफंड बैंकिंग के धंधे के गड़बड़ घोटाले से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने से रोकी जा सकें. इस बार सहाराश्री ने एक दाम में दो काम कर दिया है. विज्ञापन देकर मीडिया मालिकों को खुश कर दिया, साथ में अपने विचार की थोक मात्रा में सप्लाई भी कर दी. विज्ञापन का पैसा गया मीडिया मालिकों की जेब में, विचार की खुराक का प्रवाह हो गया देश की जनता के कपार में.
विचारों की अधकपारी से पीड़ित ढेर सारे लोग बड़े असमंजस में हैं. वे राष्ट्रभक्ति की परिभाषा फिर से जानने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें अपने ज्ञान पर संदेह होने लगा है. वैसे भी, बाजारीकरण में डुबकी लगाकर कई शब्दों की परिभाषाएं नई-नवेली हो गई हैं. पुरानी परिभाषाओं को आर्काइव कर दिया गया है, म्यूजियम में. जिन्होंने जनता के बीच रहकर समाज, देश और राष्ट्र की परिभाषा समझी है, उनके मन भी शंकालु हो उठे हैं. ऐसे लोग मन ही मन सवाल उठा रहे हैं- ये कैसी राष्ट्रभक्ति है जो भ्रष्टाचार पर बाद में बात करने की बात कहती है. कहीं ये भरे पेट वालों की तो राष्ट्रभक्ति नहीं. लूट-खसोट जारी रहे, लुटेरे कायम रहें, लुटेराराज कायम रहे, जनता की दौलत पर अंधेरगर्दी मची रहे, सहाराश्री मार्का राष्ट्रभक्ति का तो यही कहना है. सहाराश्री यहीं नहीं रुकते. वे मीडिया वालों से भी अपील कर डालते हैं कि मत दिखाओ बदनाम करने वाली खबरें. अंडरप्ले करो भ्रष्टाचार की खबरें. खेल खत्म हो जाएगा तो खेल के नाम पर हुए खेल की खोल में घुसा जाएगा.
फेसबुक पर एनडीटीवी वाले रवीश कुमार अपने स्टेटस को व्यंग्यात्मक अंदाज में अपडेट करते हैं, बिना किसी का नाम लिए हुए- ''राष्ट्रहित में भ्रष्टाचार इतना न उजागर कर दें कि कॉमनवेल्थ को लेकर बनने वाली भारतीयों की शान ही खत्म हो जाए। संकट में राष्ट्रवाद अक्सर भावुकता से खुराक पाता है। मात्र तीन चार सौ साल पुराने इस राष्ट्रवाद की ऐसी दुर्गति की उम्मीद तो थी लेकिन इतनी जल्दी ये नहीं सोचा था। पत्रकारों को देशहित में लुटेरे ठेकेदारों से हाथ मिला लेना चाहिए।''
सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति की परिभाषा से असहमत कई लोग अब लिखने-मुंह खोलने को तैयार होने लगे हैं. एक चिट्ठी लखनऊ से आई है, हरेराम मिश्रा की तरफ से. उन्होंने सहाराश्री की मार्मिक अपील पर उनको एक जवाबी पत्र लिखा है. क्या लिखा है, आप भी पढ़ें. फिर बताइए, क्या सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें? क्या राष्ट्रभक्ति भी वर्गीय चरित्र लिए हुए है? गरीब की राष्ट्रभक्ति अलग. धनपशु की राष्ट्रभक्ति अलग. एक की राष्ट्रभक्ति कहती है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करो, तुरंत. दूसरे की राष्ट्रभक्ति भ्रष्टाचार पर बात फिलहाल रोकने की वकालत करती है.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
सुब्रत राय सहारा की मार्मिक अपील पर उन्हें एक खुला खत
प्रिय सुब्रत राय साहब,
सप्रेम नमस्कार
आपके द्वारा समाचार पत्रों मे कामन वेल्थ गेम 2010 के लिए आम जनता के नाम की गयी मार्मिक अपील हमने पढी है। आपकी यह मार्मिक अपील उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई है जब चारों ओर से कामन वेल्थ गेम आयोजन समिति पर भ्रष्टाष्टाचार और बेइमानी के सीधे आरोप लगे हैं। आपको और हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोप प्रथम दृष्टया ही ऐसे हैं कि जिसे कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। कृपया ध्यान दें कामन वेल्थ गेम के नाम पर आम आदमी के पैसे की बंदरबांट 2006 से ही आरंभ हो गयी थी। यह बात अलग है कि उस समय कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात नजरंदाज करते हुए कलमाडी एण्ड कंपनी ने लगातार मनमानी की। आपने अपनी मार्मिक अपील में लिखा है कि इस खेल का आयोजन इस देश के लिए गर्व की बात है। आप यह बताएं कि इस खेल आयोजन से भारत की कौन सी समस्या हल होती देख रहे है। जिस समय आम जनता भारी महंगाई में पिस रही हो और जिस 76 प्रतिशत जनता के लिए दोनों जून रोटी का भरोसा तक ना हो, वह देश पर और उसके इस आयोजन पर कैसे गर्व कर सकती है।
