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Wednesday, August 11, 2010

सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?

सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?

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सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि... अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.

सहाराश्री बहुत बड़े आदमी हैं. अखबार, न्यूज चैनल, मनोरंजन चैनल, मैग्जीन... ढेर सारे हथियार उनके हाथ में हैं. जाने किस पत्रकार को उनके यहां नौकरी करनी पड़ जाए, सो, सभी चुप रहना बेहतर समझते हैं. बिना किसी बात एक दूसरे की पैंट उतारने पर आमादा रहने वाले पत्रकार सहाराश्री के विज्ञापनी भाषण पर चुप हैं. अन्य अखबार-चैनल वाले इसलिए नहीं बोल रहे क्योंकि उनके अखबारों-चैनलों में सहाराश्री के विचार को विज्ञापन की शक्ल में परोसा जा चुका है. मतलब, मुंह बंद करने में समर्थ यथोचित मुद्रा का जाल पहले ही फेका जा चुका है. वैसे भी सहारा वाले दूसरे अखबारों चैनलों को साल में कुछ एक बार विज्ञापन जरूर दे देते हैं, कई पन्नों के, ताकि, जरूरत पड़ने पर सहारा समूह के खिलाफ किसी जेनुइन खबर को ड्राप कराया जा सके, चिटफंड बैंकिंग के धंधे के गड़बड़ घोटाले से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने से रोकी जा सकें. इस बार सहाराश्री ने एक दाम में दो काम कर दिया है. विज्ञापन देकर मीडिया मालिकों को खुश कर दिया, साथ में अपने विचार की थोक मात्रा में सप्लाई भी कर दी. विज्ञापन का पैसा गया मीडिया मालिकों की जेब में, विचार की खुराक का प्रवाह हो गया देश की जनता के कपार में.

विचारों की अधकपारी से पीड़ित ढेर सारे लोग बड़े असमंजस में हैं. वे राष्ट्रभक्ति की परिभाषा फिर से जानने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें अपने ज्ञान पर संदेह होने लगा है. वैसे भी, बाजारीकरण में डुबकी लगाकर कई शब्दों की परिभाषाएं नई-नवेली हो गई हैं. पुरानी परिभाषाओं को आर्काइव कर दिया गया है, म्यूजियम में. जिन्होंने जनता के बीच रहकर समाज, देश और राष्ट्र की परिभाषा समझी है, उनके मन भी शंकालु हो उठे हैं. ऐसे लोग मन ही मन सवाल उठा रहे हैं- ये कैसी राष्ट्रभक्ति है जो भ्रष्टाचार पर बाद में बात करने की बात कहती है. कहीं ये भरे पेट वालों की तो राष्ट्रभक्ति नहीं. लूट-खसोट जारी रहे, लुटेरे कायम रहें, लुटेराराज कायम रहे, जनता की दौलत पर अंधेरगर्दी मची रहे, सहाराश्री मार्का राष्ट्रभक्ति का तो यही कहना है. सहाराश्री यहीं नहीं रुकते. वे मीडिया वालों से भी अपील कर डालते हैं कि मत दिखाओ बदनाम करने वाली खबरें. अंडरप्ले करो भ्रष्टाचार की खबरें. खेल खत्म हो जाएगा तो खेल के नाम पर हुए खेल की खोल में घुसा जाएगा.

फेसबुक पर एनडीटीवी वाले रवीश कुमार अपने स्टेटस को व्यंग्यात्मक अंदाज में अपडेट करते हैं, बिना किसी का नाम लिए हुए- ''राष्ट्रहित में भ्रष्टाचार इतना न उजागर कर दें कि कॉमनवेल्थ को लेकर बनने वाली भारतीयों की शान ही खत्म हो जाए। संकट में राष्ट्रवाद अक्सर भावुकता से खुराक पाता है। मात्र तीन चार सौ साल पुराने इस राष्ट्रवाद की ऐसी दुर्गति की उम्मीद तो थी लेकिन इतनी जल्दी ये नहीं सोचा था। पत्रकारों को देशहित में लुटेरे ठेकेदारों से हाथ मिला लेना चाहिए।''

सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति की परिभाषा से असहमत कई लोग अब लिखने-मुंह खोलने को तैयार होने लगे हैं. एक चिट्ठी लखनऊ से आई है, हरेराम मिश्रा की तरफ से. उन्होंने सहाराश्री की मार्मिक अपील पर उनको एक जवाबी पत्र लिखा है. क्या लिखा है, आप भी पढ़ें. फिर बताइए, क्या सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें? क्या राष्ट्रभक्ति भी वर्गीय चरित्र लिए हुए है? गरीब की राष्ट्रभक्ति अलग. धनपशु की राष्ट्रभक्ति अलग. एक की राष्ट्रभक्ति कहती है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करो, तुरंत. दूसरे की राष्ट्रभक्ति भ्रष्टाचार पर बात फिलहाल रोकने की वकालत करती है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया


सुब्रत राय सहारा की मार्मिक अपील पर उन्हें एक खुला खत

प्रिय सुब्रत राय साहब,

सप्रेम नमस्कार

आपके द्वारा समाचार पत्रों मे कामन वेल्थ गेम 2010 के लिए आम जनता के नाम की गयी मार्मिक अपील हमने पढी है। आपकी यह मार्मिक अपील उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई है जब चारों ओर से कामन वेल्थ गेम आयोजन समिति पर भ्रष्टाष्टाचार और बेइमानी के सीधे आरोप लगे हैं। आपको और हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोप प्रथम दृष्टया ही ऐसे हैं कि जिसे कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। कृपया ध्यान दें कामन वेल्थ गेम के नाम पर आम आदमी के पैसे की बंदरबांट 2006 से ही आरंभ हो गयी थी। यह बात अलग है कि उस समय कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात नजरंदाज करते हुए कलमाडी एण्ड कंपनी ने लगातार मनमानी की। आपने अपनी मार्मिक अपील में लिखा है कि इस खेल का आयोजन इस देश के लिए गर्व की बात है। आप यह बताएं कि इस खेल आयोजन से भारत की कौन सी समस्या हल होती देख रहे है। जिस समय आम जनता भारी महंगाई में पिस रही हो और जिस 76 प्रतिशत जनता के लिए दोनों जून रोटी का भरोसा तक ना हो, वह देश पर और उसके इस आयोजन पर कैसे गर्व कर सकती है।

अपनी मार्मिक अपील में आपने यह लिखा है कि हजारों आयोजक और 23000 स्वयंसेवी चौतरफा आलोचना से गहरी निराशा में जा रहे हैं। आप यह बताएं कि आम आदमी का पैसा मनमानी खर्च करके वे हिसाब देने की जिम्मेदारियों से क्यों बच रहे हैं। अगर आयोजन समिति इतनी ही पाक साफ है तो वह यह सिद्ध क्यों नही करती कि कहीं किसी किस्म का कोई घपला नहीं हुआ है। इसमें निराशा में जाने जैसा क्या है। अगर वो पाक साफ है तो आम जनता को खर्च का पूरा हिसाब तत्काल दे।

आपकी अपील में लिखा है कि अगर किसी तरह की अनियमितता हुई हो तो इस खेल के आयोजन के बाद हर कार्यवाही अवश्य हो। क्या आपको अभी भी अनियमितता होने के बारे मे संदेह है। जबकि जांच एजेंसियां इस आयोजन में प्रथम दृष्टया ही भारी अनियमितता मान चुकी हैं। दरअसल कई सामान्य बातें ही आयोजन समिति को गंभीर सवालों के कटघरे में खड़ा कर देती है। जिस समय कलमाडी चौतरफा घिर गये हैं और जिस तरह से आप की मार्मिक अपील कलमाडी की काली करतूतों के साथ खड़ी है, उसे हम बखूबी समझ सकते हैं।

दरअसल आपकी इस मार्मिक अपील में भी आपकी मुनाफे की गंध छुपी है। आप भी इस खेल के खेल में भागीदार होकर प्रसारण अधिकार लेकर मलाई खाना चाह रहे हैं। और यह काम केवल हां जी हुजूरी से ही हो सकता है। क्योंकि अभी तक सारे टेंडर केवल उसके परिचितों को ही मिले थे। आपको लगता है कि इस तरह उसके साथ खडे़ होने से आप भी कुछ लाभ कमा सकते हैं। जहां तक खेल होने के बाद कार्यवाही की बात है, ठीक नहीं है। तब तक मामला ही ठंडा हो जाएगा। कार्यवाही तत्काल हो। उन्हें आयोजन समिति से बाहर करके तत्काल उन पर एफआइआर दर्ज हो।

