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Thursday, July 22, 2010

न्‍यास में मु म जोशी, राजनाथ सिंह का क्‍या काम?

न्‍यास में मु म जोशी, राजनाथ सिंह का क्‍या काम?

♦ अंबरीश कुमार

कल रात उस जमात पर लिखने बैठा, जिसने कुछ सालों पहले पूरे देश में गणेश जी को दूध पिला दिया था। इनके दुष्प्रचार तंत्र का यह सबसे रोचक उदाहरण रहा है। तभी दो जानकारी मिली। उस पोस्ट को रोक दिया है। पता चला कि भगवा रंग में रंगा प्रभाष परंपरा न्यास ने काम शुरू कर दिया। कैंसर से जूझ रहे साथी आलोक तोमर को धमकाने की कोशिश की गयी तो अपनी जिस बहू सुप्रिया को आशीर्वाद देने एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका खुद गये थे, उनके खिलाफ एक न्यासी के गुमाश्‍ते ने अश्लील टिप्पणी एक साइट पर की (टिप्‍पणी मोहल्‍ला लाइव पर की गयी थी। वाकई अश्‍लील थी। उसे स्‍पैम में डाल दिया गया है और आईपी एड्रेस की पहचान कर ली गयी है : मॉडरेटर) आज ही रामनाथ गोयनका को उनके नाम पुरस्कार देकर याद भी किया जा रहा है।

यह सूचना मैं कुछ लोगों से विशेष तौर पर बांटना चाहता हूं, जो प्रभाष जोशी के साथ वर्षों रहे हैं। सबकी खबर ले – सबकी खबर दे, का नारा गढ़ने वाले कुमार आनंद ने, जिन्हें प्रभाष जी इंतजाम बहादुर कहते थे, दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस एम्प्लाइज यूनियन के मेरे चुनाव में जब एक खेमे ने प्रभाष जोशी के लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया, तो उन लोगों पर गुस्से में हाथ उठा दिया था और फिर जो हिंसा हुई, उसमें कई घायल हुए और कुमार आनंद ने झुकने की बजाय इस्तीफा दे दिया था। कुमार संजॉय सिंह जो आलोक को अपना छोटा भाई बताते हैं और एक्सप्रेस यूनियन के मौजूदा अध्यक्ष अरविंद उप्रेती को भी जिन्होंने उस दिन हमला करने वालों का डटकर मुकाबला किया और तब से लेकर आज तक इन ताकतों से लगातार भिड़ रहे हैं।

साथ ही बनवारी, मंगलेश डबराल, सुरेंद्र किशोर, श्रीश चंद्र मिश्र, सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शंभू नाथ शुक्ल, देवप्रिय अवस्थी, मनोहर नायक, सुशील कुमार सिंह, ओम प्रकाश, अनिल बंसल आदि से भी जो जनसत्ता के महत्वपूर्ण पत्रकारों में शामिल रहे हैं, उन्हें भी यह जानकारी देना चाहता हूं। उन संजय सिंह को भी, जो उन लोगों में शामिल थे, जिनपर जनसत्ता की वजह से तेजाब फेंक दिया गया था। जनसत्ता के छत्तीसगढ़ संस्करण के साथी रहे अनिल पुसदकर, राजकुमार सोनी, संजीत त्रिपाठी से लेकर पटना के साथी गंगा प्रसाद, भोपाल में आत्मदीप, जयपुर में राजीव जैन और कोलकाता में प्रभाकर मणि त्रिपाठी से भी पूछना चाहता हूं कि न्यास में मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह पर सवाल खड़ा करने पर धमकाया जाएगा?

जनसत्ता प्रभाष जोशी का वह अखाड़ा था, जिसमे बड़े बड़े चित्त हो गये। और प्रभाष जोशी जनसत्ता में जिस टीम को साथ लेकर चलते थे, आज उस टीम को हाशिये पर फेंकने की साजिश हो रही है। जनसत्ता में हर धारा के लोग रहे। वामपंथी, समाजवादी से लेकर धुर वामपंथी और संघी भी। वाद विवाद होता था, पर यह नहीं कि किसी खास धारा के लोगों को हाशिये पर कर दिया जाए। पर आज एक धारा के लोग परंपरा के नाम पर जनसत्ता के लोगों का अपमान कर रहे हैं।

क्या यही है प्रभाष परंपरा? आलोक तोमर जिस हालत में हैं, हो सकता है उसमें वे ज्यादा कुछ न बोलें, सुप्रिया जिस मनोदशा में हैं, वे भी टाल जाएं, मगर उनकी खामोशी से मामला रुकेगा नहीं।

देश के दूरदराज इलाको में, जिलों और कस्बों, पत्रकारिता की मशाल जलाने वाले साथियों, मानवाधिकार से लेकर जल जंगल जमीन के लिए संघर्ष करने वाले साथियों से इस मुद्दे पर जो समर्थन मिला है, उसके हम आभारी है।

(अंबरीश कुमार वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और जनसत्ता के लखनऊ ब्‍यूरो चीफ हैं…)


[22 Jul 2010 | No Comment | ]
परिवर्तनकामी टोली ने सार्वजनिक किया राजेंद्र जी का पक्ष

न्‍यास में मु म जोशी, राजनाथ सिंह का क्‍या काम?