अपनी मार्मिक अपील में आपने यह लिखा है कि हजारों आयोजक और 23000 स्वयंसेवी चौतरफा आलोचना से गहरी निराशा में जा रहे हैं। आप यह बताएं कि आम आदमी का पैसा मनमानी खर्च करके वे हिसाब देने की जिम्मेदारियों से क्यों बच रहे हैं। अगर आयोजन समिति इतनी ही पाक साफ है तो वह यह सिद्ध क्यों नही करती कि कहीं किसी किस्म का कोई घपला नहीं हुआ है। इसमें निराशा में जाने जैसा क्या है। अगर वो पाक साफ है तो आम जनता को खर्च का पूरा हिसाब तत्काल दे।
आपकी अपील में लिखा है कि अगर किसी तरह की अनियमितता हुई हो तो इस खेल के आयोजन के बाद हर कार्यवाही अवश्य हो। क्या आपको अभी भी अनियमितता होने के बारे मे संदेह है। जबकि जांच एजेंसियां इस आयोजन में प्रथम दृष्टया ही भारी अनियमितता मान चुकी हैं। दरअसल कई सामान्य बातें ही आयोजन समिति को गंभीर सवालों के कटघरे में खड़ा कर देती है। जिस समय कलमाडी चौतरफा घिर गये हैं और जिस तरह से आप की मार्मिक अपील कलमाडी की काली करतूतों के साथ खड़ी है, उसे हम बखूबी समझ सकते हैं।
दरअसल आपकी इस मार्मिक अपील में भी आपकी मुनाफे की गंध छुपी है। आप भी इस खेल के खेल में भागीदार होकर प्रसारण अधिकार लेकर मलाई खाना चाह रहे हैं। और यह काम केवल हां जी हुजूरी से ही हो सकता है। क्योंकि अभी तक सारे टेंडर केवल उसके परिचितों को ही मिले थे। आपको लगता है कि इस तरह उसके साथ खडे़ होने से आप भी कुछ लाभ कमा सकते हैं। जहां तक खेल होने के बाद कार्यवाही की बात है, ठीक नहीं है। तब तक मामला ही ठंडा हो जाएगा। कार्यवाही तत्काल हो। उन्हें आयोजन समिति से बाहर करके तत्काल उन पर एफआइआर दर्ज हो।
जहां तक मीडिया की अति का सवाल है यह एक अलग और गंभीर विचार का विषय है। और मीडिया ने इस खेल को उजागर कर कुछ भी गलत नही किया है। उसने तो वही कहा है जो उसने देखा है। और इसमें बदनामी जैसा क्या है।
मैं आपको एक सलाह दूंगा। अगर आप भी किसी किस्म का टेंडर चाहते हैं तो आप भी कलमाडी साहब को घूस दीजिए, व्यक्तिगत रिश्ते कायम कीजिए, लेकिन देश को बरगलाने की घटिया कोशिश न कीजिए क्योंकि गुलामी के इस प्रतीक का आयोजन देश को विश्वास में लेकर नहीं किया जा रहा है।
आपका
हरेराम मिश्र
लखनऊ
written by Chandrabhan Singh, August 11, 2010
written by surendranath sinha, August 11, 2010
written by Ratn Prakash, August 10, 2010
Crime ReportingThis article has been written for young journalists who are being initiated into the profession and who have opted for very challenging beat—Crime Reporting. Written by N K Singh, Consulting Editor, Sadhna News and General Secretary, Broadcast Editors' Association (BEA) :: Crime coverage :: "The criminal law represents the pathology of civilization", Morris Cohen, Russian -born American philosopher : Professionally speaking, it is one of the best beats in which your contribution to the cause of journalism is unparallel. And perhaps among all kinds of human events, it has the widest length and breadth. | |
| |
क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ और परिचर्चा 13 कोपीपुल्स विजन एवं हिन्द युग्म ने संयुक्त रूप से 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन किया है. इसमें क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ होगा. एक परिचर्चा भी आयोजित है. स्थान है- गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली.