जहां तक मीडिया की अति का सवाल है यह एक अलग और गंभीर विचार का विषय है। और मीडिया ने इस खेल को उजागर कर कुछ भी गलत नही किया है। उसने तो वही कहा है जो उसने देखा है। और इसमें बदनामी जैसा क्या है।

मैं आपको एक सलाह दूंगा। अगर आप भी किसी किस्म का टेंडर चाहते हैं तो आप भी कलमाडी साहब को घूस दीजिए, व्यक्तिगत रिश्ते कायम कीजिए, लेकिन देश को बरगलाने की घटिया कोशिश न कीजिए क्योंकि गुलामी के इस प्रतीक का आयोजन देश को विश्वास में लेकर नहीं किया जा रहा है।

आपका

हरेराम मिश्र

लखनऊ

Comments (3)Add Comment
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written by Chandrabhan Singh, August 11, 2010
Saharasri ko bhrast logo ke bhrastachar ujagar nahi karne ki chinta hai. Hakikat me rastramandal khel gulami ki yad banaye rakhne ke liye hi to hai. Jis desh me 28 % logo ko bharpet bhojan nahi milta ho us des me aise aayojan karne me sharam kyon nahi aati. Bhagwan hamare netaon ko sadbudhhi de bhavisya me aise bhrast aayojan nahi hone chahiye jinse bhrast logo ko or loot karne ka avsar mile.
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written by surendranath sinha, August 11, 2010
are janab,ye pili badbu wale deshbhakta hain.ye jo kahate hain matlab thik ulta hota hai.tab bhi to rani ka danda (are bhai queens beton,aur kya!) ye apne ghar le gaye the lko me,desh ka naam uthane k liye hi to.doosre k maal pe malai khane wale ye dalle hi to hain-rajniti k bhi,aursaamrajiyon k bhi.ye media me kyon ghuse hain kaun nahi janta.
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written by Ratn Prakash, August 10, 2010
CWG ki Mashal nahi milne par patrakar utpidan ke naam par bhed bakari ki tarah lucknow me patrakaro ka jamawada karne wale saharasri kya bolenge. Unki saari chinta apne parabanking bussiness ko bachane ki kawayad hai aur centre me congress ki sarkar hai jisse nikatata jaruri hai. CWG me nahi unka paisa laga hai nahi kalmadi ka balki jantaka laga hai.

Crime Reporting

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NK SinghThis article has been written for young journalists who are being initiated into the profession and who have opted for very challenging beat—Crime Reporting. Written by N K Singh, Consulting Editor, Sadhna News and General Secretary, Broadcast Editors' Association (BEA)


:: Crime coverage :: "The criminal law represents the pathology of civilization", Morris Cohen, Russian -born American philosopher : Professionally speaking, it is one of the best beats in which your contribution to the cause of journalism is unparallel. And perhaps among all kinds of human events, it has the widest length and breadth.

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सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?

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सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि... अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.

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खबरों से घबराता तंत्र

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गिरीश मिश्र

गिरीश मिश्र

आजकल कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े भ्रष्टाचार के मुद्दे सिर चढ़कर बोल रहे हैं. मीडिया के हर रोज के खुलासे फिलहाल आरोपों की शक्ल में सुर्खियां बन रहे हैं. आईपीएल के ललित मोदी जैसी हालत सुरेश कलमाडी की भी हो गई है. संभव है कि मीडिया टनयल में कुछ ज्यादा ही प्रचार-दुष्प्रचार हो रहा हो, लेकिन लाखों-करोड़ों के स्पष्ट घोटाले जिस तरह से सामने आए हैं, उनमें से अनेक में तो कुछ कहने को भी नहीं रह जाता. जैसे एक लाख का टेन्ड मिल 10 लाख में, और वो भी किराए पर. चार हजार में टिश्यू पेपर का रोल, 40 हजार का एसी दो लाख रुपए में किराए पर, छह हजार में छतरी. आखिर ये क्या है? केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी कुल सोलह परियोजनाओं की जांच की. पता चला है कि ज्यादातर में घटिया क्वालिटी का सामान लगा है. प्रोजेक्ट की लागत भी काफी बढाकर लगाई गई है. मजे की बात है कि पकड़े न जाएं, इसलिए परियोजना पूरी होने के जाली सर्टिफिकेट भी बनाए गए.
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अति स्थानीय होने का दौर