[22 Jul 2010 | Read Comments | ]

अंबरीश कुमार ♦ भगवा रंग में रंगा प्रभाष परंपरा न्यास ने काम शुरू कर दिया है और सवाल उठाने पर धमकाने का काम शुरू हो गया है। कैंसर से जूझ रहे आलोक तोमर को धमकाया गया है। खैर, अब भी कोई बताएगा कि प्रभाष परंपरा न्‍यास में मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह जैसों का क्‍या काम है?

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परिवर्तनकामी टोली ♦ इस संवादहीनता ने दो जनपक्षधर व्यक्तित्वों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा की। अरुंधती और राजेंद्र यादव की जनपक्षधरता असंदिग्ध रही है। भ्रम की ये स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।
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नज़रिया, मीडिया मंडी »

[22 Jul 2010 | 3 Comments | ]
न्‍यास में मु म जोशी, राजनाथ सिंह का क्‍या काम?

अंबरीश कुमार ♦ बनवारी, मंगलेश डबराल, सुरेंद्र किशोर, श्रीश चंद्र मिश्र, सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शंभू नाथ शुक्ल, देवप्रिय अवस्थी, मनोहर नायक, सुशील कुमार सिंह, ओम प्रकाश, अनिल बंसल आदि से भी जो जनसत्ता के महत्वपूर्ण पत्रकारों में शामिल रहे हैं, उन्हें भी यह जानकारी देना चाहता हूं। जनसत्ता के छत्तीसगढ़ संस्करण के साथी रहे अनिल पुसदकर, राजकुमार सोनी, संजीत त्रिपाठी से लेकर पटना के साथी गंगा प्रसाद, भोपाल में आत्मदीप, जयपुर में राजीव जैन और कोलकाता में प्रभाकर मणि त्रिपाठी से भी पूछना चाहता हूं कि न्यास में मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह पर सवाल खड़ा करने पर धमकाया जाएगा?

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[22 Jul 2010 | Comments Off | ]

मीडिया मंडी, मोहल्ला दिल्ली, समाचार »

[21 Jul 2010 | 9 Comments | ]
आउटलुक की गीताश्री को भी मिलेगा गोयनका अवार्ड

डेस्‍क ♦ रामनाथ गोयनका अवॉर्ड इस बार एक ही परिवार के दो सदस्‍यों को मिल रहा है। हमने बताया था कि बीएजी के संस्‍थापक संपादक और वरिष्‍ठ टीवी पत्रकार अ‍जीत अंजुम को राजनीतिक समझदारी के लिए रामनाथ गोयनका अवार्ड मिलेगा, अब खबर है उनकी पत्‍नी और आउटलुक की सहायक संपादक गीताश्री को भी ये अवॉर्ड मिल रहा है। उन्‍हें पहले भी ढेरों एवार्ड और फेलोशिप मिल चुके हैं। आदिवासी लड़कियों की ट्रैफिकिंग पर लगातार काम करने और तस्करों के गिरोह का पर्दाफाश करने वाली स्टोरी के लिए गीताश्री को बेस्ट इनवेस्‍टीगेटिव फीचर कैटगरी में यूएनएफपीए-लाडली मीडिया अवार्ड भी दिया जा चुका है। गीताश्री प्रिंट, इलेक्‍ट्रॉनिक और वेब, तीनों माध्यमों में विविध पदों पर काम कर चुकी हैं।

बात मुलाक़ात, मीडिया मंडी, मोहल्ला दिल्ली »

[20 Jul 2010 | No Comment | ]
पत्रकारों ने सभा की, कहा – अघोषित आपातकाल है!

डेस्‍क ♦ गांधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्‍ली में 20 जुलाई की शाम नवगठित समूह जर्नलिस्‍ट फॉर पीपुल के बैनर तले एक सभा हुई, जिसमें देश में अघोषित आपातकाल को कई घटनाओं के जरिये समझने की कोशिश की गयी। साथ ऐसे वक्‍त में पत्रकारों की भूमिका क्‍या हो सकती है, इस पर चर्चा की गयी। सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने कहा कि आज ही नहीं, हमेशा से देश में आपातकाल जैसी स्थितियां रही हैं। स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडेय और भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता कॉमरेड आजाद की कथित मुठभेड़ में की गयी हत्‍या पर सवाल उठाते हुए अग्निवेश ने कहा कि किसी भी कीमत साहस और सच का साथ नहीं छोड़ना है।

नज़रिया, मीडिया मंडी »

[20 Jul 2010 | 2 Comments | ]
प्रभाष परंपरा न्‍यास… जिस शाख पे उल्‍लू बैठ गये!