| |
| |
Page 1 of 20 |
'मी' की पूरी टीम को इस्तीफा देने के निर्देश
अंग्रेजी अखबार डीएनए में मूर्खतापूर्ण प्रयोगों का सिलसिला जारी है. ताजी सूच...
अथ श्री आई-नेक्स्ट, आगरा कथा
आई नेक्स्ट आगरा में इन दिनों गफलत का माहौल बना हुआ है। यहां के लोगों को पता...
'पत्रिका में मुझसे जबरन इस्तीफा लिया गया'
पत्रिका, ग्वालियर के रिपोर्टर राहुल शर्मा ने आरोप लगाया है कि उससे सिटी ची...
- हरिभूमि जबलपुर में छंटनी, दाम घटा, पेज घटे
- राजेश पांडेय और योगेश त्रिपाठी राज एक्सप्रेस के बने यात्री
- राहुल और ईश्वर बोले- इस्तीफा नहीं दिया है
- एक संपादक की बेवफाई
- बलराम सैनी, ओमदेव शर्मा और शकुन रघुवंशी की नई पारी
- अमर उजाला, कानपुर व नोएडा से 5 गए हिंदुस्तान
- अनिल ने भास्कर और सुनीता ने आज समाज छोड़ा
- हिंदुस्तान आगरा व लखीमपुर से कई इधर-उधर
- सुशील भास्कर, हिसार के सरकुलेशन मैनेजर बने
- पंजाब केसरी, दिल्ली ने घटाए दाम
- जागरण के प्रसार विभाग में बड़ा घोटाला!
- कॉपीराइट चोरी में फंसेगा अमर उजाला?
- 15 अगस्त के लिए पत्रकार लाएंगे विज्ञापन
- एक और नाराज स्ट्रिंगर ने हिन्दुस्तान छोड़ा
- भास्कर जयपुर से दो कार्यमुक्त, हृदयेंद्र का तबादला
- मैनेजर विनय झा का पत्रिका, इंदौर से इस्तीफा
- आई-नेक्स्ट आगरा के दो पत्रकार अमर उजाला पहुंचे
- क्या नीलू रंजन की खबर प्लांटेड थी?
- आगरा से प्रकाशित अखबार 'मून न्यूज़' बंद
- गांडीव, वाराणसी के चीफ रिपोर्टर चित्रांशी का इस्तीफा
- अमृतसर से 15 को लांच होगा 'न्यूज प्वाइंट'
- 'हैलो हिंदुस्तान' का पांचवे वर्ष में प्रवेश
प्रदीप सिंह यूएनआई टीवी के कार्यकारी संपादक
: मयंक व यशवर्द्धन भी जुड़े : टीवी9, मुंबई से 3 का इस्तीफा : सीएनईबी को अलविदा ...
अनुरंजन झा सीएनईबी के सीओओ बने
खबर है कि अनुरंजन झा को लंबी बेरोजगारी के बाद ठिकाना मिल गया है. उन्होंने आ...
नवेन्दु मौर्य टीवी के राजनीतिक संपादक बने
: न्यूज11 के ज्ञानरंजन भी मौर्य पहुंचे : आफर लेटर लेकर चुप्पी साध गए हैं मधु...
- न्यूज एंकर नहीं जनाब, न्यूड एंकर कहिए इसे
- प्रभाकर का दिमाग खराब हो गया है
- प्रोग्रामिंग हेड आराधना भोला का जूम से इस्तीफा
- इंडिया टीवी ने साधना का विजुवल चुराया!