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आलोक तोमरहिंदी के ही नहीं, भारत के सबसे सिद्ध और प्रसिद्ध संपादकों में से एक राजेंद्र माथुर ने एक बार कहा था कि राष्ट्रीय अखबार की धारणा तेज चलने वाली रेलगाड़ियों, टैक्सियों और हवाई जहाजों ने छीन ली है। उनका कहना था कि जिन्हें राष्ट्रीय अखबार कहा जाता है वे उतने ही राष्ट्रीय हैं जितने दूर तक उन्हें रेल, जहाज और टैक्सियां समय पर ले जा सकते हैं। वह पीढ़ी अभी मौजूद है जिसने दिल्ली का अखबार मध्य प्रदेश, बिहार या राजस्थान के किसी गांव में डाक एडीशन के तौर पर दो या तीन दिन बाद पढ़ा था। अब जमाना बदल गया है और आम तौर पर हर जिले का अपना एक ऐसा अखबार है जिसे पढ़ कर भिंड, जौनपुर या आरा के पाठक को अधूरा अधूरा नहीं लगता। अब कहीं का पाठक भी हो, संसद या व्हाइट हाउस की खबरों के लिए अखबार नहीं पढ़ता। उसके लिए उसके पास टीवी के समाचार चैनल हैं। इतना जरूर है कि प्रिंट माध्यम की प्रामाणिकता इतनी बनी हुई है कि टीवी की खबरों की भी पुष्टि अखबारों से ही की जाती है।

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कलम के महानायक की याद

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राजेंद्र माथुर: राजेंद्र माथुर की जयंती (7 अगस्त) पर खास : इकतीस मार्च 1991 की रात। मैंने नवभारत टाइम्स का प्रथम संस्करण छपने को भेजा ही था कि प्रधान संपादक राजेन्द्र माथुर जी का फोन आया। बोले, भोपाल जाना चाहोगे? मैं समझा नहीं। उन्होंने बात बढ़ाते हुए कहा, ''नई दुनिया भोपाल में समाचार संपादक के तौर पर तुम्हें चाहता हूं। अच्छी पत्रकारिता करके दिखाओ। मैंने कहा, 'जैसा आपका आदेश। लेकिन जाने से पहले मैं एक बार मिलना चाहूंगा।' माथुर जी ने कहा 'चिंता मत करो। चार अप्रैल को आगरा में शताब्दी पर मिलो। मैं खुद तुम्हें ज्वाइन कराने चलूंगा।' अगले दिन मेरा इस्तीफा हो गया।

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माथुर साहब को पढ़कर एक पीढ़ी पली-बढ़ी है

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राजेंद्र माथुर

राजेंद्र माथुर

: राजेंद्र माथुर की जयंती (7 अगस्त) पर खास : रचना और संघर्ष का सफरनामा : राजेंद्र माथुर की पूरी जीवन यात्रा एक साधारण आम आदमी की कथा है। वे इतने साधारण हैं कि असाधारण लगने लगते हैं। उन्होंने जो कुछ पाया, एकाएक नहीं पाया। संघर्ष से पाया, नियमित लेखन से पाया, अपनी रचनाशीलता से पाया। इसी संघर्ष की वृत्ति ने उन्हें असाधारण पत्रकार और संपादक बना दिया। राजेंद्र माथुर का पत्रकारीय व्यक्तित्व इस बात से तय होता है कि उनके लेखन में विचारों की गहराई कितनी है।
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साले सबकी नौकरी खाओगे...ब्रेकिंग है...

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: बेनामी की टिप्पणी 3 : रनडाउन प्रोड्यूसर लाइब्रेरी में फोन लगाता है- "अरे यार वो राहुल के स्वयंवर के विसुअल्स निकलवाओ जल्दी...." उधर से आवाज आती है- "कौन सा स्वयंवर सर..." रनडाउन प्रोड्यूसर बिगड़ा- "अरे चूतिए हो क्या...वही इमेजिन वाले...." लाइब्रेरी से आवाज आई- "डेट बताइए सर...." रनडाउन प्रोड्यूसर का तनाव भड़क चुका था- "अरे यार हद कर रहे हो....डेट का क्या मतलब....इमेजिन डालो दिखा देगा..." लाइब्रेरी से- "सर नहीं दिखा रहा है..."