राजकुमार सोनी ♦ मेरे कहने का यह आशय है कि जब संघ, ट्रस्ट या न्यास की पवित्रता में पाखंड का प्रवेश हो जाता है, तब सारे सही उद्देश्य प्लास्टिक के नाडे़ से ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं। एक न्यास से यदि जनसंघी जुड़े हैं, वामपंथी भी और कांशीराम की पार्टी के सदस्य भी, तो फिर उस न्यास का क्या होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है। न्यास में जो खून-खराबा होने वाला है, वह अभी से दिख रहा है। दिल्ली के पत्रकार तो यह हेडिंग लगाएंगे नहीं… कस्बाई पत्रकारों को ही कहीं किसी छोटे से पर्चे में लिखना होगा – प्रभाष परंपरा न्यास में रणवीर सेना ने किया खून-खराबा।

नज़रिया, मीडिया मंडी »

[20 Jul 2010 | 23 Comments | ]
विश्‍वास की गहरी नींव पर बनना चाहिए था न्‍यास

आलोक तोमर ♦ अंबरीश कुमार के नैनीताल में किसी महल का जिक्र संजय तिवारी ने किया है। एक तो यह महल नहीं हैं। छोटे छोटे दो कमरे हैं, जिन्हे अंबरीश के पिता ने खरीदा था। दूसरे उसी नैनीताल के रामगढ़ में मेरी भी जमीन है और मैं भी घर बनाने वाला हूं। जिसे जो बिगाड़ना है, बिगाड़ ले। रही बात प्रभाष जी की परंपरा को निभाये रखने की तो जरूरी है कि एक न्यास में जितना विश्वास होना चाहिए, वैसा न्यास बने। अगर प्रभाष परंपरा न्यास यह नहीं कर सका, तो हम दूसरा न्यास बनाएंगे। प्रभाष जी के परिवार को जोड़ लेने से न्यास के उद्देश्य पवित्र नहीं हो जाते। उद्देश्यों की पवित्रता ज्यादा जरूरी है। जिन लोगों को लग रहा है कि बंदे को तो कैंसर है और वह कभी भी टपक जाएगा, वे किसी गलतफहमी में न रहें।

नज़रिया, मीडिया मंडी »

[19 Jul 2010 | 15 Comments | ]
प्रभाष परंपरा न्‍यास पर बेवजह विधवा विलाप बंद कीजिए

संजय तिवारी ♦ जिन अंबरीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर को देखने तक की जहमत नहीं उठायी वे भला उस अशोक गादिया पर कैसे सवाल उठा सकते हैं, जो पूरी रात प्रभाष जी के पार्थिव होती देह के साथ अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे। न्यास की अवस्थापना का सारा काम अशोक गादिया ने पूरा करवाया और प्रभाष जी के नाम पर वे आगे और भी बहुत कुछ करने की तमन्ना रखते हैं। जहां तक एनएन ओझा के नाम का सवाल है, तो यह प्रभाष जोशी ही थे जिन्होंने राय साहब को कहा था कि प्रवक्ता पत्रिका को स्थापित करना है। और एनएन ओझा उसी पत्रिका के प्रबंध संपादक हैं। खुद प्रभाष जोशी उस पत्रिका के लिए नियमित कॉलम लिखते थे। कारण भले ही राय साहब रहे हों, लेकिन एन एन ओझा का उस न्यास में होना अनुचित कहीं से नहीं है।

नज़रिया, मोहल्ला पटना, व्याख्यान »

[19 Jul 2010 | 6 Comments | ]
आज भी सिर्फ दस जातियां राज करती हैं…

श्रीकांत ♦ बीस साल में क्या बदला? 10 जातियां केवल हैं, जो स्टेट पावर पर काबिज होती हैं। जो राज करती हैं। आप किसी भी पार्टी में उठा कर देख लीजिए। अभी वीरेंद्र यादव ने 243 विधायकों की जाति की सूची निकाली है। सिर्फ 10 जातियां! पिछले 50 सालों में इस स्टेट में यही राज कर रही हैं। गरीबों की हालत है कि वे जहां पहले थे, वहीं आज भी हैं। सिर्फ 'टेन परसेंट' लोगों का, जो 10 प्रतिशत रिच क्लास है, उनके पास धन-संपत्ति बढ़ती जा रही है। आपको आश्‍चर्य होगा कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 278 रुपये आमदनी मासिक पर लोग गुजारा करते हैं। आप शहर में रह के 5-10 हजार की बात करते हैं, आप कल्पना कीजिए कि वो आदमी कैसे गुजारा करेगा?


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Palash Biswas
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