- कहीं बाइट के बहाने पर्ची न काट दे!
- बिहार में त्रिशंकु विधानसभा के आसार
- मैं अपना नाम आरोपों से मुक्त करना चाहता हूं
- 5वीं वर्षगांठ पर विजय दीक्षित ने काटा केक
- '365 दिन' चैनल से अमल जैन के दिन खत्म
- इन्हें सिर्फ सुरा-सुंदरी चाहिए
- न्यूज24 से चार मीडियाकर्मियों का इस्तीफा
- मौर्य टीवी नहीं करेगा पेड न्यूज़ का कारोबार
- नीलू श्रीवास्तव 'न्यूज11' से जुड़े, नितिन ने टीवी99 छोड़ा
- तान्या का स्टार से इस्तीफा, आईबीएन में करेंगी एंकरिंग
- 'प्रभात खबर ने गलती मानी, भड़ास भी माने'
- संजय पाठक सहारा से हेडलाइंस टुडे पहुंचे
- न्यूज 24 पर 15 मिनट में सौ खबरें
- मार्केटिंग हेड से लेकर ड्राइवर तक की रिक्तियां
- 'किस्मत खराब थी जो इस लड़की से मिला'
- अमिताभ अग्निहोत्री टोटल टीवी के एमई हुए
- स्टिंग आपरेशन की झूठी क्रेडिट ली?
- ईटीवी बिहार डेस्क से खुर्शीद का इस्तीफा
Crime Reporting
This article has been written for young journalists who are being initiated into the profession and who have opted for very challenging beat—Crime Reporting. Written by N K Singh, Consulting Editor, Sadhna News and General Se...
सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?
सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प...
- खबरों से घबराता तंत्र
- अति स्थानीय होने का दौर
- कलम के महानायक की याद
- माथुर साहब को पढ़कर एक पीढ़ी पली-बढ़ी है
- साले सबकी नौकरी खाओगे...ब्रेकिंग है...
- दो युवा शहीदों का समुचित सम्मान करो
- ये नाम और ना-उम्मीदी
- खबरिया दोजख में कराहती महिलायें
- मैं महिला हूं, मैं 3 माह से बेरोजगार हूं
- दुबे जी! हम करेंगे आपके सपने पूरे
- माया की मार से त्रस्त एक डिप्टी एसपी
- माँ बनने से डरती हैं महिला पत्रकार
- आप जुझारू हैं तो गोली खाएंगे
- इलाहाबाद में विजय भैया जैसा कोई नहीं
- 'इतने दोस्त थे पापा के, कितनों ने सुध ली?'
संजय द्विवेदी को प्रज्ञारत्न सम्मान
बिलासपुर। पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपा...
- झारखंड के दो पत्रकारों को सम्मान मिला
- हिंदी दिवस पर कई लोगों को मिलेगा एवार्ड
- वर्ष २००९ का केदार सम्मान अष्टभुजा शुक्ल को
- लखनऊ में तेरा-मेरा उनका सम्मान
- इन्हें दिए गये रामनाथ गोयनका पुरस्कार
- निर्भीक पत्रकारिता का पुरस्कार स्व. विजय को
- कोलकाता में कई पत्रकारों का रोटरी क्लब ने किया सम्मान
- अमर उजाला, संवाददाता को भाकियू ने सम्मानित किया
मीडिया बिल पर संगोष्ठी 12 को दिल्ली में
मीडिया बिल के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए 12 अगस्त को एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया ...
- राजस्थान पत्रकार परिषद की तरफ से 15 अगस्त को समारोह
- यौन हिंसा और दबंगई के खिलाफ लखनऊ में संगोष्ठी 10 को
- गरिमामय कार्यक्रम में याद किए गए राजेंद्र माथुर
- हर अखबार में दो खेमे हैं : मृणाल पांडे
- सरकारी आलोक में रज्जू बाबू की सालगिरह
- राजेन्द्र माथुर की 75वीं वर्षगांठ पर गोष्ठी में पधारें
- प्रेरणा की किताब के लोकार्पण में आप भी पहुंचें
- भोजपुरी के झंडा तोहरा हाथ में बा : केदारनाथ सिंह
यह लड़की आज़मगढ़ की है
: सीमा आजमी- भारतीय सिनेमा की नयी आजमी : मुंबई में शाहिद अनवर के नाटक, सारा शगुफ्ता का मंचन ...