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दो युवा शहीदों का समुचित सम्मान करो

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अमिताभ ठाकुर

अमिताभ ठाकुर

मंजुनाथ शंमुगम और सत्येन्द्र नाथ दुबे का नाम भूल गए या याद है? सच्चाई के लिए जान देने वालों के वास्ते किसके पास फुर्सत है!. पर बहुत से लोग हैं जो मंजुनाथ और सत्येंद्र को अपने अंदर जिंदा रखे हुए हैं. उनकी तरह सच के राह पर चलते हुए. ऐसे लोग चाहते हैं कि दो युवा शहीदों का समुचित सम्मान हो.
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क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ और परिचर्चा 13 को

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पीपुल्‍स विजन एवं हिन्‍द युग्‍म ने संयुक्‍त रूप से 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन किया है. इसमें क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ होगा. एक परिचर्चा भी आयोजित है. स्थान है- गांधी शांति प्रतिष्‍ठान, दीनदयाल उपाध्‍याय मार्ग, नई दिल्‍ली.

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प्रेमचंद की कहानियां समय-समाज की धड़कन

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: प्रेमचंद जयंती समारोह-2010 : आम आदमी तक पहुंची प्रेमचंद की कथा परंपरा : राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र की पहल पर इस बार जयपुर में प्रेमचंद की कहानी परंपरा को 'कथा दर्शन' और 'कथा सरिता' कार्यक्रमों के माध्‍यम से आम लोगों तक ले जाने की कामयाब कोशिश हुई, जिसे व्‍यापक लोगों ने सराहा। 31 जुलाई और 01 अगस्‍त, 2010 को आयोजित दो दिवसीय प्रेमचंद जयंती समारोह में फिल्‍म प्रदर्शन और कहानी पाठ के सत्र रखे गए थे। समारोह की शुरुआत शनिवार 31 जुलाई, 2010 की शाम प्रेमचंद की कहानियों पर गुलजार के निर्देशन में दूरदर्शन द्वारा निर्मित फिल्‍मों के प्रदर्शन से हुई। फिल्‍म प्रदर्शन से पूर्व प्रलेस के महासचिव प्रेमचंद गांधी ने अतिथियों का स्‍वागत करते हुए कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में व्‍याप्‍त सामाजिक संदेशों को और उनकी कहानी परंपरा को आम जनता तक ले जाने की एक रचनात्‍मक कोशिश है यह दो दिवसीय समारोह।

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क्या! जो टॉयलेट में घुसा था, वो पत्रकार था?

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: मुजरिम चांद (अंतिम भाग) : डाक बंगले से थाने की दूरी ज्यादा नहीं थी। कोई 5-7 मिनट में पुलिस जीप थाने पहुंच गई। सड़क भी पूरी ख़ाली थी। कि शायद ख़ाली करवा ली गई थी। क्योंकि इस सड़क पर कोई आता-जाता भी नहीं दिखा। हां, जहां-तहां पुलिस वाले जरूर तैनात दिखे। छिटपुट आबादी वाले इलाकों में सन्नाटा पसरा पड़ा था। रास्ते में एकाध खेत भी पड़े जिनमें खिले हुए सरसों के पीले फूलों ने राजीव को इस आफत में भी मोहित किया।

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ये लोग साहित्यकार हैं या साहित्य के मदारी!

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अमिताभ ठाकुर: 'विभूति कांड' के बहाने साहित्येतर रचना-धर्मिता पर चर्चा : साहित्यकारों को उस रात जैसा देखा-सुना वह अकल्पनीय : महिला साहित्यकार को अपनी जंघा पर बैठाने पर कटिबद्ध दिखे युग-पुरुष : विभूति नारायण राय हिंदी साहित्य की एक चर्चित हस्ती हैं. स्वाभाविक तौर पर प्रत्येक चर्चित व्यक्ति की तरह उनकी बातों और उनके शब्दों का अपना एक अलग महत्व और स्थान होता है.

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छिनाल प्रकरण : ...थू-थू की हमने, थू-थू की तुमने...