हमलों के खिलाफ मुंबई के पत्रकार एक हुए
: काली पट्टी बांध और हाथों में तख्तियां लिए दर्जनों पत्रकार निकले सड़क पर : मुंबई के हुतात्...
- बहनें कर रहीं बूट पालिश ताकि भाई बचे
- डा. मधु की बर्खास्तगी चाहते हैं पत्रकार संतोष
- कमलेश की हत्या को दुर्घटना बताने में जुटी पुलिस
- पत्रकार-थानेदार, हो गए हैं दोनों यार
- ब्लैकमेलर पत्रकार को 3 साल जेल में रहना होगा
- फोटोग्राफर के उत्पीड़न में एसपी समेत आधा दर्जन अफसर तलब
- MEDIA ORGANISATIONS MEET CM TO FOCUS ON ATTACKS ON JOURNALISTS
- कमलेश की हत्या के खिलाफ राजमार्ग जाम
क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ और परिचर्चा 13 को
पीपुल्स विजन एवं हिन्द युग्म ने संयुक्त रूप से 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन क...
- प्रेमचंद की कहानियां समय-समाज की धड़कन
- क्या! जो टॉयलेट में घुसा था, वो पत्रकार था?
- ये लोग साहित्यकार हैं या साहित्य के मदारी!
- छिनाल प्रकरण : ...थू-थू की हमने, थू-थू की तुमने...
- विभूति कहां गलत हैं!
- वीएन राय के विवादित इंटरव्यू को पूरा पढ़ें, यहां
- वीएन राय के पीछे पड़े हैं वामपंथी!
- सच में ऐसा बोला तो हटेंगे वीएन : सिब्बल
चाइल्ड राइटस रिसर्च फेलोशिप के लिए आवेदन
हर साल की तरह इस साल भी ''चाइल्ड राइट्स एण्ड यू'' (क्राई) ने बच्चों के अधिकारों से जुड़े मु...
- गांधी का अपमान करने वाला भारतीय है
- गांधी के इस अपमान पर हंसेंगे या रोएंगे?
- गोस्वामी पीटीआई, लखनऊ के ब्यूरो चीफ बने
- संजय गौड़ की किताब 'जर्नलिज्म स्कैण्डल्स'
- मीडिया क्लब, रोहतक को 5 लाख रुपये का अनुदान
- उस्ताद शुजात हुसैन खां, सितार और गायकी
- पुलिस, प्रेस और डग्गेमारी
- पत्रकारिता शिक्षा के साथ नौकरी का अवसर भी
मीडिया हाउसों को चैन से न रहने दूंगा
इंटरव्यू : एडवोकेट अजय मुखर्जी 'दादा' : एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्यवस्था : अखबारों की तरफ से मुझे धमकियां मिलीं और प्रलोभन भी : मालिक करोड़ों में खेल रहे पर पत्रकारों को उनका हक नहीं देते : पूंजीपतियों के दबाव में कांट...
श्वान रूप संसार है भूकन दे झकमार
: साहित्य में शोषितों की आवाज मद्धिम पड़ी : अब कोई पक्ष लेने और कहने से परहेज करता है : अंधड़-तूफान के बाद भी जो लौ बची रहेगी वह पंक्ति में स्थान पा लेगी : समाज को ऐसा बनाया जा रहा है कि वह सभी विकल्पों, प्रतिरोध करने वाली शक्तिय...
- मेरे को मास नहीं मानता, यह अच्छा है
- केवल कलम चलाने गाल बजाने से कुछ न होगा
- रामोजी राव संग काम करना स्पीरिचुवल प्लीजर
- टीआरपी पर विधवा विलाप ठीक नहीं : सुप्रिय
- काटे नहीं कट रही थी वो काली रात : सुप्रिय प्रसाद
- कोशिश करके भी वामपंथी न बन सका : सुभाष राय
- वे केमिस्ट्री पूछते, मैं कविता सुनाता : सुभाष राय
- घटिया कंटेंट पापुलर हो, जरूरी नहीं : प्रकाश झा
- मलिन बस्ती का मीडिया मुगल
- कई अंग्रेजी रिपोर्टर 'हाइवे जर्नलिस्ट' होते हैं
- लगता था, क्रांति अगले बस स्टाप पर खड़ी है
- ग्लास गिरा तो लगा- गुरु, अब तो नौकरी गई
- अब खबर के प्रति नजरिया बदल गया है : राजीव मित्तल
- मीडिया में गलत लोग आ गए, कचरा फेकें : जयंती रंगनाथन
- पोलिटिकली करेक्ट होने की परवाह नहीं करती : अलका सक्सेना
Latest 81
-
मुक्तिबोध की तरह अंधेरे के कवि थे सकलदीप सिंह : डा. अभिज्ञात
- महंगाई से जनता बेदम, सरकार को नहीं गम : संतराम पांडेय
-
देह विमर्श से आगे कई जवाब मांगता है 'छिनाल' : हिमांशु पांडेय
-
कामन लोगों को चूसा पैसा हुक्मरानों की जेब में : विजय वर्धन उप्रेती
- नरेंद्र मोदी की जीत में मीडिया की हार : धीरज
- कार्टून से किसी को मिर्ची लगी तो हम क्या करें : अनिल विभाकर
-
बदल चुका है सपनों का बालीवुड और इसका अफसाना : प्रदीप उपाध्याय
- चलो, लड़की नहीं मिली तो लड़के से ही काम चला लेंगे : डा. जान्हवी
-
कविता बोलीं- पैसे से मतदाता के मन को नहीं खरीद सकते : प्रदीप श्रीवास्तव
- जल्दी क्या थी, धीरे-धीरे लूटते कामन लोगों का वेल्थ : डा. सूर्यकांत त्रिपाठी
-
आज के दौर में नींद में भी सपने बहुतों को नहीं आते : चंद्रभूषण
- अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं अमर सिंह : संजय शर्मा
-
कलमाड़ी जी के लिए एक पत्रकार का किराया कोटेशन : राजन कुमार अग्रवाल
- हिंदी विश्वविद्यालय का अस्तित्व आखिर क्यों है? : आलोक तोमर
- नामुराद शहर में जिंदगी और ओबामा कंडोम : दयाशंकर शुक्ल सागर
- परिवर्तन और बाजार के बीच पिस रही है पत्रकारिता : मुन्ना
-
भारतीय उद्योग धंधों को अंग्रेजों ने चौपट कर डाला था : गोपाल राय
- नेता और साधु जैसा हाल न हो जाए पत्रकारों का : धर्मेंद्र केशरी
-
अमेरिका, चांद और तस्वीर में कैद क्लिंटन की शर्मा : दयाशंकर शुक्ल सागर
-
चर्चा में रहने के लिए बस कुछ गालियों का खर्चा : डा. प्रेम जन्मेजय
- इस स्वाधीनता आंदोलन को तीसरा क्यों कहते हैं : गोपाल राय
- लावारिस सपनों का शहर वाशिंगटन : दयाशंकर शुक्ल सागर
- 15 अगस्त को अब नहीं होता एक भी कैदी आजाद : सुनील शर्मा
-
हाईस्कूल, तांत्रिक सेक्स और अमेरिकी टीनएजर : दयाशंकर शुक्ल सागर
-
अव्वल दर्जे के धैर्यवान और सहृदय श्रोता थे अज्ञेय : ओम थानवी
-
ख्वाब ही नहीं, बेरोजगारों की जुगाड़ भी है पत्रकारिता : ऋषि दीक्षित
-
सोमदत्त को क्यों नागवार लगी दिग्विजय की बात : रमेश कुमार रिपु
-
टीवी पर ज्योतिष विद्या और उजला कौव्वा काला बंदर : अनिकेत प्रियदर्शी
- अज्ञेय किसी पिछलग्गू होने के खिलाफ थे : ओम थानवी
- जनसरोकार की तरफ मुड़ेंगे चैनल? : कुंवर चंद्रप्रताप
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/