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ज्ञानपीठ की प्रवर परिषद से हटा दिए जाने, केंद्रीय मंत्री से माफी मांग लेने और सार्वजनिक तौर पर अपने कहे पर खेद जताने के बाद भले ही विभूति नारायण राय का 'छिनाल प्रकरण' ठंडा पड़ता दिख रहा हो लेकिन इसकी टीस अब भी ढेर सारे लोगों के मन में है. खासकर कई महिलाएं इस बवाल और विवाद के तौर-तरीके से आहत हैं. इनका मानना है कि विभूति नारायण राय ने जो कहा, उससे उनका छोटापन दिखता है, लेकिन विरोध करने वालों ने कोई बड़प्पन नहीं दिखाया.

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विभूति कहां गलत हैं!

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सिद्धार्थ कलहंस: प्रगतिशीलता की होड़ है, हो सको तो हो : गोली ही मारना बाकी रह गया है विभूति नारायण राय को। बसे चले तो भले लोग वह भी कर डालें। प्रगितशीलता के हरावल दस्ते की अगुवाई की होड़ है भाई साहब। न कोई मुकदमा, न गवाही और न ही सुनवाई। विभूति अपराधी हो गए। सजा भी मुकर्रर कर दी गयी। हटा दो उन्हें कुलपति के पद से। साक्षात्कार पर विभूति ने सफाई दे दी। पर प्रगतिशील भाई लोग हैं कि मानते नहीं। सबकी बातें एक हैं- बस विभूति को कुलपित पद से हटा दो।

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वीएन राय के विवादित इंटरव्यू को पूरा पढ़ें, यहां

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'नया ज्ञानोदय' पत्रिका के उस पेज का लिंक हम यहां दे रहे हैं, जिसमें वीएन राय ने एक सवाल के जवाब में हिंदी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहा. इंटरव्यू में एक जगह वीएन राय ने कहा है- 'लेखिकाओं में यह साबित करने की होड़ लगी है कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है...यह विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह है।' एक लेखिका की आत्मकथा,जिसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं,का अपमानजनक संदर्भ देते हुए राय कहते हैं,'मुझे लगता है इधर प्रकाशित एक बहु प्रचारित-प्रसारित लेखिका की आत्मकथात्मक पुस्तक का शीर्षक हो सकता था 'कितने बिस्तरों में कितनी बार'।'

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वीएन राय के पीछे पड़े हैं वामपंथी!

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: आलोक मेहता भी निशाने पर : पिछले दिनों 'हंस' पत्रिका का सालाना जलसा दिल्ली के ऐवाने गालिब सभागार में हुआ. यहां एक गोष्ठी हुई जिसमें कई नामचीन लोग बुलाए गए थे. इसमें बोलते हुए वीएन राय ने राज्य मशीनरी की हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश की. इससे खफा कई श्रोताओं-पत्रकारों ने वीएन राय को कार्यक्रम के बाद घेर लिया.

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भारतीय मीडिया

प्रदीप सिंह यूएनआई टीवी के कार्यकारी संपादक

: मयंक व यशवर्द्धन भी जुड़े : टीवी9, मुंबई से 3 का इस्तीफा : सीएनईबी को अलविदा बोल चुके वरिष्ठ पत्रकर प्रदीप सिंह ने यूएनआई टीवी में बतौर एक्जीक्यूटिव एडिटर ज्वाइन किया है. सीएनईबी और जी न्यूज में काम कर चुके युवा प्रतिभाशाली पत्रकार मयंक सक्सेना यूएनआई टीवी, दिल्ली की रिपोर्टिंग टीम के हिस्से बने हैं. हिंदुस्तान अखबार में काम कर चुके युवा पत्रकार यशवर्द्धन शुक्ला ने भी यूएनआई टीवी के साथ नई पारी शुरू की है. यशवर्द्धन एसाइनमेंट पर हैं.

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अनुरंजन झा सीएनईबी के सीओओ बने

अनुरंजन झा सीएनईबी के सीओओ बने

खबर है कि अनुरंजन झा को लंबी बेरोजगारी के बाद ठिकाना मिल गया है. उन्होंने आज संभवतः सीएनईबी न्यूज चैनल ज्वाइन किया है. पिछले साल अगस्त महीने में इंडिया न्यूज से कार्यमुक्त किए जाने के बाद से अनुरंजन कहीं नहीं थे. पूरे एक साल तक उन्होंने कई जगहों पर प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. इस बीच उन्होंने एक मीडिया न्यूज पोर्टल शुरू किया. लेकिन यह पोर्टल चल नहीं सका.

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'मी' की पूरी टीम को इस्तीफा देने के निर्देश

अंग्रेजी अखबार डीएनए में मूर्खतापूर्ण प्रयोगों का सिलसिला जारी है. ताजी सूचना के मुताबिक डेली न्यूज़ एंड एनालिसिस प्रबंधन ने अखबार के साथ प्रसरित होने वाली 'मी' मैग्जीन का प्रकाशन बंद करने का फैसला ले लिया है. इस मैग्जीन में कार्यरत सभी लोगों को रिजाइन करने को कह दिया गया है. यह पत्रिका जीवनशैली, फैशन, गैजेट, पर्सनाल्टी आदि पर केंद्रित थी. मैग्जीन की एडिटर सत्या सरन हैं जो फेमिना की भी संपादक रह चुकी हैं.

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नवेन्दु मौर्य टीवी के राजनीतिक संपादक बने

: न्यूज11 के ज्ञानरंजन भी मौर्य पहुंचे : आफर लेटर लेकर चुप्पी साध गए हैं मधुरशील : रुद्र प्रताप सिंह आईबीएन7 से एनडीटीवी पहुंचे : चुनाव के पहले मौर्य टीवी ने अपनी टीम को और मज़बूत कर लिया है. ख़बर है कि बिहार के जाने माने और अनुभवी पत्रकार नवेन्दु राजनीतिक संपादक के तौर पर जुड़ रहे हैं. नवेन्दु लगभग तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं और वे ईमानदार तथा प्रतिबद्ध पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं.

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अथ श्री आई-नेक्स्ट, आगरा कथा

आई नेक्स्ट आगरा में इन दिनों गफलत का माहौल बना हुआ है। यहां के लोगों को पता...

'पत्रिका में मुझसे जबरन इस्तीफा लिया गया'

पत्रिका, ग्‍वालियर के रिपोर्टर राहुल शर्मा ने आरोप लगाया है कि उससे सिटी ची...

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प्रदीप सिंह यूएनआई टीवी के कार्यकारी संपादक

: मयंक व यशवर्द्धन भी जुड़े : टीवी9, मुंबई से 3 का इस्तीफा : सीएनईबी को अलविदा ...

अनुरंजन झा सीएनईबी के सीओओ बने

अनुरंजन झा सीएनईबी के सीओओ बने

खबर है कि अनुरंजन झा को लंबी बेरोजगारी के बाद ठिकाना मिल गया है. उन्होंने आ...

नवेन्दु मौर्य टीवी के राजनीतिक संपादक बने

: न्यूज11 के ज्ञानरंजन भी मौर्य पहुंचे : आफर लेटर लेकर चुप्पी साध गए हैं मधु...

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Crime Reporting

Crime Reporting

This article has been written for young journalists who are being initiated into the profession and who have opted for very challenging beat—Crime Reporting. Written by N K Singh, Consulting Editor, Sadhna News and General Se...

सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?

सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प...

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मीडिया हाउसों को चैन से न रहने दूंगा

मीडिया हाउसों को चैन से न रहने दूंगा

इंटरव्यू : एडवोकेट अजय मुखर्जी 'दादा' :  एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्‍यवस्‍था : अखबारों की तरफ से मुझे धमकियां मिलीं और प्रलोभन भी : मालिक करोड़ों में खेल रहे पर पत्रकारों को उनका हक नहीं देते : पूंजीपतियों के दबाव में कांट...

श्वान रूप संसार है भूकन दे झकमार

श्वान रूप संसार है भूकन दे झकमार

: साहित्य में शोषितों की आवाज मद्धिम पड़ी : अब कोई पक्ष लेने और कहने से परहेज करता है : अंधड़-तूफान के बाद भी जो लौ बची रहेगी वह पंक्ति में स्थान पा लेगी : समाज को ऐसा बनाया जा रहा है कि वह सभी विकल्पों, प्रतिरोध करने वाली शक्तिय...

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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